सामाजिक न्याय
मस्जिदों में महिलाओं का प्रवेश
प्रिलिम्स के लिये:समानता का अधिकार, महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध पर इस्लामी कानून मेन्स के लिये:महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध संबंधी कानूनी मुद्दा, समानता का अधिकार |
चर्च में क्यों?
हाल ही में दिल्ली स्थित जामा मस्जिद ने मस्जिद परिसर के अंदर एकल अथवा समूह में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया, परंतु लेफ्टिनेंट-गवर्नर के हस्तक्षेप के बाद इस फैसले को वापस ले लिया है।
- इसके लिये मस्जिद से संबद्ध अधिकारियों का तर्क था कि कुछ महिलाएँ पूजा स्थल की पवित्रता का सम्मान नहीं कर पाती हैं, जैसे कि मस्जिद परिसर में वीडियो बनाना आदि।
महिलाओं के मस्जिद प्रवेश पर इस्लामी कानून
- इस्लामी कानून:
- कुरान कहीं भी महिलाओं को नमाज़ के लिये मस्जिदों में जाने से मना नहीं करता है।
- कुरान नमाज़ के लिये लिंग तटस्थता की बात करता है।
- पाँच दैनिक प्रार्थनाओं से पहले अज़ान का उच्चारण किया जाता है।
- अज़ान प्रार्थना के लिये पुरुषों और महिलाओं दोनों हेतु एक सामान्य निमंत्रण है, जो उपासकों को याद दिलाता है, 'नमाज़ और सफलता के लिये आओ'।
- कुरान कहीं भी महिलाओं को नमाज़ के लिये मस्जिदों में जाने से मना नहीं करता है।
- वैश्विक परिदृश्य:
- पूरे पश्चिम एशिया में महिलाओं के नमाज़ के लिये मस्जिद में आने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
- अमेरिका और कनाडा में भी महिलाएँ नमाज़ के लिये मस्जिदों में जाती हैं और रमज़ान में विशेष तरावीह की नमाज़ और धार्मिक पाठ के लिये भी वहाँ इकट्ठा होती हैं।
- राष्ट्रीय परिदृश्य:
- भारत में जमात-ए-इस्लामी और अहल-ए-हदीस संप्रदाय द्वारा संचालित या स्वामित्व वाली कुछ ही मस्जिदों में महिला उपासकों के लिये प्रावधान हैं।
- अधिकांश मस्जिदों में महिलाओं के मस्जिदों में प्रवेश पर स्पष्ट रूप से रोक नहीं है, लेकिन महिलाओं के लिये नमाज़ हेतु तैयार या उनके लिये अलग प्रार्थना क्षेत्र का कोई प्रावधान नहीं है।
- वे केवल पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं।
- इन संदर्भों में वे 'केवल पुरुष' तटस्थता में सीमित हो जाते हैं।
- विद्वानों की राय:
- अधिकांश इस्लामी विद्वान इस बात से सहमत हैं कि नमाज़ घर पर पढ़ी जा सकती है लेकिन यह केवल समूह में ही अदा की जा सकती है, इसलिये मस्जिद जाने का महत्त्व है।
- अधिकांश इस बात से भी सहमत हैं कि बच्चों के पालन-पोषण और अन्य घरेलू ज़िम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं को मस्जिद न आने छूट दी गई है, औपचारिक रूप से उनके मस्जिद प्रवेश की मनाही नहीं है।
प्रतिबंध के पीछे कानूनी मुद्दा
- भारत के संविधान के अनुसार पुरुषों और महिलाओं के बीच पूर्ण समानता है।
- हाजी अली दरगाह मामले में भी उच्च न्यायालय ने महिलाओं को दरगाह तक वांछित पहुँच प्रदान करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 16 और अनुच्छेद 25 का हवाला दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाएँ दायर की गई हैं जिसमें देश भर की सभी मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश की माँग की गई है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इन्हें सबरीमाला मामले से जोड़ दिया है।
क्या पहले भी ऐसी घटनाएँ हुई हैं?
- वर्ष 2011 में, मुंबई में 15वीं सदी की बेहद लोकप्रिय दरगाह, हाजी अली दरगाह के परिसर में एक ग्रिल लगा दी गई थी, जिसमें महिलाओं को उससे आगे जाने पर रोक लगा दी गई थी।
- इसके बाद कुछ महिलाओं ने इसके समाधान के लिये दरगाह प्रबंधन से गुहार लगाई।
- हालाँकि, उनके अनुरोधों को अस्वीकार किये जाने के बाद उन्होंने इस प्रक्रिया में और अधिक महिलाओं को शामिल किया और 'हाजी अली फॉर ऑल' नामक एक अभियान की शुरुआत की।
- भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन के नेतृत्त्व में महिलाओं ने बॉम्बे उच्च न्यायालय की ओर रुख किया और न्यायालय ने वर्ष 2016 में उनके पक्ष में फैसला सुनाया।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
पराली दहन
प्रिलिम्स के लिये:पराली दहन, टर्बो हैप्पी सीडर (THS) मशीन, CAQM, वायु प्रदूषण। मेन्स के लिये:पराली दहन के प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (Commission for Air Quality Management- CAQM) के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पराली जलाने की घटना में वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में 31.5% की कमी आई है।
- वर्ष 2021 की तुलना में, वर्ष 2022 में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने में क्रमशः 30%, 47.60% और 21.435% की कमी आई है। यह आकलन नासा (National Aeronautics and Space Administration- NASA) के उपग्रहों से मिली जानकारी पर आधारित है।
पराली दहन में कमी के कारण:
- राज्य सरकारों ने स्व-स्थाने और बाह्य-स्थाने पराली प्रबंधन को अपनाने के साथ-साथ पराली नहीं जलाने वाले किसानों को सम्मानित करने के लिये एक विशेष अभियान चलाया।
- पराली का स्व-स्थाने प्रबंधन: उदाहरण के लिए, ज़ीरो-टिलर मशीन द्वारा फसल अवशेषों का प्रबंधन और बायो-डीकंपोज़र (जैसे, पूसा बायो-डीकंपोज़र) का उपयोग।
- बाह्य-स्थाने (ऑफ-साइट) प्रबंधन: उदाहरण के लिए, मवेशियों के चारे के रूप में चावल के भूसे का उपयोग।
- लगभग 10 मिलियन टन पराली का निपटान स्व-स्थाने प्रबंधन के माध्यम से किया गया था, जो पंजाब में पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 25% अधिक है।
- इसी तरह 1.8 मिलियन टन पराली का प्रबंधन बाह्य-स्थाने प्रबंधन के माध्यम से किया गया था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 33% अधिक है।
- पंजाब ने तीन वर्ष के लिये कार्ययोजना बनाई थी, जिसे केंद्र सरकार के साथ साझा किया गया है।
पराली दहन (Stubble Burning):
- परिचय:
- पराली दहन, अगली फसल बोने के लिये फसल के अवशेषों को खेत में जलाने की क्रिया है।
- इसी क्रम में सर्दियों की फसल (रबी की फसल) की बुवाई हरियाणा और पंजाब के किसानों द्वारा कम अंतराल पर की जाती है तथा अगर सर्दी की छोटी अवधि के कारण फसल बुवाई में देरी होती है तो उन्हें काफी नुकसान हो सकता है, इसलिये पराली दहन पराली की समस्या का सबसे सस्ता और तीव्र तरीका है।
- पराली दहन की यह प्रक्रिया अक्तूबर के आसपास शुरू होती है और नवंबर में अपने चरम पर होती है, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी का समय भी है।
- पराली दहन का प्रभाव:
- प्रदूषण:
- खुले में पराली दहन से वातावरण में बड़ी मात्रा में ज़हरीले प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं जिनमें मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) और कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें होती हैं।
- वातावरण में छोड़े जाने के बाद ये प्रदूषक वातावरण में फैल जाते हैं, भौतिक और रासायनिक परिवर्तन से गुज़र सकते हैं तथा अंततः स्मॉग (धूम्र कोहरा) की मोटी चादर बनाकर मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
- मृदा की उर्वरता:
- भूसी को ज़मीन पर दहन से मृदा के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे इसकी उर्वरकता कम हो जाती है।
- गर्मी उत्पन्न होना:
- पराली दहन से उत्पन्न गर्मी मृदा में प्रवेश करती है, जिससे नमी और उपयोगी रोगाणुओं को नुकसान होता है।
- प्रदूषण:
- पराली दहन के विकल्प:
- पराली का स्व-स्थाने (In-Situ) प्रबंधन: ज़ीरो-टिलर मशीनों और जैव-अपघटकों के उपयोग द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन।
- इसी प्रकार बाह्य-स्थाने (Ex-Situ) प्रबंधन: जैसे मवेशियों के चारे के रूप में चावल के भूसे का उपयोग करना।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: उदाहरण के लिये टर्बो हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS) मशीन, जो पराली को जड़ समेत उखाड़ फेंकती है और साफ किये गए क्षेत्र में बीज बोवाई सकती है। इसके बाद पराली को खेत के लिये गीली घास के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- फसल पैटर्न बदलना: यह अधिक मौलिक समाधान है।
- बायो एंज़ाइम-पूसा: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agriculture Research Institute) ने बायो एंज़ाइम-पूसा (bio enzyme-PUSA) के रूप में एक परिवर्तनकारी समाधान पेश किया है।
- यह अगले फसल चक्र के लिये उर्वरक के खर्च को कम करते हुए जैविक कार्बन और मृदा स्वास्थ्य में वृद्धि करता है।
- अन्य कार्ययोजना:
- पंजाब, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) ने कृषि पराली दहन की समस्या से निपटने हेतु वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा दी गई रूपरेखा के आधार पर निगरानी के लिये विस्तृत कार्ययोजना तैयार की है।
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (Air Quality Management Commission- CAQM):
- CAQM राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
- इससे पहले आयोग का गठन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अध्यादेश, 2021 की घोषणा के माध्यम से किया गया था।
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 ने वर्ष 1998 में NCR में स्थापित पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण प्राधिकरण (EPCA) को भी भंग कर दिया।
- यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये वायु गुणवत्ता सूचकांक के बेहतर समन्वय, अनुसंधान, पहचान और समाधान एवं इससे संबंधित या आनुषंगिक मामलों हेतु स्थापित किया गया है।
आगे की राह
- जैसा कि हम जानते हैं, पराली दहन से उपयोगी कच्चा माल नष्ट हो जाता है, वायु प्रदूषित हो जाती है, श्वसन संबंधी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ जाता है। इसलिये समय की मांग है कि पराली का पशु आहार के रूप में रचनात्मक उपयोग किया जाए तथा टर्बो-हैप्पी सीडर मशीन एवं बायो-डीकंपोज़र आदि जैसे विभिन्न विकल्पों को सक्षम करके प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाए।
- कागज और कार्डबोर्ड सहित उत्पाद बनाने के लिये पराली को पुनर्चक्रीकरण किया जा सकता है।
- साथ ही इसे खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, दिल्ली के बाहर पल्ला गाँव में नंदी फाउंडेशन ने किसानों से 800 मीट्रिक टन धान के अवशेषों को खाद में बदलने के लिये खरीदा।
- फसल अवशेषों का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों जैसे चारकोल गैसीकरण, विद्युत उत्पादन, जैव-इथेनॉल के उत्पादन के लिये औद्योगिक कच्चे माल के रूप में भी किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. मुंबई, दिल्ली और कोलकाता देश के तीन मेगा शहर हैं लेकिन दिल्ली में अन्य दो की तुलना में वायु प्रदूषण अधिक गंभीर समस्या है। ऐसा क्यों है? (मुख्य परीक्षा, 2015) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-जर्मनी संबंध
प्रिलिम्स के लिये:भारत-जर्मनी संबंध, ऑयल प्राइस कैप, यूरोपीय संघ मेन्स के लिये:भारत-जर्मनी संबंध, भारत और जर्मनी के बीच सहयोग के क्षेत्र |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के विदेशमंत्री ने नई दिल्ली में जर्मनी के विदेश मंत्री से मुलाकात की।
- जर्मनी के विदेश मंत्री की यात्रा G-7 और यूरोपीय संघ (European Union- EU) के देशों द्वारा रूस से 60 डॉलर प्रति बैरल की कीमत सेअधिक मूल्य पर तेल खरीदने वाले देशों से शिपिंग एवं बीमा सेवाओं को वापस लेने के लिये "ऑयल प्राइस कैप" यानी तेल की कीमतों की सीमा निर्धारित करने संबंधी योजना की शुरुआत के साथ हुई।
दोनों देशों के बीच वार्ता के प्रमुख बिंदु:
- भारत और जर्मनी ने व्यापक प्रवासन और गतिशीलता साझेदारी पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों में लोगों के लिये अनुसंधान, अध्ययन और काम के लिये यात्रा को आसान बनाना है।
- यह समझौते दोनों देशों के बीच सबंधों के संदर्भ में "अधिक समकालीन साझेदारी का आधार" होगा।
- दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा तथा ऊर्जा संक्रमण पर भारत को जर्मनी की सहायता के साथ-साथ दोनों देशों की हिंद-प्रशांत रणनीति जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे शामिल थे इसके अलावा चीन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान पर वार्ता हुई।
G-7 और तेल मूल्य सीमा
- परिचय:
- यह यूरोपीय संघ की G-7 और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर रूस से कच्चे तेल की खेप/शिपमेंट की कीमत सीमा तय करने की योजना है, जो अभी के लिये 60 अमेरिकी डाॅलर प्रति बैरल आंकी गई है।
- इस मूल्य सीमा का मुख्य उद्देश्य हस्ताक्षरकर्त्ता देशों में कंपनियों को रूसी कच्चे तेल के कार्गो जहाज़ों को शिपिंग, बीमा, मध्यस्थता और अन्य संबद्ध सेवाओं को विस्तारित करने से प्रतिबंधित करना है जहाँ कच्चा तेल पूर्व निर्धारित प्रति बैरल 60 अमेरिकी डॉलर से अधिक किसी भी मूल्य पर बेचा गया हो।
- चूँकि यह 5 दिसंबर, 2022 को प्रभावी हुआ था, इसलिये यह सीमा केवल उन शिपमेंट पर लागू होगी जो प्रभावी होनेके बाद जहाज़ों पर "लोड" हुए हैं और पारगमन में शिपमेंट पर लागू नहीं होगा।
- भारत का पक्ष:
- यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस पर संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रतिबंधों के बावजूद, भारत ने न केवल जारी रखने का फैसला किया है, बल्कि "निकट भविष्य" में रूस के साथ अपने व्यापार को भी दोगुना कर दिया है।
- यूक्रेन में युद्ध के बाद से रूसी तेल की खपत बढ़ाने के सरकार के फैसले के बचाव में यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि भारत की रूसी तेल की खपत यूरोपीय खपत का केवल छठा हिस्सा थी। इसकी तुलना प्रतिकूल रूप से नहीं की जानी चाहिये।
- यूक्रेन में युद्ध के बाद से रूसी तेल की खपत बढ़ाने के सरकार के फैसले के बचाव में यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि भारत की रूसी तेल की खपत यूरोपीय खपत का केवल छठा हिस्सा थी। इसकी तुलना प्रतिकूल रूप से नहीं की जानी चाहिये।
- यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस पर संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रतिबंधों के बावजूद, भारत ने न केवल जारी रखने का फैसला किया है, बल्कि "निकट भविष्य" में रूस के साथ अपने व्यापार को भी दोगुना कर दिया है।
भारत-जर्मनी संबंध
- भारत-जर्मनी संबंध:
- भारत और जर्मनी के बीच के द्विपक्षीय संबंध साझा लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित हैं। भारत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी संघीय गणराज्य के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक था।
- जर्मनी, भारत को विकास परियोजनाओं में प्रति वर्ष 3 बिलियन यूरो का सहयोग देता है, जिसमें से 90% जलवायु परिवर्तन से मुकाबले और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के साथ-साथ स्वच्छ एवं हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के उद्देश्य में काम आता है।
- जर्मनी महाराष्ट्र में 125 मेगावाट क्षमता के एक विशाल सौर संयंत्र के निर्माण में भी सहयोग कर रहा है, जो 155,000 टन वार्षिक CO2 उत्सर्जन की बचत करेगा।
- दिसंबर 2021 में जर्मनी के नए चांसलर की नियुक्ति के बाद भारत और जर्मनी ने सहमति व्यक्त की है कि दुनिया के प्रमुख लोकतांत्रिक देशों तथा रणनीतिक भागीदारों के रूप में दोनों देश साझा चुनौतियों से निपटने के लिये आपसी सहयोग की वृद्धि करेंगे, जहाँ जलवायु परिवर्तन उनके एजेंडे में शीर्ष विषय के रूप में शामिल होगा।
- जर्मनी, भारत को विकास परियोजनाओं में प्रति वर्ष 3 बिलियन यूरो का सहयोग देता है, जिसमें से 90% जलवायु परिवर्तन से मुकाबले और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के साथ-साथ स्वच्छ एवं हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के उद्देश्य में काम आता है।
- भारत और जर्मनी के बीच के द्विपक्षीय संबंध साझा लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित हैं। भारत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी संघीय गणराज्य के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक था।
- आर्थिक सहयोग की चुनौती:
- वर्तमान में दोनों देशों के बीच एक पृथक द्विपक्षीय निवेश संधि का अभाव है। जर्मनी का भारत के साथ यूरोपीय संघ के माध्यम से द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश समझौता (Bilateral Trade and Investment Agreement- BTIA) कार्यान्वित है जहाँ उसके पास अलग से वार्ता कर सकने का अवसर नहीं है।
- इसके अलावा जर्मनी विशेष रूप से भारत के व्यापार उदारीकरण उपायों को लेकर संदेह रखता है और अधिक उदार श्रम नियमों की अपेक्षा रखता है।
- वर्तमान में दोनों देशों के बीच एक पृथक द्विपक्षीय निवेश संधि का अभाव है। जर्मनी का भारत के साथ यूरोपीय संघ के माध्यम से द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश समझौता (Bilateral Trade and Investment Agreement- BTIA) कार्यान्वित है जहाँ उसके पास अलग से वार्ता कर सकने का अवसर नहीं है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व:
- हिंद-प्रशांत (जिसका केंद्र बिंदु भारत है) जर्मनी और यूरोपीय संघ की विदेश नीति में अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वैश्विक आबादी के लगभग 65% का निवास है और विश्व के 33 मेगासिटीज़ में से 20 इसी क्षेत्र में हैं।
- यह क्षेत्र वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 62% और वैश्विक पण्य व्यापार में 46% की हिस्सेदारी रखता है।
- यह क्षेत्र कुल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के आधे से अधिक भाग का उद्गम क्षेत्र भी है जो इस क्षेत्र के देशों को स्वाभाविक रूप से जलवायु परिवर्तन और संवहनीय ऊर्जा उत्पादन एवं उपभोग जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने में प्रमुख भागीदार बनाता है।
- हिंद-प्रशांत (जिसका केंद्र बिंदु भारत है) जर्मनी और यूरोपीय संघ की विदेश नीति में अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।
- जर्मनी और हिंद-प्रशांत:
- जर्मनी नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को सशक्त करने में अपने योगदान के लिये प्रतिबद्ध है।
- जर्मनी के हिंद-प्रशांत दिशा-निर्देशों के अंतर्गत संलग्नता की वृद्धि और उद्देश्यों की पूर्ति के लिये भारत का उल्लेख किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विषयों पर चर्चा में भारत अब एक महत्त्वपूर्ण संधि या नोड बन सकता है।
- चूँकि भारत एक समुद्री महाशक्ति है और मुक्त एवं समावेशी व्यापार का मुखर समर्थक है, वह इस मिशन में जर्मनी (अंततः यूरोपीय संघ) का एक प्राथमिक भागीदार है।
- जर्मनी नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को सशक्त करने में अपने योगदान के लिये प्रतिबद्ध है।
आगे की राह
- भारत-जर्मनी संबंधों को मज़बूत करना:
- जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा और अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा सहित विभिन्न वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिये जर्मनी, भारत को एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है।
- इसके साथ ही जर्मनी में सत्ता में आई नई गठबंधन सरकार भारत के लिये दोनों देशों के बीच की रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने का अवसर प्रदान कर रही है।
- जर्मनी चीन का मुकाबला करने के लिये यूरोपीय संघ के माध्यम से कनेक्टिविटी परियोजनाओं को लागू करने का इच्छुक है। यह गठबंधन ‘भारत-यूरोपीय संघ BTIA’ के संपन्न होने की इच्छा रखता है और इसे संबंधों के विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण पहलू के रूप में देखता है।
- जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा और अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा सहित विभिन्न वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिये जर्मनी, भारत को एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है।
- आर्थिक सहयोग का दायरा:
- भारत और जर्मनी को बौद्धिक संपदा दिशा-निर्देशों के सहकारी लक्ष्यों को साकार करना चाहिये और व्यवसायों को भी संलग्न करना चाहिये।
- जर्मन कंपनियों को भारत में विनिर्माण केंद्र स्थापित करने के लिये उदारीकृत उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजना का लाभ उठाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- जर्मनी ने एक वैक्सीन उत्पादन प्रतिष्ठान के लिये अफ्रीका को 250 मिलियन यूरो का ऋण देने की प्रतिबद्धता जताई है। भारत के सहयोग से सुविधाहीन पूर्वी अफ्रीकी क्षेत्र में ऐसा प्रतिष्ठान स्थापित किया जा सकता है।
- भारत और जर्मनी को बौद्धिक संपदा दिशा-निर्देशों के सहकारी लक्ष्यों को साकार करना चाहिये और व्यवसायों को भी संलग्न करना चाहिये।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उत्तरदायित्त्वों की साझेदारी:
- भारत की ही तरह जर्मनी भी एक व्यापारिक राष्ट्र है। जर्मन व्यापार का 20% से अधिक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संपन्न होता है।
- यही कारण है कि जर्मनी और भारत विश्व के इस हिस्से में स्थिरता, समृद्धि और स्वतंत्रता को बनाए रखने तथा उसका समर्थन करने का उत्तरदायित्व साझा करते हैं। एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत के समर्थन में भारत और यूरोप दोनों के महत्त्वपूर्ण हित निहित हैं।
- भारत की ही तरह जर्मनी भी एक व्यापारिक राष्ट्र है। जर्मन व्यापार का 20% से अधिक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संपन्न होता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. व्यापक-आधारयुक्त व्यापार और निवेश करार (Broad-based Trade and Investment Agreement- BTIA)’ कभी-कभी समाचारों में भारत और निम्नलिखित में से किस एक के बीच बातचीत के संदर्भ में दिखाई पड़ता है? (2017) (a) यूरोपीय संघ उत्तर: (a) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
विझिंजम बंदरगाह परियोजना
प्रिलिम्स के लिये:विझिंजम में अडानी बंदरगाह, PPP मेन्स के लिये:भारत में विकास परियोजनाओं संबंधी मुद्दे और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अडानी समूह ने केरल उच्च न्यायालय में विझिंजम में बंदरगाह निर्माण स्थल पर सुरक्षा बलों को भेजने के लिये याचिका दायर की, जो हिंसक मछुआरों के विरोध से बाधित हो रहा है।
विझिंजम बंदरगाह परियोजना
- परिचय:
- यह 7,525 करोड़ रुपए की बंदरगाह परियोजना है, जिसे केरल के तिरुवनंतपुरम के पास विझिंजम में अडानी पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ सार्वजनिक निजी भागीदारी (Public Private Partnership- PPP) मॉडल के तहत बनाया जा रहा है।
- इसके निर्माण की समय सीमा दिसंबर 2015 निर्धारित की गई थी और तब से इसके पूरा होने की समय सीमा से समाप्त हो गई है।
- बंदरगाह में 30 बर्थ हैं, जो विशाल "मेगामैक्स" कंटेनर जहाज़ों को संभालने में सक्षम होंगे।
- महत्त्व:
- ऐसा माना जाता है कि प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग मार्गों के करीब स्थित अल्ट्रामॉडर्न पोर्ट, भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के साथ इस स्थान का सामरिक महत्त्व भी है।
- ट्रांस-शिपमेंट ट्रैफिक के संदर्भ में यह बंदरगाह कोलंबो, सिंगापुर और दुबई के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम है।
- बंदरगाह के लाभों में तट के एक समुद्री मील के भीतर 20-मीटर समोच्च होना, तट के किनारे कोई बहाव नहीं होना, रखरखाव के लिये कम आवश्यकता, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय रेल तथा सड़क नेटवर्क से कनेक्शन एवं प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग लेन से निकटता शामिल है।
मछुआरों के विरोध का कारण:
- मछुआरे पिछले चार महीनों से इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं, उनका आरोप है कि इसके निर्माण से बड़े पैमाने पर समुद्री कटाव हो रहा है, जिससे उनकी आजीविका और आवास का ह्रास हो रहा है।
- उनकी मांग हैं कि एक प्रभावी अध्ययन किया जाए और अध्ययन रिपोर्ट आने तक परियोजना को निलंबित रखा जाए।
- मछुआरा समुदाय ने छह अन्य मांगें भी रखी हैं:
- तटीय क्षरण में अपना घर गँवाने वाले परिवारों का पुनर्वास
- तटीय क्षरण को कम करने के लिये प्रभावी कदम
- मौसम की चेतावनी जारी किये जाने वाले दिनों में मछुआरों को वित्तीय सहायता
- मत्स्यन की दुर्घटनाओं में मारे गए लोगों के परिवारों को मुआवज़ा
- सब्सिडी युक्त केरोसिन
- तिरुवनंतपुरम ज़िले के अंचुथेंगु में मुथलप्पोझी बंदरगाह को साफ करने हेतु एक तंत्र की स्थापना।
- केरोसिन सब्सिडी की मांग यह कहकर की गई है कि इस परियोजना के कारण मछुआरों को मत्स्यन के लिये गहरे समुद्र में जाना पड़ता है, जिससे ईंधन लागत का बोझ बढ़ जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. हाल ही में निम्नलिखित राज्यों में से किसने एक लम्बे नौसंचालन चैनल द्वारा समुद्र से जोड़े जाने के लिये एक कृत्रिम अंतर्देशीय बंदरगाह के निर्माण की संभावना का पता लगाया है? (2016) (a) आंध्र प्रदेश उत्तर: (d) व्याख्या:
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स्रोत: लाइव मिंट
शासन व्यवस्था
धारावी पुनर्विकास परियोजना
प्रिलिम्स के लिये:धारावी पुनर्विकास परियोजना, धारावी मेन्स के लिये:शहरी विकास से संबंधित नवीनतम पहल |
चर्चा में क्यों?
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने धारावी पुनर्विकास परियोजना के कारण माहिम राष्ट्रीय उद्यान के हटाये जाने के संबंध में दाखिल जनहित याचिका पर धारावी पुनर्विकास परियोजना प्राधिकरण से जवाब मांगा है।
- माहिम राष्ट्रीय उद्यान भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत एक संरक्षित वन है।
धारावी पुनर्विकास परियोजना:
- धारावी पुनर्विकास परियोजना मुंबई के स्लम (झुग्गी-झोपड़ी) इलाके का नवीनीकरण है।
- इस परियोजना पर पहली बार वर्ष 2004 में विचार किया गया था परंतु विभिन्न कारणों से इस पर कभी काम नहीं हुआ।
- हाल ही में अदानी ग्रुप को इस परियोजना का कार्यभार मिला।
- 68,000 व्यक्तियों, जिनमें झुग्गियों में रहने वाले और व्यवसाय करने वाले लोग शामिल हैं, को स्थानांतरित किया जाना आपेक्षित है।
- पुनर्वास निर्माण में 23,000 करोड़ रुपए की लागत अनुमानित है।
- इसके क्रियान्वयन हेतु SPV में अडानी की 80% इक्विटी होगी, जबकि राज्य सरकार की 20% हिस्सेदारी होगी।
- एक स्पेशल पर्पज व्हीकल (SPV) का गठन किया जाना है, जिसमें अडानी प्रमुख भागीदार होंगे।
- SPV के माध्यम से पात्र झुग्गी निवासियों के लिये मुफ्त आवास का निर्माण किया जाएगा, जिसमें पानी और बिजली की आपूर्ति, सीवेज निपटान, पाइप गैस आदि जैसी सुविधाएंँ और बुनियादी ढांँचे शामिल होंगे।
धारावी
- धारावी एशिया में झुग्गी बस्तियों का सबसे बड़ा समूह है। यह मुंबई के ठीक मध्य में स्थित है।
- यह 300 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जिसमें से 240 हेक्टेयर भूमि को राज्य सरकार ने परियोजना हेतु अधिसूचित किया है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1882 में ब्रिटिश काल के दौरान हुई थी।
- 18वीं शताब्दी के दौरान, जब मुंबई के शहरीकरण की प्रक्रिया चल रही उस समय में वहाँ गैर-नियोजित क्षेत्रों में वृद्धि होने लगी थी।
- धारावी में लगभग .50 मिलियन लोग रहते हैं।
- वर्तमान में अनुमानतः 56,000 परिवारों के अलावा, यहाँ मिट्टी के बर्तनों से लेकर चमड़े के काम तक हज़ारों छोटे वाणिज्यिक प्रतिष्ठान विद्यमान हैं।
- लेकिन यहाँ के जनसंख्या घनत्त्व और विभिन्न मूलभूत सुविधाओं की कमी को देखते हुए लोगों के जीवन-यापन की स्थिति बहुत अधिक खराब है।
शहरी विकास से संबंधित हाल की पहल
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न: स्थानीय स्वशासन को एक अभ्यास के रूप में सर्वोत्तम रूप से समझाया जा सकता है। (2017) (a) संघवाद उत्तर: (b) व्याख्या:
प्रश्न: क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं? (मुख्य परीक्षा, 2014) |