भारतीय राजव्यवस्था
हड़ताल का अधिकार
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 19, औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947, मौलिक अधिकार। मेन्स के लिये:हड़ताल का अधिकार। |
चर्चा में क्यों ?
केरल उच्च न्यायालय ने इस बात को दोहराया है कि जो सरकारी कर्मचारी हड़तालों में भाग लेते हैं तथा सरकारी खजाने के साथ-साथ सामान्य जनता के जीवन को भी प्रभावित करते हैं, वे संविधान के अनुच्छेद 19(1)(c) के तहत सुरक्षा के हकदार नहीं हैं, साथ ही यह केरल सरकारी कर्मचारी आचरण नियम, 1960 के प्रावधानों के तहत नियमों का उल्लंघन है।
हड़ताल का अधिकार:
- परिचय:
- हड़ताल का आशय नियोक्ताओं द्वारा निर्धारित आवश्यक शर्तों के तहत काम करने से कर्मचारियों का सामूहिक रूप से इनकार करना है। हड़ताल के कई कारण हो सकते हैं, हालाँकि मुख्य तौर पर आर्थिक स्थितियों (आर्थिक हड़ताल के रूप में परिभाषित और मजदूरी एवं लाभ में सुधार के लिये) या श्रम प्रथाओं (कार्य स्थितियों में सुधार के उद्देश्य से) के संदर्भ में की जाती है।
- प्रत्येक देश में चाहे वह लोकतांत्रिक हो, पूंजीवादी या समाजवादी हो श्रमिकों को हड़ताल का अधिकार होना चाहिये लेकिन यह अधिकार अंतिम उपाय के रूप में उपयोग होना चाहिये क्योंकि यदि इस अधिकार का दुरुपयोग किया जाता है तो यह उद्योगों के उत्पादन और वित्तीय लाभ में समस्या उत्पन्न करेगा।
- यह अंततः देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।
- भारत में विरोध का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
- लेकिन हड़ताल का अधिकार एक मौलिक अधिकार नहीं है बल्कि एक कानूनी अधिकार है और इस अधिकार के साथ औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अंतर्गत वैधानिक प्रतिबंध जुड़ा हुआ है।
- औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 को औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 के तहत समाहित किया गया है।
- भारत में स्थिति:
- अमेरिका के विपरीत भारत में हड़ताल का अधिकार कानून द्वारा स्पष्ट रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है।
- वाणिज्यिक विवाद के समर्थन में पंजीकृत ट्रेड यूनियन द्वारा की गई विशिष्ट कार्रवाइयों को मंज़ूरी देकर, जो अन्यथा सामान्य आर्थिक कानून का उल्लंघन कर सकती थी, ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 ने हड़ताल संबंधी पहला प्रतिबंधित अधिकार बनाया।
- वर्तमान में हड़ताल के अधिकार को ट्रेड यूनियनों के एक वैध हथियार के रूप में कानून द्वारा निर्धारित सीमाओं के तहत सीमित मान्यता प्राप्त है।
- भारतीय संविधान हड़ताल करने का पूर्ण अधिकार नहीं प्रदान करता, लेकिन यह संघ का गठन करने की मौलिक स्वतंत्रता का पालन करता है।
- राज्य ट्रेड यूनियनों को संगठित करने और हड़तालों का आह्वान करने की क्षमता पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है, जैसा कि हर दूसरा मौलिक अधिकार उचित प्रतिबंधों के अधीन है।
- अंतर्राष्ट्रीय समझौते के तहत हड़ताल का अधिकार:
- हड़ताल के अधिकार को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) के सम्मेलनों द्वारा भी मान्यता दी गई है।
- भारत ILO का संस्थापक सदस्य है।
- हड़ताल के अधिकार को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) के सम्मेलनों द्वारा भी मान्यता दी गई है।
हड़ताल के अधिकार से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के महत्त्वपूर्ण निर्णय:
- दिल्ली पुलिस बनाम भारत संघ (1986) में सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस बल (अधिकारों का प्रतिबंध) अधिनियम, 1966 और संशोधन नियम, 1970 द्वारा संशोधित नियमों के प्रभावी होने के बाद गैर-राजपत्रित पुलिस बल के सदस्यों द्वारा संघ बनाने के प्रतिबंधों को बरकरार रखा।
- टी. के. रंगराजन बनाम तमिलनाडु सरकार (2003) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कर्मचारियों को हड़ताल का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। इसके अलावा उनके हड़ताल पर जाने पर तमिलनाडु सरकारी सेवक आचरण नियम, 1973 के तहत रोक है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
21वीं सदी में वैश्विक हिमनद परिवर्तन
प्रिलिम्स के लिये: पेरिस जलवायु समझौता, वैश्विक हिमनद परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन
मेन्स के लिये: 21वीं सदी में वैश्विक हिमनद परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में “ग्लोबल ग्लेशियर चेंज इन द 21st सेंचुरी: एवरी इनक्रीज़ इन टेम्परेचर मैटर्स” शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पृथ्वी के आधे हिमनद वर्ष 2100 तक लुप्त हो सकते हैं।
- शोधकर्त्ताओं ने ग्रह के हिमनदों को पहले से कहीं अधिक सटीकता के साथ मापने के लिये दो दशकों के उपग्रह डेटा का उपयोग किया।
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र (UN) के अंतर-सरकारी पैनल की वर्ष 2022 में जारी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट में भी चेतावनी दी गई थी कि हमारे पास 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने के लिये समय कम है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- अभूतपूर्व दर से पिघल रहे हैं हिमनद:
- जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के कारण हिमनद अभूतपूर्व दर से घट रहे हैं।
- वर्ष 1994 से वर्ष 2017 के बीच हिमनदों से पिघली बर्फ की मात्रा लगभग 30 ट्रिलियन टन थी और अब वे प्रत्येक वर्ष 1.2 ट्रिलियन टन की गति से पिघल रहे हैं।
- आल्प्स, आइसलैंड एवं अलास्का के ग्लेशियर उनमें से कुछ हैं जो सबसे तेज़ गति से पिघल रहे हैं।
- पृथ्वी के आधे हिमनद वर्ष 2100 तक लुप्त हो जाएंगे, भले ही हम वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य का पालन करते रहें।
- अगले 30 वर्षों के भीतर कम-से-कम 50% नुकसान होगा। यदि ग्लोबल वार्मिंग अपनी वर्तमान 2.7 डिग्री सेल्सियस दर पर बना रहता है तो 68% ग्लेशियर पिघल जाएंगे।
- यदि ऐसा होता है, तो अगली सदी के अंत तक मध्य यूरोप, पश्चिमी कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका में वास्तव में कोई ग्लेशियर नहीं बचेगा।
- शोधकर्त्ताओं का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग को कम करके इनमें से कुछ ग्लेशियरों को पिघलने से बचाया जा सकता है।
- ग्लेशियर, जिनमें पृथ्वी के ताज़े पानी का 70% हिस्सा मौजूद है, वर्तमान में यह पृथ्वी के भूमि क्षेत्र का लगभग 10% हिस्सा है।
- जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के कारण हिमनद अभूतपूर्व दर से घट रहे हैं।
- आपदा के बढ़ते जोखिम:
- ग्लेशियर के पिघलने से समुद्र का स्तर बहुत बढ़ जाता है, जिससे दो अरब लोगों की पानी तक पहुँच प्रभावित हो सकती है और प्राकृतिक आपदाओं तथा बाढ़ जैसी चरम जलवायु घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है।
- वर्ष 2000 और 2019 के बीच वैश्विक समुद्र स्तर में 21% की वृद्धि हुई। इसका प्रमुख कारण ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों का पिघलना था।
- अनुशंसाएँ:
- वैश्विक तापमान में 1.5C से अधिक की वृद्धि के साथ तेज़ी से बढ़ते ग्लेशियर एवं जन हानि इन पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेशियरों को संरक्षित करने के लिये अधिक महत्त्वाकांक्षी जलवायु प्रतिज्ञाएँ करने की आवश्यकता पर ज़ोर देती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: जलवायु-स्मार्ट कृषि के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य का सबसे अच्छा वर्णन करता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न.3 'वैश्विक जलवायु परिवर्तन गठबंधन' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न 1. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पक्षकारों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई प्रतिबद्धताएँ क्या हैं? (2021) प्रश्न 2. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
भारतीय टेलीग्राफ (अवसंरचना सुरक्षा) नियम, 2022
प्रिलिम्स के लिये:दूरसंचार विभाग, भारतीय टेलीग्राफ (अवसंरचना सुरक्षा) नियम, 2022, पीएम गति शक्ति NMP। मेन्स के लिये:भारतीय टेलीग्राफ (अवसंरचना सुरक्षा) नियम, 2022 का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संचार मंत्रालय के तहत दूरसंचार विभाग ने भारतीय टेलीग्राफ (अवसंरचना सुरक्षा) नियम, 2022 बनाया है।
- एक मज़बूत, सुरक्षित, सुलभ एवं किफ़ायती डिजिटल संचार अवसंरचना और सेवाओं के निर्माण के माध्यम से केंद्र सरकार ने व्यक्तियों तथा व्यवसायों दोनों की संचार संबंधी मांगों को पूरा करने की परिकल्पना की है।
भारतीय टेलीग्राफ (अवसंरचना सुरक्षा) नियम, 2022:
- कोई भी व्यक्ति जो किसी ऐसी संपत्ति के उत्खनन या इसके कानूनी अधिकार का उपयोग करना चाहता है, जिससे दूरसंचार अवसंरचना को नुकसान होने की आशंका है, उत्खनन शुरू करने से पहले सामान्य पोर्टल के माध्यम से लाइसेंसधारी को नोटिस देगा।
- खुदाई या उत्खनन करने वाला व्यक्ति लाइसेंसधारी द्वारा उपलब्ध कराए गए एहतियाती उपायों के अनुसार उचित कार्रवाई करेगा।
- कोई भी व्यक्ति जिसने दूरसंचार अवसंरचना को नुकसान पहुँचाने वाली किसी परिसंपत्ति की खुदाई/उत्खनन का कार्य किया है, वह दूरसंचार प्राधिकरण को नुकसान शुल्क का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी होगा।
- एक बार परिसंपत्ति स्वामित्त्व वाली एजेंसियाँ पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान मंच पर GIS निर्देशांक के साथ अपनी मौजूद परिसंपत्तियों का मानचित्रण कर लेती हैं, तो इससे उत्खनन शुरू होने से पहले संबंधित स्थल पर मौजूद उपयोगी संपत्तियों के बारे में जानना संभव होगा।
संबद्ध लाभ:
- कई उपयोगी संपत्तियों को अवांछित कटौती और बहाली की दिशा में अतिरिक्त लागत से बचाया जा सकता है।
- नतीजतन, निगम हज़ारों करोड़ रुपए की बचत कर पाएंगे, जबकि सरकार को कर का नुकसान होगा।
- एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल से नागरिकों को होने वाली असुविधा का समाधान किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री गति शक्ति-राष्ट्रीय मास्टर प्लान (NMP):
- उद्देश्य:
- ज़मीनी स्तर पर कार्य में तेज़ी लाने, लागत को कम करने और रोज़गार सृजन पर ध्यान देने के साथ-साथ आगामी चार वर्षों में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं की एकीकृत योजना और कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
- लॉजिस्टिक्स लागत में कटौती के अलावा इस योजना का उद्देश्य कार्गो हैंडलिंग क्षमता को बढ़ाना और व्यापार को बढ़ावा देने हेतु बंदरगाहों पर टर्नअराउंड समय को कम करना।
- यह वर्ष 2024-25 के लिये सरकार द्वारा निर्धारित महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगा, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क की लंबाई को 2 लाख किलोमीटर तक विस्तारित करना, 200 से अधिक नए हवाई अड्डों, हेलीपोर्ट और वाटर एयरोड्रोम का निर्माण करना शामिल है।
- पीएम गति शक्ति छह प्रमुख स्तंभों पर आधारित है:
- व्यापकता: इसमें एक केंद्रीकृत पोर्टल के साथ विभिन्न मंत्रालयों और विभागों की सभी मौजूदा व नियोजित पहलें शामिल होंगी। प्रत्येक विभाग अब व्यापक तरीके से परियोजनाओं की योजना एवं निष्पादन करते समय महत्त्वपूर्ण डेटा प्रदान करते हुए एक-दूसरे की गतिविधियों की दृश्यता में रहेगा।
- प्राथमिकता: इसके माध्यम से विभिन्न विभाग क्रॉस-सेक्टोरल इंटरैक्शन के माध्यम से अपनी परियोजनाओं को प्राथमिकता देने में सक्षम होंगे।
- अनुकूलन: राष्ट्रीय मास्टर प्लान महत्त्वपूर्ण कमियों की पहचान के बाद परियोजनाओं की योजना बनाने में विभिन्न मंत्रालयों की सहायता करेगा। यह योजना माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिये समय और लागत के मामले में सबसे इष्टतम मार्ग का चयन करने में मदद करेगा।
- तुल्यकालन (Synchronization): अलग-अलग मंत्रालय और विभाग अक्सर साइलो (विभाग) में काम करते हैं। परियोजना की योजना और कार्यान्वयन में समन्वय की कमी के परिणामस्वरूप देरी होती है। पीएम गति शक्ति प्रत्येक विभाग की गतिविधियों के साथ-साथ शासन के विभिन्न स्तरों के बीच काम का समन्वय सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
- विश्लेषण: योजना GIS आधारित स्थानिक योजना और 200+ स्तरों वाली विश्लेषणात्मक उपकरणों के साथ एक ही स्थान पर संपूर्ण डेटा प्रदान करेगी, जिससे निष्पादन एजेंसी को बेहतर दृश्यता मिल सकेगी।
- डायनेमिक: सभी मंत्रालय और विभाग अब GIS प्लेटफॉर्म के माध्यम से क्रॉस-सेक्टोरल परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा एवं निगरानी करने में सक्षम होंगे, क्योंकि सैटेलाइट इमेजरी से समय-समय पर ज़मीनी प्रगति के बारे में जानकारी प्राप्त होगी और परियोजनाओं की प्रगति को अपडेट किया जाएगा। पोर्टल पर नियमित रूप से यह मास्टर प्लान को बढ़ाने तथा अद्यतन करने हेतु महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेपों की पहचान करने में मदद करेगा।
- गति शक्ति डिजिटल प्लेटफॉर्म:
- इसमें एक अम्ब्रेला प्लेटफॉर्म का निर्माण शामिल है, जिसके माध्यम से विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के बीच वास्तविक समय पर समन्वय के माध्यम से बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं का निर्माण कर उन्हें प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकता है।
- यह अनिवार्य रूप से रेलवे और सड़क परिवहन सहित 16 मंत्रालयों को एक मंच पर लाने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. गति-शक्ति योजना को संयोजकता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकार और निजी क्षेत्र के मध्य सतर्क समन्वय की आवश्यकता है। विवेचना कीजिये। (मेन्स-2022) |
https://www.youtube.com/watch?v=lqIYW_4onJw
स्रोत: पी.आई.बी.
आंतरिक सुरक्षा
मानवरहित युद्ध प्रणाली और चिंताएँ
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय नौसेना, हिंद महासागर क्षेत्र, तटवर्ती क्षेत्र, कृत्रिम बुद्धिमत्ता मेन्स के लिये:मानव रहित युद्ध प्रणाली और चिंताएँ, युद्ध में AI |
चर्चा में क्यों?
भारत, सेना में मानव रहित लड़ाकू प्रणाली (UCS) को शामिल करने के अभियान पर है। अगस्त 2022 में इसने "स्वार्म ड्रोन" को अपने यंत्रीकृत बलों में शामिल किया, जो "फ्यूचर-प्रूफ" भारतीय नौसेना (IN) बनाने में स्वायत्त प्रणालियों के महत्त्व को दोहराता है।
- सशस्त्र संघर्ष में इनके बढ़ते उपयोग के बावजूद कृत्रिम बुद्धिमत्ता युक्त मानव रहित युद्ध प्रणाली कानून, नैतिकता और उत्तरदायित्त्व के प्रश्न उठाती है।
मानव रहित युद्ध प्रणाली:
- परिचय:
- मानव रहित युद्ध प्रणाली (UCS) भविष्य में युद्ध के नियमों को बदलने वाले नए युग के हथियार बनने जा रहे हैं तथा सैन्य शक्तियों के अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
- 21वीं सदी के इन तथाकथित प्रमुख हथियारों के लिये सामान्यतः कोई स्वीकृत परिभाषा नहीं है।
- अनुसंधान के अनुसार, UCS एक एकीकृत युद्ध प्रणाली है जिसमें मानव रहित लड़ाकू प्लेटफॉर्म, टास्क पेलोड, कमांड और कंट्रोल (C2) सिस्टम तथा नेटवर्क सिस्टम शामिल हैं।
- क्षेत्र अनुप्रयोगों के लिये उन्हें वर्गीकृत किया जा सकता है,
- डीप स्पेस मानव रहित प्रणाली
- मानव रहित हवाई वाहन प्रणाली
- स्थल मानव रहित प्रणाली
- भूतल मानव रहित प्रणाली
- जल के नीचे मानव रहित प्रणाली
- महत्त्व:
- तेज़ी से जटिल अंतर्राष्ट्रीय स्थिति और क्रूर सैन्य युद्धों का सामना करने में लड़ाकू सैनिकों के जीवन और सुरक्षा को बहुत खतरा होता है।
- इस समय मानव रहित लड़ाकू प्रणाली तेज़ी से महत्त्वपूर्ण होती जा रही है तथा धीरे-धीरे युद्ध के मैदान पर एक महत्त्वपूर्ण हमला और रक्षा बल बन गई है।
- स्थल मानव रहित प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह मानव रहित भागीदारी के आधार पर कुछ हथियारों और उपकरणों को ले जा सकती है तथा टोही, निगरानी, इलेक्ट्रॉनिक हस्तक्षेप एवं प्रत्यक्ष मुकाबला करने के लिये कॉन्फिगर किये गए वायरलेस संचार उपकरणों के माध्यम से इसे दूर से नियंत्रित किया जा सकता है।
- UCS (Unmanned Combat Systems) में स्वचालन की उच्च क्षमता, बेहतर रिमोट नियंत्रण, आधुनिक डिजिटल संचार क्षमता, लक्ष्य का पता लगाने और पहचान करने की उत्कृष्ट क्षमता, बेहतर बचाव तथा ज़मीनी वातावरण के लिये मज़बूत अनुकूलन क्षमता है।
AI वारफेयर द्वारा उठाई गई नैतिक चिंताएँ:
- साझा देयता का जोखिम:
- AI युद्ध नेटवर्क प्रणालियों के बीच साझा दोष के अवसरों में वृद्धि करता है, खासकर जब हथियार एल्गोरिदम बाहरी स्रोतों से प्राप्त होते हैं और उपग्रह एवं लिंक सिस्टम जो युद्ध समाधान को सक्षम करते हैं, उपयोगकर्त्ता के नियंत्रण में नहीं होते हैं।
- आत्मविश्वास की कमी:
- AI में कुछ विशेष प्रकार के डेटा की पहचान करने की विशेषता है। डेटा के संग्रह में डेटा विश्लेषण के लिये निर्देशों के सेट और संभावित परिणामों के चयन में तर्कसंगत निर्णय लेने में गड़बड़ी होने पर AI तकनीक में में विश्वास कम हो जाता है।
- युद्ध के नियमों के साथ असंगत:
- AI हथियार प्रणालियों को उन तरीकों से स्वचालित कर सकता है जो युद्ध के नियमों के साथ असंगत हैं।
- परिणामों की सूचना:
- कंप्यूटर संभाव्य आकलन के आधार पर मनुष्यों को लक्षित करने की एक प्रणाली है जो केवल मशीन से सीखे अनुभवों पर कार्य करती है। कंप्यूटर के पास एक निर्धारित निर्णय लेने के लिये न तो सभी प्रासंगिक डेटा की उपलब्धता है और न ही यह पहचानता है कि इष्टतम समाधान को प्राप्त करने हेतु उसे कितनी जानकारी की आवश्यकता है।
- यदि इसने युद्ध/संघर्ष में गलत तरीके से बल का प्रयोग किया है, तो किसी को जवाबदेह नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि मशीन पर दोष नहीं लगाया जा सकता है।
स्वार्म ड्रोन:
- परिचय:
- स्वार्म ड्रोन छोटे और हल्के हवाई वाहनों का एक संग्रह है जिसे एक ही स्टेशन से नियंत्रित किया जा सकता है।
- ये ड्रोन उन्नत संचार प्रणालियों से लैस हैं जो उन्हें सामूहिक रूप से नियंत्रित करने में सक्षम बनाती हैं।
- हमले और निगरानी मोड के लिये विभिन्न उड़ान संरचनाओं के निर्माण के लिये स्वार्म (swarm) ड्रोन संचार प्रणालियों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ संपर्क भी कर सकते हैं।
- ये ड्रोन विरोधी इकाई के खिलाफ एक संयुक्त हमले का समन्वय कर सकते हैं और एक ही मिशन पर कई तरह के पेलोड ले जा सकते हैं।
- स्वार्म/झुंड ड्रोन AI सॉफ्टवेयर और स्वार्मिंग एल्गोरिदम द्वारा संचालित होते हैं, जिससे उनमें मनुष्यों की न्यूनतम सहायता के साथ स्वायत्त रूप से कार्य करने की क्षमता होती है।
- अप्रत्याशित हमलों के मामले में AI प्रोग्राम का उपयोग लक्ष्यों की पहचान करने और प्रतिक्रिया को तीव्रता प्रदान करने के लिये भी किया जा सकता है।
- लाभ:
- हर मौसम में संचालन योग्य: स्वार्म/झुंड ड्रोन प्रणाली को अधिक ऊँचाई, खराब मौसम की स्थिति में भी इस्तेमाल किया जा सकता है
- उच्च गति और चपलता: ये ड्रोन उन्नत मोटरों द्वारा संचालित होते हैं और इनमें 100 किमी. प्रति घंटे की गति से उड़ने की क्षमता होती है जो इसे सैन्य अभियानों के लिये उच्च गति व चपलता प्रदान करते हैं।
- विभिन्न प्रकार मिशनों के लिये नियोजित: ये सशस्त्र बलों द्वारा विभिन्न प्रकार के आक्रामक और रक्षात्मक अभियानों के लिये तैनात किये जा सकते हैं क्योंकि वे टैंकों, पैदल सेना के लड़ाकू वाहनों, गोला-बारूद रखने वाले क्षेत्रों, ईंधन डंप और आतंकी लॉन्च पैड के खिलाफ हमला करने की क्षमता से पूर्ण हैं।
- ATR की विशेषता: स्वार्म ड्रोन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा संचालित हैं और स्वचालित लक्ष्य पहचान (Automatic Target Recognition- ATR) सुविधा से लैस हैं, जो उन्हें स्वचालित रूप से लक्ष्यों को पहचानने में सक्षम बनाता है। टैंकों, बंदूकों, वाहनों और मनुष्यों की पहचान करने तथा लक्ष्य भेदन संबंधी त्रुटि की संभावना को कम करने के लिये ऑपरेटरों की स्क्रीन पर जानकारी प्रदर्शित करने में सक्षम है।
आगे की राह
- सशस्त्र संघर्ष के सभी पक्षों को शत्रुता के दौरान सशस्त्र ड्रोन के किसी भी उपयोग को प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (International humanitarian law- IHL ) के सिद्धांतों का पालन करना चाहिये।
- अतः यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उनके द्वारा उपयोग किये जाने वाले किसी भी सशस्त्र ड्रोन से नागरिकों को कोई विशेष हानि न हो।
- ड्रोन हमलों में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिये पार्टियों को ड्रोन के उपयोग को नियंत्रित करने वाली अपनी नीतियों को स्पष्ट करने की आवश्यकता है, जिसमें यह भी शामिल है कि कैसे नागरिकों के नुकसान का आकलन और पीड़ितों का उपचार किया जाए।
- सशस्त्र संघर्ष में शामिल सभी पक्षों जो IHL के अनुपालन से परे हैं, पार्टियों को नागरिकों के लिये सशस्त्र ड्रोन के उनके उपयोग के मानवीय प्रभाव पर विचार करने की आवश्यकता है, जिसमें नागरिक बुनियादी ढाँचे की क्षति और मानसिक स्वास्थ्य आघात भी शामिल है।
- यह पहचानना महत्त्वपूर्ण है कि युद्ध में AI युद्ध प्रभावशीलता और नैतिकता दोनों का सवाल है। AI ने समुद्री मोर्चे पर मानव रहित सिस्टम को जोखिम में डाल दिया है, जिससे सेना को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार नियोजित करने की आवश्यकता होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित गतिविधियों पर विचार कीजिये: (2020)
तकनीक के वर्तमान स्तर पर उपर्युक्त गतिविधियों में से किसे ड्रोन के प्रयोग से सफलतापूर्वक संपन्न किया जा सकता है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |