ईज 2.0 सूचकांक
प्रिलिम्स के लिये:ईज 2.0 सूचकांक, भारतीय बैंक संघ मेन्स के लिये:सरकार द्वारा बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों से जुड़े प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा ‘ईज़ 2.0 बैंकिंग सुधार सूचकांक’ (EASE 2.0 Banking Reforms Index) में अच्छा प्रदर्शन करने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks- PSBs) को सम्मानित किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- EASE2.0 सूचकांक में ‘सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले बैंकों’ में पहले तीन स्थानों पर क्रमशः बैंक ऑफ बड़ौदा, भारतीय स्टेट बैंक और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (पंजाब नेशनल बैंक में विलय से पूर्व) को सम्मानित किया गया।
- ‘सुधार दर्ज करने’ (Top Improver) की श्रेणी में शीर्ष के तीन बैंकों में ‘बैंक ऑफ महाराष्ट्र’, ‘सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया’ और कॉर्पोरेशन बैंक (यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में विलय से पूर्व) को क्रमशः पहला,दूसरा और तीसरा स्थान प्राप्त हुआ।
- मार्च 2019 और मार्च 2020 के बीच सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रदर्शन में 37%की वृद्धि देखी गई है साथ ही इसी दौरान PSBs का औसत ईज़ सूचकांक स्कोर 49.2 से बढ़कर 67.4 (100 में से) हो गया है।
- इस दौरान ईज़ सुधार एजेंडे के छह विषयों में बैंकों द्वारा उल्लेखनीय प्रगति देखने को मिली है, जिसमें से सबसे अधिक सुधार ‘ज़िम्मेदार बैंकिंग', 'प्रशासन एवं एचआर', 'एमएसएमई के लिये उद्यमी मित्र के रूप में PSBs' (PSBs as Udyamimitra for MSMEs) और 'ऋण वितरण' जैसे विषयों में देखने को मिला है।
- इस अवसर पर केंद्रीय वित्त मंत्री ने ईज़ सुधारों के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा शुरू की गई डोर स्टेप बैंकिंग सुविधा का उद्घाटन किया।
‘ईज़ बैंकिंग सुधार सूचकांक’ (EASE Banking Reforms Index):
- ईज़ (Enhanced Access and Service Excellence-EASE) सूचकांक ‘भारतीय बैंक संघ’ (Indian Banks’ Association-IBA) और बाॅस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (Boston Consulting Group- BCG) के सहयोग से तैयार किया जाता है।
- ईज़ सुधारों (EASE Reforms) का उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks) में संस्थागत रूप से स्पष्ट एवं स्मार्ट बैंकिंग प्रणाली को लागू करना है।
- ईज़ बैंकिंग सुधार सूचकांक की शुरुआत वर्ष 2018 में की गई थी।
- ईज़ 2.0 में 6 विषयों (जिम्मेदार बैंकिंग, ग्राहक जवाबदेही, उद्दयममित्र के रूप में पीएसबी, गहन वित्तीय समावेशन, ऋण वितरण प्रशासन एवं एचआर) को शामिल किया गया था।
प्रमुख सुधार और उपलब्धियाँ (मार्च 2018 से मार्च 2020 के बीच) :
- लगभग 4 करोड़ सक्रिय मोबाइल और इंटरनेट बैंकिंग उपभोक्ताओं के साथ मोबाइल तथा इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से वित्तीय लेन-देन में 140% की वृद्धि।
- डिजिटल माध्यमों से वित्तीय लेन-देन में लगभग 50% की वृद्धि।
- वर्तमान में देश के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय बैंक कॉल सेंटर्स में तेलुगु, मराठी, कन्नड़, तमिल, मलयालम, गुजराती, बंगाली जैसी 13 क्षेत्रीय भाषाओँ में उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान।
- शिकायत निवारण औसत समय लगभग 9 दिनों से घटाकर 5 दिन करने में सफलता।
- समर्पित विपणन बल और बाहरी साझेदारी के माध्यम से ग्राहक संपर्क में महत्त्वपूर्ण सुधार। समर्पित विपणन कर्मचारियों की संख्या 8,920 से बढ़कर 18,053 हो गई है।
- PSBs द्वारा लगभग 23 करोड़ मूल बचत खाता ग्राहकों को RuPay क्रेडिट कार्ड जारी किये गए हैं।
- PSBs द्वारा खाता खोलना, नकद जमा, नकद निकासी, धन हस्तांतरण जैसी 23 शाखा-समतुल्य सेवाएँ बैंक मित्रों के माध्यम से आसानी से उपलब्ध कराई गई हैं।
ऋण वितरण संबंधी सुधार:
- समर्पित सेल्सफोर्स और मार्केटिंग समझौतों के माध्यम से खुदरा और MSME ऋण वितरण में लगभग पांच गुना वृद्धि (1.5 लाख से बढ़कर 8.3 लाख ऋण)।
- खुदरा ऋण प्राप्त करने के लिये लगने वाले औसत समय में 67% कम की कमी (औसत 30 दिनों से घटाकर लगभग 10 दिन)।
- PSBs द्वारा ऋण की शीघ्र वसूली के लिये ऑनलाइन ओटीएस (OST), e-Bक्रय, ई-डीआरटी (e-DRT) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म को अपनाया गया है, वर्तमान में 88% वन टाइम सेटलमेंट की निगरानी समर्पित आईटी सिस्टम के द्वारा की जाती है।
- PSBs द्वारा MSME और खुदरा क्षेत्र में डिजिटल ऋण उपलब्ध कराने के लिये psbloansin59minutes.com और ‘व्यापार प्राप्य बट्टाकरण प्रणाली’ (Trade Receivables Discounting System- TReDS) जैसे नए माध्यमों को अपनाया गया है।
- अधिकांश PSBs द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी आधारित पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning System- EWS) को अपनाया गया है, इसके माध्यम से बैंक समय रहते दबावग्रस्त खातों (Stressed Accounts) पर कार्रवाई करने में सक्षम हुए हैं।
COVID-19 से निपटने में PSBs की भूमिका:
- COVID-19 के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में वित्तीय आपूर्ति को सुनिश्चित करने में PSBs ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- COVID-19 के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में 80,000 से अधिक बैंक शाखाएँ सक्रिय रहीं, साथ ही माइक्रो एटीएम के माध्यम से आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (Aadhaar Enabled Payment System- AEPS) के लेन-देन में तीन गुना वृद्धि देखी गई।
- लगभग 75,000 से अधिक बैंक मित्रों के माध्यम से बैंकिंग पहुँच को बढ़ाया गया।
स्मार्ट और तकनीकी सक्षम बैंकिंग:
- PSBs द्वारा सूक्ष्म उद्यमों और ग्राहकों के लिये डिजिटल व्यक्तिगत ऋण प्रदान करने हेतु ‘ई-शिशु मुद्रा’ (eShishu Mudra) योजना की शुरुआत की गई है।
- PSBs ने फिनटेक और ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ साझेदारी के माध्यम से ग्राहक-ज़रुरत के आधार पर ऋण सेवाओं की शुरुआत की है।
बैंकों की वित्तीय स्थिति पर ESAE सुधारों का प्रभाव:
- EASE सुधारों के लागू होने के बाद से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सकल गैर-निष्पादित संपत्तियों की दर में गिरावट देखने को मिली है (मार्च-2018 के 68.96 लाख करोड़ रुपए से घटकर मार्च-2020 में 6.78 लाख करोड़ रुपए )।
- वित्तीय गड़बड़ियों के मामलों में गिरावट।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान 2.27 लाख करोड़ रुपए की रिकवरी।
- संपत्ति गुणवत्ता में सुधार [सकल एनपीए अनुपात 7.97% (मार्च 2018) से घटकर 3.75% (मार्च 2020) हो गया]।
- शीघ्र सुधारात्मक कार्रवाई (Prompt Corrective Action-PCA) ढाँचे के तहत कुल PSBs की संख्या घटकर मात्र 3 रह गई।
डोरस्टेप बैंकिंग सेवा (Doorstep Banking Service):
- केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा इस अवसर पर ईज़ सुधारों के तहत डोरस्टेप बैंकिंग सेवा का अनावरण भी किया गया।
- डोरस्टेप बैंकिंग सेवा के तहत ग्राहकों को कॉल सेंटर, वेब पोर्टल या मोबाइल एप के माध्यम से उनके घर तक बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराई जाएंगी।
- इसके तहत वर्तमान में केवल गैर-वित्तीय सेवाएँ, जैसे-चेक/डिमांड ड्राफ्ट, आयकर रिटर्न/ जीएसटी चालान, खाता विवरण, गैर-व्यक्तिगत चेक बुक की डिलीवरी, डिमांड ड्राफ्ट, सावधि जमा रसीद की डिलीवरी आदि उपलब्ध कराई जाएंगी।
- वित्तीय सेवाओं की शुरुआत अक्टूबर 2020 से की जाएगी।
- ये सेवाएँ देश भर के 100 केंद्रों पर चयनित सेवा प्रदाताओं द्वारा तैनात डोरस्टेप बैंकिंग एजेंटों द्वारा प्रदान की जाएंगी।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के ग्राहक बहुत ही कम शुल्क पर इन सेवाओं का लाभ उठा सकेंगे।
निष्कर्ष :
ईज़ सुधारों के माध्यम से पिछले कुछ वर्षों में बैंकिंग क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखने को मिली है। किसी भी देश के विकास में बैंकों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है। नवीन तकनीकों और स्थानीय भाषा के प्रयोग को बढ़ावा देकर अधिक-से-अधिक लोगों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिये।
स्रोत: पीआईबी
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना
प्रिलिम्स के लियेप्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना मेन्स के लियेप्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से संबंधित विभिन्न तथ्य |
चर्चा में क्यों?
10 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल माध्यम से प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana-PMMSY) का शुभारंभ किया। इस योजना के साथ-साथ प्रधानमंत्री ने ई-गोपाला एप भी लॉन्च किया, जो किसानों के प्रत्यक्ष उपयोग के लिये एक समग्र नस्ल सुधार, बाज़ार और सूचना पोर्टल है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने बिहार में मछली पालन और पशुपालन क्षेत्रों में भी कई पहलों की शुरुआत की।
प्रमुख बिंदु
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना
- PMMSY मत्स्य क्षेत्र पर केंद्रित एक सतत् विकास योजना है, जिसे आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2024-25 तक (5 वर्ष की अवधि के दौरान) सभी राज्यों/संघ शासित प्रदेशों में कार्यान्वित किया जाना है।
- इस योजना पर अनुमानत: 20,050 करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा।
- PMMSY के अंतर्गत 20,050 करोड़ रुपए का निवेश मत्स्य क्षेत्र में होने वाला सबसे अधिक निवेश है।
- इसमें से लगभग 12,340 करोड़ रुपए का निवेश समुद्री, अंतर्देशीय मत्स्य पालन और जलीय कृषि में लाभार्थी केंद्रित गतिविधियों पर तथा 7,710 करोड़ रुपए का निवेश फिशरीज़ इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिये प्रस्तावित है।
- लक्ष्य:
- वर्ष 2024-25 तक मत्स्य उत्पादन में अतिरिक्त 70 लाख टन की वृद्धि करना,
- वर्ष 2024-25 तक मत्स्य निर्यात से होने वाली आय को 1,00,000 करोड़ रुपए तक करना,
- मछुआरों और मत्स्य किसानों की आय को दोगुनी करना,
- पैदावार के बाद होने वाले नुकसान को 20-25 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत करना
- मत्स्य पालन क्षेत्र और सहायक गतिविधियों में 55 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर पैदा करना।
- उद्देश्य:
- आवश्यकतानुरूप निवेश करते हुए मत्स्य समूहों और क्षेत्रों के निर्माण पर केंद्रित।
- मुख्य रूप से रोज़गार सृजन गतिविधियों जैसे समुद्री शैवाल और सजावटी मछली की खेती पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
- यह मछलियों की गुणवत्ता वाली प्रजातियों की नस्ल तैयार करने तथा उनकी विभिन्न प्रजातियाँ विकसित करने, महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के विकास और विपणन नेटवर्क आदि पर विशेष ध्यान केंद्रित करेगा।
- नीली क्रांति योजना की उपलब्धियों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से कई नए हस्तक्षेपों की परिकल्पना की गई है जिसमें मछली पकड़ने के जहाज़ों का बीमा, मछली पकड़ने वाले जहाज़ों/नावों के उन्नयन हेतु सहायता, बायो-टॉयलेट्स, लवण/क्षारीय क्षेत्रों में जलीय कृषि, मत्स्य पालन और जलीय कृषि स्टार्ट-अप्स, इन्क्यूबेटर्स, एक्वाटिक प्रयोगशालाओं के नेटवर्क और उनकी सुविधाओं का विस्तार, ई-ट्रेडिंग/विपणन, मत्स्य प्रबंधन योजना आदि शामिल है।
मत्स्य पालन क्षेत्र से संबंधित अन्य उद्घाटन
- एक्वाटिक डिज़ीज़ रेफरल प्रयोगशाला
- ये सुविधाएँ मत्स्य किसानों के लिये गुणवत्ता और सस्ती दर पर मत्स्य बीज की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करके मत्स्य उत्पादन और उसकी उत्पादकता बढ़ाने में मदद करेंगी और मछलियों के रोग निदान के साथ-साथ पानी और मिट्टी की परीक्षण सुविधाओं की आवश्यकता को भी पूरा करेंगी।
- ई-गोपाला एप
- ई-गोपाला एप किसानों के प्रत्यक्ष उपयोग के लिये एक समग्र नस्ल सुधार, बाज़ार और सूचना पोर्टल है।
- यह निम्नलिखित पहलुओं पर समाधान प्रदान करेगा:
- देश में पशुधन के सभी रूपों (वीर्य, भ्रूण, आदि) में रोग मुक्त जीवाणु (जर्मप्लाज़्म) को खरीदना और बेचना,
- गुणवत्तापूर्ण प्रजनन सेवाओं की उपलब्धता (कृत्रिम गर्भाधान, पशु प्राथमिक चिकित्सा, टीकाकरण, उपचार आदि) और पशु पोषण के लिये किसानों का मार्गदर्शन करना,
- उचित आयुर्वेदिक दवा/एथनो पशु चिकित्सा दवा का उपयोग करते हुए जानवरों का उपचार आदि की जानकारी देना।
- पशु किसानों को अलर्ट भेजना (टीकाकरण, गर्भावस्था निदान आदि के लिये नियत तारीख पर)
- किसानों को क्षेत्र में विभिन्न सरकारी योजनाओं और अभियानों के बारे में सूचित करना।
- वीर्य केंद्र (सीमेन स्टेशन)
- प्रधानमंत्री द्वारा बिहार के पूर्णिया में ‘राष्ट्रीय गोकुल मिशन’ के तहत स्थापित की गई अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त वीर्य केंद्र (सीमेन स्टेशन) प्रमुख है।
- बिहार सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई 75 एकड़ भूमि पर 84.27 करोड़ रुपए के निवेश से यह केंद्र स्थापित किया गया है।
- यह सरकारी क्षेत्र के सबसे बड़े वीर्य केंद्रों में से एक है जिसकी उत्पादन क्षमता 50 लाख वीर्य नमूना प्रति वर्ष है।
- यह वीर्य केंद्र बिहार की स्वदेशी नस्लों के विकास एवं संरक्षण को भी नया आयाम देगा और इसके साथ ही पूर्वी एवं पूर्वोत्तर राज्यों की पशु वीर्य की मांग को पूरा करेगा।
- IVF (In vitro fertilization-IVF) लैब
- शत-प्रतिशत अनुदान सहायता के ज़रिये देश भर में कुल 30 ETT और IVF लैब (प्रयोगशालाएँ) स्थापित की जा रही हैं।
- ये लैब देशी नस्लों के बेहतरीन पशुओं का वंश बढ़ाने और इस प्रकार दूध उत्पादन एवं उत्पादकता को कई गुना बढ़ाने की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
- कृत्रिम गर्भाधान में लिंग पृथक्कृत वीर्य का उपयोग
- कृत्रिम गर्भाधारण ‘AI’ (Artificial Insemination) में लिंग पृथक्कृत वीर्य के उपयोग के ज़रिये केवल मादा बछड़ों का ही जन्म सुनिश्चित किया जा सकता है (90% से भी अधिक सटीकता के साथ)।
- किसान के घर की चौखट पर IVF तकनीक
- इससे अत्यंत तीव्र दर से अधिक प्रजनन क्षमता वाले पशुओं की संख्या को कई गुना बढ़ाने की प्रौद्योगिकी का प्रचार-प्रसार होगा क्योंकि इस प्रौद्योगिकी के उपयोग से एक मादा एक वर्ष में 20 बछड़ों को जन्म दे सकती है।
स्रोत: PIB
भिक्षावृत्ति को अपराध की श्रेणी से बाहर रख सकती है रेलवे
प्रिलिम्स के लिये:रेलवे अधिनियम, 1989; बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 मेन्स के लिये:भारत में भिक्षावृत्ति की समस्या, भिक्षावृत्ति से संबंधित कानून |
चर्चा में क्यों?
रेलगाड़ियों/रेलवे स्टेशनों/रेलवे परिसरों पर भीख मांगना और धूम्रपान करना अपराध की श्रेणी से बाहर हो सकता है। इसके लिये रेलवे बोर्ड एक प्रस्ताव बना कर कैबिनेट से पास कराने की प्रक्रिया में है। रेलवे ने इस तरह का प्रस्ताव कैबिनेट सचिवालय के उस निर्देश के बाद तैयार किया है, जिसमें वैसे नियम-कानूनों को निरस्त करने को कहा गया है, जिसमें छोटी मोटी गलती के लिये भी जेल भेजा जाता है या जुर्माना वसूला जाता है।
प्रमुख बिंदु:
- रेलवे अधिनियम, 1989 के सेक्शन-144 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति रेलगाड़ी/रेलवे प्लेटफॉर्म/रेलवे परिसर में भीख मांगता पकड़ा जाता है तो उस पर 1,000 रुपए तक का ज़ुर्माना या एक वर्ष तक की कैद या फिर दोनों हो सकते हैं।
- रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा-167 के अंतर्गत रेलगाड़ी/रेलवे प्लेटफॉर्म/ स्टेशन परिसर में धूम्रपान करने पर जेल की सजा का प्रावधान है।
- वर्ष 2018 में राष्ट्रीय राजधानी में भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने वाले एक कानून को रद्द करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि भीख मांगने को आपराधिक बनाना इस समस्या से निपटने के लिये एक गलत दृष्टिकोण है।
निर्णय का निहितार्थ
- भिक्षावृत्ति को कानूनी रूप से अपराध घोषित करने के बावजूद भिक्षावृत्ति की समस्या में कमी नहीं हुई है।
- सामाजिक अधिकार कार्यकर्ता लंबे समय से एक ऐसे कानून की माँग करते आ रहे हैं जिसमें भिखारियों को अपराधी मानने की बजाय उनके पुनर्वास पर ज़ोर दिया जाए।
- इस निर्णय को रेल परिसर में भिक्षावृत्ति को बढ़ावा देने वाला नहीं समझा जाना चाहिये। यह केवल मानवीय आधार पर किया जा रहा है। रेलवे पुलिस फोर्स द्वारा पहले से ज्यादा निगरानी रखी जाएगी तथा रेलवे परिसर में भीख मांगने वालों को बाहर किया जाएगा।
भारत में भिक्षावृत्ति की समस्या
- भिक्षावृत्ति भारत में सबसे गंभीर सामाजिक मुद्दों में से एक है। अपनी तीव्र आर्थिक वृद्धि के बावजूद भारत में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की अधिक संख्या देश में भिखारियों की संख्या में वृद्धि को प्रेरित करती है ।
- शारीरिक असमर्थता के चलते गरीबी के कारण आजीविका कमाने के लिये कुछ लोग भीख मांगते हैं। कुछ मामलों में पूरा परिवार ही भीख मांगने में सम्मिलित होता है।
- भिक्षावृत्ति देश में एक बड़े रैकेट के रूप में संचालित है। वास्तव में बड़े शहरों एवं महानगरों में भीख मांगने वाले गिरोह हैं।
भारत में भिक्षावृत्ति से संबंधित कानून
- भारत में भिक्षावृत्ति की रोकथाम और नियंत्रण के लिये कोई संघीय कानून नहीं है। लगभग 22 राज्यों ने बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 को अपनाया था, जो भिखारी आश्रयगृहों में तीन से दस वर्ष तक की सजा का प्रावधान करता है।
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 24 (1) के अनुसार, जो कोई व्यक्ति किशोर या बच्चे को भीख मांगने के लिये नियुक्त करता है या उसका उपयोग करता है या किसी किशोर द्वारा भीख मांगने का कारण बनता है, उसके लिये तीन वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-363A एक ऐसे व्यक्ति के लिये दंड का प्रावधान करती है जो भीख मांगने के लिये नाबालिग का अपहरण करता है या उसके साथ छेड़छाड़ करता है।
आगे की राह
- सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के आधार पर एक केंद्रीय कानून बनाया जाना चाहिये। इस संदर्भ में 2016 में केंद्र सरकार ने पहला प्रयास ‘The Persons in Destitution (Protection, Care, Rehabilitation) Model Bill, 2016’ लाकर किया था। इस पर फिर से काम किये जाने की आवश्यकता है।
- गरीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी जैसी समस्याओं से मज़बूर एवं गंभीर बिमारियों से ग्रसित लोगों तक मौलिक सुविधाओं की पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिये। साथ ही समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये कौशल प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
- संगठित तौर पर चलने वाले भिक्षावृत्ति रैकेट्स को मानव तस्करी और अपहरण जैसे अपराधों के साथ जोड़ कर देखा जाना चाहिये। इससे निपटने के लिये राज्यों के बीच सूचनाएँ साझा करने हेतु एक तंत्र की भी आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
COVID-19 से संबंधित तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के लिये RBI द्वारा एक संकल्प योजना
प्रिलिम्स के लियेके.वी. कामथ समिति, इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च मेन्स के लियेCOVID-19 के मद्देनज़र संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था में सुधार लाने हेतु किये गए आधिकारिक प्रयास |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 26 क्षेत्रों में COVID-19 के मद्देनज़र तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के समाधान के लिये पाँच वित्तीय अनुपात (Financial Ratios) और क्षेत्र-विशिष्ट सीमाएँ निर्दिष्ट की हैं।
प्रमुख बिंदु:
- भारतीय रिज़र्व बैंक की यह संकल्प योजना (Resolution Plan) के.वी. कामथ समिति की सिफारिशों पर आधारित है।
के.वी. कामथ समिति:
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने COVID-19 से प्रभावित ऋणों के पुनर्गठन पर के. वी. कामथ की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था।
- इस समिति को कॉर्पोरेट ऋणों के एकमुश्त पुनर्गठन के लिये मापदंडों की सिफारिश करने का कार्य सौंपा गया था।
- इस समिति ने उन सभी खातों के लिये क्षेत्र-विशिष्ट संकल्प योजना तैयार की है जिनके पास कुल 1500 करोड़ रुपए या इससे अधिक का ऋण बकाया है।
- COVID-19 महामारी से प्रभावित ऋणों के पुनर्गठन में विचार किये जाने वाले पाँच वित्तीय अनुपात निम्नलिखित हैं:
a. समायोजित मूर्त निवल मूल्य और कुल व्यक्तिगत देयता अनुपात (Total Outside Liability to Adjusted Tangible Net Worth Ratio-TOL/TNW): यह अनुपात लंबी अवधि के ऋण, अल्पकालिक ऋण, वर्तमान देनदारियों एवं प्रावधानों को जोड़कर इसमें कर देयता को घटाने के बाद प्राप्त निवल परिणाम में निवेश एवं ऋण के मूर्त निवल मूल्य से विभाजित करने के बाद प्राप्त होता है। यह कंपनी के कुल निवल मूल्य पर कंपनी के वित्तीय लाभ उठाने का संकेत देता है।
b. कुल ऋण और EBIDTA अनुपात (Total debt to EBIDTA Ratio): यह अनुपात कुल ऋण में ब्याज, मूल्यह्रास, कर एवं परिशोधन से पहले अर्जित की गई आय (Earnings Before Interest, Depreciation, Taxes and Amortisation- EBIDTA) से विभाजित करने से प्राप्त परिणाम को दर्शाता है। यह अनुपात किसी कंपनी की नकद स्थिति को उसके ऋण का भुगतान करने का संकेत देता है। उच्च अनुपात का मतलब है कि कंपनी अधिक लाभ की स्थिति में है।
c. चालू अनुपात (Current Ratio): यह अनुपात चालू संपत्ति (Current Assets) में चालू देनदारियों (Current Liabilities) से विभाजित करके प्राप्त किया जाता है। चालू अनुपात एक वर्ष के अंतर्गत कंपनी के अल्पकालिक ऋण एवं अन्य देनदारियों का भुगतान करने की क्षमता को इंगित करता है।
d. ऋण सेवा कवरेज अनुपात (Debt Service Coverage Ratio): यह चालू ऋण का भुगतान करने के लिये उपलब्ध नकदी को दर्शाता है।
e. औसत ऋण सेवा कवरेज अनुपात (Average Debt Service Coverage Ratio) - RBI द्वारा निर्दिष्ट 26 क्षेत्रों में ऑटोमोबाइल, बिजली, पर्यटन, सीमेंट, रसायन, रत्न एवं आभूषण, लॉजिस्टिक्स, खनन, विनिर्माण, रियल एस्टेट एवं शिपिंग आदि शामिल हैं।
- इस ढाँचे के तहत RBI की यह योजना केवल उन उधारकर्त्ताओं के लिये लागू होती है जो COVID-19 से प्रभावित हुए हैं।
- केवल वे उधारकर्त्ता जिन्हें एक मानक के तहत 1 मार्च, 2020 तक 30 दिनों से कम बकाया के साथ वर्गीकृत किया गया था, RBI के इस फ्रेमवर्क के तहत पात्र हैं।
- इस संकल्प योजना में उधारकर्त्ता की COVID-19 के पहले की संचालन एवं वित्तीय स्थिति तथा उनके संचालन एवं वित्तीय प्रदर्शन पर COVID-19 के प्रभाव को भी ध्यान में रखा जाएगा।
श्रेणीबद्ध दृष्टिकोण (Graded Approach):
- ऋण देने वाली संस्थाएँ अपने विवेकानुसार, इस योजना को लागू करते समय उधारकर्त्ताओं पर COVID-19 प्रभाव की गंभीरता के आधार पर एक श्रेणीबद्ध दृष्टिकोण अपना सकती हैं।
- कामथ समिति की सिफारिशों के अनुसार, इन्हें निम्न, मध्यम एवं गंभीर श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- निम्न एवं मध्यम तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के लिये सरलीकृत पुनर्गठन किया जा सकता है जबकि गंभीर तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के मामलों में व्यापक पुनर्गठन की आवश्यकता होगी।
पृष्ठभूमि:
- RBI ने अपनी मौद्रिक नीति रिपोर्ट में COVID-19 से प्रभावित कंपनियों को राहत देने के लिये कई कदम उठाए हैं।
- इसने ऋणदाताओं को गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के रूप में वर्गीकृत किये बिना ऋण के एकमुश्त पुनर्गठन की अनुमति दी है।
- इसने उधारदाताओं को 1 मार्च से 31 मई, 2020 के मध्य जारी होने वाली वाली मासिक किस्तों (EMI) पर तीन महीने के लिये ऋण स्थगन की अनुमति दी। बाद में, इसे 31 अगस्त, 2020 तक तीन महीने के लिये बढ़ा दिया गया।
- ‘इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च’ (India Ratings and Research) की एक रिपोर्ट के अनुसार, रियल एस्टेट, एयरलाइंस, होटल एवं अन्य क्षेत्रों से ऋण के एक उच्च अनुपात का पुनर्गठन किया गया था जिसमें सबसे बड़ा योगदान बुनियादी ढाँचे, बिजली एवं विनिर्माण से था।
- इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी है जो भारत के क्रेडिट बाज़ार के बारे में क्रेडिट राय प्रदान करती है।
- इस रणनीति के तहत बैंकों द्वारा 8.4 लाख करोड़ रुपए तक के ऋण पुनर्गठन की संभावना है।
- वित्त वर्ष 2021 में कॉरपोरेट क्षेत्र से पुनर्गठन मात्रा बैंकिंग ऋण की 3% से 5.8% के बीच हो सकती है जिसकी राशि 3.3-6.3 लाख करोड़ रुपए होगी।
- RBI की इस घोषणा के बाद कम-से-कम 210,000 करोड़ रुपए (बैंक ऋण का 1.9%) के गैर-कॉर्पोरेट ऋणों के पुनर्गठन की संभावना है जो अन्यथा गैर-निष्पादित परिसंपत्ति श्रेणी में चले गए होंगे।
आगे की राह:
- ऋण पुनर्गठन एक अस्थायी कदम होना चाहिये क्योंकि इसे लंबे समय तक जारी रखने से मुद्रास्फीति में वृद्धि, मुद्रा संकट एवं खराब ऋणों के संचय के कारण वित्तीय अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है। यह महत्त्वपूर्ण है कि COVID-19 के बाद विनियामक उपायों को बहुत सावधानीपूर्वक एवं व्यवस्थित तरीके से लागू किया जाना चाहिये जिससे वित्तीय क्षेत्र नए मानदंडों के रूप में नियामक छूटों पर भरोसा किये बिना सामान्य कामकाज पर लौट सके।
स्रोत: द हिंदू
कृषि लाभ और किसानों की आय
प्रिलिम्स के लियेरेटिंग एजेंसी क्रिसिल, खरीफ फसल मेन्स के लियेकिसानों की आय से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल द्वारा बागवानी फसलों और 25 प्रमुख क्षेत्रों के एक विस्तृत विश्लेषण में यह संकेत दिया गया है कि खरीफ (ग्रीष्मकालीन फसल) के सीज़न (वर्ष 2020) में प्रति हेक्टेयर लाभप्रदता में सुधार होगा
प्रमुख बिंदु
- कृषि क्षेत्र में लाभ की संभावना: COVID-19 के कारण अर्थव्यवस्था को भारी क्षति पहुँची है, ऐसे में केवल कृषि ही एक ऐसा क्षेत्र रहा है, जिसे सबसे कम नुकसान हुआ है। मानसून सत्र में अच्छी बारिश की उम्मीद जताई जा रही है, जिससे उत्पादन और मुनाफे को बढ़ावा मिलेगा, विशेषकर धान की फसल को।
- किसानों की सहायतार्थ सरकार द्वारा नाबार्ड के माध्यम से 30,000 करोड़ रुपए अतिरिक्त आपातकालीन कार्यशील पूंजी कोष के रूप में और 2 लाख करोड़ रुपए रियायती ऋण के रूप में उपलब्ध कराए गए हैं।
- कृषि क्षेत्र में 2019-2020 की अंतिम तिमाही में 5.9% की वृद्धि देखी गई।
- किसानों की आय पर प्रभाव: कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, कुल लाभ में वृद्धि के बावजूद, प्रति व्यक्ति (प्रति किसान) आय में गिरावट होने की संभावना है।
- COVID-19 के कारण कृषि क्षेत्र में विपरीत प्रवास ‘रिवर्स माइग्रेशन’ देखने को मिला है, जिसके परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या में वृद्धि हो सकती है।
- सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल-जुलाई 2020 की अवधि में कृषि क्षेत्र में 14.9 मिलियन रोज़गार उत्पन्न हुए।
- किसानों की कम आय के पीछे संभावित कारण:
- रिवर्स माइग्रेशन: COVID महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन के कारण, बड़ी संख्या में लोग अपने ग्रामीण क्षेत्रों में वापस लौट गए, ऐसे में मनरेगा एवं कृषि के अलावा उनके पास कोई महत्त्वपूर्ण काम नहीं है।
- रोज़गार के विकल्प के रूप में कृषि: सामान्य तौर पर, लोग बेहतर भुगतान वाले रोज़गार की तलाश में (ज़्यादातर लोग स्वेच्छा से) खेती छोड़कर शहरों की ओर रूख करते हैं। लेकिन, ऐसे लोग जिनका गैर-कृषि रोज़गार COVID के कारण नष्ट हो गया है, उनके कृषि क्षेत्र की ओर रूख करने की संभावना अधिक है।
- CMIE आँकड़ों से पता चलता है कि 2019-20 में 111.3 मिलियन लोगों ने कृषि को अपने मुख्य व्यवसाय के रूप में घोषित किया है। मार्च 2020 तक यह संख्या बढ़कर 117 मिलियन हो गई, जबकि जून में यह 130 मिलियन तक पहुँच गई।
- श्रम की मांग: अगस्त में बुवाई का मौसम समाप्त होने तक, कृषि क्षेत्र में श्रम की मांग निरंतर बनी रही।
- इसका अर्थ है, भले ही कृषि लाभ में वृद्धि हो, लेकिन इससे ग्रामीण मांग को पुनर्जीवित करने में कोई विशेष मदद नहीं मिलेगी, क्योंकि इस वर्ष बहुत अधिक संख्या में लोग कृषि आय पर निर्भर हैं।
- ग्रामीण भारत में COVID-19 के मामलों में वृद्धि: इससे फसलों की कटाई और आपूर्ति शृंखला पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- कृषि उत्पादों की कीमतों में कमी:
- क्या कृषि उत्पादन में वृद्धि का अर्थ किसानों की आय में वृद्धि भी है, इस प्रश्न का उत्तर बहुत सी बातों पर निर्भर करता है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रश्न का उत्तर बहुत हद तक किसानों द्वारा बेचे जाने वाले कृषि उत्पादों से प्राप्त कीमतों पर निर्भर करता है।
- जहाँ एक ओर अनाज की कीमतों में सकारात्मक मुद्रास्फीति देखने को मिली हैं, वहीं दूसरी ओर अधिकांश अन्य खाद्य समूहों, जैसे कि फल और सब्ज़ियाँ, अंडे, मुर्गी और मछली आदि की कीमतों में लगातार गिरावट आ रही है।
- सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- मई 2020 में आत्मनिभर भारत योजना के तहत लाए गए तीन अध्यादेशों- किसानों की उपज के व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) का अध्यादेश, कृषि सेवाओं एवं मूल्य आश्वासन पर किसानों की सहमति (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) संबंधी अध्यादेश तथा आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश; किसानों को 'मेरी फसल, मेरा अधिकार' का लाभ देंगे और उनकी उपज के लिये उच्च मूल्य प्राप्त करने में मदद करेंगे।
- कोल्ड चेन (शीत शृंखला), प्रशीतित परिवहन आदि की स्थापना के लिये प्रधान मंत्री द्वारा 1 लाख करोड़ रुपए के कृषि अवसंरचना कोष *Agriculture Infrastructure Fund) का शुभारंभ किया गया है ताकि किसानों को उनकी उपज के लिये बेहतर कीमत प्रदान की जा सके।
- हालाँकि अभी इन संरचनात्मक सुधारों को भारत के ग्रामीण परिवेश को पुनर्जीवित करने में एक लंबा मार्ग तय करना होगा।
आगे की राह
- ITC लिमिटेड जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा शुरू की गई ‘ई-चौपाल’ जैसी पहल, जो ग्रामीण भारत को तकनीकी ज्ञान प्रदान करने के पक्षों पर बल देती है ताकि एक प्रभावी कृषि परिवेश तैयार करते हुए कृषि उपज के लिये मूल्य निर्धारण जैसी सुविधाओं को पारदर्शी बनाया जा सके साथ ही इस कार्य में तकनीकी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा सके, को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।
- सरकार को CSC (कॉमन सर्विस सेंटर) पैन इंडिया नेटवर्क को समेकित करने के प्रयास करने चाहिये। साथ ही सरकार को स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, सड़क नेटवर्क, संचार और बिजली जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करते हुए कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये ताकि ग्रामीण आबादी भी शहरी क्षेत्र के बराबर गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सके। इससे रोज़गार के अवसरों की तलाश में शहरों की ओर पलायन में भी कमी आएगी।
स्रोत: द हिंदू
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और भारत
Fप्रिलिम्स के लियेइंडो-पैसिफिक क्षेत्र मेन्स के लियेइंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ, भारत और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र |
चर्चा में क्यों?
इंडो-पैसिफिक यानी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से हाल ही में भारत, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांँस के बीच त्रिपक्षीय वार्ता का आयोजन किया गया।
प्रमुख बिंदु
- विदेश मंत्रालय द्वारा इस संबंध में जारी बयान के अनुसार, बैठक के दौरान मुख्य तौर पर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- इसके अलावा बैठक में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के मद्देनज़र समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को अधिक लचीला बनाने पर भी चर्चा की गई।
- समुद्री सुरक्षा सहयोग के अंतर्गत मानवीय सहायता एवं आपदा राहत, समुद्री क्षेत्र जागरूकता (MDA), पारस्परिक रसद समर्थन और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में मैत्रीपूर्ण देशों की क्षमता निर्माण में सहायता जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
- बैठक में तीनों पक्षों ने कोरोनावायरस महामारी के संदर्भ में उभरती चुनौतियों पर भी चर्चा की, जिसमें हिंद महासागर के देशों पर महामारी का वित्तीय प्रभाव भी शामिल है।
- तीनों देशों ने वार्षिक आधार पर इस वार्ता को जारी रखने की भी बात की है।
महत्त्व
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में फ्रांँस और ऑस्ट्रेलिया भारत के प्रमुख भागीदार हैं और इस बैठक से तीनों देशों को विगत वर्षों में द्विपक्षीय माध्यम से हासिल हुई प्रगति को और आगे बढ़ाने का अवसर प्राप्त हुआ।
- ऑस्ट्रेलिया और फ्रांँस, इंडो-पैसिफिक तथा हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के लिये प्रमुख रणनीतिक साझेदार के रूप में सामने आए हैं और बीते कुछ वर्षों में तीनों देशों के सहयोग में, विशेष रूप से समुद्री क्षेत्र में, काफी वृद्धि हुई है।
- उदाहरण के लिये भारत ने दोनों देशों (फ्रांँस और ऑस्ट्रेलिया) के साथ रसद समझौते (Logistics Agreements) किये हैं।
- ध्यातव्य है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के आक्रामक व्यवहार का सामना करने के लिये भारत, फ्रांँस और ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने सहयोग को बढ़ावा दे रहा है, क्योंकि इन देशों के पास चीन की चुनौती का सामना करने के लिये पर्याप्त क्षमता मौजूद है।
- यह त्रिपक्षीय वार्ता ‘क्वाड’ (Quad) देशों- जिसमें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत शामिल हैं- के अतिरिक्त है जिससे यह चीन के बढ़ते प्रभाव के विरुद्ध निर्मित हो रहे वैश्विक गठबंधन को अधिक कूटनीतिक शक्ति प्रदान करेगा।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का अर्थ
- जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, हिंद (Indo) यानी हिंद महासागर (Indian Ocean) और प्रशांत (Pacific) यानी प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर जो समुद्र का एक हिस्सा बनता है, उसे हिंद प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) कहते हैं। वहीं इस क्षेत्र में शामिल देशों को ‘इंडो-पैसिफिक देशों’ की संज्ञा दी गई है।
- यद्यपि यह अभी विकास की प्रक्रिया से गुज़र रही एक अवधारणा है, किंतु कई विश्लेषक इस अवधारणा को पश्चिम से पूर्व की ओर सत्ता तथा प्रभाव के स्थानातंरण की तरह देखते हैं।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का भौगोलिक प्रसार अभी तक सही ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग हितधारकों ने इसे अलग-अलग तरह से मान्यता दी है।
- उदाहरण के लिये अमेरिका के लिये यह क्षेत्र भारत के पश्चिमी तट तक फैला हुआ है, जो कि यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड की भौगोलिक सीमा है, जबकि भारत के लिये इसमें पूरा हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर शामिल है।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्त्व
- वर्तमान में हम कह सकते हैं कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र विश्व में आर्थिक विकास का गुरुत्वाकर्षण केंद्र बना हुआ है। विश्व की चार बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ यथा- अमेरिका, चीन, जापान और भारत इसी क्षेत्र में स्थित हैं, जो कि इस क्षेत्र की महत्ता को काफी अधिक बढ़ा देते हैं। इस प्रकार यह क्षेत्र या तो विश्व के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने वाले एक इंजन के तौर पर कार्य कर सकता है या फिर विश्व की अर्थव्यवस्था के विध्वंसक के रूप में कार्य कर सकता है।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र संपूर्ण विश्व में शांति और समृद्धि को बढ़ावा देने में अनिवार्य भूमिका अदा कर सकता है।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश (चीन), सबसे अधिक आबादी वाला लोकतांत्रिक देश (भारत) और सबसे अधिक आबादी वाला मुस्लिम बहुल राज्य (इंडोनेशिया) शामिल हैं, जिसके कारण यह देश भू-राजनीतिक दृष्टि से भी काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- दुनिया की दस सबसे बड़ी स्थायी सेनाओं में से सात इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शामिल हैं, यही कारण है कि अमेरिका के मतानुसार, ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र अमेरिका के भविष्य के लिये सबसे अधिक परिणामी क्षेत्र है।’
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की अभी तक कोई स्पष्ट परिभाषा मौजूद नहीं है और सभी देश अपने-अपने रणनीतिक हितों को ध्यान में रख कर इसे परिभाषित करने का प्रयास कर रहे हैं।
- जानकारों का मानना है कि विगत कुछ वर्षों में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र अमेरिका और चीन की प्रतिद्वंद्विता का एक नया केंद्र बिंदु बन गया है, इस क्षेत्र की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (अमेरिका और चीन) के बीच व्यापार युद्ध तथा तकनीकी प्रतिस्पर्द्धा के कारण इस क्षेत्र के अन्य देशों और संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर काफी गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
भारत और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के कई देश खासतौर पर ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका और इंडोनेशिया आदि भारत की भूमिका को इस क्षेत्र में काफी महत्त्वपूर्ण मानते हैं। ये सभी देश दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन का मुकाबला करने के लिये भारत को एक विकल्प के रूप में देख रहे हैं।
- हालाँकि भारत इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करने को तत्पर है, भारत के लिये इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का अर्थ एक मुक्त, खुले और समावेशी क्षेत्र से है।
- भारत हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सभी देशों और उन सभी देशों को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की परिभाषा में शामिल करता है, जिनके हित इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं।
- इस प्रकार भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की अमेरिकी परिभाषा का अनुपालन नहीं करता है, जिसका एकमात्र लक्ष्य चीन की प्रभाव को सीमित करना अथवा समाप्त करना है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
वीआईपी सुरक्षा और संबंधित प्रावधान
प्रिलिम्स के लियेविभिन्न श्रेणियों की वीआईपी सुरक्षा मेन्स के लियेवीआईपी सुरक्षा का महत्त्व और आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत को महाराष्ट्र के सत्तारूढ़ दल के राजनेताओं के साथ विवाद के मद्देनज़र गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा वाई-प्लस श्रेणी (Y-Plus Category) की सुरक्षा दी गई है।
प्रमुख बिंदु
- नियमों के अनुसार, वाई-प्लस (Y-Plus) सुरक्षा श्रेणी के तहत अभिनेत्री कंगना रनौत की सुरक्षा के लिये कुल 11 सुरक्षाकर्मी तैनात किये जाएंगे, जिसमें 2 कमांडो भी होते हैं।
किसे मिलती है यह सुरक्षा?
- इस प्रकार की सुरक्षा को औपचारिक तौर पर ‘वीआईपी सुरक्षा’ (VIP Security) कहा जाता है, और सैद्धांतिक रूप से यह मुख्यतः ऐसे लोगों को दिया जाता है जो नागरिक समाज अथवा सरकार में किसी महत्त्वपूर्ण स्थिति अथवा पद पर होते हैं।
- किसी भी व्यक्ति विशेष को सुरक्षा देने और किस श्रेणी की सुरक्षा देने का निर्णय गृह मंत्रालय द्वारा इंटेलिजेंस ब्यूरो (Intelligence Bureau-IB) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (Research and Analysis Wing-RAW) जैसे खुफिया विभागों द्वारा दिये गए इनपुट के आधार पर लिया जाता है।
- ये दोनों खुफिया विभाग अपने विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर गृह मंत्रालय को बताते हैं कि किसी व्यक्ति को आतंकवादियों या अन्य असामाजिक तत्त्वों से किस प्रकार का खतरा है, जिसके बाद गृह मंत्रालय इस संबंध में निर्णय लेता है।
- वहीं कुछ लोग सरकार में अपने पद के कारण स्वतः ही इस प्रकार की सुरक्षा की श्रेणी में आ जाते हैं, इसमें प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री और उसके परिवार के सदस्य शामिल हैं। इसके अलावा गृह मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी अपने पद के कारण इस सुरक्षा के दायरे में आ जाते हैं।
कार्य प्रणाली की आलोचना
- ध्यातव्य है कि भारतीय खुफिया विभाग किसी भी वैधानिक निकाय के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं, और वे केवल गृह मंत्रालय (MHA) तथा विदेश मंत्रालय (MEA) की आंतरिक निगरानी के अधीन कार्य करते हैं।
- वहीं इन विभागों द्वारा प्राप्त की गई कोई भी खुफिया जानकारी न तो सार्वजनिक की जाती है और न ही किसी अन्य विभाग द्वारा इनकी जाँच की जाती है।
- कार्य प्रणाली की इसी अस्पष्टता के कारण कई बार यह माना जाता है VIP सुरक्षा में राजनीतिक कारणों से फेरबदल संभव है।
सुरक्षा की विभिन्न श्रेणियाँ
- मोटे तौर पर वीआईपी (VIP) सुरक्षा कवर की छह श्रेणियाँ होती हैं: एक्स (X), वाई (Y), वाई-प्लस (Y-Plus) , जेड (Z), जेड-प्लस (Z-Plus) और स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (Special Protection Group-SPG)। इसमें से SPG केवल प्रधानमंत्री और उनके परिवार को सुरक्षा प्रदान करती है, जबकि अन्य सुरक्षा श्रेणियों की सुरक्षा खुफिया विभाग के इनपुट के आधार पर किसी भी व्यक्ति को प्रदान की जा सकती है। प्रत्येक श्रेणी में सुरक्षाकर्मियों की संख्या अलग-अलग होती है।
- X सुरक्षा श्रेणी: एक्स (X) श्रेणी की सुरक्षा को सबसे बुनियादी स्तर की सुरक्षा श्रेणी मान जाता है। इस सुरक्षा श्रेणी में व्यक्ति की सुरक्षा के लिये 2 सुरक्षाकर्मी शामिल होते हैं, जिसमें कोई भी कमांडो शामिल नहीं होता।
- Y सुरक्षा श्रेणी: इस श्रेणी के तहत एक बंदूकधारी कमांडो और स्थायी सुरक्षा के लिये 1 (रोटेशन के आधार पर अतिरिक्त चार) सुरक्षाकर्मी शामिल होते हैं।
- Y-प्लस सुरक्षा श्रेणी: इस सुरक्षा श्रेणी के तहत दो बंदूकधारी कमांडो (रोटेशन के आधार पर अतिरिक्त चार), और निवास सुरक्षा के लिये एक (रोटेशन के आधार पर अतिरिक्त चार) सुरक्षाकर्मी शामिल होते हैं।
- Z सुरक्षा श्रेणी: इस सुरक्षा श्रेणी में कुल छह बंदूकधारी कमांडो और निवास सुरक्षा के लिये दो (अतिरिक्त 8) सुरक्षाकर्मी होते हैं।
- Z-प्लस सुरक्षा श्रेणी: इसमें 10 से अधिक NSG कमांडो होते हैं एवं इसके अतिरिक्त निवास स्थान की सुरक्षा के लिये 2 (अतिरिक्त 8) CRPF के कमांडो व स्थानीय पुलिसकर्मी भी शामिल होते हैं।
- इन स्तरों के भीतर भी विभिन्न प्रकार के सुरक्षा कवर हैं। इनमें निवास की सुरक्षा, कार्यालय सुरक्षा और अंतर-राज्य सुरक्षा शामिल होते हैं।
कौन से सुरक्षा बल VIP सुरक्षा करते हैं?
- प्रधानमंत्री और उनके परिवार के अलावा अन्य सभी लोगों को सुरक्षा कवर प्रदान करने का कार्य राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG), केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) द्वारा किया जाता है। इसके अलावा इसमें स्थानीय पुलिस भी शामिल होती है।
- सरकार बीते कुछ वर्षों से राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) से VIP सुरक्षा का बोझ कम करने का प्रयास कर रही है, जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) का सुरक्षा घेरा काफी लोकप्रिय है और इसकी मांग काफी अधिक है। इसका मुख्य कारण यह है कि NSG का मुख्य कार्य राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद-रोधी अभियानों का संचालन करना है, न कि किसी की सुरक्षा करना।
VIP सुरक्षा की लागत का भुगतान कौन करता है?
- खुफिया विभागों से प्राप्त सूचना के मूल्यांकन के पश्चात् सरकार जिस किसी को भी सुरक्षा प्रदान करती है, उसे यह सुरक्षा पूरी तरह मुफ्त प्रदान की जाती है।
- हालाँकि, जिन लोगों को ज़ेड (Z) और ज़ेड-प्लस (Z-Plus) श्रेणियों में सुरक्षा प्रदान की जाती है, उन्हें सुरक्षाकर्मियों के आवास की व्यवस्था भी स्वयं करनी होती है, क्योंकि इस प्रकार की सुरक्षा श्रेणियों में सुरक्षाकर्मियों की संख्या काफी अधिक होती है।
- भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी. सतशिवम (P. Sathasivam) ने वर्ष 2014 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली ‘वीआईपी सुरक्षा’ लेने से इनकार कर दिया था, क्योंकि सेवानिवृत्ति के बाद वे अपने पैतृक निवास स्थान में चले गए थे और उस निवास स्थान में सुरक्षाकर्मियों के लिये कोई विशेष स्थान नहीं था।
- हालाँकि, सरकार खतरे का आकलन करने के बाद भी एक निजी व्यक्ति को उनके सुरक्षा कवर के लिये शुल्क चुकाने को कह सकती है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2013 में सरकार ने उद्योगपति मुकेश अंबानी को 2013 में ज़ेड (Z) श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की थी, किंतु सरकार ने अपने आदेश में CRPF को सुरक्षा के लिये मुकेश अंबानी से प्रतिमाह 15 लाख रुपए शुल्क लेने का आदेश दिया था।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
ब्रैडीकिनिन स्टॉर्म
प्रिलिम्स के लिये:ब्रैडीकिनिन स्टॉर्म, COVID-19, साइटोकिन स्टॉर्म मेन्स के लिये:COVID-19 का मानव शरीर पर प्रभाव, COVID-19 की चुनौती से निपटने के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका स्थित ‘ओक रिज़ नेशनल लेबोरेटरी’ (Oak Ridge National Laboratory- ORLN) के वैज्ञानिकों के समूह ने COVID-19 संक्रमण के कुछ मामलों में मरीज़ों के स्वास्थ्य में तीव्र गिरावट के लिये ‘ब्रैडीकिनिन स्टॉर्म’ (Bradykinin Storm) को उत्तरदायी बताया है।
प्रमुख बिंदु:
- ‘ओक रिज़ नेशनल लेबोरेटरी’ के कुछ वैज्ञानिकों ने एक सुपर कंप्यूटर के माध्यम से COVID-19 मरीज़ों के फेफड़ों से लिये गए नमूनों के डेटा अध्ययन के आधार पर मरीज़ों के स्वास्थ्य पर ‘ब्रैडीकिनिन स्टॉर्म’ के प्रभावों की जानकारी दी है।
- द साइंटिस्ट पत्रिका के अनुसार, ‘रेडबाउड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर, नीदरलैंड’ के एक संक्रामक रोग विशेषज्ञ ‘फ्रैंक वैन डे वीरडोंक’ और उनकी टीम ने एक अवधारणा प्रस्तुत की थी, जिसमें उन्होंने फेफड़ों में रक्त वाहिकाओं में रिसाव के लिये एक अनियंत्रित ब्रैडीकिनिन प्रणाली को मुख्य कारण बताया और यह भी अनुमान लगाया कि यह फेफड़ों में अतिरिक्त द्रव निर्माण के लिये उत्तरदायी हो सकता है।
- गौरतलब है कि इससे पहले वैज्ञानिकों ने COVID-19 संक्रमण के कुछ मामलों में मरीज़ों के स्वास्थ्य में गिरावट के लिये साइटोकिन स्टॉर्म (Cytokine Storm) की भूमिका के बारे में पुष्टि की थी।
क्या है ब्रैडीकिनिन?
- ब्रैडीकिनिन एक यौगिक है जो दर्द संवेदना और मानव शरीर में रक्तचाप को कम करने से संबंधित है।
- शोधकर्ताओं के अनुसार, ’SARS-CoV-2 मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिये ACE2 नामक एक मानव एंज़ाइम का प्रयोग करता है।
- ACE2 मानव शरीर में रक्तचाप को कम करता है और ACE नामक एक अन्य एज़ाइम के खिलाफ काम करता है।
- शोधकर्ताओं ने पाया कि COVID-19 वायरस मानव फेफड़ों में ACE एंजाइम के स्तर को बहुत ही कम कर देता है, जिसके परिणामस्वरूप ACE2 के स्तर में वृद्धि होती है।
- यह प्रक्रिया एक श्रृंखला अभिक्रिया (Chain Reaction) के रूप में कोशिकाओं में ब्रैडीकाइनिन अणु के स्तर को बढ़ा देती है, जो ब्रैडीकाइनिन स्टॉर्म का कारण बनता है।
दुष्प्रभाव:
- ब्रैडीकिनिन रक्त वाहिकाओं के आकार में वृद्धि हो जाती है और उनमें रक्त का रिसाव होने लगता है, जिससे इसके आसपास के ऊतकों में सूजन हो जाती है।
- शोधकर्त्ताओं ने पाया कि ऐसे मरीज़ों में हायल्यूरोनिक एसिड (Hyaluronic Acid) नामक एक पदार्थ का स्तर बढ़ गया।
- यह एसिड हाइड्रोजेल बनाने के लिये अपने वजन से 1000 गुना जल अवशोषित कर सकता है।
- ब्रैडीकिनिन स्टॉर्म के कारण मरीज़ के फेफड़ों में द्रव के रिसाव और हायल्यूरोनिक एसिड के मिलने से एक जेलो (Jello) जैसे पदार्थ का निर्माण होता है, जो गंभीर रूप से प्रभावित COVID-19 मरीज़ों में ऑक्सीजन के अपवर्तन को रोक देता है।
- मरीज़ों के फेफड़ों में इस द्रव का तीव्र संचय कभी-कभी वेंटिलेटर जैसी उन्नत गहन देखभाल प्रणालियों को भी प्रभावहीन बना देता है।
- ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के ‘इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंस’ के निदेशक के अनुसार, ब्रैडीकिनिन स्टॉर्म की अवधारण कुछ COVID-19 मरीज़ों के स्वास्थ्य में तीव्र गिरावट के संदर्भ में काफी हद तक सही प्रतीत होती है हालाँकि इसमें अभी और अधिक पुष्टि (प्रोटीन मापने के संदर्भ में) की आवश्यकता होगी।
निष्कर्ष:
COVID-19 महामारी और मानव शरीर पर इसके प्रभावों के बारे में अभी बहुत अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में बिना किसी प्रमाणिक वैक्सीन के इस बीमारी का इलाज अलग-अलग मरीज़ों के लक्षणों के आधार पर ही किया जा सकता है। COVID-19 संक्रमण के मामलों में ‘ब्रैडीकिनिन स्टॉर्म’ के बारे में प्राप्त जानकारी के आधार पर मरीज़ों को लक्षित उपचार उपलब्ध कराने में सहायता प्राप्त हो सकती है हालाँकि इस संदर्भ में और अधिक अनुसंधान की आवश्यकता होगी।
आगे की राह:
- वैज्ञानिकों ने COVID-19 के गंभीर प्रभावों को नियंत्रित करने के लिये ब्रैडीकिनिन मार्ग को लक्षित करते हुए चिकित्सीय हस्तक्षेप को बढ़ावा देने का समर्थन किया है।
- मरीज़ों में ब्रैडीकिनिन के लक्षणों के आधार पर वर्तमान में उपलब्ध दवाओं के प्रयोग पर परीक्षण और शोध को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
निजी कोचिंग की अवधारणा
प्रिलिम्स के लिये:नई शिक्षा नीति, राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (NSO) मेन्स के लिये:निजी कोचिंग से संबंधित प्रमुख मुद्दे, निजी कोचिंग के प्रति रुझान में वृद्धि के कारण |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (NSO) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पाँच में से एक छात्र निजी कोचिंग के साथ स्कूली शिक्षा को पूर्ण करता है। जून 2017 और जुलाई 2018 के बीच आयोजित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 75वें दौर में परिवारों द्वारा शिक्षा से संबंधित उपभोग पर खर्च को लेकर सर्वेक्षण किया गया था।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
- पूर्व-प्राथमिक और उससे ऊपर के स्तर पर लगभग 20% छात्र/छात्राएँ (21% छात्र और 19% छात्राएँ) निजी कोचिंग ले रहे थे।
- माध्यमिक स्तर पर निजी कोचिंग लेने वालों की संख्या अधिकतम (छात्रों का 31% और छात्राओं का 29%) थी।
- निजी कोचिंग की फीस माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में शिक्षा की कुल लागत का लगभग 20% है।
- रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में छात्र-छात्राएँ वास्तव में अपने नियमित स्कूल की तुलना में निजी कोचिंग पर अधिक खर्च करते हैं।
निजी कोचिंग से संबंधित प्रमुख मुद्दे
- स्कूली शिक्षा के साथ निजी कोचिंग शिक्षा पर लागत में वृद्धि कर देती है। माध्यमिक स्कूल के विद्यार्थियों का शिक्षा पर औसत वार्षिक व्यय 9,013 है, जिनमें से 4,078 नियमित स्कूल फीस के रूप में खर्च होता है। लगभग 1,632 रूपए या 18% से अधिक निजी कोचिंग में खर्च हो जाता है।
- निजी कोचिंग में ग्रामीण-शहरी तथा सामाजिक-आर्थिक स्तर पर अंतर देखने को मिलता है। माध्यमिक विद्यालय स्तर पर शहरी और उच्च जातियों के बच्चे निजी कोचिंग का अधिक उपयोग करते हैं। अनुसूचित जनजाति समुदायों के सिर्फ 13.7% ग्रामीण लड़के और लड़कियों की तुलना में शहरी उच्च जाति के 52% से अधिक बच्चे निजी कोचिंग लेते हैं।
- छात्रों को पहले से ही स्कूल से प्रत्येक विषय के लिये होमवर्क मिल जाता है और अगर उन्हें कोचिंग कक्षाओं से भी होमवर्क मिलता है, तो वे अतिरिक्त होमवर्क के कारण बोझ महसूस करते हैं।
- कोचिंग संस्थान द्वारा प्रत्येक छात्र के लिये एक व्यक्तिगत अध्ययन पैटर्न का पालन करने और स्कूल द्वारा प्रत्येक कक्षा के लिये एक सामान्य पैटर्न का पालन करने से बच्चे दुविधा में रहते हैं।
- कोचिंग संस्थानों में बोर्ड परीक्षा, प्रवेश परीक्षा और प्रतियोगी परीक्षा के लिये छात्रों को तैयार कर परस्पर प्रतिस्पर्द्धा कराने से बच्चों में चिंता और परीक्षा के प्रति तनाव उत्पन्न होता है।
- कोचिंग संस्थान में विभिन्न स्कूलों या शिक्षा बोर्ड्स के बच्चे सम्मिलित होते हैं। सभी स्कूलों या बोर्ड्स का शिक्षा पैटर्न एक जैसा नहीं है। प्रत्येक छात्र की अवधारणात्मक समझ को लेकर अपनी समस्याएँ होती हैं।
निजी कोचिंग के प्रति रुझान में वृद्धि के कारण
- स्कूली शिक्षा की निम्न गुणवत्ता के कारण अधिक संख्या में छात्र निजी कोचिंग और ट्यूशन पर निर्भर हो रहे हैं।
- माता-पिता द्वारा, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, अपनी सहायक शिक्षक की भूमिका को विभिन्न कारणों से नहीं निभा पाने के कारण वे अपने बच्चों को निजी कोचिंग/ट्यूशन पर भेजना प्रारंभ कर देते हैं।
- सूचना-केंद्रित पाठ्यक्रम और रटने की प्रवत्ति निजी कोचिंग को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारण हैं।
- शहरी क्षेत्रों में माता-पिता शैक्षिक और आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में होते हैं, जिसके कारण वे निजी कोचिंग की लागत वहन करने की स्थिति में होते हैं।
- सामाजिक प्रतिष्ठा जैसे- मुद्दों के कारण मध्यम वर्ग के माता-पिता पर सामाजिक दवाब और अपने बच्चों की उपेक्षा के मामले में अपराध की भावना के कारण भी निजी कोचिंग को बढ़ावा मिलता है।
- एकल परिवार और दोहरी आय की परिघटना में वृद्धि के कारण आय में एवं बचत में वृद्धि ने बच्चों को ट्यूशन केंद्रों पर भेजने के लिये प्रेरित किया है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की कमज़ोर आर्थिक स्थिति, माता-पिता की शिक्षा और आकांक्षाओं का निम्न स्तर तथा निजी कोचिंग केंद्रों की सीमित संख्या ऐसे क्षेत्रों में निजी कोचिंग के कम अनुपात के कुछ प्रमुख कारण हैं।
- इस प्रकार निजी कोचिंग्स की बढ़ती प्रवृत्ति सामाजिक-आर्थिक विकास की प्रवृत्ति से मेल खाती है। केरल जहाँ ग्रामीण और शहरी क्षेत्र सामाजिक विकास के समान स्तर पर हैं, वहाँ निजी कोचिंग प्राप्त करने में कोई भौगोलिक असमानता नहीं दिखाई देती है।
नई शिक्षा नीति एवं निजी कोचिंग्स
- कोचिंग संस्कृति को प्रोत्साहित करने की बजाय नियमित रूप से मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित कर राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 स्कूली बच्चों को निजी ट्यूशन और कोचिंग कक्षाओं से दूर रखना चाहती है।
- नई शिक्षा नीति में CBSE बोर्ड परीक्षाओं को और अधिक लचीला बनाने का प्रावधान किया गया है, जो एक बच्चे की आधारभूत क्षमताओं/दक्षताओं का परीक्षण करेगी।
- अगर नई शिक्षा नीति का ठीक से क्रियान्वयन होता है तो केवल वे ही संस्थान सफल होंगे जो अपने शिक्षकों को नए पाठ्यक्रमों और दृष्टिकोण में प्रशिक्षित करेंगे। अभी अधिकतर कोचिंग संस्थान विज्ञान और गणित तथा परीक्षा में अंक वृद्धि पर ही अधिक केंद्रित हैं।
आगे की राह
- कोचिंग संस्थानों की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करने हेतु कोचिंग संस्थानों के संचालन के लिये न्यूनतम मानक प्रदान करने वाले नियमों/योजना को लागू करके सरकार को विनियमन पर ज़ोर देने की आवश्यकता है। वर्तमान में कोचिंग उद्योग बहुत वृद्धि कर चुका है और स्कूल शिक्षा प्रणाली के लिये एक चुनौती बन चुका है।