भारत में वायदा बाज़ार
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (Indian Council for Research on International Economic Relations-ICRIER) द्वारा किये गए अध्ययन से सामने आया है कि वायदा बाज़ारों (Future Markets) में व्यापार करने के लिये किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organizations-FPOs) को सशक्त बनाने की ज़रूरत है।
क्या होते हैं किसान उत्पादक संगठन?
- 'किसान उत्पादक संगठनों’ का अभिप्राय किसानों, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के समूह से होता है। इस प्रकार के संगठनों का प्रमुख उद्देश्य कृषि से संबंधित चुनौतियों के प्रभावी समाधान की खोज करना होता है।
- FPO प्राथमिक उत्पादकों जैसे- किसानों, दूध उत्पादकों, मछुआरों, बुनकरों और कारीगरों आदि द्वारा गठित क़ानूनी इकाई होती है।
- FPO को भारत सरकार तथा नाबार्ड जैसे संस्थानों से भी सहायता प्राप्त होती है।
वायदा बाज़ार
(Future Market)
- वायदा बाज़ार का अभिप्राय उस स्थान से होता है जहाँ वायदा/भविष्य के अनुबंधों को ख़रीदा और बेचा जाता है।
- वायदा/भविष्य के अनुबंध वे वित्तीय अनुबंध होते हैं जिनमें खरीदार किसी व्यक्ति को भविष्य में पूर्व निश्चित मूल्य पर परिसंपत्ति खरीदने का वचन देता है।
भारत में वायदा व्यापार :
- भारत का पहला वायदा व्यापार वर्ष 2014 में राम रहीम प्रगति निर्माता कंपनी (यह एक उद्यम है जिसे मध्य प्रदेश के एक आदिवासी क्षेत्र में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी 3,000 महिलाओं ने शुरू किया था) द्वारा नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (National Commodity and Derivatives Exchange-NCDEX) के माध्यम से किया गया था।
- भारत में छोटे किसान अक्सर अपनी सीमित क्षमता के कारण वायदा बाज़ार में व्यापार करने से संकोच करते हैं। भविष्य के बाज़ार को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और कहीं-कहीं इसे सट्टेबाज़ी के रूप में भी लिया जाता है।
- वायदा व्यापार के स्थान पर छोटे किसान विपणन की पारंपरिक प्रणालियों पर अधिक निर्भर रहते हैं। ये लोग उच्च कमीशन लेते हैं, परंतु क्रेडिट और बाज़ार तक आसान पहुँच प्रदान करते हैं।
नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज
(National Commodity and Derivatives Exchange-NCDEX)
- NCDEX एक ऑनलाइन कमोडिटी एक्सचेंज है जो मुख्य रूप से कृषि संबंधी उत्पादों में व्यवहार करता है।
- यह सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी (Public Limited Company) है, जिसे कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत 23, अप्रैल 2003 को स्थापित किया गया था।
- इस एक्सचेंज की स्थापना भारत के कुछ प्रमुख वित्तीय संस्थानों जैसे- ICICI बैंक लिमिटेड, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज तथा राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक आदि द्वारा की गई थी।
- NCDEX का मुख्यालय मुंबई में स्थित है, लेकिन व्यापार की सुविधा के लिये देश के कई अन्य हिस्सों में भी इसके कार्यालय हैं।
वायदा बाज़ार के लाभ :
- वस्तुओं के उचित मूल्य की खोज : जब किसानों को वायदा बाज़ार से जोड़ा जाएगा, तो उन्हें वस्तुओं के उचित मूल्य की खोज करने में सहायता मिलेगी।
- बाज़ार में अधिक तरलता : बाज़ार में किसानों की अधिक भागीदारी बाज़ार को अधिक तरलता प्रदान करेगी। इसके कारण मूल्य की खोज में भी सहायता होगी।
- मध्यस्थों की समाप्ति : वायदा बाज़ार में कारोबार करने से किसानों को सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि उनको पिछले साल की कीमतों के बजाय अगले साल की कीमतों के आधार पर निर्णय लेने में मदद मिलेगी, साथ ही वे बिचौलियों और व्यापारियों के चंगुल से भी बाहर आ जाएंगे और अंततः कृषक परिवारों की आय में बढ़ोतरी होगी।
आगे की राह :
- चीन के उदाहरण से सीख लेते हुए भारत सरकार को भी वस्तुओं की कीमतों और खरीद में सीमित हस्तक्षेप करना चाहिये।
- वायदा व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार को उन क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिये जहाँ उत्पादन सबसे अधिक होता है और उनके आसपास गोदामों एवं वितरण केंद्रों का निर्माण करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
भारत के फास्ट ट्रैक कोर्ट की वास्तविकता
संदर्भ
सरकार द्वारा पोक्सो अधिनियम (POCSO Act) के अंतर्गत लंबित मामलों की सुनवाई के लिये 1023 फास्ट ट्रैक कोर्ट के निर्माण का प्रस्ताव रखा गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी आदेश दिया है कि जिन ज़िलों में 100 से अधिक (पोक्सो अधिनियम के अंतर्गत आने वाले) मामले लंबित हैं, वहाँ इनके निपटान हेतु विशेष न्यायालयों की स्थापना की जाए।
प्रमुख बिंदु
- फास्ट ट्रैक कोर्ट (Fast-track courts-FTCs) लंबे समय से अस्तित्व में हैं, पहली बार इनकी स्थापना वर्ष 2000 में की गई थी।
- कानून और न्याय मंत्रालय के अनुसार, मार्च 2019 के अंत तक देश भर में कुल 581 FTCs कार्यरत थे, जिनमें लगभग 5.9 लाख मामले लंबित थे।
- 56 प्रतिशत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों जिनमें कर्नाटक, मध्यप्रदेश, गुजरात जैसे राज्य शामिल है, में एक भी FTC नहीं हैं।
- केंद्र द्वारा वर्ष 2000-2001 और वर्ष 2010-2011 के बीच FTCs के लिये 870 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की गई।
FTCs से संबंधित चिंताएँ
- मौजूदा तंत्र के अनुकूलन और समस्याओं के समाधान के बिना न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने से ऐच्छिक परिणाम प्राप्त नहीं होंगे।
- नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, विभिन्न राज्यों में FTCs द्वारा मामलों को हल किये जाने के तरीकों में काफी विविधता है।
- कुछ राज्यों द्वारा FTCs को बलात्कार और यौन अपराधों से संबंधित मामले सौंपे जाते हैं जबकि कुछ राज्यों द्वारा FTCs को अन्य मामले भी सौंपे जाते हैं।
- बहुत से FTCs तकनीकी साधनों की कमी के चलते गवाहों की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं कर पाते हैं तथा इनके पास नियमित कर्मचारी भी नहीं होते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय की कोर्ट न्यूज़ से मिले एक डाटा के अनुसार, कर्नाटक में वर्ष 2012 से 2017 के बीच जजों की संख्या में वृद्धि तो हुई किंतु लंबित मामलों में कोई विशेष कमी देखने को नहीं मिली।
आगे की राह
- कर्मचारियों की संख्या और आई. टी. अवसंरचना, फोरेंसिक विज्ञान से संबंधित प्रयोगशालाओं से मिलने वाली रिपोर्ट में देरी, तुच्छ विज्ञापन और बढ़ते हुए मामलों की सूची आदि कुछ ऐसी समस्याएँ हैं, जिनका जल्द-से-जल्द निवारण किया जाना चाहिये।
- मामलों के समय पर निपटान के लिये मुद्दों की सटीक तरीके से पहचान की जानी चाहिये।
- राज्यों को उच्च ज़िला न्यायधीशों के साथ मिलकर इस दिशा में कार्य करना चाहिये ताकि विभिन्न ज़िला न्यायालयों द्वारा सामना किये जा रहे मामलों की जानकारी प्राप्त की जा सकें।
- महानगरों और गैर-महानगरों दोनों के संदर्भ में लंबित मामलों की सुनवाई हेतु पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिये।
- FTCs की रोज़ाना कार्यवाही को प्रभावित करने वाले कुछ जटिल मुद्दों जैसे- अनियमित कर्मचारी, भौतिक अवसंरचना की कमी, फोरेंसिक प्रयोगशालाओं में स्टाफ की कमी, आदि को गंभीरता से लेते हुए आवश्यक कार्यवाही की जानी चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
वर्ष 2021 में डिज़िटल मीडिया की पहुँच
चर्चा में क्यों?
हाल ही में फिक्की (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry-FICCI) द्वारा जारी वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की बढ़ती संख्या के कारण वर्ष 2019 में भारतीय डिज़िटल मीडिया (Digital Media) फिल्म और मनोरंजन उद्योग से आगे निकल सकता है। वर्ष 2021 तक इसके प्रिंट मीडिया से आगे निकल कर 5.1 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की संभावना है।
प्रमुख बिंदु
- वर्ष 2018 में फिल्म उद्योग का बाज़ार 2.5 बिलियन डॉलर का था एवं वर्ष 2019 में इसके 2.8 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जबकि वर्ष 2018 में प्रिंट मीडिया का मूल्य 4.4 बिलियन डॉलर था और वर्ष 2021 में इसके 4.8 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
- रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में डिज़िटल मीडिया ने 42% की वृद्धि दर्ज की, जिसका मूल्य 2.4 बिलियन डॉलर था। अर्थात् अधिकतर भारतीयों ने फोन का इस्तेमाल करते समय अपना 30% समय केवल मनोरंजन पर ही खर्च किया। यही कारण है कि वर्ष 2019 में डिज़िटल मीडिया के 3.2 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
- विश्व में चीन के बाद भारत में सबसे अधिक इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं, भारत में लगभग 570 मिलियन इंटरनेट सब्सक्राइबर हैं, जिनकी संख्या प्रतिवर्ष 13% की दर से बढ़ रही है। वर्ष 2018 में देश में 325 मिलियन ऑनलाइन वीडियो दर्शक और 150 मिलियन ऑडियो स्ट्रीमिंग उपयोगकर्त्ता थे।
- वर्ष 2021 तक देश में लगभग 30-35 मिलियन भुगतान करने वाले OTT वीडियो सब्सक्राइबर और 6-7 मिलियन भुगतान करने वाले ऑडियो ग्राहक होंगे। विज्ञापन-आधारित मॉडल का मूल्य 2.2 बिलियन डॉलर था, जबकि वर्ष 2018 में यह सब्सक्रिप्शन मूल्य 0.2 बिलियन डॉलर था।
- वर्ष 2021 तक विज्ञापन मॉडल के 4.3 बिलियन डॉलर और सब्सक्रिप्शन मॉडल के 0.8 बिलियन डॉलर पहुँचने का अनुमान है।
- ट्राई के नए टैरिफ आदेश (TRAI Tariff Order) में OTT प्लेटफार्मों (Over The Top Plateforms-OTT Plateform) को टेलीविज़न (Television) और OTT सामग्री के चुनावों (OTT Content Choices) और लागतों के बीच बढ़ती समानता के कारण लाभ होगा।
- कुल मिलाकर भारतीय मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र $23.9 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है। इसमें वर्ष 2017 के मुकाबले 13.4% की वृद्धि हुई है और वर्ष 2021 तक इसके बढ़कर 33.6 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है।
- रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 2018-2021 के दौरान इस क्षेत्र में अधिकांश राजस्व ऑनलाइन गेमिंग और डिज़िटल मीडिया द्वारा ही आएगा। साथ ही यह भी कहा गया है कि राजस्व के मामले में सबसे बड़े खंड के रूप में टेलीविज़न क्षेत्र की स्थिति बरकरार रहेगी।
- भारतीय ऑनलाइन गेमिंग ग्राहकों की संख्या वर्ष 2017 में 183 मिलियन से बढ़कर 2018 में 278 मिलियन हो गई और वर्ष 2018 में राजस्व के $0.7 बिलियन से बढ़कर वर्ष 2021 में $1.7 बिलियन होने की उम्मीद है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय प्रसारकों का वैश्विक स्तर पर विस्तार जारी रहेगा। वर्ष 2021 तक अंतर्राष्ट्रीय राजस्व 15% के साथ शीर्ष पर पहुँच सकता है
स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)
सॉफ्टवेयर डिफाइंड नेटवर्क (SDN)
चर्चा में क्यों?
सॉफ्टवेयर डिफाइंड नेटवर्क (SDN) के विकास ने पारंपरिक नेटवर्क के प्रतिमानों को विस्थापित किया है।
“SDN एक नवीन कंप्यूटर आर्किटेक्चर है जो पारंपरिक नेटवर्क की सीमाओं से परे जाकर नेटवर्क को लचीला और कुशल बनाता है।”
प्रमुख बिंदु
- SDN का विकास वर्तमान नेटवर्क अनुप्रयोगों को अनुकूल व कम लागत योग्य बनाता है।
- उद्यम नेटवर्क, वाइड एरिया नेटवर्क, डेटा सेंटर नेटवर्क और वायरलेस नेटवर्क सहित SDN के कई अनुप्रयोग हैं।
- यह कंपनियों और सेवा प्रदाताओं को व्यावसायिक आवश्यकताओं के अनुरूप तेज़ी से प्रतिक्रिया करने और लचीलेपन हेतु सक्षम बनाता है जिससे संसाधनों का बेहतर प्रबंधन होता है।
- SDN बिग डेटा अनुप्रयोगों के साथ कई प्रचलित मुद्दों को हल करने में उपयोगी है जिसमें क्लाउड डेटा केंद्रों में बिग डेटा प्रोसेसिंग और डेटा डिलीवरी भी शामिल है।
- यह नेटवर्क का प्रबंधन कुशलता से कर सकता है जिससे बिग डेटा एप्लीकेशन के निष्पादन में सुधार होगा।
- भविष्य में SDN बिग डेटा के अधिग्रहण, संचरण, भंडारण और प्रसंस्करण की उपयुक्त सुविधा प्रदान कर सकता है।
- भविष्य में बिग डेटा, यातायात अभियंत्रण और सुरक्षा हमलों का प्रतिरोध करने में SDN के लिये उपयोगी होगा।
- SDN सक्षम नेटवर्क उन सॉफ्टवेयरों द्वारा नियंत्रित होता है जो नेटवर्किंग उपकरणों से परे रहते हैं और भौतिक कनेक्टिविटी प्रदान करते हैं।
SDN से संबंधित मुद्दे
- SDN कंप्यूटर आर्किटेक्चर निर्माण कई छोटे और मध्यम श्रेणी के संगठनों के लिये एक कठिन प्रक्रिया होगी। इससे SDN प्रौद्योगिकी के दिग्गजों को लाभ प्रदान करेगा जिससे वैश्विक तकनीकी असमानता को बढ़ावा मिलेगा।
- डेटा गोपनीयता के संदर्भ में SDN भी डेटा सुरक्षा बहस में शामिल हो जाएगा।
स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन
मछलियों में मरकरी/पारे का संचय
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, हैदराबाद (Indian Institute of Technology, Hyderabad- IIT-H), हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) और कनाडा की सरकारी एजेंसी फिशरीज़ एंड ओशंस कनाडा (Fisheries and Oceans Canada) के एक संयुक्त शोध के अनुसार, पारे (Mercury- Hg) के प्रदूषण स्तर में कमी आई है, लेकिन इसकी मात्रा मछलियों में बढ़ गई है।
प्रमुख बिंदु
- वर्ष 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध से समुद्री जल में मिथाइल मरकरी (Methyl Mercury) के कम होने के बावज़ूद मछलियों में जमा होने वाली विषाक्तता की मात्रा बढ़ी हुई पाई गई है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा कुछ दिन पहले जर्नल नेचर (Journal Nature) में प्रकाशित की गई थी।
- इस शोध में यह बात भी स्पष्ट हुई है कि मछलियों की अलग-अलग प्रजातियों में पारे का संचय अलग-अलग मात्रा में है।
- मछलियों की कुछ प्रजातियों में पारा पहले की तुलना में कम पाया गया, जबकि कुछ में पारे की अति वृद्धि देखी गई।
- मछलियों में पारे के संचय में भिन्नता हाल के वर्षों में समुद्र के तापमान में बदलाव और मत्स्य अतिदोहन के कारण मछलियों के आहार पैटर्न में बदलाव का परिणाम है।
- मछलियों एवं अन्य समुद्री जीवों में पारे की मात्रा को कम करने के लिये समुद्र में प्रवेश करने वाले पारे की मात्रा को कम करने के वैश्विक प्रयास किये गए हैं।
- शोधकर्त्ताओं ने इस बात पर विशेष ध्यान केंद्रित किया कि क्या सभी पर्यावरणीय उपायों ने मछलियों में पारे के स्तर में वृद्धि की समस्या को कम किया है या बढ़ा दिया है।
- मछलियों में पारा संचय की प्रक्रियाओं को समझने के लिये अटलांटिक महासागर में स्थित मेन की खाड़ी (Gulf of Maine) को चुना गया।
- इस खाड़ी में अटलांटिक कॉड मछली (Atlantic cod fish) में मिथाइल मरकरी (Methylmercury) की सांद्रता में 23% तक की वृद्धि पाई गई।
- शोधकर्त्ताओं ने पारिस्थितिकी तंत्र और पारे की सांद्रता पर तीन दशकों के डेटा का इस्तेमाल किया तथा पारा जैव संचय के लिये एक मॉडल विकसित किया।
मछली का चयापचय
Fish metabolism
- मछलियों में पारा जमा होने के तीन कारक होते हैं:
- मत्स्य अतिदोहन (Overfishing): यह समुद्री जीवों को आहार परिवर्तन की ओर प्रेरित करता है।
- समुद्री जल के तापमान में परिवर्तन: यह मछली के चयापचय में परिवर्तन करता है तथा इनकी वृद्धि के बजाय जीवन की सुरक्षा अर्थात् अस्तित्व के संकट से बचाव को प्रेरित करता है।
- प्रदूषण के परिणामस्वरूप समुद्री जल में पारे की मात्रा में परिवर्तन।
पारे की सांद्रता का अध्ययन
- शोधकर्त्ताओं ने अपने मॉडलिंग अध्ययन में सभी तीनों कारकों को शामिल किया है।
- वर्ष 1970 के बाद से समुद्र में पारे की कमी के बावजूद विभिन्न प्रकार की मछलियों में पारे की सांद्रता में भिन्नता पाई गई।
- वर्ष 1990 और 2012 के बीच एक मछली की प्रजाति अटलांटिक ब्लूफिन टूना (Atlantic BlueFin Tuna- ABFT) के ऊतक में पारे के स्तर में कमी पाई गई थी जो संभवतः समुद्र के तापमान में गिरावट से प्रेरित थी। हालाँकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण इसमें वर्ष 2030 तक पारे का स्तर लगभग 30% तक बढ़ सकता है।
- समुद्री खाद्य श्रृंखला में पारा संचय में समुद्री तापमान का प्रभाव दिखाई देता है।
- हालाँकि यह अध्ययन अटलांटिक महासागर में किया गया था, अन्य समुद्रों एवं महासागरों में मछलियों में पारे का स्तर समुद्र के तापमान तथा मत्स्य अतिदोहन से संबंधित होने की संभावना है।
स्रोत: द हिंदू
भारत छोडो आंदोलन की 77 वीं वर्षगांठ
चर्चा में क्यों?
8 अगस्त 2019 को भारत छोडो आंदोलन (Quit India Movement) की 77वीं वर्षगांठ मनाई गई।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
‘क्रिप्स मिशन’ (Cripps Mission) के वापस लौटने के उपरांत महात्मा गांधी ने एक प्रस्ताव तैयार किया जिसमें अंग्रेज़ों से तुरंत भारत छोड़ने तथा जापानी आक्रमण होने पर भारतीयों से अहिंसक असहयोग का आह्वान किया गया था। 8 अगस्त, 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (All India Congress Committee) की गवालिया टैंक, बंबई में हुई बैठक में ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पारित किया गया तथा घोषणा की गई कि-
- भारत में ब्रिटिश शासन को तुरंत समाप्त किया जाए।
- स्वतंत्र भारत सभी प्रकार की फासीवादी एवं साम्राज्यवादी शक्तियों से स्वयं की रक्षा करेगा तथा अपनी अक्षुण्ता को बनाए रखेगा।
- अंग्रेज़ों की वापसी के पश्चात् कुछ समय के लिये अस्थायी सरकार बनाई जाएगी।
- ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध सविनय अवज्ञा जारी रहेगा।
- महात्मा गांधी इस संघर्ष के नेता रहेंगे।
गतिविधियाँ
- ब्रिटिश सरकार द्वारा रात को 12 बजे ऑपरेशन ज़ीरो ऑवर (Operation Zero Hour) के तहत सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गए। महात्मा गांधी को पुणे की आगा खां जेल में रखा गया ।
- आरंभ में आंदोलन मुख्यतः शहरों में रहा। पटना के सचिवालय में तिरंगा झंडा लगाते समय हुई हिंसक झड़प में कई लोग मारे गए।
- अगस्त के मध्य तक आंदोलन गाँवों तक पहुँच गया और बलिया के चित्तू पांडे ने समानांतर सरकार का गठन किया। इनके लावा महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के नाना पाटिल व तामलुक क्षेत्र के सतीश सावंत ने भी समानांतर सरकारों का गठन किया।
- महिलाओं ने भी आंदोलन में बढ-चढ़ कर हिस्सा लिया। उषा मेहता ने जहाँ गुप्त रूप से रेडियो का संचालन किया, वहीं अरुणा आसफ अली व सुचेता कृपलानी जैसी महिलाओं ने क्रांतिकारियों को संरक्षण प्रदान किया।
- आंदोलन में कम्युनिस्ट पार्टी व मुस्लिम लीग ने भागीदारी नहीं की।
महत्त्व
- यह आंदोलन स्वतंत्रता के अंतिम चरण को इंगित करता है। इसने गाँव से लेकर शहर तक ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी।
- भारतीय जनता के अंदर आत्मविश्वास बढ़ा। समानांतर सरकारों के गठन से जनता में उत्साह की लहर दौड़ी।
- जनता ने अपना नेतृत्व स्वयं संभाला जो राष्ट्रीय आंदोलन के परिपक्व चरण को सूचित करता है।
- इस आंदोलन के दौरान पहली बार राजाओं को जनता की संप्रभुता स्वीकार करने को कहा गया।
स्रोत: पी.आई.बी.
घर खरीददारों को वित्तीय लेनदार का दर्ज़ा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC) में किये गए संशोधन के अंतर्गत घर खरीदने वालों को वित्तीय लेनदार (Financial Creditor) का दर्ज़ा दिये जाने को वैध करार दिया है।
क्या था मामला?
- वर्ष 2018 में एक अध्यादेश पारित कर घर खरीदार को दिवालिया घोषित कंपनी के संदर्भ में ऋणदाता (Creditor) माना गया। जिसके बाद कुछ रियल स्टेट कंपनियों ने इस संशोधन को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- न्यायालय ने संशोधनों को वैध करार देते हुए फ्लैट खरीदारों को वित्तीय लेनदार का दर्जा बरकरार रखा है।
- गत वर्ष IBC में धारा 5 (8) (f) जोड़ने को न्यायालय ने सही ठहराया है।
- न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय के अनुसार, रियल एस्टेट क्षेत्र के नियमन हेतु बने रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 [The Real Estate (Regulation and Development) Act-RERA] को IBC के संशोधनों के साथ पढ़ा जाना चाहिये। यदि किसी मामले में दोनों कानूनों के प्रावधानों में कोई विरोधाभास उत्पन्न होता है तो IBC के संशोधित प्रावधान ही लागू होंगे।
- निर्णय देने वाली पीठ ने घर खरीदारों को डिफ़ॉल्टर होने वाले बिल्डरों के खिलाफ दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया शुरू करने और रिफंड के लिये NCLT में आवेदन दायर करने की अनुमति दी।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, वास्तविक फ्लैट खरीदार बिल्डर के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की मांग कर सकते हैं। न्यायालय ने केंद्र को इसके संबंध में आवश्यक कदम उठाकर न्यायालय में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
- न्यायालय के निर्णय के अनुसार, घर खरीदारों को रियल एस्टेट कंपनियों के खिलाफ आवश्यकतानुसार RERA प्राधिकरण, NCLT और NCDRC के समक्ष कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है।
- न्यायालय ने केंद्र सरकार को NCLT और उसके अपीलीय न्यायाधिकरण में रिक्तियों को भरने का निर्देश दिया है ताकि रियल एस्टेट क्षेत्र में दिवालियेपन के बढ़ते मुकदमों का निपटन किया जा सके।
- अब दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के आवेदन के समय ही उसके पूरे करने की समय सीमा तय होगी। साथ ही वित्तीय लेनदारों के संकट का भी निवारण किया जाएगा।
- न्यायालय ने उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों जिन्होंने अभी तक रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण और अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना नहीं की है, को इनकी स्थापना के लिये तीन महीने का समय दिया गया है।
वित्तीय लेनदार (Financial creditors)
वित्तीय लेनदारों में बड़े पैमाने पर बैंक तथा वित्तीय संस्थान शामिल होते हैं, जिनके पास प्रक्रिया में भाग लेने के लिये तथा प्रतिलाभ प्राप्त करने हेतु योगदान के लिये अपेक्षित अधिकार क्षेत्र उपलब्ध हैं जिसमें कंपनी को फिर से ऊपर उठाने के लिये समाधान योजना जैसा एक महत्त्वपूर्ण कार्य शामिल है।
संशोधन की आवश्यकता
- देश में लाखों लोगों द्वारा निर्माता के पास उनके पैसे फँसे होने की शिकायत के बाद इस प्रकार का संशोधन आवश्यक है क्योंकि मकान न मिलने की स्थिति में भी निर्माताओं द्वारा उनकी जमा राशि नहीं लौटाई जाती। आम लोगों को इस फैसले से काफी राहत मिलेगी क्योंकि इससे पूर्व कानून के अंतर्गत केवल बैंक और अन्य उधारदाताओं को ही अपना बकाया वापस ले सकने का अधिकार था लेकिन आम लोगों के पास इस संबंध में कोई अधिकार नहीं था।
- वर्ष 2018 के संशोधन अधिनियम के अस्तित्व में आने से पहले, दिवालिया घोषित बिल्डर की संपत्ति को उसके कर्मचारियों, लेनदार बैंकों और अन्य परिचालन लेनदारों के बीच विभाजित किया गया था। घर खरीदारों को शायद ही इसके बारे में पता चल पाता था भले ही उनकी मेहनत की कमाई ने उस आवास परियोजना का एक बड़ा हिस्सा प्रदान किया हो।
और पढ़ें…
दिवाला और दिवालियापन (संशोधन) अध्यादेश को स्वीकृति
क्या दिवालियापन संहिता को रेरा के मुकाबले में खड़ा करना उचित है?
स्रोत: द हिंदू
काजिन सारा झील
चर्चा में क्यों?
नेपाल में कुछ ही महीनों पहले एक नई झील ‘काजिन सारा’ (Kajin Sara) की खोज की गई। ऐसी संभावनाएँ जताई जा रही हैं कि यह झील दुनिया की सबसे ऊँची झील हो सकती है।
प्रमुख बिंदु :
- ज्ञातव्य है कि इस नई झील को पर्वतारोहियों के एक समूह ने नेपाल के ‘मनांग’ ज़िले में खोजा था।
- अनुमानतः यह झील 5,200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, परंतु अभी आधिकारिक रूप से इसे सत्यापित नहीं किया गया है।
- संभवतः यह झील 1,500 मीटर लंबी तथा 600 मीटर चौड़ी है।
- यदि आधिकारिक रूप में इस झील की ऊँचाई 5000 मीटर से अधिक होने की पुष्टि हो जाती है तो ‘काजिन सारा’ झील दुनिया की सबसे ऊँची झील बन जाएगी।
- वर्तमान में दुनिया की सबसे लंबी झील ‘टिलिचो झील’ है।
टिलिचो झील
(Tilicho Lake)
- यह झील भी नेपाल में ही स्थित है और वर्तमान में यह दुनिया की सबसे ऊँची झील है।
- यह झील लगभग 4,919 मीटर (16,138 फुट) की ऊँचाई पर स्थित है।
- नेपाल के जल एवं मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, इस झील में कोई भी जलीय जीव नहीं पाया गया है।
स्रोत: द हिंदू
एक्वापोनिक्स: भविष्य का एक विकल्प
चर्चा में क्यों?
एक्वापोनिक्स (Aquaponics) पारिस्थितिकी रूप से एक स्थायी मॉडल है जो एक्वाकल्चर (Aquaculture) के साथ हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) को जोड़ता है।
मुख्य बिंदु
- एक्वापोनिक्स में एक ही पारिस्थितिकी-तंत्र में मछलियाँ और पौधे साथ-साथ वृद्धि कर सकते हैं।
- मछलियों का मल पौधों को जैविक खाद्य उपलब्ध कराता है जो मछलियों के लिये जल को शुद्ध करने का कार्य करता है और इस प्रकार एक संतुलित पारिस्थितिकी-तंत्र का निर्माण होता है।
- तीसरा प्रतिभागी यानि सूक्ष्मजीव या नाइट्राइजिंग बैक्टीरिया मछली के मल में उपस्थित अमोनिया को नाइट्रेट्स में परिवर्तित कर देता है जो कि पौधों की वृद्धि के लिये आवश्यक है।
हाइड्रोपोनिक्स
(Hydroponics)
- हाइड्रोपोनिक्स में पौधे मिट्टी के बिना वृद्धि करते हैं जहाँ मिट्टी को पानी द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है।
एक्वाकल्चर प्रणाली
(Aquaculture System)
- इस प्रणाली के तहत एक प्राकृतिक या कृत्रिम झील, ताज़े पानी वाले तालाब या समुद्र में, उपयुक्त तकनीक और उपकरणों की आवश्यकता होती है।
- इस तरह की खेती में जलीय जंतुओं जैसे- मछली एवं मोलस्क का विकास, कृत्रिम प्रजनन तथा संग्रहण का कार्य किया जाता है।
- एक्वाकल्चर एक ही प्रजाति के जंतुओं की बड़ी मात्रा, उनके मांस या उप-उत्पादों के उत्पादन में सक्षम बनाता है।
- मत्स्य पालन इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।
एक्वापोनिक्स के लाभ और खामियाँ
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization -FAO) ने वर्ष 2014 में एक तकनीकी शोध-पत्र प्रकाशित किया जिसमें इन प्रयासों के सकारात्मक और नकारात्मक परिणामों पर प्रकाश डाला गया है।
लाभ:
- उच्च पैदावार (20-25% अधिक) और गुणात्मक उत्पादन।
- गैर कृषि योग्य भूमि जैसे मरुस्थलीय, लवणीय, रेतीली, बर्फीली भूमि का उपयोग किया जा सकता है।
- पौधों और मछलियों दोनों का उपयोग उपभोग एवं आय के सृजन में किया जा सकता है।
खामियाँ:
- मृदा उत्पादन अथवा हाइड्रोपोनिक्स की तुलना में आरंभिक लागत बहुत महँगी है।
- मछली, बैक्टीरिया और पौधों की जानकारी आवश्यक है।
- अनुकूलतम तापमान (17-34°C) की आवश्यकता होती है।
- छोटी-सी गलतियों और दुर्घटनाओं से सारा तंत्र नष्ट हो सकता है।
- यदि एकल रूप में (यानी एक स्थान पर केवल एक एक्वापोनिक्स) उपयोग किया जाता है तो एक्वापोनिक्स पूर्ण भोजन प्रदान नहीं करेगा।
नाइट्रोजन चक्र:
- सभी जीवों के जीवन के लिये नाइट्रोजन एक प्राथमिक पोषक तत्त्व है।
- जीवित प्राणियों में कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के अतिरिक्त नाइट्रोजन प्रमुख तत्त्व है। नाइट्रोजन एमीनो अम्लों, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्लों, वृद्धि नियंत्रकों, पर्णहरितों एवं बहुतायत विटामिनों का संघटक है। मृदा में उपस्थित सीमित नाइट्रोजन के लिये पादप सूक्ष्म जीवों से प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, अतः नाइट्रोजन प्राकृतिक एवं कृषि पारितंत्र के लिये नियंत्रक पोषक तत्त्व है।
- नाइट्रोजन गैस का बड़ी मात्रा में रूपांतरण निम्न क्रियाविधि के अनुसार होता है:
- नाइट्रोजन स्थिरीकरण Nitrogen fixation (nitrogen gas to ammonia),
- नाइट्रोजनीकरण Nitrification (ammonia to nitrite and nitrate),
- विनाइट्रीकरण Denitrification (nitrate to nitrogen gases)
- नाइट्रोजन में दो नाइट्रोजन परमाणु शक्तिशाली त्रिसहसंयोजी आबंध से जुड़े रहते हैं, N≡N नाइट्रोजन (N2) के अमोनिया में बदलने की प्रक्रिया को नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहते हैं।
- प्रकृति में बिजली चमकने से और पराबैंगनी विकिरणों द्वारा नाइट्रोजन को नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO2) में बदलने के लिये ऊर्जा प्राप्त होती है।
- औद्योगिक दहन, जंगल में लगी आग, वाहनों का धुंआ तथा बिजली उत्पादन केंद्र भी वातावरणीय नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्रोत हैं। मृत पादपों व जंतुओं में उपस्थित कार्बनिक नाइट्रोजन का अमोनिया में अपघटन अमोनीकरण कहलाता है। इसमें से कुछ अमोनिया वाष्पीकृत होकर पुनः वायुमंडल में लौट जाती है, लेकिन अधिकांश मृदा में उपस्थित सूक्ष्मजीवों द्वारा निम्न अनुसार नाइट्रेट में बदल दी जाती है:
नाइट्रोजनीकरण
(Nitrification)
- नाइट्रोजनीकरण वह प्रक्रिया है जो अमोनिया को नाइट्राइट और फिर नाइट्रेट में परिवर्तित करती है।
- अधिकांश नाइट्रोजनीकरण वायवीय रूप से होते हैं और नाइट्रोजनीकरण के दो अलग-अलग चरण होते हैं जो विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीवों द्वारा संपन्न होते हैं।
- पहला चरण अमोनिया का नाइट्राइट में ऑक्सीकरण है, जो कि अमोनिया ऑक्सीकारक माइक्रोव्स द्वारा किया जाता है।
- नाइट्रोजनीकरण में दूसरा चरण नाइट्राइट (NO2-) का नाइट्रेट (NO3-) में ऑक्सीकरण है। यह कदम प्रोकैरियोट्स (एक एककोशिकीय जीव) से पूरी तरह से अलग समूह द्वारा किया जाता है, जिसे नाइट्राइट-ऑक्सीकरण बैक्टीरिया के रूप में जाना जाता है।
स्रोत: द हिंदू
‘समग्र शिक्षा-जल सुरक्षा’ अभियान
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘समग्र शिक्षा-जल सुरक्षा’ (Samagra Shiksha-Jal Suraksha) नामक अभियान की शुरुआत की गई।
प्रमुख बिंदु
- यह अभियान मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development) के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग (Department of School Education & Literacy) द्वारा शुरू किया गया है।
- इस अभियान की शुरुआत स्कूल विद्यार्थियों के बीच जल संरक्षण गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिये की गई है।
लक्ष्य
एक विद्यार्थी | एक दिन | एक लीटर पानी की बचत |
एक विद्यार्थी | एक साल | 365 लीटर पानी की बचत |
एक विद्यार्थी | 10 साल | 3650 लीटर पानी की बचत |
अभियान के प्रमुख उद्देश्य हैं:
- विद्यार्थियों को जल संरक्षण के बारे में शिक्षित करना।
- विद्यार्थियों को पानी की कमी के बारे में जागरूक करना।
- प्राकृतिक जल संसाधनों की रक्षा करने के लिये विद्यार्थियों को सशक्त बनाना।
- प्रत्येक विद्यार्थी को प्रति दिन एक लीटर पानी बचाने में सहायता करना।
- विद्यार्थियों को अपने घर और विद्यालय में पानी की न्यूनतम बर्बादी और उचित मात्रा में प्रयोग करने के लिये प्रोत्साहित करना।
स्रोत: पी.आई.बी.
अवैध दवाइयों के पारगमन सूची में शामिल भारत
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को मादक पदार्थों/द्रव्य के पारगमन (Drug Transit) या अवैध मादक पदार्थों के उत्पादक देशों की सूची में शामिल किया है।
प्रमुख बिंदु
- अमेरिका के अनुसार, मादक द्रव्य पारगमन सूची में किसी देश के शामिल होने का प्रमुख कारण भौगोलिक, वाणिज्यिक और आर्थिक कारकों का संयोजन हो सकता है। भले ही वहाँ की सरकार मादक पदार्थों के नियंत्रण उपायों में निरंतर प्रयासरत हो लेकिन अवैध रूप से ही देश में ऐसी दवाओं का व्यापार अभी भी जारी है।
- उदाहरण के लिये भारत विश्व के दो प्रमुख अवैध अफीम उत्पादन क्षेत्रों [पश्चिम में गोल्डन क्रीसेंट (ईरान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान) और पूर्व में गोल्डन ट्रायंगल (दक्षिण-पूर्व एशिया)] के मध्य स्थित है।
- हालाँकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह स्पष्ट किया है कि इस सूची में किसी देश की मौजूदगी अनिवार्य रूप से उस देश की सरकार के मादक द्रव्य रोधी प्रयासों या अमेरिका के साथ सहयोग के स्तर को प्रदर्शित नहीं करती।
- उल्लेखनीय है कि इस सूची में अफगानिस्तान, बहामाज, बेलीज, बोलीविया, बर्मा, कोलंबिया, कोस्टारिका, डोमेनिकन रिपब्लिक, इक्वाडोर, अल सल्वाडोर, ग्वाटेमाला, हैती, होंडुरास, भारत, जमैका, लाओस, मेक्सिको, निकारागुआ, पाकिस्तान, पनामा, पेरू और वेनेज़ुएला भी शामिल हैं।
- ट्रंप के अनुसार, बोलीविया और वेनेज़ुएला देशों की अराजक व्यवस्था के कारण ही वहाँ अंतर्राष्ट्रीय काउंटर-मादक पदार्थों के समझौतों (International Counter-Narcotics Agreements) के तहत दायित्वों का पालन नही हो सका है।
- कोलंबिया ने कोका की खेती तथा कोकीन उत्पादन के स्तर को वापस लाने में प्रारंभिक प्रगति की है।
- अमेरिका में प्रवेश करने वाली घातक दवाओं के प्रवाह को रोकने के लिये मेक्सिको को और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। इसमें पोस्ता उन्मूलन, अवैध नशीली दवाओं का अंतर्विरोध तथा एक व्यापक दवा नियंत्रण रणनीति विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
मादक पदार्थों/अवैध दवाओं के प्रवेश को रोकने के लिये अमेरिकी सरकार के प्रयास
- अमेरिका में अवैध मादक पदार्थों/द्रव्यों के खतरे से निपटने के लिये अभूतपूर्व संसाधन खर्च किये हैं जिनमें सीमाओं को मजबूत बनाना तथा अवैध ड्रग के इस्तेमाल को रोकना शामिल है।
- हालाँकि अवैध मादक पदार्थों के खतरे से निपटने के लिये लगातार प्रयास जारी है लेकिन अभी काफी प्रयास किया जाना बाकी है।
- देश की सीमाओं से पार उन देशों में भी प्रयास किये जाने की जरूरत है जहाँ इन खतरनाक अवैध मादक द्रव्यों का उत्पादन होता है।
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर
चर्चा में क्यों?
एक सरकारी अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( National Population Register- NPR ) के तहत भारतीय नागरिकों के बायोमेट्रिक और वंशावली का डेटा सितंबर 2020 में दर्ज किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु:
- यह प्रक्रिया सामान्य जनगणना और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से जुड़ी नहीं है।
- NPR का उद्देश्य देश के प्रत्येक नागरिक का एक व्यापक पहचान डेटाबेस तैयार करना है। डेटाबेस में जनसांख्यिकीय के साथ-साथ बॉयोमेट्रिक विवरण भी शामिल होंगे।
- इस प्रक्रिया को इसके पहले वर्ष 2010 और 2015 में दो चरणों में आयोजित किया गया था।
- NPR के तहत सामान्य निवासी को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है जो स्थानीय क्षेत्र में छह महीने या उससे अधिक समय के लिये निवास कर रहा हो या एक व्यक्ति जो उस क्षेत्र में अगले छह महीने या उससे अधिक समय तक निवास करने की इच्छा रखता हो।
- इसके पहले आधार के साथ अतिव्यापी (Overlapping) होने के कारण NPR की गतिविधियाँ धीमी हो गई थी ।
- सरकार ने नागरिकता पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने संबंधी नियम 2003 के नियम 3 के उप-नियम (4) के तहत जनसंख्या रजिस्टर तैयार करने और अद्यतन करने का निर्णय लिया है।
- NPR के तहत असम को छोड़कर देश के अन्य सभी क्षेत्रों के लोगों से संबंधित सूचनाओं का संग्रह किया जाएगा।
- भारत के प्रत्येक सामान्य निवासी को स्वयं को NPR में पंजीकृत करवाना अनिवार्य है।
स्रोत: द हिंदू
IPCC रिपोर्ट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल द्वारा एक नई रिपोर्ट जारी की गई है, जिसमे भूमि और जलवायु परिवर्तन पर समग्रता से विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। वर्ष 2016 में नैरोबी, केन्या में संपन्न हुए IPCC के 43वें सत्र में जलवायु परिवर्तन, मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण, स्थायी भूमि प्रबंधन, खाद्य सुरक्षा और स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों पर ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव को लेकर एक विशेष रिपोर्ट तैयार करने का निर्णय लिया गया था।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल
(Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC):
- IPCC की स्थापना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और विश्व मौसम संगठन द्वारा वर्ष 1988 में की गई थी।
- यह जलवायु परिवर्तन पर नियमित वैज्ञानिक आकलन, इसके निहितार्थ और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ, अनुकूलन और शमन के विकल्प भी उपलब्ध कराता है।
- इसका मुख्यालय ज़िनेवा में स्थित है।
IPCC की रिपोर्ट:
- पिछले वर्ष IPCC ने पूर्व-औद्योगिक काल से 1.5 डिग्री सेल्सियस के अंदर तापमान में वैश्विक वृद्धि को प्रतिबंधित करने की व्यवहार्यता पर एक विशेष रिपोर्ट तैयार की थी।
- इस वर्ष की रिपोर्ट में ग्लोबल वार्मिंग में भूमि संबंधी गतिविधियों जैसे कृषि, उद्योग, वानिकी, पशुपालन और शहरीकरण के योगदान के बारे में बात की गई है।
- रिपोर्ट में खाद्य उत्पादन गतिविधियों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावित करने संबंधी योगदान को भी इंगित किया गया है।
- रिपोर्ट में कहा गया कि अगर मवेशियों के पालन-पोषण और परिवहन, ऊर्जा एवं खाद्य प्रसंस्करण जैसी गतिविधियों पर ध्यान दिया जाए तो ये गतिविधियाँ प्रत्येक वर्ष कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 37% का योगदान करती है।
- रिपोर्ट में बताया गया कि उत्पादित सभी खाद्य पदार्थों का लगभग 25% बर्बाद हो जाता है जो कचरे के रूप में अपघटित होकर उत्सर्जन को बढ़ाता है।
भूमि उपयोग और जलवायु परिवर्तन:
- IPCC ने पहली बार जलवायु परिवर्तन संबंधी रिपोर्ट को भूमि क्षेत्र पर केंद्रित किया है।
- भूमि उपयोग और भूमि उपयोग में परिवर्तन हमेशा जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करते रहे हैं क्योंकि भूमि कार्बन के स्रोत के साथ-साथ कार्बन सिंक का भी कार्य करती है।
- कृषि और पशुपालन जैसी गतिविधियाँ मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के प्रमुख स्रोत हैं, ये दोनों गैसें ग्रीनहाउस गैस के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में सैकड़ों गुना अधिक खतरनाक हैं।
- वन, प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जिससे समग्र वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम हो जाती है।
- यही कारण है कि बड़े पैमाने पर भूमि उपयोग परिवर्तन, जैसे कि वनों की कटाई, शहरीकरण और यहाँ तक कि फसल के पैटर्न में बदलाव का ग्रीनहाउस गैसों के समग्र उत्सर्जन पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
भूमि, महासागर और जलवायु परिवर्तन:
- कार्बन चक्र में प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से भूमि और महासागर प्रत्येक वर्ष लगभग 50% ग्रीनहाउस गैसों को अवशोषित करते हैं।
- कार्बन सिंक के रूप में भूमि और महासागरों का जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रयासों में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- भारत की जलवायु परिवर्तन पर कार्य योजना में वन एक महत्त्वपूर्ण घटक है। भारत ने कहा है कि वह अपने वन आवरण को बढ़ाएगा और वर्ष 2032 तक 2.5 बिलियन से 3 बिलियन टन का अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाएगा।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
- इस रिपोर्ट में ग्रीनहाउस गैसों का वार्षिक उत्सर्जन का अनुमान लगभग 49 बिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड के लगाया गया है।
- IPCC की रिपोर्ट के अनुसार, कृषि और वन कटाई जैसी गतिविधियों के लिये उपयोग की जाने वाली भूमि से वर्ष 2007 और 2016 के बीच वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा में काफी वृद्धि हुई।
- इस प्रकार की गतिविधियाँ आर्द्रभूमि और प्राकृतिक वनों को भी नुकसान पहुँचा रही हैं।
- अत्यधिक तापमान बढ़ोतरी से कुछ जानवरों की प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो रही है।
- अमेज़न के वर्षावनों की कटाई, आर्कटिक क्षेत्रों में पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने और दक्षिण अमेरिकी किसानों द्वारा अधिक नाइट्रोजन उर्वरकों का उपयोग करने से वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ रही है।
- न्यूयॉर्क स्थित नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज़ ( Goddard Institute for Space Studies ) के अनुसार, रेड मीट की खपत से शाकाहारी आहारों की तुलना में ग्रीनहाउस गैस का ज़्यादा उत्सर्जन होता है।
जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा:
- जलवायु परिवर्तन के कारण फसल की पैदावार कम होने से खाद्यान्न समस्या उत्पन्न हो सकती है, साथ ही भूमि निम्नीकरण जैसी समस्याएँ भी सामने आ सकती हैं।
- एशिया और अफ्रीका पहले से ही आयातित खाद्य पदार्थों पर निर्भर हैं। ये क्षेत्र तेज़ी से बढ़ते तापमान के कारण सूखे की चपेट में आ सकते हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में गेहूँ और मकई जैसी फसलों की पैदावार में पहले से ही गिरावट देखी जा रही है।
- वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ने से फसलों की पोषण गुणवत्ता में कमी आ रही है। उदाहरण के लिये उच्च कार्बन वातावरण के कारण गेहूँ की पौष्टिकता में प्रोटीन का 6 से 13%, जस्ते का 4 से 7% और लोहे का 5 से 8% तक की कमी आ रही है।
- यूरोप में गर्मी लहर की वजह से फसल की पैदावार गिर रही है।
- ब्लूमबर्ग एग्रीकल्चर स्पॉट इंडेक्स ( Bloomberg Agriculture Spot Index ) 9 फसलों का एक मूल्य मापक है जो मई में एक दशक के सबसे निचले स्तर पर आ गया था। इस सूचकांक की अस्थिरता खाद्यान सुरक्षा की अस्थिरता को प्रदर्शित करती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू
अपतटीय रुपया बाज़ार पर टास्क फोर्स
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक ने ऊषा थोराट (पूर्व डिप्टी गवर्नर) की अध्यक्षता में फरवरी 2019 में एक समिति (आठ सदस्यीय समिति) का गठन किया था, जिसका कार्य अपतटीय (ऑफशोर) रुपए बाज़ार (Task Force on Offshore Rupee Markets) में भारतीय मुद्रा की स्थिरता हेतु आवश्यक नीतियाँ बनाने के लिये सुझाव देना था। हाल ही में RBI द्वारा सरकार को इस समिति की रिपोर्ट सौंपी गई।
प्रमुख सुझाव
- मौजूदा समय में भारतीय बैंकों को ऑफशोर रुपए के डेरीवेटिव बाज़ार या गैर-डिलीवरेबल फॉरवर्ड (Non-Deliverable Forward-NDF) बाज़ारों में सौदा करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
- वर्तमान में ऑनशोर रुपया बाज़ार, ऑफशोर रुपया बाज़ार की तुलना में अधिक फायदेमंद और तरल है। अतः भारतीय बैंकों की ऑफशोर रुपया बाज़ार में भागीदारी समय के साथ इस लाभ को कम कर सकती है।
NDF एक विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव अनुबंध है, जिसके तहत दो पक्ष भविष्य की तारीख में किसी दिये गए स्पॉट दर पर नकदी का आदान-प्रदान करने के लिये सहमत होते हैं। मूल मुद्रा के बजाय अनुबंध को व्यापक रूप से कारोबार वाली मुद्रा, जैसे अमेरिकी डॉलर में देने पर सहमति की जाती है।
- विदेशी उपयोगकर्त्ताओं की पहुँच को बढाने और भारतीय बैंकों को वैश्विक ग्राहकों को उनके समय के अनुरूप स्वतंत्र रूप से कीमतों की पेशकश करने की अनुमति देने के लिये ऑनशोर बाज़ार की कार्यअवधि का विस्तार किया जाना चाहिये।
- बैंकों को या तो घरेलू बिक्री टीम या विदेशी शाखाओं में स्थित कर्मचारियों के माध्यम से हर समय गैर-निवासियों को स्वतंत्र रूप से कीमतों की पेशकश करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
- इसके अलावा गैर-निवासियों की विदेशी मुद्रा-खुदरा व्यापार मंच (forex-retail trading platform) तक व्यापक पहुँच उन्हें ऑनशोर बाज़ार का उपयोग करने के लिये बड़ा प्रोत्साहन देगी।
- भारत में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (International Financial Services Centers-IFSC) में कारोबार करने के लिये रुपये के डेरिवेटिव (विदेशी मुद्रा में रूपांतरण) को सक्षम करना।
- उपयोगकर्त्ताओं को अंतर्निहित जोखिम को स्थापित करने की आवश्यकता के बिना ओवर द काउंटर (Over The Counter-OTC) करेंसी डेरीवेटिव बाज़ार में 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के विदेशी विनिमय की अनुमति प्रदान की जानी चाहिये।
गैर-निवासियों को अपने विदेशी मुद्रा विनिमय को जोखिम मुक्त और सुविधाजनक बनाने के लिये सुझाव:
- ऑनशोर बाज़ार में अनिवासी लेनदेन के लिये एक केंद्रीय समाशोधन और निपटान तंत्र (Central Clearing and Settlement Mechanism) स्थापित करना।
- गैर-केंद्रीय रूप से बेचे गए OTC डेरिवेटिव के लिये मार्जिन आवश्यकताओं को लागू करना और भारतीय बैंकों को विदेशों में मार्जिन पोस्ट करने की अनुमति देना।
- प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों में विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव्स के कर उपचार को संरेखित करना।
- वित्तीय बाज़ार से संबंधित KYC मांगों का एक सामान दस्तावेज़ीकरण (documentation) मांगों के साथ केन्द्रीकरण करना।
- ऑनशोर करेंसी का अर्थ है स्थानीय रूप से खरीदी जाने वाली मुद्रा जबकि ऑफशोर करेंसी का अर्थ है राष्ट्रीय सीमाओं से बाहर मुद्रा/करेंसी को खरीदना।
करेंसी डेरिवेटिव क्या हैं?
- मुद्रा विनिमय दरों के आधार पर डेरिवेटिव भविष्य का एक अनुबंध है जो उस दर को निर्धारित करता है जिस पर किसी मुद्रा को किसी अन्य मुद्रा के लिये भविष्य की तारीख में आदान-प्रदान किया जा सकता है।
- भारत में कोई भी व्यक्ति डॉलर, यूरो, यूके पाउंड और येन जैसी मुद्राओं के खिलाफ बचाव के लिये ऐसे डेरिवेटिव अनुबंधों का उपयोग कर सकता है।
- विशेष रूप से आयात या निर्यात करने वाले कॉर्पोरेट इन अनुबंधों का उपयोग किसी निश्चित मुद्रा के जोखिम के खिलाफ बचाव के लिये करते हैं।
- हालाँकि, इस तरह के सभी मुद्रा अनुबंधों का रुपए में नकद के रूप में निपटारा (cash-settled) किया जाता है, इस साल की शुरुआत में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने क्रॉस मुद्रा अनुबंध के साथ-साथ यूरो-डॉलर, पाउंड-डॉलर और डॉलर- येन के साथ व्यापार में आगे बढ़ने को कहा है।
करेंसी डेरिवेटिव के साथ कोई व्यापार कैसे कर सकता है?
- दो राष्ट्रीय स्तर के स्टॉक एक्सचेंज, BSE और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) में करेंसी डेरिवेटिव सेगमेंट हैं। मेट्रोपॉलिटन स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया (MSEI) में भी ऐसा ही सेगमेंट है लेकिन BSE या NSE पर इसका अधिक विस्तार देखा गया है।
- कोई भी ब्रोकर के माध्यम से मुद्रा डेरिवेटिव में व्यापार कर सकता है। संयोग से सभी प्रमुख स्टॉक ब्रोकर भी मुद्रा व्यापार सेवाएँ प्रदान करते हैं।
ओवर द काउंटर बाज़ार
[Over the Counter (OTC) Market]
- लेन-देन पर मुद्रा डेरिवेटिव्स के आने से पहले मुद्रा जोखिमों को दूर करने के लिये सिर्फ ओवर द काउंटर बाज़ार ही था जहाँ भविष्य के अनुबंधों पर बातचीत की जाती थी और फिर उसे स्वीकार किया जाता था।
- यह एक अपारदर्शी और बंद बाज़ार की तरह था जहाँ ज्यादातर बैंक और वित्तीय संस्थान कारोबार करते थे।
- विनिमय/एक्सचेंज आधारित करेंसी डेरीवेटिव सेगमेंट एक विनियमित और पारदर्शी बाज़ार है जिसे छोटे व्यापारी, यहाँ तक की आम आदमी भी अपने मुद्रा जोखिम को कम करने के लिये उपयोग कर सकते है।
स्रोत: द हिंदू एवं इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire करेंट अफेयर्स 10 अगस्त
- केंद्र सरकार ने फेम इंडिया योजना के दूसरे चरण के तहत राज्यों में 5595 इलेक्ट्रिक बसों की खरीद को मंज़ूरी दे दी है। इसमें सबसे अधिक 600 बसें उत्तर प्रदेश के 11 शहरों के लिये स्वीकृत की गई हैं। दूसरे स्थान पर तमिलनाडु है, जिसे 550 बसें खरीदने की मंज़ूरी मिली है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार के भारी उद्योग विभाग ने 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों, स्मार्ट सिटी तथा राज्य परिवहन निगमों से फेम इंडिया योजना के तहत इलेक्ट्रिक बसों को चलाने के लिये आवेदन मांगे थे। इन बसों को परिचालन लागत के आधार पर चलाया जाएगा। राज्यों की तरफ से कुल 14,988 बसों के लिये आवेदन मिले थे। केंद्र सरकार फेम इंडिया योजना के तहत इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने के लिये सब्सिडी देती है। केंद्र सरकार ने फेम-2 योजना के तहत 10 हज़ार करोड़ रुपए स्वीकृत किये हैं, जिनमें से 8095 करोड़ रुपए वाहनों की खरीद पर दिये जाने वाले प्रोत्साहनों पर खर्च किये जाने हैं। इसके अलावा 1000 करोड़ रुपए चार्जिंग स्टेशन बनाने पर खर्च किये जाएंगे। यह योजना फेम इंडिया-1 का विस्तारित संस्करण है। फेम इंडिया-1 योजना 1 अप्रैल, 2015 को लागू की गई थी।
- 7 अगस्त को देशभर में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य कार्यक्रम ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में हुआ। भुवनेश्वर को वहाँ की हथकरघा की समृद्धि संस्कृति के कारण मुख्य कार्यक्रम स्थल के रूप में चुना गया। राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के आयोजन का मुख्य लक्ष्य महिलाओं एवं लड़कियों का सशक्तीकरण करना था। भारत में बुनकरों की आधी से अधिक आबादी पूर्वी एवं उत्तर-पूर्वी राज्यों में रहती है, जिनमें से अधिकतर महिलाएँ हैं। ज्ञातव्य है कि यह पाँचवां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस था। 29 जुलाई, 2015 को भारत सरकार द्वारा जारी राजपत्र में 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में अधिसूचित किया गया था। इसका उद्देश्य हथकरघा उद्योग के महत्त्व एवं आमतौर पर देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में इसके योगदान के बारे में जागरूकता फैलाना और हथकरघा को बढ़ावा देना, बुनकरों की आय को बढ़ाना उनके सामाजिक स्तर में वृद्धि करना था। 7 अगस्त की तारीख का चयन भारत की आज़ादी की लड़ाई में इसके विशेष महत्त्व को देखते हुए किया गया। वर्ष 1905 में इसी दिन कोलकाता के टाउनहॉल में एक जनसभा में स्वदेशी आंदोलन की औपचारिक रूप से शुरुआत हुई थी। इस आंदोलन में घरेलू उत्पादों और उत्पादन प्रक्रियाओं का पुनरोत्थान शामिल था। भारत सरकार ने इसी की याद में 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में घोषित किया है। पहला राष्ट्रीय हथकरघा दिवस वर्ष 2015 में मनाया गया था और चेन्नई में इसका मुख्य समारोह आयोजित किया गया था।
- राजस्थान सरकार ने राज्य में उच्च शिक्षा के नए मॉडल की शुरुआत की है। इसे Resource Assistance for Colleges with Excellence (RACE) नाम दिया गया है। इस मॉडल के तहत सरकारी कॉलेजों में फैकल्टी तथा चल संपत्ति के समान वितरण पर बल दिया जाएगा तथा संसाधनों का अधिकतम उपयोग संभव हो सकेगा। इसके तहत संसाधनों की उपलब्धता को तर्कसंगत बनाया जाएगा। इस मॉडल के तहत सुविधाओं के बँटवारे के लिये एक पूल बनाया जाएगा, जो अवसंरचना की कमी वाले कॉलेजों को लाभान्वित करेगा। RACE संसाधनों को चैनलाइज़ करके गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने में सहायता करेगा। यह मॉडल छोटे कॉलेजों को स्वायत्तता देगा और स्थानीय स्तर पर उनकी समस्याओं का समाधान खोजने में मदद करेगा। देश में उच्च शिक्षा में राजस्थान की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, राज्य के 34 ज़िलों में से 29 में कुल नामांकन 12 प्रतिशत से भी कम है, जबकि केंद्र सरकार ने वर्ष 2020 तक 30 प्रतिशत नामांकन का लक्ष्य रखा है।
- डिजिटल इंडिया के तहत किसानों को तकनीक से जोड़ने के लिये पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय तथा कृषि मंत्रालय ने मेघदूत मोबाइल एप लॉन्च किया है। यह एप किसानों को उनके क्षेत्र के अनुसार कृषि और मवेशियों के लिये मौसम आधारित सलाह स्थानीय भाषा में देगा। इस एप की मदद से किसान तापमान, वर्षा, नमी और वायु की गति और दिशा के बारे में जान सकते हैं। किसान मौसम संबंधी यह जानकारी प्राप्त कर फसल और मवेशियों की बेहतर तरीके से देखभाल कर सकते हैं। एप की सूचनाएँ सप्ताह में दो दिन- मंगलवार और शुक्रवार को अपडेट होंगी। शुरुआत में यह एप देश के 150 ज़िलों के स्थानीय मौसम के बारे में जानकारी देगा। अगले एक साल में इसकी सेवा का विस्तार किया जाएगा। मेघदूत एप को भारत मौसम विज्ञान विभाग और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने मिलकर विकसित किया है। एप पर सूचनाओं को चित्र और मैप के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा है। अभी इसे whatsapp और फेसबुक से जोड़ा गया है तथा भविष्य में इसे यू-ट्यूब से भी जोड़ दिया जाएगा। गौरतलब है कि इससे पहले किसानों के लिये किसान सुविधा एप और पूसा कृषि मोबाइल एप लाया जा चुका है। किसान सुविधा एप पर मौसम, बाज़ार मूल्य, बीज, उर्वरक, कीटनाशक और कृषि मशीनरी के बारे में जानकारी मिलती है, जबकि पूसा कृषि मोबाइल एप भारतीय कृषि शोध संस्थान के द्वारा लाई गई नई तकनीकों के बारे में बताता है।
- संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के अनुसार, सूखा, बाढ़ और आर्थिक तंगी से जूझ रहा ज़िम्बाब्वे भयंकर भुखमरी की चपेट में है। इस अफ्रीकी देश में करीब 36 लाख लोगों के पास अक्तूबर तक खाने को कुछ नहीं बचेगा। यह आँकड़ा अगले साल जनवरी में 55 लाख तक पहुँच सकता है। इसके साथ ही आर्थिक रूप से बदहाल ज़िम्बाब्वे में चक्रवात और सूखे का कहर भी देखने को मिल रहा है। वर्तमान में विश्व खाद्य कार्यक्रम द्वारा सात लाख लोगों तक खाने-पीने की सामग्री पहुँचाई जा रही है तथा अक्तूबर से दिसंबर के बीच यह लक्ष्य 17 लाख रखा गया है। ज्ञातव्य है कि आर्थिक बदहाली का सामना कर रहे ज़िम्बाब्वे में डॉलर और अन्य विदेशी मुद्राओं का चलन बंद होने की वज़ह से वैश्विक स्तर की सहायता एजेंसियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। आपको बता दें कि ज़िम्बाब्वे को पहले दक्षिण रोडेशिया, रोडेशिया, रोडेशिया गणराज्य और ज़िम्बाब्वे रोडेशिया के नाम से जाना जाता था। अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिणी भाग में ज़ाम्बेजी और लिम्पोपो नदियों के बीच स्थित एक भू-आबद्ध (Land Locked) देश है। इसकी सीमाएँ दक्षिण में दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण-पश्चिम में बोत्सवाना, पश्चिमोत्तर में जाम्बिया और पूर्व में मोजाम्बीक से मिलती हैं।