भारतीय अर्थव्यवस्था
कोयले से मेथनॉल का उत्पादन
प्रीलिम्स के लियेमेथनॉल, प्राकृतिक गैस, COP 21 (पेरिस समझौता), भारतीय मानक ब्यूरो, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण, EV (इलेक्ट्रिक वाहन) मेन्स के लिये:कोयले से मेथनॉल का उत्पादन, नीति आयोग का मेथनॉल अर्थव्यवस्था कार्यक्रम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पहला स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किया गया उच्च राख कोयला गैसीकरण आधारित मेथनॉल उत्पादन संयंत्र हैदराबाद में स्थापित किया गया है।
- इसके साथ ही सरकारी स्वामित्व वाली इंजीनियरिंग फर्म भेल (भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड) ने उच्च राख वाले भारतीय कोयले से मेथनॉल बनाने की दक्षता का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- मेथनॉल का उपयोग मोटर ईंधन के रूप में जहाज़ के इंजनों को ऊर्जा प्रदान करने और पूरी दुनिया में स्वच्छ ऊर्जा की प्राप्ति हेतु किया जाता है। हालाँकि दुनिया भर में मेथनॉल उत्पादन का अधिकांश हिस्सा प्राकृतिक गैस से प्राप्त होता है, जो अपेक्षाकृत आसान प्रक्रिया है।
- चूँकि भारत में प्राकृतिक गैस का अधिक भंडार नहीं है, आयातित प्राकृतिक गैस से मेथनॉल का उत्पादन करने से विदेशी मुद्रा का बहिर्वाह होता है और उच्च कीमतों के कारण यह अलाभकारी है।
- इसका सबसे अच्छा विकल्प भारत में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कोयले का उपयोग करना है। हालाँकि भारतीय कोयले के उच्च राख प्रतिशत के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश सुलभ तकनीक मेथनॉल उत्पादन हेतु पर्याप्त नहीं होगी।
- इस मुद्दे को हल करने के लिये भेल ने 1.2 TPD फ्लूइडाइज़्ड बेड गैसीफायर का उपयोग करके उच्च राख वाले भारतीय कोयले से 0.25 TPD (टन प्रतिदिन) मेथनॉल बनाने की सुविधा का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया।
- उत्पादित कच्चे मेथनॉल की शुद्धता 98 और 99.5% के बीच होती है।
- यह नीति आयोग के 'मेथनॉल इकॉनमी' कार्यक्रम का हिस्सा है जिसका उद्देश्य भारत के तेल आयात बिल, ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को कम करना और कोयला भंडार तथा नगरपालिका के ठोस कचरे को मेथनॉल में परिवर्तित करना है।
- साथ ही यह आंतरिक क्षमता भारत के कोयला गैसीकरण मिशन और हाइड्रोजन मिशन के लिये कोयले से हाइड्रोजन उत्पादन में सहायता करेगी।
नीति आयोग का मेथनॉल अर्थव्यवस्था कार्यक्रम:
- मेथनॉल के बारे में: मेथनॉल एक कम कार्बन, हाइड्रोजन वाहक ईंधन है जो उच्च राख वाले कोयले, कृषि अवशेषों, थर्मल पावर प्लांटों से CO2 और प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है। COP 21 (पेरिस समझौता) के लिये भारत की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिये यह सबसे अच्छा मार्ग है।
- पेट्रोल और डीज़ल की तुलना में मेथनॉल: हालाँकि पेट्रोल और डीज़ल की तुलना में सीमित ऊर्जा परिक्षमता के साथ मेथनॉल, इन दोनों ईंधनों को परिवहन क्षेत्र (सड़क, रेल और समुद्री), ऊर्जा क्षेत्र (बॉयलर, प्रोसेस हीटिंग मॉड्यूल सहित ट्रैक्टर और वाणिज्यिक वाहन) तथा खुदरा खाना पकाने (एलपीजी [आंशिक रूप से], मिट्टी तेल और लकड़ी के चारकोल की जगह) जैसे क्षेत्रों में रूपांतरित कर सकता है।
- पर्यावरण और आर्थिक प्रभाव:
- गैसोलीन में 15% मेथनॉल के सम्मिश्रण से गैसोलीन/कच्चे तेल के आयात में कम- से-कम 15% की कमी हो सकती है। इसके अलावा इससे पार्टिकुलेट मैटर, NOx और SOx के मामले में GHG उत्सर्जन में 20% की कमी आएगी, जिससे शहरी वायु गुणवत्ता में सुधार होगा।
- मेथनॉल अर्थव्यवस्था मेथनॉल उत्पादन/अनुप्रयोग और वितरण सेवाओं के माध्यम से करीब 50 लाख रोज़गार सृजित करेगी।
- इसके अतिरिक्त LPG में 20% DME (डाय-मिथाइल ईथर, मेथनॉल का एक उत्पाद) को मिलाकर सालाना 6000 करोड़ रुपए की बचत की जा सकती है। इससे उपभोक्ता को प्रति सिलेंडर 50-100 रुपए की बचत करने में मदद मिलेगी।
- पहलें:
- भारतीय मानक ब्यूरो ने LPG के साथ 20% DME सम्मिश्रण को अधिसूचित किया है और सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा M-15, M-85, M-100 मिश्रणों के लिये एक अधिसूचना जारी की गई है।
- अक्तूबर 2018 में असम पेट्रोकेमिकल्स ने एशिया का पहला कनस्तर-आधारित मेथनॉल खाना पकाने के ईंधन कार्यक्रम का शुभारंभ किया। यह पहल एक स्वच्छ, लागत प्रभावी और प्रदूषण मुक्त खाना पकाने के प्रावधान की दिशा में प्रयास करने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
- इज़रायल के साथ एक संयुक्त उद्यम में उच्च राख कोयले पर आधारित पाँच मेथनॉल संयंत्र, पाँच DME संयंत्र और 20 MMT/वर्ष की क्षमता वाले एक प्राकृतिक गैस आधारित मेथनॉल उत्पादन संयंत्र की स्थापना की योजना बनाई गई है।
- समुद्री ईंधन के रूप में मेथनॉल का उपयोग करने हेतु भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के लिये कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा तीन नावों और सात मालवाहक जहाज़ो का निर्माण किया जा रहा है।
आगे की राह
- भारत के पास 125 बिलियन टन प्रमाणित कोयला भंडार और 500 मिलियन टन बायोमास के साथ हर साल उत्पन्न होने वाले वैकल्पिक फीडस्टॉक और ईंधन के आधार पर ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की एक बड़ी क्षमता है।
- हालाँकि मेथनॉल पर सरकार द्वारा EV (इलेक्ट्रिक वाहन) की तरह ध्यान नहीं दिया जाता है। मेथनॉल अर्थव्यवस्था को समग्र रूप से लागू करने के लिये महत्त्वपूर्ण कार्य करने की आवश्यकता है।
- मेथनॉल आधारित प्रौद्योगिकी का विकास ऊर्जा आयात करने वाले भारत को ऊर्जा निर्यातक देश में बदल सकता है।
स्रोत: पीआईबी
भूगोल
डायनासोर की तीन प्रजातियों के पदचिह्न : राजस्थान
प्रिलिम्स के लियेथार मरुस्थल, मेसोज़ोइक युग मेन्स के लियेडायनासोर युग का संक्षिप्त विवरण, डायनासोर की प्रमुख प्रजातियाँ, थार मरुस्थल की विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक प्रमुख खोज में राजस्थान के जैसलमेर ज़िले के थार मरुस्थल में डायनासोर की तीन प्रजातियों के पैरों के निशान पाए गए हैं।
- यह राज्य के पश्चिमी भाग में विशाल सरीसृपों की उपस्थिति को प्रमाणित करता है।
प्रमुख बिंदु
- खोज के बारे में :
- पैरों के निशान वाले डायनासोर की तीन प्रजातियाँ इस प्रकार हैं- यूब्रोंटेस सीएफ गिगेंटस (Eubrontes cf giganteus), यूब्रोंट्स ग्लेन्रोसेंसिस ( Eubrontes glenrosensis) और ग्रेलेटर टेनुइस (Grallator tenuis)।
- ये पैरों के निशान 200 मिलियन वर्ष पुराने थे।
- डायनासोर की प्रजाति को थेरोपोड (Theropod) प्रकार का माना जाता है, जिसमें खोखली हड्डियों और तीन-पैर वाले अंगों (उंगलियों जैसी) की विशिष्ट विशेषताएँ होती हैं।
- थेरोपोडा डायनासोर उपसमूह के थेरोपोड वर्ग में वे सदस्य शामिल है जो मांसाहारी डायनासोर की श्रेणी में आते हैं।
- प्रारंभिक जुरासिक काल से संबंधित सभी तीन प्रजातियाँ मांसाहारी थीं।
- 'डायनासोर युग' (मेसोज़ोइक युग- 252-66 मिलियन वर्ष पूर्व- MYA) अनुगामी तीन भूगर्भिक समय सारणी (ट्राइसिक (Triassic), जुरासिक (Jurassic) और क्रेटेशियस (Cretaceous) के अंतर्गत शामिल था। इन तीन अवधियों में से प्रत्येक के दौरान विभिन्न डायनासोर प्रजातियाँ पाई जाती थीं।
- थार मरुस्थल:
- नामकरण: थार नाम ‘थुल’ से लिया गया है जो कि इस क्षेत्र में रेत की लकीरों के लिये प्रयुक्त होने वाला एक सामान्य शब्द है। इसे ग्रेट इंडियन डेज़र्ट के नाम से भी जाना जाता है।
- अवस्थिति: यह उत्तर-पश्चिमी भारत के राजस्थान राज्य में तथा पाकिस्तान के पूर्वी क्षेत्र में स्थित पंजाब और सिंध प्रांत तक विस्तृत है।
- यह पश्चिम में सिंचित सिंधु नदी के मैदान, उत्तर और उत्तर-पूर्व में पंजाब के मैदान, दक्षिण-पूर्व में अरावली शृंखला और दक्षिण में कच्छ के रण से घिरा हुआ है।
- विशेषताएँ:
- थार रेगिस्तान एक शुष्क क्षेत्र है जो 2,00,000 वर्ग किमी. में फैला हुआ है।
- इसकी सतह पर वातोढ़ (पवन द्वारा एकत्रित) रेत पाई जाती है जो पिछले 1.8 मिलियन वर्षों में जमा हुई है।
- मरुस्थल में तरंगित सतह होती है, जिसमें रेतीले मैदानों और बंजर पहाड़ियों या बालू के मैदानों द्वारा अलग किये गए उच्च और निम्न रेत के टीले (जिन्हें टिब्बा कहते हैं) होते हैं, जो आसपास के मैदानों में अचानक वृद्धि करते हैं।
- टिब्बा गतिशील होते हैं और अलग-अलग आकार एवं आकृति ग्रहण करते हैं।
- ‘बरचन’ जिसे ‘बरखान’ भी कहते हैं, मुख्य रूप से एक दिशा से आने वाली हवा द्वारा निर्मित अर्द्धचंद्राकार आकार के रेत के टीले हैं। सबसे आम प्रकार के बालुका स्तूपों में से एक यह आकृति दुनिया भर के रेगिस्तानों में उपस्थित होती है।
- कई ‘प्लाया’ (खारे पानी की झीलें), जिन्हें स्थानीय रूप से ‘धंड’ के रूप में जाना जाता है, पूरे क्षेत्र में विस्तृत हैं।
- थार मरुस्थल एक समृद्ध जैव विविधता का समर्थन करता है तथा इस मरुस्थल में मुख्य रूप से तेंदुए, एशियाई जंगली बिल्ली (Felis silvestris Ornata), चाउसिंघा (Tetracerus Quadricornis), चिंकारा (Gazella Bennettii), बंगाली रेगिस्तानी लोमड़ी (Vulpes Bengalensis), ब्लैकबक (Antelope) और सरीसृप की कई प्रजातियाँ निवास करती हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
परिवहन और विपणन सहायता योजना
प्रिलिम्स के लिये :परिवहन और विपणन सहायता योजना, एपीडा, कृषि निर्यात नीति 2018, किसान कनेक्ट एप मेन्स के लिये :परिवहन और विपणन सहायता योजना का संक्षिप्त परिचय एवं संशोधित विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने निर्दिष्ट कृषि उत्पादों के लिये परिवहन और विपणन सहायता (TMA) योजना को संशोधित किया है।
- यह 1 अप्रैल, 2021 या उसके बाद 31 मार्च, 2022 तक प्रभावी रहेगी।
प्रमुख बिंदु
-
परिचय:
- इसे वर्ष 2019 में यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कुछ देशों में वस्तुओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये कृषि उत्पादों के परिवहन एवं विपणन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था।
- सरकार ने वर्ष 2018 में एक कृषि निर्यात नीति को मंज़ूरी दी जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक शिपमेंट को दोगुना करके 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचाने है।
- APEDA (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) भारतीय कृषि एवं खाद्य उत्पादों की निर्यात क्षमता के विस्तार की दिशा में काम करता है।
- TMA के तहत सरकार भाड़ा शुल्क के एक निश्चित हिस्से की प्रतिपूर्ति करती है और कृषि उपज के विपणन के लिये सहायता प्रदान करती है।
- समय-समय पर निर्दिष्ट अनुमत देशों को पात्र कृषि उत्पादों के निर्यात के लिये अधिसूचित दरों पर सहायता उपलब्ध होगी।
- संशोधित योजना में अन्य कृषि उत्पादों के साथ डेयरी उत्पादों को भी इसके दायरे में शामिल किया गया है और सहायता की दरों में वृद्धि की गई है।
- सहायता की दरों में समुद्र द्वारा निर्यात के लिये 50% और हवाई मार्ग हेतु 100% की वृद्धि की गई है।
- TMA की प्रतिपूर्ति डीजीएफटी (विदेश व्यापार महानिदेशालय) के क्षेत्रीय अधिकारियों के माध्यम से की जाएगी।
- इसे वर्ष 2019 में यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कुछ देशों में वस्तुओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये कृषि उत्पादों के परिवहन एवं विपणन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था।
-
उद्देश्य:
- कृषि उपज की माल ढुलाई और विपणन के अंतर्राष्ट्रीय घटक के लिये सहायता प्रदान करना।
- ट्रांस-शिपमेंट के कारण निर्दिष्ट कृषि उत्पादों के निर्यात के परिवहन की उच्च लागत को कम करना।
- निर्दिष्ट विदेशी बाज़ारों में भारतीय कृषि उत्पादों के लिये ब्रांड पहचान को बढ़ावा देना।
कृषि निर्यात नीति, 2018
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA)
|
स्रोत: पीआईबी
भारतीय इतिहास
थमिराबरानी सभ्यता: तमिलनाडु
प्रिलिम्स के लिये:थमिराबरानी सभ्यता, कार्बन डेटिंग, संगम साहित्य मेन्स के लिये:थमिराबरानी सभ्यता का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
तमिलनाडु के थूथुकुडी ज़िले के शिवकलाई में पुरातात्त्विक खुदाई से प्राप्त कार्बनिक पदार्थों पर की गई कार्बन डेटिंग से पता चला है कि थमिराबरानी सभ्यता कम-से-कम 3,200 साल पुरानी है।
- कार्बन डेटिंग: कार्बन के समस्थानिक कार्बन-12 और कार्बन-14 के सापेक्ष अनुपात से कार्बनिक पदार्थ की आयु या तिथि के निर्धारण को कार्बन डेटिंग कहते हैं।
प्रमुख बिंदु
- थमिराबरानी नदी:
- तमिलनाडु की सबसे छोटी नदी का उद्गम थामिराबरानी अंबासमुद्रम तालुके में पश्चिमी घाट की पोथिगई पहाड़ियों से होता है, यह तिरुनेलवेली और थूथुकुडी ज़िलों से होकर बहती है तथा कोरकाई (तिरुनेलवेली ज़िले) में मन्नार की खाड़ी (बंगाल की खाड़ी) में गिरती है।
- निष्कर्षों का महत्त्व:
- यह इस बात का प्रमाण दे सकता है कि दक्षिण भारत में 3,200 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता के बाद एक शहरी सभ्यता [पोरुनाई नदी (थामिराबरानी) सभ्यता] थी।
- इसके अतिरिक्त तमिल मूल की खोज के लिये अन्य राज्यों और देशों में पुरातात्त्विक उत्खनन किया जाएगा।
- पहले चरण में चेर साम्राज्य की प्राचीनता और संस्कृति को स्थापित करने के लिये केरल में मुज़िरिस के प्राचीन बंदरगाह, जिसे अब पट्टनम के नाम से जाना जाता है, पर अध्ययन किया जाएगा।
- मिस्र में कुसीर अल-कादिम और पर्निका अनेके (Quseir al-Qadim and Pernica Anekke), जो कभी रोमन साम्राज्य का हिस्सा थे तथा ओमान में खोर रोरी (Khor Rori) में अनुसंधान कार्य किया जाएगा, इनके साथ तमिलों के व्यापारिक संबंध थे।
- इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया और वियतनाम जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में भी अध्ययन किया जाएगा, जहाँ राजा राजेंद्र चोल ने वर्चस्व स्थापित किया था।
- तमिल भारत के तीन शासक घरानों, पांड्यों, चेरों और चोलों ने दक्षिणी भारत एवं श्रीलंका पर वर्चस्व के लिये लड़ाई लड़ी। इन राजवंशों ने भारतीय उपमहाद्वीप पर प्रारंभिक साहित्य को बढ़ावा दिया तथा महत्त्वपूर्ण हिंदू मंदिरों का निर्माण किया।
- संगम साहित्य, जो छह शताब्दियों (3rd BCE – 3rd CE) की अवधि में लिखा गया था, विभिन्न चोल, चेर और पांड्य राजाओं के संदर्भ है।
- अन्य हालिया निष्कर्ष:
- हाल ही में तमिलनाडु के कीझादी (Keezhadi) में खुदाई के दौरान चाँदी के पंच के रूप में चिह्नित एक सिक्का मिला, जिसमें सूर्य, चंद्रमा, टॉरिन और अन्य ज्यामितीय पैटर्न के प्रतीक थे।
- इस पर किये गए अध्ययनों से पता चलता है कि यह सिक्का चौथी शताब्दी ईसा पूर्व का है, जो प्राचीन मौर्य साम्राज्य (321-185 ईसा पूर्व) के समय से पहले का है।
- तमिलनाडु में कोडुमानल, कीलादी, कोरकाई, शिवकलाई जैसे कई स्थानों पर पुरातात्त्विक खुदाई की जा रही है।
- कलाकृतियों की कार्बन डेटिंग के अनुसार, कीलादी सभ्यता ईसा पूर्व छठी शताब्दी की है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
चंद्र विज्ञान कार्यशाला 2021 : इसरो
प्रिलिम्स के लिये:चंद्रयान-3, GSLV Mk-III, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन मेन्स के लिये:चंद्रयान-2 ऑर्बिटर के प्रमुख अन्वेषण, चंद्रयान मिशन का वैश्विक परिदृश्य में महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) द्वारा चंद्रमा की कक्षा में चंद्रयान-2 ऑर्बिटर के प्रचालन के दो वर्ष पूरे होने के अवसर पर चंद्र विज्ञान कार्यशाला 2021 का आयोजन कियागया था।
- इसरो के अनुसार, चंद्रयान-2 कक्षीय-यान नीतभारों (Orbiter Payloads) के अवलोकन से खोज-श्रेणी (Discovery-class) के परिणाम मिले हैं।
- चंद्रयान-3 मिशन को अगले वर्ष के अंत में लॉन्च करने की संभावना व्यक्त की गई है।
प्रमुख बिंदु
-
चंद्रयान-2 के बारे में :
- चंद्र अन्वेषण मिशन: यह चंद्र अन्वेषण उपग्रहों की भारतीय शृंखला का दूसरा अंतरिक्षयान है।
- इसमें एक ऑर्बिटर, जिसके लैंडर का नाम विक्रम था तथा चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र का पता लगाने के लिये प्रज्ञान नामक रोवर शामिल था
- लॉन्च: इसे 22 जुलाई, 2019 को GSLV Mk-III द्वारा श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था।
- इसे अगस्त, 2019 में चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया गया था।
- सितंबर 2019 में ऑर्बिटर और लैंडर मॉड्यूल को दो स्वतंत्र उपग्रहों के रूप में अलग किया गया था।
- लैंडर की विफलता: विक्रम लैंडर इसरो द्वारा पूर्व निर्धारित योजना के अनुरूप ही उतर रहा था और सितंबर 2019 में चंद्रमा की सतह से 2.1 किमी. की ऊँचाई तक इसके सामान्य प्रदर्शन को देखा गया था।
- इसके बाद लैंडर से संपर्क टूट गया तथा लैंडर की हार्ड लैंडिंग चंद्रमा की सतह पर हुई।
- छह पहियों वाले रोवर (प्रज्ञान) को लैंडर (विक्रम) के अंदर स्थापित किया गया था।
- यदि एक सफल सॉफ्ट-लैंडिंग हो जाती तो भारत, तत्कालीन सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाता।
- इसके बाद लैंडर से संपर्क टूट गया तथा लैंडर की हार्ड लैंडिंग चंद्रमा की सतह पर हुई।
- ऑर्बिटर की भूमिका: चंद्रमा के चारों ओर अपनी निर्धारित कक्षा में स्थापित ऑर्बिटर अपने आठ उन्नत वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करके ध्रुवीय क्षेत्रों में चंद्रमा के विकास और खनिजों एवं पानी के अणुओं के मानचित्रण को साझा करेगा।
- सटीक प्रक्षेपण और अनुकूलित मिशन प्रबंधन ने नियोजित एक वर्ष के बजाय ऑर्बिटर के लिये लगभग सात वर्षों का लंबा प्रचालन सुनिश्चित किया है।
- चंद्र अन्वेषण मिशन: यह चंद्र अन्वेषण उपग्रहों की भारतीय शृंखला का दूसरा अंतरिक्षयान है।
-
चंद्रयान-2 ऑर्बिटर द्वारा की गई खोजें:
- आर्गन-40 की खोज: मास स्पेक्ट्रोमीटर चंद्र एटमाॅस्फेरिक कंपोज़िशनल एक्सप्लोरर 2 (CHACE 2) ने ध्रुवीय कक्षीय प्लेटफॉर्म से चंद्र तटस्थ एक्सोस्फीयर की संरचना का पहला इन-सीटू अध्ययन किया।
- इसने चंद्रमा के मध्य और उच्च अक्षांशों पर आर्गन- 40 की परिवर्तनशीलता का पता लगाया तथा उसका अध्ययन किया, जो चंद्र के इंटीरियर के मध्य और उच्च अक्षांशों में रेडियोजेनिक गतिविधियों को दर्शाता है।
- क्रोमियम व मैंगनीज़ की खोज: चंद्रयान -2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (क्लास) पेलोड ने रिमोट सेंसिंग के माध्यम से क्रोमियम और मैंगनीज़ के मामूली तत्त्वों का पता लगाया है।
- सूर्य के माइक्रोफ्लेयर्स का अवलोकन: क्वाइट-सन पीरियड (Quiet-Sun Period) के दौरान सूर्य के माइक्रोफ्लेयर का अवलोकन, जो कि सूर्य की कोरोनल हीटिंग से संबंधित महत्त्वपूर्ण सूचना प्रदान करता है, सोलर एक्स-रे मॉनिटर (XSM) पेलोड द्वारा संपन्न किया गया।
- हाइड्रेशन सुविधाओं की खोज: चंद्रयान -2 ने अपने इमेजिंग इंफ्रा-रेड स्पेक्ट्रोमीटर (IIRS) पेलोड [जिसने चंद्र की सतह पर हाइड्रॉक्सिल (Hydroxyl) और पानी-बर्फ (Water-Ice) के स्पष्ट उपस्थिति का पता लगाया] के साथ चंद्रमा कीजलयोजन विशेषताओं का पहली बार स्पष्ट पता लगाया।
- उपसतह पर जल-बर्फ की खोज: दोहरी आवृत्ति सिंथेटिक एपर्चर रडार (DFSAR) उपकरण ने उपसतह जल-बर्फ की उपस्थिति का पता लगाया और ध्रुवीय क्षेत्रों में चंद्र रूपात्मक विशेषताओं की उच्च रिज़ॉल्यूशन मैपिंग की।
- चंद्रमा की इमेजिंग: अपने ऑर्बिटर हाई रेज़ोल्यूशन कैमरा (OHRC) के द्वारा "बेस्ट-एवर" रेज़ोल्यूशन के साथ 100 किमी चंद्र कक्षा से चंद्रमा की इमेजिंग भी प्राप्त की।
- भूवैज्ञानिक निष्कर्ष: चंद्रयान-2 के टेरेन मैपिंग कैमरा (TMC 2), जो वैश्विक स्तर पर चंद्रमा की इमेजिंग कर रहा है, ने चंद्र क्रस्टल शॉर्टिंग और ज्वालामुखीय गुंबदों की पहचान के दिलचस्प भूगर्भिक साक्ष्य प्राप्त किये हैं।
- चंद्रमा के आयनमंडल का अध्ययन: चंद्रयान-2 पर दोहरे आवृत्ति रेडियो विज्ञान (DFRS) प्रयोग ने चंद्रमा के आयनमंडल का अध्ययन किया है, जो चंद्र बाह्यमंडल की तटस्थ प्रजातियों के सौर फोटो-आयनीकरण द्वारा उत्पन्न होता है।
- आर्गन-40 की खोज: मास स्पेक्ट्रोमीटर चंद्र एटमाॅस्फेरिक कंपोज़िशनल एक्सप्लोरर 2 (CHACE 2) ने ध्रुवीय कक्षीय प्लेटफॉर्म से चंद्र तटस्थ एक्सोस्फीयर की संरचना का पहला इन-सीटू अध्ययन किया।
नोट:
|