राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2019
प्रीलिम्स के लिये:राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2019, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो, संबंधित मंत्रालय मेन्स के लिये:ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में राज्यों द्वारा की गई प्रगति और एनर्जी फुट प्रिंट के प्रबंधन की निगरानी में सूचकांक का महत्त्व, सूचकांक की उपयोगिता |
चर्चा में क्यों?
10 जनवरी, 2020 को ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of Power) ने राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक (State Energy Efficiency Index) 2019 जारी किया।
प्रमुख बिंदु
- यह सूचकांक 97 महत्त्वपूर्ण संकेतकों के आधार पर 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (29 राज्य और 7 केंद्रशासित प्रदेश) में ऊर्जा दक्षता (Energy Efficiency-EE) पहल की प्रगति के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
Note: यद्यपि वर्तमान में 28 राज्य और 9 केंद्रशासित प्रदेश हैं लेकिन राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2019 में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को सामूहिक रूप से शामिल किया गया है।
- इस सूचकांक को ऊर्जा दक्ष अर्थव्यवस्था हेतु गठबंधन (Alliance for an Energy Efficient Economy-AEEE) तथा ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency-BEE) द्वारा मिलकर विकसित किया गया है।
- इस वर्ष नीति और विनियमन, वित्तपोषण तंत्र, संस्थागत क्षमता, ऊर्जा दक्षता उपायों को अपनाने तथा ऊर्जा बचत के प्रयासों एवं उपलब्धियों के आधार पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का आकलन किया गया है।
- ‘राज्य ऊर्जा दक्षता तैयारी सूचकांक’ (State Energy Efficiency Preparedness Index) इस क्रम में पहला सूचकांक था जिसे अगस्त 2018 में जारी किया गया था। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए अब राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2019 जारी किया गया है जिसमें गुणात्मक, मात्रात्मक और परिणाम आधारित संकेतकों के माध्यम से पाँच अलग-अलग क्षेत्रों- भवन निर्माण उद्योग, नगर पालिका, परिवहन, कृषि, MSME क्लस्टरों और वितरण कंपनियों (Distribution Companies-DISCOM) में ऊर्जा दक्षता हेतु की गई पहलों, कार्यक्रमों और परिणामों का आकलन किया गया है।
- इस वर्ष के लिये नए संकेतकों में ऊर्जा संरक्षण भवन कोड (Energy Conservation Building Code-ECBC) 2017 को अपनाना, MSME समूहों में ऊर्जा दक्षता आदि शामिल हैं।
राज्यों के बीच तर्कसंगत तुलना
- तर्कसंगत तुलना के लिये राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति (Total Primary Energy Supply-TPES) पर आधारित चार समूहों- फ्रंट रनर (Front Runner), अचीवर (Achiever), कंटेंडर (Contender) और एस्पिरेंट (Aspirant) में बांटा गया है।
- ‘फ्रंट रनर’ समूह में किसी भी राज्य को स्थान नहीं मिला है।
- हरियाणा, केरल और कर्नाटक वर्ष 2019 के लिये 'अचीवर' समूह में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं।
- मणिपुर, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और राजस्थान ‘एस्पिरेंट’ समूह में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं।
- TPES ग्रुपिंग राज्यों को प्रदर्शन की तुलना करने और अपने सहकर्मी समूह के भीतर सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने में मदद करेगा।
राज्यों द्वारा की गई प्रमुख पहलें
- राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2019 दर्शाता है कि राज्यों द्वारा की गई अधिकांश पहलें नीतियों और विनियम से संबंधित हैं। BEE द्वारा मानकों और लेबलिंग (Standards & Labelling- S&L), ECBC, परफॉर्म अचीव एंड ट्रेड (Perform Achieve & Trade- PAT) आदि कार्यक्रमों के तहत तैयार की गई पहली-पीढ़ी की ऊर्जा दक्षता नीतियों में से अधिकांश को राज्यों ने अच्छी तरह से अपनाया है और अगले चरण में उन्हें ऊर्जा बजट पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- इस वर्ष राज्यों द्वारा भेजी गई प्रतिक्रियाओं के विश्लेषण के आधार पर राज्य की एजेसिंयों के लिये तीन-बिंदुओं वाले एजेंडे का सुझाव दिया गया है:
- नीति निर्माण और कार्यान्वयन में राज्यों की सक्रिय भूमिका: नीतियों के निर्माण से ज़्यादा नीतियों के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करने पर ज़ोर।
- डेटा संकलन तथा सार्वजनिक रूप से उसकी उपलब्धता की व्यवस्था को मज़बूत बनाना: इस वर्ष का सूचकांक तैयार करते समय राज्य एजेसियों ने विभिन्न विभागों से डेटा प्राप्त करने में सक्रियता दिखाई। हालाँकि उन्हें इस दिशा में और बेहतर तरीके से काम करने के लिये विभिन्न विभागों और निजी क्षेत्रों के साथ बेहतर तालमेल स्थापित करना होगा।
- ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों की विश्वसनीयता में वृद्धि करना: ऊर्जा दक्षता बाज़ार में बदलाव लाने के लिये आम उपभोक्ताओं के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क वाले कार्यक्रमों के महत्त्व को सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। इसके लिये राज्यों को ऊर्जा बचत के उपायों के अनुपालन के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से इन पर निगरानी रखने की भी व्यवस्था करनी होगी जो कि ऊर्जा दक्षता नीतियों और कार्यक्रमों का अहम हिस्सा हैं।
सूचकांक का महत्त्व:
- यह राज्यों को ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु से संबधित लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करेगा।
- साथ ही यह ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में राज्यों द्वारा की गई प्रगति और राज्यों तथा देश के एनर्जी फुट प्रिंट के प्रबंधन की निगरानी में भी सहायक होगा।
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE)
- भारत सरकार ने ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के उपबंधों के अंतर्गत 1 मार्च, 2002 को की।
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो का मिशन, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के समग्र ढाँचे के अंदर स्व-विनियम और बाज़ार सिद्धांतों पर महत्त्व देते हुए ऐसी नीतियों और रणनीतियों का विकास करने में सहायता प्रदान करना है जिनका प्रमुख उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था में ऊर्जा की गहनता को कम करना है।
स्रोत: पी.आई.बी.
धारा 144 के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का आदेश
प्रीलिम्स के लिये:धारा 144 मेन्स के लिये:धारा 144 को लागू करने के संबंध में विभिन्न तथ्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि धारा 144 का प्रयोग सकारात्मक अभिव्यक्तियों को प्रतिबंधित करने के लिये नहीं किया जा सकता है।
मुख्य बिंदु:
- सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (The Code Of Criminal Procedure- Cr.PC) की धारा 144 के तहत जारी प्रतिबंध के आदेशों का प्रयोग लोकतंत्र में सकारात्मक अभिव्यक्तियों, सलाह और शिकायतों को दबाने के उपकरण के रूप में नहीं किया जा सकता है।
क्या था मुद्दा?
- सर्वोच्च न्यायालय में कुछ याचिकाकर्त्ताओं द्वारा इस संदर्भ में याचिका दाखिल की गई थी कि पुलिस अभी भी जम्मू-कश्मीर में लोगों की आवाजाही पर रोक लगा रही है।
- जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का निरसन, देश में एक संवेदनशील मुद्दा था जिसका देश के कुछ हिस्सों विशेषकर जम्मू-कश्मीर में काफी विरोध भी हुआ था। विदित है कि जम्मू-कश्मीर में भी सुरक्षा की दृष्टि से अफवाहों और हिंसक घटनाओं को रोकने के लिये सरकार ने धारा 144 लागू की थी।
क्या है सर्वोच्च न्यायालय का आदेश?
- अगर सरकार को लगता है कि कानून और व्यवस्था के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है तो उसे नियत प्रक्रिया का पालन करना चाहिये तथा नागरिकों के अधिकारों को ध्यान में रखकर केवल उचित और आवश्यकता-आधारित प्रतिबंधात्मक आदेश पारित करने चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में धारा-144 के तहत जारी किये गए आदेशों से यह सिद्ध नहीं होता है कि ये आदेश कानून-व्यवस्था के लिये खतरे की स्थिति में या जीवन और संपत्ति के नुकसान को रोकने के लिये लगाए गए थे।
- सरकार ने यह तर्क दिया कि ये प्रतिबंध राज्य में काफी समय से प्रभावी सीमा पार आतंकवाद, घुसपैठ और अन्य सुरक्षा मुद्दों के कारण लगाए गए थे।
- इस शक्ति का उपयोग केवल सार्वजनिक आकस्मिक मुद्दों या सार्वजनिक सुरक्षा के हित में ही किया जाना चाहिये।
- मजिस्ट्रेट किसी भी क्षेत्र में भौगोलिक तथ्यों तथा उद्देश्यों का आकलन किये बिना प्रतिबंध नहीं लगा सकता है।
- इन प्रतिबंधों को कभी भी लंबी अवधि के लिये लागू नहीं किया जाना चाहिये।
- धारा 144 को सामान्य रूप से जनता के खिलाफ या विशिष्ट समूहों या व्यक्तियों के खिलाफ लागू किये जाने के प्रश्न के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने मधुलिमये (Madhu Limaye) केस का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर व्यक्तियों की संख्या इतनी अधिक है कि उनमें भेद नहीं किया जा सकता तो एक सामान्य आदेश पारित किया जा सकता है।
मधुलिमये (Madhu Limaye) बनाम सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट मामला:
- वर्ष 1970 में मधुलिमये (Madhu Limaye) बनाम सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट मामले में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एम. हिदायतुल्ला की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की पीठ ने धारा 144 की संवैधानिकता को बरकरार रखा।
- मजिस्ट्रेट की शक्ति प्रशासन द्वारा प्राप्त आम शक्ति नहीं है बल्कि यह न्यायिक तरीके से उपयोग की जाने वाली शक्ति है जिसकी न्यायिक जाँच भी की जा सकती है।
- न्यायालय ने कानून की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए कहा कि धारा 144 के अंतर्गत लगे प्रतिबंधों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के अंतर्गत आता है।
स्रोत- द हिंदू
वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति: 2019-2024
प्रीलिम्स के लिये:वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति: 2019-2024 मेन्स के लिये:वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति: 2019-2024 को प्रारंभ करने का कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने 2019-2024 की अवधि के लिये ‘वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति’ (National Strategy for Financial Inclusion) तैयार करने की प्रक्रिया प्रारंभ की है।
मुख्य बिंदु:
- वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति को ‘वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद’ (Financial Stability and Development Council-FSDC)) द्वारा अनुमोदित किया गया है।
क्या है वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति?
- वर्तमान में पूरे विश्व में तेज़ी से वित्तीय समावेशन को आर्थिक विकास के चालक और गरीबी उन्मूलन के रूप में पहचाना जा रहा है।
- वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये सात सतत् विकास लक्ष्यों में इसकी चर्चा की गई है।
- भारत में भी समन्वयपूर्ण और समयबद्ध तरीके से उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये RBI ने वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति तैयार करने की प्रक्रिया प्रारंभ की है।
- वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति से औपचारिक वित्त तक पहुँच बढ़ने से रोज़गार के सृजन को बढ़ावा मिलेगा तथा आर्थिक मोर्चे पर हानि की संभावना कम होगी और मानव पूंजी में निवेश बढ़ सकेगा।
वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति का उद्देश्य:
- इस कार्यनीति के उद्देश्यों में से एक प्रमुख उद्देश्य मार्च 2020 तक हर गाँव के 5 किमी. के दायरे में तथा पहाड़ी क्षेत्रों के 500 परिवारों के समूह तक बैंकिंग पहुँच को बढ़ाना है।
- RBI के अनुसार, इसका एक उद्देश्य यह भी है कि प्रत्येक वयस्क की मार्च 2024 तक मोबाइल के माध्यम से वित्तीय सेवाओं तक पहुँच हो।
- हर वयस्क व्यक्ति तक वित्तीय सेवाओं की पहुँच प्रदान करने के उद्देश्य से एक लक्ष्य निर्धारित किया गया है कि प्रत्येक इच्छुक और पात्र वयस्क, जिसे प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत नामांकित किया गया है, को मार्च 2020 तक बीमा योजना और पेंशन योजना के तहत नामांकित किया जाना चाहिये।
- मार्च 2022 तक पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री (Public Credit Registry- PCR) को पूरी तरह से प्रारंभ करने की योजना भी है ताकि नागरिकों के साख प्रस्तावों का मूल्यांकन करने के मामले में भी अधिकृत वित्तीय संस्थाएँ इसी प्रकार का लाभ प्राप्त कर सके।
वित्तीय समावेशन:
- वित्तीय समावेशन' के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को भी आर्थिक विकास के लाभों से संबद्ध किया जा सके ताकि कोई भी व्यक्ति आर्थिक सुधारों से वंचित न रहे।
- इसके तहत देश के प्रत्येक नागरिक को अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास किया जाता है ताकि गरीब व्यक्ति को बचत करने के साथ-साथ विभिन्न वित्तीय उत्पादों में सुरक्षित निवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति से जहाँ एक ओर समाज में कमज़ोर तबके के लोगों को अपनी ज़रूरतों तथा भविष्य की आवश्यकताओं के लिये धन की बचत करने, विभिन्न वित्तीय उत्पादों जैसे- बैंकिंग सेवाओं, बीमा और पेंशन आदि के उपयोग से देश के आर्थिक क्रियाकलापों से लाभ प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा। वहीं दूसरी ओर, इससे देश को 'पूंजी निर्माण' की दर में वृद्धि करने में भी सहायता प्राप्त होगी। इसके फलस्वरूप होने वाले धन के प्रवाह से देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलने के साथ-साथ आर्थिक क्रियाकलापों को भी बढ़ावा मिलेगा।
स्रोत- द हिंदू
भारत में बढ़ती तेल की मांग
प्रीलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी मेन्स के लिये:पेट्रोलियम और ऊर्जा क्षेत्र में चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency-IEA) के अनुसार, वर्ष 2020 के मध्य तक भारतीय बाज़ार में तेल की मांग चीन के बाज़ार से अधिक हो जाएगी। जिसे देखते हुए उन्होंने सरकार को विषम परिस्थितियों के लिये सुरक्षित सामरिक तेल भंडार को बढ़ने की सलाह दी है।
मुख्य बिंदु:
- वर्तमान समय में कच्चे तेल की खपत के मामले में भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा देश है।
- इसके अतिरिक्त भारत कच्चे तेल के परिशोधन में विश्व का चौथा सबसे बड़ा देश होने के साथ पेट्रोलियम उत्पादों का एक बड़ा निर्यातक भी है।
- IEA के अनुमान के अनुसार, भारत वर्ष 2020 के मध्य तक तेल की खपत के मामले में चीन को पीछे छोड़ते हुए खनिज तेल उद्योग के क्षेत्र में एक आकर्षक बाज़ार के रूप में उभरेगा।
- वर्तमान में भारतीय तेल बाज़ार अमेरिका (USA) और चीन के बाद विश्व में तीसरे स्थान पर है, परन्तु भविष्य में भारत में यातायात तथा घरेलू उपयोग आदि क्षेत्रों में पेट्रोलियम उत्पादों की मांग में भारी वृद्धि का अनुमान है।
- IEA के अनुसार, भारत में वर्ष 2024 तक तेल की मांग बढ़कर 6 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुँच जाएगी, ध्यातव्य हो कि वर्ष 2017 के आँकड़ों के अनुसार यह मांग 4.4 बैरल प्रतिदिन थी।
- विशेषज्ञों के अनुसार, वर्ष 2025 तक भारत की प्रतिदिन तेल परिशोधन की क्षमता 5 मिलियन बैरल प्रतिदिन से बढ़कर 8 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुँच जाएगी।
- वर्तमान में भारत की विषम परिस्थितियों के लिये सामरिक पेट्रोलियम भंडार (Strategic Petroleum Reserves-SPR) की क्षमता 10 दिनों के आयातित तेल के बराबर है।
- भारत के आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम और कर्नाटक के पादुर (Padur) तथा मंगलौर में 5.33 मिलियन टन कच्चे तेल को सामरिक पेट्रोलियम भंडार के रूप में रखा जाता है।
- पेट्रोलियम के सामरिक भंडारण की इस योजना के अगले चरण में सरकार द्वारा ओडिशा के चंडीखोल और कर्नाटक के पदुर में 6.5 मिलियन टन क्षमता के नए भंडारण केंद्र स्थापित करने पर विचार किया जा रहा है।
- IEA निदेशक के अनुसार, भारत का वर्तमान सामरिक भंडार इस दिशा में एक अच्छी पहल है, परंतु विषम परिस्थितियों के लिये अपनी भंडारण क्षमता को बढ़ाना भारत के लिए बहुत ही आवश्यक है।
निष्कर्ष:
भारत अपनी आवश्यकता का 80% कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है, जिसमें से 65% तेल होर्मुज़ की खाड़ी से होते हुए मध्यपूर्व के देशों से आता है। इस क्षेत्र में बढ़ती अस्थिरता तथा भविष्य की आवश्यकता को देखते हुए भारत के लिये इस क्षेत्र में किसी भी चुनौती से निपटने के लिये तैयार रहना चाहिये।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency-IEA):
- IEA एक स्वायत्त अंतर-सरकारी संगठन है, इसकी स्थापना वर्ष 1973 के तेल संकट पृष्ठभूमि में आर्थिक सहयोग व विकास संगठन (Organisation for Economic Co-operation and Development-OECD) फ्रेमवर्क के तहत वर्ष 1974 में की गई थी।
- इसका मुख्यालय पेरिस (फ्राँस) में स्थित है, भारत इस संगठन का एक सहयोगी सदस्य (Associate Member) है।
- यह संगठन उर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर काम करता है।
- IEA के सदस्य देशों की सामरिक पेट्रोलियम भंडार (Strategic Petroleum Reserves-SPR) की क्षमता 90 दिनों के आयातित तेल के बराबर होती है।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
दावानल द्वारा विकसित मौसम प्रणाली
प्रीलिम्स के लिये:Pyrocumulonimbus Clouds मेन्स के लिये:वनाग्नि एवं जलवायु परिवर्तन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विशेषज्ञों ने ऑस्ट्रेलिया की वनाग्नि के प्रभाव से इस क्षेत्र में एक नई मौसम प्रणाली विकसित होने के संकेत दिये हैं। जिसमें अनियंत्रित आग के कारण इस क्षेत्र में उत्पन्न हुई यह परिस्थिति वनाग्नि की अनिश्चितता को बढ़ाने के साथ-साथ इस स्थिति पर नियंत्रण पाना और अधिक कठिन बना देती है।
मुख्य बिंदु:
- ऑस्ट्रेलिया में विशेषज्ञों ने दावानल में एक नई प्रक्रिया को विकसित होते देखा है, जिसमें दावानल की अनियंत्रित आग के कारण इस क्षेत्र की ऊष्मा के अधिक बढ़ जाने से जल रहे वनों में शुष्क तड़ित झंझा और अग्नि बवंडर के साथ एक नई मौसम प्रणाली का निर्माण हुआ।
- इस प्रक्रिया के दौरान आग की लपटें पृथ्वी की सतह से 40 फीट से अधिक ऊँचाई तक पहुँच गईं। विशेषज्ञों के अनुसार, मौसम के इस व्यवहार का कारण Pyrocumulonimbus बादलों का बनाना है।
क्या हैं Pyrocumulonimbus बादल?
- Pyrocumulonimbus= Pyro (आग)+ cumulonimbus (कपासी मेघ)
- ऑस्ट्रेलिया के मौसम विभाग के अनुसार, यह मेघ एक प्रकार का तड़ित झंझावात (Thunderstorm) है जो धुएँ के बड़े गुबार से बनता है। जब आग से निकलने वाली भीषण गर्मी से गर्म हवाएँ तेज़ी से ऊपर उठती हैं तो इस खाली जगह का स्थान ठंडी हवाएँ ले लेती हैं। आग के प्रभाव से बने बादल ऊपर उठकर कम तापमान वाले वातावरण के संपर्क में आकर ठंडे हो जाते है और इन बादलों के ऊपरी हिस्से में बर्फ के कणों के बीच घर्षण से विद्युत आवेश बनता है जो आकाशीय बिजली के रूप में धरती पर गिरती है।
- यह प्रक्रिया वनाग्नि की अनिश्चितता और विभीषिका को और बढ़ाती है, जिससे आग पर नियंत्रण पाने में अधिक कठिनाई होती है तथा आकाशीय बिजली से नए स्थानों पर आग लगने का खतरा बना रहता है।
- ऊपर उठती हुई हवाएँ तूफान जैसी स्थिति पैदा करती हैं जिससे आग तेज़ी से और अधिक दूरी तक फैल जाती है।
वनाग्नि:
गर्मी के मौसम में विश्व के कई गर्म एवं शुष्क क्षेत्रों में वनाग्नि एक सामान्य घटना है। वृक्षों के सूखे पत्ते, घास, झाड़ियाँ और सूखी लकड़ियाँ जसे अन्य अग्नि प्रवण पदार्थ इस प्रक्रिया में ईंधन का काम करते हैं तथा तेज़ हवाएँ इसे दूर तक फैलने तथा तेज़ी से बढ़ने में मदद करती हैं। वनाग्नि के प्राकृतिक कारकों में आकाशीय बिजली प्रमुख है तथा इसके कई मानवीय कारक भी हैं जैसे- कृषि हेतु नए खेत तैयार करने के लिये वन क्षेत्र की सफाई, वन क्षेत्र के निकट जलती हुई सिगरेट या कोई अन्य ज्वलनशील वस्तु छोड़ देना आदि।
ऑस्ट्रेलिया में वनाग्नि के कारण:
- विशेषज्ञों के अनुसार, वनाग्नि ऐतिहासिक रूप से ऑस्ट्रेलिया के गर्म और शुष्क पारितंत्र का हिस्सा रही है।
- इस दावानल का कारण पिछले कुछ वर्षों से लम्बे समय तक पड़ने वाला सूखा और बढ़ता तापमान है।
- ध्यातव्य है कि पिछले तीन वर्षों से ऑस्ट्रेलिया भीषण सूखे का सामना कर रहा है, मौसम विज्ञान विभाग के अधिकारियों ने वर्ष 2019 को वर्ष 1900 के बाद सबसे गर्म वर्ष बताया है। इस दौरान तापमान औसत से 2°C अधिक था, जबकि वर्षा में सामान्य से 40% की कमी देखी गई।
- पिछले वर्ष अप्रैल महीने में मौसम विज्ञान विभाग द्वारा इस तरह की वनाग्नि की चेतावनी भी दी गई थी।
- विशेषज्ञों के अनुसार, इस वर्ष ऑस्ट्रेलिया के असामान्य मौसम का कारण हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole-IOD) की भूमिका भी है। इस वर्ष पूर्वी हिंद महासागर क्षेत्र में सामान्य से अधिक ठंड देखी गई, जो ऑस्ट्रेलिया में हुई कम वर्षा के कारणों में से एक है।
हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole-IOD):
- यह परिघटना हिंद महासागर में महासागर-वायुमंडल अंतर्संबंध (Ocean-Atmosphere Interaction) को परिभाषित करती है।
- इस परिघटना में हिंद महासागर के पूर्वी तथा पश्चिमी छोर पर तापमान का अंतर इस क्षेत्र में मौसम की प्रकृति को प्रभावित करता है।
- यह तीन तरह से ऑस्ट्रेलिया के मौसम को प्रभावित करता है:
- तटस्थ (न्यूट्रल) IOD: इसका ऑस्ट्रेलिया के मौसम पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ता।
- नकारात्मक (Negative) IOD: इस अवस्था में तेज़ पश्चिमी हवाएँ ऑस्ट्रेलिया में अच्छी वर्षा का कारण बनती हैं।
- सकारात्मक (Positive) IOD: सकारात्मक IOD के समय इस क्षेत्र में कम वर्षा और तापमान में भारी वृद्धि देखी जाती है।
ऑस्ट्रेलियाई वनाग्नि की विभीषिका:
- ऑस्ट्रेलिया में प्रतिवर्ष वनाग्नि के लगभग 62,000 मामले पंजीकृत किये जाते हैं, इनमें से 13% का कारण मानवीय रहे हैं।
- पिछले वर्ष (यानी वर्ष 2019 में) लगी आग अब तक अनुमानतः 50-60 लाख हेक्टेयर में फैल चुकी है।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2018 में कैलिफोर्निया के जंगलों में लगी आग लगभग 18 लाख हेक्टेयर तथा वर्ष 2019 में अमेज़न के वर्षा वनों में लगी आग लगभग 9 लाख हेक्टेयर तक फैल गई थी।
जलवायु परिवर्तन का वनाग्नि पर प्रभाव:
- पिछले कुछ वर्षों में कैलिफ़ोर्निया, ऑस्ट्रेलिया और भू-मध्य के क्षेत्र में वनाग्नि के कई मामले देखे गए हैं। ऐतिहासिक रूप से ये क्षेत्र गर्म एवं शुष्क वातावरण के लिये जाने जाते हैं परंतु जलवायु परिवर्तन के कारण ये क्षेत्र और अधिक गर्म तथा शुष्क हुए हैं।
- जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में तापमान बढ़ने के साथ-साथ वर्षा में कमी आई है।
- वर्ष 2007 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी मंच (Intergovernmental Panel on Climate Change-IPCC) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से ऑस्ट्रेलिया के वनों की बढ़ती अग्नि प्रवणता के बारे में चेतावनी जारी की थी। वर्ष 2007 से IPCC इस चेतावनी को प्रतिवर्ष दोहराता रहा है।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 तक दक्षिण-पूर्व ऑस्ट्रेलिया में वनाग्नि के खतरों में 4% से 20% की वृद्धि, जबकि वर्ष 2050 तक इन मामलों में 15% से 70% तक की वृद्धि देखी जा सकती है।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव साइबेरिया और अमेज़न के जंगलों में लगी आग पर भी देखा जा सकता है, जबकि ऐतिहासिक रूप से इन क्षेत्रों के वन इतने अग्निप्रवण नहीं थे।
जलवायु परिवर्तन और बढ़ते वनाग्नि के मामलों का भारत पर प्रभाव:
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हिंद महासागर में हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole-IOD) के कारण बदलते मौसम रूप में देखा जा सकता है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, इसके परिणामस्वरूप मौसम में बार-बार होने वाले असामान्य बदलाव जैसी घटनाएँ बढ़ेंगी।
- इसके प्रभाव भारतीय मानसून पर भी पड़ सकते हैं जो पूरे भारत और दक्षिण एशिया को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
- जलवायु परिवर्तन भारतीय वनों की बढ़ती अग्नि प्रवणता का भी एक कारण है।
स्रोत: द हिंदू, द इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (11/01/2020)
ओबैद सिद्दीकी का निधन
63 वर्षीय कवि एवं शिक्षाविद् ओबैद सिद्दीकी का गाज़ियाबाद में निधन हो गया है। सिद्दीकी का जन्म मेरठ में वर्ष 1957 में हुआ और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की। वर्ष 1988 में सिद्दीकी ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ गए। इसके बाद वह बीबीसी (BBC) की उर्दू सेवा में काम करने के लिये लंदन चले गए जहाँ वे वर्ष 1996 तक रहे। वर्ष 2004 में ओबैद सिद्दीकी जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अनवर जमाल किदवई जन संचार अनुसंधान केंद्र से जुड़ गए और बाद में उन्होंने इस केंद्र के निदेशक के तौर पर भी अपनी सेवाएँ दीं। उन्हें उर्दू कवि के रूप में भी जाना जाता था।
राष्ट्रपति की शक्तियों को सीमित करने का प्रस्ताव
अमेरिका के हाउस ऑफ रीप्रेजेंटेटिव्स ने ईरान से युद्ध करने को लेकर राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की शक्तियों को सीमित करने से जुड़े एक प्रतीकात्मक प्रस्ताव पारित किया है। डेमोक्रेट के बहुमत वाले इस सदन ने यह प्रस्ताव 194 के मुकाबले 224 मतों से पारित कर दिया, किंतु इसका रिपब्लिकन के बहुमत वाले सीनेट में पारित हो पाना कठिन है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य अमरीका पर तत्काल हमले के मामलों के अतिरिक्त ईरान के साथ किसी तरह के संघर्ष के मुद्दे पर कांग्रेस की मंज़ूरी प्राप्त करना अनिवार्य बनाना है।
नौसेना कार्यक्रम ‘मिलन’
मार्च 2020 में आयोजित किये जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय नौसेना कार्यक्रम ‘मिलन’ की मेज़बानी के लिये ‘विशाखापत्तनम’ का चुनाव किया गया है। कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिये 30 देशों की नौसेनाओं ने पुष्टि की है। वर्ष 2020 के लिये इस अभ्यास की थीम ‘सिनर्जी अक्रॉस द सीज’ (Synergy Across the Seas) है। गौरतलब है कि ‘मिलन’ एक बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यास है। आयोजन का मुख्य उद्देश्य विदेशी नौसेनाओं के बीच पेशेवर बातचीत को बढ़ाना देना और समुद्री क्षेत्र में ताकत एवं सर्वोत्तम प्रथाओं को सीखना है।
ओमान के सुल्तान कबूस बिन सैद का निधन
ओमान के सुल्तान कबूस बिन सैद का 11 जनवरी 2020 को 79 वर्ष की आयु में निधन हो गया। सुल्तान के निधन के बाद ओमान में तीन दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा कर दी गई है। उल्लेखनीय है कि वे लंबे समय तक सत्ता में रहे और इस दौरान उन्होंने राष्ट्रहित के लिये कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये।