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शासन व्यवस्था

पदोन्नति में आरक्षण पर फैसला

  • 29 Sep 2018
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

पदोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने 12 साल पहले पदोन्नति में आरक्षण पर दिये फैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि इस पर फिर से विचार करने तथा आँकड़ें जुटाने की आवश्यकता नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 2006 में नागराज मामले में दिये गए उस फैसले को सात सदस्यों वाली पीठ को संदर्भित करने की ज़रूरत नहीं है, जिसमें अनुसूचित जातियों (SC) एवं अनुसूचित जनजातियों (ST) को नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिये शर्तें तय की गई थीं। 

पृष्ठभूमि

  • 16 नवंबर, 1992 को इंदिरा साहनी मामले में ओबीसी आरक्षण पर फ़ैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी को प्रमोशन में दिये जा रहे आरक्षण पर सवाल उठाए थे और इसे पाँच साल के लिये ही लागू रखने का आदेश दिया था।
  • तब से ही यह मामला विवादों में है। हालाँकि 1995 में संसद ने 77वाँ संविधान संशोधन पारित करके पदोन्नति में आरक्षण को जारी रखा।
  • यह स्थिति नागराज और अन्य बनाम भारत सरकार मुक़दमे पर सुप्रीम कोर्ट के 2006 के फ़ैसले के बाद बदल गई।
  • एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के एम नागराज के फैसले में 2006 में पाँच जजों ने संशोधित संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 16(4)(ए), 16(4)(बी) और 335 को तो सही ठहराया था लेकिन कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने से पहले सरकार को उनके पिछड़ेपन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आँकड़े जुटाने होंगे।
  • उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने ताज़ा फैसला उन याचिकाओं के आधार पर सुनाया, जिसमें कहा गया था कि नागराज प्रकरण में संविधान पीठ के 2006 के फैसले को फिर से विचार के लिये सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा जाए।
  • दरअसल, नागराज प्रकरण में संविधान पीठ ने एससी-एसटी कर्मचारियों को नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण का लाभ दिये जाने के लिये शर्तें तय की थीं।
  • गौरतलब है कि नागराज मामले में पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2006 के अपने फैसले में कहा था कि एससी-एसटी समुदाय के लोगों को नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण दिये जाने से पहले राज्य सरकारें एससी-एसटी के पिछड़ेपन पर उनकी जनसंख्या के आँकड़े, सरकारी नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में तथ्य और समग्र प्रशासनिक दक्षता पर जानकारी मुहैया कराने के लिये बाध्य हैं।
  • केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने विभिन्न आधारों पर इस फैसले पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया था। इसमें एक आधार यह था कि एससी-एसटी समुदाय के लोगों को पिछड़ा माना जाता है और जाति को लेकर उनकी स्थिति पर विचार करते हुए उन्हें नौकरियों में पदोन्नति में भी आरक्षण दिया जाना चाहिये।
  • केंद्र सरकार ने कहा था कि एम. नागराज मामले में एससी-एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ दिये जाने हेतु गैर-ज़रूरी शर्तें लगाई गई थीं। इसलिये केंद्र ने इस पर फिर से विचार करने के लिये इसे बड़ी पीठ के पास भेजने का अनुरोध किया था।

निर्णय के प्रमुख बिंदु

  • उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार की यह अर्जी भी खारिज कर दी कि एससी/एसटी को आरक्षण दिये जाने में उनकी कुल आबादी पर विचार किया जाए।
  • मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने एकमत से यह फैसला सुनाया। इस संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल थे।
  • इस मामले में केंद्र सहित विभिन्न पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने 30 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
  • पीठ ने कहा कि एससी/एसटी कर्मचारियों को नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिये राज्य सरकारों को एससी/एसटी के पिछड़ेपन पर उनकी संख्या बताने वाला आँकड़ा इकट्ठा करने की कोई ज़रूरत नहीं है।
  • हालाँकिपीठ ने 2006 के अपने फैसले में तय की गई उन दो शर्तों पर टिप्पणी नहीं की जो पदोन्नति में एससी-एसटी के प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता और प्रशासनिक दक्षता को नकारात्मक तौर पर प्रभावित नहीं करने से जुड़े थे।  
  • अदालत ने अपने निर्णय में न सिर्फ़ 2006 में दिये गए अपने पुराने दिशा-निर्देशों को ख़ारिज किया बल्कि यह भी कहा कि नागराज निर्णय में दिये गए दिशा-निर्देश 1992 के ऐतिहासिक इंदिरा साहनी निर्णय के ख़िलाफ़ जाते हैं|

आगे की राह

  • वस्तुतः आरक्षण हमेशा से एक विवादित विषय रहा है, लेकिन आज़ादी के बाद के दशकों में आरक्षण सर्वाधिक ज्वलंत मुद्दा बन गया है। विडम्बना यह है कि भारत में उद्यमिता का अभाव है।
  • ऐसे में हर कोई सरकारी नौकरी की तरफ देखता है और अपनी सुविधानुसार आरक्षण की व्याख्या करता है।
  • इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में सामाजिक सहभागिता को बढ़ावा देने के लिये आरक्षण की नितांत आवश्यकता है, किंतु एक सच यह भी है कि आरक्षण के उद्देश्यों के बारे में अधिकांश लोग अनजान हैं।
  • जहाँ तक अनुसूचित जाति/जनजाति के लिये क्रीमीलेयर की व्यवस्था का प्रश्न है तो हमें यह ध्यान रखना होगा कि पहले सभी आयामों के व्यापक विश्लेषण की आवश्यकता है।
  • मसलन अनुसूचित जाति/जनजाति के सामाजिक उत्थान का पैमाना आय से संबंधित आँकड़ा नहीं हो सकता है। यही कारण है कि नागराज मामले में दिये अपने ही निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा साहनी मामले में बदल दिया था और क्रीमीलेयर की व्यवस्था केवल ओबीसी तक ही सीमित कर दी थी।
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