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डेली न्यूज़

  • 10 Aug, 2020
  • 46 min read
भारतीय राजव्यवस्था

विधी रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया

मेन्स के लिये:

विधी सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी द्वारा जारी रिपोर्ट में की गई प्रमुख सिफारिशें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली स्थित स्वतंत्र थिंक-टैंक, ‘विधी सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी’ (Vidhi Centre for Legal Policy) द्वारा भारत में खबरों/समाचारों के भविष्य की जाँच करने वाली एक रिपोर्ट को जारी किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट के अनुसार, प्रिंट पत्रकारिता के बिगड़ते आर्थिक हालातों में जनता को विश्वसनीय सूचना उपलब्ध कराने की इसकी क्षमता को मुश्किल में डाल दिया है,  जो सत्ता द्वारा नियंत्रित एक संस्था के रूप में कार्य कर रहा है।
  • डिजिटल समाचार का संचालन बिना किसी नियमन के होता है।
  • सार्वजनिक संचार में ‘पोस्ट-ट्रुथ पैराडिज्म’ ( Post-Truth Paradigm) के प्रतिमानों तथा गलत सूचनाओं का व्यापक प्रसार डिजिटल समाचार वितरण के लाभों को प्राप्त करने में बाधक है।
    • (पोस्ट- ट्रुथ) Post-Truth परिस्थितियों में ऐसे उद्देश्य शामिल होते हैं जिनमें भावुकता और व्यक्तिगत विश्वास की अपेक्षा जनता की राय को आकार देने में वस्तुनिष्ठ तथ्य कम प्रभावशाली होते हैं।

Vidhi

सिफारिशें: 

  • रिपोर्ट में उच्च-गुणवत्ता वाले प्रिंट पत्रकारिता के ट्रांज़िशन को सुविधाजनक बनाने के लिये  कानूनी सुधारों का एक रोडमैप तैयार किया गया है जिसके माध्यम से डिजिटल संचार के इस दौर में लोगों को अधिक लाभ प्राप्त हो सके।
  • ऑनलाइन विज्ञापन प्लेटफार्मों के प्रभुत्त्व की जाँच:
    • डिजिटल समाचार के लिये विज्ञापन-राजस्व मॉडल (Advertisement-Revenue Model) द्वारा बाज़ार की विफलता के संकेत प्रदर्शित किये जा सकते हैं।
    • एक विज्ञापन-राजस्व मॉडल में, ऑनलाइन कंपनियाँ  मुफ्त में सामग्री का प्रकाशन कर मासिक आधार पर साइट पर सैकड़ों, हज़ारों या फिर लाखों आगंतुकों/दर्शकों( Visitors) को पहुँच प्रदान करती हैं। विज्ञापनदाता साइट्स पर इन आगंतुकों को लाने के लिये ऑनलाइन कंपनियों को भुगतान करते हैं जिससे व्यवसायों को साइट्स पर आगंतुकों की पहुँच  के लिये विज्ञापनदाताओं द्वारा भुगतान की जाने वाली फीस से राजस्व उत्पन्न करने में मदद मिलती है।
  • लोगों के कल्याण के लिये डिजिटल समाचार को बाज़ार उन्मुख बनाने के लिये, ऑनलाइन विज्ञापन प्लेटफार्मों की भूमिका और कार्यों का एक विशेष प्राधिकरण द्वारा व्यवस्थित रूप से अध्ययन किया जाना चाहिये।
  • गलत सूचना के प्रसारण को रोकने के लिये व्यापक उपाय करना:
    • रिपोर्ट में कई विधायी, सह-नियामक और स्वैच्छिक उपायों का सुझाव दिया गया है जो गलत सूचना के प्रसार को रोकने और पाठक साक्षरता को बढ़ावा देने के लिये एक एकीकृत ढाँचा प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिये:
      • गलत सूचनाओं की पहचान करने के लिये औद्योगिक मानकों का विकास करना।
      • गलत सूचनाओं के पैटर्न की पहचान करने के लिये एनालिटिक्स (Analytics) का उपयोग इत्यादि।
  • डिजिटल समाचार संस्थाओं पर उपयुक्त ज़िम्मेदारियाँ:
    • डिजिटल समाचार संस्थाएँ डिजिटल खबरों के संदर्भ में उन कानूनी कमियों को दूर करती हैं जो ऑनलाइन बातचीत के लिये काफी संवेदनशील हैं।
    • ये संपादकीय ज़िम्मेदारी के लिये एक तंत्र के रूप में स्वैच्छिक पंजीकरण प्रक्रिया और एक संक्षिप्त, सुलभ आचार संहिता के विकास के साथ, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (Press Council of India) को सीमित शक्तियाँ प्रदान करने की सिफारिश करती है।
    • समाचार/खबरों के वितरण में ऑनलाइन प्लेटफार्मों की भूमिका डिजिटल प्लेटफार्मों के पहलूओं पर लक्ष्य आधारित होनी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ईरान पर यूएन हथियार प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये:

खाड़ी सहयोग परिषद, UNSC संकल्प-1747, संकल्प-1929, संकल्प- 2231, JCPOA 

मेन्स के लिये:

ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'खाड़ी सहयोग परिषद' (Gulf Cooperation Council-GCC) द्वारा 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद' (UNSC) को एक पत्र भेजकर ईरान पर लगाए गए हथियार प्रतिबंध अवधि का आगे विस्तार करने का समर्थन किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सऊदी अरब, ओमान, कतर, कुवैत GCC के सदस्य देश हैं।
  • वर्ष 2015 में बहुपक्षीय ईरान परमाणु समझौता; जिसे 'संयुक्त व्यापक कार्रवाई योजना' (JCPOA) के रूप मे जाना जाता है, के माध्यम से जहाँ एक तरफ ईरान के 'परमाणु कार्यक्रम' पर आवश्यक सीमाएँ निर्धारित की गई थी वहीं दूसरी तरफ हथियार प्रतिबंधों में राहत प्रदान की गई थी।
  • UNSC संकल्प-2231 के तहत ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों की सीमा 18 अक्तूबर, 2020 को समाप्त हो रही है। 

अमेरिका तथा JCPOA:

  • वर्ष 2015 में ईरान एवं छह प्रमुख शक्तिशाली देशों (P5+1=अमेरिका, रूस, चीन, फ्राँस, ब्रिटेन+जर्मनी) द्वारा JCPOA समझौते को अंतिम रूप दिया गया था।
  • परंतु राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वर्ष 2018 में अमेरिका को समझौते से एकतरफा अलग कर लिया। 
  • ट्रंप प्रशासन वर्तमान में ईरान पर लगाए गए हथियार स्थानांतरण प्रतिबंधों को आगे बढ़ाने के लिये अपने समर्थक देशों सहित अन्य सुरक्षा परिषद के सदस्यों को मनाने की कोशिश कर रहा है। 

 

शस्त्र स्थानांतरण प्रतिबंध के प्रावधान:

UNSC संकल्प- 1747:

  • 24 मार्च, 2007 का यह संकल्प संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्यों पर ईरान को सभी प्रकार के हथियारों के हस्तांतरण (आयात और निर्यात दोनों) पर प्रतिबंध लगाता है।

UNSC संकल्प-1929

  • 9 जून, 2010 का यह संकल्प ईरान को युद्ध के लिये हथियारों की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाता है। 

UNSC संकल्प- 2231:

  • यह संकल्प 'संयुक्त व्यापक कार्रवाई योजना' (JCPOA) को क्रियान्वित करने की दिशा में लाया गया था ताकि ईरान पर लगाए गए हथियार प्रतिबंधों में राहत प्रदान करता है। 
  • 17 जुलाई, 2015 का यह संकल्प 18 अक्तूबर, 2020 तक ईरान को हथियारों के हस्तांतरण (आयात व निर्यात दोनों) पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान करता है। 
  •  प्रतिबंधित हथियारों को अनुलग्नक सूची-B में शामिल किया गया जिसमें फाइटर जेट, टैंक और युद्धपोत आदि शामिल हैं। 
  • अनुलग्नक सूची में उन उपकरणों की आपूर्ति पर भी 18 अक्तूबर, 2023 तक प्रतिबंध लगाया गया है, जिनका उपयोग ईरान परमाणु हथियार बनाने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों को विकसित करने के लिये कर सकता है।

GCC का पक्ष:

  • सऊदी अरब के नेतृत्त्व वाले एक गठबंधन ने वर्तमान में यमन के हाउथी (Houthi) विद्रोहियों से लड़ाई जारी रखी है। संयुक्त राष्ट्र संघ, अमेरिका और आयुध विशेषज्ञों ने ईरान पर इन विद्रोहियों को हथियार प्रदान करने का आरोप लगाया है। हालाँकि ईरान ने इस बात का खंडन किया है।
  • GCC देशों ने ईरान पर लेबनान और सीरिया में हिज़्बुल्लाह (Hezbollah) इराक में शिया मिलिशिया और बहरीन, कुवैत और सऊदी अरब के 'आतंकवादी समूहों' को हथियार प्रदान करने का आरोप लगाया है।
  • GCC देशों द्वारा UNSC को लिखे पत्र में ईरान द्वारा यूक्रेन के यात्री विमान को मार गिराने, नौसैनिकों ने एक अभ्यास के दौरान 19 नाविकों को मिसाइल हमले में मार गिराने, सऊदी अरब के तेल उद्योग पर हमले जैसी घटनाएँ भी उल्लिखित की गई है।
  • इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान पर राज्य और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं को हथियारों और सैन्य उपकरणों की एक विस्तृत श्रृंखला को स्थानांतरित करने का आरोप है, जिसमें अनेक आतंकवादी संगठन भी शामिल हैं।

Yemen

ईरान का पक्ष:

  • ईरान ने GCC के इस कदम की निंदा करते हुए इसे 'गैर-ज़िम्मेदाराना' करार दिया है, जो अमेरिकी हितों की सेवा करता है। 
  • ईरान ने GCC देशों की यह कहते हुए आलोचना की है ये देश स्वयं दुनिया में सबसे बड़े हथियारों के आयातक देशों में शामिल हैं।  

GCC देशों के आपसी संबंध:

  • यद्यपि GCC ने UNSC को लिखे पत्र में एकीकृत बयान की पेशकश की है, परंतु यह समूह भी आंतरिक संघर्ष से प्रभावित है। 
  • वर्ष 2017 में कतर संकट के दौरान बहरीन, मिस्र, सऊदी अरब और अमीरात ने कतर के साथ राजनयिक संबंध समाप्त कर दिये थे। इन देशों ने कतर के सुन्नी इस्लामिक राजनीतिक समूह पर मुस्लिम ब्रदरहुड और ईरान को सहायता देकर आतंकवाद का समर्थन और वित्तपोषण करने का आरोप लगाया था। 
  • ओमान के ईरान के साथ भी करीबी संबंध हैं। यह तेहरान और पश्चिमी दुनिया के देशों के बीच एक वार्ताकार मध्यस्थ की भूमिका निभाता है।
  •  बहरीन, सऊदी अरब और यूएई ईरान पर क्षेत्र में शिया आबादी के बीच असंतोष फैलाने का आरोप लगाते हैं।

आगे की संभावना:

  • ईरान पर प्रतिबंध को बढ़ाने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी सदस्यों की सहमति आवश्यक है।
  • रूस और चीन ईरान के प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्त्ता देश हैं। ये दोनों देश सुरक्षा परिषद से स्थायी सदस्य भी हैं। अत: ईरान पर प्रतिबंधों के विस्तार को रोकने के लिये इनके द्वारा वीटो शक्ति का प्रयोग किया जा  सकता है। 
  • रूस और चीन के अलावा यूरोप में भी कुछ देश प्रतिबंधों के विस्तार का विरोध कर सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

लोया जिरगा: अफगानिस्तान की महासभा

प्रिलिम्स के लिये:

लोया जिरगा, मानचित्र पर अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति 

मेन्स के लिये:

लोया जिरगा-महासभा के निर्णयों के भारत-अफगानिस्तान संबंधों पर पड़ने वाले प्रभाव 

चर्चा में क्यों:

हाल ही में अफगानिस्तान में हत्या और अपहरण सहित गंभीर अपराधों के लिये दोषी ठहराए गए 400 तालिबान लड़ाकों को मुक्त करने से संबंधित निर्णय लेने के लिये अफगानिस्तान में तीन दिवसीय लोया जिरगा-महासभा को बुलाया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • लोया जिरगा को नियुक्त करने की आवश्यकता:
    • अफगानिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा तालिबान कैदियों को रिहा करने से इनकार किये जाने के बाद लोया जिरगा बैठक को बुलाया गया है। 
      • 10 अगस्त, 2020 को दोहा में अस्थायी रूप से निर्धारित की गई अंतर-अफगान वार्ता (Intra-Afghan Talks) के विफल हो जाने के बाद तथा तालिबानी कैदियों को रिहा न करने पर तालिबान द्वारा और अधिक खून-खराबा करने की धमकी दी गई है।
    • अमेरिका का ऐसे मानना है कि अफगानिस्तान सरकार एवं तालिबान के मध्य बातचीत से हिंसा एवं प्रत्यक्ष वार्ताओं में कमी आएगी, जिसके परिणामस्वरूप शांति समझौता के द्वारा अफगानिस्तान में युद्ध को समाप्त किया जा सकता है।

पृष्ठभूमि:

  • कैदियों की रिहाई/अदला बदली (Prisoner Exchanges) उस समझौते का हिस्सा है जिस पर फरवरी, 2020 में अमेरिकी एवं तालिबान तथा अमेरिकी एवं अफगानिस्तान सरकार के मध्य हस्ताक्षर किये गए थे।
  • हालाँकि, इसे कई महीनों तक टाला गया जिस कारण 10 मार्च को होने वाली अंतर-अफगान वार्ता को बंद करना पड़ा।
  • कुछ लोगों का तर्क है कि अफगानिस्तान के वर्तमान राष्ट्रपति अशरफ गनी तालिबान के साथ शांति बनाए रखने के लिये जानबूझकर शांति वार्ता को टाल रहे है, क्योंकि ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वार्ता में तालिबान द्वारा एक तटस्थ अंतरिम सरकार की मांग की जा सकती है जिसके चलते राष्ट्रपति अशरफ गनी को अपने पद से हाथ धोना पड़ सकता है।
  • अफगानिस्तान द्वारा तालिबानी कैदियों को रिहा करने तथा तालिबानियों द्वारा अफगानिस्तानी कैदियों एवं नागरिकों को रिहा करने के बाद अमेरिका द्वारा अपने 8000 सैनिकों को वापस बुलाने की घोषणा की गई है। 
  • पिछले कुछ हफ्तों से , अमेरिकी सरकार नवंबर 2020 के राष्ट्रपति चुनावों पर नजर रखने के साथ-साथ, तालिबान-अफगान के मध्य सुलह प्रक्रिया को तेज़ करने के लिये उत्सुक है।

लोया जिरगा:

  • यह अफगानिस्तान की एक सामूहिक राष्ट्रीय सभा है जो विभिन्न जातीय, धार्मिक एवं जनजातीय समुदायों के प्रतिनिधियों को एक साथ एक मंच पर लाती है।
  • यह एक उच्च सम्मानित, दशकों पुरानी परामर्श संस्था है जिसे राष्ट्रीय संकट के समय या राष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाने के लिये बुलाया गया है।
  • अफगान संविधान के अनुसार, लोया जिरगा को अफगान लोगों की सर्वोच्च अभिव्यक्ति माना जाता है। हालाँकि यह आधिकारिक निर्णय लेने वाली संस्था नहीं है एवं न ही इसके निर्णय कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं।
  • फिर भी लोया जिरगा के फैसले को  राष्ट्रपति और अफगानिस्तान की संसद द्वारा अंतिम रूप में देखा जाता है।

अफगानिस्तान में भारत के हित:

Halping-day

  • अफगानिस्तान में स्थिरता बनाए रखने  में भारत की बड़ी हिस्सेदारी है। भारत द्वारा अफगानिस्तान के विकास में काफी संसाधन लगाए गए हैं। जैसे-अफगान संसद (Afghan Parliament), ज़रीन-डेलारम राजमार्ग (Zaranj-Delaram Highway), अफगानिस्तान-भारत मैत्री बांध (सलमा बांध) Afghanistan-India Friendship Dam (Salma Dam) इत्यादि का निर्माण अफगानिस्तान में भारत के सहयोग से किया गया है।
  • अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार का भारत द्वारा समर्थन किया जाता है जिसे भारत,पाकिस्तान के लिये रणनीतिक तौर पर देखता है।
  • तालिबान की बढ़ी हुई राजनीतिक सैन्य भूमिका  एवं उसके क्षेत्रीय नियंत्रण का विस्तार भारत के लिये चिंता का विषय होना चाहिये क्योंकि तालिबान को व्यापक रूप से पाकिस्तान का समर्थक माना जाता है।
  • अफगानिस्तान मध्य एशिया का प्रवेश द्वार है।
  • अमेरिकी सैनिकों की वापसी से इस क्षेत्र में  लश्कर-ए-तैयबा या जैश-ए-मोहम्मद जैसे विभिन्न भारत विरोधी आतंकवादी संगठनों का विकास  हो सकता है।

आगे की राह: 

  • भारत द्वारा अफगानिस्तान में किसी भी वास्तविक शांति प्रक्रिया का समर्थन करना चाहिये। हालाँकि अफगानिस्तान में यह शांति प्रक्रिया एकतरफा है जिसे अमेरिका एवं पाकिस्तान के समर्थन से बढ़ाया जा रहा है।
  • भारत को तालिबान को तब तक मान्यता नहीं देनी चाहिये जब तक कि वह अफगानिस्तान सरकार को मान्यता प्रदान नहीं करता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

रणनीतिक क्षेत्र के लिये सरकार की नीति

प्रिलिम्स के लिये 

निजीकरण से तात्पर्य 

मेन्स के लिये 

रणनीतिक व गैर-रणनीतिक क्षेत्र का महत्त्व   

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सरकार ने यह घोषणा की है कि शीघ्र ही रणनीतिक क्षेत्रों पर एक नीति बनाई जाएगी और  इसके साथ ही गैर-रणनीतिक क्षेत्रों में कंपनियों के पूर्ण निजीकरण की प्रक्रिया को गति प्रदान की जाएगी। 

प्रमुख बिंदु

  • आर्थिक कार्य विभाग (Department of Economic Affairs) के सचिव के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण के लिये शीघ्र ही दिशा-निर्देश जारी किये जाएँगे।
  • वर्ष 1956 के बाद ऐसा पहली बार होगा जब सरकार के पास रणनीतिक व गैर-रणनीतिक क्षेत्र में राज्य स्वामित्व वाली कंपनियों की सीमित संख्या होगी।
  • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मई माह में आत्मानिभर भारत अभियान के तहत आर्थिक पैकेज की घोषणा करते हुए कहा था कि प्रस्तावित नीति निजी क्षेत्रों के साथ-साथ कम से कम राज्य के स्वामित्व वाली एक कंपनी की उपस्थिति की आवश्यकता वाले रणनीतिक क्षेत्रों की सूची को अधिसूचित करेगी।
  • अन्य सभी क्षेत्रों में सरकार की योजना सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के निजीकरण की है, जो व्यवहार्यता पर निर्भर करेगी।
  • अनावश्यक प्रशासनिक लागतों को कम करने के लिये रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक उद्यमों की संख्या 4 तक निर्धारित की गई है और न्यूनतम एक इकाई का संचालन होगा।

निजीकरण से तात्पर्य 

  • निजीकरण का तात्पर्य ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें किसी विशेष सार्वजनिक संपत्ति अथवा कारोबार का स्वामित्व सरकारी संगठन से स्थानांतरित कर किसी निजी संस्था को दे दिया जाता है। अतः यह कहा जा सकता है कि निजीकरण के माध्यम से एक नवीन औद्योगिक संस्कृति का विकास संभव हो पाता है।
  • यह भी संभव है कि सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र को संपत्ति के अधिकारों का हस्तांतरण बिना विक्रय के ही हो जाए। तकनीकी दृष्टि से इसे अविनियमन (Deregulation) कहा जाता है। इसका आशय यह है कि जो क्षेत्र अब तक सार्वजनिक क्षेत्र के रूप में आरक्षित थे उनमें अब निजी क्षेत्र के प्रवेश की अनुमति दे दी जाएगी।
  • वर्तमान में यह आवश्यक हो गया है कि सरकार स्वयं को ‘गैर सामरिक उद्यमों’ के नियंत्रण, प्रबंधन और संचालन के बजाय शासन की दक्षता पर केंद्रित करे। इस दृष्टि से निजीकरण का महत्त्व भी बढ़ गया है।

रणनीतिक व गैर-रणनीतिक क्षेत्र से तात्पर्य

  • वर्तमान में रणनीतिक क्षेत्र की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है।
  • रणनीतिक क्षेत्रों को औद्योगिक नीति के आधार पर परिभाषित किया जाता था। 
  • सरकार ने औद्योगिक नीति के आधार पर केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों (Central Public Sector Enterprises-CPSE) को 'रणनीतिक' और 'गैर-रणनीतिक' क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया है जो समय-समय पर बदलते रहते हैं। 
  • वित्त मंत्रालय के अंतर्गत काम कर रहे निवेश और सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग ने 18 रणनीतिक क्षेत्रों को तीन व्यापक खंडों- (A) खनन और पर्यवेक्षण, (B) विनिर्माण, प्रसंस्करण एवं निर्माण (C) सेवा क्षेत्र। 
  • रणनीतिक क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य सभी सार्वजनिक उपक्रम गैर-रणनीतिक क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। 

निजीकरण में सहायक 

  • सरकार ने पहले से ही बड़े  सार्वजनिक उद्यमों के लिये निजीकरण की योजना तैयार कर ली है।
  • इनमें बीपीसीएल, एयर इंडिया, कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया और शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया शामिल हैं। 
  • यह नीति बड़े पैमाने पर निजीकरण और/या केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के समेकन के लिये  विकल्प प्रदान करती है। 
  • निजीकरण पर जोर देने से रसायन और अवसंरचना विकास के क्षेत्र में कार्य करने वाली कंपनियों का निजीकरण हो सकता है। 
  • सरकार का यह निर्णय परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करेगा। 
  • सरकार ने राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों की संख्या को कम करने की इच्छा भी प्रकृट की है, सरकार का तर्क है कि अब बड़े बैंक ही राज्य स्वामित्व के अंतर्गत कार्य करेंगे।
  • राज्य स्वामित्व वाले छोटे बैंकों का नियत समय में निजीकरण हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

विशिष्ट रक्षा उपकरणों के आयात पर प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये

आत्मनिर्भर भारत अभियान, रक्षा खरीद प्रक्रिया, आयुध निर्माणी बोर्ड

मेन्स के लिये

भारतीय रक्षा क्षेत्र: चुनौती और संभावनाएँ, रक्षा क्षेत्र संबंधी FDI नीति

चर्चा में क्यों?

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 101 वस्तुओं की सूची की घोषणा की है, जिनके आयात पर रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रतिबंध लगाया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • रक्षा मंत्रालय के हालिया निर्णय का अर्थ है कि सशस्त्र बल, नौसेना और वायु सेना के लिये इन 101 वस्तुओं की खरीद केवल घरेलू विनिर्माताओं के माध्यम से ही की जाएगी।
  • घोषित नियमों के अनुसार, यह घरेलू निर्माता, निजी क्षेत्र से भी हो सकता है और रक्षा क्षेत्र का कोई सार्वजनिक उपक्रम भी हो सकता है। 
  • रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि आने वाले समय में इस सूची में कुछ अन्य वस्तुओं को भी शामिल किया जा सकता है।
  • इसके अलावा देश में रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिये चालू वित्त वर्ष में घरेलू पूंजीगत खरीद हेतु 52,000 करोड़ रुपए का एक अलग बजट प्रावधान किया गया है।

सूची में शामिल वस्तुएँ 

  • रक्षा मंत्रालय द्वारा इस संबंध में जारी की गई सूची में रक्षा क्षेत्र से संबंधित सामान्य वस्तुओं से लेकर उन्नत तकनीक संबंधी वस्तुओं को शामिल किया गया है।
  • इस सूची में पॉल्यूशन कंट्रोल वेसल्स, लाइट ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, रडार, असॉल्ट राइफलें, सोनार सिस्टम, आर्टिलरी गन्स आदि शामिल हैं।
  • गौरतलब है कि रक्षा आयात संबंधी सरकार के उक्त प्रतिबंध चरणबद्ध तरीके से लागू किये जाएंगे, सरकार द्वारा घोषित 101 वस्तुओं की सूची में कुल 69 वस्तुओं के आयात पर इसी वर्ष दिसंबर माह से प्रतिबंध लगाया जाएगा। अगले चरण में 11 वस्तुओं के आयात पर वर्ष 2021 के अंत तक प्रतिबंध लागू किया जाएगा।
  • वहीं सूची में शामिल 12 वस्तुओं पर वर्ष 2023 के अंत में और 8 वस्तुओं पर वर्ष 2024 में प्रतिबंध लागू होंगे।
  • इसके अंतिम चरण में लॉन्ग रेंज - लैंड अटैक क्रूज मिसाइल शामिल है, जिसके आयात पर वर्ष 2025 के अंत में प्रतिबंध लागू किये जाएंगे। 

आवश्यकता

  • बीते कई वर्षों से भारत विश्व के शीर्ष तीन रक्षा आयातकों में से एक रहा है, इसी तथ्य के मद्देनज़र अब सरकार रक्षा क्षेत्र में आयातित वस्तुओं पर निर्भरता को कम करना चाहती है और घरेलू रक्षा विनिर्माण उद्योग को एक नई ऊर्जा प्रदान करना चाहती है।
  • विश्व स्तर पर रक्षा निर्यात और आयात को ट्रैक करने वाली संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, कुल 16.75 बिलियन डॉलर के आयात के साथ भारत वर्ष 2014 से वर्ष 2019 के बीच विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा उपकरण आयातक देश था।
  • ध्यातव्य है कि सूची में शामिल उत्पादों की तकरीबन 260 योजनाओं के लिये अप्रैल 2015 से अगस्‍त 2020 के बीच तीनों सेनाओं ने लगभग साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए का अनुबंध किया था।

महत्त्व

  • मुख्य रक्षा उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाकर सरकार ने घरेलू रक्षा उद्यमों को आगे बढ़ाने और तीनों सेनाओं की रक्षा संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर दिया है।
  • ध्यातव्य है कि रक्षा मंत्रालय ने रक्षा क्षेत्र के निजी विनिर्माताओं और रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों को अपने स्वयं के डिज़ाइन और विकास क्षमताओं का उपयोग करके मंत्रालय द्वारा घोषित सूची में शामिल वस्तुओं के निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण अवसर दिया है।
  • इस संबंध में घोषणा करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अब रक्षा मंत्रालय प्रधानमंत्री द्वारा घोषित आत्मनिर्भर भारत अभियान और रक्षा उत्पादन के स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के लिये पूरी तरह से तैयार है।
  • सरकार को उम्मीद है कि भारत का रक्षा विनिर्माण क्षेत्र केवल घरेलू बाज़ार की आवश्यकताओं को पूरा करके ही नहीं, बल्कि रक्षा क्षेत्र में एक निर्यातक बनकर भी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
  • सरकार को उम्मीद है कि आगामी 6 से 7 वर्ष के भीतर घरेलू उद्योग के साथ सूची में शामिल वस्तुओं को लेकर लगभग 4 लाख करोड़ रुपए के अनुबंध किये जाएंगे।

थल सेना, नौसेना और वायु सेना से विमर्श 

  • सरकार ने घोषणा की है कि प्रतिबंध वस्तुओं की सूची की घोषणा उन सभी संबंधित हितधारकों (जिसमें तीन सेवाएँ भी शामिल हैं) से विचार-विमर्श करने के बाद ही की गई है, जो सूची में शामिल उपकरणों, हथियारों और प्लेटफार्मों का उपयोग करते हैं।
  • 101 वस्तुओं की सूची की घोषणा करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि रक्षा मंत्रालय ने उपकरणों की इस सूची से संबंधित निर्णय के लिये भारतीय घरेलू उद्योग की वर्तमान और भविष्य की क्षमता का आकलन करते हुए सशस्त्र बल और निजी तथा सार्वजनिक विनिर्माताओं समेत सभी हितधारकों के साथ कई दौर की परामर्श प्रक्रिया के बाद सूची तैयार की है।

आत्मनिर्भर भारत अभियान और रक्षा क्षेत्र 

  • आत्मनिर्भर भारत अभियान संबंधी राहत पैकेज की घोषणा करते हुए मई माह में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने रक्षा क्षेत्र से संबंधित इस प्रकार की सूची बनाने के संकेत दिये थे।
  • वित्त मंत्री ने उल्लेख किया था कि सरकार एक निश्चित समय सीमा में आयात पर प्रतिबंध के लिये हथियारों और उपकरणों की एक सूची अधिसूचित करेगी और आयातित उपकरणों के स्वदेशीकरण पर ज़ोर देगी।
  • निर्मला सीतारमण के अनुसार, सरकार ‘रक्षा उपकरणों की घरेलू खरीद के लिये अलग बजट प्रावधान बनाएगी, जिसमें विशाल रक्षा आयात बिल को कम करने में मदद मिलेगी।
  • वित्त मंत्री द्वारा रक्षा क्षेत्र को लेकर आत्मनिर्भर भारत अभियान संबंधी राहत पैकेज के तहत की गई अन्य घोषणाओं में स्‍वत: रूट (Automatic Route) के तहत रक्षा विनिर्माण में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करना, आयुध निर्माणी बोर्ड के निगमीकरण के माध्यम से उसकी स्वायत्तता और जवाबदेही में सुधार करना और समयबद्ध रक्षा खरीद प्रक्रिया और तेज़ी से निर्णय लेने संबंधी प्रक्रिया का निर्माण आदि शामिल था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

समुद्री और स्टार्टअप हब- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह

प्रिलिम्स के लिये:

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह 

मेन्स के लिये:

सबमरीन केबल कनेक्टिविटी परियोजना का महत्त्व

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री के द्वारा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिये सबमरीन केबल कनेक्टिविटी परियोजना का उद्घाटन किया गया है।

मुख्य बिंदु :  

  • प्रधान मंत्री के अनुसार,  अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अपने सामरिक महत्त्व के कारण, "समुद्री और स्टार्टअप हब" के रूप में विकसित होने जा रहा है और इसके लिये सरकार ने इस प्रकार की विकास पहलों पर प्रकाश डाला है।

  •  सबमरीन ओएफसी लिंक चेन्नई एवं पोर्ट ब्लेयर के बीच 2x 200 गीगाबाइट प्रति सेकेंड की बैंडविड्थ उपलब्ध कराएगा।  
  •  1224 करोड़ रुपए की लागत से चेन्नई-पोर्ट ब्लेयर और पोर्ट ब्लेयर एवं 7 द्वीपों के बीच समुद्र के भीतर 2300 किलोमीटर लंबी केबल बिछाई गई  है। 
  •  यह  पोर्ट ब्लेयर को स्वराज द्वीप , लिटिल अंडमान , कार निकोबार , कामोरता , ग्रेट निकोबार , लॉन्ग आइलैंड और रंगत से जोड़ेगी। 

परियोजना का महत्त्व:

  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को तीव्र मोबाइल और लैंडलाइन टेलीकॉम सेवाएँ मिलेंगी। 
  • इस क्षेत्र को अब बाहरी दुनिया से जुड़े रहने में कोई समस्या नहीं होगी। 
  • अंडमान में प्रस्तावित ट्रांसशिपमेंट हब यहाँ स्थित द्वीपों के समूहों को नीली अर्थव्यवस्था  तथा  समुद्री तटवर्ती और स्टार्टअप हब का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बनने में मदद करेगा।
  • इस द्वीप में अब टेली मेडिसिन, टेली एजुकेशन जैसी सेवाओं का विस्तार किया जा सकेगा, जिससे वहाँ के नागरिकों का जीवन स्तर उच्च होगा।  
  • इस पहल से इन क्षेत्रों में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे रोज़गार सृजन में भी वृद्धि होगी। 

Andaman-NIcobar

 उच्च प्रभाव वाली प्राथमिक परियोजनाएँ:

अंडमान और निकोबार  द्वीपसमूह के 12 द्वीपों को समुद्री खाद्य पदार्थ, जैविक उत्पाद और नारियल आधारित उत्पादों से संबंधित उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उच्च प्रभाव वाली परियोजनाओं के लिये चुना गया है।

आगे की राह :

  • स्वतंत्रता आंदोलन में अंडमान द्वीपसमूह का महत्त्व विभिन्न स्थानों पर देखा गया है  तथा सबमरीन केबल कनेक्टिविटी के रूप में इस क्षेत्र को दी गई यह सौगात आत्मनिर्भर भारत परियोजना और नए भारत के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
  • सरकार इन द्वीपों के भीतर और देश के बाकी हिस्सों में सबमरीन केबल कनेक्टिविटी के बीच हवाई संपर्क को बेहतर बनाने के लिये काम कर रही है, ताकि इनके विकास को नई दिशा दी जा सके।
  • कोरोना महामारी के प्रसार को देखते हुए टेलीमेडिसिन यहाँ के दुर्गम क्षेत्रों हेतु वरदान साबित हो सकती है।  

स्रोत-द हिंदू


शासन व्यवस्था

टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म: ई-संजीवनी और ई-संजीवनी ओपीडी

प्रिलिम्स के लिये

टेलीमेडिसिन, ई-संजीवनी, ई-संजीवनी ओपीडी

मेन्स के लिये

टेलीमेडिसिन अनुप्रयोग के क्षेत्र, इसकी उपयोगिता और संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ ‘ई-संजीवनी’ और ‘ई-संजीवनी ओपीडी’ प्‍लेटफॉर्मों की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए इन टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्मों को लोकप्रिय बनाने में राज्‍यों के योगदान की सराहना की।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन (Telemedicine) सेवा प्‍लेटफॉर्मों (ई-संजीवनी और ई-संजीवनी ओपीडी) ने 1,50,000 से अधिक टेली-परामर्शों (Tele-Consultation) को पूरा किया और अपने घरों में रहते हुए ही मरीज़ों को डॉक्‍टरों के साथ परामर्श करने में सक्षम बनाया है।
  • नवंबर, 2019 के बाद बहुत कम समय में ही ‘ई-संजीवनी’ और ‘ई-संजीवनी ओपीडी’ द्वारा टेली-परामर्श कुल 23 राज्यों (जिसमें देश की 75 प्रतिशत आबादी रहती है) द्वारा लागू किया गया है और अन्य राज्य इसको शुरू करने की प्रक्रिया में हैं।
  • ‘ई-संजीवनी और ‘ई संजीवनी ओपीडी’ प्लेटफॉर्म के माध्यम से सबसे अधिक परामर्श प्रदान करने वाले शीर्ष राज्यों में तमिलनाडु (32,035 परामर्श) और आंध्रप्रदेश (28,960 परामर्श) आदि शामिल हैं।
  • गौरतलब है कि दोनों प्‍लेटफॉर्मों (ई-संजीवनी और ई-संजीवनी ओपीडी) को सेंटर फॉर डवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (Centre for Development of Advanced Computing: C-DAC) द्वारा विकसित किया गया है।

  • ई-संजीवनी: 
    • डॉक्टर-टू-डॉक्टर टेली-परामर्श संबंधी इस प्रणाली का कार्यान्वयन आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (AB-HWCs) कार्यक्रम के तहत किया जा रहा है। 

    • गौरतलब है कि इसके तहत वर्ष 2022 तक ‘हब एंड स्पोक’ (Hub and Spoke) मॉडल का उपयोग करते हुए देश भर के सभी 1.5 लाख स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों में टेली-परामर्श प्रदान करने की योजना बनाई गई है।

    • इस मॉडल में राज्यों द्वारा पहचाने एवं स्थापित किये गए चिकित्‍सा कॉलेज तथा ज़िला अस्पताल ‘हब’ (Hub) के रूप में कार्य करेंगे और वे देश भर के स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों यानी ‘स्पोक’ (Spoke) को टेली-परामर्श सेवाएँ उपलब्ध कराएंगे।
  • ई-संजीवनी ओपीडी: 
    • इसकी शुरुआत COVID-19 महामारी के दौर में रोगियों को घर बैठे डॉक्टरों से परामर्श प्राप्त करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से की गई थी, इसके माध्यम से नागरिक बिना अस्पताल जाए व्यक्तिगत रूप से डॉक्टरों से परामर्श कर सकते हैं।
    • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह एंड्रॉइड मोबाइल एप्लीकेशन के रूप में सभी नागरिकों के लिये उपलब्ध है। वर्तमान में लगभग 2800 प्रशिक्षित डॉक्टर ई-संजीवनी ओपीडी (eSanjeevaniOPD) पर उपलब्ध हैं, और रोज़ाना लगभग 250 डॉक्टर और विशेषज्ञ ई-स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध करा रहे हैं।
    • इसके माध्यम से आम लोगों के लिये बिना यात्रा किये स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ प्राप्त करना काफी आसान हो गया है।

टेलीमेडिसिन का अर्थ?

  • टेलीमेडिसिन स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की एक उभरती हुई शैली है, जो कि स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर को दूरसंचार प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए कुछ दूरी पर बैठे रोगी की जाँच करने और उसका उपचार करने की अनुमति देता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, टेलीमेडिसिन का अभिप्राय पेशेवर स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी (IT) का उपयोग करके ऐसे स्थानों पर रोगों की जाँच, उपचार तथा रोकथाम, अनुसंधान और मूल्यांकन आदि की सेवा प्रदान करना है, जहाँ रोगी और डॉक्टर के बीच दूरी एक महत्त्वपूर्ण कारक हो।
  • टेलीमेडिसिन का सबसे शुरुआती प्रयोग एरिज़ोना प्रांत के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रहे लोगों को आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को प्रदान करने के लिये किया गया।
  • गौरतलब है कि राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) ने टेलीमेडिसिन के शुरुआती विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वहीं भारत में इसरो ने वर्ष 2001 में टेलीमेडिसिन सुविधा की शुरू पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर की थी, जिसने चेन्नई के अपोलो अस्पताल को चित्तूर ज़िले के अरगोंडा गाँव के अपोलो ग्रामीण अस्पताल से जोड़ा था।

आगे की राह

  • विदित हो कि ई-संजीवनी और ई-संजीवनी ओपीडी जैसे तकनीक आधारित मंच ग्रामीण क्षेत्र के उन लोगों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकते हैं, जिनके पास इस प्रकार की सेवाओं तक आसान पहुँच उपलब्ध नहीं है।
  • टेलीमेडिसिन के उपयोग से स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के समय और लागत दोनों में काफी कमी आती है। साथ ही इस प्रकार के प्लेटफॉर्म भारत के ‘डिजिटल इंडिया’ दृष्टिकोण के भी अनुरूप हैं और मौजूदा COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न परिस्थितियों को सही ढंग से संबंधित करने में भी मददगार साबित हो सकते हैं।
  • ई-संजीवनी और ई-संजीवनी ओपीडी को लेकर कई नवीन प्रयास किये हैं, उदाहरण के लिये केरल ने पलक्कड़ ज़िले की जेल में टेलीमेडिसिन सेवाओं को सफलतापूर्वक लागू किया है, इस प्रकार आवश्यक है कि राज्य द्वारा अपनाई गई सर्वोत्तम प्रथाओं का विश्लेषण किया जाए और यदि संभव हो तो उन्हें देशव्यापी स्तर पर लागू किया जाए।

स्रोत: पी.आई.बी


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