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डेली न्यूज़

  • 11 May, 2020
  • 41 min read
भूगोल

भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच आमना-सामना

प्रीलिम्स के लिये:

भारत-चीन सीमा विवाद, सीमाओं की उत्पत्ति  

मेन्स के लिये:

भारत-चीन सीमा विवाद 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तर सिक्किम के नाकु ला (Naku La) सेक्टर तथा लद्दाख सेक्टर में भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच आमना-सामना (Face off) देखने को मिला।

प्रमुख बिंदु:

  • नाकु ला उत्तरी सिक्किम में 5,000 मीटर से अधिक की ऊँचाई पर स्थित एक दर्रा है।
  • यह आमना-सामना (फेस-ऑफ) अस्थायी तथा लघु अवधि के लिये था, जिसे 'स्टैंड-ऑफ' नहीं माना जा सकता है।
  • दोनों देशों की सेनाओं के बीच आक्रामक प्रदर्शन देखने को मिला जिसमें दोनों तरफ सैनिकों को शारीरिक चोटें आई है। हालाँकि बाद में बातचीत से मामले को सुलझा लिया गया।

फेस-ऑफ और स्टैंड-ऑफ:

  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि जब दो देशों के मध्य सीमा विवाद अनसुलझे होते हैं तो वहाँ ‘फेस-ऑफ’ की घटनाएँ प्राय: देखने को मिलती हैं। जिन्हे दोनों देशों की सेनाओं द्वारा स्थापित प्रोटोकॉल के अनुसार, हल कर लिया जाता है। परंतु स्टैंड-ऑफ को ‘सामान्य स्थापित प्रोटोकॉलों’ के माध्यम से हल करना मुश्किल होता है। 
  • भारत और चीन के मध्य यह फेस-ऑफ ‘डोकलाम स्टैंड-ऑफ’ के तीन वर्ष बाद देखने को मिला है।

भारत-चीन सीमा विवाद का कारण:

  • वर्ष 1962 तक हिमालय को आक्रमणकारियों के खिलाफ एक 'प्राकृतिक बाधा' माना जाता था। लेकिन वर्ष 1962 के चीनी आक्रमण ने इस अवधारणा को समाप्त कर दिया।
  • दो देशों के मध्य सीमा का निर्धारण सामान्यत: निम्नलिखित 3 चरणों में किया जाता है:

1. आवंटन (Allocation): 

  • किसी प्राकृतिक (पर्वत, नदी आदि) या कृत्रिम आधार (यथा देशान्तर) के आधार पर सीमा निर्धारण करना;

2. परिसीमन (Delimitation):

  • परिसीमन का अर्थ है दो देशों के मध्य संपर्क क्षेत्रों को अलग करने वाले बिंदुओं तथा रेखाओं का निर्धारण करना;

3. सीमांकन (Demarcation): 

  • सीमांकन सीमा को चिह्नित करने की वैध प्रक्रिया है। सीमांकन में दोनों पक्षों द्वारा स्वीकृत सीमा की जमीन पर विस्तृत अवस्थिति का निर्धारण किया जाता है। 

हिमालय जलविभाजक को भारत और चीन के बीच प्राकृतिक सीमा के आधार के रूप में माना जा सकता है। परंतु भारत-चीन सीमा निर्धारण में उपर्युक्त 3 चरणों में से द्वितीय तथा तृतीय चरण को पूरा नहीं किया गया है। अत: यह स्थिति दोनों देशों के मध्य विवाद को जन्म देती है। 

भारत-चीन सीमा विवाद:

  • चीन-भारत सीमा विवाद 3,488 किलोमीटर लंबी ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (Line of Actual Control- LAC) को लेकर है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा होने का दावा करता है, जबकि भारत इसका विरोध करता है। 
  • दोनों पक्षों के बीच विवाद समाधान के लिये कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। भारत-चीन के मध्य प्रमुख विवादित क्षेत्र निम्नलिखित है:

पश्चिमी क्षेत्र:

  • लद्दाख:
    • जम्मू-कश्मीर (संयुक्त राज्य) के लद्दाख क्षेत्र के उत्तर तथा पूर्व की भारत-चीन सीमा को लेकर विवाद है।
  • अक्साई-चिन:
    • यह क्षेत्र श्योक नदी के पूर्व तथा कश्मीर के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित है। 

मध्य क्षेत्र:

  • यह सीमा तिब्बत के साथ-साथ लगती है, इसमें अनेक लघु क्षेत्रों को लेकर विवाद है।

पूर्वी क्षेत्र: 

  • सिक्किम:
    • सिक्किम में भारत-चीन सीमा की लंबाई 225 किमी. की सीमा है, तथा इस क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण दर्रे अवस्थित है। 
  • भूटान सीमा:
    • भूटान की तिब्बत के साथ सीमा पूरी तरह से स्थापित तथा ऐतिहासिक रूप से मान्यता प्राप्त है।
  • अरुणाचल प्रदेश (NEFA):
    • इस क्षेत्र में भारत-चीन सीमा; पूर्वी भूटान से भारत, चीन और म्यांमार के त्रिकोणीय जंक्शन पर तालु दर्रे तक है, 1140 किमी. की है। अरुणाचल प्रदेश और तिब्बत के बीच की रेखा को मैकमोहन रेखा कहा जाता है। 

sticking-points

आगे की राह:

  • चीन, भारतीय सीमा के उल्लंघन के कदम, एशिया में भारत की बढ़ती प्रभावी स्थिति को चुनौती देने के लिये उठाता है। बदली हुई परिस्थितियों में भारत के लिये यह ज़रूरी हो गया है कि वह अन्य एशियाई देशों के साथ कूटनीतिक और सामरिक सहयोग बढ़ाकर चीन की चुनौतियों का मुकाबला करे। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कैलाश मानसरोवर मार्ग और नेपाल का विरोध

प्रीलिम्स के लिये

कैलाश मानसरोवर मार्ग

मेन्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय विवादों को हल करने में कूटनीतिक संवाद की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेपाल ने भारत सरकार द्वारा उत्तराखंड में 80 किलोमीटर लंबी सड़क के उद्घाटन का विरोध करते हुए भारत से ‘नेपाल के क्षेत्र में किसी भी गतिविधि को न करने को कहा है।’

प्रमुख बिंदु

  • इस संबंध में नेपाल के सत्तारूढ़ दल ने भारत पर नेपाल की संप्रभुता को कम करने का आरोप लगाया है। नेपाल के अनुसार, भारत द्वारा किया गया 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन पूर्ण रूप से ‘एकतरफा कृत्य’ है और यह दोनों देशों के बीच सीमा संबंधी विवादों को हल करने पर बनी समझ के पूर्णतः विपरीत है।
  • नेपाल के विरोध के पश्चात् भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह 80 किलोमीटर लंबी सड़क पूर्ण रूप से भारतीय क्षेत्र में आती है। वहीं सीमा विवादों को लेकर विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत नेपाल के साथ अपने घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों के मद्देनज़र कूटनीतिक स्तर पर सीमा मुद्दों को हल करने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • ध्यातव्य है कि यह सड़क उत्तराखंड के धारचूला (Dharchula) को लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) से जोड़ती है। नेपाल का दावा है कि कालापानी के पास पड़ने वाला यह क्षेत्र नेपाल का हिस्सा है और भारत ने नेपाल से वार्ता किये बिना इस क्षेत्र में सड़क निर्माण का कार्य किया है।

कैलाश मानसरोवर मार्ग

  • हाल ही में भारतीय ‘रक्षा मंत्री’ (Defence Minister) ने उत्तराखंड में 80 किलोमीटर की सड़क को देश को समर्पित किया जो लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) से होकर कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिये एक नवीन मार्ग है।
  • इस सड़क मार्ग का निर्माण ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (Line of Actual Control- LAC) के करीब उत्तराखंड में किया गया है। 
  • इस सड़क का निर्माण 'सीमा सड़क संगठन' (Border Roads Organisation- BRO) द्वारा किया गया है। यह सड़क धारचूला (Dharchula) को लिपुलेख दर्रे से जोड़ती है।
  • यह मार्ग इस दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है कि इसकी लंबाई कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिये उपलब्ध अन्य मार्गों की तुलना में लगभग पाँचवें हिस्से के बराबर है। अत: नवीन मार्ग लंबाई में सबसे छोटा तथा यात्रा खर्च के अनुसार सबसे सस्ता है।

विवाद

  • लिपुलेख दर्रा नेपाल और भारत के मध्य कालापानी क्षेत्र के पास एकदम पश्चिमी बिंदु है और भारत तथा नेपाल के मध्य सीमा विवाद का क्षेत्र है। भारत और नेपाल दोनों ही इस क्षेत्र को अपने-अपने देश का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। 
  • भारत के अनुसार, यह क्षेत्र उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले का हिस्सा है जबकि नेपाल इस क्षेत्र को धारचूला ज़िले का हिस्सा मानता है।
  • नेपाल ने इस संबंध में वर्ष 1816 में हुई सुगौली संधि (Sugauli treaty) का ज़िक्र किया है। नेपाल के विदेश मंत्रालय के अनुसार, सुगौली संधि (वर्ष 1816) के तहत काली (महाकाली) नदी के पूर्व के सभी क्षेत्र, जिनमें लिम्पियाधुरा (Limpiyadhura), कालापानी (Kalapani) और लिपुलेख (Lipulekh) शामिल हैं, नेपाल का अभिन्न अंग हैं।
  • एंग्लो-नेपाली युद्ध (Anglo-Nepalese War) के पश्चात् वर्ष 1816 में नेपाल और ब्रिटिश भारत द्वारा सुगौली की संधि हस्ताक्षरित की गई थी। उल्लेखनीय है कि सुगौली संधि में महाकाली नदी को नेपाल की पश्चिमी सीमा के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • नेपाल सरकार के अनुसार, बीते वर्ष जम्मू-कश्मीर के विभाजन के पश्चात् भारत सरकार द्वारा प्रकाशित नए मानचित्रों में भिन्नता से स्पष्ट था कि भारत द्वारा इस मानचित्रों में छेड़खानी की गई है।

आगे की राह

  • नेपाल सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह दो देशों के मध्य घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंधों की भावना को ध्यान में रखते हुए ऐतिहासिक संधि, दस्तावेज़ों, तथ्यों और नक्शों के आधार पर सीमा के मुद्दों का कूटनीतिक हल प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • वहीं भारत सरकार की ओर से भी कहा गया है कि भारत और नेपाल के पास सभी सीमा विवादों से निपटने के लिये एक स्थापित तंत्र है।
  • विदेश मंत्रालय के अनुसार, नेपाल के साथ सीमा परिसीमन (Boundary Delineation) का कार्य जारी है। साथ ही भारत कूटनीतिक संवाद के माध्यम से बकाया सीमा मुद्दों को हल करने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • आवश्यक है कि विभिन्न सीमा विवादों का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के स्थान पर उन्हें कूटनीतिक स्तर पर सुलझाने का प्रयास किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

गेहूं की खरीद में बढ़ोतरी

प्रीलिम्स के लिये

देश में गेंहू उत्पादन

मेन्स के लिये

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य असुरक्षा की समस्या

चर्चा में क्यों?

उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय (Ministry of Consumer Affairs, Food and Public Distribution) के अनुसार, देश में सभी प्रमुख खरीद वाले राज्यों (Procuring States) में गेहूं की खरीद तेज़ी से हो रही है। 

प्रमुख बिंदु

  • 26 अप्रैल, 2020 तक केंद्रीय पूल के लिये कुल 88.61 लाख मीट्रिक टन (Lakh Metric Tonnes-LMT) गेहूं की खरीद हो चुकी है।
  • इसमें 48.27 LMT के साथ सबसे अधिक योगदान पंजाब का रहा है, जिसके पश्चात् 19.07 LMT के साथ हरियाणा का स्थान है।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि खरीद की मौजूदा गति में वर्तमान सत्र में 400 LMT का लक्ष्य काफी आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
  • खपत वाले राज्यों में कई प्रमुख अनलोडिंग केंद्रों के हॉटस्पॉट और नियंत्रण क्षेत्र घोषित होने के कारण कई प्रकार के प्रतिबंधों के बावजूद इस अवधि के दौरान 53.47 LTM खाद्यान्न की अनलोडिंग की गई है। 
  • ऐसा अनुमान है कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा प्रतिबंधों में धीरे-धीरे ढील दिये जाने के साथ आने वाले दिनों में अनलोडिंग की मात्रा और अधिक बढ़ जाएगी।
  • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (Pradhan Mantri Garib Kalyan Anna Yojana) के अंतर्गत 3 महीने (अप्रैल से जून) के लिये प्रति व्यक्ति मुफ्त 5 किलोग्राम खाद्यान्न वितरण की मांग में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख और लक्षद्वीप पहले ही अपने 3 महीने के पूरे कोटे को प्राप्त कर चुके हैं।

COVID-19 संबंधी नियमों का पालन

  • मंत्रालय के अनुसार, COVID-19 के प्रसार के खतरे को देखते हुए मंडियों में पर्याप्त सावधानी और सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करने के साथ ही खरीद की जा रही है।
  • साथ ही सरकार द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिये भरपूर प्रयास किये जा रहे हैं कि किसानों को इस संदर्भ में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े।

भारतीय खाद्य निगम की भूमिका

  • ध्यातव्य है कि रेलवे और भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) भी इस विषय पर महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। 27 मार्च, 2020 तक भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं के लिये खाद्यान्नों की ज़रूरत को पूरा करने हेतु कुल 2,087 ट्रेनों के माध्यम से  लगभग 58.44 LTM खाद्यान्न भेजा गया है।
  • FCI ने ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सभी राज्यों में पर्याप्त भंडार की व्यवस्था कर ली है। पश्चिम बंगाल के मामले में 3 महीने के लिये ज़रूरी लगभग 9 LMT के अतिरिक्त आवंटन की योजना पहले ही तैयार कर ली गई है, जिसके तहत पश्चिम बंगाल में इतनी कम अवधि में खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु 4 राज्यों तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा से पश्चिम बंगाल के विभिन्न राज्यों में ट्रेनों के माध्यम से चावल भेजे जाएंगे। 

भारतीय खाद्य निगम

(Food Corporation of India- FCI)

  • भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) ‘उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय’ के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के अंतर्गत शामिल सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है।
  • FCI एक सांविधिक निकाय है जिसे भारतीय खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत वर्ष 1965 में स्थापित किया गया।
  • इसका मुख्य कार्य खाद्यान्न एवं अन्य खाद्य पदार्थों की खरीद, भंडारण, परिवहन, वितरण और बिक्री करना है।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना 

(Pradhan Mantri Garib Kalyan Anna Yojana)

  • इस योजना का मुख्य उद्देश्य भारत के गरीब परिवारों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इस योजना के तहत भारत के लगभग 80 करोड़ व्यक्तियों (भारत की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या) को शामिल किया गया है।
  • इनमें से प्रत्येक व्‍यक्ति को 3 महीनों के दौरान मौज़ूदा निर्धारित अनाज के मुकाबले दोगुना अन्‍न मुफ्त प्रदान किया जा रहा है।
  • उपर्युक्त सभी व्यक्तियों को प्रोटीन की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये 3 महीनों के दौरान क्षेत्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार प्रत्‍येक परिवार को मुफ्त में 1 किलो दाल भी प्रदान की जा रही है।

स्रोत: पी.आई.बी.


कृषि

राजस्थान में टिड्डियों का हमला

प्रीलिम्स के लिये: 

टिड्डी, रेगिस्तानी टिड्डी

मेन्स के लिये:

टिड्डियों से उत्पन्न समस्याओं से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों:

फसलों को बुरी तरह प्रभावित करने वाली रेगिस्तानी टिड्डियों (Locusts) का बढ़ता समूह राजस्थान के किसानों के लिये चिंता का विषय बना हुआ हैं। 

प्रमुख बिंदु:

  • उल्लेखनीय है कि टिड्डी चेतावनी संगठन (Locust Warning Organization- LWO) ने राजस्थान के जैसलमेर और श्री गंगानगर ज़िलों में रेगिस्तानी टिड्डियों (Desert Locust) की आबादी में बढ़ोतरी दर्ज की है। 
  • आमतौर पर भारत में टिड्डियाँ केवल जुलाई-अक्तूबर के दौरान देखी जाती है परंतु अप्रैल माह में इन्हें देखा जाना एक चिंता का विषय है।
  • LWO के अनुसार, टिड्डियों को अप्रैल के शुरूआती दिनों में पाकिस्तान की सीमा से सटे पंजाब के फाजिल्का ज़िला में देखा गया था। लेकिन उस समय इनकी संख्या काफी कम थी।
  • इन टिड्डियों की उत्पत्ति का प्रमुख कारण मई और अक्तूबर 2018 में आए मेकुनु और लुबान नामक चक्रवाती तूफान हैं, जिनके कारण दक्षिणी अरब प्रायद्वीप के बड़े रेगिस्तानी इलाके झीलों में तब्दील हो गए थे। अतः इस घटना के कारण भारी मात्रा में टिड्डियों का प्रजनन हुआ।

टिड्डी (Locusts):

  • मुख्यतः टिड्डी एक प्रकार के उष्णकटिबंधीय कीड़े होते हैं जिनके पास उड़ने की अतुलनीय क्षमता होती है जो विभिन्न प्रकार की फसलों को नुकसान पहुँचाती हैं। 
  • टिड्डियों की प्रजाति में रेगिस्तानी टिड्डियाँ सबसे खतरनाक और विनाशकारी मानी जाती हैं।
  • आमतौर पर जुलाई-अक्तूबर के महीनों में इन्हें आसानी से देखा जा सकता है क्योंकि ये गर्मी और बारिश के मौसम में ही सक्रिय होती हैं।
  • अच्छी बारिश और परिस्थितियाँ अनुकूल होने की स्थिति में ये तेज़ी से प्रजनन करती हैं। उल्लेखनीय है कि मात्र तीन महीनों की अवधि में इनकी संख्या 20 गुना तक बढ़ सकती है।

भारत में टिड्डी:

  • भारत में टिड्डियों की निम्निखित चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं :
    • रेगिस्तानी टिड्डी (Desert Locust)
    • प्रवासी टिड्डी ( Migratory Locust)
    • बॉम्बे टिड्डी (Bombay Locust)
    • ट्री टिड्डी (Tree Locust)

रेगिस्तानी टिड्डी (Desert Locust):

  • रेगिस्तानी टिड्डियों को दुनिया के सभी प्रवासी कीट प्रजातियों में सबसे खतरनाक माना जाता है। इससे लोगों की आजीविका, खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण और आर्थिक विकास पर खतरा उत्पन्न होता है।
  • ये व्यवहार बदलने की अपनी क्षमता में अपनी प्रजाति के अन्य कीड़ों से अलग होते हैं और लंबी दूरी तक पलायन करने के लिये बड़े-बड़े झुंडों का निर्माण करते हैं।
  • सामान्य तौर पर ये प्रतिदिन 150 किलोमीटर तक उड़ सकते हैं। साथ ही 40-80 मिलियन टिड्डियाँ 1 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में समायोजित हो सकते हैं।
  • एक अकेली रेगिस्तानी मादा टिड्डी 90-80 दिन के जीवन चक्र के दौरान 60-80 अंडे देती है।

टिड्डी चेतावनी संगठन

(Locust Warning Organization-LWO):

  • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) के वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय (Directorate of Plant Protection, Quarantine & Storage) के अधीन आने वाला टिड्डी चेतावनी संगठन मुख्य रूप से रेगिस्तानी क्षेत्रों राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में टिड्डियों की निगरानी, ​​सर्वेक्षण और नियंत्रण के लिये ज़िम्मेदार है।
  • इसका मुख्यालय फरीदाबाद में स्थित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

स्वर्ण भंडार में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये:

विदेशी मुद्रा भंडार, वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था और स्वर्ण भंडार से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा जारी नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान स्वर्ण भंडार (Gold Reserves) में 40.45 टन की वृद्धि दर्ज़ की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 में स्वर्ण भंडार बढ़कर  653.01 टन (40.45 टन की वृद्धि) हो गया है, जबकि वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान स्वर्ण भंडार 612.56 टन था।
  • स्वर्ण भंडार में दर्ज की गई इस वृद्धि के कारण वर्तमान में इसका कुल मूल्य बढ़कर 30.57 बिलियन डॉलर हो गया है, जबकि मार्च 2019 तक इसका मूल्य 23.07 बिलियन डॉलर था।
  • ध्यातव्य है कि कुल स्वर्ण भंडार में से 360.71 टन सोना ‘बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट’ में आरक्षित है।
  • उल्लेखनीय है कि मार्च 2020 तक कुल विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) में सोना बढ़कर 6.40% (मूल्य के संदर्भ में) हो गया है, जबकि मार्च 2019 तक यह 5.59% था।
  • दरअसल अक्तूबर 2019-फरवरी 2020 के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि दर्ज़ की गई थी, परंतु मार्च 2020 में विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 477.81 बिलियन डॉलर हो गया है।
  • मार्च 2020 में कुल विदेशी मुद्रा भंडार 477.81 बिलियन डॉलर में से 263.4 बिलियन डॉलर प्रतिभूतियों में निवेश के रूप में तथा 147.5 बिलियन डॉलर अन्य केंद्रीय बैंक में आरक्षित किया गया है।

वैश्विक स्तर पर स्वर्ण भंडार की स्थिति:

  • वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (World Gold Council) द्वारा जारी नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, जनवरी-मार्च 2020 के दौरान स्वर्ण भंडार में लगातार वृद्धि दर्ज़ की गई है। विभिन्न देशों के स्वर्ण भंडार में वृद्धि निम्नलिखित है- 
    • संयुक्त अरब अमीरात का केंद्रीय बैंक (7 टन)
    • भारत (6.8 टन)
    • कजाखस्तान (2.8 टन)
    • उज़्बेकिस्तान (2.2 टन)।
  • जनवरी-मार्च 2020 के बीच तुर्की के स्वर्ण भंडार में 72.7 टन (तुर्की के कुल स्वर्ण भंडार का 29%) की वृद्धि दर्ज़ की गई है। 
  • उल्लेखनीय है कि श्रीलंका का केंद्रीय बैंक जनवरी-मार्च 2020 में सोने का सबसे बड़ा विक्रेता था, जिसका स्वर्ण भंडार 12.9 टन से घटकर 6.7 टन हो गया है। साथ ही इस तिमाही में जर्मनी और तजाकिस्तान ने क्रमशः 2.3 टन तथा 2.1 टन सोने की बिक्री की थी।

विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves):

  • किसी देश/अर्थव्यवस्था के पास उपलब्ध कुल विदेशी मुद्रा उसकी विदेशी मुद्रा संपत्ति/भंडार कहलाती है। 
  • किसी भी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में निम्नलिखित 4 तत्त्व शामिल होते हैं-
    • विदेशी परिसंपत्तियाँ (विदेशी कंपनियों के शेयर, डिबेंचर, बाॅण्ड इत्यादि विदेशी मुद्रा में)
    • स्वर्ण भंडार
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) के पास रिज़र्व कोष (Reserve Trench)
    • विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights-SDR)

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (World Gold Council):

  • वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) विश्व के प्रमुख स्वर्ण उत्पादकों का एक गैर-लाभकारी संघ है।
  • इसका मुख्यालय लंदन में है।
  • यह स्वर्ण उद्योग के लिये एक बाज़ार विकास संगठन है, जिसमें 25 सदस्य और कई स्वर्ण खनन कंपनियाँ भी शामिल हैं।
  • WGC की स्थापना विपणन, अनुसंधान और लॉबिंग के माध्यम से सोने के उपयोग तथा मांग को बढ़ावा देने के लिये की गई थी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

COVID-19 परीक्षण की नवीन तकनीक 'फेलुदा'

प्रीलिम्स के लिये:

फेलुदा परीक्षण तकनीक 

मेन्स के लिये:

COVID-19 परीक्षण तकनीक 

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) के वैज्ञानिकों ने COVID-19 महामारी परीक्षण के लिये कम लागत वाली ‘पेपर स्ट्रिप टेस्ट’ (Paper Strip Test) तकनीक ‘फेलुदा’ (Feluda) को विकसित किया है।  

प्रमुख बिंदु:  

परीक्षण का नाम फेलुदा क्यों?

  • ‘मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (MIT) और ‘हार्वर्ड यूनिवर्सिटी’ द्वारा विकसित की जा रही ‘पेपर-स्ट्रिप टेस्ट’ का नाम  प्रसिद्ध (काल्पनिक) जासूस 'शेरलोक' (Sherlock) के नाम पर रखा गया है।
  • भारतीय वैज्ञानिक इस तकनीक के भारतीय संस्करण को भारतीय नाम देना चाहते थे। वैज्ञानिकों ने भारतीय फिल्म निर्माता सत्यजीत रे द्वारा विकसित प्रसिद्ध जासूसी चरित्र ‘फेलुदा’ के नाम पर इस तकनीक का नाम रखा है।
  • इस परीक्षण तकनीक का वैज्ञानिक नाम 'Fncas9 एडिटर लिंक्ड यूनिफॉर्म डिटेक्शन एस’ (Fncas9 Editor Linked Uniform Detection Assay) है जिसे  संक्षेप में ‘फेलुदा’ (FELUDA) लिखा जाता है।

परीक्षण तकनीक की आवश्यकता:

  •  'भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद' (Indian Council of Medical Research) के अनुसार, भारत की 135 सरकारी और 56 निजी प्रयोगशालाएँ RT-PCR मशीनों से प्रति दिन केवल 18,000 परीक्षण कर सकती हैं। जबकि COVID-19 के बढ़ते मामलों को देखते हुए अधिक तेज़ी के साथ व्यापक परीक्षण की आवश्यकता है।

परीक्षण तकनीक की कार्यविधि: 

  • सर्वप्रथम रोगी की नाक से वायरस के ‘राइबोन्यूक्लीक एसिड’ (Ribonucleic Acid- RNA) के नमूने प्राप्त किये जाते हैं। इसके बाद RNA को आनुवंशिक सामग्री; जिसे पूरक DNA (Complementary DNA- cDNA) कहा जाता है, में परिवर्तित किया जाता है। 
  • फिर PCR मशीन द्वारा 'पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन' के माध्यम से cDNA में वृद्धि करके इसे Cas9 प्रोटीन के साथ मिलाते हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि ‘इंस्टिट्यूट ऑफ़ जेनॉमिक्स एंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी’ (Institute of Genomics and Integrative Biology- IGIB) द्वारा Cas9 का विशिष्ट प्रोटीन FnCas9 विकसित किया गया है, जो अनुक्रम को निर्धारित करता है।
  • अंत में इस मिश्रण को एक पेपर स्ट्रिप पर लगाया जाता है। यदि इस मिश्रण में COVID-19 DNA उपस्थित रहता है तो पेपर स्ट्रिप पर नियंत्रित या सामान्य रेखाओं के अलावा वायरस की रेखाएँ भी दिखाई देती हैं।
  • यदि वायरल में RNA भी कम मात्रा में उपस्थिति है, तो इस तकनीक द्वारा उसका भी पता लगा लिया जाता है।  

तकनीक की परीक्षण का महत्त्व:

  • तेज़ी से परीक्षण:
    • इस तकनीक के आधार पर परीक्षण का परिणाम 1.5 घंटे के भीतर ज्ञात कर लिया जाता है। अत: इस वायरस परीक्षण तकनीक के आधार पर बहुत तेज़ी से वायरस की जाँच की जा सकती है।
  • आर्थिक लागत कम:
    • इस तकनीक से COVID-19 परीक्षण की लागत 500-700 रुपए के आसपास होने का अनुमान है जबकि RT-PCR परीक्षण तकनीक की लागत 4,500 रुपए है।
  • परीक्षण की सटीकता: 
    • इस परीक्षण तकनीक से यदि किसी COVID-19 पॉज़िटिव मरीज की जाँच की जाती है तो परीक्षण की सटीकता 100% है। जबकि सामान्य परीक्षण मामलों में 90% सटीकता है अर्थात यदि 10 सामान्य लोगों का परीक्षण किया जाए तो उसमें से हो सकता है यह तकनीक किसी एक को पॉज़िटिव बताए।

निष्कर्ष: 

  • हालाँकि यह तकनीक मात्रात्मक दृष्टिकोण से अधिक कारगर है तथा व्यापक परीक्षण करने में मदद कर सकती है परंतु गुणात्मक परीक्षण की दृष्टि से RT-PCR तकनीक अधिक सटीक है।

स्रोत: बिजनेस लाइन


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 11 मई, 2020

डिफेंस रिसर्च अल्ट्रावायोलेट सेनेटाइज़र

हैदराबाद स्थि‍त रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) की प्रयोगशाला में इलेक्‍ट्रॉनिक उपकरणों, कागज़ों और करंसी नोटों को संक्रमण-मुक्‍त करने के लिये एक स्‍वचालित अल्‍ट्रावायलेट प्रणाली विकसित की है, जिसे डिफेंस रिसर्च अल्ट्रावायोलेट सेनेटाइज़र (Defence Research Ultraviolet Sanitiser-DRUVS) नाम दिया गया है। इस प्रणाली को मुख्य रूप से मोबाइल फोन, आईपैड, लैपटॉप, करेंसी नोट, चेक, चालान, पासबुक, कागज़, लिफाफे आदि को कीटाणुमुक्त करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। इस उपकरण का संचालन संपर्कहीन है जो विषाणु के प्रसार को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह एक डिब्‍बे के भीतर रखी वस्‍तु को 360 डिग्री पर अल्‍ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में लाता है। एक बार प्रयोग करने के पश्चात् यह उपकरण अपने आप बंद हो जाता है और संचालक को इसके नज़दीक खड़े होने की आवश्‍यकता नहीं होती है। DRDO की प्रयोगशाला ने एक स्वचालित करेंसी नोट सैनिटाइज़िंग उपकरण भी विकसित किया है, जिसे नोट्सक्लीन (NOTESCLEAN) नाम दिया गया है। इस उपकरण का उपयोग करके नोटों के बंडलों को कीटाणुमुक्त किया जा सकता है, हालाँकि इसका उपयोग करते हुए प्रत्येक करेंसी नोट को कीटाणुमुक्त करने की इस प्रक्रिया में काफी समय लगेगा।

महाराणा प्रताप जयंती

09 मई, 2020 को देश भर में महान योद्धा और अद्भुत शौर्य व साहस के प्रतीक महाराणा प्रताप की जयंती मनाई गई। ध्यातव्य है कि महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में 9 मई, 1540 को  सिसोदिया राजवंश में हुआ था। राणा प्रताप के पिता उदयसिंह की मृत्यु के पश्चात् 1 मार्च, 1576 को महाराणा प्रताप को मेवाड़ का शासन प्राप्त हुआ। महाराणा प्रताप के राज्य की राजधानी उदयपुर थी। भारतीय इतिहास में जितनी चर्चा महाराणा प्रताप की बहादुरी की है, उतनी ही प्रशंसा उनके घोड़े चेतक की भी है। महाराणा प्रताप की वीरता की कहानियों में चेतक का एक विशेष स्थान है। उसकी फुर्ती, रफ्तार और बहादुरी की कई लड़ाइयाँ जीतने में अहम भूमिका रही है। उदयपुर से नाथद्वारा की ओर जाने वाले मार्ग के पास स्थिति पहाड़ियों के बीच मौजूद हल्दीघाटी वह प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ 1576 ई. में महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार, 1576 ई. में हुए इस युद्ध में करीब 20 हज़ार सैनिकों के साथ महाराणा प्रताप ने 80 हजार मुगल सैनिकों का सामना किया था। 29 जनवरी, 1597 ई. को महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई थी।

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस

देश भर में प्रत्येक वर्ष 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस (National Technology Day) मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों को याद करना है। ध्यातव्य है कि शैक्षणिक संस्थान तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से संबंधित संस्थान इस दिवस को भारत की प्रौद्योगिकी क्षमता के विकास को बढ़ावा देने के लिये मनाते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1998 में 11 मई को ही भारत ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया था, यह परमाणु परीक्षण राजस्थान के पोखरण में संपन्न हुआ था। इस दिवस का आयोजन प्रत्येक वर्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) द्वारा किया जाता है और मंत्रालय इस अवसर आर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करता है। इस दिवस को स्वदेशी वायुयान हंसा-III (HANSA-III) के रूप में भी याद किया जाता है। इसके अतिरिक्त 11 मई 1988 को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) ने सतह से हवा में मार करने वाली त्रिशूल मिसाइल का अंतिम परीक्षण किया था। इस प्रकार 11 मई विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की विकास यात्रा के कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाक्रमों का प्रत्यक्षदर्शी रहा है।

हरि शंकर वासुदेवन

प्रसिद्ध इतिहासकार हरि शंकर वासुदेवन का COVID-19 के कारण 63 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। वासुदेवन को रूस तथा मध्य एशिया के इतिहासकारों में अग्रणी नामों में से एक माना जाता है। इसके अतिरिक्त वे भारत-रूस संबंधों के विशेषज्ञों के रूप में भी जाने जाते थे। वर्तमान में वह कलकत्ता विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर के रूप में कार्य कर रहे थे। इससे पूर्व उन्होंने केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत ‘मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़’, कोलकाता के निदेशक के रूप में भी कार्य किया था। हरि शंकर वासुदेवन ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (University of Cambridge) से स्नातक किया था, जहाँ से उन्होंने अपनी स्नातकोत्तर (Postgraduate) और पीएचडी (PhD) भी पूरी की थी। हरि शंकर वासुदेवन वर्ष 2011 से वर्ष 2014 के मध्य भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (Indian Council of Historical Research) के सदस्य भी रहे थे।


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