लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 12 Jan, 2021
  • 52 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

CAFE-2 विनियम और BS-VI चरण (II) के मानदंड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ऑटो इंडस्ट्री ने सरकार से अनुरोध किया है कि लॉकडाउन के प्रभावों को देखते हुए कॉर्पोरेट औसत ईंधन दक्षता (Corporate Average Fuel Efficiency-2) के नियमों और BS-VI के चरण (II) के मानकों को लागू करने की अवधि को अप्रैल 2024 तक बढ़ा दिया जाए।

  • CAFE-2 तथा BS-VI के चरण (II) के मानदंडों को लागू करने के लिये क्रमशः वर्ष 2022 और अप्रैल 2023 की अवधि तय की गई है।

प्रमुख बिंदु

कॉर्पोरेट औसत ईंधन दक्षता विनियम:

  • भारत सहित कई विकसित और विकासशील देशों में कॉर्पोरेट औसत ईंधन दक्षता विनियम लागू किये गए हैं।
  • ये वाहनों की ईंधन खपत या ईंधन दक्षता में सुधार और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन को कम करते हैं। इस प्रकार ईंधन के लिये तेल पर निर्भरता कम होने के साथ ही प्रदूषण पर नियंत्रण पाने में भी मदद मिलती है।
  • कॉर्पोरेट औसत ईंधन दक्षता विनियम ऑटो निर्माताओं के लिये बिक्री-मात्रा के भारित औसत (Sales-Volume Weighted Average) को संदर्भित करता है। CAFE का विचार इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicle) सहित अधिक ईंधन कुशल मॉडल का उत्पादन और बिक्री कर ईंधन दक्षता लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये  निर्माताओं को सहयोग प्रदान करना है।

भारत में प्रमोचन:

  • CAFE मानकों को पहली बार वर्ष 2017 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम (Energy Conservation Act), 2001 के तहत केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय (Union Ministry of Power) द्वारा अधिसूचित किया गया था।
    • यह विनियमन वर्ष 2015 के ईंधन खपत मानकों के अनुसार है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक वाहनों की ईंधन दक्षता को 35% तक बढ़ाना है।
  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highway) प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत में ऑटोमोबाइल निर्माताओं द्वारा वार्षिक ईंधन की खपत की निगरानी और रिपोर्टिंग करने के लिये ज़िम्मेदार एक नोडल एजेंसी है।
  • इस विनियमन को दो चरणों में पेश किया गया था, जिसके तहत कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को वर्ष 2022-23 तक 130 ग्राम/किमी. और वर्ष 2022-23 तक 113 ग्राम/किमी. करना है।

 प्रयोज्यता:

  • यह मानक पेट्रोल, डीज़ल, तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (LPG) और संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG) के उपयोग वाले यात्री वाहनों के लिये लागू है।

BS-VI चरण (II) मानदंड:

  • भारत स्टेज उत्सर्जन मानक आतंरिक दहन और इंजन तथा स्पार्क इग्निशन इंजन के उपकरण से उत्सर्जित वायु प्रदूषण को विनियमित करने के मानक हैं।
  • इन मानकों का उद्देश्य तीन क्षेत्रों (उत्सर्जन नियंत्रण, ईंधन दक्षता और इंजन डिज़ाइन) में सुधार करना है।
  • केंद्र सरकार ने वाहन निर्माताओं के लिये 1 अप्रैल, 2020 से केवल BS-VI (BS6) वाहनों का निर्माण, बिक्री और पंजीकरण करना अनिवार्य  कर दिया है।
    • BS-VI को यूरो-VI मानदंडों के अनुरूप बनाया गया है।
  • BS-VI उत्सर्जन मानदंडों के अनुसार पेट्रोल वाहनों को नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) उत्सर्जन में 25%, डीज़ल इंजन वाहनों को हाइड्रो काडीज़लर्बन और नाइट्रोजन ऑक्साइड (HC and NOx) में 43% तथा उनके NOx के स्तर को 68% एवं पार्टिकुलेट मैटर के स्तर को 82% तक कम करना होगा।
  • ईंधन में सल्फर सामग्री का होना चिंता का एक प्रमुख कारण है। BS-VI ईंधन में सल्फर की मात्रा BS-IV ईंधन की तुलना में बहुत कम होती है। इसे BS-IV के तहत निर्धारित मात्रा 50 mg/kg से BS-VI में 10 mg/kg तक घटाया जाता है।
  • वर्ष 2023 के बाद से शुरू किये जाने वाले कुछ उपायों में नियामक अधिकारियों द्वारा इन-सर्विस अनुपालन, बाज़ार निगरानी और स्वतः वाहन परीक्षण, निर्माताओं द्वारा वेबसाइटों पर उत्सर्जन डेटा का सार्वजनिक प्रकटीकरण आदि को शामिल किया गया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

सैन्य कर्मियों के मध्य गंभीर तनाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (United Service Institution of India- USI) नामक सर्विस थिंक टैंक (Service Think Tank) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार,  भारतीय सेना के आधे से अधिक कर्मचारी गंभीर तनाव की स्थिति में हैं।

प्रमुख बिंदु: 

तनावग्रस्त सैन्य कार्मिक:

  • सेना प्रतिवर्ष  किसी भी दुश्मन या आतंकवादी गतिविधियों की तुलना में आत्महत्या, फ्रेट्रिकाइड ( जवानों द्वारा एक-दूसरे पर हमला करना) तथा अन्य अप्रिय घटनाओं के कारण अधिक सैन्य कर्मियों को खो रही है।
    • भारतीय सेना के जवानों का लंबे समय तक काउंटर इंसर्जेंसी एंड काउंटर टेररिज्म (Counter Insurgency and Counter Terrorism- CI/CT) गतिविधियों में शामिल होना तनाव के स्तर में वृद्धि के प्रमुख कारकों में से एक रहा है।
    • यह नुकसान सशस्त्र बलों द्वारा संचालित किसी सैन्य कार्यवाही/ऑपरेशन की तुलना में काफी अधिक है। इसके अलावा उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मनोविकृति, न्यूरोसिस और अन्य संबंधित बीमारियों से कई सैनिक एवं अधिकारी प्रभावित हो रहे हैं।
  • जूनियर कमीशंड ऑफिसर्स (Junior Commissioned Officers -JCO) और अन्य रैंक (Other Ranks-OR) की तुलना में उच्च अधिकारियों द्वारा अपेक्षाकृत अधिक तनाव का अनुभव किया जाता है।

तनाव का कारण:

  • उच्च सैन्य अधिकारियों में: नेतृत्व गुणवत्ता का अभाव , कार्य के प्रति प्रतिबद्धता में कमी, संसाधनों का अभाव , अव्यवस्थाओं का होना, पोस्टिंग और पदोन्नति में निष्पक्षता और पारदर्शिता की कमी, उचित आवास सुविधा का अभाव , असैनिक अधिकारियों का उदासीन रवैया आदि।
  • लोअर रैंक के अधिकारियों में: अत्यधिक व्यस्तता, घरेलू समस्याएँ, गरिमा की कमी, मनोरंजन सुविधाओं की कमी और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ-साथ अधीनस्थों के साथ संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होना आदि।

कार्य पर तनाव का प्रभाव:

  • तनाव के कारण सैन्य यूनिट्स और सब-यूनिट्स में अनुशासनहीनता की स्थिति उत्पन्न होना, प्रशिक्षण के दौरान असंतोषजनक स्थिति, सैन्य उपकरणों के अपर्याप्त रखरखाव तथा सैन्य मनोबल में कमी की संभावना बढ़ सकती है, जो सेना की युद्ध तैयारी और परिचालन प्रदर्शन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है।

सुझाव:

  • नेतृत्व द्वारा तनाव की रोकथाम और प्रबंधन हेतु इकाइयों तथा उनके गठन (Unit and Formation) के स्तर पर उपचार किया जाना चाहिये।

सेना का रुख:

  • सेना द्वारा अध्ययन को खारिज करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया गया कि "दूरगामी" निष्कर्ष पर पहुंँचने के लिये सर्वेक्षण में शामिल डेटा अत्यधिक कम है ।
    • यह एक व्यक्ति द्वारा किया गया अध्ययन है, जिसमें लगभग 400 सैनिकों को शामिल किया गया है।

उठाए गए कदम:

  • कपड़े, भोजन, आवास, यात्रा सुविधा, स्कूली शिक्षा, मनोरंजन आदि और सामयिक लोक-कल्याण के लिये बैठक जैसी सुविधाओं की बेहतर गुणवत्ता का प्रावधान।
  • तनाव प्रबंधन के लिये एक उपकरण के रूप में  योग और ध्यान का संचालन।
  • मनोवैज्ञानिक परामर्शदाताओं का प्रशिक्षण और तैनाती।
  • उत्तरी और पूर्वी कमान में सैनिकों द्वारा तनाव को कम करने हेतु ‘MILAP’ और ‘Y SAYYOG’ परियोजनाओं का संस्थानीकरण करना।
  • सेना और वायु सेना द्वारा पेशेवर परामर्श लेने के लिये एक 'मानसिक सहायता हेल्पलाइन' (Mansik Sahayata Helpline) की व्यवस्था की गई है।
  • मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता (Mental Health Awareness) पूर्व-प्रेरण प्रशिक्षण के दौरान प्रदान की जाती है।
  • सैन्य मनोरोग उपचार केंद्र (Military Psychiatry Treatment Centre) की व्यवस्था INHS अस्विनी (Asvini) पर और मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों (Mental Health Centre) की स्थापना मुंबई, विशाखापत्तनम, कोचि, पोर्ट ब्लेयर, गोवा तथा कारवार में की गई है।
  • इससे पहले डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ साइकोलॉजिकल रिसर्च (Defence Institute of Psychological Research) ने रणभूमि और शांत क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के मध्य आत्महत्याओं के कारणों की पहचान करने पर केंद्रित अनुसंधान परियोजनाओं को पूरा किया था। इसने अपने अध्ययन में पाया कि समय पर छुट्टी न मिलना तनावपूर्ण कारकों में से एक था जो आत्मघाती व्यवहार को बढ़ावा देता था।
    • सिफारिशें: इसमें सैनिकों की छुट्टी का तर्कसंगत निर्धारण, छुट्टी हेतु परामर्श, कार्यभार में कमी, तैनाती के कार्यकाल में कमी, वेतन व भत्ते में वृद्धि, रहने की स्थिति में सुधार और अधिकारियों के साथ बेहतर पारस्परिक संबंध, तनाव प्रबंधन प्रशिक्षण कार्यक्रम व मनोवैज्ञानिक परामर्श, बुनियादी एवं मनोरंजन गतिविधियों को बढ़ाना तथा शिकायतों का निवारण आदि को शामिल किया गया।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

तटरक्षक अभ्‍यास 'सी विजिल -21'

चर्चा में क्यों?

हाल ही में द्विवार्षिक अखिल भारतीय तटीय रक्षा अभ्यास 'सी विजिल -21' (Sea Vigil -21) का दूसरा संस्करण शुरू किया गया है।

प्रमुख बिंदु: 

प्रमोचन:

  • समुद्री रक्षा अभ्यास के पहले संस्करण का आयोजन जनवरी 2019 में किया गया था।
  • यह भारत का सबसे बड़ी तटीय रक्षा अभ्यास है।

संचालन का क्षेत्र:

  • इस अभ्यास का आयोजन लगभग 7516 किलोमीटर में फैले तटवर्ती और आर्थिक क्षेत्र के दायरे में  किया जा रहा है।
    • संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) एक विशेष आर्थिक क्षेत्र को परिभाषित करती है, जो सीमा तट से 200 समुद्री मील तक फैली होती है। इस सीमा के अंदर तटीय राज्यों के पास संसाधनों (जीवित और निर्जीव दोनों) का अन्वेषण और दोहन करने का अधिकार तथा उनके संरक्षण एवं प्रबंधन की ज़िम्मेदारी होती है।
  • इस अभ्यास में 13 तटवर्ती राज्य और केंद्रशासित प्रदेश, मत्स्य पालन करने वाले तथा तटवर्ती इलाकों में रहने वाले समुदाय भी शामिल हैं।
    • 13 तटीय राज्य और केंद्रशासित प्रदेश: अभ्यास में शामिल 13 तटवर्ती  राज्य और केंद्रशासित प्रदेश हैं- गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, दमन और दीव, पुद्दुचेरी, अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह (बंगाल की खाड़ी) एवं लक्षद्वीप द्वीप समूह (अरब सागर)।
  • सी-विजिल अभ्यास में  भारतीय नौसेना, कोस्ट गार्ड, कस्टम और अन्य समुद्री एजेंसियांँ भी हिस्सा ले रही हैं।
  • भारतीय वायु सेना, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, सीमा सुरक्षा बल, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस तथा एयरपोर्ट एजेंसियाँ भी अभ्यास में शामिल हैं।

समन्वयकारी फोर्स/बल:

भारतीय नौसेना

  • उद्देश्य: 
    • वर्ष 2008 में मुंबई आतंकवादी हमले के बाद तटीय सुरक्षा में खामियों को दूर करने करने के उद्देश्य से शुरू किये गए उपायों की प्रभावकारिता की जांँच करना।
    • मुंबई और कोचीन, विशाखापत्तनम और पोर्ट ब्लेयर में संयुक्त संचालन केंद्रों (Joint Operations Centres- JOC) के निर्माण हेतु तटीय और समुद्री सुरक्षा के लिये राष्ट्रीय समिति (National Committee for Coastal and Maritime Security- NCSMCS) सहित कई पहल शुरू की गई थीं।
    • जिसमें सागर प्रहरी बल (Sagar Prahari Bal- SPB) की स्थापना, हार्बर डिफेंस सर्विलांस सिस्टम की स्थापना, नेशनल कमांड कंट्रोल कम्युनिकेशन एंड इंटेलिजेंस (National Command Control Communication and Intelligence- NC3I) नेटवर्क की स्थापना की गई।
  • महत्त्व: 
    • यह अभ्यास भारतीय नौसेना के थियेटर लेवल अभ्यास, ट्रोपेक्स जिसका पूरा नाम थियेटर लेवल रेडिनेस ऑपरेशनल एक्सराइज़ (Theatre-level Readiness Operational Exercise- TROPEX) है, की दिशा में उठाया गया कदम है। इसका आयोजन प्रति दो वर्ष पर किया जाता है। 
    • सी विजिल और ट्रोपेक्स अभ्यास समुद्री इलाकों की चुनौती से निपटने हेतु पूरी तरह से सक्षम हैं, इसके चलते शांतिपूर्ण तरीके से संघर्ष की स्थितियों में कमी लाई जा सकेगी।
    • जबकि छोटे पैमाने पर अभ्यास तटीय राज्यों में नियमित रूप से आयोजित किये जाते हैं, जिसमें आस-पास के राज्यों के बीच संयुक्त अभ्यास शामिल हैं, राष्ट्रीय स्तर पर एक सुरक्षा अभ्यास का उद्देश्य एक बड़े उद्देश्य की पूर्ति करना है।
      • यह समुद्री सुरक्षा और तटीय रक्षा के क्षेत्र में देश की तैयारियों का आकलन करने हेतु शीर्ष स्तर पर अवसर प्रदान करता है।  

स्रोत: पी.आई.बी


कृषि

भारत में कृषि क्षेत्र से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

दिल्ली की सीमाओं पर हज़ारों किसानों द्वारा किये जा रहे विरोध ने एक बार पुनः भारत में कृषि क्षेत्र से संबंधित मुद्दों को चर्चा के केंद्र में ला दिया है।

  • किसानों द्वारा सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

प्रदर्शनकारी किसानों की प्रमुख चिंताएँ

  • किसानों का मत है कि सरकार द्वारा लाए गए ये कानून देश में गेहूँ और धान के ओपन-एंडेड प्रोक्योरमेंट यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के आधार पर की जाने वाली खरीद प्रणाली के अंत का संकेत दे रहे हैं।
  • आधुनिक खुदरा और ई-कॉमर्स क्षेत्रों में संलग्न कॉरपोरेट्स द्वारा फसलों की स्टॉकिंग भी किसानों के लिये एक विशेष मुद्दा है।

कृषि भूमि का आकार

  • घटता क्षेत्र: आँकड़ों की मानें तो भारत में कृषि योग्य भूमि के आकार में कमी आ रही है, जहाँ एक ओर वर्ष 2010-11 में यह 159.5 मिलियन हेक्टेयर थी, वहीं वर्ष 2015-16 में घटकर 157 मिलियन हेक्टेयर रह गई।
  • जोत इकाइयों  की संख्या में वृद्धि: कृषि उत्पादन के लिये उपयोग की जाने वाली कुल भूमि इकाइयों में वर्ष 2010-11 की तुलना में वर्ष 2015-16 में 5 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। देश में कृषि उत्पादन हेतु उपयोग की जाने इकाइयों की कुल संख्या वर्ष 2010-11 के 138 मिलियन से बढ़कर 2015-16 में 146 मिलियन हो गई है।
    • इसके कारण किसानों की औसत जोत के आकार में कमी आई है, जो कि 1.2 हेक्टेयर से घटकर लगभग 1.08 हेक्टेयर हो गई है।
  • बलपूर्वक विक्रय: तुलनात्मक रूप से छोटी जोत के कारण प्रायः प्रति इकाई उत्पादन भी काफी कम होता है, जिसके कारण छोटे और सीमांत किसान प्रायः मजबूरन अपनी उपज बेचने के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
    • यह विशेष रूप से उन राज्यों में देखा जाता है जहाँ कृषि उपज विपणन समिति (AMPC) मंडियों का नेटवर्क काफी कमज़ोर है।
  • आधुनिक तकनीक तक पहुँच का अभाव: भारत के विशाल ग्रामीण क्षेत्र में छोटे जोतधारकों तक नई तकनीकों और प्रथाओं को पहुँचाना और उन्हें आधुनिक इनपुट तथा आउटपुट बाज़ारों के साथ एकीकृत करना वर्तमान में भारत के कृषि क्षेत्र के लिये एक बड़ी चुनौती है।

किसानों की तुलना में खेत मज़दूरों की अधिक संख्या

  • किसान आमतौर पर खेत का मालिक होता है, जबकि एक खेत पर कई कर्मचारी और मज़दूर भी काम करते हैं।
  • कृषि क्षेत्र में रोज़गार: श्रम ब्यूरो के हालिया अनुमानों के मुताबिक, भारत का 45 प्रतिशत कार्यबल कृषि में कार्यरत है।
  • कृषि क्षेत्र में मज़दूर: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल कृषिकार्यबल में से लगभग 55 प्रतिशत कृषि मज़दूर हैं।
  • मज़दूरों के लिये सहायता का अभाव: खेती के माध्यम से विकास को गति देना या विकास की गति को बनाए रखना अपेक्षाकृत कठिन होता है, क्योंकि खेती करने वाले मज़दूरों को खेती में निवेश के लिये कोई नीतिगत सहायता या प्रोत्साहन नहीं मिलता है।
  • बीज किट, उर्वरक, कीटनाशक, कृषि यंत्र, सूक्ष्म सिंचाई, भूमि विकास सहायता आदि जैसे सभी लाभ केवल उन लोगों को प्राप्त होते हैं, जो खेत पर अपना मालिकाना हक साबित कर सकते हैं।

कृषि क्षेत्र में निवेश की कमी

  • अर्थव्यवस्था में कुल सकल पूंजी निर्माण (GCF) के प्रतिशत के रूप में कृषि क्षेत्र में सकल पूंजी निर्माण (GCF) वित्तीय वर्ष 2011-12 के 8.5 प्रतिशत से गिरकर वित्तीय वर्ष 2018-19 में 6.5 प्रतिशत पर पहुँच गया है। इसका मुख्य कारण कृषि क्षेत्र में निजी निवेश की हिस्सेदारी लगातार कम होना है। 
  • यद्यपि कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश में बढ़ोतरी हो रही है, किंतु यह बढ़ोतरी इस क्षेत्र में विकास की गति को बनाए रखने के लिये पर्याप्त नहीं है।

सब्सिडी और इससे संबंधित मुद्दे

  • कृषि क्षेत्र के लिये मंज़ूर की गई अधिकांश सब्सिडी व्यवसायों को दी जा रही है। खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों और कोल्ड चेन परियोजनाओं को दी जाने वाली सब्सिडी इसका मुख्य उदाहरण है।
  • भारतीय अंतर्राष्‍ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद के आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ICRIER-OECD) की रिपोर्ट के मुताबिक, विपणन संबंधी प्रतिगामी नीतियों (घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय दोनों) और भंडारण, परिवहन आदि से संबंधित बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण किसानों के समर्थन में ढेर सारी योजनाएँ होने और उन्हें सब्सिडी देने के बावजूद भारतीय किसानों को प्रायः नुकसान का सामना करना पड़ता है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और संबंधित मुद्दे

  • चयनात्मक खरीद: सरकार द्वारा 23 फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा की जाती है, जबकि सरकार द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) संबंधी आवश्यकताओं, जो कि लगभग 65 मिलियन टन है, को पूरा करने के लिये बड़ी मात्रा में केवल गेहूँ और धान (चावल) की ही खरीद की जाती है।
  • MSP दरों में स्थिरता: कई किसान कार्यकर्त्ता यह मानते हैं कि सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) दरों में प्रतिवर्ष जो वृद्धि की जाती है, वह उत्पादन लागत में होने वाली वृद्धि जितनी नहीं होती है, जिसके कारण यह किसानों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में भी सक्षम नहीं होती है।
  • असमान पहुँच: इस योजना का लाभ सभी किसानों और फसलों तक एक समान रूप से नहीं पहुँचता है। देश में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहाँ इस योजना का क्रियान्वयन काफी कमज़ोर है, उदाहरण के लिये पूर्वोत्तर क्षेत्र।
  • अवैज्ञानिक अभ्यास: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) कृषि क्षेत्र में अवैज्ञानिक अभ्यास को बढ़ावा देता है, जिसके तहत कृषि में प्रयोग होने वाले संसाधनों जैसे- मिट्टी और भूमिगत जल पर काफी अधिक दबाव होता है।

आगे की राह

  • यदि भारत को खरीद आधारित सहायता प्रणाली को समाप्त करना है, तो एक अधिक आकर्षक आय सहायता योजना की आवश्यकता होगी, इसके अलावा कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे में निजी और सार्वजानिक निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के तहत राज्यों को दिये गए प्रोत्साहन के कारण कई राज्यों में कृषि क्षेत्र में होने वाले खर्च में बढ़ोतरी हुई है। राज्यों को ऐसी योजनाओं के लिये दी जाने वाली सहायता में वृद्धि करनी चाहिये। 
  • कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलों पर केंद्रित अनुसंधान के माध्यम से बेहतर बीज विकसित किये जा सकते हैं, जो जलवायु परिवर्तन के कारण उच्च तापमान की चुनौती का सामना करने की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण होंगे।
  • कृषि क्षेत्र से संबंधित समस्याओं और मुद्दों को संबोधित करने के लिये आवश्यक है कि लोकतांत्रिक मानदंड और प्रक्रियाओं जैसे वाद-विवाद, हितधारकों के साथ वार्ता और कृषि क्षेत्र से संबंधित नीति के सभी पहलुओं की विस्तृत संसदीय जाँच आदि का पालन किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

वैनेडियम के घरेलू निक्षेप

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ( Geological Survey of India- GSI) द्वारा किये गए अन्वेषण में अरुणाचल प्रदेश में वैनेडियम (Vanadium) के भंडार प्राप्त हुए हैं।

  • GSI खान मंत्रालय से संबद्ध कार्यालय है।

प्रमुख बिंदु: 

 वैनेडियम के बारे में:

  •  वैनेडियम एक रासायनिक तत्त्व है जिसका  प्रतीक (V) है।
  • यह एक दुर्लभ तत्त्व (Scarce Element) है जिसकी एक उचित संरचना होती है जो अपनी प्रकृति में कठोर, सिल्की ग्रे, मुलायम और लचीली संक्रमण धातु (Transition Metal) है। 
    • आवर्त सारणी (Periodic Table) में 3-12 समूहों में शामिल सभी तत्त्वों को संक्रमण धातुओं की श्रेणी में रखा जाता  है। ये उष्मा के साथ-साथ विद्युत के प्रति भी एक अच्छा सुचालक होते हैं।
  • वैनेडियम के अयस्क:
    • पेट्रोनाइट (Patronite), वैनडायनाइट (Vanadinite), रोज़कोलाइट  (Roscoelite) और कारनोटाइट (Carnotite)।
  • उपयोग:
    • वेनेडियम का उपयोग मुख्य रूप से लौह और इस्पात उद्योग में एक मिश्र धातु तत्त्व (Alloying Element) के रूप में तथा  एयरोस्पेस उद्योग में प्रयोग होने वाली टाइटेनियम और एल्युमीनियम मिश्र धातुओं को स्थिरता प्रदान करने हेतु किया जाता है।
    • वैनेडियम के आधुनिक अनुप्रयोगों में बिजली संयंत्रों में प्रयोग होने वाली वैनेडियम सेकेंडरी बैटरी (Vanadium Secondary Batteries) तथा  इसके वाणिज्यिक अनुप्रयोगों में रिचार्जेबल वैनेडियम रेडॉक्स बैटरी (Rechargeable Vanadium Redox Battery- VRB) शामिल हैं।
    • वैनेडियम में न्यूट्रॉन-अवशोषित गुणों (Neutron-Absorbing Properties) के विद्यमान होने के कारण वैनेडियम मिश्र धातुओं का उपयोग परमाणु रिएक्टरों (Nuclear Reactors) में किया जाता है।

अरुणाचल प्रदेश में वैनेडियम का भंडार :

  • अरुणाचल प्रदेश में पापुम पारे ज़िले (Papum Pare District) के डेपो और तमांग क्षेत्रों (Depo and Tamang Areas) में पैलेओ-प्रोटरोज़ोइक युग की कार्बोनिअस फाइलाइट चट्टानों (Carbonaceous Phyllite Rocks) में वैनेडियम के भंडार प्राप्त हुए हैं।
    • फाइलाइट (Phyllite) एक महीन दानेदार रूपांतरित चट्टान (Metamorphic Rock) है, जिसका निर्माण मैलास्टोन या शैल्स जैसे बारीक दानेदार, मूल अवसादी चट्टानों (Parent Sedimentary Rocks) के  क्रिस्टलाइज़ेशन (Recrystallization) से होता है।
    • अवसादी चट्टानें औसतन अधिक महत्त्वपूर्ण कार्बनिक पदार्थों से समृद्ध होती है जिन्हें कार्बोनेसस अवसादी चट्टान (Carbonaceous Sedimentary Rocks) कहा जाता है।
  • अरुणाचल प्रदेश के अन्य ज़िलों में भी वैनेडियम के भंडार प्राप्त होने की संभावना है।
  • भारत में वैनेडियम के प्राथमिक निक्षेप पर यह पहली रिपोर्ट है।

वर्तमान परिदृश्य:

  • भारत वैनेडियम का एक महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता देश है परंतु इस रणनीतिक धातु का प्राथमिक उत्पादक देश नहीं है।
    • GSI द्वारा उपलब्ध कराए गए आंँकड़ों के अनुसार, भारत द्वारा वर्ष 2017 में वैनेडियम के कुल वैश्विक उत्पादन का 4% उपभोग किया गया।
  • इसे प्रसंस्कृत वैनेडिफेरस मैग्नेटाइट (लौह) अयस्कों के धातुमल/स्लैग से उपोत्पाद (By-product) के रूप में पुनर्प्राप्त किया जाता है।
    • स्लैग कच्चे अयस्क से एक वांछित धातु (स्मेल्टेड) को अलग करने के बाद प्राप्त होने वाला काँच जैसा उत्पाद है।

वैश्विक भंडार:

  • वैनेडियम का सबसे बड़ा भंडार चीन में है, इसके बाद क्रमशः रूस और दक्षिण अफ्रीका का स्थान है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

संरक्षित क्षेत्रों का प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry for Environment, Forest and Climate Change- MoEF&CC) ने देश के 146 राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों (NP& WLS) का प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन (Management Effectiveness Evaluation- MEE) ज़ारी किया है।

  • यह भी घोषणा की गई कि वर्ष 2021 से प्रत्येक वर्ष  10 सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय उद्यानों, पाँच तटीय तथा समुद्री पार्कों एवं देश के शीर्ष पाँच चिड़ियाघरों को रैंक दी जाएगी और सम्मानित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु:

संरक्षित क्षेत्रों का प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन:

      • संरक्षित क्षेत्रों का MEE एक प्रमुख उपकरण के रूप में उभरा है जिसका उपयोग सरकारों तथा अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा संरक्षित क्षेत्र प्रबंधन प्रणालियों की ताकत और कमज़ोरियों को समझने के लिये किया जा रहा है।
        • भारत के राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्यों की मूल्यांकन प्रक्रिया प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन के IUCN WCPA (संरक्षित क्षेत्रों पर विश्व आयोग) से अपनाई गई है।
      • MEE को इस बात के मूल्यांकन के रूप में परिभाषित किया गया है कि NP&WLS का प्रबंधन कितनी अच्छी तरह से किया जा रहा है तथा क्या वे अपने मूल्यों की रक्षा कर रहे हैं और उन लक्ष्यों तथा उद्देश्यों (जिन पर सहमति बनी है) को प्राप्त कर रहे हैं, आदि का भी ध्यान रखा जा रहा है।
        • रैंकिंग को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है, जैसे कि खराब- 40% तक; स्वच्छ- 41 से 59%; अच्छा- 60 से 74%; बहुत अच्छा - 75% और ऊपर।
      • समुद्री संरक्षित क्षेत्रों के MEE के लिये भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) और MoEF&CC द्वारा संयुक्त रूप से एक नया ढाँचा भी तैयार किया गया है।
      • MoEF&CC ने भारतीय चिड़ियाघरों (MEE-ZOO) के ढाँचे का प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन का भी शुभारंभ किया है, यह देश के चिड़ियाघरों के मूल्यांकन के लिये दिशा-निर्देश, मानदंड और संकेतक का प्रस्ताव करता है जो प्रथक, समग्र और स्वतंत्र है।

      संरक्षित क्षेत्र:

      • भारत में 903 संरक्षित क्षेत्रों का एक नेटवर्क है जो अपने कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 5% कवर करता है।
      • भारत ने व्यवस्थित रूप से अपने संरक्षित क्षेत्रों को चार कानूनी श्रेणियों - राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों, संरक्षण रिज़र्व और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत सामुदायिक रिज़र्व में नामित किया है।

      मूल्यांकन के परिणाम:

      • कुल प्रदर्शन: वर्तमान मूल्यांकन परिणाम उत्साहजनक हैं और इसका समग्र औसत MEE स्कोर 62.01% जो कि वैश्विक औसत (56%) से अधिक है।
      • क्षेत्रीय प्रदर्शन: भारत का पूर्वी क्षेत्र 66.12% का उच्चतम समग्र MEE स्कोर प्रस्तुत करता है और उत्तरी क्षेत्र 56% के न्यूनतम औसत MEE स्कोर का प्रतिनिधित्व करता है।
      • श्रेष्ठ NP&WLS: हिमाचल प्रदेश में तीर्थन वन्यजीव अभयारण्य (Tirthan Wildlife Sanctuary) और ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (GNHP) ने सर्वेक्षण किये गये संरक्षित क्षेत्रों (कुल -146) में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है।
        • GHNP को जैव विविधता संरक्षण के लिये इसके उत्कृष्ट महत्त्व को मान्यता देते हुए वर्ष 2014 में यूनेस्को विश्व विरासत स्थल का दर्जा प्रदान किया गया था।
        • तीर्थन वन्यजीव अभयारण्य (1976 में घोषित) 5000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह सेराज वन प्रभाग का हिस्सा है। यह अभयारण्य ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क से जुड़ा है।
      • सबसे खराब प्रदर्शन वाला NP&WLS: इस सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश स्थित 'कछुआ वन्यजीव अभयारण्य' (The Turtle Wildlife Sanctuary) का प्रदर्शन सबसे खराब पाया गया। 
        • वन्यजीवों  और उनके पर्यावरण के संरक्षण, प्रसार तथा विकास के लिये राजघाट (मालवीय पुल) से रामनगर किले के बीच गंगा नदी के 7 किमी. लंबे विस्तार  को वर्ष 1989 में एक अधिसूचना के माध्यम से ‘कछुआ वन्यजीव अभयारण्य’ घोषित किया गया था।

      संरक्षित क्षेत्रों की श्रेणियाँ

      • अभयारण्य (Sanctuary): यह एक पर्याप्त पारिस्थितिक, जीव-जंतुओं या वनस्पति संबंधी, भू-आकृतिक या प्राकृतिक महत्त्व का क्षेत्र होता है। अभयारण्य को घोषणा वन्यजीवों या उनके पर्यावरण की रक्षा, विकास या प्रचार के उद्देश्य से की जाती है। अभयारण्य के रूप में चिह्नित क्षेत्र के अंदर रहने वाले लोगों को कुछ अधिकारों की अनुमति दी जा सकती है।
      • राष्ट्रीय उद्यान (National Park): एक अभयारण्य की तरह ही राष्ट्रीय उद्यान को भी वन्यजीव या इसके पर्यावरण की रक्षा, प्रचार या विकास के उद्देश्य से घोषित किया जाता है। एक अभयारण्य और एक राष्ट्रीय उद्यान के बीच अंतर मुख्य रूप से इसके अंदर रहने वाले लोगों के अधिकारों के संदर्भ में है।. 
        • एक अभयारण्य जहाँ कुछ अधिकारों की अनुमति दी जा सकती है, के विपरीत एक राष्ट्रीय उद्यान में किसी भी अधिकार की अनुमति नहीं होती है।
        • एक राष्ट्रीय उद्यान के अंदर पशुओं को चरने की अनुमति नहीं दी जाती है, जबकि एक अभयारण्य में मुख्य वन्यजीव वार्डन को पशुओं को चरने के विनियमन, नियंत्रण या प्रतिबंधित करने का अधिकार होता है। 
      • संरक्षण रिज़र्व (Conservation Reserve): राज्य सरकारों द्वारा सरकार के स्वामित्व वाले किसी भी क्षेत्र संरक्षण रिज़र्व घोषित किया जा सकता है, विशेष रूप से राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों से सटे क्षेत्रों और उन क्षेत्रों को जो एक संरक्षित क्षेत्र को दूसरे से जोड़ते हैं। ऐसे क्षेत्रों को चिह्नित किये जाने की घोषणा स्थानीय समुदायों के साथ विचार-विमर्श के बाद ही की जानी चाहिये।
        • संरक्षण रिज़र्व की घोषणा भू-दृश्यों, सीस्केप , वनस्पतियों व  जीवों तथा उनके आवास की रक्षा के उद्देश्य से की जाती है।  एक संरक्षण रिज़र्व के अंदर रहने वाले लोगों के अधिकार प्रभावित नहीं होते हैं।
      • सामुदायिक रिज़र्व (Community Reserve): राज्य सरकार द्वारा किसी भी निजी या सामुदायिक भूमि को सामुदायिक रिज़र्व घोषित किया जा सकता है, जिसमें राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य या संरक्षण अभयारण्य शामिल नहीं होते, सामुदायिक रिज़र्व के तहत व्यक्ति विशेष या समुदाय वन्यजीवों और उनके निवास स्थान के संरक्षण के लिये स्वेच्छा से कार्य करते हैं। एक संरक्षण रिज़र्व की तरह ही सामुदायिक रिज़र्व के अंदर रहने वाले लोगों के अधिकार प्रभावित नहीं होते हैं।

      स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


      भारतीय अर्थव्यवस्था

      कोयला क्षेत्र के लिये एकल खिड़की निकासी पोर्टल

      चर्चा में क्यों?

      हाल ही में केंद्र सरकार ने कोयला क्षेत्र के लिये एक नए ऑनलाइन एकल खिड़की निकासी पोर्टल (Single Window Clearance Portal) की घोषणा की है।

      • वर्ष 2025 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में कोयला क्षेत्र सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता हो सकता है।
      • उल्लेखनीय है कि भारत के पास विश्व का चौथा सबसे बड़ा कोयला भंडार है फिर भी यह कोयले का आयात करता है।

      प्रमुख बिंदु

      लक्ष्य:

      • इसका लक्ष्य कई अधिकारियों के पास जाने के बजाय एक पोर्टल के माध्यम से ही पर्यावरण और वन मंज़ूरी की प्रक्रिया को आसान व तेज़ करना है।
        • वर्तमान में देश में कोयला खदान शुरू करने से पहले लगभग 19 प्रमुख मंज़ूरियों की आवश्यकता होती है।

      महत्त्व:

      • यह पोर्टल बोली लगाने वालों को कोयला खदानों के जल्दी संचालन की सुविधा प्रदान करेगा।
      • यह न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन की भावना से प्रेरित है।
      • इससे देश के कोयला क्षेत्र में कारोबार करने में आसानी होगी।
      • यह अधिक निवेश लाने और रोज़गार सृजित करने में मदद करेगा।

      भविष्य की योजना:

      • परिवेश (PARIVESH) पोर्टल को वन और पर्यावरण संबंधी मंज़ूरी के लिये इस एकल खिड़की निकासी तंत्र में विलय कर दिया जाएगा, जिससे नीलाम होने वाले कोयला ब्लॉक के परिचालन में मदद मिलने की उम्मीद है।
        • परिवेश एक वेब-आधारित एप्लीकेशन है, जिसे प्रस्तुत प्रस्तावों की मंज़ूरी के लिये केंद्र, राज्य और ज़िला स्तर के अधिकारियों से विभिन्न प्रकार की स्वीकृतियों (पर्यावरण, वन, वन्यजीव और तटीय विनियमन क्षेत्र -Coastal Regulation Zone) को ऑनलाइन सुनिश्चित करने हेतु विकसित किया गया है।

      कोयला क्षेत्र में हालिया पहल:

      • आत्मनिर्भर भारत अभियान के एक भाग के रूप में:
        • निजी क्षेत्र के लिये 50 ब्लॉकों के प्रस्ताव के साथ कोयले के वाणिज्यिक खनन की अनुमति।
        • कोयला क्षेत्र में प्रवेश के मानदंडों को उदार बनाया जाएगा वैसे ही जैसे इससे पहले विद्युत संयंत्रों के लिये "धुले" कोयले के उपयोग से जुड़ी नियामकीय अनिवार्यताओं को समाप्त किया गया था।
        • निश्चित लागत के स्थान पर राजस्व साझाकरण प्रणाली के आधार पर निजी कंपनियों को कोयला ब्लॉक का आवंटन।
        • राजस्व हिस्सेदारी में छूट द्वारा कोयला गैसीकरण/द्रवीकरण को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
        • कोल इंडिया की कोयला खदानों से कोलबेड मीथेन (Coalbed Methane-CBM) निष्कर्षण के अधिकारों की नीलामी।
      • देश में कोयले की गुणवत्ता की निगरानी के लिये केंद्रीय कोयला मंत्रालय द्वारा अप्रैल 2018 में उत्तम’ (Unlocking Transparency by Third Party Assessment of Mined Coal-UTTAM) एप लॉन्च किया है।
        • उत्तम का अर्थ है- खनन से प्राप्त कोयले का तीसरे पक्ष द्वारा मूल्यांकन के माध्यम से पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
      • केंद्रीय कोयला मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017 में ‘शक्ति’ (भारत में पारदर्शी ढंग से कोयले के दोहन एवं आवंटन की योजना) को लॉन्च किया गया था,  इसका उद्देश्य बिजली क्षेत्र के लिये पारदर्शी तरीके से भविष्य के कोयला लिंकेज के आवंटन को सुनिश्चित करना है।  

      स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


      शासन व्यवस्था

      राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार

      चर्चा में क्यों?

      हाल ही में विद्युत मंत्रालय द्वारा ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) के सहयोग से 30वें राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार (NECA) समारोह का आयोजन किया गया।

      • इस समारोह के दौरान एयर कम्प्रेशर और अल्ट्रा हाई डेफिनेशन (UHD) टीवी के लिये स्वैच्छिक मानक और लेबलिंग कार्यक्रम तथा साथी (SATHEE) पोर्टल भी लॉन्च किये गए।

      प्रमुख बिंदु

      राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार (NECA) समारोह

      • विद्युत मंत्रालय ने वर्ष 1991 में एक योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य ऐसे उद्योगों और प्रतिष्ठानों को पुरस्कृत कर राष्ट्रीय मान्‍यता प्रदान करना था, जिन्होंने अपने उत्पादन को बनाए रखते हुए ऊर्जा की खपत को कम करने के लिये विशेष प्रयास किये हैं।
        • राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार पहली बार 14 दिसंबर, 1991 को दिया गया था, इसे 'राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस' के रूप में घोषित किया गया है।
      • यह पुरस्कार उद्योगों, प्रतिष्ठानों और संस्थानों में कुल 56 उप-क्षेत्रों के तहत ऊर्जा दक्षता उपलब्धियों को मान्यता प्रदान करता है।
      • पुरस्कार समारोह के दौरान इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया गया कि पैट चक्र द्वितीय (PAT Cycle II) के प्रभाव से CO2 के उत्सर्जन में 61 मिलियन टन की कमी हुई है।

      कार्य निष्पादन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना 

      • यह ऊर्जा-गहन बड़े उद्योगों में ऊर्जा दक्षता में तेज़ी लाने और उसे प्रोत्साहित करने हेतु एक बाज़ार-आधारित तंत्र है।
      • इसके तहत ऊर्जा बचत के प्रमाणीकरण के माध्यम से ऊर्जा दक्षता सुधार में लागत प्रभावशीलता बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। 
      • इस योजना को ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है और इसने न केवल देश में अपने लक्ष्यों को प्राप्त किया है बल्कि कई अन्य देशों ने भी इसमें रुचि व्यक्त की है। 

      एयर कम्प्रेशर और अल्ट्रा हाई डेफिनेशन (UHD) टीवी के लिये मानक और लेबलिंग कार्यक्रम

      • इस कार्यक्रम का कार्यान्वयन स्वैच्छिक आधार पर किया जाएगा। 
      • इसका उद्देश्य ऊर्जा संरक्षण के स्तर को बढ़ाना है और संरक्षित ऊर्जा का उपयोग घर अथवा कार्यस्थल में अलग-अलग उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है।
      • ऊर्जा की बचत के अलावा यह कार्यक्रम ऊर्जा बिलों अथवा लागत को कम करने में भी मदद कर सकता है।

      साथी (SAATHEE) पोर्टल:

      • ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE)  द्वारा एक प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) पोर्टल विकसित किया गया है जिसका पूरा नाम ‘स्टेट-वाइज़ एक्शन ऑन एनुअल टारगेट एंड हेडवेज़ ऑन एनर्जी एफिशिएंसी- साथी (State-Wise Actions on Annual Targets and Headways on Energy Efficiency-SAATHEE) है।
      • SDAs के लिये: यह राज्य स्तर की गतिविधियों हेतु राज्य मनोनीत एजेंसी (State Designated Agency- SDA) के लिये एक पोर्टल है।
        • राज्यों की ऊर्जा दक्षता स्थिति पर नियंत्रण: यह संपूर्ण देश में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा कार्यान्वित ऊर्जा दक्षता गतिविधियों की भौतिक और वित्तीय स्थिति/प्रगति पर नियंत्रण स्थापित करने में उपयोगी साबित होगा। अत: यह रियल टाइम मॉनीटरिंग की सुविधा प्रदान करेगा।
        • निर्णयन और अनुपालन का सुव्यवस्थीकरण: यह अखिल भारतीय स्तर पर विभिन्न ऊर्जा उपभोक्ताओं को निर्णयन, समन्वयन, नियंत्रण, विश्लेषण और प्रक्रियाओं के कार्यान्वयन तथा प्रवर्तन में भी सहायता करेगा।

      ऊर्जा दक्षता लक्ष्य:

      • भारत में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन और प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत सबसे कम है। इसके बावजूद देश में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न वैश्विक चुनौती से निपटने हेतु महत्त्वाकांक्षी प्रतिबद्धताओं का पालन किया जा रहा है।
        • भारत ने वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक उत्सर्जन की तीव्रता को 33-35 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो COP21 की  प्रतिबद्धताओं का हिस्सा है।
      • भारतीय प्रधानमंत्री ने वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को 450 GW तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

      ऊर्जा संरक्षण हेतु शुरू की गई पहल

      • कार्य निष्पादन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना, मानक और लेबलिंग कार्यक्रम तथा ऊर्जा संरक्षण भवन कोड आदि।

      नोट

      • SATHI (परिष्कृत विश्लेषणात्मक और तकनीकी सहायता संस्थान)
        • यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology) द्वारा शुरू की गई एक पहल है।
        • उद्देश्य: इसका उद्देश्य शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिये एक ही छत के नीचे उच्च दक्षता युक्त तकनीकी सुविधाएँ मुहैया कराना है ताकि शिक्षा, स्टार्ट-अप, विनिर्माण, उद्योग और R&D लैब आदि ज़रूरतें आसानी से पूरी हो सकें।
      • SAATHI (लघु उद्योगों की सहायता हेतु कुशल टेक्सटाइल तकनीकों का सतत् एवं त्वरित अनुकूलन) पहल:
        • यह कपड़ा मंत्रालय (Ministry of Textiles) की एक पहल है।
        • उद्देश्य: पावरलूम क्षेत्र में ऊर्जा कुशल टेक्सटाइल तकनीकों को अपनाना और उसमें तेज़ी लाना तथा इस तरह की प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से लागत को कम करना।
      • SATH (सस्टनेबल एक्शन फॉर ट्रांसफार्मिंग ह्यूमन कैपिटल) कार्यक्रम:
        • यह NITI Aayog का एक कार्यक्रम है।
        • उद्देश्य: शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में परिवर्तन करना तथा भविष्य के ’रोल मॉडल’ राज्यों का निर्माण करना।

      स्रोत: पी.आई.बी.


      close
      एसएमएस अलर्ट
      Share Page
      images-2
      images-2