डेली न्यूज़ (07 Oct, 2020)



प्रवाल भित्तियों के लिये वैश्विक फंड

प्रिलिम्स के लिये:

प्रवाल भित्तियों के लिये वैश्विक फंड, इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव, SDG14, संयुक्त राष्ट्र पूंजी विकास कोष, हरित जलवायु कोष, UNEP, UNDP

मेन्स के लिये:

प्रवाल भित्तियों का महत्त्व तथा इनके संरक्षण हेतु प्रयास

चर्चा  में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगाँठ के अवसर पर प्रवाल भित्तियों के लिये संयुक्त राष्ट्र का पहला बहु-पक्षीय ट्रस्ट फंड (United Nations Multi-Partner Trust Fund for Coral Reefs) आधिकारिक तौर पर लॉन्च किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • इस फंड में उन भागीदारों का गठबंधन शामिल है जो प्रवाल भित्तियों को और अधिक अनुकूल बनाने हेतु संसाधन एकत्रित करने का आह्वान करते हैं। 
  • इस वैश्विक फंड का लक्ष्य अगले 10 वर्षों में प्रवाल भित्तियों के संरक्षण हेतु 500 मिलियन डॉलर जुटाना और निवेश करना है।
  • प्रवाल भित्तियों के लिये वैश्विक फंड (Global Fund for Coral Reefs) दोहरे उद्देश्यों पर केंद्रित है:
    • एक, प्रवाल भित्तियों के संरक्षण और बहाली पर केंद्रित निजी बाज़ार-आधारित निवेशों सहित नवीन वित्तपोषण तंत्र के उत्थान को सुविधाजनक बनाने पर।
    • दूसरा, प्रवाल भित्तियों से संबंधित जलवायु अनुकूलन के लिये हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund), अनुकूलन कोष (Adaptation Fund) और बहुपक्षीय विकास बैंकों के माध्यम से वित्तपोषण को शुरू करने पर।
  • यह फंड एक ऐसा वित्तीय साधन है जो निजी और सार्वजनिक दोनों प्रकार के वित्तपोषण करेगा। यह उन व्यवसायों और वित्तीय तंत्रों का भी समर्थन करेगा जो स्थानीय समुदायों एवं उद्यमों को सशक्त बनाते हुए प्रवाल भित्तियों तथा संबद्ध पारिस्थितिकी प्रणालियों के स्वास्थ्य एवं स्थिरता में सुधार करते हैं।

फंड के लिये साझेदारी

फंड के लिये संसाधन जुटाने की बहु-पक्षीय पहल में सार्वजनिक, परोपकारी और निजी अभिकर्त्ता शामिल हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं: 

  • पॉल जी. एलन फैमिली फाउंडेशन (Paul G. Allen Family Foundation)
  • प्रिंस अल्बर्ट II ऑफ मोनाको फाउंडेशन (Prince Albert II of Monaco Foundation)
  • बीएनपी परिबास (BNP Paribas)
  • अलथेलिया फंड्स (Althelia Funds)
  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP)
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP)
  • यूनाइटेड नेशन कैपिटल डेवलपमेंट फंड (UN Capital Development Fund- UNCDF) 

यह अद्वितीय साझेदारी प्रवाल संरक्षण और SDG 14 (महासागरों, समुद्रों एवं समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग) पर आधारित हैं। 

पॉल जी एलन फैमिली फाउंडेशन

  • पॉल जी एलन फैमिली फाउंडेशन (Paul G. Allen Family Foundation) ने चार दशकों से अधिक समय से विश्व की कुछ सबसे कठिन समस्याओं के प्रक्षेपवक्र को बदलने पर ध्यान केंद्रित किया है। समाज सेवी जोडी एलन और माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक पॉल जी एलन द्वारा स्थापित इस संस्थान ने शुरुआत में क्षेत्रीय कला, ऐसी आबादी जहाँ तक सेवाओं की पहुँच कम है और पर्यावरण पर ध्यान केंद्रित करने के साथ प्रशांत उत्तर-पश्चिम में सामुदायिक आवश्यकताओं के लिये निवेश किया। वर्तमान में यह फाउंडेशन महासागरों के स्वास्थ्य को संरक्षित करने, वन्यजीवों की रक्षा करने, जलवायु परिवर्तन से निपटने और समुदायों को मज़बूत बनाने के लिये काम करने वाले फ्रंटलाइन भागीदारों के वैश्विक पोर्टफोलियो का समर्थन करता है।

प्रिंस अल्बर्ट II ऑफ मोनाको फाउंडेशन: 

  • जून 2006 में, मोनाको के प्रिंस अल्बर्ट द्वितीय ने पृथ्वी की खतरनाक पर्यावरणीय स्थिति को दूर करने के लिये अपने फाउंडेशन की स्थापना की। प्रिंस अल्बर्ट II ऑफ मोनाको फाउंडेशन (Prince Albert II of Monaco Foundation) पर्यावरण की सुरक्षा और वैश्विक स्तर पर सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये समर्पित है। यह फाउंडेशन अनुसंधान एवं अध्ययन, तकनीकी नवाचार और सामाजिक रूप से जागरूक प्रथाओं के क्षेत्र में सार्वजनिक एवं निजी संगठनों की पहल का समर्थन करता है। फाउंडेशन तीन मुख्य भौगोलिक क्षेत्रों- भूमध्यसागरीय बेसिन, ध्रुवीय क्षेत्रों और अल्प विकसित देशों में परियोजनाओं का समर्थन करता है तथा अपने प्रयासों को तीन मुख्य क्षेत्रों- जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और जल संसाधनों पर केंद्रित करता है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)

  • UNDP संयुक्त राष्ट्र का अग्रणी संगठन है जो गरीबी, असमानता और जलवायु परिवर्तन के बोझ को समाप्त करने के लिये समर्पित है। यह 170 देशों में विशेषज्ञों और भागीदारों के हमारे व्यापक नेटवर्क के साथ काम करते हुए गरीबी उन्मूलन और असमानता को कम करने हेतु प्रयास करता है। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में अवस्थित है। 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है। इसकी स्थापना वर्ष 1972 में मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हुई थी। इसका उद्देश्य मानव पर्यावरण को प्रभावित करने वाले सभी मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना तथा पर्यावरण संबंधी जानकारी का संग्रहण, मूल्यांकन एवं पारस्परिक सहयोग सुनिश्चित करना है। UNEP पर्यावरण संबंधी समस्याओं के तकनीकी एवं सामान्य निदान हेतु एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। UNEP अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों के साथ सहयोग करते हुए सैकड़ों परियोजनाओं पर सफलतापूर्वक कार्य कर चुका है। इसका मुख्यालय नैरोबी (केन्या) में है।

संयुक्त राष्ट्र पूंजी विकास कोष

(United Nations Capital Development Fund- UNCDF)

  • संयुक्त राष्ट्र पूंजी विकास कोष (UNCDF) अल्पविकसित देशों के लिये संयुक्त राष्ट्र की पूंजी निवेश एजेंसी है। यह अल्प विकसित देशों में गरीबों के लिये सार्वजनिक और निजी वित्त उपलब्ध कराने का कार्य करती है। इसकी स्थापना वर्ष 1966 संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में है।

फंड की आवश्यकता

  • वैश्विक रूप से 100 से अधिक देशों और क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रवाल भित्तियाँ कुल समुद्री जीवन की एक चौथाई यानी लगभग 1 मिलियन प्रजातियों को आश्रय प्रदान करती हैं। ये तूफानों और बाढ़ से समुद्र तट की रक्षा करते हुए कम-से-कम आधा बिलियन लोगों को रोज़गार तथा भोजन प्रदान करती हैं। इनके विभिन्न मूल्यों (महत्त्वों) और अपार सुभेद्यता के बावजूद, वैश्विक स्तर पर प्रवाल भित्तियों के संरक्षण को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया गया है।
  • प्रवाल भित्तियों को वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (वर्ष 2020 के बाद के लिये) में एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में मान्यता दी गई है और इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव (ICRI) द्वारा प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा के लिये सिफारिश भी की गई है। 

इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव (ICRI)

  • इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव (ICRI) विभिन्न राष्ट्रों और संगठनों के बीच एक अनौपचारिक साझेदारी है जो दुनिया भर में प्रवाल भित्तियों तथा संबंधित पारिस्थितिकी प्रणालियों को संरक्षित करने का प्रयास करता है।
    • यद्यपि यह एक अनौपचारिक समूह है, जिसके निर्णय सदस्यों के लिये बाध्यकारी नहीं होते हैं लेकिन पर्यावरणीय स्थिरता, खाद्य सुरक्षा तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक हित के लिये प्रवाल भित्तियों और संबंधित पारिस्थितिकी प्रणालियों के महत्त्व को वैश्विक स्तर पर प्रदर्शित करने हेतु इसके कार्यों को जारी रखा गया है।
  • ICRI के कार्यों को संयुक्त राष्ट्र के दस्तावेज़ों में नियमित रूप से स्वीकार किया जाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में इसके महत्त्वपूर्ण सहयोग, सहकार्य और समर्थन की भूमिका को प्रदर्शित करता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1994 में आठ देशों- ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस, जापान, जमैका, फिलीपींस, स्वीडन, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा की गई थी।
  • अप्रैल 1994 में जैव-विविधता अभिसमय पर पक्षकारों के पहले सम्मेलन तथा अप्रैल 1995 में सतत् विकास पर अमेरिकी आयोग की आंतरिक बैठक के उच्च स्तरीय अनुभाग में इसकी घोषणा की गई थी।
  • वर्तमान में ICRI के सदस्यों की संख्या लगभग 90 है।
  • ICRI के उद्देश्य इस प्रकार हैं:
    • प्रवाल भित्तियों और संबंधित पारिस्थितिक तंत्रों के स्थायी प्रबंधन में सर्वोत्तम अभ्यास को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना
    • क्षमता का निर्माण
    • विश्व भर में प्रवाल भित्तियों की दुर्दशा पर सभी स्तरों पर जागरूकता बढ़ाना
  • ICRI ने 'कॉल टू एक्शन' (Call to Action) और 'फ्रेमवर्क फॉर एक्शन' (Framework for Action) को अपने मूलभूत दस्तावेज़ों के रूप में अपनाया है।
    • दोनों दस्तावेज़ों में ICRI के चार आधार हैं: एकीकृत प्रबंधन; विज्ञान; क्षमता निर्माण और समीक्षा
  • हाल ही में जारी पाँचवें वैश्विक जैव विविधता आउटलुक (Global Biodiversity Outlook) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन सहित मानवीय दबाव के कारण प्रवाल भित्तियों ने "सभी मूल्यांकित समूहों में विलुप्ति के जोखिम में सर्वाधिक तेज़ी से वृद्धि दर्शायी है"।

महत्त्व:

  • फंड उन महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी प्रणालियों के संरक्षण और बहाली/पुनर्स्थापन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जो विश्व भर में खतरे में हैं। 
    • जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल द्वारा वर्ष 2018 में जारी एक रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है कि, भले ही हम सामूहिक रूप से वैश्विक सतह के तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर के ऊपर 1.5°C तक स्थिर करने में सफल हो जाएँ फिर भी इस सदी के मध्य तक 70 से 90 प्रतिशत प्रवाल भित्तियाँ समाप्त हो जाएंगी।

निष्कर्ष:

कई सतत् विकास लक्ष्य ऐसे हैं जो प्रकृति के बिना प्राप्त नहीं किये जा सकते हैं। SDG14 के लिये विश्व के पहले संयुक्त राष्ट्र के बहु-सहयोगी ट्रस्ट फंड के रूप में, प्रवाल भित्तियों  के लिये वैश्विक फंड संरक्षण हेतु निजी क्षेत्र के वित्तपोषण की शक्ति को बढ़ावा देगा साथ ही COVID-19 और अन्य आघातों के लिये पुनर्स्थापन एवं लचीलेपन में वृद्धि का समर्थन करने के लिये देशों का समर्थन करेगा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विश्व पर्यावास दिवस 2020

प्रिलिम्स के लिये

विश्‍व पर्यावास दिवस

मेन्स के लिये

महामारी और विश्व पर्यावास दिवस, पर्यावास के मामले में वैश्विक और भारतीय स्थिति

चर्चा में क्यों?

5 अक्तूबर को विश्व भर में विश्‍व पर्यावास दिवस (World Habitat Day) 2020 का आयोजन किया गया और इस वर्ष इस दिवस की मेज़बानी इंडोनेशिया के सुरबाया शहर द्वारा की गई। 

प्रमुख बिंदु

  • विश्‍व पर्यावास दिवस
    • संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने प्रत्येक वर्ष अक्तूबर माह के पहले सोमवार को विश्‍व पर्यावास दिवस (5 अक्तूबर, 2020) के रूप में नामित किया है।
    • यह दिवस मुख्य तौर पर मानव बस्तियों की स्थिति और पर्याप्त पर्यावास के मानवीय अधिकार पर ध्यान केंद्रित करता है। 
    • इस दिवस का उद्देश्य वर्तमान पीढ़ी को यह याद दिलाना है कि वे भावी पीढ़ी के पर्यावास (Habitat) हेतु उत्तरदायी हैं। 
    • पृष्ठभूमि: गौरतलब है कि वर्ष 1985 में संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक वर्ष अक्तूबर माह के पहले सोमवार को विश्व पर्यावास दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। 
      • पहली बार वर्ष 1986 में विश्व पर्यावास दिवस मनाया गया था, जिसकी थीम ‘शेल्टर इज़ माई राईट’ (Shelter is My Right) रखी गई थी।
      • ध्यातव्य है कि प्रत्येक वर्ष विश्व के अलग-अलग शहरों द्वारा इसकी मेज़बानी की जाती है और पहले विश्व पर्यावास दिवस की मेज़बानी केन्या की राजधानी नैरोबी द्वारा की गई थी।
  • विश्व पर्यावास दिवस 2020
    • विश्व पर्यावास दिवस 2020 की थीम ‘सभी के लिये आवास: एक बेहतर शहरी भविष्य’ (Housing for All- A better Urban Future) है और इस वर्ष इस दिवस की मेज़बानी इंडोनेशिया के सुरबाया (Surabaya) शहर द्वारा की जाएगी।

मौजूदा परिस्थिति में विश्व पर्यावास दिवस के मायने

  • वर्तमान समय में आवास का होना काफी महत्त्वपूर्ण हो गया है, महामारी के प्रसार के साथ ही एक सामान्य उपाय के तौर पर लोगों को अपने घर पर रहने के लिये कहा जा रहा है, किंतु यह सामान्य उपाय उन लोगों के लिये संभव नहीं है, जिनके पास न तो स्वयं का आवास है और न ही इतने पैसे हैं कि वे किराये पर एक घर प्राप्त कर सकें।
  • आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि महामारी का प्रकोप उन इलाकों में सबसे अधिक देखने को मिला है, जहाँ लोगों के पास आवास की व्यवस्था नहीं है और जहाँ लोग असमानताओं तथा गरीबी का सामना कर रहे हैं।
  • ऐसे इलाकों में रहने वाले लोगों को प्रायः वहाँ के स्थानीय अधिकारियों द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है और न ही उनके लिये किसी भी प्रकार की विशेष व्यवस्था की जाती है, ऐसे लोगों को विशेषतः संकट की स्थिति में स्थानांतरण और पलायन का सामना करना पड़ता है। 
    • ध्यातव्य है कि भारत में भी महामारी के शुरुआती दौर में काफी अधिक रिवर्स माइग्रेशन (Reverse Migration) देखा गया था यानी काफी बड़ी संख्या में लोग शहरों से वापस अपने गाँव और कस्बों की ओर लौटे थे। हालाँकि इनके संबंध में सरकार के पास कोई भी आधिकारिक आँकड़ा उपलब्ध नहीं है।

आवास के मामले में वैश्विक स्थिति

  • संयुक्त राष्ट्र (UN) के आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में विश्व की 55 प्रतिशत जनसंख्या यानी लगभग 4.2 बिलियन लोग शहरों में रहते हैं और यह आँकड़ा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है।
    • अनुमानानुसार, वर्ष 2050 तक शहरी आबादी अपने वर्तमान आकार से दोगुनी हो जाएगी और विश्व के 10 लोगों में से लगभग 7 लोग शहरों में निवास करेंगे। 
  • महामारी की शुरुआत से पूर्व ही अनुमानित 1.8 बिलियन लोग झोपड़पट्टियों, अनौपचारिक बस्तियों या बेघर के रूप में जीवनयापन कर रहे थे तथा महामारी के बाद इनकी संख्या में और अधिक वृद्धि होने का अनुमान है।
  • विश्व में तकरीबन 3 बिलियन लोगों के पास हाथ धोने के लिये आवश्यक बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

भारतीय परिदृश्य

  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2001 तक भारत की आबादी का तकरीबन 27.81 प्रतिशत हिस्सा शहरों में रहता था। वर्ष 2011 की जनगणना में यह संख्या 31.16 प्रतिशत (यानी तकरीबन 377 मिलियन) हो गई और वर्तमान में ( 2018 में) यह 34 प्रतिशत के आस-पास है।
  • वर्ष 2001 की जनगणना में शहर-कस्बों की कुल संख्या 5161 थी, जो कि वर्ष 2011 में बढ़कर 7936 हो गई थी।
  • कई अन्य विकासशील देशों की तरह भारत में भी शहरी आबादी में वृद्धि और योजनाबद्ध आवास प्रबंधन की कमी ने तकरीबन 26-37 मिलियन आबादी (कुल शहरी आबादी का 33-47 प्रतिशत) को झोपड़पट्टियों और अनौपचारिक बस्तियों में रहने के लिये मजबूर कर दिया है।

संबंधित चुनौतियाँ

  • बुनियादी सुविधाओं का अभाव: भारतीय शहरों खासतौर पर झोपड़पट्टियों और अनौपचारिक बस्तियों में स्वच्छ पेयजल एवं साफ-सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव देखा जाता है, जिसके कारण इन क्षेत्रों में संक्रमण फैलने का खतरा काफी अधिक रहता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना का अभाव: पिछले कुछ दशकों के दौरान शहरी क्षेत्र के जनसंख्या घनत्व में भारी वृद्धि के बावजूद सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे में कोई विशेष सुधार नहीं किया जा सका है।
  • प्रदूषण की समस्या: बड़ी संख्या में वाहनों के आवागमन और निर्माण कार्यों के परिणामस्वरूप शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। राजधानी दिल्ली इसका प्रमुख उदाहरण है।

आगे की राह

  • विश्व के सभी शहर वैश्विक अर्थव्यवस्था में तकरीबन 80 प्रतिशत का योगदान देते हैं, इस प्रकार यदि शहरों की उत्पादकता में वृद्धि के प्रयास किये जाएँ और इसे अच्छी तरह से प्रबंधित किया जाए तो शहरीकरण सतत् विकास में उल्लेखनीय योगदान दे सकता है।
  • झोपड़पट्टियों और अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाले लोगों तथा प्रवासियों की पहचान करना, उन्हें बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है। 
  • केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को ग्रामीण-शहरी विभाजन और सामाजिक-आर्थिक असमानता जैसे गंभीर मुद्दों को संबोधित करना होगा तथा संयुक्त रूप से इन्हें दूर करने के उपाय करने होंगे।

स्रोत: पी.आई.बी


LEMOA का प्रयोग

प्रिलिम्स के लिये

LEMOA, एक्सरसाइज़ बोंगोसागर, PASSEX

मेन्स के लिये

भारत और अमेरिका के मध्य द्विपक्षीय सहयोग, भारत और बांग्लादेश के मध्य द्विपक्षीय सहयोग 

चर्चा में क्यों?

पहली बार अमेरिकी एयरक्राफ्ट P-8A को LEMOA के अंतर्गत भारतीय द्वीपों तक पहुँच मिली है। द्विपक्षीय लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट के तहत ईंधन भरने के लिये सितंबर के अंतिम सप्ताह में अमेरिकी नौसेना का लंबी दूरी का समुद्री पेट्रोल एयरक्राफ्ट P-8A, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पोर्ट ब्लेयर में उतरा।

प्रमुख बिंदु 

  • यह पहली बार है जब अमेरिकी P-8A को ऑपरेशनल टर्नअराउंड के लिये द्वीपों तक पहुँच मिली है।
  • लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) के तहत ईंधन भरने के लिये 25 सितंबर को पी-8A पोर्ट ब्लेयर में था। यह विमान जापान से आया था और कुछ घंटों के लिये पोर्ट ब्लेयर में रुका।
  • इसी दौरान भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय अभ्यास का दूसरा संस्करण "एक्सरसाइज़ बोंगोसागर" बंगाल की उत्तरी खाड़ी में शुरू हुआ, जिसके बाद अगले दो दिनों के लिये एक समन्वित गश्ती ‘कॉरपैट’ (CORPAT) का आयोजन होगा।

LEMOA क्या है?

  • लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) पर भारत ने वर्ष 2016 में हस्ताक्षर किये थे।
  • यह समझौता भारत एवं अमेरिकी सेनाओं की एक-दूसरे की सैन्य सुविधाओं तक पहुँच को आसान बनाता है लेकिन यह इसे स्वचालित या अनिवार्य नहीं बनाता है।
  • यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं को मुख्य रूप से चार क्षेत्रों जैसे- पोर्ट ऑफ कॉल, संयुक्त अभ्यास, प्रशिक्षण और मानवीय सहायता तथा आपदा राहत में सुविधाएँ प्रदान करता है।
  • LEMOA की सबसे बड़ी लाभार्थी भारतीय नौसेना है, जो विदेशी नौसेनाओं के साथ सबसे ज़्यादा सूचनाओं का आदान-प्रदान और अभ्यास करती है।
  • नौसेना का यू.एस.ए. के साथ समुद्र में ईंधन हस्तांतरण के लिये एक ईंधन विनिमय समझौता है, जो नवंबर में समाप्त होने वाला है।
  • SOPs में अमेरिकी सेना के लिये संपर्क के बिंदुओं को नामित करने और भुगतान हेतु  एक आम खाते का निर्माण करना शामिल है।
  • उल्लेखनीय है कि मानक ऑपरेटिंग प्रक्रिया (SOPs) किसी  संगठन द्वारा संकलित चरण-दर-चरण निर्देशों का एक सेट है, जो कर्मचारियों को जटिल दिनचर्या का संचालन करने में मदद करती है।
  • यह मानक तीनों सेनाओं पर लागू होता है और अब तक तीनों सेनाओं के व्यक्तिगत खाते थे जिनसे सैन्य अभ्यास के दौरान भुगतान किया जा रहा था।

हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का विदेशी राज्यों के साथ सहयोग 

  • भारतीय नौसेना पोतों और अमेरिकी विमान वाहक पोतों के बीच जुलाई में PASSEX नामक युद्धाभ्यास प्रस्तावित था, जिसके इस महीने के अंत में संपन्न होने की उम्मीद है।
  • भारत के P-8s और यूएस की सबमरीन के मध्य पहले ही एक अभ्यास किया गया था। कई देशों ने अंडमान और निकोबार द्वीपों तक पहुँचने में रुचि व्यक्त की है जो कि मलक्का जलडमरूमध्य के समीप होने के कारण रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • हिंद महासागर क्षेत्र और भारत-प्रशांत क्षेत्र में बेहतर समुद्री जागरूकता (एमडीए) के लिये सूचना साझा करने पर केंद्रित द्विपक्षीय आधार पर क्वाड देशों के साथ भारत की समुद्री जागरूकता संबंधी बातचीत में तेज़ी से वृद्धि हुई है। 
  • भारत के तीनों देशों ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ लॉजिस्टिक समझौते हैं। भारत ने ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ समुद्री सूचना साझाकरण समझौतों पर भी हस्ताक्षर किये  हैं और इसी तरह का एक समझौता यू.एस के साथ भी किया है।

भारत-अमेरिका के बीच प्रमुख सूचना संधि

  • दोनों देशों द्वारा सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (GSOMIA) नामक पहले समझौते पर वर्ष 2002 में हस्ताक्षर किये गए थे।
  • हाल ही में दोनों देशों की 2+2 वार्ता के दौरान हस्ताक्षरित COMCASA समझौता, CISMOA के  संचार और सूचना से संबंधित भारत-विशिष्ट संस्करण है।
  • उल्लेखनीय है कि COMCASA को अमेरिका में CISMOA (Communication and Information Security Memorandum of Agreement) भी कहा जाता है।
  • आखिरी समझौता भू-स्थानिक सहयोग (BECA) है जो दोनों देशों के बीच सैन्य और नागरिक उद्देश्यों के लिये स्थल, समुद्री एवं वैमानिकी तीनों प्रकार की सूचनाओं के आदान-प्रदान में सहायता करने के लिये वैधानिक ढाँचा निर्धारित करेगा।

बांग्लादेश के साथ युद्धाभ्यास 

  • एक्स बोंगोसागर, जिसका पहला संस्करण वर्ष 2019 में आयोजित किया गया था, का उद्देश्य व्यापक समुद्री अभ्यास एवं संचालन के माध्यम से अंतर-संचालन एवं संयुक्त परिचालन कौशल विकसित करना है।  
  • बोंगोसागर नौसैनिक अभ्यास के इस सत्र में दोनों देशों की नौ-सेनाओं के पोत सतह युद्ध अभ्यास, नाविक कला विकास (Seamanship Evolutions) और हेलीकॉप्टर संचालन में भाग लेंगे।
  • भारतीय नौसेना की तरफ से स्वदेशी तौर पर निर्मित एंटी-सबमरीन वारफेयर कार्वेट (Anti-Submarine Warfare Corvette) आईएनएस किल्टान (INS Kiltan) और स्वदेश में ही निर्मित गाइडेड-मिसाइल कार्वेट (Guided-Missile Corvette) आईएनएस खुकरी (INS Khukri) इसमें भाग ले रहे हैं। 
  • वहीं बांग्लादेश की तरफ से बीएनएस अबू बक्र (BNS Abu Bakr) और बीएनएस प्रेटॉय (BNS Prottoy) इस अभ्यास में भाग ले रहे हैं। 

भारत-बांग्लादेश संयुक्त गश्ती (कॉरपैट)

[IN-BN Coordinated Patrol (CORPAT)]:

  • 4 - 5 अक्तूबर, 2020 को  बंगाल की खाड़ी में भारतीय नौसेना और बांग्लादेशी नौसेना ने संयुक्त गश्ती (कॉरपैट) के तीसरे संस्करण में हिस्सा लिया।
  • इसमें दोनों देशों की नौसैनिक इकाइयों ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (International Maritime Boundary Line- IMBL) के अनुरूप संयुक्त रूप से गश्त किया।
    • संयुक्त गश्त करने से दोनों देशों की नौ-सेनाओं के बीच आपसी समझ बेहतर हुई है और गैर-कानूनी गतिविधियों को रोकने के उपायों को लागू करने में तत्परता दिखाई गई है।  
  • यह एक बहुराष्ट्रीय संधि के बजाय भारतीय नौसेना की एक सामरिक प्रक्रिया है।
  • अब तक संयुक्त गश्ती अभ्यास को बांग्लादेश, इंडोनेशिया और थाईलैंड के साथ आयोजित किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम-2014 के तहत शीर्ष परिषद्

प्रिलिम्स के लिये

आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम-2014, कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण

मेन्स के लिये

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मध्य जल विवाद 

चर्चा में क्यों?

06 अक्तूबर, 2020 को आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम-2014 (Andhra Pradesh Re-Organization Act– 2014) के तहत गठित शीर्ष परिषद की दूसरी बैठक में अध्यक्ष के रूप में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री और सदस्यों के रूप में आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों ने भाग लिया।  

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2016 के बाद आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम-2014 (Andhra Pradesh Re-Organization Act– 2014) के तहत गठित शीर्ष परिषद की यह दूसरी बैठक थी।
  • यह बैठक मुख्य रूप से दोनों राज्यों के बीच सिंचाई परियोजनाओं को निष्पादित करने और कृष्णा एवं गोदावरी नदियों के जल को साझा करने हेतु एक समाधान निकालने के लिये आयोजित की गई थी।
  • इस बैठक में कृष्णा एवं गोदावरी नदी के जल के बँटवारे के संबंध में, तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने उच्चतम न्यायालय में दायर किये गए मामले को वापस लेने पर सहमति व्यक्त की ताकि केंद्र सरकार दोनों राज्यों के मध्य जल बँटवारे के मुद्दे को कृष्णा गोदावरी प्राधिकरण (Krishna Godavari Tribunal) को सौंप सके।

शीर्ष परिषद की दूसरी बैठक के मुख्य एजेंडे: 

  • इस बैठक के पहले एजेंडे में गोदावरी एवं कृष्णा प्रबंधन बोर्ड के अधिकार क्षेत्रों के बारे में निर्णय लिया गया था। 
    • छह वर्ष होने के बावजूद भी उनके अधिकार क्षेत्रों को अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है क्योंकि दोनों राज्यों के इस विषय पर अलग-अलग विचार हैं। 
  • जबकि दूसरे एजेंडे में क्रमशः कृष्णा और गोदावरी नदियों पर दोनों राज्यों द्वारा शुरू की गयी नई परियोजनाओं की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) प्रस्तुत करना शामिल है।
  • वहीं तीसरे एजेंडे में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों के बीच कृष्णा और गोदावरी नदी के जल के बँटवारे का निर्धारण करने के लिये एक तंत्र की स्थापना करना है।

केंद्र सरकार का पक्ष: 

  • उपरोक्त एजेंडों एवं अन्य मुद्दों के संबंध में केंद्र सरकार का पक्ष यह है कि अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम-1956 (Inter State River Water Disputes Act–1956) की धारा-3 के अंतर्गत जल आवंटन के मुद्दे को नए न्यायाधिकरण या कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण (KWDT-II) को संदर्भित किया जाए, यह मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है और विचाराधीन है।
  • कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड (KRMB) का मुख्यालय आंध्र प्रदेश में अवस्थित होगा।
  • केंद्रीय जल संसाधन मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार कृष्णा और गोदावरी नदी प्रबंधन बोर्ड (KRMB एवं GRMB) के अधिकार क्षेत्र का निर्धारण करेगी। 
    • तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने इस पर असहमति व्यक्त की है किंतु आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम-2014 के अनुसार, इस विषय पर किसी भी प्रकार की आम सहमति की आवश्यकता नहीं है और इस विषय पर केंद्र ही अधिसूचना जारी करेगा।

स्रोत: द हिंदू


परमाणु हथियार उन्मूलन पर भारत की प्रतिबद्धता

प्रिलिम्स के लिये: 

परमाणु परीक्षण विरोधी अंतर्राष्ट्रीय दिवस, संयुक्त राष्ट्र महासभा 

मेन्स के लिये:

परमाणु निशस्त्रीकरण और वैश्विक शांति,  परमाणु निशस्त्रीकरण पर भारत की प्रतिबद्धता 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय विदेश सचिव ने एक उच्च स्तरीय बैठक के दौरान परमाणु हथियारों के उन्मूलन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया है।

प्रमुख बिंदु:   

  • केंद्रीय विदेश सचिव ने ‘अंतर्राष्ट्रीय परमाणु हथियार पूर्ण उन्मूलन दिवस’ के अवसर पर एक उच्च स्तरीय बैठक को संबोधित करते हुए एक चरणबद्ध तरीके से बिना किसी भेदभाव के परमाणु हथियारों को समाप्त किये जाने का समर्थन किया।
  • उन्होंने कहा कि भारत सभी परमाणु हथियार धारक देशों के बीच भरोसा और आत्मविश्वास बनाए रखने हेतु सार्थक बातचीत स्थापित करने की आवश्यकता में विश्वास रखता है।

नो फर्स्ट यूज़ नीति (No First Use Policy): 

  • केंद्रीय विदेश सचिव ने परमाणु हथियार धारक देशों के खिलाफ 'नो फर्स्ट यूज़' अर्थात परमाणु हथियारों का पहले उपयोग नहीं करने और गैर-परमाणु हथियार धारक देशों पर परमाणु हथियारों का प्रयोग न करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया।
  • उन्होंने कहा कि भारत परमाणु निशस्त्रीकरण और अप्रसार व्यवस्था को मज़बूत करने के वैश्विक प्रयासों में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार रहा है। 
  • केंद्रीय विदेश सचिव की बात से स्पष्ट होता है कि भारत ने अपनी ‘नो फर्स्ट यूज़ नीति’ में कोई बदलाव नहीं किया है।    
  • गौरतलब है कि केंद्रीय रक्षा मंत्री ने वर्ष 2019 के चुनावों के बाद भारत की परमाणु नीति में बदलाव के संकेत दिये थे, उन्होंने आने वाले दिनों में ‘नो फर्स्ट यूज़ नीति’ के प्रति भारत के रवैये को भविष्य की परिस्थितियों पर निर्भर बताया था।  
  • वर्ष 1998 के पोखरण परीक्षण के बाद भारत द्वारा वर्ष 1999 में एक परमाणु सिद्धांत (Nuclear Doctrine) जारी किया गया,  जिसके तहत ‘नो फर्स्ट यूज़ नीति’ को शामिल किया गया था।

बहुपक्षीय प्रयासों की भूमिका:   

  • केंद्रीय विदेश सचिव ने ‘निशस्त्रीकरण सम्मेलन’ (The Conference on Disarmament- CD) को विश्व का एक मात्र बहुपक्षीय निशस्त्रीकरण समझौता मंच बताया और भारत द्वारा इस मंच के माध्यम से एक व्यापक परमाणु हथियार सम्मेलन के तहत वार्ता आयोजित करने के समर्थन की बात कही। 
  • भारत निशस्त्रीकरण सम्मेलन में विशेष समन्वयक (Special Coordinator or CD/1299) की रिपोर्ट (24 मार्च, 1994) के आधार पर ‘फिशाइल मैटेरियल कट-ऑफ ट्रीटी’ (Fissile Material Cut-off Treaty) के संदर्भ में भी बातचीत के लिये प्रतिबद्ध है। 
    • गौरतलब है कि CD/1299 के तहत आयोजित चर्चा के माध्यम से  "परमाणु हथियारों या अन्य परमाणु विस्फोटक उपकरणों के लिये फिशाइल सामग्री के उत्पादन पर प्रतिबंध लगाने हेतु संधि पर बातचीत की पहल को दिशा दी गई थी।  

परमाणु निशस्त्रीकरण की आवश्यकता:

  • शीत युद्द के बाद विश्व में परमाणु हथियारों और लंबी दूरी की मारक क्षमता वाली मिसाइल प्रणाली के विकास को सीमित करने पर विशेष बल दिया गया। 
  • परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty- NPT) और नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि (New Strategic Arms Reduction Treaty-START) इस दिशा में की गई पहलों के कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं। 
  • हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में चीन के एक नई सैन्य शक्ति के रूप में उभरने से वैश्विक शक्ति संतुलन में भारी बदलाव देखने को मिला है। इसके अतिरिक्त चीन के कई महत्त्वपूर्ण हथियार नियंत्रण संधियों में शामिल न होना एक बड़ी चिंता का विषय रहा है। 
  • गौरतलब है कि वर्ष 2019 में अमेरिका के ‘मध्यम दूरी परमाणु बल संधि’ (Intermediate-Range Nuclear Forces-INF Treaty) से अलग होने के बाद वैश्विक पर हथियारों के विकास पर रोक लगाने के लिये एक नई व्यवस्था की मांग बढ़ी है। 

‘निशस्त्रीकरण सम्मेलन’

(The Conference on Disarmament- CD)

  • निशस्त्रीकरण सम्मेलन (CD) संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA द्वारा मान्यता प्राप्त एक बहुपक्षीय निशस्त्रीकरण वार्ता मंच है। 
  • वर्तमान में यह परमाणु निशस्त्रीकरण, अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ की रोकथाम, सामूहिक विनाश के नए प्रकार के हथियार और रेडियोलॉजिकल हथियारों के विकास को रोकने आदि के क्षेत्र में कार्य करता है। 

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु हथियार पूर्ण उन्मूलन दिवस: 

  • वर्ष 2013 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा ‘26 सितंबर’ को ‘अंतर्राष्ट्रीय परमाणु हथियार पूर्ण उन्मूलन दिवस’ के रूप में घोषित किया गया था।
  • इस घोषणा का उद्देश्य परमाणु निशस्त्रीकरण पर सहयोग और जन-जागरूकता को बढ़ावा देना था, ध्यातव्य है कि इससे पहले वर्ष 2009 में UNGA द्वारा 29 अगस्त को ‘परमाणु परीक्षण विरोधी अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ (International Day against Nuclear Tests) के रूप में घोषित किया गया था।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय सांकेतिक भाषा में NCERT की पुस्तकें

प्रिलिम्स के लिये

नई शिक्षा नीति, ISLRT, NCERT

मेन्स के लिये

सांकेतिक भाषाएँ और उनका महत्त्व, नई शिक्षा नीति में भारतीय सांकेतिक भाषा

चर्चा में क्यों?

श्रवण बाधित बच्चों के लिये भारतीय सांकेतिक भाषा (Indian Sign Language) में शिक्षण सामग्री तक पहुँच कायम करने के उद्देश्य से भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC) और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के बीच एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इस समझौते के माध्यम से राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की शैक्षिक पुस्तकें और सामग्री अब भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) में भी उपलब्ध कराई जाएंगी, जिसका अर्थ है कि भारत के किसी भी हिस्से में रहने वाले श्रवण बाधित बच्चे एक ही भाषा में डिजिटल प्रारूप में शैक्षिक पुस्तकें पढ़ सकेंगे।

महत्त्व

  • ध्यातव्य है कि बाल्यावस्था में बच्चों का संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development) होता है, इसलिये उन्हें उनकी सीखने की ज़रूरतों के अनुसार शैक्षिक सामग्री उपलब्ध कराना काफी महत्त्वपूर्ण होता है।
  • अब इस समझौते के माध्यम से श्रवण बाधित बच्चों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप भारतीय सांकेतिक भाषा में शैक्षिक पुस्तकें और सामग्री उपलब्ध कराई जा सकेंगी, जिससे उनके समग्र विकास में मदद मिलेगी।
  • भारतीय सांकेतिक भाषा में NCERT की किताबों से न केवल श्रवण बाधित बच्चों के शब्दकोश में बढ़ोतरी होगी, बल्कि अवधारणाओं को समझने की उनकी क्षमता का भी विकास करेगा।
  • अब तक श्रवण बाधित बच्चे केवल मौखिक या लिखित माध्यम से अध्ययन करते थे, लेकिन इस समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद वे भारतीय सांकेतिक भाषा के माध्यम से भी शैक्षिक पुस्तकों का अध्ययन करने में सक्षम होंगे।

भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC) 

  • भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC), सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग का एक स्वायत्त राष्ट्रीय संस्थान है, जो भारतीय सांकेतिक भाषा के उपयोग को लोकप्रिय बनाने और भारतीय सांकेतिक भाषा में शिक्षण तथा अनुसंधान हेतु मानव शक्ति के विकास की दिशा में कार्य कर रहा है।
  • सर्वप्रथम 11वीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 2007-2012) में यह स्वीकार किया गया था कि अब तक श्रवण विकलांग लोगों की ज़रूरतों की उपेक्षा की गई है। साथ ही इस योजना में भारतीय सांकेतिक भाषा के विकास और इसे बढ़ावा देने के लिये एक सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र के विकास की परिकल्पना की गई।
  • इसके पश्चात् तत्कालीन वित्त मंत्री ने वर्ष 2011-12 के केंद्रीय बजट में भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC) के गठन की घोषणा की।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT)

  • राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) वर्ष 1961 में भारत सरकार द्वारा गठित एक स्वायत्त संगठन है, जो कि स्‍कूली शिक्षा से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार और राज्‍य सरकारों को सहायता प्रदान करने तथा उन्‍हें सुझाव देने का कार्य करती है।
  •  NCERT और इसकी घटक इकाइयों का मुख्य उद्देश्य है:
    • स्कूली शिक्षा से संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान करना, उसे बढ़ावा देना और समन्वय स्थापित करना;
    • पाठ्यपुस्तक, संवादपत्र और अन्य शैक्षिक सामग्रियों का निर्माण करना और उन्हें प्रकाशित करना;
    • शिक्षकों हेतु प्रशिक्षण का आयोजन करना।
  • राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है, जबकि इसकी कई घटक इकाइयाँ देश के अन्य हिस्सों में स्थापित हैं।

सांकेतिक भाषा और उसका महत्त्व

  • सांकेतिक भाषा संप्रेषण का एक माध्यम है, जहाँ हाथ के इशारों और शरीर तथा चेहरे के हाव-भावों का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार सांकेतिक भाषाएँ बोली जाने वाली भाषाओं से संरचनात्मक रूप से अलग होती हैं और इनका प्रयोग अधिकांशतः श्रवण बाधित लोगों द्वारा किया जाता है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2016 में तकरीबन 5 मिलियन भारतीय बच्चे श्रवण विकलांगता का सामना कर रहे हैं। 
  • सांकेतिक भाषाएँ, बोली जाने वाली अन्य भाषाओं की तरह ही जटिल व्याकरण युक्त भाषाएँ होती हैं। इनका स्वयं का व्याकरण तथा शब्दकोश होता है। उल्लेखनीय है कि सांकेतिक भाषा का कोई भी रूप सार्वभौमिक नहीं है। 
    • अलग-अलग देशों या क्षेत्रों में अलग-अलग सांकेतिक भाषाएँ प्रयोग की जाती हैं। जैसे- ब्रिटिश सांकेतिक भाषा (BSL), अमेरिकन सांकेतिक भाषा (ASL) और भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) आदि। इनके अलावा एक अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस भी है, जिसका प्रयोग अधिकांशतः अंतर्राष्ट्रीय और औपचारिक बैठकों के दौरान किया जाता है।

नई शिक्षा नीति और भारतीय सांकेतिक भाषा

  • इसी वर्ष जुलाई माह में केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020’ को मंज़ूरी दी थी, जिसने तकरीबन 34 वर्ष पुरानी वर्ष 1986 की ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ को प्रतिस्थापित किया था।
  • देश की नई शिक्षा नीति के अनुसार, भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) को देश भर में मानकीकृत किया जाएगा, और इस भाषा में राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर की पाठ्यक्रम सामग्री विकसित की जाएगी, जो कि श्रवण बाधित विद्यार्थियों द्वारा उपयोग में लाई जाएगी।
    • इसके अलावा नई शिक्षा नीति में स्थानीय सांकेतिक भाषाओं को यथासंभव महत्त्व देने और बढ़ावा देने की भी बात की गई है।

आगे की राह

  • जानकार मानते हैं कि भारतीय सांकेतिक भाषाओं के मानकीकरण की प्रक्रिया अपेक्षाकृत काफी जटिल है और इसके लिये न केवल भारतीय सांकेतिक भाषा में निपुण शिक्षकों के प्रशिक्षण की आवश्यकता है बल्कि इस कार्य के लिये भारतीय शिक्षण सामग्री का अनुकूलन भी करना होगा।
  • भारतीय सांकेतिक भाषा को मुख्यधारा से जोड़ने और इसे आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिये आवश्यक है कि आम लोगों तक इस भाषा की पहुँच सुनिश्चित की जाए।

स्रोत: पी.आई.बी.


लोकायुक्त पद की प्रासंगिकता पर प्रश्न

प्रिलिम्स के लिये:

लोकपाल और लोकायुक्त, दंड प्रक्रिया संहिता 

मेन्स के लिये:

भारतीय लोकतंत्र में लोकायुक्त की भूमिका, लोकपाल और लोकायुक्त की शक्तियों में सुधार की आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा गोवा के लोकायुक्त  पद से सेवानिवृत्त हुए तथा उन्होंने इस मौके पर लोकायुक्त की शक्तियों और उसके आदेशों के प्रति राज्य सरकार के व्यवहार के संदर्भ में कई गंभीर प्रश्न उठाए हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि गोवा राज्य के लोकायुक्त के रूप में जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा के कार्यकाल के दौरान उनके द्वारा सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ प्रस्तुत 21 रिपोर्टों में से राज्य सरकार ने किसी पर भी कार्रवाई नहीं की।
  • जस्टिस मिश्रा ने लोकायुक्त के पास वास्तविक शक्तियों की भारी कमी को रेखांकित किया है। 

गोवा लोकायुक्त अधिनियम, 2011:

  • लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के लागू होने से पहले ही कई राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति की जा चुकी थी।
  • गोवा लोकायुक्त अधिनियम को वर्ष 2003 में केंद्र सरकार के पास भेजा गया था और इसे वर्ष 2011 में राज्य विधानसभा से पारित किया गया (दोबारा प्रस्तुत किये जाने के बाद)। 
  • गोवा राज्य में लागू लोकायुक्त अधिनियम केरल और कर्नाटक के अधिनियम पर आधारित है, हालाँकि इसमें लोकायुक्त की शक्तियों में कमी की गई है। 
  • गोवा लोकायुक्त अधिनियम, 2011 के तहत लोकायुक्त किसी सार्वजनिक पदाधिकारी के खिलाफ प्राप्त शिकायत (इस अधिनियम की धारा-11 के तहत) के आधार पर या मामले का स्वयं संज्ञान लेते हुए उसके खिलाफ जांच प्रारंभ कर सकता है। 

विवाद का कारण:

  • 18 मार्च, 2016 से 16 सितंबर, 2020 तक के अपने कार्यकाल के दौरान लोकायुक्त को 191 शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें से 133 का निस्तारण किया गया।
  • वर्तमान में लंबित 58 मामलों में से 21 में लोकायुक्त ने राज्य सरकार के पास रिपोर्ट भेजी थी, परंतु राज्य सरकार द्वारा इन मामलों में कार्रवाई के संदर्भ में कोई जानकारी नहीं दी गई। 
  • अपने कार्यकाल के दौरान लोकायुक्त ने जिन सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ रिपोर्ट प्रस्तुत की थी उनमें एक पूर्व मुख्यमंत्री और एक मौजूदा विधायक भी शामिल है।
  • गोवा के वर्तमान मुख्यमंत्री ने लोकायुक्त द्वारा एक पूर्व मुख्यमंत्री और दो अन्य अधिकारियों के खिलाफ दी गई रिपोर्ट को मात्र सलाहकारी बताते हुए खारिज कर दिया था। 
  • गौरतलब है कि गोवा लोकायुक्त अधिनियम, 2011 की धारा-16 (3) के तहत किसी मामले की कार्रवाई से संतुष्ट न होने पर लोकायुक्त को राज्यपाल के पास विशेष रिपोर्ट प्रस्तुत करने अधिकार है।
  • इसके साथ ही इस अधिनियम की धारा-17 के अनुसार, यदि किसी मामले में जाँच के बाद लोकायुक्त को लगता है कि सार्वजनिक पदाधिकारी ने कोई दंडनीय अपराध किया है और इसके लिये उस पर न्यायालय में मुकदमा चलाया जाना चाहिये तो वह इस संदर्भ में एक आदेश जारी कर सकता है, जिसके बाद उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा आरोपी सार्वजनिक पदाधिकारी के खिलाफ अभियोजन की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिये। 

चुनौतियाँ: 

  • लोकायुक्त की शक्तियों में कमी:
    • गोवा राज्य में लागू लोकायुक्त अधिनियम के तहत लोकायुक्त की शक्तियों को कई मामलों में सीमित रखा गया है। 
      • उदाहरण के लिये केरल और कर्नाटक के लोकायुक्त अधिनियम में लोकायुक्त को अभियोग चलाने की शक्ति प्राप्त है परंतु गोवा में इसे बदल दिया गया है। इसी प्रकार लोकायुक्त को अपने आदेशों की अवमानना ​​करने पर किसी को दंडित करने की शक्ति नहीं दी गई है। 
  • जाँच अधिकारियों की लापरवाही: 

    • लोकायुक्त के पास आए अधिकांश मामलों में पाया गया कि अधिकारी पीड़ित की शिकायत पर प्राथमिकी (FIR) न दर्ज करते हुए प्रारंभिक जाँच को रोक देते हैं।
      • गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने ‘ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (2013)’ मामले में फैसला देते हुए स्पष्ट रूप से कहा था कि यदि कोई व्यक्ति पुलिस स्टेशन आकर किसी ‘संज्ञेय अपराध’ (Cognizable Offence) की शिकायत करता है तो ऐसे मामलों में पुलिस अधिकारी ‘दंड प्रक्रिया संहिता’ (Criminal Procedure Code- CrPC) की धारा-154 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिये बाध्य होता है।
  •  योग्य कर्मचारियों की कमी: 
    • लोकपाल कार्यालय में एक जाँच शाखा होती है जहाँ कुछ योग्य पुलिस अधिकारियों की तैनाती की जाती है परंतु गोवा लोकपाल कार्यालय की जाँच शाखा में केवल दो कांस्टेबल और दो हेड कांस्टेबल की तैनाती की गई थी। ऐसे में किसी गंभीर मामले की जाँच करना लोकपाल के लिये एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया था। 

लोकपाल और लोकायुक्त: 

  • प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (वर्ष1966-70) ने दो प्राधिकारियों लोकपाल और लोकायुक्त की सिफारिश की थी। 
  • ‘लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम, 2013’ ने संघ (केंद्र) के लिये लोकपाल और राज्यों के लिये लोकायुक्त संस्था की व्यवस्था की। 
    • लोकपाल तथा लोकायुक्त विधेयक, 2013 के संसद से पारित होने के बाद 1 जनवरी, 2014 को भारत के राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर किये और इसे अधिनियम के रूप में 16 जनवरी, 2014 को लागू कर दिया गया।  
  • भारत में लोकपाल और लोकायुक्त का पद स्कैंडनेवियन देशों के ‘ऑफिस ऑफ ओम्बुड्समैन’ (Office of Ombudsman) और न्यूज़ीलैंड के ‘पार्लियामेंट्री कमीशन ऑफ इन्वेस्टीगेशन’ (Parliamentary Commission of Investigation) पर आधारित है। 
  • ये संस्थाएँ बिना किसी संवैधानिक दर्जे वाले वैधानिक निकाय हैं।
  • देश में लोकायुक्त का गठन सबसे पहले वर्ष 1971 में महाराष्ट्र में किया गया, गौरतलब है कि ओडिशा राज्य में वर्ष 1970 में ही लोकायुक्त की नियुक्ति से संबंधित एक विधेयक पारित किया गया था परंतु इसे वर्ष 1983 में पूर्णरूप से लागू किया गया। 

शक्तियाँ और कार्य:

  • लोकपाल और लोकायुक्त सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करते हैं, इसकी परिधि में मंत्री, संसद सदस्य, समूह ए, बी, सी और डी अधिकारी तथा केंद्र सरकार के अधिकारी आदि को शामिल किया गया है।
  • भारतीय प्रधानमंत्री को भी लोकपाल की परिधि में रखा गया है हालाँकि कई विषयों में वह लोकपाल से परे है।
  • हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात में मुख्यमंत्री को लोकायुक्त की परिधि में रखा गया है, जबकि महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा ओडिशा में मुख्यमंत्री लोकायुक्त के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।
  • लोकायुक्त जाँच करने के लिये जाँच एजेंसियों की सहायता लेता है और वह राज्य विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है।

कमियाँ:

  • लोकायुक्त की सिफारिशें केवल सलाहकारी होती हैं, वे राज्य सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं होती हैं।
  • अधिकांश राज्यों में लोकायुक्त किसी अनुचित प्रशासनिक कार्रवाई के खिलाफ नागरिकों द्वारा की गई शिकायत के आधार पर या स्वयं जाँच प्रारंभ कर सकता है परंतु असम, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में वह स्वयं जाँच की पहल नहीं कर सकता। 

सुझाव: 

  • अभियोजन की शक्ति: जस्टिस मिश्रा ने लोकायुक्त को अभियोजन की शक्ति देने का समर्थन किया है। वर्तमान में गोवा लोकायुक्त अधिनियम की धारा-17 के तहत लोकायुक्त को अभियोजन के लिये आदेश जारी करने का अधिकार प्राप्त है। जस्टिस मिश्रा के अनुसार, यह आदेश मात्र सलाहकारी नहीं है, अतः इस संदर्भ में अस्पष्टता को दूर किया जाना चाहिये। 
  • लोकायुक कार्यालय की जाँच संबंधी शाखा में योग्य जाँच अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिये। 
  • लोकायुक्त के आदेशों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये लोकायुक्त को अपने आदेशों की अवमानना ​​करने पर संबंधित व्यक्ति/अधिकारी को दंडित करने की शक्ति देने पर विचार किया जाना चाहिये। 

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


सांभर झील के पास अस्थायी पक्षी आश्रयों का निर्माण

प्रिलिम्स के लिये

सांभर झील की भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये

सांभर झील के संरक्षण से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

राजस्थान सरकार इस वर्ष सर्दियों के मौसम से पहले प्रसिद्ध सांभर झील के पास प्रवासी पक्षियों के लिये अस्थायी आश्रयों का निर्माण करेगी।

प्रमुख बिंदु:

  • इस वर्ष मध्य एशिया के ठंडे उत्तरी क्षेत्रों से बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों के देश की सबसे बड़ी अंतर्देशीय खारे पानी की झील में पहुँचने की उम्मीद है।
  • वर्ष 2019 में झील में बॉटुलिज़्म के संक्रमण के कारण 20,000 से अधिक प्रवासी पक्षियों की मौत हो गई थी।
  • राजस्थान उच्च न्यायालय ने पक्षियों की सामूहिक मृत्यु पर संज्ञान लेते हुए नमक के प्रभाव का अध्ययन करने और झील में नमक के अवैध खनन की पहचान करने के लिये सात सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है।

बॉटुलिज़्म (Botulism)

  • बॉटुलिज़्म संक्रमण पोल्ट्री फार्म्स में होने वाली मौतों के सबसे आम कारणों में से एक है। यह संक्रमण क्लोस्ट्रीडियम बोटुलिनम (Clostridium Botulinum) बैक्टीरिया द्वारा फैलता है।
  • इस संक्रमण के कारण पक्षी आमतौर पर खड़े होने, ज़मीन पर चलने में असमर्थ हो जाते हैं और यह बीमारी पक्षियों के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है।
  • बॉटुलिज़्म का कोई विशिष्ट इलाज उपलब्ध नहीं है, इससे संक्रमित अधिकांश पक्षियों की मौत हो जाती है।

राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • राज्य सरकार ने इस सप्ताह की शुरुआत में उच्च न्यायालय को सूचित किया कि उसने झील के पास अस्थायी नर्सरी बनाने के लिये 1.80 करोड़ रुपए स्वीकृत किये हैं।
  • उच्च न्यायालय की एक डिवीजनल बेंच ने कहा कि यदि पक्षियों की सुरक्षा हेतु बुनियादी ढाँचा बनाने के लिये अधिक धन की आवश्यकता पड़ती है, तो राज्य सरकार केंद्र से सहायता मांग सकती है।

अन्य प्रयास:

  • मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत मोहंती की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने विशेषज्ञ समिति को मामले की जाँच और वैज्ञानिक अध्ययन करने तथा चार सप्ताह के भीतर न्यायालय को एक सीलबंद लिफाफे में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करने को कहा।
  • समिति से संबंधित सभी खर्च राज्य सरकार का वन विभाग वहन करेगा और पैनल में नामांकित विशेषज्ञों को मानदेय भी देगा।
  • इस पैनल के सदस्यों में वेटलैंड्स इंटरनेशनल साउथ एशिया (Wetlands International South Asia) के उपाध्यक्ष अजीत पटनायक, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (Bombay Natural History Society) के सहायक निदेशक पी. सत्यासेल्वम (P. Sathiyaselvam) और राजस्थान के पूर्व मुख्य वन्यजीव संरक्षक आर.एन. मेहरोत्रा शामिल हैं।

सांभर झील:

  • सांभर झील राजस्थान राज्य में जयपुर के समीप स्थित है। यह देश में खारे पानी की सबसे बड़ी झील है और नमक का बड़ा स्रोत है।
  • ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, सांभर झील का निर्माण 551 ईस्वी में चौहान वंश के राजा वासुदेव द्वारा की गई।
  • इस पर सिंधियों, मराठों और मुगलों का अधिकार रहा तथा वर्ष 1709 में राजपूतों ने इसे पुनः अपने अधिकार में ले लिया।
  • सांभर झील एक विश्वविख्यात रामसर साइट है। यहाँ नवंबर से फरवरी तक उत्तरी एशिया और साइबेरिया से हज़ारों की संख्या में फ्लेमिंगो एवं अन्य प्रवासी पक्षी आते हैं।
  • यहाँ के अन्य दर्शनीय स्थलों में शाकंभरी माता मंदिर, शर्मिष्ठा सरोवर, भैराना, दादू द्वारा मंदिर और देवयानी कुंड शामिल हैं।

स्रोत- द हिंदू