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डेली न्यूज़

  • 10 Mar, 2021
  • 46 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

INSTC कॉरिडोर और चाबहार बंदरगाह

चर्चा में क्यों?

भारत ने चाबहार बंदरगाह को 13 देशों के ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर’ (INSTC) में शामिल करने की मंशा व्यक्त की है और ‘मैरीटाइम इंडिया समिट’ के दौरान चाबहार दिवस समारोह में INSTC सदस्यता का विस्तार करने के लिये अफगानिस्तान और उज़्बेकिस्तान से इसमें शामिल होने का आग्रह किया गया। 

  • इस शिखर सम्मेलन में अफगानिस्तान, आर्मेनिया, ईरान, कज़ाखस्तान, रूस और उज़्बेकिस्तान के अवसंरचना क्षेत्र से संबंधित मंत्रियों सहित कई क्षेत्रीय अधिकारियों ने भाग लिया।

प्रमुख बिंदु:

भारत का प्रस्ताव:

  • INSTC जो कि ईरान के सबसे बड़े बंदरगाह बंदर अब्बास से होकर गुज़रता है, में चाबहार बंदरगाह  को शामिल करने का  प्रस्ताव भारत ने रखा है तथा कहा है कि काबुल (अफगानिस्तान) और ताशकंद (उज़्बेकिस्तान) में भूमि मार्ग के माध्यम से INSTC के "पूर्वी गलियारे" का निर्माण होगा।
    • चाबहार को INSTC में शामिल करने के लिये भारत का यह प्रस्ताव, अमेरिका द्वारा संयुक्त व्यापक कार्रवाई योजना (Joint Comprehensive Plan Of Action-JCPOA) परमाणु समझौते पर ईरान के साथ वार्ता की स्थिति बहाल करने और कुछ प्रतिबंधों में संभावित ढील को ध्यान में रखकर भी दिया गया है।
  • अफगानिस्तान के माध्यम से एक पूर्वी गलियारे की स्थापना इसकी क्षमता में वृद्धि करेगी।
    • भारत ने अफगानिस्तान और ईरान को मानवीय सहायता, आपातकालीन आपूर्ति और व्यापार के अवसरों में वृद्धि करने के मामले में हाल के वर्षों में चाबहार की भूमिका पर प्रकाश डाला।

चाबहार बंदरगाह:

  • अवस्थिति:
    • यह ओमान की खाड़ी पर स्थित है और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से केवल 72 किमी. दूर है, जिसे चीन द्वारा विकसित किया गया है।

India-to-Chabahar

अन्य तथ्य:

  • यह एकमात्र ईरानी बंदरगाह है जिसकी हिंद महासागर तक सीधी पहुँच है और इसमें दो अलग-अलग बंदरगाह हैं- जिनका नाम शाहिद बेहिश्ती और शाहिद कलंतरी है।
  • अफगानिस्तान, ईरान और भारत ने चाबहार बंदरगाह को विकसित करने और वर्ष 2016 में एक त्रिपक्षीय परिवहन एवं पारगमन गलियारा स्थापित करने के लिये त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये।

महत्त्व:

  • भारत के संदर्भ में:
    • संपर्क:
      • यह भारत की अफगानिस्तान और मध्य एशियाई राज्यों से कनेक्टिविटी बढ़ाने की एक महत्त्वपूर्ण योजना है।
    • चीन और पाकिस्तान को प्रत्युत्तर:
      • यह अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ व्यापार के लिये एक स्थायी वैकल्पिक मार्ग खोलता है, क्योंकि पाकिस्तान मुख्य मार्ग में बाधाएँ उत्पन्न करता है।
      • चीन और पाकिस्तान ‘चीन पाक आर्थिक गलियारे’ (CPEC) तथा ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से आर्थिक एवं व्यापार सहयोग बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, पाकिस्तान चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) का भी हिस्सा है।
    • इंडो-पैसिफिक रणनीति का एक भाग: चाबहार बंदरगाह भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति का एक प्रमुख भाग है जिसमें हिंद महासागर क्षेत्र के साथ यूरेशिया भी शामिल है।
  • अफगानिस्तान के संदर्भ में:
    • यह बुनियादी ढाँचे और शिक्षा परियोजनाओं के माध्यम से अफगानिस्तान के विकास में भारत की भूमिका को सुविधाजनक बनाएगा।
  • मध्य एशियाई देशों के संदर्भ में:
    • मध्य एशियाई देश जैसे- कज़ाखस्तान, उज़्बेकिस्तान भी चाबहार बंदरगाह को हिंद महासागर क्षेत्र के प्रवेश द्वार के रूप में देखते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC):

  • यह सदस्य देशों के बीच परिवहन सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ईरान, रूस और भारत द्वारा सेंट पीटर्सबर्ग में 12 सितंबर, 2000 को स्थापित एक बहु-मॉडल परिवहन परियोजना है।
    • INSTC में ग्यारह नए सदस्यों को शामिल करने के लिये इसका विस्तार किया गया - अज़रबैजान गणराज्य, आर्मेनिया गणराज्य, कज़ाखस्तान गणराज्य, किर्गिज़ गणराज्य, ताजिकिस्तान गणराज्य, तुर्की गणराज्य, यूक्रेन गणराज्य, बेलारूस गणराज्य, ओमान, सीरिया और बुल्गारिया (पर्यवेक्षक)।
  • यह माल परिवहन के लिये जहाज़, रेल और सड़क मार्ग के 7,200 किलोमीटर लंबे मल्टी-मोड नेटवर्क को लागू करता है, जिसका उद्देश्य भारत और रूस के बीच परिवहन लागत को लगभग 30% कम करना तथा पारगमन समय को 40 दिनों के आधे से अधिक कम करना है।
  • यह कॉरिडोर इस्लामिक गणराज्य ईरान के माध्यम से हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को कैस्पियन सागर से जोड़ता है तथा रूसी संघ के माध्यम से सेंट पीटर्सबर्ग एवं उत्तरी यूरोप से जुड़ा हुआ है।

Saint-petersburg

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भुगतान प्रणालियों हेतु न्यू अम्ब्रेला एंटिटी

चर्चा में क्यों?

निजी कंपनियों ने भुगतान प्रणालियों हेतु ‘न्यू अम्ब्रेला एंटिटीज़’ (New Umbrella Entities- NUEs) की स्थापना में रुचि दिखाई है। उल्लेखनीय है कि न्यू अम्ब्रेला एंटिटी की अवधारणा भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा प्रस्तुत की गई है।

  • इसका उद्देश्य भारत के मौजूदा राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payments Corporation of India- NPCI) हेतु एक वैकल्पिक तंत्र विकसित करना है।

प्रमुख बिंदु:

 ‘न्यू अम्ब्रेला एंटिटी’ (NUEs): 

  • NUEs एक गैर-लाभकारी इकाई होगी जो स्थापित नई भुगतान प्रणालियों का प्रबंधन और संचालन करेगी, विशेष रूप से खुदरा क्षेत्र में जिसमें एटीएम (ATMs), व्हाइट-लेबल पीओएस (white-label PoS),  आधार-आधारित भुगतान (Aadhaar-Based Payments) और प्रेषण सेवाएंँ (Remittance Services) आदि शामिल हैं। 
  • NUEs के तहत निर्धारित कार्य:  
    • NUEs द्वारा नई भुगतान विधियों, मानकों और प्रौद्योगिकियों को विकसित  किया जाएगा।
    • ये समाशोधन एवं निपटान तंत्रों ( Clearing and Settlement Systems) का संचालन  करेंगे, संबंधित जोखिम जैसे- निपटान, क्रेडिट, तरलता और संचालन आदि की पहचान कर उनका  प्रबंधन करेंगे तथा तंत्र में ईमानदारी बनाए रखने में सहायक होंगे।
    • ये देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुदरा भुगतान प्रणाली के विकास तथा संबंधित मुद्दों की निगरानी करेंगी ताकि उस नुकसान और धोखाधड़ी से बचा जा सके जो सिस्टम और अर्थव्यवस्था को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है।

NUEs की आवश्यकता:

  • राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) की सीमाएँ: वर्तमान में खुदरा भुगतान प्रणाली प्रदान करने हेतु  NPCI एक अम्ब्रेला एंटिटी है, जो बैंकों के स्वामित्व वाली एक गैर-लाभकारी इकाई है।
    • NPCI निपटान प्रणाली द्वारा UPI, AEPS, RuPay, Fastag, आदि का संचालन किया जाता है।
    • NPCI जो कि भारत में सभी खुदरा भुगतान प्रणालियों का प्रबंधन करने वाली एकमात्र इकाई है, में शामिल विभिन्न भुगतान माध्यमों द्वारा होने वाले  नुकसानों को इंगित किया गया है।
  • प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाना: भुगतान प्रणाली हेतु अन्य संगठनों द्वारा अम्ब्रेला एंटिटी स्थापित करने की RBI की इस योजना का उद्देश्य इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धाी  परिदृश्य का विस्तार करना है।
    • विभिन्न संगठनों द्वारा NUE स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य डिज़िटल भुगतान क्षेत्र (Digital Payments Sector) में बड़ी हिस्सेदारी प्राप्त करना है 

NUEs से संबंधित ढाँचा:

  • निवासियों का स्वामित्व तथा नियंत्रण : भारत में रह रहे नागरिकों के स्वामित्व और नियंत्रण वाली कंपनियाँ ही NUE के प्रमोटर या प्रमोटर ग्रुप के रूप में आवेदन हेतु पात्र होंगी। इसके अलावा इन्हें भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में 3 वर्ष  का अनुभव भी होना चाहिये।
    • शेयर होल्डिंग के तरीकों में विविधता होनी चाहिये। NUE द्वारा भुगतान की गई पूंजी का 25% से अधिक हिस्सा रखने वाली किसी भी इकाई को प्रमोटर माना जाएगा
  • पूंजी: अम्ब्रेला एंटिटी के पास न्यूनतम 500 करोड़ रुपए की चुकता पूंजी होगी। 
  • किसी एकल प्रमोटर या प्रमोटर समूह को इकाई की पूंजी में 40% से अधिक निवेश करने की अनुमति नहीं होगी।
    •  हर समय न्यूनतम शुद्ध मूल्य 300 करोड़ रुपए रखना होगा। 
  • शासन संरचना: NUE के बोर्ड में नियुक्त किये जाने वाले व्यक्तियों को फिट एंड प्रॉपर’ (Fit and Proper) मानदंडों के साथ-साथ कॉर्पोरेट प्रशासन के मानदंडों के अनुरूप होना चाहिये।
    • RBI ने निदेशकों की नियुक्ति को मंज़ूरी देने और NUE के बोर्ड में एक सदस्य को नामित करने का अधिकार बरकरार रखा है।
  • विदेशी निवेश: जब तक विदेशी निवेशक मौजूदा दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं तब तक उन्हें NUEs में निवेश करने की अनुमति है  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्री-पैक इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इनसॉल्वेंसी लॉ कमेटी (ILC) की एक उपसमिति द्वारा ‘दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड’ (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC), 2016 के मूल ढाँचे के भीतर प्री-पैक ढाँचे (Pre-Pack Framework) की सिफारिश की गई है।

  • जून, 2020 में प्री-पैक इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस की  सिफारिश करने हेतु सरकार द्वारा भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI)  के अध्यक्ष एम.एस. साहू की अध्यक्षता में इन्सॉल्वेंसी लॉ कमेटी (Insolvency Law Committee- ILC) की एक उपसमिति का गठन किया गया था। 

प्रमुख बिंदु:

प्री-पैक्स

  • प्री-पैक का आशय एक सार्वजनिक बोली प्रक्रिया के बजाय सुरक्षित लेनदारों और निवेशकों के बीच एक समझौते के माध्यम से तनावग्रस्त कंपनी के ऋण के समाधान से है
    • पिछले एक दशक में  ब्रिटेन और यूरोप में इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन (Insolvency Resolution) हेतु यह व्यवस्था काफी लोकप्रिय हुई है।  
  • भारत के मामले में ऐसी प्रणाली के तहत वित्तीय लेनदारों को संभावित निवेशकों से सहमत होना अनिवार्य होगा और समाधान योजना हेतु नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) की मंज़ूरी लेनी भी आवश्यक होगी।

प्री-पैक्स की आवश्यकता: 

  • IBC के तहत कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रिज़ाॅल्यूशन प्रक्रिया (CIRP) को लेकर लेनदारों द्वारा उठाए गए प्रमुख मुद्दों में से एक संकटग्रस्त कंपनियों के समाधान की धीमी प्रगति भी है।
    • CIRP, संहिता के प्रावधानों के अनुसार, यह एक कॉरपोरेट देनदार के कॉर्पोरेट दिवालिया स्थिति के समाधान की प्रक्रिया है
    • IBC के अंतर्गत हितधारकों को इन्सॉल्वेंसी कार्यवाही शुरू करने के 330 दिनों के भीतर CIRP को पूरा करना आवश्यक होता है।

प्री-पैक्स की मुख्य विशेषताएंँ:

  • आमतौर पर प्री-पैक प्रक्रिया संचालन में हितधारकों की सहायता हेतु एक इन्सॉल्वेंसी प्रैक्टिशनर (Insolvency Practitioner) की ज़रूरत होती है।
  • सहमति प्रक्रिया की परिकल्पना - इसके तहत प्रक्रिया के औपचारिक भाग को लागू करने से पूर्व कॉर्पोरेट देनदार के तनाव को दूर करने हेतु कार्रवाई करने के लिये हितधारकों की अनुमति या उनकी मंज़ूरी की बात कही गई है। 
  • न्यायालय की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं: इसके तहत सदैव न्यायालय की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है। जहाँ भी मंज़ूरी की आवश्यकता होती है,  अक्सर वहाँ न्यायालय पार्टियों के व्यावसायिक ज्ञान द्वारा निर्देशित होते हैं
    • प्री-पैक प्रक्रिया का परिणाम, जहाँ न्यायालय द्वारा अनुमोदित किया गया है, सभी हितधारकों के लिये बाध्यकारी होता है। 

प्री-पैक प्रस्ताव का महत्त्व

  • त्वरित समाधान: प्री-पैक प्रक्रिया के तहत त्वरित गति से समाधान प्रस्तुत किया जाता है, यह तनावपूर्ण स्थिति में कंपनी के मूल्यों के संरक्षण के साथ-साथ उनमें में वृद्धि करती है और समाधान की संभावना को बढ़ाती है।
  • व्यवसाय में व्यवधानों को कम करना: चूँकि प्री-पैक प्रक्रिया के तहत कॉर्पोरेट देनदार कंपनी के मौजूदा प्रबंधन के साथ काम करना जारी रखते हैं, इसलिये व्यवसाय में किसी भी प्रकार के व्यवधान की संभावना कम हो जाती है, क्योंकि इस प्रक्रिया के तहत कंपनी का प्रबंधन अंतरिम समाधान पेशेवर को हस्तांतरित नहीं किया जाता है और कंपनी के कर्मचारी, आपूर्तिकर्त्ता, ग्राहक एवं निवेशक कंपनी के साथ बने रहते हैं
  • सामूहिक समाधान: यह देखते हुए कि संकटग्रस्त कंपनियों का सामूहिक समाधान, कंपनियों के व्यक्तिगत समाधान की तुलना में अधिक प्रभावी हो सकता है, कई न्यायालय इसके लिये एक सक्षम ढाँचा उपलब्ध कराने पर विचार कर रहे हैं।
  • ऐसे में इससे संबंधित एक सक्षम तंत्र की अनुपस्थिति में प्री-पैक प्रक्रिया बहुत मददगार साबित हो सकती है
  • न्यायालयों के भार में कमी: सामान्यत: न्यायालयों की ढांँचागत क्षमता सीमित होती है और वे अपनी सीमाओं के भीतर अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकते हैं। 
    • अपनी अनौपचारिक और सहमतिपूर्ण प्रकृति के कारण एक प्री-पैक प्रक्रिया में  न्यायालय के भार को कम करने की क्षमता होती है। इसे प्रक्रिया के अनौपचारिक भाग के दौरान न्यायालय की भागीदारी की आवश्यकता नहीं होती है, वहीं औपचारिक प्रक्रिया के दौरान न्यायालयों की न्यूनतम भूमिका की आवश्यकता होती है।
    • न्यायालयों के बाहर समाधान प्रक्रिया के लिये कार्यात्मक इकाइयों का होना आवश्यक है, ताकि एनसीएलटी अंतिम न्यायालय के रूप में कार्य कर सके तथा दिवालियापन से संबंधित ऐसे मामलों का समाधान कर सके जिनका कोई समझौता संभव नहीं है।

प्री-पैक प्रक्रिया की कमियांँ

  • पारदर्शिता का अभाव
    • इस प्रक्रिया की एक प्रमुख कमज़ोरी इसका CIRP की तुलना में कम पारदर्शी होना है, क्योंकि इसके तहत वित्तीय लेनदार पारदर्शी बोली प्रकिया का प्रयोग किये बिना संभावित निवेशक के साथ निजी स्तर पर समझौता कर लेते हैं। 
    • इससे परिचालन देनदारों जैसे हितधारक अनुचित उपचार का मुद्दा उठा सकते हैं
    • अपर्याप्त विपणन: अनुसंधान से पता चलता है कि जहांँ भी प्री-पैक प्रक्रिया में पर्याप्त विपणन नहीं होता है, वहाँ लेनदारों को कम राशि प्राप्त होती है।
    • नई कंपनी की भावी व्यवहार्यता पर कोई विचार नहीं किया जाता है: इन्सॉल्वेंसी प्रैक्टिशनर के लिये प्री-पैक प्रक्रिया के तहत बिक्री से उभरने वाले नए व्यवसाय के भविष्य की व्यवहार्यता को देखने की कोई कानूनी आवश्यकता नहीं होती है।
      • इन्सॉल्वेंसी प्रैक्टिशनर का एकमात्र कानूनी दायित्व पुराने  व्यवसाय की लेनदारी से संबंधित होता है।

आगे की राह: 

  • IBC की वर्तमान कार्यप्रणाली के तहत इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल/दिवाला पेशेवर समय के साथ आवश्यक विशेषज्ञता विकसित कर रहे हैं। जिस प्रकार ब्रिटेन की शासन व्यवस्था के तहत कानून समय-समय पर प्रख्यापित होने के बजाय समय के साथ विकसित हुआ है, भारत में प्री-पैक इनसॉल्वेंसी के आवेदन हेतु उच्च स्तर पर इनसॉल्वेंसी विशेषज्ञों के अनुभव की आवश्यकता होगी क्योंकि इस तरह के रिज़ाॅल्यूशन प्रक्रियाओं/अभ्यासों पर उनका अत्यधिक नियंत्रण होता है।
  • हालांँकि न्यायालय से बाहर विवादों के समाधान में वृद्धि के साथ प्री-पैक इन्सॉल्वेंसी CIRP कार्यवाही का अगला विकल्प हो सकता है

स्रोत: पी.आई.बी


भारतीय अर्थव्यवस्था

दूरसंचार क्षेत्र के लिये पीएलआई योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा दूरसंचार क्षेत्र के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (Production Linked Incentive Scheme-PLI) को मंज़ूरी दी गई है। साथ ही इस योजना पर पाँच वर्षों के लिये 12,195 करोड़ रुपए के परिव्यय की घोषणा की गई है।

Telecome-Sector

प्रमुख बिंदु: 

उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना:

  • घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात बिल में कटौती करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा मार्च 2020 में इस योजना को प्रस्तुत किया गया था, इसका उद्देश्य घरेलू इकाइयों में निर्मित उत्पादों के परिणामस्वरूप बढ़ती बिक्री पर कंपनियों को प्रोत्साहन देना है।
  • विदेशी कंपनियों को भारत में अपनी इकाई स्थापित करने हेतु आमंत्रित करने के अलावा इस योजना का उद्देश्य स्थानीय कंपनियों को नई विनिर्माण इकाइयों को स्थापित करने या मौजूदा विनिर्माण इकाइयों का विस्तार करने के लिये प्रोत्साहित करना है।
  • इस  योजना को  इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, आईटी हार्डवेयर, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल आदि सहित कई अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिये भी मंज़ूरी दी गई है।

दूरसंचार क्षेत्र के लिये पीएलआई योजना:

  • परिचय: 
    • यह योजना दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों जैसे- स्विच, राउटर, 4जी/5जी रेडियो एक्सेस नेटवर्क, वायरलेस उपकरण और अन्य इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) एक्सेस डिवाइस के घरेलू विनिर्माण के लिये लक्षित है।
    • इस योजना का संचालन 1 अप्रैल, 2021 से शुरू होगा।
  • योजना के लिये पात्रता:
    • इस योजना के लिये कंपनियों की पात्रता विनिर्मित वस्तुओं के संचयी वृद्धिशील निवेश और वृद्धिशील बिक्री की न्यूनतम सीमा को प्राप्त करने के अधीन है।
    • कुल संचयी निवेश एकमुश्त किया जा सकता है, बशर्ते वह चार वर्ष की अवधि के लिये निर्धारित संचय सीमा को पूरा करता हो।
    • शुद्ध करों के सापेक्ष विनिर्मित वस्तुओं की संचयी वृद्धिशील बिक्री  की गणना के लिये वित्तीय वर्ष 2019-20 को आधार वर्ष के रूप में माना जाएगा।
  • प्रोत्साहन:
    • इस योजना के लिये अर्हता प्राप्त निवेशक को न्यूनतम निवेश सीमा से 20 गुना तक प्रोत्साहन दिया जाएगा, जिससे वे अपनी अप्रयुक्त क्षमता का उपयोग कर सकेंगे।
  • MSMEs को उच्च प्रोत्साहन:
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये न्यूनतम निवेश सीमा 10 करोड़ रुपए है, जबकि अन्य के लिये यह 100 करोड़ रुपए निर्धारित की गई है। 
    • MSMEs के लिये पहले तीन वर्षों में 1% अधिक प्रोत्साहन भी प्रस्तावित किया गया है।

महत्त्व :

  • इस योजना के परिणामस्वरूप अगले पाँच वर्षों में लगभग 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक के निर्यात के साथ लगभग 2.4 लाख करोड़ रुपए के वृद्धिशील उत्पादन और 3,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश प्राप्त होने का अनुमान है।
  • इस योजना से 40,000 प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर सृजित होने के साथ ही दूरसंचार उपकरण विनिर्माण से 17,000 करोड़ रुपए का कर राजस्व प्राप्त होने का अनुमान है।
  • इस योजना के माध्यम से भारत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा। गौरतलब है कि वर्तमान में भारत अपनी आवश्यकता के लगभग 80% से अधिक दूरसंचार और वायरलेस नेटवर्किंग उपकरणों का आयात करता है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

क्वासर P172 + 18

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खगोलविदों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने यूरोपियन सदर्न ऑब्ज़र्वेटरी की सबसे बड़ी टेलीस्कोप (European Southern Observatory’s Very Large Telescope- ESO’s VLT) की मदद से रेडियो उत्सर्जन के सबसे दूर स्थित स्रोत रेडियो-लाउड क्वासर (Radio-Loud’ Quasar) की खोज की है।

प्रमुख बिंदु

क्वासर:

Quasar

  • क्वासर (Quasar), आकाशगंगा (Galaxy) का सबसे चमकदार पिंड होता है, जिससे रेडियो आवृत्ति पर धारा (Jet) का उत्सर्जन होता है।
  • क्वासर शब्द "क्वासी-स्टेलर रेडियो सोर्स" (Quasi-Stellar Radio Source) का संक्षिप्त रूप है।
    • क्वासर को पहली बार 1960 के दशक में खोजा गया था, जिसका अर्थ है तारों की तरह रेडियो तरंगों का उत्सर्जक। 
    • खगोलविदों ने बाद में पता लगाया कि अधिकांश क्वासर से रेडियो उत्सर्जन बहुत कम होता है फिर भी वर्तमान में इसे इसी नाम से जाना जाता है। क्वासर रेडियो तरंगों और दृश्य प्रकाश के अलावा पराबैंगनी, अवरक्त, एक्स-रे और गामा-किरणों का उत्सर्जन करते हैं।
  • अधिकांश क्वासर हमारे सौरमंडल से भी बड़े हैं। एक क्वासर की चौड़ाई लगभग 1 किलोपारसेक (Kiloparsec) तक होती है।
  • ये केवल आकाशगंगा में पाए जाते हैं, जिनमें विशालकाय ब्लैकहोल (Blackhole) होते हैं जो इन चमकने वाली डिस्क को ऊर्जा देते रहते हैं।
    • ब्लैकहोल्स अंतरिक्ष में उपस्थित ऐसे छिद्र हैं जहाँ गुरुत्व बल इतना अधिक होता है कि वहाँ से प्रकाश का पारगमन नहीं हो सकता।
  • अधिकांश सक्रिय आकाशगंगाओं के केंद्र में एक विशालकाय ब्लैकहोल होता है जो आसपास की वस्तुओं को अपनी ओर खींच लेता है।
  • क्वासर का निर्माण एक ब्लैकहोल के चारों ओर घुमावदार भाग से निकलने वाली सामग्रियों द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा से होता है।
  • इनको बाद में  "रेडियो-लाउड" (Radio-Loud) और "रेडियो-क्विट" (Radio-Quiet) कक्षाओं में वर्गीकृत किया जाता है।
    • रेडियो-लाउड:
      • इनमें शक्तिशाली जेट होते हैं जो रेडियो-तरंगदैर्ध्य उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं।
      • ये क्वासर की कुल संख्या के लगभग 10% होते है।
    • रेडियो-क्विट:
      • इस प्रकार के क्वासर के पास शक्तिशाली जेट की कमी होती है जो रेडियो-लाउड की तुलना में अपेक्षाकृत कमज़ोर रेडियो उत्सर्जन करते हैं।
      • अधिकांश क्वासर (लगभग 90%) रेडियो-क्विट प्रकार के हैं।

हाल ही में खोजा गया क्वासर P 172+18:

  • तरंगदैर्ध्य उत्सर्जित करने वाले क्वासर को P172+18 नाम दिया गया है, जिसमें 6.8 की रेडशिफ्ट (Redshift) था।
    • क्वासर की रोशनी को पृथ्वी तक पहुँचने में 13 अरब साल लग गए।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, यह विशेष तरह का क्वासर है क्योंकि इसकी उत्पत्ति तब हुई थी जब ब्रह्मांड लगभग 78 करोड़ वर्ष पुराना था।
  • ब्लैकहोल के चारों ओर चमकता हुआ डिस्क हमारे सूर्य की तुलना में 30 करोड़ गुना अधिक विशाल है।
  • यह सबसे तेज़ गति वाले क्वासर में से एक है, जिसका अर्थ है कि यह आकाशगंगा से तेज़ी से वस्तुओं को जमा कर रहा है।
  • अब तक छह से अधिक रेडशिफ्ट वाले केवल 3 अन्य 'रेडियो-लाउड’ स्रोतों को खोजा जा चुका है और सबसे दूर वाले हिस्से में 6.18 का रेडशिफ्ट था।
    • रेडियो तरंगदैर्ध्य का रेडशिफ्ट जितना अधिक होता है, उतना ही उसका स्रोत दूर होता है।

निष्कर्ष:

  • इस क्वासर के केंद्र में ब्लैकहोल अपनी आकाशगंगा को आश्चर्यजनक दर पर खत्म कर रहा है।

महत्त्व:

  • इन 'रेडियो-लाउड' चमकने वाले पिंडों का विस्तृत अध्ययन खगोलविदों को यह समझने के लिये प्रेरित कर सकता है कि बिग बैंग के बाद से उनके कोर में विशालकाय ब्लैकहोल्स कैसे तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
  • यह प्राचीन तारा प्रणालियों और खगोलीय पिंडों के विषय में भी सुराग दे सकता है।

ESO’s VLT के विषय में:

  • क्वासर P172+18 का निरीक्षण करने के लिये उपयोग किये जाने वाला वेरी लार्ज टेलीस्कोप अटाकामा रेगिस्तान (Atacama Desert) में स्थित परानल वेधशाला (Paranal Observatory) में है।
    • चार यूनिट वाले इस टेलीस्कोप में 8.2 मीटर (27 फीट) के दर्पण लगे हुए हैं।
    • इससे कोई भी ऐसी वस्तु जिसको आँखों से नहीं देख सकते हैं, की खोज की जा सकती है।
    • यूरोपियन सदर्न ऑब्ज़र्वेटरी के अनुसार, वेरी लार्ज टेलीस्कोप विश्व का सबसे उन्नत ऑप्टिकल टेलीस्कोप है।

रेडशिफ्ट

  • गुरुत्वाकर्षण रेडशिफ्ट तब होता है जब प्रकाश के कण (फोटॉन) एक ब्लैकहोल से गुज़रते हैं और प्रकाश की तरंगदैर्ध्य बाहर निकलती है। यह प्रकाश स्पेक्ट्रम के लाल हिस्से में तरंगदैर्ध्य को स्थानांतरित करता है।
  • तीव्र गुरुत्वाकर्षण से बचने के लिये प्रकाश के कणों (फोटॉनों) को ऊर्जा खर्च करनी होगी।
  • इन फोटॉनों को एक ही समय में प्रकाश की गति से निरंतर गति करनी चाहिये।
  • अतः फोटॉन गति धीमी होने पर ऊर्जा नहीं खोते हैं, लेकिन इसे दूसरे तरीकों से खर्च करना पड़ता है।
  • यह खर्च हुई ऊर्जा प्रकाश स्पेक्ट्रम के लाल छोर की ओर एक बदलाव के रूप में प्रकट होती है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अफगान शांति प्रक्रिया और भारत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान में शांति के लिये भविष्य की राह निर्धारित करने हेतु एक नई शांति योजना की परिकल्पना की है।

  • योजना के तहत अमेरिका के तत्त्वावधान में एक क्षेत्रीय सम्मेलन का प्रस्ताव दिया गया है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान और ईरान के विदेश मंत्रियों के साथ अफगानिस्तान पर ‘एकीकृत’ दृष्टिकोण के माध्यम से चर्चा की जाएगी।

प्रमुख बिंदु 

अमेरिकी राष्ट्रपति की नई शांति योजना

  • सैन्य वापसी में विलंब: इस शांति योजना ने इस संभावना को प्रबल कर दिया है कि वर्तमान में अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी सैनिक लंबे समय तक अफगानिस्तान में रह सकते हैं।
    • इससे पूर्व अमेरिका-तालिबान समझौते के तहत अमेरिका ने मई 2021 तक सभी सैनिकों को वापस अमेरिका लाने का वादा किया था।
  • तत्काल कार्रवाई: अमेरिका, तालिबान पर कम-से-कम 90 दिनों तक हिंसा कम करने संबंधी तात्कालिक समझौते को स्वीकार करने हेतु दबाव बना रहा है, ताकि शांति स्थापित करने के लिये एक नया मार्ग बनाया जा सके।
  • समावेशी प्रक्रिया: अमेरिका अफगानी पक्षों पर किसी भी प्रकार की ‘शर्त’ लागू नहीं करेगा, बल्कि अमेरिका एक समावेशी अंतरिम सरकार, नई राजनीतिक व्यवस्था के लिये ‘मूलभूत सिद्धांतों’ पर आधारित एक समझौता और एक ‘स्थायी एवं व्यापक युद्ध विराम’ की व्यवस्था प्रदान करेगा। 
  • तुर्की की भूमिका: अमेरिका, तुर्की को काबुल (अफगानिस्तान की राजधानी) में हो रहे शांति समझौते में तुर्की को शामिल करने और इस समझौते को अंतिम रूप देने में सहायता करने पर ज़ोर दे रहा है।
  • एकीकृत दृष्टिकोण: अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र से कहा कि वह अफगानिस्तान में शांति के लिये ‘एकीकृत दृष्टिकोण’ विकसित करने हेतु चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, भारत और अमेरिका के विदेश मंत्रियों की वार्ता आयोजित करे। 

‘एकीकृत दृष्टिकोण’ के माध्यम से शांति प्रक्रिया में भारत की भूमिका

  • शांति स्थापित करने की प्रक्रिया में भारत काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है और अमेरिका ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है।
  • भारत, अफगानिस्तान में शांति और सुलह के लिये सभी प्रयासों का समर्थन करता है, जो कि समावेशी और अफगान-नेतृत्व एवं अफगान-नियंत्रित होगा। 
  • भारत ने अवसंरचना के विकास, सुरक्षा बलों को प्रशिक्षित करने और आवश्यक उपकरणों की आपूर्ति करने में भारी निवेश किया है। 
  • अफगानिस्तान की स्थिरता भारत के दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसने अफगानिस्तान के विकास के संदर्भ में काफी निवेश किया है।
  • भारत विशेष तौर पर आतंकवाद, हिंसा, महिला अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों से संबंधित मानकों को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 

Helping-Hand

अफगानिस्तान में भारत के हित

  • आर्थिक और सामरिक हित: अफगानिस्तान तेल एवं खनिज संपन्न मध्य एशियाई गणराज्यों के लिये प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
    • अफगानिस्तान की सत्ता ही भारत को मध्य एशिया (अफगानिस्तान के माध्यम से) से जोड़ने वाले भूमि मार्गों को नियंत्रित करती है।
  • विकास परियोजनाएँ: अफगानिस्तान में व्यापक स्तर पर पुनर्निर्माण की योजनाएँ, भारतीय कंपनियों के लिये कई विशिष्ट अवसर पैदा करेंगी।
    • इन प्रमुख परियोजनाओं में अफगान संसद, डेलारम-जरंज राजमार्ग और अफगानिस्तान-भारत मैत्री बाँध (सलमा बाँध) आदि शामिल हैं।
    • इसके अलावा 3 बिलियन डॉलर से अधिक की भारत की सहायता और सैकड़ों छोटी विकास परियोजनाएँ (जैसे- स्कूल, अस्पताल और जल परियोजना) आदि ने अफगानिस्तान में भारत की स्थिति काफी मज़बूत की है।
  • सुरक्षा संबंधी हित: भारत, पाकिस्तान समर्थित राज्य प्रायोजित आतंकवाद से प्रभावित है, जो इस क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादी समूहों (जैसे- हक्कानी नेटवर्क आदि) का समर्थन करता है। अतः अफगानिस्तान में एक मैत्रीपूर्ण सरकार स्थापित करने से पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद से निपटने में मदद मिल सकती है।

चुनौतियाँ

  • अफगान सरकार और तालिबान दोनों ही किसी भी प्रकार से सत्ता के बँटवारे के लिये तैयार नहीं हैं।
    • तालेबान, पाकिस्तान में अपने शरणस्थलों को छोड़ने को तैयार नहीं है और न ही वह अफगानिस्तान में सख्त इस्लामी व्यवस्था को कमज़ोर होने देना चाहता है। 
  • इसके अलावा स्वयं तालिबान भी आंतरिक रूप से काफी विभाजित है। यह विभिन्न क्षेत्रीय और आदिवासी समूहों से मिलकर बना है जो अर्द्ध-स्वायत्तता के साथ काम करता है।
    • अतः यह संभव है कि उनमें से कुछ हिंसक गतिविधियों को जारी रखें, जिससे शांति और संवाद प्रक्रिया प्रभावित होगी।

आगे की राह

  • इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिये एक स्वतंत्र, संप्रभु, लोकतांत्रिक, बहुलवादी और समावेशी अफगानिस्तान काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • यह सुनिश्चित करने के लिये अफगान शांति प्रक्रिया का अफगान नेतृत्त्व, अफगान स्वामित्व और अफगान नियंत्रित होना आवश्यक है। 
  • साथ ही वैश्विक समुदाय का आतंकवाद जैसे वैश्विक मुद्दे के विरुद्ध भी एकजुट होना आवश्यक है। ऐसे में यह समय ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय’ (CCIT) को लागू करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो सकता है, जिसे भारत द्वारा वर्ष 1996 में संयुक्त राष्ट्र में प्रस्तावित किया गया था।
  • यद्यपि अमेरिका द्वारा की जा रही नई पहल एक महत्त्वपूर्ण कदम है, किंतु आगे की राह काफी चुनौतीपूर्ण होगी। अफगानिस्तान में स्थायी शांति स्थापित करने के लिये सभी पक्षों को धैर्य के साथ मध्यमार्ग अपनाने की आवश्यकता होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

विद्यालयों और आँगनवाड़ियों में जलापूर्ति की स्थिति

चर्चा में क्यों?

जल संसाधन पर संसदीय स्थायी समिति को दी गई जानकारी के अनुसार, अक्तूबर 2020 में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा 100% जलापूर्ति कवरेज प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रारंभ किये गए 100 दिवसीय अभियान के बावजूद केवल आधे सरकारी विद्यालयों और आँगनवाड़ियों में नल द्वारा जलापूर्ति की सुविधा है।

  • समिति ने जल जीवन मिशन की प्रगति के बारे में भी संज्ञान लिया।

प्रमुख बिंदु:

100 दिवसीय अभियान:

  • इस अभियान का उद्देश्य पीने और खाना पकाने के लिये स्वच्छ जल की आपूर्ति और हर स्कूल, आँगनवाड़ी, आश्रमशाला या आवासीय आदिवासी स्कूल में शौचालय के लिये नल का पानी प्रदान करना है।
  • इसे 2 अक्तूबर, 2020 (गांधी जयंती) को लॉन्च किया गया था।
  • 100 दिन की यह अवधि 10 जनवरी, 2021 तक के लिये थी। हालाँकि कुछ राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने संकेत दिया है कि उन्हें कार्य पूरा करने के लिये अधिक समय की आवश्यकता है। इसलिये इस अभियान को 31 मार्च, 2021 तक बढ़ा दिया गया है।

संबंधित अवलोकन:

Water-supply-in-school

  • 15 फरवरी, 2021 तक केवल 48.5% आँगनवाड़ियों और 53.3% विद्यालयों में नल द्वारा जलापूर्ति की सुविधा उपलब्ध थी।
  • उत्तर प्रदेश में 8% से कम और पश्चिम बंगाल में 11% विद्यालयों में जलापूर्ति की सुविधा उपलब्ध थी, जबकि असम, झारखंड, यूपी, छत्तीसगढ़ और बंगाल में केवल 2-6% आँगनवाड़ियों में नल द्वारा जलापूर्ति की सुविधा उपलब्ध थी।
  • सात राज्य: आंध्र प्रदेश, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और पंजाब ने 100% कवरेज हासिल किया है।
  • विद्यालयों और आँगनबाड़ी केंद्रों में लगभग 1.82 लाख ‘ग्रे वाटर मैनेजमेंट स्ट्रक्चर’ और 1.42 लाख वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण किया गया।

प्रदूषित जल से संबंधित बच्चों के स्वास्थ्य मुद्दे:

  • बच्चे जल जनित रोगों (डायरिया, हैजा, टाइफाइड) के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
  • पीने योग्य पानी की कमी के कारण बच्चों में अन्य पोषण संबंधी समस्याएँ और स्वास्थ्य संबंधी खतरे उभर कर सामने आ रहे हैं।

जल जीवन मिशन:

  • जल जीवन मिशन (JJM) द्वारा वर्ष 2024 तक ‘सक्रिय घरेलू नल कनेक्शन’ (FHTC) के माध्यम से प्रत्येक ग्रामीण घर में प्रति व्यक्ति/दिन 55 लीटर पानी की आपूर्ति की परिकल्पना की गई है।
  • JJM स्थानीय स्तर पर जल की एकीकृत मांग और आपूर्ति पक्ष प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • वर्षा जल संचयन, भूजल पुनर्भरण, घरेलू जल अपशिष्ट का पुनः उपयोग,  जल प्रबंधन जैसे अनिवार्य तत्त्वों के लिये स्थिरता उपायों को अपनाने का काम अन्य सरकारी कार्यक्रमों/योजनाओं के साथ शामिल किया जाएगा।
  • यह मिशन जल के सामुदायिक दृष्टिकोण पर आधारित है, इसके प्रमुख घटक के रूप में व्यापक सूचना, शिक्षा और संचार शामिल हैं।
  • JJM जल के संबंध में एक ऐसे जन आंदोलन की कल्पना करता है, जिसमें हर व्यक्ति की सहभागिता हो।
  • वित्तपोषण पैटर्न: केंद्र और राज्यों के बीच फंड शेयरिंग पैटर्न हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिये 90:10, अन्य राज्यों के लिये 50:50 और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 100% है।
  • बजट 2021-22 में जल जीवन मिशन (शहरी) को आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा सतत् विकास लक्ष्य-6 के अनुसार सभी वैधानिक शहरों में कार्यशील नल के माध्यम से सभी घरों में पानी की आपूर्ति की सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करने के लिये शुरू किया गया है।

सुझाव:

  • स्थायी समिति ने उल्लेख किया है कि पाइपलाइन में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित किये बिना मात्र नल कनेक्शन के  प्रावधान से उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी साथ ही यह   JJM के उद्देश्य को भी पूरा नहीं करेगा।
  • इसने ज़िला स्तर पर जल आपूर्ति की वास्तविक समय पर निगरानी किये जाने को कहा है।
  • केंद्र सरकार को जल शोधन या ‘रिवर्स ऑस्मोसिस’ (RO) संयंत्रों को तत्काल आधार पर स्थापित करने के उपाय करने चाहिये ताकि बच्चों को पीने के पानी के प्रदूषित होने से नुकसान न हो।

‘ग्रे वाटर’:

  • ग्रे पानी को ऐसे अपशिष्ट जल के रूप में परिभाषित किया जाता है जो घरेलू प्रक्रियाओं (जैसे- बर्तन धोना, कपड़े धोना और नहाना) से उत्पन्न होता है।
  • ग्रे पानी में हानिकारक बैक्टीरिया और यहाँ तक ​​कि मल पदार्थ शामिल हो सकते हैं जो मिट्टी और भूजल को दूषित करते हैं।

स्रोत- द हिंदू


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