जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध मामलों की सुनवाई हेतु विशेष न्यायालय
प्रिलिम्स के लिये:न्याय मित्र, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम मेन्स के लिये:राजनीति का अपराधीकरण और इसके समाधान के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय की एक तीन सदस्यीय पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय की एक समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर विचार करते हुए यह स्पष्ट किया कि पूर्व सांसदों और विधायकों के विरुद्ध विभिन्न आपराधिक मामलों की तेज़ी से सुनवाई करने हेतु विशेष अदालतों की स्थापना का उद्देश्य लोगों के हितों की रक्षा और न्यायप्रणाली के प्रति लोगों के विश्वास को मज़बूत करना है।
प्रमुख बिंदु:
- उच्चतम न्यायालय की पीठ द्वारा विशेष अदालतों की स्थापना के उद्देश्य से मद्रास उच्च न्यायालय की एक समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर विचार किया जा रहा था, जिसमें समिति ने विभिन्न मामलों में आरोपी नेताओं के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिये विशेष अदालतों की स्थापना पर अनिच्छा दिखाई थी।
पृष्ठभूमि:
- गौरतलब है कि वर्ष 2017 में उच्चतम न्यायालय ने देश में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं के विरुद्ध लंबित आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिये देश के विभिन्न हिस्सों में विशेष अदालतों की स्थापना का आदेश दिया था।
- उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद देश के 11 राज्यों में 12 विशेष न्यायालयों को स्थापना की गई थी।
- इसके तहत दिल्ली में 2, जबकि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 1-1 विशेष न्यायालय की स्थापना की गई।
- सितंबर 2020 में उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त न्याय मित्र अथवा एमिकस क्यूरी (Amicus Curiae) वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि देश में विशेष अदालतों की स्थापना के प्रयासों के बावज़ूद वर्तमान में देश में लगभग 4,442 नेताओं के विरूद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनमें 2,556 ऐसे मामले हैं जो संसद सदस्य (सांसद) और विधानसभाओं (विधायकों) के सदस्यों पर हैं।
- इस रिपोर्ट में उन्होंने नेताओं के विरुद्ध मामलों के अधिक समय तक लंबित रहने के निम्नलिखित कारण बताए हैं:
- विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा मामलों पर लागू स्थगन।
- मुकदमे चलाने के लिये विशेष न्यायालयों की अपर्याप्त संख्या।
- अभियोजकों की कमी।
- जाँच प्रक्रिया में देरी।
- इस रिपोर्ट के मिलने के बाद उच्चतम न्यायालय ने देश के सभी उच्च न्यायालयों को संसद और विधानसभा सदस्यों (वर्तमान और पूर्व दोनों) के विरुद्ध लंबित मामलों की सूची तैयार करने का आदेश दिया।
- उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों की एक विशेष बेंच द्वारा ऐसे सभी मामलों की जाँच करने का आदेश दिया जिनमें नेताओं के मामलों की सुनवाई के खिलाफ स्थगन या स्टे प्रदान किया गया है, साथ ही विशेष बेंच द्वारा इस स्थगन को जारी रखने या रद्द करने के संदर्भ में दो माह के अंदर निर्णय लेने का भी आदेश दिया गया।
- उच्चतम न्यायालय की पीठ ने स्पष्ट किया कि COVID-19 को मामलों की सुनवाई रोकने के एक कारण के रूप में नहीं लिया जाना चाहिये क्योंकि सुनवाई की प्रक्रिया को वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भी पूरा किया जा सकता है।
समिति का तर्क:
- समिति ने संसद और विधानसभा सदस्यों के खिलाफ मामलों की सुनवाई हेतु विशेष अदालतों के गठन की संवैधानिक मान्यता पर प्रश्न उठाया।
- समिति के अनुसार, विशेष अदालतों की स्थापना केवल एक कानून के माध्यम से ही की जा सकती है, कार्यपालिका या न्यायपालिका के आदेश से नहीं।
- समिति ने कहा कि विशेष न्यायालयों की स्थापना अपराध केंद्रित/आधारित (Offence-Centric) होनी चाहिये अपराधी आधारित नहीं।
- उदाहरण के लिये यदि किसी संसद या विधानसभा सदस्य को पाॅक्सो अधिनियम से जुड़े अपराध में पकड़ा जाता है तो ऐसे मामलों की सुनवाई केवल पाॅक्सो के तहत स्थापित विशेष न्यायालय द्वारा ही की जा सकती है।
- इसके साथ ही समिति ने ऐसे विशेष न्यायालयों में पहुँचने के लिये गवाहों को होने वाली यातायात से संबंधित समस्याओं और मामलों को राजनीतिक दलों द्वारा प्रभावित करने जैसी समस्याओं को भी रेखांकित किया।
राजनीति का अपराधीकरण:
- भारत में राजनीति के अपराधीकरण के प्रमुख कारणों में पुलिस पर राजनीतिक नियंत्रण, भ्रष्टाचार, कमज़ोर कानून, नैतिकता की कमी, वोट बैंक की राजनीति और चुनाव आयोग के कार्य में व्याप्त कमियाँ आदि शामिल हैं।
- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (Association of Democratic Reforms)की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में लोकसभा के लिये निर्वाचित कुल सदस्यों की संख्या में से लगभग आधे के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे जो वर्ष 2014 के निर्वाचित सदस्यों की तुलना में 26% अधिक हैं।
कानूनी प्रावधान:
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 के तहत दोषी नेताओं (कुछ अपराधों के लिये) को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया है। हालाँकि मुकदमे का सामना करने वाले (चाहे कितने भी गंभीर आरोप क्यों न हों) नेता चुनाव लड़ने के लिये स्वतंत्र हैं।
संबंधित पूर्व मामले:
- फरवरी 2020 में उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों को विधानसभा और लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र अपने उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने का आदेश दिया, साथ ही उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों को सभ्य लोगों के स्थान पर ऐसे संदिग्ध अपराधियों को चुने जाने के कारणों को स्पष्ट करने के लिये भी कहा।
निर्वाचन आयोग का मत:
- निर्वाचन आयोग ने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की याचिका का समर्थन किया था।
- निर्वाचन आयोग द्वारा ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव दिया गया था जो किसी ऐसे अपराध के आरोपी हैं जिसमें कम-से-कम पाँच साल के लिये कैद की सज़ा हो सकती है और उन पर किसी अदालत द्वारा आरोप भी तय किये जा चुके हों। हालाँकि कई राजनीतिक दलों द्वारा इस प्रस्ताव का विरोध किया गया।
- राजनीतिक दलों के अनुसार, सत्ताधारी दल द्वारा अपने विरोधियों को दबाने के लिये इस प्रावधान का दुरुपयोग किया जा सकता है, साथ ही भारतीय कानून व्यवस्था में अपराध सिद्ध न होने तक सभी को निर्दोष माना जाता है, ऐसे में इस प्रावधान से नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
आगे की राह:
- देश की राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों की सक्रियता को नियंत्रित करने के लिये विशेष अदालतों की स्थापना करना एक सकारात्मक पहल होगी।
- इसके साथ ही ऐसे मामलों के संदर्भ में निर्वाचन आयोग की शक्तियों में वृद्धि के साथ, जन प्रतिनिधियों के उत्तरदायित्व के निर्धारण हेतु आवश्यक विधायी सुधार किये जाने चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
गूगल के विरुद्ध अविश्वास की जाँच
प्रिलिम्स के लियेभारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, गूगल पे, गूगल प्ले मेन्स के लियेभारतीय में बाज़ार में अनुचित प्रतिस्पर्द्धा से संबंधित चुनौतियाँ और इनसे निपटने में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) ने दिग्गज इंटरनेट कंपनी गूगल के विरुद्ध भारत में अपने मोबाइल भुगतान एप ‘गूगल पे’ को गलत तरीके से बढ़ावा देने के लिये बाज़ार में अपनी मज़बूत स्थिति का दुरुपयोग करने को लेकर जाँच का आदेश दिया है।
प्रमुख बिंदु
- इस संबंध में जारी आदेश में कहा गया है कि आयोग प्रथम दृष्टया मानता है कि गूगल ने प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 की धारा 4 के विभिन्न प्रावधानों का उल्लंघन किया है, इसलिये इसकी जाँच करना अनिवार्य है।
- ध्यातव्य है कि प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 की धारा 4 किसी भी कंपनी द्वारा बाज़ार में अपनी मज़बूत स्थिति का दुरुपयोग करने से संबंधित है।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) ने महानिदेशक को 60 दिनों के भीतर जाँच समाप्त करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
- कारण
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) द्वारा यह आदेश किसी सूचनादाता द्वारा की गई शिकायत के आधार पर जारी किया गया है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि गूगल द्वारा अलग-अलग अवसरों पर अपने मोबाइल भुगतान एप को बढ़ावा देने के लिये बाज़ार में अपनी मज़बूत स्थिति का दुरुपयोग किया गया है।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) द्वारा ऐसी दो स्थितियों की जाँच की जाएगी, जिसमें पहला है एंड्राइड ओएस स्मार्ट फोन में ‘गूगल पे’ का पहले से इंस्टॉल होना और दूसरा है एप डेवलपर्स द्वारा भुगतान के लिये प्रयोग किये जाने वाला गूगल प्ले स्टोर का इन-एप बिलिंग फीचर।
- यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब पेटीएम (Paytm) समेत कई अन्य भारतीय स्टार्ट-अप्स एक साथ मिलकर दिग्गज कंपनी गूगल का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि गूगल की नीति के मुताबिक ‘गूगल प्ले स्टोर’ पर जो भी एप ‘इन-एप पर्चेज़’ (In-App Purchases) फीचर के माध्यम से अपना डिजिटल कंटेंट बेचेंगे उन्हें अनिवार्य रूप से गूगल प्ले का बिलिंग सिस्टम प्रयोग करना होगा, साथ ही उन्हें 30% शुल्क भी देना होगा।
- इस तरह अत्यधिक शुल्क प्रदान करने से गूगल के प्रतिस्पर्द्धियों की लागत स्वयं ही बढ़ जाती है।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) द्वारा यह आदेश किसी सूचनादाता द्वारा की गई शिकायत के आधार पर जारी किया गया है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि गूगल द्वारा अलग-अलग अवसरों पर अपने मोबाइल भुगतान एप को बढ़ावा देने के लिये बाज़ार में अपनी मज़बूत स्थिति का दुरुपयोग किया गया है।
गूगल पे?
- गूगल पे, प्रसिद्ध टेक कंपनी गूगल द्वारा निर्मित एक मोबाइल भुगतान एप (Mobile Payment App) है, जो कि उपयोगकर्त्ताओं को एक बैंक से दूसरे बैंक में धनराशि भेजने और बिल जमा करने जैसी सुविधाएँ प्रदान करता है।
- भारतीय डिजिटल पेमेंट बाज़ार में इसका मुकाबला सॉफ्टबैंक समर्थित पेटीएम (Paytm) और वाॅलमार्ट के फोन पे (PhonePe) जैसे एप से है।
गूगल प्ले?
- गूगल प्ले, एंड्रॉइड संचालित स्मार्टफोन, टैबलेट, टीवी और इसी तरह के उपकरणों पर उपयोग किये जाने वाले एप्स, किताबों, फिल्मों तथा अन्य डिजिटल कंटेंट को खरीदने एवं डाउनलोड करने के लिये एक प्रकार का ऑनलाइन स्टोर या एंड्राइड बाज़ार है, जिसे गूगल द्वारा बनाया गया है।
गूगल के विरुद्ध अविश्वास के अन्य मामले
- ध्यातव्य है कि इससे पूर्व मई माह में भी गूगल पर अपने मोबाइल भुगतान एप का अनुचित उपयोग करने का आरोप लगाया गया था, जिस मामले में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) ने गूगल के विरुद्ध फैसला दिया था। हालाँकि वर्तमान जाँच में गूगल के मोबाइल भुगतान एप के साथ-साथ गूगल प्ले के बिलिंग सिस्टम की भी जाँच की जाएगी।
- पिछले वर्ष CCI ने गूगल पर एक अन्य मामले में जाँच प्रारंभ की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि गूगल मोबाइल निर्माता कंपनियों द्वारा एंड्रॉइड मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम (Android Mobile Operating System) के वैकल्पिक संस्करणों को चुनने की क्षमता को कम करने के लिये बाज़ार में अपनी मज़बूत स्थिति का प्रयोग करता है।
- वर्ष 2018 में CCI ने गूगल पर ‘ऑनलाइन सर्च में पक्षपात’ करने के मामले में 136 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना लगाया था, हालाँकि यह मामला अभी भी नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित है।
- विदित हो कि गूगल एकमात्र कंपनी नहीं है, जिसे अविश्वास के मामलों की जाँच का सामना करना पड़ रहा है। जहाँ एक ओर गूगल को अपने प्रतिस्पर्द्धात्मक व्यवहार के लिये यूरोपीय संघ में जाँच का सामना करना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका में भी कई बार गूगल के विरुद्ध अविश्वास को लेकर जाँच की गई है।
भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI)
- यह भारत सरकार के तहत सांविधिक निकाय है, जिसका गठन मुख्य तौर पर प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के प्रावधानों को सही ढंग से लागू करने के लिये 14 अक्तूबर, 2003 को किया गया था।
- इसका मुख्य कार्य ऐसी प्रथाओं को समाप्त करना है, जिनका बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धा और संवर्द्धन शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो। इस तरह यह आयोग उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और भारतीय बाज़ार में व्यापार की स्वतंत्रता बनाए रखने की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग के सदस्यों की कुल संख्या 7 (एक अध्यक्ष और 6 अन्य सदस्य) निर्धारित की गई है, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
व्हाट्सएप द्वारा भारत में UPI सेवा प्रारंभ
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम मेन्स के लिये:भारत में ऑनलाइन भुगतान से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में व्हाट्सएप (फेसबुक की एक इकाई) ने 'भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम' (National Payments Corporation of India- NPCI) द्वारा अनुमोदन के बाद भुगतान सेवाओं की शुरुआत की है।
प्रमुख बिंदु?
- NPCI ने ‘थर्ड पार्टी एप प्रोवाइडर’ (TPA) द्वारा संसाधित एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) लेनदेन की कुल मात्रा पर 30% कैप लगाई है, जिसे जनवरी 2021 से लागू किया गया है। व्हाट्सएप को भी इस नवीन व्यवस्था का पालन करना होगा।
- यह एक ऐसी प्रणाली है जो एक मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से कई बैंक खातों का संचालन, विभिन्न बैंकों की विशेषताओं का समायोजन, निधियों का निर्बाध आवागमन और एक ही अंब्रेला प्रणाली के अंतर्गत व्यापरियों का भुगतान किया जा सकता है।
भारत में व्हाट्सएप UPI:
- लोग UPI समर्थित एप का उपयोग करके किसी को भी व्हाट्सएप पर पैसे भेज सकते हैं।
- यह भारत में पाँच अग्रणी बैंकों आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और जियो पेमेंट्स बैंक के साथ मिलकर कार्य कर रहा है।
- हालांकि, भारत में सभी उपयोगकर्त्ता भुगतान सुविधाओं तक पहुँच स्थापित नहीं कर पाएंगे क्योंकि NPCI ने व्हाट्सएप के UPI उपयोगकर्त्ताओं के आधार का विस्तार क्रमबद्ध तरीके से अधिकतम 20 मिलियन पंजीकृत उपयोगकर्त्ताओं के साथ शुरू करने के निर्देश दिये हैं।
- भारत व्हाट्सएप के सबसे बड़े बाज़ारों में से एक है, जिसने सबसे पहले वर्ष 2018 में अपनी UPI- आधारित भुगतान प्रणाली का परीक्षण शुरू किया और अब वह मौजूदा कंपनियों जैसे कि Paytm, Google Pay, Amazon Pay और PhonePe से प्रतिस्पर्द्धा करेगा।
30% कैप का प्रभाव:
- ये दिशा-निर्देश किसी भी इकाई को संचालन में होने के लिये कुल लेन-देन की मात्रा का 30% से अधिक कैप निर्धारित करते हैं। हालांकि, उक्त बाज़ार हिस्सेदारी से अधिक का पालन करने के लिये संस्थाओं को वर्ष 2023 तक का समय दिया गया है।
- कैप की गणना रोलिंग के आधार पर पूर्ववर्ती तीन महीनों के दौरान UPI में संसाधित लेन-देन की कुल मात्रा के आधार पर की जाएगी।
- UPI लेन-देन की मात्रा में हालिया वृद्धि को देखते हुए, NPCI ने UPI पारिस्थितिकी तंत्र में जोखिमों का विश्लेषण किया और कैप पेश किया।
- UPI ट्रांज़ेक्शन वॉल्यूम पर 30% कैप का विचार पहली बार वर्ष 2019 में NPCI की संचालन समिति की बैठक में लाया गया था, जिसके बाद गैर-बैंकिंग तृतीय-पक्ष एप प्रदाताओं के साथ बढ़ते प्रभुत्त्व की चिंताओं को उठाया गया था।
- अक्तूबर 2019 तक, गूगल पे और फोनपे ने अपने प्लेटफार्मों पर UPI में लगभग 80% लेन-देन की मात्रा का अनुमान लगाया था।
- NPCI को अभी तक UPI इकोसिस्टम के जोखिम का आकलन जारी करना बाकी है, जिसके आधार पर नए मानदंड लाए गए थे और लेन-देन की मात्रा पर नए शुरू किये गए प्रतिबंधों के लिये मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) लाई गई है।
- व्हाट्सएप UPI की शुरुआत के बाद एक अन्य कारण लेन-देन की मात्रा में अचानक वृद्धि से बैंकिंग सुविधाओं पर अतिरिक्त भार बढ़ेगा।
भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम
- यह भारत में सभी खुदरा भुगतान प्रणालियों के लिये एक अंब्रेला संगठन है।
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारतीय बैंक संघ (IBA) के मार्गदर्शन और समर्थन के साथ स्थापित किया गया था।
उद्देश्य:
- सभी खुदरा भुगतान की कई मौजूदा प्रणालियों को एक राष्ट्रव्यापी नीति और मानक व्यापार प्रक्रिया में समेकित और एकीकृत करने हेतु।
- देश भर में आम आदमी को लाभान्वित करने और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये एक सस्ती भुगतान प्रणाली की सुविधा हेतु।
आगे का राह
- भारत में डिजिटल भुगतान अभी भी अपने विकास के चरण में है और इस बिंदु पर किसी भी हस्तक्षेप को उपभोक्ता की पसंद और नवाचार में तेज़ी लाने के लिये बनाया जाना चाहिये। यह विकल्प आधारित और खुला मॉडल इस गति से संचालित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- 30% कैप का उन सैकड़ों लाखों उपयोगकर्ताओं के लिये निहितार्थ है जो अपने दैनिक भुगतान के लिये UPI का उपयोग करते हैं।
स्रोत-द हिंदू
गंगा नदी की जैव विविधता
प्रिलिम्स के लियेभारतीय वन्यजीव संस्थान, गंगा नदी और इससे संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य मेन्स के लियेगंगा नदी की जैव विविधता और उससे संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा गंगा नदी पर किये गए सर्वेक्षण में पाया गया है कि नदी के 49 प्रतिशत हिस्से में उच्च जैव विविधता मौजूद है।
प्रमुख बिंदु
- सर्वेक्षण में पाया गया है कि बीते कुछ वर्षों में गंगा नदी की जैव विविधता में वृद्धि हुई है, जो कि गंगा नदी के अच्छे स्वास्थ्य और गिरते प्रदूषण स्तर का प्रमुख घोतक है। इस सर्वेक्षण में गंगा नदी की सहायक नदियों को शामिल नहीं किया गया था।
- ध्यातव्य है कि गंगा और इसकी सहायक नदियाँ भारत के 11 राज्यों से होकर बहती हैं और देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 26.3 प्रतिशत हिस्सा कवर करती हैं, किंतु गंगा नदी (जिसमें सहायक नदियाँ शामिल नहीं हैं) मुख्यतः पाँच राज्यों - उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है।
- सर्वेक्षण के मुताबिक, लोगों के बीच यह गलत धारणा है कि गंगा में ऐसे कुछ क्षेत्र हैं जहाँ जैव विविधता नहीं है, जबकि अध्ययन में यह पाया गया है कि संपूर्ण गंगा नदी में जैव विविधता मौजूद है और तकरीबन 49 प्रतिशत हिस्से में जैव विविधता का स्तर काफी उच्च है।
- उच्च जैव विविधता वाले संपूर्ण क्षेत्र में से तकरीबन 10 प्रतिशत क्षेत्र राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों जैसे- उत्तर प्रदेश में हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य और बिहार में विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन अभयारण्य आदि के आस-पास स्थित है।
- उच्च जैव विविधता वाले संपूर्ण क्षेत्र को छः हिस्सों में विभाजित किया गया है- देवप्रयाग से ऋषिकेश (61 किमी), मखदुमपुर से नरौरा (147 किमी.), भिटौरा से गाजीपुर (454 किमी.), छपरा से कहलगाँव (296 किमी.), साहिबगंज से राजमहल (34 किमी.) और बहरामपुर से बराकपुर (246 किमी.)।
- सर्वेक्षण में पाया गया है कि कई प्रमुख जलीय जीव और उनकी प्रजातियाँ जो कुछ वर्ष पूर्व गायब हो गई थीं,अब पुनः गंगा नदी में पाई जाने लगी हैं।
- सीबोल्ड (Seibold), जो कि पानी के साँप की एक प्रजाति है, तकरीबन 80 वर्ष पूर्व गायब हो गई थी, किंतु अब इसे गंगा नदी में पुनः देखा जा सकता है।
- इंडियन स्कीमर (Indian Skimmer), जो कि जलीय पक्षी है, को भी गंगा नदी में कई वर्ष बाद देखा गया है।
- कई अन्य जलीय प्रजातियाँ, गंगा नदी की सहायक नदियों से मुख्य नदी की ओर आ रही हैं, जो कि स्पष्ट तौर पर जल की गुणवत्ता में सुधार का एक संकेत है।
सर्वेक्षण संबंधी मुख्य बिंदु
- यह सर्वेक्षण भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की ओर से किया जा रहा है, जो जलशक्ति मंत्रालय द्वारा शुरू की गई प्रमुख परियोजनाओं में से एक है। इस सर्वेक्षण का पहला चरण वर्ष 2017-2019 के बीच था।
- इस सर्वेक्षण के दौरान गंगा नदी की जैव विविधता का अध्ययन करने के लिये कुछ प्रमुख जलीय और अर्द्ध-जलीय प्रजातियों जैसे कि गंगेटिक डॉल्फिन, घड़ियाल, ऊदबिलाव, कछुए और विभिन्न प्रजातियों के जल पक्षियों आदि का एक संकेतक के रूप में प्रयोग किया गया है।
गंगा नदी और उसकी जैव विविधता
- गंगा नदी एशिया की सबसे बड़ी और प्रमुख नदियों में से एक है, जो कि उत्तराखंड के गोमुख से लेकर बंगाल की खाड़ी तक लगभग 2,500 किलोमीटर तक बहती है और भारत के तकरीबन 26 प्रतिशत (8,61,404 वर्ग किमी.) भू-भाग को कवर करती है।
- इस नदी की महत्ता को इसी बात से समझा जा सकता है कि यह देश की लगभग 43 प्रतिशत जनसंख्या (2001 की जनगणना के अनुसार 448.3 मिलियन) को सहायता प्रदान करती है।
- गंगा नदी को विभिन्न प्रकार की दुर्लभ जलीय प्रजातियों का घर माना जाता है, इसमें गंगेटिक डॉल्फिन, ऊदबिलाव, घड़ियाल, दलदली मगरमच्छ, एस्टुरीन मगरमच्छ और कछुए आदि शामिल हैं। इसके अलावा इस नदी में मछलियों की अलग-अलग 143 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
चुनौतियाँ
- तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या, जीवन के निरंतर ऊँचे होते मानकों तथा औद्योगीकरण और शहरीकरण आदि ने भारत समेत विश्व भर के जल संसाधनों विशेष रूप से नदियों को काफी अधिक प्रभावित किया है, गंगा नदी भी इससे अछूती नहीं रह सकी है।
- कई अध्ययनों में सामने आया है कि जल की गुणवत्ता में गिरावट के कारण गंगा नदी का जल कई क्षेत्रों में बुनियादी उपयोग के लिये भी उपयुक्त नहीं रह गया है।
- बाँध और बैराज के निर्माण तथा बालू खनन आदि के कारण गंगा नदी की स्थिति में काफी परिवर्तन आया है, जिससे नदी को जैव विविधता के नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG)
- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) राष्ट्रीय गंगा परिषद की कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य करता है, जिसे अगस्त 2011 को सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक सोसाइटी के रूप में पंजीकृत किया गया था।
- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के प्रमुख कार्यों में राष्ट्रीय गंगा परिषद के कार्यक्रम को क्रियान्वित करना, विश्व बैंक द्वारा समर्थित गंगा नदी घाटी परियोजना का क्रियान्वयन और ऐसे समस्त कार्य करना जो राष्ट्रीय गंगा परिषद के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये आवश्यक हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का वार्षिक प्रस्ताव
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र महासभा, प्रस्ताव 1540 मेन्स के लिये:आतंकवाद को रोकने हेतु भारत द्वारा किये जाने वाले प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) की पहली समिति में सर्वसम्मति से आतंकवाद-रोधी मुद्दे पर भारत के वार्षिक प्रस्ताव को अपनाया गया।
मुख्या बिंदु
- 75 से अधिक देशों ने प्रस्ताव को समर्थन दिया तथा इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से (एक वोट के बिना) अपनाया गया।
- भारत, राज्य प्रायोजित सीमा-पार आतंकवाद से पीड़ित रहा है। भारत अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिये इस गंभीर खतरे को उजागर करने और आतंकवादी समूहों द्वारा बड़े पैमाने पर विनाशकारी हथियारों के अधिग्रहण को लेकर चिंता ज़ाहिर करने में सबसे आगे रहा है।
- भारत ने महासभा में इस मुद्दे पर चर्चा करने और सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1540 को अपनाने का आह्वान किया है।
- सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 1540 को वर्ष 2004 में अपनाया था।
- इस प्रस्ताव के अनुसार, सभी सभी देश गैर-राज्य प्राधिकारी (Non-State Actors) विशेष रूप से आतंकवादी उद्देश्यों से प्रेरित व्यक्तियों या संगठनों को परमाणु, रासायनिक या जैविक हथियारों और उनके वितरण के साधनों को विकसित करने, अधिग्रहण, निर्माण, परिवहन, हस्तांतरण या उपयोग करने आदि के संबंध में किसी भी प्रकार का समर्थन प्रदान करने से बचेंगे।
- यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि संयुक्त राष्ट्र, ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक कन्वेंशन’ (Comprehensive Convention on International Terrorism) पर अभी तक सहमत नहीं हुआ है।
- वर्ष 1996 में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये एक व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करने के उद्देश्य से भारत ने UNGA को "अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक कन्वेंशन " (CCIT) को अपनाने का प्रस्ताव दिया।
सामूहिक विनाश के हथियार
(Weapon of Mass Destruction):
- WMD ऐसे हथियार को संदर्भित करता है जिसमें बड़े पैमाने पर मौत और विध्वंस को उकसाने की क्षमता है। शत्रु के हाथों में इसकी उपस्थिति को एक गंभीर खतरा माना जा सकता है।
- सामूहिक विनाश के आधुनिक हथियार परमाणु, जैविक या रासायनिक रूप में हैं, जिनको प्रायः सामूहिक रूप से NBC हथियारों के रूप में संदर्भित किया जाता है।
- WMD के प्रसार को नियंत्रित करने के प्रयासों में वर्ष 1968 की परमाणु अप्रसार संधि, वर्ष 1972 का जैविक हथियार सम्मेलन और वर्ष 1993 का रासायनिक हथियार सम्मेलन शामिल हैं।
- भारत वर्ष 1968 की परमाणु अप्रसार संधि का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।
- भारत ने सामूहिक विनाश के हथियारों और उनके वितरण प्रणालियों के संबंध में गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने के लिये एक अधिनियम बनाया है, जिसे जनसंहारक हथियारों और उनकी वितरण प्रणाली (गैरकानूनी गतिविधि निषेध) अधिनियम, 2005/The Weapons of Mass Destruction and Their Delivery Systems (Prohibition of unlawful activities) Act, 2005 के रूप में जाना जाता है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा
(United Nations General Assembly)
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर (UN Charter) के तहत वर्ष 1945 में इसकी स्थापना की गई।
- यह महासभा संयुक्त राष्ट्र में विचार-विमर्श और नीति निर्माण जैसे मुद्दों पर प्रतिनिधि संस्था के रूप में काम करती है।
- 192 सदस्यों से बनी संयुक्त राष्ट्र महासभा अपने चार्टर के तहत कवर किये गए अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बहुआयामी और बहुपक्षीय चर्चा के लिये एक बेहतरीन मंच प्रदान करती है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली समिति
- प्रथम समिति (निरस्त्रीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा) निरस्त्रीकरण, वैश्विक चुनौतियों और शांति के लिये खतरों से संबंधित है जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को प्रभावित करती है तथा अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था में चुनौतियों के समाधान का प्रयास करती है।
- समिति संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण आयोग और निरस्त्रीकरण पर जिनेवा-आधारित सम्मेलन के साथ घनिष्ठ सहयोग से काम करती है।