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डेली न्यूज़

  • 07 Dec, 2019
  • 43 min read
सामाजिक न्याय

एकल विद्यालय अभियान

प्रीलिम्स के लिये:

एकल विद्यालय अभियान

मेन्स के लिये:

भारत में शिक्षा में सुधार संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एकल विद्यालय अभियान के तहत देश भर में खोले गए एकल विद्यालयों की संख्या 1 लाख से ऊपर हो गई है।

प्रमुख बिंदु:

Ekal Vidyalaya

  • एकल विद्यालय अभियान को एकल विद्यालय संगठन द्वारा ग्रामीण और जनजातीय भारत तथा नेपाल के एकीकृत और समग्र विकास के लिए शुरू किया गया है।
    • एकल विद्यालय ‘'एक शिक्षक वाले विद्यालय' हैं जो विगत कई वर्षो से उपेक्षित ग्रामीण क्षेत्रों और आदिवासी क्षेत्रों में संचालित किये जा रहे हैं।
  • इस अभियान के अंतर्गत 2.8 मिलियन से अधिक ग्रामीण और जनजातीय बच्चे लाभान्वित हुए हैं।
  • इसके तहत बुनियादी शिक्षा, डिजिटल साक्षरता, कौशल विकास, स्वास्थ्य जागरूकता, आधुनिक और उत्पादक कृषि प्रथाओं एवं ग्रामीण उद्यमिता द्वारा आदिवासी और ग्रामीण समुदायों का सशक्तीकरण किया जाता है।
  • कई ट्रस्ट और गैर-लाभकारी संगठनों की भागीदारी से यह अभियान भारत की मुख्य धारा से अलग गाँवों में संचालित गैर-सरकारी शिक्षा के क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा अभियान बन गया है।
  • इसके तहत एकल विद्यालय संगठन द्वारा अब तक 1 लाख से अधिक एकल विद्यालय खोले जा चुके हैं।
  • इस अभियान के अंतर्गत ग्रामीण विकास के लिये ग्रामोत्थान और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आरोग्य कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
  • वर्ष 1990 में गठित राममूर्ति समिति की रिपोर्ट ने एकल अभियान के लिये दिशा-निर्देश बनाने और स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • एकल विद्यालय अभियान को वर्ष 2017 में गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

राममूर्ति समिति :

  • वर्ष 1990 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सुधार के लिये आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में राममूर्ति समिति का गठन किया गया।
  • इस समिति ने शिक्षा के उद्देश्य, सामान्य स्कूल प्रणाली, कार्य हेतु व्यक्तियों का सशक्तीकरण,स्कूली विश्व व कार्य स्थल में संबंध स्थापित करना, परीक्षा सुधार, मातृभाषा को स्थान,स्त्रियों की शिक्षा, धार्मिक अंतरों को कम करना, शैक्षिक उपलब्धि, अवसरों आदि के संदर्भ में बुनियादी सुधार संबंधी सुझाव दिये थे।

स्रोत- PIB


भारतीय राजनीति

निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार

मेन्स के लिये:

निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, भारतीय संविधान के तहत एक अभियुक्त के अधिकार, नियमित अभ्यास, निर्णय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना है कि जाँच एजेंसियों द्वारा दस्तावेजों को सीलबंद लिफाफे में पेश करने की नियमित प्रथा और न्यायाधीशों द्वारा उन्हें न्यायिक निष्कर्षों के रूप में पुन: पेश करना, अभियुक्त की निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को प्रभावित करेगा।

Right To A Fair Trial

प्रमुख बिंदु:

  • नियमित अभ्यास:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) और प्रवर्तन निदेशालय जैसी एजेंसियों द्वारा जाँच के दौरान आरोपियों के खिलाफ सबूत के रूप में इकट्ठा किये गए दस्तावेज़ों को सीलबंद लिफाफे में अदालतों में पेश किये जाने के चलन पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की
    • स्थिति तब और खराब हो जाती है जब न्यायाधीश इन दस्तावेज़ों में जाँच एजेंसियों के निष्कर्षों को अपने स्वयं के न्यायिक निष्कर्षों में परिवर्तित करते हैं और आरोपी की जमानत से इनकार करते हुए उन्हें न्यायिक आदेश में पुन: पेश करते हैं।
  • निर्णय
    • सर्वोच्च  के दोषी या निर्दोष होने के मामले को मुकदमे के लिये छोड़ दिया जाना चाहिये, जहाँ अभियुक्त अपना बचाव कर सकता है।

भारतीय संविधान के तहत एक अभियुक्त के अधिकार

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 साधारण कानून के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार देता है :
  • गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किये जाने का अधिकार।
  • कानूनी चिकित्सक के साथ परामर्श और इलाज़ का अधिकार।
  • पुलिस द्वारा हिरासत में लिये जाने के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाने का अधिकार।
  • मजिस्ट्रेट द्वारा हिरासत की अवधि न बढाये जाने पर 24 घंटे के बाद रिहा किये जाने का अधिकार।
  • यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि उपरोक्त सुरक्षा उपाय किसी विदेशी शत्रु या निवारक निरोध कानून के तहत गिरफ्तार व्यक्ति के लिये उपलब्ध नहीं हैं।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय राजनीति

चुनावी खर्च संबंधी विधेयक

प्रीलिम्स के लिये:

चुनाव आयोग

मेन्स के लिये:

चुनावों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा में आम चुनावों में होने वाले खर्च की अधिकतम सीमा हटाए जाने संबंधी गैर-सरकारी विधेयक पर चर्चा की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • विधेयक को इस आधार पर पेश किया गया है कि चुनावों में खर्च की अधिकतम सीमा के कारण उम्मीदवार किये गए खर्च पर गलत आँकड़े पेश करते हैं
  • चुनाव संचालन नियम 1961 के तहत लोकसभा के उम्मीदवार के अधिकतम खर्च की सीमा 70 लाख रुपए है वहीं 28 लाख रुपए तक के अधिकतम खर्च की सीमा विधानसभा के उम्मीदवारों के लिये निर्धारित की गई है।
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77 के तहत, प्रत्येक उम्मीदवार नामांकन की तिथि और परिणाम की घोषणा की तिथि के बीच किये गए सभी व्यय का अलग और सही हिसाब रखेगा।
  • सभी उम्मीदवारों को चुनाव पूरा होने के 30 दिनों के भीतर अपना व्यय विवरण प्रस्तुत करना आवश्यक होता है।
  • चुनाव में किये गये व्यय के गलत विवरण के आधार पर चुनाव आयोग उम्मीदवार को उम्मीदवार अधिनियम, 1951 की धारा 10 ए के तहत तीन साल तक के लिये अयोग्य घोषित कर सकता है।
  • ग़ौरतलब है कि किसी राजनीतिक पार्टी के खर्च की कोई सीमा निर्धारित नहीं है, जिसका अक्सर पार्टी के उम्मीदवारों द्वारा दुरुपयोग किया जाता है।
  • हालाँकि, सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों को चुनाव पूरा होने के 90 दिनों के भीतर अपने चुनाव खर्च का विवरण चुनाव आयोग को सौंपना होगा।

जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951

(Representation of the People’s Act, 1951):

  • जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 को संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 327 के तहत पारित किया गया था।
  • चुनावों का आयोजन कराने संबंधी सभी मामले जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के प्रावधानों के तहत आते हैं।
  • इस कानून की धारा 169 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1961 बनाया है।
  • इस कानून और नियम में सभी चरणों में चुनाव आयोजित कराने के लिये, चुनाव की अधिसूचना, नामांकन पत्र दाखिल करने, नामांकन पत्रों की जाँच, उम्मीदवार द्वारा नाम वापस लेना, चुनाव कराना, मतगणना और घोषित परिणाम के आधार पर सदनों के गठन के लिये विस्तृत प्रावधान किये गए हैं।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण विधेयक-2019

प्रीलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (गठन एवं इसके कार्य), अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण विधेयक, 2019 (International Financial Services Centres Authority Bill, 2019) को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया।

Internation finance services

प्रमुख बिंदु

  • यह विधेयक भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone- SEZ) के अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (International Financial Services Centres- IFSCs) में वित्तीय सेवा बाज़ार को विकसित और विनियमित करने के लिये एक प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • यह विधेयक विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, 2005 के अंतर्गत सभी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों पर लागू होगा।

पृष्ठभूमि:

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 6 फरवरी, 2019 को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण विधेयक, 2019 को पेश करके सभी वित्तीय सेवाओं के नियमन के लिये एक एकीकृत प्राधिकरण की स्थापना के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी। इसके बाद, तत्कालीन वित्त राज्य मंत्री द्वारा 12 फरवरी, 2019 को राज्यसभा में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण विधेयक, 2019 को पेश किया गया था।
  • बाद में लोकसभा सचिवालय ने यह सूचित किया कि संविधान के अनुच्छेद 117 (1) के तहत यह एक वित्त विधेयक है और तदनुसार संविधान के अनुच्छेद 117 (1) और 274 (1) के तहत राष्ट्रपति की सिफारिश के साथ इसे लोकसभा में पेश किया जाना चाहिये।

विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ:

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण का गठन: प्रस्तुत विधेयक में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान है।

  • इस प्राधिकरण में केंद्र द्वारा नियुक्त नौ सदस्य होंगे। इनका कार्यकाल तीन वर्ष का होगा जिसके बाद इनकी दोबारा नियुक्ति की जा सकती है।
  • प्राधिकरण के सदस्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे:
  1. चेयरपर्सन
  2. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI), बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) तथा पेंशन निधि विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (Pension Fund Regulatory and Development Authority-PFRDA) द्वारा नामित चार सदस्य
  3. वित्त मंत्रालय के दो अधिकारी
  4. चयन समिति के सुझाव पर नियुक्त दो सदस्य

प्राधिकरण के कार्य: प्राधिकरण के प्रमुख कार्यों में शामिल होंगे:

  • किसी IFSC में वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं और वित्तीय संस्थानों, जिन्हें विधेयक के लागू होने से पहले किसी विनियामक (जैसे- RBI या सेबी) द्वारा मंज़ूरी प्रदान की गई हो, को विनियमित करना।
  • किसी IFSC में वित्तीय उत्पादों, सेवाओं या संस्थानों को रेगुलेट करना, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाए।
  • उन वित्तीय सेवाओं, उत्पादों और संस्थानों के संबंध में केंद्र सरकार को सुझाव देना, जिन्हें IFSC में मंज़ूर किया जा सके।

उपरोक्त के अलावा यह प्राधिकरण IFSCs में वित्तीय उत्पादों, सेवाओं और संस्थानों के विनियमन से संबंधित सभी शक्तियों का उपयोग करेगा, जिन्हें पहले संबद्ध विनियामकों द्वारा उपयोग किया जाता था। प्राधिकरण विनियमन के लिये उन्हीं प्रक्रियाओं और कार्यवाहियों (जैसे अपराधों की जाँच से संबंधित प्रक्रियाएँ) का पालन करेगा जिन प्रक्रियाओं और कार्यवाहियों का पालन दूसरे विनियामक प्राधिकरणों द्वारा किया जाता है।

प्रदर्शन समीक्षा समिति: विधेयक के अनुसार, यह प्राधिकरण अपने कामकाज की समीक्षा के लिये प्रदर्शन समीक्षा समिति (Performance Review Committee) का गठन करेगा।

  • इस समिति में प्राधिकरण के कम-से-कम दो सदस्य शामिल होंगे।
  • गठित समिति निम्नलिखित की समीक्षा करेगी:
  1. प्राधिकरण अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए या अपने कार्य करते हुए मौजूदा कानूनी प्रावधानों का अनुपालन कर रहा है अथवा नहीं।
  2. उसके द्वारा बनाए गए नियम पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाले और सुशासन कायम करने वाले हैं अथवा नहीं।
  3. प्राधिकरण अपने कामकाज में उचित तरीके से जोखिम प्रबंधन कर रहा है अथवा नहीं।

विदेशी मुद्रा में लेन-देन: विधेयक के अनुसार, IFSCs में वित्तीय सेवाओं के सभी लेन-देन उस मुद्रा/करेंसी में किये जाएंगे, जिसे प्राधिकरण केंद्र सरकार की सलाह से विनिर्दिष्ट करेगा।

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण कोष: विधेयक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीस सेवा केंद्र प्राधिकरण कोष (International Financial Services Centres Authority Fund) की स्थापना का भी प्रावधान करता है। इस कोष में निम्नलिखित राशियाँ जमा की जाएंगी:

  • प्राधिकरण के सभी अनुदान, फीस और शुल्क।
  • केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित विभिन्न स्रोतों से प्राधिकरण को प्राप्त होने वाली राशि।

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण की आवश्यकता:

  • वर्तमान में IFSCs बैंकिंग, पूंजी बाज़ार एवं बीमा क्षेत्र भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) तथा बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) जैसे अनेक नियामकों द्वारा नियंत्रित हैं। IFSC में कारोबार की गतिशील प्रकृति के कारण नियामकों के बीच अत्यधिक समन्वय की आवश्यकता है। IFSC में वित्तीय गतिविधियों का नियंत्रण करने वाले मौजूदा नियामकों में स्पष्टीकरणों तथा संशोधनों की भी आवश्यकता है।
  • IFSC में वित्तीय सेवाओं एवं उत्पादों के विकास के लिये केंद्रित एवं समर्पित नियामक हस्तक्षेपों की आवश्यकता होगी। इसलिये भारत में IFSC के लिये एक एकीकृत वित्तीय नियामक स्थापित करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है, ताकि वित्तीय बाज़ार के भागीदारों के लिये विश्वस्तरीय नियामक वातावरण उपलब्ध हो सके।
  • इसके अलावा कारोबारी सुगमता की दृष्टि से भी यह अनिवार्य होगा। एकीकृत प्राधिकरण के माध्यम से वैश्विक श्रेष्ठ प्रणालियों के अनुसार भारत में IFSC के विकास पर ज़ोर दिया जा सकेगा, जो अत्यंत आवश्यक है।

स्रोत: पी.आई.बी. एवं पी.आर.एस.


जैव विविधता और पर्यावरण

कार्बन बाज़ार पर विवाद

प्रीलिम्स के लिये

कार्बन बाज़ार, कार्बन क्रेडिट

मेन्स के लिये

जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में निहित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

वर्तमान में स्पेन की राजधानी मैड्रिड में चल रहे COP-25 जलवायु शिखर सम्मलेन के दौरान एक नए कार्बन बाज़ार की स्थापना के प्रावधान पर देशों में असहमति बनी हुई है।

क्या है कार्बन बाज़ार?

  • कार्बन बाज़ार (Carbon Market) के अंतर्गत विश्व के विभिन्न देश या कंपनियाँ उनके द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी के चलते प्राप्त किये गए एक प्रमाण-पत्र, जिसे सर्टिफाइड उत्सर्जन कटौती (Certified Emission Reduction-CER) या कार्बन क्रेडिट (Carbon Credit) कहा जाता है, का क्रय-विक्रय करती हैं।
  • जिन कंपनियों ने ग्रीनहाउस गैसों में कटौती के माध्यम से कार्बन ऑफसेट के लक्ष्यों की प्राप्ति की है उनके द्वारा अतिरिक्त कटौती करने पर उन्हें कार्बन क्रेडिट प्राप्त होगा।
  • कार्बन क्रेडिट में एक यूनिट एक टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) या कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (CO2e) के बराबर होगा।

कार्बन बाज़ार की क्रियाविधि:

  • पेरिस समझौते (Paris Agreement) के तहत विश्व के अधिकांश देशों ने वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती का लक्ष्य रखा है परंतु इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये यह आवश्यक नहीं है कि उत्सर्जन में कमी ही की जाए। ऐसा करना आर्थिक विकास में बाधक हो सकता है।
  • ऐसी स्थिति में कार्बन बाज़ार एक बेहतर विकल्प है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई विकसित देश अपने उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों की प्राप्ति करने में असफल रहता है तो वह अपने धन या तकनीक के हस्तांतरण से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने के लिये किसी विकासशील देश की मदद कर सकता है। इस तरीके से उक्त देश कार्बन क्रेडिट प्राप्त कर सकता है।
  • क्योंकि ये कार्बन क्रेडिट बिक्री योग्य होते हैं, अतः कोई कंपनी या देश इसे खरीद सकता है तथा स्वयं उसके द्वारा की गई उत्सर्जन में कटौती के रूप में इसे प्रस्तुत कर सकता है।
  • हालाँकि कार्बन बाज़ार का प्रावधान क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) में भी किया गया था किंतु अगले वर्ष से लागू होने वाले पेरिस समझौते में इसके कुछ प्रावधानों में बदलाव होंगे तथा इससे संबंधित मॉनीटरिंग एवं जाँच प्रक्रिया को भी बढ़ाया जाएगा।

कार्बन बाज़ार से संबंधित विवाद:

  • क्योटो प्रोटोकॉल के क्रियान्वयन के दौरान विकासशील देशों ने लाखों की संख्या में कार्बन क्रेडिट अर्जित किया। इस प्रोटोकॉल के तहत केवल विकसित देशों को ही अनिवार्य रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करनी थी। अतः बहुत देशों ने इसे भारत तथा चीन जैसे देशों से खरीदा।
  • पिछले कुछ वर्षों में कई देशों ने खुद को क्योटो प्रोटोकॉल से अलग कर लिया तथा उत्सर्जन में कमी के लिये अब वे बाध्य नहीं रहे। इस प्रकार कार्बन क्रेडिट्स की मांग में कमी हुई एवं भारत जैसे देशों को इसका नुकसान झेलना पड़ा।
  • भारत के पास लगभग 750 मिलियन कार्बन क्रेडिट्स या CER है जिसकी बिक्री नहीं हुई है। ऐसे ही अन्य देश जिनके CER की बिक्री नहीं हुई है, वे चाहते हैं कि पेरिस समझौते के दौर में भी उनकी बिक्री हो।
  • इसके विपरीत विकसित देश इसका विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि क्योटो प्रोटोकॉल के नियमों तथा जाँच प्रक्रिया सुदृढ़ नहीं थी। अतः वे पेरिस समझौते के तहत नए सिरे से इसकी शुरुआत करना चाहते हैं।
  • इस विवाद का अन्य मुख्य कारण कार्बन क्रेडिट्स की दोहरी गणना तथा इसके समायोजन से संबंधित है। नई प्रक्रिया के तहत इन क्रेडिट्स को बाज़ार में देशों या निजी कंपनियों के बीच कई बार खरीदा-बेचा जा सकता है। अतः इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि इन क्रेडिट्स की एक बार से अधिक गणना न की जाए।
  • विकासशील देशों का मानना है कि जिन देशों ने अपने उत्सर्जन में कमी की है उन्हें यह अधिकार होना चाहिये कि वे अपने क्रेडिट्स को बेचने के बाद भी उत्सर्जन में हुई इस कमी को दिखा सकें।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

गुजरात का आतंकवाद निरोधक अधिनियम (GCTOC)

प्रीलिम्स के लिये:

गुजरात का आतंकवाद निरोधक अधिनियम, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, आतंकवादी कृत्य की परिभाषा

मेन्स के लिये:

गुजरात का आतंकवाद निरोधक अधिनियम तथा महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम में अंतर, आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से इस प्रकार के अधिनियमों की आवश्यकता एवं महत्त्व

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रपति की मंज़ूरी के साथ गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण (Gujarat Control of Terrorism and Organised Crime- GCTOC) अधिनियम 1 दिसंबर, 2019 से प्रवर्तित हो गया है।

MCOCA से अधिक व्यापक है यह अधिनियम

यह आतंकवाद निरोधक अधिनियम, जिसे तीन राष्ट्रपतियों ने राज्य को वापस भेज दिया था, दो उल्लेखनीय अंतरों के साथ महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (Maharashtra Control of Organised Crime Act- MCOCA) से अत्यधिक प्रेरित है। GCTOC तथा MCOCA के बीच ये दो प्रमुख अंतर हैं:

  • महाराष्ट्र के अधिनियम में शामिल संचार के अवरोधन पर नियंत्रण (Checks on Interception of Communication), गुजरात के अधिनियम में शामिल नहीं है।
  • GCTOCA में ‘आतंकवादी कृत्य’ की परिभाषा में ‘सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करने की मंशा’ (Intention to Disturb Public Order) को भी शामिल किया गया है।

ये दो अंतर GCTOCA को MCOCA की तुलना में अधिक कठोर और व्यापक बनाते हैं।

MCOCA में अवरोधन

(Interception in MCOCA)

  • MCOCA की पाँच धाराएँ (13, 14, 15, 16 और 27) संचार के अवरोधन से संबंधित हैं।
  • अधिनियम में कहा गया है कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदन किये जाने पर यह अवरोधन 60 दिनों से अधिक अवधि तक जारी नहीं रह सकता है और अवधि के विस्तार के लिये अनुमति की आवश्यकता होगी।
  • अवधि में विस्तार किये जाने हेतु आवेदन में अब तक के अवरोधन के परिणामों पर एक वक्तव्य अथवा परिणाम प्राप्त करने में विफलता के लिये एक उचित स्पष्टीकरण शामिल होना चाहिये।
  • यदि विस्तार की अनुमति दी जाती है तो यह 60 दिनों से अधिक अवधि की नहीं हो सकती है।
  • अधिनियम सक्षम प्राधिकारी के आदेशों की समीक्षा करने के लिये एक समिति के गठन का प्रावधान करता है और अनधिकृत अवरोधन या अवरोधन के नियमों के उल्लंघन के मामले में एक वर्ष तक के कारावास की सज़ा निर्धारित करता है।
  • अवरोधन की उपयोगिता का विश्लेषण कैलेंडर वर्ष के अंतिम तीन माह के अंदर महाराष्ट्र विधानसभा को प्रस्तुत किया जाना अनिवार्य है।

कॉल का अवरोधन कौन कर सकता है?

  • जाँच की निगरानी और इलेक्ट्रॉनिक या मौखिक संचार के अवरोधन के लिये प्राधिकार की मांग करने वाले आवेदन को आरक्षी अधीक्षक (SP) या उससे उच्च रैंक के पुलिस अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक है।
  • अधिनियम विभिन्न विवरणों को निर्दिष्ट करता है जिनका आवेदन में उल्लेख होना चाहिये।
  • अवरोधन की अनुमति केवल तभी दी जाती है जब जाँच एजेंसी यह स्पष्ट करती है कि खुफिया जानकारी एकत्रित करने के अन्य तरीके आजमाए जा चुके हैं और वे विफल रहे हैं।
  • अनुमति देने वाला सक्षम प्राधिकारी राज्य गृह विभाग का एक अधिकारी होना चाहिये जो सरकार के सचिव रैंक से नीचे का अधिकारी न हो।
  • अविलंब मामलों में अतिरिक्त DGP या उससे ऊपर के रैंक का अधिकारी अवरोधन को अधिकृत कर सकता है लेकिन उसके आदेश के 48 घंटों के भीतर एक आवेदन सक्षम प्राधिकारी को सौंपा जाना अनिवार्य है।

GCTOCA अधिक शक्तिशाली कैसे है?

  • गुजरात का अधिनियम केवल अवरोधन के माध्यम से एकत्र किये गए सबूतों की स्वीकार्यता को संबोधित करता है और संचार अवरोधन की प्रक्रिया का उल्लेख नहीं करता है।
  • इसकी धारा 14 MCOCA की संबंधित धारा की अनुकृति है और इसमें जोड़ा गया है कि: " CrPC, 1973 या उस समय प्रवर्तित किसी अन्य कानून में निहित किसी भी प्रावधान के बावजूद जुटाए गए साक्ष्य मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय में अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होंगे।"
  • “किसी अन्य कानून" को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • GCTOCA में MCOCA के अनिवार्य वार्षिक रिपोर्ट के समान भी कोई प्रावधान नहीं है।

‘आतंकवादी कृत्य’ की परिभाषा

  • गुजरात के अधिनियम में ‘आतंकवादी कृत्य’ की परिभाषा अब निरस्त हो चुके आतंकवाद निरोधक अधिनियम (Prevention of Terrorism Act- POTA), 2002 में शामिल परिभाषा के समान ही है, लेकिन इसमें ‘सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करने की मंशा से किया गया कृत्य’ भी शामिल है।
  • परिभाषा का यह विस्तार “पाटीदार आंदोलन जैसे किसी भी आंदोलन को आतंकवादी कृत्य घोषित करने और कठोर सज़ा देने का अवसर प्रदान करता है।"
  • गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Act- UAPA) 1967, जो भारत का मुख्य आतंकवाद-रोधी केंद्रीय कानून है, "इस तरह के आंदोलन को 'आतंकवाद' कहे जाने का अवसर प्रदान नहीं करता बल्कि इस तरह का कृत्य IPC की उन धाराओं और देशद्रोह कानून के दायरे में आता है जो अत्यंत कठोर सज़ा देने के लिये पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं हैं”।
  • गुजरात का अधिनियम आतंकवादी कृत्य को "सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने या राज्य की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालने या लोगों या लोगों के किसी भी वर्ग के मन में आतंक कायम करने की मंशा" के रूप में परिभाषित करता है।

गुजरात के अधिनियम से संबंधित विभिन्न तर्क

  • सरकार, नियमों का निर्माण करते समय उन नियंत्रणों व संतुलनों का प्रावधान कर सकती है जो गुजरात के इस आतंक निरोधक अधिनियम में अनुपस्थित हैं।
  • यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो यह भी प्रावधान है कि न्यायालय राज्य सरकार को इस आशय के नियमों के निर्माण के लिये कह सकती है।
  • अधिनियम की संवैधानिक वैधता को "मामला-विशिष्ट" आधार पर चुनौती दी जा सकती है।
  • गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम के संबंध में विधि-व्यवस्था बनाम निजता के संघर्ष की एक स्थिति भी बन रही है। यद्यपि यह समय ही बताएगा कि संचार अवरोधन का उपयोग कैसे किया गया और इसकी व्याख्या कैसे की जाती है।
  • "आतंकवादी कृत्य" की परिभाषा "अत्यंत व्यापक" है, हालाँकि इसे सीमित करने के लिये अधिनियम में प्रक्रिया भी निहित है।
  1. पहला नियंत्रण प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने के रूप में है जिसे SP या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी द्वारा ही दर्ज किया जा सकता है। सामान्यतः यदि FIR दर्ज करने की शक्ति किसी उप-निरीक्षक या निरीक्षक-स्तर के अधिकारी को दी जाती है तो इसके दुरुपयोग की संभावना रहती है।
  2. दूसरा, यदि मान लिया जाए कि प्राथमिकी एक राजनीतिक मंशा के साथ दर्ज की गई है तब भी यह प्रावधान मौजूद है कि आरोप पत्र प्रस्तुत करने के बाद न्यायालय के संज्ञान लेने से पहले राज्य सरकार से मंज़ूरी प्राप्त करना आवश्यक है।
  • यद्यपि GCTOC अधिनियम जाँच प्रक्रिया के संबंध में कार्यकारी को शक्ति प्रदान करता है लेकिन ऐसे प्रावधान तो निरस्त हो चुके पूर्व के टाडा (TADA) और पोटा (POTA) आतंकरोधी अधिनियमों में भी मौजूद थे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

कराधान विधि (संशोधन) विधेयक, 2019

प्रीलिम्स के लिये

कराधान विधि (संशोधन) विधेयक 2019 के प्रावधान

मेन्स के लिये

आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित करने के लिये कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा ने कराधान विधि (संशोधन) विधेयक, 2019 [Taxation Law (Amendment) Bill, 2019] पारित किया। यह विधेयक अर्थव्यवस्था की विकास दर बढ़ाने के लिये कॉर्पोरेट टैक्स रेट को कम करने वाले सरकार के अध्यादेश को विस्थापित करेगा।

  • क्योंकि यह विधेयक कर (Tax) से संबंधित है इसलिये इसे लोकसभा में धन विधेयक (Money Bill) के तौर पर प्रस्तुत किया गया।

कॉर्पोरेट टैक्स (Corporate Tax): वह कर जो किसी कंपनी की निवल आय (Net Income) पर लगाया जाता है।

विधेयक के प्रमुख बिंदु:

  • वर्तमान में 400 करोड़ रुपए तक के वार्षिक टर्नओवर वाली घरेलू कंपनियाँ 25% की दर से इनकम टैक्स चुकाती हैं। अन्य घरेलू कंपनियों के लिये यह टैक्स दर 30% है। विधेयक घरेलू कंपनियों को 22% की दर से टैक्स चुकाने का विकल्प देता है, बशर्ते वे इनकम टैक्स एक्ट के अंतर्गत कुछ कटौतियों का दावा न करें।
  • बिल में प्रावधान है कि अगर नई घरेलू मैन्युफैक्चरिंग कंपनियाँ कुछ कटौतियों का दावा नहीं करतीं हैं तो वे 15% की दर से इनकम टैक्स चुकाने का विकल्प चुन सकती हैं। बशर्ते ये घरेलू मैन्युफैक्चरिंग कंपनियाँ 30 सितंबर, 2019 के बाद स्थापित और पंजीकृत हुई हों तथा 1 अप्रैल, 2023 से पहले मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर दें।
  • कोई कंपनी वित्तीय वर्ष 2019-20 (यानी आकलन वर्ष 2020-21) या आगे के वित्तीय वर्षों के लिये नई टैक्स दरों का विकल्प चुन सकती है। एक बार विकल्प चुनने के बाद आगामी वर्षों में यही विकल्प लागू होगा।
  • न्यूनतम वैकल्पिक टैक्स (Minimum Alternate Tax-MAT) के भुगतान से संबंधित प्रावधान उन कंपनियों पर लागू नहीं होंगे जिन्होंने नई टैक्स दरों का विकल्प चुना है। बिल कहता है कि नई दरों को चुनने वाली कंपनियों पर MAT क्रेडिट के प्रावधान भी नहीं लागू होंगे।

न्यूनतम वैकल्पिक टैक्स

(Minimum Alternate Tax-MAT):

अगर कटौतियों का दावा करने के बाद किसी कंपनी की सामान्य टैक्स लायबिलिटी एक निश्चित सीमा से कम होती है तो उसे टैक्स के रूप में एक न्यूनतम राशि चुकानी होती है। यह राशि MAT कहलाती है।

  • अध्यादेश वित्तीय वर्ष 2019-20 से MAT की दर (जो कि नई टैक्स दरों को न चुनने वाली कंपनियों पर लागू होगी) को 18.5% से 15% करता है। बिल इस प्रावधान में संशोधन करता है और इसे वित्तीय वर्ष 2020-21 से लागू करता है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (07 दिसंबर)

सशस्‍त्र सेना झंडा दिवस: हर साल 7 दिसंबर को भारत में सशस्त्र सेना झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता है। पहली बार यह दिवस 7 दिसंबर, 1949 को मनाया गया था। यह दिवस को भारतीय सैनिकों, जल सैनिकों तथा वायुसैनिकों के सम्मान में मनाया जाता है। झंडा दिवस के अवसर पर सशस्‍त्र बल कर्मियों के कल्‍याण के लिये लोगों से धन जुटाया जाता है तथा इस धन का उपयोग सेवारत सैन्‍य कर्मियों और पूर्व सैनिकों के कल्‍याण के लिये किया जाता है।


सर्वश्रेष्ठ थानों की सूची: गृहमंत्रालय ने देश में सर्वश्रेष्‍ठ कार्य करने वाले 10 पुलिस थानों की सूची जारी की है। इस सूची में अंडमान निकोबार द्वीप समूह का अबरडीन पुलिस थाना संपत्ति विवाद, महिलाओं और कमज़ोर वर्ग के लोगों के खिलाफ अपराध से निपटने के मामलों में पहले स्‍थान पर है। देश में हज़ारों पुलिस थानों में से चयनित अधिकांश थाने छोटे शहरों या ग्रामीण इलाकों में स्थित हैं। देश के 15 हज़ार पाँच सौ पुलिस थानों में से 10 पुलिस थानों की रैंकिंग डाटा विश्‍लेषण, प्रत्‍यक्ष निरीक्षण और जनता के फीडबैक के आधार पर की गई है।

चयनित थानों की सूची

रैंकिंग थाना जिला राज्य
1. अबेरदीन अंडमान अंडमान तथा निकोबार द्वीपसमूह
2. बालासिनोर माहीसागर गुजरात
3. एजेके बुरहानपुर बुरहानपुर मध्‍य प्रदेश
4. एडब्‍ल्‍यूपीएस थेनी थेनी तमिलनाडु
5. अनिनि दिबांग घाटी अरुणाचल प्रदेश
6. बाबा हरिदास नगर, द्वारका दक्षिण-पश्चिम ज़िला दिल्‍ली
7. बकानी झालावाड़ राजस्‍थान
8. चोप्‍पाडंडी(एम) करीमनगर तेलंगाना
9. बिकोलीम उत्‍तर गोवा गोवा
10. बरगावा शिवपुर मध्‍य प्रदेश
  • उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2015 में गुजरात के कच्‍छ में पुलिस महानिदेशकों के सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए यह निर्देश दिया था कि फीडबैक के आधार पर थानों की ग्रेडिंग और उनके कार्य के आकलन के लिये मानक तैयार किये जाने चाहिये।

रेलवे स्टेशनों पर निःशुल्क वाई-फाई सुविधा: भारतीय रेलवे अब तक देश के 5500 स्टेशनों पर निशुल्क वाई-फाई सुविधा उपलब्ध करा चुका है। झारखंड का महुआमिलान रेलवे स्टेशन यह सुविधा पाने वाला देश का पाँच हज़ार पाँच सौवाँ स्टेशन बन गया है। रेलवे स्टेशनों पर यह निःशुल्क सुविधा रेल वायर के माध्यम से दी जा रही है। उल्लेखनीय है कि रेलवे ने नि:शुल्क वाई-फाई सेवा की शुरूआत जनवरी 2016 में मुंबई सेंट्रल स्टेशन से की थी। रेलवे स्टेशनों को डिजिटल रूप से सुविधायुक्त केंद्र बनाने की ज़िम्मेदारी रेल मंत्रालय के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के मिनी रत्न उद्यम रेलटेल को सौंपी गई है।


तटीय संरक्षण उपायों के लिये दिशा-निर्देश: पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय तटवर्ती इलाकों में भौगोलिक क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और उसके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का आकलन करने के लिये एक निर्णायक व्‍यवस्‍था विकसित करने पर काम कर रहा है। जलवायु परिवर्तन राज्‍यमंत्री द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, राष्‍ट्रीय तट संरक्षण कार्यनीति के साथ-साथ तटीय संरक्षण उपायों के लिये दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं जो सभी तटवर्ती राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू होंगे।


8वें राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कार: सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत फोटो प्रभाग, प्रेस सूचना ब्यूरो ने 8वें राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कारों के लिये प्रविष्टियाँ आमंत्रित की हैं। फोटो प्रभाग हर साल फोटोग्राफी के माध्यम से कला, संस्कृति, विकास, विरासत, इतिहास, जीवन, लोक, समाज और परंपरा जैसे देश के विभिन्न पहलुओं को बढ़ावा देने के लिये और पेशेवर और एमेच्योर (Amateur) फोटोग्राफरों को प्रोत्साहित करने के लिये ये पुरस्कार प्रदान करता है।

राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कार तीन श्रेणियों में दिये जाते है:

  1. लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड: इस पुरस्कार के तहत 3,00,000 रुपए का नकद पुरस्कार दिया जाता है।
  2. व्यावसायिक फोटोग्राफ़रों के लिये पुरस्कार: व्यावसायिक श्रेणी के तहत एक ‘प्रोफेशनल फोटोग्राफर ऑफ द ईयर’ पुरस्कार (1,00,000 रुपए का नकद पुरस्कार) तथा पाँच विशेष उल्लेख पुरस्कार (प्रत्येक को 50,000 रुपए नकद) दिये जाते हैं। व्यावसायिक फोटोग्राफरों के लिये इस वर्ष की थीम 'जीवन और जल' है।
  3. एमेच्योर फ़ोटोग्राफ़र के लिये पुरस्कार: इस श्रेणी के तहत एक ‘एमेच्योर फोटोग्राफर ऑफ द ईयर’ पुरस्कार (75,000 रुपए के नकद) और पाँच विशेष उल्लेख पुरस्कार (प्रत्येक को 30,000 रुपए नकद) दिये जाते हैं। एमेच्योर फोटोग्राफरों के लिये इस वर्ष की थीम 'भारत की सांस्कृतिक विरासत' है।

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