डेली न्यूज़ (10 Feb, 2020)



‘फिलामेंट-फ्री केरल’

प्रीलिम्स के लिये:

कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप, फिलामेंट बल्ब, फिलामेंट-फ्री केरल

मेन्स के लिये:

केरल द्वारा कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप, फिलामेंट बल्ब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल सरकार द्वारा सीएफएल (CFL-Compact Fluorescent Lamps) और फिलामेंट बल्ब (Filament Bulbs) की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की घोषणा की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • केरल सरकार के अनुसार, यह प्रतिबंध नवंबर 2020 से सतत् उर्जा नीति (Sustainable Energy Policy) के तहत लगाया जाएगा।
  • केरल इस प्रकार के प्रतिबंध की घोषणा करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
  • केरल सरकार द्वारा हाल ही में पेश किये गए अपने बजट में ऊर्जा क्षेत्र के लिये 1,765 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं, वहीं केरल सरकार को सौर ऊर्जा उपकरणों से 500MW बिजली उत्पादन की उम्मीद है।

पृष्ठभूमि:

  • सरकार द्वारा यह घोषणा वर्ष 2018 में राज्य के ‘उर्जा केरल मिशन’ (Urja Kerala Mission) के हिस्से के रूप में परिकल्पित ‘फिलामेंट-फ्री केरल’ (Filament-free Kerala) नामक सरकारी योजना को प्रारंभ करने के लिये की गई है।

योजना का कार्यान्वयन:

  • ‘फिलामेंट-फ्री केरल’ नामक योजना का कार्यान्वयन केरल राज्य विद्युत बोर्ड (Kerala State Electricity Board-KSEB) और ऊर्जा प्रबंधन केंद्र, केरल (Energy Management Centre, Kerala) द्वारा किया जाएगा।
  • इस योजना के तहत सभी उपभोक्ताओं को LED बल्ब (Light-Emitting Diode- LED) प्रदान किये जाएंगे।
  • राज्य में उपभोक्ता मौजूदा फिलामेंट बल्ब के बदले KSEB वेबसाइट पर LED बल्ब के लिये ऑर्डर दे सकते हैं।
  • LED बल्ब के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा नौ वॉट के बल्ब को काफी कम कीमत पर बेचा जा रहा है।
  • केरल सरकार के अनुसार, राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों तथा स्ट्रीट लाइट्स (Streetlights) में प्रयुक्त बल्बों को LED बल्बों में परिवर्तित किया जाएगा।

योजना प्रारंभ करने की घोषणा का उद्देश्य:

  • यह योजना पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को कम करने और नवीकरणीय स्रोतों जैसे-सौर और जल-विद्युत की अधिकतम क्षमता स्थापित करने के लिये केरल सरकार की दीर्घकालिक सतत् ऊर्जा नीति का हिस्सा है।
  • LED बल्ब फिलामेंट या सीएफएल बल्ब की तुलना में ऊर्जा-कुशल होते हैं, इसलिये यह कम अपशिष्ट का उत्पादन करते हैं।
  • इसके अतिरिक्त फिलामेंट बल्ब में पारा तत्त्व होता है, जो टूटने पर प्रकृति में प्रदूषक का कार्य करता है।

योजना से संबंधित अन्य तथ्य:

  • KSEB द्वारा घरों और आवासीय परिसरों की छतों पर सौर पैनल स्थापित करने की योजना फिलामेंट-फ्री केरल योजना की दिशा में एक बढाया गया एक कदम है।
  • वर्ष 2019 में कासरगोड (Kasaragod) जिले की पीलीकोड (Peelikode) पंचायत पूरी तरह से फिलामेंट-मुक्त देश की पहली पंचायत बन गई है।
  • केरल सरकार द्वारा पीलीकोड पंचायत को ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में पहल के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया गया है।
  • केरल सरकार के अनुसार, सार्वजनिक खपत के लिये राज्य में बड़े पैमाने पर लगभग 2.5 करोड़ LED बल्बों का उत्पादन किया गया है।

भारत में LED बल्ब के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये किये गए अन्य प्रयास:

  • उजाला योजना:
    (Unnat Jeevan by Affordable LED and Appliances for All -UJALA):
    • उजाला योजना की शुरुआत वर्ष 2015 में ‘राष्ट्रीय एल.ई.डी. कार्यक्रम’ (National LED Programme) के रूप में की गई थी। इस योजना का उद्देश्य कम लागत पर LED बल्ब उपलब्ध कराकर ऊर्जा की बचत करना और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना है।
  • राष्ट्रीय सड़क प्रकाश कार्यक्रम:
    (Street Lighting National Programme-SLNP):
    • SLNP देश में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा चलाई गई एक योजना है। इसकी शुरुआत 5 जनवरी, 2015 को की गई थी तथा इसके तहत सरकार का लक्ष्य देश में 3.5 करोड़ पारंपरिक स्ट्रीट लाइटों को ऊर्जा कुशल LED लाइट्स से बदलना है।
  • सौभाग्य योजना:
    • इस योजना को सर्वप्रथम सितंबर 2017 में आरंभ किया गया था और इसे दिसंबर 2018 तक पूरा किया जाना था, लेकिन बाद में इसकी समयावधि को 31 मार्च, 2019 तक बढ़ा दिया गया।
    • सौभाग्य योजना का शुभारंभ ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण सुनिश्चित करने के लिये किया गया था।
    • इस योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा बैटरी सहित 200 से 300 वॉट क्षमता का सोलर पावर पैक दिया गया, जिसमें हर घर के लिये 5 LED बल्ब, एक पंखा भी शामिल था।

आगे की राह:

केरल सरकार द्वारा घोषित ‘फिलामेंट-फ्री केरल’ जैसी योजनाओं को देश के अन्य राज्यों द्वारा ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में प्रयोग के लिये व्यापक तौर पर स्वीकार किया जाना चाहिये क्योंकि इससे ऊर्जा की कम खपत के साथ-साथ लोगों को अच्छी रोशनी भी प्राप्त होगी।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


असंसदीय भाषा एवं आचरण के विरुद्ध नियम

प्रीलिम्स के लिये

अनुच्छेद 105(2), नियम 380 व 381 के अंतर्गत प्रावधान

मेन्स के लिये

असंसदीय शब्दावली निषेध संबंधी पुस्तक का कालानुक्रम, उदहारण तथा प्रभाव

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में संसद में बहस के दौरान असंसदीय भाषा एवं आचरण (Unparliamentary Speech and Conduct) के विरुद्ध नियमों के अनुपालन और उनकी प्रासंगिकता के संदर्भ में चर्चा हुई।

प्रमुख बिंदु:

  • संविधान के अनुच्छेद 105(2) के अनुसार, संसद में या किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिये गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरुद्ध संसद के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन, पत्र, या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
  • एक संसद सदस्य जो कुछ भी कहता है वह संसद के नियमों के अनुशासन, सदस्यों की अच्छी समझ (Good Sense) और पीठासीन अधिकारी द्वारा कार्यवाही के नियंत्रण के अधीन है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि संसद सदस्य सदन के अंदर "अपमानजनक या अभद्र या अनिर्दिष्ट या असंसदीय शब्द" का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
  • लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालक विषयक नियम 380 के अनुसार, "यदि अध्यक्ष की राय है कि बहस में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जो अपमानजनक या अभद्र या असंसदीय या अनिर्दिष्ट हैं, तो संभव है कि अध्यक्ष विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग करते हुए इस तरह के शब्दों को सदन की कार्यवाही से बाहर करने का आदेश पारित करें।"
  • लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालक विषयक नियम 381 के अनुसार, "सदन की कार्यवाही का वह भाग जो समाप्त हो गया है, तारांकन द्वारा चिन्हित किया जाएगा और कार्यवाही में एक व्याख्यात्मक टीका (Explanatory Footnote) इस प्रकार डाला जाएगा: 'अध्यक्ष द्वारा आदेशित’।"

असंसदीय शब्दावली निषेध संबंधी पुस्तक

  • इस पुस्तक को पहली बार वर्ष 1999 में संकलित किया गया था। इसमें स्वतंत्रता से पूर्व केंद्रीय विधानसभा, भारत की संविधान सभा, अंतरिम संसद, लोकसभा तथा राज्यसभा में पहली बार असंबद्ध घोषित किये गए बहस और वाक्यांशों के संदर्भ शामिल किये गए थे।
  • ऐसे असंसदीय वाक्यांश और शब्द जो अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में हैं, को पीठासीन अधिकारी (लोकसभा अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति) संसद के रिकॉर्ड से बाहर रखने का काम करते हैं।
  • इस संदर्भ में सहायता हेतु लोकसभा सचिवालय ने वर्ष 2004 में एक नए संस्करण के अंतर्गत ‘असंसदीय अभिव्यक्तियाँ (Unparliamentary Expressions)’ शीर्षक से एक नियमावली प्रकाशित की।
  • राज्य विधानमंडलों को भी मुख्य रूप से इसी पुस्तक द्वारा निर्देशित किया जाता है।

असंसदीय शब्दावली के उदाहरण

  • जिन शब्दों और वाक्यांशों को असंसदीय माना गया है उनमें स्कंबैग (Scumbag), शिट (Shit), बैड (Bad- जैसे संसद सदस्य एक बुरा आदमी है) और बैंडिकूट (Bandicoot), शब्द शामिल हैं।
  • यदि पीठासीन अधिकारी महिला है तो कोई भी संसद सदस्य उसे "प्रिय अध्यक्ष (Beloved Chairperson)" के रूप में संबोधित नहीं कर सकता है।
  • सरकार या किसी अन्य संसद सदस्य पर "झांँसा देने (Bluffing)" का आरोप नहीं लगाया जा सकता।
  • रिश्वत, ब्लैकमेल, रिश्वतखोर, चोर, डाकू, लानत, धोखा, नीच, और डार्लिंग जैसे शब्द असंसदीय हैं। इनका प्रयोग संसद सदस्यों के लिये नहीं किया जा सकता।
  • संसद सदस्य या पीठासीन अधिकारियों पर "कपटी (Double Minded)" होने का आरोप भी नहीं लगाया जा सकता है।
  • एक संसद सदस्य को ठग, कट्टरपंथी, चरमपंथी, भगोड़ा नहीं कहा जा सकता। किसी भी सदस्य या मंत्री पर जान-बूझकर तथ्यों को छिपाने, भ्रमित करने या जानबूझकर भ्रमित होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है।
  • किसी भी अनपढ़ संसद सदस्य को ‘अंँगूठा छाप’ नहीं कहा जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जीवन सुगमता सूचकांक और नगरपालिका कार्य प्रदर्शन सूचकांक-2019

प्रीलिम्स के लिये:

जीवन सुगमता सूचकांक और नगरपालिका कार्य प्रदर्शन सूचकांक-2019

मेन्स के लिये:

सूचकांकों का महत्त्व एवं उदेश्य

चर्चा में क्यों:

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing & Urban Affairs) द्वारा जीवन सुगमता सूचकांक तथा नगरपालिका कार्य प्रदर्शन सूचकांक -2019 (Ease of Living Index and Municipal Performance Index) की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • दोनों सूचकांकों को तैयार करने के लिये 100 स्मार्ट शहरों और 10 लाख से अधिक आबादी वाले 14 शहरों को शामिल किया जाएगा।
  • सूचकांकों का उद्देश्य नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता का आकलन करना है।

नगरपालिका कार्य प्रदर्शन सूचकांक-2019

  • नगरपालिका कार्य प्रदर्शन सूचकांक में पाँच क्षेत्रों सेवा (Service), वित्त (Finance), योजना (Planning), प्रौद्योगिकी (Technology) और शासन (Governance) के आधार पर नगरपालिकाओं के कार्य प्रदर्शन का आकलन किया जाएगा।
  • इन पाँच क्षेत्रों को पुनः 20 अन्य क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जिनका आकलन 100 संकेतों के आधार पर किया जाएगा।

महत्त्व:

  • इस सूचकांक के माध्यम से नगरपालिकाओं का बेहतर नियोजन और प्रबंधन किया जा सकेगा।
  • सूचकांक नगर प्रशासन में उत्पन्न खामियों को दूर करने में भी मददगार साबित होगा।

जीवन सुगमता सूचकांक-2019

  • इसके माध्यम से स्थानीय निकायों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं, प्रशासन की प्रभावशीलता, शहरों में रहने हेतु स्थान के संदर्भ में शहरों में प्रदत्त सेवाओं के द्वारा उत्पन्न परिणाम और इन सबके प्रति नागरिकों की सोच को शामिल किया गया है जो कि भारतीय शहरों के प्रति नागरिकों के एक समग्र दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है।

उद्देश्य :

  • जीवन सुगमता सूचकांक चार प्रमुख उद्देश्यों को शामिल करता है जिनमें शामिल हैं-
    • साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण के निर्देशन के लिये जानकारी उत्पन्न करना।
    • सतत विकास लक्ष्य सहित व्यापक विकासात्मक परिणाम को प्राप्त करने के लिये कार्रवाई करना।
    • विभिन्न शहरी नीतियों और योजनाओं से प्राप्त परिणामों का आकलन और उनकी तुलना करना।
    • शहरी प्रशासन द्वारा उपलब्ध‍ कराई जा रही सेवाओं के बारे में नागरिकों की अवधारणाओं को जानना।

जीवन सुगमता सूचकांक के स्तंभ:

  • जीवन सुगमता सूचकांक-2019 तीन प्रमुख स्तंभों के आधार पर नागरिकों के जीवन जीने में सुगमता का मूल्यांकन/निर्धारण करेगा-
    • जीवन की गुणवत्ता (Quality of Life)
    • आर्थिक क्षमता (Economic Ability)
    • स्थिरता (Sustainability)
  • इन तीन स्‍तंभों को 14 श्रेणियों तथा 50 संकेतकों में विभाजित किया गया है।
  • पहली बार जीवन सुगमता सूचकांक-2019 के मूल्यांकन में नागरिक अवधारणा सर्वेक्षण को भी शामिल किया जा रहा है जिसका सूचकांक में 30% अधिभार होगा।
  • नागरिक अवधारणा मूल्यांकन, सर्वेक्षण का एक महत्त्वपूर्ण घटक है क्योंकि यह अप्रत्यक्ष रूप से शहरों में जीवन की गुणवत्ता के संबंध में नागरिकों की धारणा को जानने में मददगार होगा।
  • सर्वेक्षण, ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरीके से संपन्न किया जा रहा है जो 1 फरवरी, 2020 से शुरू हो चुका है तथा 29 फरवरी, 2020 तक जारी रहेगा।
  • ऑफलाइन संस्करण में लोगों के प्रत्यक्ष साक्षात्‍कार लिये जाएंगे। यह 1 फरवरी से शुरू हो गया है जो ऑनलाइन संस्‍करण के साथ-साथ ही चल रहा है।
  • सर्वेक्षण को बड़ी मात्रा में एसएमएस और सोशल मीडिया के माध्यम से बढ़ावा दिया जा रहा है।

विभिन्न पहलों के माध्यम से शहरों में हुई प्रगति का आकलन करने ,कार्य हेतु योजना बनाने, योजनाओं के बेहतर ढंग से कार्यान्वयन तथा योजनाओं की निगरानी हेतु उपयोग किये जाने वाले माध्यमों के लिये इन सूचकांकों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।

स्रोत: पी.आई.बी


अंतरिक्ष प्रवास का रिकॉर्ड

प्रीलिम्स के लिये:

किसी महिला द्वारा प्राप्त स्पेसफ्लाइट में दीर्घतम समय बिताने का रिकॉर्ड

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) और गगनयान

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration-NASA) की अंतरिक्ष यात्री क्रिस्टीना कोच (Christina Koch) अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) पर 328 दिनों के रिकॉर्ड प्रवास के बाद हाल ही में पृथ्वी पर लौटी है।

मुख्य बिंदु:

  • क्रिस्टीना कोच को 14 मार्च, 2019 को अंतरिक्ष में भेजा गया और वह अंतरिक्ष में 328 दिन पूरे करने के बाद पृथ्वी पर लौटी है।
  • वह रोसोस्मोस (Roscosmos) के सोयुज कमांडर अलेक्जेंडर स्कोवर्त्सोव (Alexander Skvortsov) और यूरोपीय स्पेस एजेंसी (European Space Agency) के लुका परमिटानो (Luca Parmitano) के साथ यात्रा करने के बाद पृथ्वी पर पहुँचीं।

ऐतिहासिक रिकॉर्ड:

  • किसी महिला द्वारा दर्ज पिछला सबसे लंबा सिंगल स्पेसफ्लाइट रिकार्ड 289 दिनों का था, जिसे पैगी व्हिटसन नामक एक अमेरिकी महिला द्वारा वर्ष 2017 में प्राप्त किया गया।
  • पुरुषों के मामले में यह विश्व रिकार्ड रूस के वालेरी पॉलाकोव (Valery Polyakov) द्वारा दर्ज किया गया था जो 438 दिनों तक अंतरिक्ष में रहे थे।
  • अमेरिकियों में स्कॉट केली (Scott Kelly) 340 दिनों के रिकार्ड के साथ क्रिस्टीना कोच से आगे हैं।

महत्त्व:

  • यह मिशन शोधकर्त्ताओं को यह निरीक्षण करने का अवसर प्रदान करेगा कि एक लंबी अंतरिक्ष यात्रा के दौरान महिला के शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है।
  • इससे भविष्य के मानवयुक्त चंद्र और मंगल मिशनों पर विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियों की समझ बढ़ेगी।
  • इससे माइक्रोग्रैविटी क्रिस्टल जाँच (Microgravity Crystals investigation) के क्षेत्र में भी समझ बढ़ेगी जो कैंसर उपचार के विकास में उपयोगी हो सकता है जहाँ यह प्रोटीन को अधिक प्रभावी और कम दुष्प्रभावों के साथ लक्षित करता है।

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन:

  • यह पृथ्वी का चक्कर लगाने वाला एक बड़ा अंतरिक्षयान है जो एक घर के रूप में कार्य करता है जहाँ अंतरिक्ष यात्री और कॉस्मोनॉट के चालक दल रहते हैं, साथ में यह एक अद्वितीय वैज्ञानिक प्रयोगशाला भी है।
  • यह लगभग 250 मील की ऊँचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करता है जहाँ इसकी गति 17,500 मील प्रति घंटे है अर्थात् यह हर 90 मिनट में पृथ्वी की परिक्रमा करता है।

अंतरिक्ष स्टेशन कितना पुराना है?

  • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का पहला हिस्सा नवंबर 1998 में लॉन्च किया गया था जिसे एक रूसी रॉकेट ने लाॅन्च किया था

अंतरिक्ष स्टेशन कितना बड़ा है?

  • अंतरिक्ष स्टेशन पाँच-बेडरूम वाले घर या दो बोइंग 747 जेटलाइनर्स के समान आकार वाला है। यह छह लोगों के चालक दल और आगंतुकों के लिये सक्षम है।
  • पृथ्वी पर अंतरिक्ष स्टेशन का वज़न लगभग एक मिलियन पाउंड होगा।
  • इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, जापान और यूरोप के प्रयोगशाला मॉड्यूल शामिल हैं।

मानव अंतरिक्षयान की 5 प्रमुख चुनौतियाँ:

  1. विकिरण: अंतरिक्ष-विकिरण मानव की आँखों के लिये अदृश्य है। पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की सीमा के ऊपर विकिरण के कारण कैंसर का खतरा बढ़ जाता है साथ में केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और संज्ञानात्मक क्रियाएं(पहचान संबंधी समस्याएं) भी प्रभावित हो सकते हैं।
  2. अलगाव: एक लंबे समय तक एक छोटी सी जगह में लोगों के समूहों को रखा जाता है, तो उनके बीच व्यवहार संबंधी मुद्दे उभर ही आते हैं चाहे वे कितने भी प्रशिक्षित क्यों न हों।
  3. पृथ्वी से दूरी: एक अंतरिक्ष यात्री को संचार में देरी, उपकरणों की विफलता या चिकित्सा- आपातकाल जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  4. गुरुत्वाकर्षण: मानक गुरुत्वाकर्षण के बिना हडिड्यों, मांसपेशियों, हृदय प्रणाली सभी पर प्रभाव पड़ता है।
  5. बंद वातावरण: रॉकेट में यात्रियों के लिये आवश्यक तापमान, दबाव, प्रकाश, ध्वनि आदि को मानव आवश्यकता के अनुसार अनुकूलित करना होता है।

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी

(European Space Agency - ESA)

  • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency-ESA) यह अंतरिक्ष के लिये यूरोप का प्रवेश द्वार है, जिसका लक्ष्य यूरोप की अंतरिक्ष क्षमता के विकास को सुनिश्चित करना है।
  • इसके सदस्य देशों की संख्या 22 है। इसका मुख्यालय पेरिस में है जहाँ ESA की नीतियों और कार्यक्रमों का निर्धारण किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


मौलिक अधिकार और रिट

प्रीलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 361, परमादेश

मेन्स के लिये:

रिट जारी करने का अधिकार क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया है कि सार्वजनिक पदों पर ‘प्रोन्नति में आरक्षण’ मौलिक अधिकार नहीं है और राज्य को ऐसा करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता।

निर्णय के मुख्य बिंदु:

  • प्रोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि ‘प्रोन्नति में आरक्षण’ के लिये परमादेश रिट जारी करने की बाध्यता नहीं है।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश:

  • न्यायालय ने कहा है कि यद्यपि अनुच्छेद 16 (4) और 16 (4-A) राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये प्रोन्नति में आरक्षण देने का अधिकार देता है लेकिन ऐसा करना राज्य सरकारों की विवेकशीलता पर निर्भर करता है, हालाँकि अगर वे (राज्य) अपने विवेक का प्रयोग करना चाहते हैं तो राज्य को सार्वजनिक सेवाओं में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता दिखाते हुए मात्रात्मक डेटा एकत्र करना होगा।
  • इस प्रकार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के संबंध में आँकड़ों का संग्रहण आरक्षण प्रदान करने के लिये एक पूर्व आवश्यकता है।
  • यदि राज्य सरकारों ने आरक्षण प्रदान नहीं करने का निर्णय लिया हो तो इसकी आवश्यकता नहीं है।

परमादेश क्या है?

परमादेश अंग्रेज़ी कॉमन लॉज़ में एक प्रमुख लेख है जिसका अर्थ है ‘साधारण कानूनी उपाय अपर्याप्त होने पर संप्रभु इकाई द्वारा जारी किया गया असाधारण रिट या आदेश’।

  • परमादेश का शाब्दिक अर्थ है 'हम आज्ञा देंते हैं’ अर्थात यह किसी व्यक्ति या निकाय को (सार्वजनिक या अर्द्ध-सार्वजनिक) उस स्थिति में कर्त्तव्य पालन का आदेश देता है यदि इन निकायों ने ऐसा कार्य करने से मना कर दिया हो और जहाँ उस कर्त्तव्य के पालन को लागू करने के लिये अन्य पर्याप्त कानूनी उपाय मौजूद नहीं हैं।
  • यह रिट तब तक जारी नहीं की जा सकती है जब तक कि कानूनी कर्तव्य सार्वजनिक प्रकृति का नहीं है और आवेदक का कानूनी अधिकार शामिल न हो।
  • रिट जारी करने का उपाय एक विवेकाधीन प्रकृति का विषय है क्योंकि यदि अन्य वैकल्पिक उपाय मौजूद हैं तो ऐसे में न्यायालय रिट जारी करने से मना कर सकता है। हालाँकि मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिये वैकल्पिक उपाय उतना वज़न नहीं रखते है जितना कि रिट रखती है।
  • रिट को अवर न्यायालयों या अन्य न्यायिक निकायों के खिलाफ भी जारी किया जा सकता है, यदि उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करने और अपना कर्त्तव्य निभाने से इनकार कर दिया हो।
  • रिट को एक निजी व्यक्ति या निकाय के खिलाफ जारी नहीं किया जा सकता है, सिवाय इसके कि जहाँ राज्य और निजी पार्टी की मिलीभगत (Collusion) संविधान या किसी कानून के प्रावधान का उल्लंघन करती हो।
  • अनुच्छेद 361 के तहत इसे राष्ट्रपति या राज्यपाल के खिलाफ जारी नहीं किया जा सकता है।

अनुच्छेद 361 (राष्ट्रपति और राज्यपालों तथा राजप्रमुखों का संरक्षण):

  • राष्ट्रपति या राज्यपाल या किसी राज्य का प्रमुख अपने कार्यालय की शक्तियों और कर्त्तव्यों के पालन और उसके द्वारा किये जाने वाले किसी भी कार्य के लिये किसी न्यायालय में जवाबदेह नहीं होंगा।
  • 1951 में वेंकटरामन बनाम स्टेट ऑफ मद्रास (Venkataramana vs State Of Madras) के मामले में पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने परमादेश रिट जारी की थी। इस मामले में याचिकाकर्ता का अधीनस्थ नागरिक न्यायिक सेवा में चयन नहीं किया गया था। पीठ ने मद्रास राज्य को याचिकाकर्ता के आवेदन पर विचार करने और सांप्रदायिक रोटेशन (Communal Rotation Order) के नियम को लागू किये बिना मेरिट के आधार पर पद संबंधी मामले को निपटाने का आदेश दिया।

रिट संबंधी प्रावधान:

  • भारत में सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 32 और उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत विशेषाधिकार संबंधी रिट जारी कर सकते हैं। ये हैं: बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश (Mandamus), प्रतिषेध (Prohibition), उत्प्रेषण ( Certiorari) और अधिकार-प्रच्छा (Quo-Warranto)।

उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता में अंतर:

  • उच्चतम न्यायालय की रिट अधिकारिता का प्रभाव संपूर्ण भारत में है, जबकि उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता का विस्तार संबंधित राज्य की सीमा तक ही है।
  • उच्चतम न्यायालय केवल मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में ही रिट जारी कर सकता है, जबकि उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के अलावा अन्य विषयों के संदर्भ में भी रिट जारी कर सकता है।
  • उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय के विरुद्ध प्रतिषेध तथा उत्प्रेषण रिट जारी कर सकता है परंतु उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय के विरुद्ध ऐसा नहीं कर सकते हैं।
  • उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल किये गए रिट की सुनवाई से इनकार नहीं कर सकता जबकि अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय द्वारा रिट को सुनवाई के लिये स्वीकार किया जाना संवैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं है।

स्रोत:द् हिंदू


स्वास्थ्य हेतु सतर्कता प्रकोष्ठ

प्रीलिम्स के लिये

गृह विभाग के अंतर्गत सतर्कता प्रकोष्ठ का गठन

मेन्स के लिये

सतर्कता प्रकोष्ठ के गठन से होने वाले लाभ एवं चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में केरल सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रभावी निष्पादन हेतु स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत एक सतर्कता प्रकोष्ठ बनाए जाने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रस्तावित प्रकोष्ठ राज्य के गृह विभाग के अंतर्गत कार्य करेगा।
  • प्रस्ताव के अनुसार, सतर्कता प्रकोष्ठ का प्रमुख एक राजपत्रित पुलिस अधिकारी को बनाए जाने की संभावना है।
  • सतर्कता प्रकोष्ठ चिकित्सा शिक्षा सेवा द्वारा चयनित डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाएगा तथा निजी क्षेत्र में सरकारी डॉक्टरों और नैदानिक क्लीनिकों, फाॅर्मेसियों, स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों के बीच वित्तीय लेनदेनों पर नकेल कसेगा।
  • यह स्वास्थ्य देखभाल कंपनियों द्वारा किये जा रहे प्रचार-प्रसार तथा झूठे दावों की निगरानी करेगा, डॉक्टरों की सिफारिश के बिना लिखी जा रही आयुर्वेदिक दवाओं के उपयोग पर रोक लगाएगा तथा शिकायतों की जाँच करेगा।
  • यह प्रकोष्ठ झोलाछाप डॉक्टरों पर भी कार्रवाई करेगा जो सरकार के टीकाकरण कार्यक्रमों के बारे में संदेह को बढ़ावा देने के लिये सोशल मीडिया पर अपने प्रभाव का उपयोग करते हैं।

दो वर्ष पुराना प्रस्ताव

  • केरल स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव के अनुसार, सतर्कता प्रकोष्ठ का प्रस्ताव लगभग दो वर्ष पुराना है जो अब कार्यरूप में परिणत हो रहा है।
  • प्रमुख सचिव के अनुसार, निदेशालय स्तर पर स्वास्थ्य सेवा निदेशालय में सतर्कता प्रकोष्ठ की व्यवस्था की गई है।
  • कुछ अन्य विभागों में भी शिकायतों के निपटारे हेतु सतर्कता प्रकोष्ठ का गठन किया गया है, स्वास्थ्य विभाग अति संवेदनशील है। अतः यहाँ इसकी आवश्यकता है, हालाँकि पूर्व में शिकायतों के निपटारे हेतु आंतरिक जाँच समिति गठित की गई है।
  • प्रस्तावित सतर्कता प्रकोष्ठ राज्य के गृह विभाग के अधीन एक पुलिस अधिकारी की अध्यक्षता में कार्य करेगा परंतु औषधीय एवं चिकित्सा संबंधी सुझाव चिकित्सक समुदाय से ही मांगे जाएंगे।

चिकित्सकों के विचार

  • चिकित्सक समुदाय इस प्रस्ताव को लेकर आशंकित हैं। कई चिकित्सकों ने सतर्कता प्रकोष्ठ जैसी गहन निगरानी व्यवस्था को स्वास्थ्य सेवाओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने वाला बताया है।
  • चिकित्सकों के अनुसार, सतर्कता प्रकोष्ठ का प्रमुख पेशेवर चिकित्सक नहीं है अतः वह चिकित्सकीय संवेदनशीलता को भलीभाँति नहीं समझ सकता है।

स्रोत: द हिंदू


महासागरीय जलधारा एवं यूरोपीय जलवायु

प्रीलिम्स के लिये:

महासागरीय जलधाराएँ, ब्यूफोर्ट गायर

मेन्स के लिये :

जलवायु परिवर्तन एवं इसके प्रभाव से संबंधित मुद्दे, आर्कटिक क्षेत्र में हिमगलन का अन्य क्षेत्रों में प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि आर्कटिक की बर्फ पिघल कर महासागरीय जलधारा (Ocean Current) को बाधित करती है जिससे पश्चिमी यूरोप की जलवायु में व्यापक परिवर्तन हो सकता है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • शोधकर्त्ताओं ने यह पता लगाया है कि आर्कटिक के ताज़े जल के अटलांटिक महासागर में मिलने से अटलांटिक महासागर की धाराओं के प्रवाह में परिवर्तन के कारण इस क्षेत्र की जलवायु में व्यापक स्तर पर बदलाव आ सकता है।
  • ध्यातव्य है कि ऐसी जलधाराएँ जो पश्चिमी यूरोप को गर्म रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, आर्कटिक में बर्फ के पिघलने से अटलांटिक महासागर में ठंडे पानी की अत्यधिक मात्रा के कारण इसकी जलधाराओं के सामान्य गुणों में परिवर्तन आ सकता है। जिससे ये जलधाराएँ अपने आस-पास के क्षेत्रों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं।

शोध के मुख्य बिंदु

  • अध्ययन के अनुसार, हर पाँच से सात वर्षों में हवाओं की दिशा में परिवर्तन होता है लेकिन दशकों से पश्चिमी हवा आर्कटिक क्षेत्र के लिये अपरिवर्तित रही है।
  • किंतु यदि हवा की दिशा बदल जाती है तो यह वामावर्त दिशा में चलने लगेगी तथा धारा की दिशा परिवर्तित हो जाएगी और यहाँ एकत्र पूरा ताज़ा जल अटलांटिक महासागर में प्रवाहित हो जाएगा।

पश्चिमी यूरोप या अटलांटिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण

  • यदि ब्यूफोर्ट गायर से अटलांटिक महासागर में ताज़ा जल प्रवाहित होगा तो इससे अटलांटिक क्षेत्र की जलवायु प्रभावित होगी और पश्चिमी यूरोप में जलवायु परिवर्तन सहित इस गोलार्द्ध में व्यापक प्रभाव प्रदर्शित होंगे।
  • गौरतलब है कि आर्कटिक महासागर से उत्तरी अटलांटिक में ताज़े पानी का प्रवाह सतह के जल के घनत्व को परिवर्तित कर देगा। जिससे जलधाराओं की दिशा में परिवर्तन संभव है।
  • अध्ययन के अनुसार, समुद्री बर्फ का पिघलना वास्तव में हमारे जलवायु प्रणाली पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। इससे उष्णकटिबंधीय एवं शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों की जलवायु प्रभावित होगी।
  • आर्कटिक का जल वायुमंडल में गर्मी और नमी खो देता है और महासागर के नीचे तक चला जाता है, जहाँ यह उत्तरी अटलांटिक महासागर से नीचे कटिबंधों तक जल को एक कन्वेयर-बेल्ट की तरह प्रवाहित करता है, जिसे वर्तमान में अटलांटिक मेरिडिनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (Atlantic Meridional Overturning Circulation) कहा जाता है।
  • यह धारा उष्णकटिबंधीय उष्मीय जल को यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे उत्तरी अक्षांशों तक ले जाकर इस क्षेत्र की जलवायु को विनियमित करने में मदद करती है किंतु यदि यह प्रक्रिया धीमी हो जाएगी तो यह जीवन के सभी रूपों विशेषकर समुद्री जीवों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

आर्कटिक एवं अटलांटिक क्षेत्र: सामान्य स्थिति में

  • वैज्ञानिकों के अनुसार, एक समुद्री जलधारा जिसे ब्यूफोर्ट गायर (Beaufort Gyre) कहा जाता है, आर्कटिक महासागर की सतह के पास ताज़े जल के भंडारण से ध्रुवीय वातावरण को संतुलित रखती है।
  • ध्यातव्य है कि ब्यूफोर्ट गायर आर्कटिक महासागर की प्राथमिक परिसंचरण विशेषताओं में से एक है, जो कनाडा के बेसिन में मीठे पानी, समुद्री बर्फ और ऊष्मा का भंडारण और परिवहन करती है और क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • ब्यूफोर्ट गायर में हवा कनाडा के उत्तर में पश्चिमी आर्कटिक महासागर के चारों ओर दक्षिणावर्त दिशा (Clockwise) में चलती है। ध्यातव्य है कि गायर इन क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से ग्लेशियरों के पिघलने से और नदी अपवाह से ताजा पानी एकत्र करती है।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, यह ताज़ा जल आर्कटिक के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह जल गर्म एवं नमकीन पानी के ऊपर तैरता है और समुद्री बर्फ को पिघलने से बचाने तथा पृथ्वी की जलवायु को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, गायर लगभग 8,000 क्यूबिक किलोमीटर ताज़ा जल या अमेरिका में मिशिगन झील में उपलब्ध जल की मात्रा का लगभग दोगुना जल संचय करता है।
  • ध्यातव्य है कि मीठे/ताज़े जल की प्राप्ति एवं संकेंद्रण का प्रमुख कारण गर्मियों और शरद ऋतु में समुद्री बर्फ का पिघलना है।
  • पश्चिम की ओर चलने वाली तेज़ हवाएँ लगातार 20 वर्षों से अपनी गति और आकार को बढ़ाने के साथ-साथ आर्कटिक महासागर के ताज़े जल को निम्न अक्षांश की ओर जाने से रोकती हैं।

आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ पिघलने के अन्य प्रभाव

  • बर्फ पिघलने से समुद्री जल-स्तर में वृद्धि होगी जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है।
  • इसके अतिरिक्त ध्रुवीय क्षेत्रों में हिमगलन के कारण वैश्विक जलवायु पर भी प्रभाव पड़ता है जिससे महाद्वीपीय क्षेत्रों में सूखे एवं बाढ़ जैसे अनेक प्रभाव देखे जा सकते हैं।

आगे की राह:

  • जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिये देशों को पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखकर व्यापक रणनीति बनाने की आवश्यकता है।
  • विभिन्न राष्ट्रों को आपसी सहयोग से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की दिशा में कदम उठने की आवश्यकता है।
  • राष्ट्रों को विकासात्मक गतिविधियों के साथ-साथ पर्यावरण में संतुलन बनाने की आवश्यकता है तथा वैश्विक तापमान को कम करने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त लोगों को जलवायु परिवर्तन एवं इसके प्रभावों के प्रति जागरूक कर उन्हें पर्यावरण हितैषी गतिविधियों को अपनाने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


जैव-चिकित्सा अपशिष्ट

प्रीलिम्स के लिये:

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016, जैव चिकित्सा अपशिष्ट की श्रेणियाँ

मेन्स के लिये:

जैव चिकित्सा अपशिष्ट के उपचार एवं निपटान से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्यमंत्री ने जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (Bio-Medical Waste) के संदर्भ में पूछे गए एक अतारांकित प्रश्न का उत्तर लिखित रूप में संसद में दिया।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • ध्यातव्य है कि अतारांकित प्रश्न ऐसे प्रश्न होते हैं जिनका उत्तर मंत्री द्वारा लिखित रूप में दिया जाता है एवं इन प्रश्नों पर अनुपूरक प्रश्न पूछने का अवसर नहीं मिलता है। जबकि तारांकित प्रश्न में मंत्री द्वारा मौखिक रूप से जवाब दिया जाता है और इसमें पूरक प्रश्न पूछने की भी अनुमति होती है।
  • जैव चिकित्सा अपशिष्ट में मानव या पशु के शारीरिक अपशिष्ट, उपचार उपकरण जैसे- सुइयाँ, सीरिंज (सुई) तथा उपचार और अनुसंधान की प्रक्रिया में स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में प्रयुक्त अन्य सामग्रियाँ सम्मिलित हैं।
  • ध्यातव्य है कि ये अपशिष्ट अस्पतालों, नर्सिंग होमों, पैथोलॉजी (विकृति विज्ञान) प्रयोगशालाओं, रक्त बैंक आदि में उपचार या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न होते हैं।

जैव चिकित्सा अपशिष्ट से संबंधित तथ्य

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को 4 श्रेणियों में विभाजित किया जाना आवश्यक है और इसका इस नियम की अनुसूची 1 में निपटान के निर्दिष्ट तरीकों के अनुसार उपचारित और निपटान किया जाता है।
  • अस्पतालों से उत्पन्न जैव-चिकित्सा अपशिष्ट का उपचार सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार और निपटान सुविधा द्वारा किया जाता है।
  • 28 राज्यों में जैव चिकित्सा अपशिष्टों के पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित निपटान के लिये 200 अधिकृत कॉमन बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट एंड डिस्पोज़ल सुविधाएँ (Common Bio-medical Waste Treatment and Disposal Facilities- CBWTFs) हैं। शेष 7 राज्यों गोवा, अंडमान निकोबार, अरुणाचल प्रदेश, लक्षद्वीप, मिज़ोरम, नगालैंड और सिक्किम में CBWTF नहीं हैं।
  • आम सुविधाओं के अलावा हेल्थकेयर सुविधाओं (Healthcare Facilities) द्वारा स्थापित 12,296 कैप्टिव उपचार और निपटान सुविधाएँ हैं।
  • प्रत्येक स्वास्थ्य सुविधा (जो बेडेड और गैर-बेडेड दोनों हैं) को बायोमेडिकल कचरे के प्रबंधन के लिये संबंधित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड / प्रदूषण नियंत्रण समिति (State Pollution Control Boards- SPCB /Pollution Control Committees- PCC) से अनुमति (Authorization) लेना आवश्यक है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2018 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, प्रति दिन स्वास्थ्य सुविधाओं की संख्या 2,60,889 है जिससे लगभग 608 मीट्रिक टन बायो-मेडिकल अपशिष्ट निकलता है जिसमें से 528 मीट्रिक टन जैव-चिकित्सा अपशिष्ट का उपचार और निपटान CBWTTF या कैप्टिव निपटान सुविधा के माध्यम से किया जाता है।
  • जैव-चिकित्सा अपशिष्ट की विभिन्न श्रेणियों के उपचार और निपटान के सामान्य तरीके निम्नलिखित हैं:
    • येलो श्रेणी के अपशिष्ट: इस प्रकार के अपशिष्टों का उपचार एवं निपटान भस्मीकरण / प्लाज़्मा पायरोलिसिस /गहरे गड्ढे में दफनाकर किया जाता है।
    • रेड श्रेणी के अपशिष्ट: इस प्रकार के अपशिष्टों का उपचार एवं निपटान आटोक्लेविंग / माइक्रोवेविंग / रासायनिक कीटाणुशोधन द्वारा किया जाता है।
    • व्हाइट श्रेणी के नुकीले अपशिष्ट: इस प्रकार के अपशिष्टों का उपचार एवं निपटान कीटाणुशोधन और कतरन, फाउंड्री / एन्कैप्सुलेशन के माध्यम से कंक्रीट के गड्ढे में दफनाने एवं रीसाइक्लिंग के बाद कीटाणुशोधन कर किया जाता है।
    • ब्लू श्रेणी के काँच के अपशिष्ट: इस प्रकार के अपशिष्टों का उपचार एवं निपटान रीसाइक्लिंग के बाद धुलाई, कीटाणुशोधन द्वारा किया जाता है।
  • जैव चिकित्सा अपशिष्ट को 4 श्रेणियों में बाँटा गया है:
    • येलो श्रेणी: इसमें पशु अपशिष्ट, मिट्टी का कचरा, एक्स्पायर्ड दवाएँ, रासायनिक कचरा, रासायनिक तरल अपशिष्ट, सूक्ष्म जीव विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी और अन्य नैदानिक ​​प्रयोगशाला अपशिष्ट आदि शामिल हैं।
    • रेड श्रेणी: इसमें दूषित अपशिष्ट, ट्यूबिंग जैसे डिस्पोजे़बल आइटम से उत्पन्न कचरा, सीरिंज, पेशाब की थैलियाँ, दस्ताने इत्यादि अपशिष्ट शामिल हैं।
    • ब्लू श्रेणी: इसमें नुकीली धातुओं वाले अपशिष्ट शामिल हैं।
    • व्हाइट श्रेणी: इसमें काँच के बने पदार्थों के अपशिष्ट शामिल हैं।

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board - CPCB) राज्यों / क्षेत्रों में जैव चिकित्सा अपशिष्ट के प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये सभी SPCB/PCC के साथ काम कर रहा है।
  • CPCB ने जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के प्रावधानों के अनुरूप जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के उचित उपचार और निपटान सुनिश्चित करने के लिये हितधारकों की सुविधा हेतु निम्नलिखित दिशा-निर्देश तैयार किये हैं:
    • सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार और निपटान सुविधाओं के लिये संशोधित दिशा-निर्देश।
    • जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में हेल्थकेयर अपशिष्ट प्रबंधन हेतु दिशा-निर्देश।
    • जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के प्रभावी प्रबंधन के लिये बार कोड प्रणाली हेतु दिशा-निर्देश
    • उपयोग के लिये बायोमेडिकल वेस्ट से निपटने हेतु दिशा-निर्देश
    • HCF और CBWTF के खिलाफ पर्यावरण मुआवज़ा के प्रभाव के लिये दिशा-निर्देश।

स्रोत: पी.आई.बी.


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 10 फरवरी, 2020

बासमती की दो किस्मों का जीनोम निरूपण

न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बासमती की दो किस्मों की जीनोम श्रृंखला का पूरा निरूपण करने में सफलता प्राप्त की है। इसमें से एक है बासमती 334 और दूसरी है ईरान की दोम सुफीद। इस प्रकार के शोध से फसलों की नई और बेहतर उपज देने वाली किस्मों के विकास में मदद मिलेगी। ‘जीनोम बायोलॉजी’ नामक पत्रिका में प्रकाशित इस शोध के अनुसार, बासमती चावल दो प्रकार के चावल समूहों का हाइब्रिड उत्पाद होता है। इस चावल का नामकरण हिंदी के शब्द ‘बास’ से हुआ है, जिसका अर्थ खुशबू होता है। यह लंबे दाने वाला चावल होता है और मुख्यत: दक्षिण एशिया में उगाया जाता है। भारत में बासमती धान की खेती बीते सैकड़ों वर्षों से की जा रही है, भारत तथा पाकिस्तान को बासमती धान का जनक माना जाता है।

‘पार्थ’ गन शॉट लोकेटर

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में चल रहे डेफएक्सपो 2020 के दौरान भारतीय सेना ने ‘पार्थ’ नाम से एक गन शॉट लोकेटर प्रस्तुत किया है। इस उपकरण का निर्माण आर्मी इंस्टीट्यूट और एक निजी संस्था द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। यह गन शॉट लोकेटर 400 मीटर की दूरी से किये गए फायर की सटीक लोकेशन का पता लगाने में सक्षम है। इस उपकरण के माध्यम से सुरक्षाबलों पर छिपकर हमला करने वाले आतंकियों का पता लगाना आसान हो जाएगा। इस उपकरण की एक खास बात यह है कि स्वदेश में निर्मित यह गन शॉट लोकेटर विदेश में निर्मित गन शॉट लोकेटर से 20 गुना किफायती है। महाभारत के चर्चित पौराणिक किरदार अर्जुन को श्रीकृष्ण अक्सर ‘पार्थ’ के नाम से पुकारते थे। उन्हीं के नाम पर इस गन शॉट लोकेटर उपकरण का नाम भी रखा गया है।

गिरिराज किशोर

पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार और कालजयी रचना 'पहला गिरमिटिया' के लेखक गिरिराज किशोर का 83 वर्ष की उम्र में 9 फरवरी, 2020 को निधन हो गया। गिरिराज किशोर हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार होने के साथ-साथ एक सशक्त कथाकार, नाटककार और आलोचक भी थे। गिरिराज किशोर का जन्म 8 जुलाई, 1937 को उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में हुआ था। वर्ष 1966 से 1975 तक वे कानपुर विश्वविद्यालय में सहायक और उपकुलसचिव के पद पर रहे। इसके पश्चात् उन्होंने वर्ष 1975 से 1983 तक IIT कानपुर में कुलसचिव के पद पर भी कार्य किया। गिरिराज किशोर का उपन्यास ‘ढाई घर’ काफी प्रसिद्ध हुआ और वर्ष 1991 में प्रकाशित इस कृति को वर्ष 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इसके अलावा गिरिराज किशोर कृत ‘पहला गिरमिटिया’ उपन्यास भी खासा चर्चित रहा, जो कि महात्मा गांधी के अफ्रीका प्रवास पर आधारित है। गिरिराज किशोर को 23 मार्च, 2007 में साहित्य और शिक्षा के लिये उनके योगदान को देखते हुए पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उनकी रचनाओं में ‘पेपरवेट’, ‘नीम के फूल’, ‘चार मोती बेआब’, ‘शहर दर शहर’ तथा ‘हम प्यार कर लें’ कहानी संग्रह और ‘इन्द्र सुनें’, ‘दो यात्राएँ’, ‘यथा प्रस्तावित’, ‘चिड़ियाघर’, ‘असलाह’, ‘ढाई घर’ तथा ‘पहला गिरमिटिया’ उपन्यास प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने कुछ नाटकों जैसे- प्रजा ही रहने दो, नरमेध, घास और घोड़ा, चेहरे-चेहरे किसके चेहरे नाटकों की रचना भी की थी।

15 जनवरी के बाद चीन गए विदेशियों का भारत में प्रवेश पर प्रतिबंध

भारत सरकार देश में कोरोना वायरस के खतरे से निपटने के लिये अनवरत प्रयास कर रही है। इसी दिशा में कदम उठाते हुए नागर विमान महानिदेशालय (DGCA) ने 15 जनवरी या उसके पश्चात् चीन जाने वाले विदेशियों को भारत में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी। DGCA ने सभी एयरलाइंस को सूचना जारी करते हुए कहा है कि 5 फरवरी से पहले चीनी नागरिकों को जारी सभी वीज़ा निलंबित कर दिये जाएँ। हालाँकि चीन से आने वाले विमानों के चालक दल में शामिल चीनी या विदेशी नागरिकों को इस नियम से छुट दी गई है।