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भारतीय विरासत और संस्कृति

कीलादी संगमकालीन नगरीय बस्ती

  • 31 Oct 2019
  • 4 min read

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, सिंधु घाटी सभ्यता

मेन्स के लिये:

तमिलनाडु में उत्खनन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey Of India) द्वारा तमिलनाडु के पुरातत्त्व विभाग द्वारा रखे गए कीलादी सहित चार स्थानों पर उत्खनन जारी रखने के प्रस्ताव को अनुमोदित किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • विशेषज्ञों ने यह संभावना व्यक्त की है कि इस उत्खनन से प्राप्त अवशेषों के माध्यम से संगम युग तथा सिंधु घाटी सभ्यता के बीच के इतिहास से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारियों को उद्घाटित किया जा सकेगा।
  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने तमिलनाडु राज्य के पुरातत्त्व विभाग को शिवगंगा ज़िले के कीलादी, इरोड ज़िले के कोडूमनाल, तिरुनेलवेली ज़िले के सिवागलई तथा थूठुकुड्डी ज़िले के अदिचनाल्लूर में उत्खनन जारी रखने की अनुमति दी है।

महत्वपूर्ण खोज:

  • सितंबर 2019 में किये गए कीलादी में सीमित उत्खनन से मिले महत्वपूर्ण अवशेषों से संभावना व्यक्त की गई कि संगम काल का इतिहास छठी शताब्दी ई.पू से संबंधित है विदित है कि अभी तक संगम काल को तीसरी शताब्दी ई.पू. से संबंधित माना जाता है।
  • इस उत्खनन के दौरान यह भी पाया गया कि तमिल ब्राह्मी लिपि (तमिली) 580 ई.पू. की लिपि है। जबकि प्रारंभिक साक्ष्यों में इसका काल निर्धारण 490 ई.पू. किया गया था।
  • 4500 वर्ष पुरानी सिंधु लिपि के विलुप्त होने तथा ब्राह्मी लिपि के उद्भव के बीच के काल से संबंधित कीलादी में लगभग 1001 भित्ति चित्रों के प्रमाण पाये गए हैं, जिससे यह अवधारणा प्रबल हुई है कि यह भित्ति चित्र लौह युग की प्रारंभिक लेखन अभिव्यक्ति हैं क्योंकि दक्षिण भारत में लौह युग का समय 2000 ई.पू.- 600 ई.पू. के बीच माना जाता है।
  • गंगा के मैदानों की तरह कीलादी उत्खनन में भी बड़े पैमाने पर ईंटों की संरचना और भित्ति चित्रों के प्रमाण पाये गए हैं जो इस बात का प्रमाण हैं कि तमिलनाडु में छठी शताब्दी ई.पू. नगरीय जीवन विद्यमान था।

Tamilnadu

अन्य तथ्य:

  • ‘कीलादी’ मदुरै से लगभग 13 किमी. दक्षिण पूर्व में वैगई नदी के किनारे स्थित है। तमिलनाडु पुरातत्त्व विभाग द्वारा यहाँ वर्ष 2014 से 2017 के दौरान तीन चरणों में उत्खनन कार्य किया गया।
  • तमिलनाडु पुरातत्व विभाग के अनुसार, वैगई नदी बेसिन के उत्खनन से तत्कालीन कीलादी की औद्योगिक गतिविधियों एवं नगरीय व्यवस्था के बारे में और अधिक जानकारी मिल सकेगी।
  • कोथांगई नामक स्थल के उत्खनन से भी प्रमाणिक साक्ष्य मिलने की संभावना है क्योंकि यह स्थल उस समय का शवाधान स्थल था। यह स्थान मदुरै मंदिर के समीप ही स्थित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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