भारत का संशोधित विदेशी प्राधिकरण आदेश 1964 एवं नए प्राधिकरण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गृह मंत्रालय ने असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens-NRC) को आधार बनाकर अवैध रूप से निवास कर रहे विदेशी प्रवासियों की पहचान कर उन्हें देश से निकालने के लिये विशेष दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- गृह मंत्रालय ने विदेशी (ट्रिब्यूनल्स) आदेश, 1964 [Foreigners (Tribunals) Order,1964] को संशोधित करते हुए कहा कि सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेश अपने राज्य में प्राधिकरण स्थापित करेंगे जो यह तय करेगा कि अवैध रूप से निवास करने वाला व्यक्ति विदेशी है या नहीं । इससे पहले प्राधिकरण स्थापित करने की शक्ति केंद्र सरकार के पास थी।
- ये प्राधिकरण अर्द्ध-न्यायिक निकाय होते हैं, असम में देखें तो ये निकाय यह सुनिश्चित करते हैं कि अवैध रूप से निवास कर रहा व्यक्ति विदेशी है या नहीं ।
- यदि पुलिस किसी ऐसे अवैध रूप से निवास करने वाले विदेशी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो उसे स्थानीय अदालत में पेश किया जाता है एवं उसे पासपोर्ट एक्ट 1920 या फोरेनर एक्ट 1946 के तहत तीन महीने से आठ साल तक की सज़ा हो सकती है।
- विदेशी (ट्रिब्यूनल) आदेश 1964 के अनुसार, यह केंद्र सरकार को शक्ति प्रदान करता है कि वह प्राधिकरण से यह प्रश्न कर सकती है कि कोई व्यक्ति विदेशी अधिनियम, 1946 (Foreigners Act 1946) के अंतर्गत विदेशी है या नहीं एवं इस मामले पर राय भी ले सकती है।
- इसके साथ ही कुछ दिनों पहले गृह मंत्रालय ने इस आदेश को संशोधित कर केंद्र सरकार शब्द को प्रतिस्थापित करते हुए इसके स्थान पर केंद्र सरकार, राज्य सरकार, संघ शासित प्रदेश के प्रशासक, ज़िलाधिकारी शब्द जोड़े गए।
- 31 जुलाई को NRC की अंतिम रिपोर्ट के प्रकाशन से पूर्व अवैध प्रवासियों की जाँच करने के लिये असम में लगभग 1000 ट्रिब्यूनल्स स्थापित करने की मंज़ूरी दे दी है ताकि अवैध प्रवासियों की पहचान ठोस तरीके से हो सके।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार, भारत के रजिस्ट्रार जनरल (Registrar General of India-RGI) ने असम में भारतीय नागरिकों और अवैध रूप से प्रवासियों को अलग करने के लिये पिछले वर्ष 30 जुलाई, 2018 को NRC की अंतिम मसौदा सूची तैयार की थी। इसमें उन लोगो की पहचान की गई जो 25 मार्च 1971 के बाद बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में घुस आए थे।
- इस मसौदे के आधार पर लगभग 40 लाख लोगों को चिह्नित किया गया जो अवैध रूप से भारत में निवास कर रहे थे। इनमें से 36 लाख लोगों ने इस मसौदे के खिलाफ याचिका दायर की, जबकि लगभग 4 लाख लोगों ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
- वर्ष 2019 में संशोधित विदेशी (ट्रिब्यूनल्स) आदेश में प्रत्येक व्यक्ति को ट्रिब्यूनल के समक्ष अपनी बात रखने की शक्ति प्रदान की गई। इससे पहले राज्य सरकार ही किसी संदिग्ध के खिलाफ ट्रिब्यूनल में जा सकती थी लेकिन अंतिम राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) प्रकाशित होने के साथ ही इसमें जिन व्यक्तियों का नाम शामिल नहीं है उनको यह अवसर प्रदान किया गया कि वह इसके विरुद्ध ट्रिब्यूनल में जा सकते हैं।
- इस मुद्दे पर गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ एक मीटिंग की थी।
- संशोधित आदेश ज़िलाधिकारियों को यह अनुमति प्रदान करता है ऐसे व्यक्ति जिन्होंने NRC के विरुद्ध ट्रिब्यूनल में कोई आपत्ति दर्ज़ नहीं कराई है, के संदर्भ में ज़िलाधिकारी यह तय कर सकता है कि वह व्यक्ति विदेशी है या नहीं।
- सरकार के अनुसार, जिन व्यक्तियों ने NRC के विरुद्ध आपत्ति नहीं जताई है उन्हें यह अवसर प्रदान किया गया है कि वे भी ट्रिब्यूनल के पास जा सकते हैं और उन्हें अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिये नए सिरे से सम्मन जारी किया जाएगा।
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens-NRC)
- NRC वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है। इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था।
- रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों का विवरण शामिल था। इसमें केवल उन भारतीयों के नाम को शामिल किया जा रहा है जो कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं। उसके बाद राज्य में पहुँचने वालों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा।
- NRC उन्हीं राज्यों में लागू होती है जहाँ से अन्य देश के नागरिक भारत में प्रवेश करते हैं। NRC की रिपोर्ट ही बताती है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं।
स्रोत- द हिंदू
ग्लोबल चाइल्डहुड रिपोर्ट 2019 और भारत
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सेव द चिल्ड्रेन (Save the Children) नामक गैर सरकारी संस्था (Global Non-Profit Organisation) ने ग्लोबल चाइल्डहुड रिपोर्ट (Global Childhood Report) जारी की है जिसमें वैश्विक स्तर पर बाल अधिकारों की स्थिति का मूल्यांकन करते हुए इस संबंध में उचित कदम उठाने की वकालत की गई है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- जारी रिपोर्ट का उद्देश्य संपूर्ण विश्व में बच्चों के लिये सुरक्षित और भय-मुक्त वातावरण का निर्माण कर उनके बाल-अधिकारों की रक्षा करना है।
- जारी रिपोर्ट के अनुसार 176 देशों की सूची में भारत 113वें स्थान पर रहा। भारत की स्थिति में लगातार सुधार जारी है लेकिन अभी भी बालिकाओं की स्थिति में सुधार हेतु बहुत कुछ किया जाना शेष है।
- वर्ल्ड चाइल्डहुड रिपोर्ट विभिन्न देशों के बच्चों और किशोरों (0-19 वर्ष) की स्थिति का मूल्यांकन आठ संकेतकों के आधार पर करती है जो इस प्रकार हैं-
- पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर
- कुपोषण
- अशिक्षा
- बाल श्रम
- बाल विवाह
- किशोर अवस्था में बच्चों का जन्म
- बाल हत्या
- विस्थापन
- वर्ष 2000 और वर्ष 2019 के मध्य भारत ने अपने स्कोर अर्थात् अपने प्रदर्शन में सुधार किया। इस अवधि के दौरान भारत ने निर्धारित स्कोर (1000 के कुल मूल्यांकन स्कोर) को 632 से बढ़ाकर 769 कर लिया।
- वर्ष 2018 में भारत ने अपनी रैंकिंग में सुधार दर्ज़ करते हुए 172 देशों की सूची में 116वाँ रैंक प्राप्त किया था।
- वर्ष 2000 में दुनिया भर में अनुमानित 970 मिलियन बच्चे कथित आठ संकेतकों के कारण अपने बाल अधिकारों से वंचित थे।
- वर्ष 2019 में कथित संस्था द्वारा रेखांकित समस्याओं में 29% की गिरावट हुई जिसके कारण बाल-अधिकारों से पीड़ित बच्चों की संख्या 690 मिलियन पर सिमट गई।
- वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक निवेश में वृद्धि और वैश्विक स्तर पर हाशिये पर पड़े बच्चों हेतु स्वास्थ्य सेवा तथा शिक्षा सुनिश्चित करने के लिये लक्षित कार्यक्रमों के माध्यम से हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, बाल अधिकारों से संबंधित संवेदनशील मुद्दों को लेकर विभिन्न देशों की सरकारों को न्यूनतम वित्तीय सुरक्षा के एजेंडे को अपनाने की ज़रूरत है।
- रिपोर्ट में इस बात की ओर भी संकेत किया गया है कि बाल गरीबी को कम करने अथवा खत्म करने हेतु एक राष्ट्रीय कार्ययोजना की ज़रूरत के साथ ही इन योजनाओं की सफलता को मापने हेतु बजट एवं एक मज़बूत निगरानी तंत्र के निर्माण की आवश्यकता है। यह कदम गरीबी से होने वाली हानि और बाल सुधारों के बेहतर परिणामों को प्राप्त करने में मदद करेगा।
भारत और बाल स्वास्थ्य
- भारत में संक्रामक रोगों से पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु हो जाती है।
- रिपोर्ट के आँकड़ों के अनुसार, भारत ने पिछले दो दशकों में बाल मृत्यु दर में 55% की कमी की है।
- भारत में संक्रामक रोगों को बाल मृत्यु के लिये सर्वाधिक ज़िम्मेदार तत्त्व माना गया है, इसके बाद चोटों, मस्तिष्क ज्वर, खसरा और मलेरिया को शामिल किया गया है।
- बाल मृत्यु दर के मामले में भारत का प्रदर्शन केवल पाकिस्तान (74.9%) से बेहतर पाया गया। इस संबंध में भारत अपने अन्य पड़ोसी देशों जैसे- श्रीलंका, चीन, भूटान, नेपाल और बांग्लादेश से पीछे रहा।
- वर्ष 2000 से वर्ष 2019 के बीच वैश्विक स्तर पर नाटे कद के बच्चों की संख्या में 25% की कमी का ट्रेंड देखा गया, इस गिरावट को पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में देखा गया। रिपोर्ट के अनुसार, 50% से अधिक की गिरावट अकेले चीन और भारत में पाई गई।
- रिपोर्ट में दिये गए आँकड़ों के अनुसार, अपने बच्चों को मुफ्त सार्वभौमिक शिक्षा देने के बावजूद, 20.2% (8-16 वर्ष की आयु वाले) बच्चे अभी तक स्कूल जाने के अपने अधिकार से वंचित हैं। इस संबंध में अपने पड़ोसियों की तुलना में भारत केवल पाकिस्तान (40.8%) से बेहतर स्थिति में है जबकि श्रीलंका (6.4%), नेपाल (13.8%), बांग्लादेश (17.4%), भूटान (19.1%) और चीन (7.6%) ने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है।
- वर्ष 1978 में भारत ने लड़कियों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 15 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष और लड़कों के लिये 18 वर्ष से बढ़ाकर वर्ष 21 कर दी थी। पिछले दो दशकों में भारत ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 जैसे कानूनों के माध्यम से बाल विवाह पर अंकुश लगाने का कार्य किया है और किशोरियों के सश्क्त्तीकरण के लिये विभिन्न योजनाओं जैसे- किशोरी शक्ति योजना (सबला) और किशोरियों के लिये पोषण कार्यक्रम का संचालन भी किया है।
- वर्तमान में भारत में प्रत्येक पाँच में से 1 बच्चा अभी भी स्कूली शिक्षा से वंचित है।
- रिपोर्ट में इस गिरावट का कारण कमजोर आर्थिक विकास, लड़कियों की शिक्षा की बढ़ती दरों और सरकार द्वारा सक्रिय निवेश को ज़िम्मेदार ठहराया है।
- इसके अतिरिक्त नारी हेतु परामर्श, यौन, प्रजनन और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी, व्यावसायिक प्रशिक्षण सश्क्त्तीकरण और लड़कियों के लिये जीवन-कौशल विकास भी इस गिरावट के महत्त्वपूर्ण कारक रहे हैं।
- रिपोर्ट में बालिकाओं को शिक्षित करने के लिये सशर्त नकद हस्तांतरण जैसी योजनाओं को बाल विवाह कम करने में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के तौर पर रेखांकित किया गया है।
- भारत ने वर्ष 2000 के बाद से किशोर उम्र में बच्चों को जन्म देने की दर में 63% तक की कमी कर एक बड़ी कामयाबी को प्राप्त किया है। परिणामस्वरूप वर्तमान में भारत में 2 मिलियन से कम युवा माताएँ हैं।
- भारत ने वर्ष 2000 से वर्ष 2018 के मध्य बाल विवाह में अप्रत्याशित सफलता दर्ज़ करते हुए 51% की कमी को हासिल किया।
सेव द चिल्ड्रेन संस्था
- वर्ष 1919 में स्थापित सेव द चिल्ड्रेन संस्था अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है।
- यह संस्था बाल अधिकारों के प्रति प्रतिबद्ध है।
- कथित संस्था प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवन जीने को मजबूर बच्चों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, ज़रूरी स्वास्थ्य सुविधाएँ और बाल अपराध के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने हेतु भारत के सुदूर ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में कार्यक्रम संचालित करती है।
- वर्ष 2008 से भारत में अपने कार्य की शुरुआत करते हुए इस संस्था ने दिसम्बर 2018 तक , भारत के 19 राज्यों में अपनी पहुँच बनाते हुए तक़रीबन 12.03 लाख बच्चों के जीवन में बदलाव को रेखांकित किया
- वर्तमान में सेव द चिल्ड्रेन संस्था 80 से अधिक देशों के उन क्षेत्रों के लिये अपनी सेवाएँ दे रही है जहाँ पर बच्चे सर्वाधिक दयनीय व अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करने के लिये मजबूर हैं।
स्रोत: बिजनेस स्टैंडर्ड, सेव द चिल्ड्रेन
संसद में विधेयकों का व्यपगमन
चर्चा में क्यों?
सरकार एक बार फिर से उन सभी विधेयकों को प्रस्तुत करने की योजना बना रही है जो 16वीं लोकसभा के विघटन के बाद समाप्त/व्यपगत/लैप्स (Lapse) हो गए थे। उल्लेखनीय है कि 22 ऐसे विधेयक हैं जिन्हें लोकसभा में फिर से प्रस्तुत किया जाना है क्योंकि वे व्यपगत/समाप्त (Lapse) हो गए हैं।
- इन लैप्स विधेयकों में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2018 [Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill] उपभोक्ता संरक्षण विधेयक (Consumer Protection Bill) , डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) [DNA Technology (Use and Application) Regulation Bill] विनियमन विधेयक जैसे कुछ प्रमुख विधेयक भी शामिल हैं।
स्मरणीय बिंदु
- केवल लोकसभा और विधानसभाओं का विघटन होता, राज्यसभा और राज्य विधानपरिषद के विघटन का कोई प्रावधान नहीं है।
- जब लोकसभा विघटित की जाती है तो इसके सारे कार्य जैसे- विधेयक, प्रस्ताव, संकल्प, नोटिस, याचिका आदि समाप्त हो जाते हैं।
- इनसे संबंधित प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 107 और 108 में दिये गए हैं।
- व्यपगत/लैप्स होने वाले कुछ प्रमुख विधेयक:
- मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2018 [The Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill, 2018]
- आधार और अन्य कानून (संशोधन) विधेयक [Aadhaar and Other Laws (Amendment) Bill]
- कंपनी (संशोधन) विधेयक [Companies (Amendment) Bill]
- अनियमित जमा योजनाओं पर प्रतिबंध लगाने संबंधी विधेयक, 2018 [Banning of Unregulated Deposit Schemes Bill]
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (संशोधन) विधेयक [Micro, Small and Medium Enterprises Development (Amendment) Bill]
- मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) विधेयक [Arbitration and Conciliation (Amendment) Bill]
- उपभोक्ता संरक्षण विधेयक [Consumer Protection Bill]
- चिट फंड (संशोधन) विधेयक [Chit Funds (Amendment) Bill]
- डी.एन.ए. प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक [DNA Technology (Use and Application) Regulation Bill]
कोई विधेयक व्यपगत/समाप्त कब होता है?
- ऐसे विचाराधीन विधेयक जो लोकसभा में हैं (चाहे लोकसभा में रखे गए हों या राज्यसभा द्वारा हस्तांतरित किये गए हों)।
- ऐसे विधेयक जो लोकसभा में पारित हो चुके हैं लेकिन राज्यसभा में विचाराधीन हैं।
- ऐसे विधेयक जो राज्यसभा में प्रस्तुत किये गए हों तथा पारित भी हो गए हों लेकिन लोकसभा में विचाराधीन हों, लोकसभा के विघटन के साथ ही समाप्त हो जाते हैं।
- एक ऐसा विधेयक जो राज्यसभा में प्रस्तुत और पारित होने के बाद लोकसभा में भेजा जाता है लेकिन लोकसभा द्वारा इसे संशोधन के साथ राज्यसभा को लौटा दिया जाता है और तब इसे राज्यसभा की मंज़ूरी नहीं मिलती है, तो निचले सदन के विघटन की तिथि को इस विधेयक को समाप्त माना जाता है।
विधेयक कब समाप्त नहीं होता?
ऐसा विधेयक जो राज्यसभा में विचाराधीन हो लेकिन लोकसभा द्वारा पारित न हो।
ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों द्वारा पारित हो और राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिये विचाराधीन हो।
ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों द्वारा पारित हो लेकिन राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिये लौटा दिया गया हो।
लंबित विधेयक और सभी लंबित आश्वासन जिनकी जाँच सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति द्वारा की जानी है।
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
यौन उन्मुखीकरण और लैंगिक पहचान: यूनेस्को
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूनेस्को द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, देश भर में छात्रों की उनके यौन उन्मुखीकरण और लैंगिक पहचान (Sexual Orientation and Gender Identity-SOGI) के कारण Bullying (बच्चों का एक-दूसरे को सताना) की जाती है, जिसके कारण बहुत से छात्र स्कूल छोड़ देते हैं।
- उल्लेखनीय है कि यूनेस्को के नई दिल्ली कार्यालय ने चेन्नई में पुरुषों के यौन स्वास्थ्य के लिये एक पहल ‘सहोदरण’ (Sahodaran- जो यौन उन्मुखीकरण और लैंगिक पहचान पर एक समुदाय पर आधारित है) के साथ मिलकर एक अध्ययन किया।
प्रमुख बिंदु
- हाल में चेन्नई में ‘LGBTIQA +’ (Lesbian, Gay, Bisexual, Transgender, Intersex, Queer/Questioning, Asexual and many other terms) लोगों के एक सर्वव्यापी सामूहिक कार्यक्रम ‘ओरिनम (Orinam)’ की 15वीं वर्षगाँठ के अवसर पर एक छात्र ने स्पष्ट किया कि स्कूलों में यौन उन्मुखीकरण और लैंगिक पहचान के संबंध में सहपाठियों के साथ-साथ शिक्षकों द्वारा भी छात्रों को डराया धमकाया जाता है तथा विभिन्न प्रकार की यातनाएँ दी जाती हैं।
- इस अध्ययन को 18-22 आयु वर्ग के 371 लोगों के बीच ट्रांसजेंडर (Transgender) समुदायों पर किया गया था।
LGBTIQA +
(lesbian, gay, bisexual, transgender, intersex, queer/questioning, asexual and many other terms)
'LGBTIQA +' एक उभरता हुआ संक्षिप्त नाम है जिसे समलैंगिक (पुरुष/महिला), उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स, क्वीर/पूछताछ, अलैंगिक और कई अन्य शब्दों (जैसे नॉन-बाइनरी और पैनसेक्सुअल) के लिये जाना जाता है और इस नाम का इस्तेमाल लोग अपने लैंगिक अनुभवों जैसे- लैंगिकता, सेक्स प्रक्रिया की विशेषताओं को बताने के लिये उपयोग करते हैं।
परिणाम
- अध्ययन के अनुसार, 60% बच्चे माध्यमिक/उच्च विद्यालय के दौरान तथा 50% बच्चे उच्च माध्यमिक विद्यालय के दौरान Bullying (बच्चों का एक-दूसरे को सताना) के शिकार पाए गए।
- प्राथमिक विद्यालय के दौरान लगभग 40% बच्चों का यौन उत्पीड़न किया गया।
- 18% बच्चों ने स्कूल प्राधिकारियों को अपने SOGI आधारित Bullying की जानकारी दी।
- जो लोग Bullying से प्रताड़ित हैं, उनमें से 53% ने बताया कि स्कूल प्राधिकारियों ने उस व्यक्ति के खिलाफ थोड़ी बहुत कार्रवाई की, जिसने उन्हें प्रताड़ित किया था।
- SOGI आधारित हिंसा के परिणाम
- SOGI के आधार पर होने वाली हिंसा के निम्नलिखित परिणाम सामने आए हैं-
- 73% ने अपने साथियों के साथ सामाजिक संपर्क को कम कर दिया।
- 70% चिंता और अवसाद से पीड़ित पाए गए।
- 53% बच्चों द्वारा कक्षाएँ छोड़ दिये जाने की जानकारी प्राप्त हुई।
- बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर में होने वाली वृद्धि में Bullying ने महत्त्वपूर्ण भूमिका (लगभग एक-तिहाई- 33.2% भाग) निभाई है।
SOGI आधारित हिंसा को कम करने की पहल
- यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन) ने SOGI को वर्ष 2016 में रैगिंग के आधार के रूप में मान्यता दी।
- द्विभाषी नियमावली, 'ए टीचर गाइड टू जेंडर नॉन-कन्फर्मिंग स्टूडेंट्स', (जो यौन अभिविन्यास के बारे में जानकारी देती है, जैसे- लिंग पहचान क्या है, कुछ बच्चे दूसरों से अलग क्यों हैं, आदि) के बारे में कुछ जानकारी तमिलनाडु के स्कूलों में मुफ्त में दी जाती है।
स्रोत- टाइम्स ऑफ़ इंडिया
मिल्क फोर्टिफिकेशन प्रोजेक्ट
चर्चा में क्यों?
“मिल्क फोर्टिफिकेशन प्रोजेक्ट”(Milk Fortification Project) नामक पहल की शुरुआत विश्व बैंक (World Bank), टाटा ट्रस्ट (Tata Trusts) और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board-NDDB) ने उपभोक्ताओं में विटामिन की कमी को दूर करने के उद्देश्य से की थी। उल्लेखनीय है कि पिछले दो वर्षों के दौरान इसमें महत्त्वपूर्ण प्रगति देखी गई है।
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड एवं भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण द्वारा निर्मित मानकों के आधार पर फोर्टिफिकेशन किया जाता है।
- वर्तमान में देश के 20 राज्यों में लगभग 25 दुग्ध फेडरेशन, निर्माता कंपनियाँ या दुग्ध संघ प्रतिदिन लगभग 55 लाख लीटर दूध का उत्पादन कर रहे हैं।
- अब तक लगभग 1 मिलियन टन दूध को फोर्टिफाई किया जा चुका है।
मिल्क फोर्टिफिकेशन प्रोजेक्ट (Milk Fortification Project)
- इस परियोजना की शुरुआत 5 सितंबर 2017 को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board-NDDB) ने विश्व बैंक और टाटा ट्रस्ट के साथ मिलकर की थी।
- इस परियोजना का लक्ष्य 30 मिलियन ग्राहकों की दुग्ध तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये लगभग 2 मिलियन टन दूध की प्रोसेसिंग करना है।
- इस परियोजना की के लिये निर्धारित अवधी 23 माह है तथा इसका वित्तपोषण दक्षिण एशिया खाद्य एवं पोषण सुरक्षा पहल (South Asia Food and Nutrition Security Initiative-SAFANSI) द्वारा किया गया है और यह विश्व बैंक द्वारा प्रशासित है।
- SAFANSI का उद्देश्य दक्षिण एशियाई देशों में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के मानकों में सुधार करना तथा खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में वृद्धि करते हुए दीर्घकालिक कुपोषण की समस्या को हल करना है।
- इस परियोजना को सुचारू रूप से आगे बढ़ाने हेतु राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, विश्व-बैंक के लिये परामर्शदाता की भूमिका का भी निर्वहन करता है। यह परियोजना के कार्यान्वयन (जैसे- दूध के फोर्टिफिकेशन और परीक्षण के लिये SOPs का विकास; गुणवत्ता आश्वासन और गुणवत्ता नियंत्रण; परीक्षण, प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और प्रचार सामग्री विकसित करना) हेतु दुग्ध संघों, दुग्ध-निर्माता कंपनियों एवं इस परियोजना से जुड़े अन्य निकायों को तकनीकी और वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराता है।
Micronutrient malnutrition
- माइक्रोन्यूट्रीएंट मैलन्यूट्रीशन (Micronutrient malnutrition) का तात्पर्य आहार में विटामिन और खनिज़ पदार्थों की कमी के कारण होने वाले रोगों से है।
- माइक्रोन्यूट्रीएंट मैलन्यूट्रीशन में सामान्यतः विटामिन-A, आयरन और आयोडीन की कमी से होने वाले रोग शामिल होते हैं।
- गरीबी, विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों की अनुपलब्धता, बेहतर आहार प्रणालियों के बारे में जानकारी का अभाव और संक्रामक रोगों की अधिकतम घटनाएँ आदि कुछ ऐसे कारक हैं जो माइक्रोन्यूट्रीएंट कुपोषण का कारण बनते हैं।
- सामजिक स्तर पर कुपोषण के इस स्वरुप का विस्तार बहुत तीव्रता से हो रहा है। जिससे लोगों की कार्यक्षमता क्षीर्ण हो रही है इसके साथ ही लोगों में बीमारी और विकलांगता की दर तेज़ी से बढ़ रही है जो मानव समाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- खाद्य संवर्द्धन ही इस समस्या से निपटने का एक मात्र उपाय है। फोर्टिफिकेशन के अंतर्गत दूध, चावल, नमक इत्यादि की गुणवत्ता सुधारने हेतु कृत्रिम विधियों से इनमें आयरन, जिंक, आयोडीन, और विटामिन A और D को बढ़ाना है।
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। जिसकी प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता वर्ष 2017-18 में बढ़कर 375 ग्राम प्रति दिन हो गई है। दूध का अत्यधिक मात्रा में उत्पादन एवं व्यापक वितरण की व्यवस्था, संतुलित आहार का अभिन्न अंग होने के कारण संवर्द्धन का सबसे बेहतर विकल्प साबित हुआ है।
माइक्रोन्यूट्रीएंट मैलन्यूट्रीशन और भारत
- भारत में विटामिन A की कमी से ग्रसित शिशुओं की संख्या वैश्विक स्तर पर इस रोग से ग्रसित शिशुओं की संख्या का एक-चौथाई है जबकि आयोडीन की कमी से लगभग 13 मिलियन शिशु इससे ग्रसित हैं।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (National Family Health Survey-4) के आँकड़ों के मुताबिक, भारत में पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में 38.4% बच्चों का वज़न कम है, 21% बच्चे वेस्टिंग से पीड़ित हैं और 35.7% बच्चों का वज़न सामान्य से कम हैं।
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB)
- राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना वर्ष 1965 में शोषण के स्थान पर सशक्तीकरण, परंपरा के स्थान पर आधुनिकता और स्थिरता के स्थान पर विकास लाने के लिये की गई थी। इसका उद्देश्य डेयरी उद्योग को भारत के ग्रामीण लोगों के विकास के साधन के रूप में परिवर्तित करना है।
- प्रारंभ में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, सोसायटी अधिनियम 1860 के तहत एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत था। बाद में NDDB अधिनियम, 1987 के अंतर्गत भारतीय डेयरी निगम (कंपनी अधिनियम 1956 के तहत पंजीकृत एवं स्थापित) के साथ इसका विलय हो गया जो 12 अक्तूबर, 1987 से प्रभावी हुआ। इस नव-निर्मित कॉर्पोरेट संस्था को राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित किया गया।
- इसके बाद से, डेयरी बोर्ड ने भारत में डेयरी उद्योग के विकास हेतु डेयरी कार्यक्रमों की योजना बनाई। जिसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में इस उद्योग के विकास दायित्व उन दुग्ध उत्पादकों को सौंप दिया जो समितियों के प्रबंधन के लिये पेशेवरों की नियुक्ति करते हैं।
स्रोत- द हिंदू (बिज़नेसलाइन)
सभी दवाओं की बारकोडिंग अनिवार्य
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने भारत में नकली दवाओं के उभरते बाज़ार पर अंकुश लगाने के लिये स्थानीय स्तर पर बेची जाने वाली सभी दवाओं पर बारकोडिंग को अनिवार्य करने की योजना बनाई है। हालाँकि चिकित्सा उपकरणों और दवाओं के निर्यात के क्षेत्र में उनकी प्रामाणिकता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये यह व्यवस्था पहले से ही भारत में लागू है।
आवश्यकता क्यों है?
- संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि (United States Trade Representative- USTR) के कार्यालय द्वारा अप्रैल में जारी एक वार्षिक रिपोर्ट ‘Special 301 Report’ जिसमें ‘बौद्धिक संपदा संरक्षण’ और 'कुख्यात बाजारों' (Notorious Markets) की समीक्षा की गई है में यह बात सामने आई है कि भारत में नकली दवाओं के बढ़ते बाज़ार की समस्या अत्यंत गंभीर है।
- USTR की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय बाजार में बेची जाने वाली सभी दवाइयों की लगभग 20% दवाइयाँ नकली हैं।
औषधीय/फार्मास्युटिकल क्षेत्र में भारत की स्थिति
- भारत अपनी उच्च घरेलू मांग और सस्ती विनिर्माण लागत के कारण कम लागत वाली जेनेरिक दवाओं के उत्पादन में विश्व के प्रमुख उत्पादकों में से एक है।
- भारत औषधीय बाज़ार के क्षेत्र में दुनिया में तीसरे स्थान पर है जबकि मूल्य निर्धारण के मामले में 13वें स्थान पर है।
- हालाँकि नकली दवाओं से संबंधित यह समस्या एक वैश्विक मुद्दा है, जो अल्पविकसित और विकासशील देशों (निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों) में अधिक प्रचलित है।
- एक अनुमान के अनुसार निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में 10-30% दवाएँ नकली होती हैं, जबकि उच्च आय वाले देशों में महज़ 1% नकली दवाओं का मामला पाया जाता है।
भारत में नकली दवाओं के बाज़ार का कारण
- चिकित्सा देखभाल तक सीमित पहुँच, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
- आपूर्ति श्रृंखला में बाधा।
- उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी।
- दवाओं के खुद से (बिना डॉक्टर की सलाह के) लेने का प्रचलित तरीका।
- असली दवाओं की उच्च लागत।
- भ्रष्टाचार मामले में उचित कार्यवाही नहीं अर्थात् कानून का सही से लागू न किया जाना।
- ऑनलाइन फार्मेसिज़ का प्रचलन।
- जालसाज़ी में आधुनिक तकनीकों का उपयोग।
भारत में नकली और रद्दी दवाओं का वर्गीकरण
- ड्रग एंड कॉस्मेटिक अधिनियम, 1940 [Drug and Cosmetic (D and C) Act, 1940] के अनुसार, खराब गुणवत्ता वाली दवाओं में क्रमशः नकली और मिलावटी दवाएँ शामिल हैं।
- स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय) के तहत केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization- CDSCO) ने 'मानक गुणवत्ता का नहीं' (Not of Standard quality- NSQ) उत्पादों को तीन श्रेणियों A, B और C में वर्गीकृत किया है जो गुणवत्ता मूल्यांकन के दौरान उत्पादों को वर्गीकृत करने में सहायक है।
श्रेणी A |
श्रेणी B | श्रेणी C |
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बारकोडिंग के लाभ
- दवाओं की बिक्री के लिये बारकोडिंग लागू करने से दवाओं की प्रामाणिकता, उनकी उपलब्धता, समाप्ति की तारीख इत्यादि के बारे में आसानी से जाँच की जा सकेगी। इसके साथ ही दवाओं को ट्रैक करने और जरूरत पड़ने पर उनको वापस मंगाने संबंधी सभी कार्यों को आसानी से किया जा सकेगा।
आगे की राह
- लोगों में जागरूकता बढ़ाना:
- भारत के लगभग 650 मिलियन लोग मोबाइल फोन उपयोगकर्त्ता हैं जिनमें से लगभग 78% लोगों की इंटरनेट तक पहुँच है। नकली और मिलावटी दवाओं के बारे में ऑनलाइन जानकारी का प्रसार करके इस मुद्दे का शीघ्र और प्रभावी समाधान किया जा सकता है।
- जालसाज़ी को रोकने हेतु नवाचारी उपायों को लागू करना
- नई पीढ़ी की जालसाज़ी रोकने वाली तकनीकों, जैसे- फोरेंसिक पहचान (रासायनिक, जैविक और डीएनए संबंधी), क्लाउड-आधारित डेटा श्रृंखला संग्रह का उपयोग और आपूर्ति श्रृंखला में ब्लॉकचेन का उपयोग नकली दवाओं को रोकने के लिये किया जा सकता है।
CDSCO
- केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization- CDSCO) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (NRA) है।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- देश भर में इसके 6 ज़ोनल कार्यालय, 4 सब-ज़ोनल कार्यालय, 13 पोर्ट ऑफिस और 7 प्रयोगशालाएँ हैं।
- विज़न: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना।
- मिशन: दवाओं, सौंदर्य प्रसाधन और चिकित्सा उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता बढ़ाकर सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा तय करना।
- ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 एंड रूल्स 1945 (The Drugs & Cosmetics Act,1940 and rules 1945) के तहत CDSCO दवाओं के अनुमोदन, क्लिनिकल परीक्षणों के संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेषज्ञ सलाह प्रदान करके ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के प्रवर्तन में एकरूपता लाने के लिये उत्तरदायी है।
स्रोत- टाइम्स ऑफ़ इंडिया
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (10 June)
- प्रधानमंत्री का पदभार दोबारा संभालने के बाद नरेंद्र मोदी दो दिनों की यात्रा पर 8 और 9 जून को पहले मालदीव और बाद में श्रीलंका गए। उन्होंने मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सालेह और उप-राष्ट्रपति फैसल नसीम से मुलाकात करने के अलावा पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद से भी मुलाकात की। इसके अलावा भारत के लोक सेवा प्रशिक्षण संस्थान राष्ट्रीय सुशासन केंद्र ने अगले पाँच वर्षों के दौरान मालदीव के 1000 लोक प्रशासकों को गहन प्रशिक्षण देने के लिये मालदीव सिविल सर्विसेज़ कमीशन के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। गौरतलब है कि 2019 में राष्ट्रीय सुशासन केंद्र अब तक बांग्लादेश, म्यांमार, गांबिया एवं मालदीव के लोक प्रशासकों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन कर चुका है। इसके अलावा माले और कोच्चि के बीच की 700 किमी. दूरी तय करने के लिये फेरी (Ferry) सेवा शुरू करने और और माले की जामा मस्ज़िद के जीर्णोद्धार/पुनर्निर्माण पर भी सहमति बनी। इसके साथ ही भारतीय प्रधानमंत्री को मालदीव के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान इज्जुद्दीन (Order of the Distinguished Rule of Izzudeen) से सम्मानित किया गया। मालदीव द्वारा विदेशी मेहमानों को दिया जाने वाला यह सर्वोच्च सम्मान है। इसके बाद नरेंद्र मोदी एक दिन की श्रीलंका यात्रा पर भी गए।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा NPA पर 12 फरवरी के परिपत्र को रद्द किये जाने के बाद RBI ने चूक के मामले में बैंकों को ज़्यादा समय और लचीलेपन की अनुमति दे दी है। अब किसी खाते में चूक होने पर बैंक अपने हिसाब से तय कर सकते हैं कि उन्हें इन खातों के साथ क्या करना है। गौरतलब है कि RBI ने पहले 2000 करोड़ रुपए और उससे अधिक के चूक के मामलों का 180 दिन में समाधान नहीं होने पर एक दिन की चूक को भी डिफॉल्ट मानने की बात कही थी। नए दिशा-निर्देशों में बैंकों को अपने हिसाब से इसके पुनर्गठन की आज़ादी दी गई है। पहले समाधान योजना के लिये सभी ऋणदाताओं की सहमति जरूरी थी, लेकिन अब कर्ज़ के हिसाब से 75 फीसदी और कुल ऋणदाताओं के 60 फीसदी की सहमति से ही इस पर निर्णय हो जाएगा और वह सभी ऋणदाताओं के लिये बाध्यकारी होगा। फिलहाल ये दिशा-निर्देश 2000 करोड़ रुपए और उससे अधिक कर्ज़ वाले खातों पर लागू होंगे, लेकिन अगले साल 1 जनवरी से 1500 करोड़ रुपए और उससे अधिक के खाते इसके दायरे में आएंगे। नए नियमों के तहत बैंकों को चूक के बाद समाधान योजना तैयार करने और उसकी समीक्षा करने के लिये 30 दिन का समय मिलेगा।
- देश में कौशल विकास को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार ने जन शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित व अनुसूचित जनजाति के छात्र-छात्राओं को मुफ्त प्रशिक्षण देने का फैसला किया है। देश में फिलहाल 271 जन शिक्षण संस्थान खोलने के प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया है, जबकि 248 जन शिक्षण संस्थान संचालित किये जा रहे हैं तथा 83 संस्थानों की स्थापना के प्रस्ताव लंबित हैं। प्रत्येक संस्थान में सालाना लगभग 2000 प्रशिक्षार्थियों को प्रशिक्षित किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इनमें भी अल्पकालिक व दीर्घकालिक वर्ग के प्रशिक्षण का प्रबंध है। इन संस्थानों का लक्ष्य विकास के साथ युवाओं को रोज़गार के योग्य बनाना है।
- ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने 7 जून को ब्रिटेन की सत्ताधारी कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता पद से इस्तीफा दे दिया। देश का नया प्रधानमंत्री चुने जाने तक वह अपने पद पर बनी रहेंगी। जुलाई महीने के अंत तक ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री का चुनाव होने की संभावना है। उन्होंने ब्रेक्ज़िट मामले से अपने को अलग कर लिया है तथा अब नए प्रधानमंत्री के सामने यह मुद्दा सुलझाना सबसे बड़ी चुनौती होगी। विदित हो कि वर्ष 2016 में यूरोपीय संघ से अलग होने के मुद्दे पर कराए गए जनमत संग्रह के बाद थेरेसा मे ने प्रधानमंत्री का पद संभाला था। उन्होंने ब्रेक्ज़िट योजना पर तीन साल तक काम किया और इस बीच ब्रेक्ज़िट की अवधि दो बार बढ़ाई भी गई। लेकिन अभी तक इस मुद्दे पर सांसदों के बीच सहमति नहीं बन पाई और अंतत: उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला कर लिया।
- भारतीय मूल की अनीता भाटिया को संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने UN-Women की उप कार्यकारी निदेशक के पद पर नियुक्त किया है। UN-Women एक ऐसी एजेंसी है जो वैश्विक तौर पर महिला सशक्तीकरण और लिंग समानता पर फोकस करती है। कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक अनीता भाटिया ने अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की तथा जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट भी किया है। उन्हें इस पद पर सामरिक भागीदारी, संसाधन जुटाने में विशेषज्ञता और प्रबंधन में उनके योगदान और अनुभव के आधार पर नियुक्त किया गया है। अनीता भाटिया की नियुक्ति महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता के लक्ष्य हासिल करने के लिये की गई है।
- भारतीय वायुसेना की फ्लाइट लेफ्टिनेंट मोहना सिंह 31 मई को दिन (Day Time) में हॉक एडवांस्ड जेट में मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाली पहली महिला युद्धक विमान पायलट बन गई हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने पश्चिम बंगाल के कलाईकुंडा स्थित वायसेना अड्डे पर बेहद कठिन मानी जाने वाली 4-aircraft combat sortie पूरी करने के लिये हॉक एडवांस्ड जेट विमान उड़ाया। यह हॉक जेट के पूरी तरह से संचालन का आखिरी चरण होता है। उन्हें यह उपलब्धि हवा से हवा में मार एवं हवा से जमीन पर मार के कठोर युद्ध प्रशिक्षण के बाद मिली है। इसके अलावा उन्होंने कई प्रशिक्षण मिशन पूरे किये हैं जिनमें रॉकेट, तोप के गोले तथा उच्च क्षमता वाले बमों को गिराना शामिल है। मोहना सिंह को दो महिलाओं भावना कंठ और अवनी चतुर्वेदी के साथ जून 2016 में युद्धक पायलट प्रशिक्षण के लिये चुना गया था।
- प्रसिद्ध अभिनेता, कन्नड़ साहित्यकार और निर्देशक गिरीश कर्नाड का 81 वर्ष की आयु में बेंगलुरु में में निधन हो गया। गिरीश कर्नार्ड की गिनती देश के जाने-माने समकालीन लेखकों, अभिनेताओं, फिल्म निर्देशकों और नाटककारों में की जाती थी। गिरीश कर्नाड ने 1970 में कन्नड़ फ़िल्म संस्कार से फ़िल्मी करियर शुरू किया तथा उनकी पहली ही फिल्म को कन्नड़ सिनेमा के लिए राष्ट्रपति का गोल्डन लोटस पुरस्कार मिला। उन्होंने अपना पहला नाटक कन्नड़ में लिखा जिसका बाद में अंग्रेज़ी में भी अनुवाद किया गया। उनके चर्चित नाटकों में 'ययाति', 'तुग़लक', 'हयवदन', 'अंजु मल्लिगे', 'अग्निमतु माले', 'नागमंडल' और 'अग्नि और बरखा' शामिल हैं। गिरीश कर्नाड को 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1974 में पद्म श्री, 1992 में पद्म भूषण, और 1998 में कालिदास सम्मान से नवाज़ा गया था।