मालदीव और श्रीलंका में खसरे तथा रूबेला की समाप्ति
प्रीलिम्स के लियेखसरा, रूबेला, खसरे तथा रूबेला से मुक्त देश मेन्स के लियेखसरे तथा रूबेला के उन्मूलन हेतु WHO द्वारा किये गए प्रयास, इस संबंध में भारत की नीतियाँ |
चर्चा में क्यों?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) द्वारा की गई हालिया घोषणा के अनुसार, मालदीव और श्रीलंका वर्ष 2023 के निर्धारित लक्ष्य से पूर्व ही दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में खसरा (Measles) और रूबेला (Rubella) को समाप्त करने वाले पहले दो देश बन गए हैं।
प्रमुख बिंदु
- इस संबंध में मालदीव और श्रीलंका को बधाई देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा कि ‘इस प्रकार के रोगों के विरुद्ध बच्चों की रक्षा करना, स्वस्थ आबादी प्राप्त करने के वैश्विक प्रयास का एक महत्त्वपूर्ण कदम है।’
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नियमों के अनुसार, एक देश को खसरा (Measles) और रूबेला (Rubella) मुक्त तब माना जाता है, जब वहाँ कम-से-कम तीन वर्ष से अधिक समय तक खसरा और रूबेला वायरस के स्थानिक संचरण (Endemic Transmission) का कोई भी मामला सामने नहीं आया है।
- उल्लेखनीय है कि मालदीव में खसरे का आखिरी मामला वर्ष 2009 में और रूबेला का अंतिम स्थानिक मामला वर्ष 2015 में सामने आया था।
- वहीं जबकि श्रीलंका में खसरे का आखिरी मामला वर्ष 2016 में और रूबेला का अंतिम स्थानिक मामला वर्ष 2017 में सामने आया था।
इस उपलब्धि का महत्त्व
- ऐसे समय में जब संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी से जूझ रहा है, तो यह सफलता काफी उत्साहजनक है और संयुक्त प्रयासों के महत्त्व को प्रदर्शित करती है।
- इस उपलब्धि के परिणामस्वरूप विश्व भर के स्वास्थ्य विशेषज्ञों को COVID-19 महामारी से लड़ने की प्रेरणा मिलेगी।
दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में खसरा और रूबेला के उन्मूलन की रणनीति
- हाल के कुछ वर्षों में दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र के लगभग सभी देशों ने अपने नियमित टीकाकरण कार्यक्रमों में खसरा के टीके की दो खुराकों और रूबेला के टिके की कम-से-कम एक खुराक को शामिल किया है।
- WHO द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 के बाद से अब तक इस क्षेत्र में लगभग 500 मिलियन अतिरिक्त बच्चों को खसरा और रूबेला का टीका लगाया गया है।
- इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में खसरा और रूबेला के निगरानी तंत्र को मज़बूत करने का कार्य भी किया गया है।
- गौरतलब है कि WHO दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र (WHO South-East Asia Region) के सदस्य देशों ने बीते वर्ष सितंबर माह में खसरा (Measles) और रूबेला (Rubella) के उन्मूलन के लिये वर्ष 2023 तक का लक्ष्य निर्धारित किया था और मालदीव तथा श्रीलंका ने इससे पूर्व ही यह लक्ष्य प्राप्त कर लिया है।
भारत में खसरा और रूबेला
- वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार, मई, 2018 से अप्रैल, 2019 की अवधि के बीच भारत में खसरे के कुल 47,056 और रूबेला के कुल 1,263 मामले सामने आए थे।
- गौरतलब है कि भारत ने विश्व के सबसे बड़े खसरा-रूबेला (MR) उन्मूलन अभियान की शुरुआत की है, जिसमें 9 महीने से 15 वर्ष तक की आयु के 410 मिलियन बच्चों के टीकाकरण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
COVID-19 - टीकाकरण अभियान में बाधा
- एक वैश्विक सर्वेक्षण के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण मार्च और अप्रैल माह के दौरान विश्व के अधिकांश देशों ने आंशिक अथवा पूर्ण रूप से टीकाकरण सेवाओं को निलंबित कर दिया था।
- इस संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund-UNICEF) ने भी चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि COVID-19 से उत्पन्न समस्याओं के कारण एक वर्ष से कम आयु के लगभग 80 मिलियन बच्चों का जीवन जोखिम में है।
- WHO के अनुसार, खसरा, पोलियो और हैजा जैसे रोगों के उन्मूलन हेतु दशकों से चलाए जा रहे टीकाकरण कार्यक्रमों में बाधा उत्पन्न होने से संपूर्ण विश्व को आगामी दिनों में अत्यधिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
- WHO द्वारा जारी की गई प्राथमिक सूचना के मुताबिक मौजूदा महामारी के कारण टीकाकरण अभियान की कवरेज और निगरानी दोनों ही काफी ज़्यादा प्रभावित हुए हैं।
- हालाँकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और विश्व के अधिकांश देश महामारी के कारण प्रभावित हुए टीकाकरण अभियानों को पुनः शुरुआत करने पर ज़ोर दे रहे हैं, जिससे मौजूदा टीकाकरण अंतराल को जल्द-से-जल्द भरा जा सके।
खसरा (Measles)
- खसरा एक अत्यधिक संक्रामक वायरस जनित रोग होता है, जो कि मुख्य रूप से बच्चों को प्रभावित करता है।
- यह संक्रामक रोग विशेष रूप से मोर्बिलीवायरस (Morbillivirus) के जीन्स पैरामिक्सोवायरस (Paramicovirus) के संक्रमण से होता है।
- इसके लक्षणों में बुखार, खाँसी और आँखों का लाल हो जाना आदि शामिल हैं।
- WHO के अनुसार, खसरे (Measles) का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है और अधिकतर लोग 2-3 सप्ताह में स्वतः ही ठीक हो जाते हैं।
- हालाँकि कुपोषण से पीड़ित बच्चों और कम प्रतिरक्षा क्षमता (Immunity) वाले लोगों में खसरा गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है, जिसमें अंधापन, मस्तिष्क में सूजन और निमोनिया आदि शामिल हैं। खसरे को टीकाकरण द्वारा रोका जा सकता है।
रूबेला (Rubella)
- रूबेला को ‘जर्मन खसरे’ (German Measles) के नाम से भी जाना जाता है, यह भी एक संक्रामक वायरस जनित रोग है, हालाँकि इसके लक्षण काफी सामान्य सामान्य होते हैं।
- वायरस श्वसन मार्ग के माध्यम से प्रेषित होता है और इसके लक्षण सामान्यतः संक्रमण के 2-3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं।
- विशेषज्ञ मानते हैं कि रूबेला उन अजन्मे शिशुओं के लिये गंभीर समस्या पैदा कर सकता है जिनकी माताएँ गर्भावस्था के दौरान इस रोग से संक्रमित हो जाती हैं।
स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन
एफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्सेज़
प्रीलिम्स के लिये:‘एफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्सेज़’ योजना के महत्त्वपूर्ण प्रावधान मेन्स के लिये:प्रवासियों/गरीब लोगों के लिये योजना का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय (Ministry of Housing & Urban Affairs- MoHUA) द्वारा ‘प्रधान मंत्री आवास योजना- शहरी’ (PMAY-U) के अंतर्गत एक उप-योजना के रूप में शहरी प्रवासियों/गरीबों के लिये ‘एफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्सेज़’ (Affordable Rental Housing Complexes- ARHC) अर्थात ‘कम किराये वाले आवासीय परिसरों’ के निर्माण को मंज़ूरी प्रदान की गई है।
प्रमुख बिंदु:
- इस योजना के तहत वर्तमान में खाली पड़े सरकारी वित्त पोषित आवासीय परिसरों को 25 वर्षों के समझौतों के माध्यम से एफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्सेज़ (Affordable Rental Housing Complexes- ARHC) अर्थात किफायती किराये के आवासीय परिसरों में परिवर्तित किया जाएगा।
- इन सरकारी परिसरों की मरम्मत, पानी, निकासी/सेप्टेज, स्वच्छता, सड़क इत्यादि आधारभूत ढाँचे से जुड़ी कमियों को दूर करके इन्हें रहने लायक बनाया जाएगा ।
- राज्य/संघ शासित क्षेत्रों को पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से इन आवासीय परिसरों का चयन करना होगा।
- योजना के शुरुआती चरण में लगभग 3 लाख लोगों को शामिल किया जाएगा।
- तकनीक नवाचार अनुदान के रूप में इस योजना पर 600 करोड़ रुपए की धनराशि खर्च होने का अनुमान है।
लाभान्वित समूह:
- इस योज़ना के अंतर्गत विनिर्माण उद्योग, आतिथ्य सेवा, स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्ति, घरेलू/व्यावसायिक प्रतिष्ठानों तथा निर्माण या अन्य क्षेत्रों में लगे अधिकांश लोग, कामगार, विद्यार्थी आदि लक्षित समूह को शामिल किया गया है जो बेहतर अवसरों की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों या छोटे शहरों से आते हैं।
पृष्ठभूमि:
- COVID-19 महामारी के परिणामस्वरूप देश में बड़े स्तर पर कामगारों/शहरी गरीबों का पलायन देखने को मिला है, जो बेहतर रोज़गार के अवसरों की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों या छोटे शहरों से शहरी क्षेत्रों में आए थे।
- सामान्यत ये प्रवासी किराया बचाने के लिये झुग्गी बस्तियों, अनौपचारिक/ अनाधिकृत कॉलोनियों या अल्प विकसित शहरी क्षेत्रों में रहते हैं।
- ये लोग कार्यस्थलों पर जाने के लिये अपना काफी समय सड़कों पर चलकर/साइकिल चलाकर बिताते है और खर्च बचाने के लिये अपने जीवन को ज़ोखिम में डालते रहे हैं।
- इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए 14 मई, 2020 को प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के अंतर्गत एक उप-योज़ना के रूप में शहरी प्रवासियों/गरीबों के लिये कम किराये वाले आवासीय परिसरों (ARHC) योजना की शुरुआत की गई है।
योज़ना का महत्त्व:
- ARHC के माध्यम से शहरी क्षेत्रों में कार्यस्थल के नज़दीक सस्ते किराये वाले आवासों की उपलब्धता हो सकेगी।
- ARHC के अंतर्गत निवेश से रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे, जिससे उद्यमशीलता को प्रोत्साहन मिलेगा।
- ARHC द्वारा लोगों के अनावश्यक यात्रा वहन तथा प्रदूषण में कमी आएगी।
- सरकार द्वारा वित्तपोषित खाली पड़े आवासों को किफायती उपयोग के लिये ARHC में कवर किया जाएगा।
- इस योज़ना के तहत सरकार की खाली पड़ी ज़मीन पर ARHC का निर्माण करने से विकास करने की दिशाओं में निर्माण इकाइयों के लिये अनुकूल माहौल तैयार होगा।
- यह योज़ना ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विज़न को पूरा करेगी।
स्रोत: पीआईबी
कुवैत में एक्सपैट (प्रवासी) कोटा बिल को मंज़ूरी
प्रीलिम्स के लिये:कुवैत का एक्सपैट कोटा बिल, खाड़ी सहयोग परिषद मेन्स के लिये:कुवैत का एक्सपैट कोटा बिल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, कुवैत की नेशनल असेंबली की 'कानूनी और विधायी समिति' ने ड्राफ्ट एक्सपैट (प्रवासी) कोटा बिल को मंज़ूरी दे दी है।
प्रमुख बिंदु:
- ड्राफ्ट एक्सपैट (प्रवासी) कोटा बिल कुवैत में प्रवासियों की संख्या को सीमित करने से संबधित है।
- ड्राफ्ट एक्सपैट कोटा बिल एक संवैधानिक बिल है अत: इसे संबंधित समिति को स्थानांतरित किया जाएगा ताकि आगे एक व्यापक योजना बनाई जाए।
एक्सपैट बिल के प्रमुख प्रावधान:
- बिल के अनुसार, भारतीयों की कुवैत में आबादी 15% से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- मसौदा कानून के तहत प्रवासियों की संख्या पर एक सीमा आरोपित की जाएगी तथा प्रवसियों की संख्या में प्रतिवर्ष लगभग 5% की कमी की जाएगी।
- कुवैत के प्रधानमंत्री सहित कानूनविद् और सरकारी अधिकारी कुवैत की आबादी को 70% से 30% तक कम करना चाहते हैं।
निर्णय के कारण:
प्रवासी विरोधी आकांक्षा:
- COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद से कुवैत में प्रवासी विरोधी आकांक्षाओं में वृद्धि हुई है।
- कुवैत में अधिकतर COVID-19 संक्रमण के मामले विदेशी प्रवासियों में देखने को मिले हैं क्योंकि ये प्रवासी श्रमिक भीड़-भाड़ वाले आवास में निवास करते हैं, जिससे उनके मध्य वायरस संक्रमण आसानी से प्रसारित होता है।
खुद के देश में अल्पसंख्यक:
- कुवैत, विदेशी श्रमिकों पर अपनी निर्भरता को कम करने की दिशा में कार्य कर रहा है। कुवैती नागरिक अपने ही देश में अल्पसंख्यक के रूप में हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि कुवैत की 4.3 मिलियन की कुल आबादी में से 3 मिलियन बाहरी नागरिक हैं।
अन्य देशों का प्रभाव:
- वर्तमान में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन सहित अनेक देश संरक्षणवादी नीतियों को अपना रहे हैं।
- यह कदम संयुक्त राज्य अमेरिका के उस निर्णय के समान है, जिसके तहत अप्रवासी और गैर-अप्रवासी श्रमिकों के वीज़ा पर 60-दिवसीय प्रतिबंध का विस्तार किया गया है।
जनसंख्या संरचना पर दबाव:
- बड़ी संख्या में प्रवासियों के कारण कुवैत को अपनी जनसंख्या संरचना में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। लगभग एक तिहाई प्रवासी या तो अनपढ़ हैं या बहुत कम पढे-लिखे हैं। उनका कुवैत के विकास में नगण्य योगदान है अत: उनकी कुवैत को और अधिक आवश्यकता नहीं है।
कुवैत की जनसांख्यिकी में भारतीय:
- कुवैत में भारतीय प्रवासी समुदाय की जनसंखया 1.45 मिलियन है। यह कुवैत का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है।
- लगभग 28,000 भारतीय विभिन्न सरकारी नौकरियों जैसे नर्स, राष्ट्रीय तेल कंपनियों में इंजीनियर और वैज्ञानिक के रूप में में कार्य करते हैं।
- अधिकांश भारतीय (लगभग 5 लाख) निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं।
- कुल भारतीय प्रवासियों में लगभग 1.16 लाख लोग आश्रित हैं, जिनमें लगभग 60,000 छात्र भी शामिल हैं।
भारतीयों का योगदान:
- भारत-कुवैत द्विपक्षीय संबंधों के निर्धारण में भारतीय समुदाय हमेशा से ही एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा है।
- वर्तमान में कुवैत के लगभग सभी सामाजिक क्षेत्रों में भारतीय अपना योगदान दे रहे हैं।
- कुवैत में भारतीय समुदाय को काफी हद तक अनुशासित, मेहनती और कानूनी का पालन करने वाले नागरिकों के रूप में देखा जाता है।
भारत के लिये योगदान:
- कुवैत भारत के लिये प्रेषण (Remittance) का एक शीर्ष स्रोत है। वर्ष 2018 में भारत ने कुवैत से प्रेषण के रूप में लगभग 4.8 बिलियन अमरीकी डॉलर प्राप्त किये।
भारत पर निर्णय के संभावित प्रभाव:
- बिल के अनुसार, भारतीयों की कुवैत में आबादी 15% से अधिक नहीं होनी चाहिये।अगर कानून को लागू किया जाता है, तो इससे 8 लाख से अधिक भारतीयों को कुवैत से वापस भारत आना पड़ सकता है।
- खाड़ी देशों में सबसे ज़्यादा भारतीय कामगार काम करते हैं। इन देशों में यह संख्या लगभग 90 लाख है। अन्य देश भी कुवैत से प्रेरित होकर ऐसे ही कदम उठा सकते हैं।
- भविष्य में खाड़ी देशों तथा भारत के मध्य प्रवासियों को लेकर व्यापक टकराव देखने को मिल सकता है, इससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
- केरल जैसे राज्यों को विपरीत-प्रवास तथा COVID-19 महामारी जैसी दोहरी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
आगे की राह:
- भारत को खाड़ी देशों के साथ सहयोग के नए क्षेत्रों यथा स्वास्थ्य सेवा, दवा अनुसंधान और उत्पादन, पेट्रोकेमिकल, कम विकसित देशों में कृषि, शिक्षा और कौशल में सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है।
- खाड़ी देश वर्तमान में अर्थव्यवस्था में बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। वे वर्तमान में पेट्रोलियन उत्पादन के अलावा अन्य क्षेत्रों की और अर्थव्यवस्था को दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसे में भारत यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में निवेश को बढ़ाकर प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
निष्कर्ष:
- भारतीय दूतावास प्रस्तावित कानून से जुड़े घटनाक्रमों का बारीकी से अनुसरण कर रहा है। हालाँकि अभी तक भारत द्वारा इस मुद्दे कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है।
‘फारस की खाड़ी क्षेत्र’ (Persian Gulf Region):
- आठ देशों बहरीन, ईरान, इराक, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) द्वारा फारस की खाड़ी के आसपास की भूमि साझा की जाती हैं।
‘खाड़ी सहयोग परिषद’ (Gulf Cooperation Council- GCC):
- UAE, बहरीन, सऊदी अरब, ओमान, कतर, कुवैत GCC के सदस्य हैं।
'पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन' (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC):
- फारस की खाड़ी के देशों में से ईरान, इराक, कुवैत, UAE और सऊदी अरब 'पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन' (OPEC) के सदस्य हैं।
स्रोत: द हिंदू
भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम
प्रीलिम्स के लिये:भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम तथा इसके प्रमुख प्रावधान मेन्स के लिये:भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम का महत्त्व एवं प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (Enforcement Directorate- ED) द्वारा ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम’ (Fugitive Economic Offender Act-FEO) के तहत हीरा कारोबारी नीरव मोदी की लगभग 329.66 करोड़ रुपए की संपत्ति ज़ब्त कर ली गई है।
प्रमुख बिंदु:
- देश में पहली बार ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम’ के तहत किसी संपत्ति को ज़ब्त किया गया है।
- मुंबई की एक विशेष अदालत द्वारा संपत्तियों को ज़ब्त करने के लिये ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ को अधिकृत किया गया है।
- इन संपत्तियों को भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम-2018 के तहत ज़ब्त किया गया है।
- जब्त की गई संपत्तियों में मुंबई में प्रतिष्ठित इमारत समुद्र महल, अलीबाग में समुद्र किनारे फार्म हाउस और भूमि, जैसलमेर में एक पवन चक्की, लंदन में एक फ्लैट, संयुक्त अरब अमीरात में आवासीय फ्लैट, बैंक जमा तथा शेयर शामिल हैं।
- ‘प्रवर्तन निदेशालय’ द्वारा अब तक ‘धन शोधन निवारण अधिनियम’ (Prevention of Money Laundering Act- PMLA) के तहत नीरव मोदी की 2,348 करोड़ रुपए की संपत्ति संलग्न/ज़ब्त कर ली गई है।
- वर्तमान में नीरव मोदी मार्च, 2019 से लंदन में गिरफ्तार होने के बाद ब्रिटेन की जेल में बंद है।
कानून का उद्देश्य:
- वर्ष 2018 में इस कानून को लाने का मूल उद्देश्य कानूनी कार्रवाई से बचने के लिये देश छोड़ने वाले आर्थिक अपराधियों को रोकना है।
क्या है आरोप?
- नीरव मोदी और उसके चाचा मेहुल चोकसी को पंजाब नेशनल बैंक की ब्रैडी हाउस शाखा में दो अरब डॉलर से अधिक की बैंक धोखाधड़ी के मामले में ईडी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में दोषी पाया गया हैं।
- नीरव मोदी को 5 दिसंबर, 2019 में ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी’ घोषित किया गया था।
नीलाम होगी संपत्ति:
- नीरव मोदी की संपत्ति को FEO अधिनियम के सेक्शन Section 12(2) और (8) के तहत ज़ब्त किया गया है।
- FEO अधिनियम के तहत,ज़ब्त की गई संपत्ति को आदेश जारी होने के 90 दिन बाद नीलामी के लिये रखा जाता है।
- नीलामी से प्राप्त राशि को सरकारी कोष या अकाउंट में डिपॉज़िट किया जाता है।
स्रोत: द हिंदू
आंध्र प्रदेश राज्य निवार्चन आयुक्त विवाद
प्रीलिम्स के लियेराज्य निर्वाचन आयोग मेन्स के लियेराज्य के स्थानीय चुनावों में राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका, राज्य निवार्चन आयुक्त की नियुक्ति में राज्यपाल की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग और राज्य के नेता अतलुरी रामकृष्ण (Atluri Ramakrishna) द्वारा दायर अलग-अलग याचिकाओं पर जल्द ही सुनवाई करने और निर्णय देने की बात की है।
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है कि बीते माह 10 जून को सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की उस अंतरिम याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1994 के आंध्रप्रदेश पंचायती राज अधिनियम में संशोधन को निरस्त करने के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
- अब इस मुद्दे पर सभी याचिकाओं की सुनवाई एक साथ की जाएगी।
क्या था मामला?
- दरअसल आंध्र प्रदेश सरकार ने बीते दिनों 10 अप्रैल को आंध्रप्रदेश पंचायत राज कानून, 1994 में संशोधन कर राज्य निर्वाचन आयुक्त (State Election Commissioner-SCE) के कार्यकाल को पाँच वर्ष से घटाकर तीन वर्ष कर दिया था, साथ ही इस संशोधन के माध्यम से राज्य निर्वाचन आयुक्त (SCE) के पद को केवल सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तक ही सीमित कर दिया गया था।
- ध्यातव्य है कि संशोधन से पूर्व सेवानिवृत्त नौकरशाह भी राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर नियुक्ति होने के पात्र थे।
- इस अध्यादेश के लागू होते ही, राज्य सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश वी. कनगराज (V Kanagaraj) को राज्य का नया निर्वाचन आयुक्त नियुक्त कर दिया और तत्कालीन राज्य निर्वाचन आयुक्त निम्मागड्डा रमेश कुमार को अचानक पद से हटा दिया गया।
- जिसके पश्चात् स्वयं रमेश कुमार तथा कई अन्य लोगों द्वारा आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई और राज्य सरकार के अध्यादेश पर रोक लगाने की मांग की गई है।
- 29 मई को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के अध्यादेश को निरस्त कर दिया और स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के पास भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243K और 243 ZA के तहत राज्य निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त करने की शक्ति नहीं है।
- राज्य के निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त करने की शक्ति राज्य के राज्यपाल के पास होती है।
- साथ ही आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि राज्य निर्वाचन आयुक्त के कार्यकाल को 5 वर्ष से घटकर 3 वर्ष करना पूर्ण रूप से एक मनमाना कदम है।
- जिसके पश्चात् आंध्र प्रदेश सरकार इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लेकर गई और 11 जून, 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, हालाँकि मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे के नेतृत्त्व वाली खंडपीठ ने नोटिस जारी करते हुए आंध्रप्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग और निम्मगड्डा रमेश कुमार से इस संबंध में अपनी प्रतिकिया मांगी थी।
राज्य निर्वाचन आयोग (SEC)
- राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) के गठन का मुख्य उद्देश्य राज्य में स्थानीय निकायों के लिये स्वतंत्र, निष्पक्ष और तटस्थ निर्वाचन कराना।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243K तथा 243ZA में राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
- SEC का गठन 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 (Constitutional Amendments Act, 1992) के तहत किया गया था।
- SEC भारत के निर्वाचन आयोग से स्वतंत्र इकाई है और राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है।
कार्य:
- SEC का गठन प्रत्येक राज्य/संघशासित क्षेत्र के निगम, नगरपालिकाओं, ज़िला परिषदों, ज़िला पंचायतों, पंचायत समितियों, ग्राम पंचायतों तथा अन्य स्थानीय निकायों के चुनावों के संचालन के लिये किया गया है।
- अनुच्छेद 243K के अनुसार पंचायतों के निर्वाचन तथा निर्वाचन नामावली तैयार करने के दौरान अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के कार्य राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होंगे।
राज्यपाल की भूमिका:
- राज्य निर्वाचन आयोग में एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होता है जिसे राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- संविधान के अनुसार, राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन, राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद की अवधि तथा सेवा की शर्तों का निर्धारण राज्यपाल द्वारा किया जाएगा।
स्रोत: द हिंदू
ओपन स्काई समझौता
प्रीलिम्स के लियेकन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल सिविल एविएशन, शिकागो कन्वेंशन मेन्स के लिये‘ओपन स्काई समझौते’ के तहत भारत की बढ़ती भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात (United Arab Emirates) ने भारत के साथ एक ‘खुला आकाश समझौता’ या ‘ओपन स्काई समझौता’ (Open Sky Agreement) करने की इच्छा व्यक्त की।
प्रमुख बिंदु:
ओपन स्काई समझौता (Open Sky Agreement) क्या है?
- ओपन स्काई समझौता दो देशों के मध्य द्विपक्षीय समझौता होता है जिसके तहत दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय यात्री एवं कार्गो सेवा प्रदान करने हेतु अपनी-अपनी एयरलाइंस के लिये अधिकार प्रदान करने के लिये आपस में बातचीत करते हैं।
- यह अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों एवं कार्गो उड़ानों के विस्तार को बढ़ावा देता है।
वायु सेवा समझौता (Air Service Agreement):
- भारत ने 109 देशों के साथ वायु सेवा समझौता (Air Service Agreement) किया है जिनमें संयुक्त अरब अमीरात शामिल है।
- इस समझौते में उड़ानों, सीटों, लैंडिंग बिंदुओं एवं कोड-शेयर की संख्या से संबंधित विभिन्न पहलू शामिल किये जाते हैं किंतु यह समझौता दो देशों के बीच असीमित संख्या में उड़ानों की अनुमति नहीं देता है।
- भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच ‘ओपन स्काई समझौता’ दोनों देशों के चयनित शहरों के मध्य असीमित संख्या में उड़ानों की अनुमति देगा।
भारत की ओपन स्काई नीति (India’s Open Sky Policy):
- भारत सरकार की वर्ष 2016 की राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति (National Civil Aviation Policy) दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) देशों के साथ-साथ नई दिल्ली से 5,000 किलोमीटर के दायरे में आने वाले देशों के साथ पारस्परिक आधार पर 'खुले आकाश' (Open Sky) हवाई सेवा समझौते को अपनाने की अनुमति देती है।
- इसका तात्पर्य है कि नई दिल्ली से 5000 किलोमीटर की दूरी वाले देश एक द्विपक्षीय समझौता कर सकते हैं और आपस में उन उड़ानों की संख्या निर्धारित कर सकते हैं जिसे उनकी एयरलाइंस दोनों देशों के बीच संचालित करती हैं।
- उल्लेखनीय है कि भारत ने ग्रीस, जमैका, गुयाना, फिनलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान आदि के साथ ओपन स्काई समझौते (Open Sky Agreement) किये हैं।
पाँचवीं एवं छठवीं फ्रीडम ऑफ एयर
(Fifth and Six Freedoms of Air):
- भारतीय एयरलाइंस के हितों को अन्य एयर कैरियर से खतरे के मद्देनज़र संयुक्त अरब अमीरात ने यह भी उल्लेख किया है कि वह पाँचवीं एवं छठवीं ‘फ्रीडम ऑफ एयर’ को लागू करने का इच्छुक नहीं है।
- ‘फ्रीडम ऑफ एयर’ की अवधारणा वर्ष 1944 के ‘कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल सिविल एविएशन’ (Convention on International Civil Aviation) जिसे शिकागो कन्वेंशन (Chicago Convention) भी कहा जाता है, में विमानन उदारीकरण की सीमा पर असहमति के परिणामस्वरूप तैयार की गई थी।
- शिकागो कन्वेंशन (Chicago Convention) वर्ष 1947 से प्रभावी हुआ था।
- ‘फ्रीडम ऑफ एयर’ एक वाणिज्यिक विमानन अधिकारों का एक समूह है जो किसी देश की एयरलाइनों को किसी अन्य देश के हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने एवं उतरने का विशेषाधिकार प्रदान करता है।
- पाँचवीं ‘फ्रीडम ऑफ एयर’ में दो देशों के बीच उड़ान भरने का अधिकार शामिल है जो अपने ही देश से शुरू या समाप्त होने वाली उड़ान का संचालन करते हैं।
- छठवीं ‘फ्रीडम ऑफ एयर’ में गैर-तकनीकी कारणों से अपने देश में रुकने के अलावा एक विदेशी देश से दूसरे देश में उड़ान भरने का अधिकार शामिल है।
आगे की राह:
- वर्तमान में द्विपक्षीय वायु सेवा समझौते (Air Service Agreement) के तहत भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच एक सप्ताह में लगभग 1068 उड़ानें संचालित की जाती हैं।
- इसलिये भारत और संयुक्त अरब अमीरात को एक ‘ओपन स्काई नीति’ बनाने की आवश्यकता है जो भविष्य में भारत को एक वाणिज्यिक केंद्र बनने में मदद करेगी।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 09 जुलाई, 2020
रयुतु दिनोत्सवम (किसान दिवस)
08 जुलाई, 2020 को आंध्रप्रदेश राज्य में रयुतु दिनोत्सवम (Rythu Dinotsavam) अथवा किसान दिवस के रूप में मनाया गया। इस दिवस का आयोजन मुख्य रूप से आंध्रप्रदेश के 14वें मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी (YS Rajasekhara Reddy) की जयंती के उपलक्ष में किया जाता है। राज्य में इस दिवस का आयोजन सर्वप्रथम वर्ष 2019 में किया गया था, जब राज्य के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने राज्य में प्रत्येक वर्ष 08 जुलाई को रयुतु दिनोत्सवम अथवा किसान दिवस के रूप में मनाने को लेकर एक सरकारी आदेश जारी किया था। वाईएस राजशेखर रेड्डी का जन्म 08 जुलाई, 1949 को हुआ था और वे आंध्रप्रदेश के 14वें मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने वर्ष 2004 से वर्ष 2009 तक इस पद पर रहकर अपनी सेवाएँ दी थीं। वाईएस राजशेखर रेड्डी अपने राजनैतिक कैरियर के दौरान कुल चार बार संसद सदस्य और कुल पाँच बार विधायक चुने गए। वाईएस राजशेखर रेड्डी को मुख्यमंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल में किये गए विभिन्न सुधारों के लिये जाना जाता है, उन्होंने आंध्रप्रदेश के कृषि और स्वास्थ्य क्षेत्र पर काफी परिवर्तनकारी प्रभाव डाला। आंध्रप्रदेश, भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित तकरीबन 49.67 मिलियन आबादी (वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर) वाला राज्य है। आंध्रप्रदेश का कुल क्षेत्रफल 1,60,205 वर्ग किमी है और राज्य में कुल 13 ज़िले हैं। ध्यातव्य है कि आंध्रप्रदेश भारत में भाषा के आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य था।
हवा के माध्यम से भी संभव है COVID-19 का प्रसार: WHO
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हवा के माध्यम से कोरोना वायरस (COVID-19) के प्रसार की बात को स्वीकार किया है, इस संबंध में वैज्ञानिकों के एक वैश्विक समूह ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से आग्रह किया कि वह इस दिशा में जल्द-से-जल्द वैश्विक समुदाय को अपडेट करे। इससे पूर्व WHO ने कहा था कि कोरोना वायरस (COVID-19) जो कि श्वसन रोग का कारण बनता है, मुख्य रूप से संक्रमित व्यक्ति के नाक और मुँह से निकलने वाली छोटी बूंदों (Small Droplets) के माध्यम से फैलता है जो कि अधिक समय तक हवा में नहीं रहते हैं और जल्द ही ज़मीन पर गिर जाते हैं। गौरतलब है कि चीन में कोरोना वायरस (COVID-19) का पहला मामला आने के बाद से अब तक 7 महीने से भी अधिक समय बीत चुका है, किंतु अभी भी इस वायरस के संबंध में ज़्यादा जानकारी एकत्रित नहीं की जा सकी है और दुनिया भर के तमाम वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि यह वायरस किस प्रकार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है और किस प्रकार इसे रोका जा सकता है। ध्यातव्य है कि हवा के माध्यम से प्रसारित होने कारण यह वायरस स्वास्थ्य कर्मियों के लिये और भी खतरनाक हो गया है, विशेषज्ञों के अनुसार किसी भी स्वास्थ्य कर्मी को उचित उपकरणों जैसे- व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) आदि के बिना कार्य नहीं करना चाहिये।
सफलतापूर्वक पूरा हुआ ‘ऑपरेशन समुद्र सेतु’
COVID-19 महामारी के दौरान भारतीय नागरिकों को विदेश से वापस लाने के प्रयासों के तहत 5 मई, 2020 को शुरू किया गया ‘ऑपरेशन समुद्र सेतु’ (Operation Samudra Setu) का समापन हो गया है, ध्यातव्य है कि इस ऑपरेशन के तहत अब तक समुद्री मार्ग से कुल 3,992 भारतीय नागरिकों को वापस भारत लाया गया है। इस ऑपरेशन में भारतीय नौसेना के INS जलाश्व, INS ऐरावत, INS शार्दुल तथा INS मगर ने हिस्सा लिया था, भारतीय नौसेना का यह ऑपरेशन लगभग 55 दिन तक चला और इस दौरान समुद्र में 23,000 किलोमीटर से अधिक दूरी तय की गई। उल्लेखनीय है कि भारतीय नौसेना इससे पूर्व वर्ष 2006 में ऑपरेशन सुकून (Operation Sukoon) और वर्ष 2015 में आपरेशन राहत (Operation Rahat) के तहत भी इस प्रकार के निकासी अभियान चला चुकी है। ‘ऑपरेशन समुद्र सेतु’ मुख्य रूप से भारतीय नौसेना द्वारा COVID-19 महामारी के दौरान विदेशों में फंसे भारतीय नागरिकों को वापस लाने हेतु शुरू किया गया था। भारतीय नौसेना के अनुसार, इस पूरे ऑपरेशन के दौरान वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकना सेना के लिये सबसे बड़ी चुनौती थी और इसे मद्देनज़र रखते हुए आवश्यक चिकित्सा/सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किये गए थे।