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डेली न्यूज़

  • 06 Jan, 2021
  • 22 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

खाड़ी देशों के बीच ‘एकजुटता और स्थिरता’ समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खाड़ी देशों ने सऊदी अरब के अल उला (Al Ula) में आयोजित 41वें खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) शिखर सम्मेलन में ‘एकजुटता और स्थिरता’ समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

Gulf-Cooperation-Council

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि 

  • कतर पर प्रतिबंध:
    • जून 2017 में सऊदी अरब और उसके सहयोगी देशों (संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन तथा मिस्र) ने कतर के साथ संबंध समाप्त करते हुए उसके खिलाफ संपूर्ण (जलीय, हवाई और भूमि संबंधी) नाकाबंदी लागू कर दी थी।
  • कारण
    • कतर पर आरोप लगाया गया था कि वह ईरान के साथ संबंध मज़बूत कर रहा है और कट्टरपंथी इस्लामी समूहों का समर्थन करता है।
    • कतर पर ईरान और मुस्लिम ब्रदरहुड (सऊदी अरब तथा संयुक्त अरब अमीरात द्वारा प्रतिबंधित एक सुन्नी इस्लामी राजनीतिक समूह) के समर्थन से आतंक फैलाने और उसे वित्तपोषित करने का आरोप लगाया गया था।

‘एकजुटता और स्थिरता’ समझौता 

  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्यों ने कतर पर लागू सभी प्रतिबंधों को हटाने और कतर के लिये अपने भूमि, समुद्र और हवाई मार्ग को फिर से खोलने हेतु अल उला (सऊदी अरब) में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देश हैं।
  • कारण
    • इस समझौते का उद्देश्य खाड़ी क्षेत्र को बढ़ावा देने के प्रयासों में एकजुटता लाना और खाड़ी देशों के समक्ष मौजूद चुनौतियों, विशेषतः ईरान के परमाणु व बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम तथा उसकी अन्य विनाशकारी योजनाओं के कारण उत्पन्न चुनौतयों का एकजुटता से सामना करना है।

खाड़ी सहयोग परिषद (GCC)

  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) एक राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और क्षेत्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना 1981 में बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब तथा संयुक्त अरब अमीरात के बीच संपन्न एक समझौते के माध्यम से की गई थी। ध्यातव्य है कि भौगोलिक निकटता, इस्लाम आधारित समान राजनीतिक प्रणाली और सामान्य उद्देश्य के कारण इन सभी देशों के बीच एक विशिष्ट संबंध मौजूद है।
  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) की संरचना में सर्वोच्च परिषद (उच्चतम प्राधिकरण), मंत्रिस्तरीय परिषद और सेक्रेटेरियेट जनरल आदि शामिल हैं। 
    • सचिवालय सऊदी अरब के रियाद में स्थित है।

खाड़ी क्षेत्र के साथ भारत के संबंध 

भारत और खाड़ी सहयोग परिषद

  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के साथ भारत के आर्थिक और राजनीतिक संबंधों में हाल के कुछ वर्षों में काफी सुधार हुआ है।
  • दोनों के मैत्रीपूर्ण संबंधों की पुष्टि इस बात से की जा सकती है कि भारत और खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य देशों के बीच 121 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार होता है, साथ ही खाड़ी देशों में रहने वाले तकरीबन 9 मिलियन अप्रवासी कामगारों द्वारा 49 बिलियन डॉलर धनराशि प्रेषण के माध्यम से भारत में भेजी जाती है।
  • भारत के क्रूड आयात में GCC के आपूर्तिकर्त्ताओं का लगभग 34 प्रतिशत हिस्सा है।

भारत और ईरान 

  • भारत ने हमेशा ईरान के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध साझा किये हैं, हालाँकि भारत-ईरान संबंध अमेरिका के दबाव के कारण मौजूदा समय में अपने सबसे जटिल दौर से गुज़र रहे हैं।
  • मई 2018 में अमेरिका ने ईरान परमाणु समझौते (संयुक्त व्यापक क्रियान्वयन योजना) की आलोचना करते हुए इससे हटने का निर्णय लिया तथा ईरान के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंधों को और कड़ा कर दिया गया। 

भारत और कतर 

  • हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने कतर के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की और दोनों देशों के बीच आर्थिक एवं सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने पर चर्चा की।
  • कतर के साथ भारत मैत्रीपूर्ण संबंध साझा करता है और भारत ने कतर पर प्रतिबंधों के समय भी तेल समृद्ध इस देश के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे।

इस क्षेत्र में भारत की समग्र भूमिका

  • भारत ने सदैव ही इस क्षेत्र के स्थानीय या क्षेत्रीय विवादों में शामिल होने से परहेज़ किया है, क्योंकि भारतीय हितों को शक्ति प्रदर्शन की नहीं बल्कि शांति एवं क्षेत्रीय स्थिरता की आवश्यकता है।
  • खाड़ी देश भारत के शीर्ष व्यापारिक भागीदार देशों में शामिल हैं जो भारत में ऊर्जा आयात की बढ़ती मात्रा तथा खाड़ी देशों के बीच ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ती परस्पर-निर्भरता को चिह्नित करता है। साथ ही खाड़ी देशों से भारत के हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश की संभावना है।
  • राजनीतिक सहयोग के साथ-साथ सुरक्षा क्षेत्र, खासतौर पर आतंकवाद-रोधी कार्यों में भारत और खाड़ी देशों के बीच सहयोग में काफी बढ़ोतरी हुई है।
  • भारत और खाड़ी देश रक्षा क्षेत्र में सहयोग के लिये भी यथासंभव कदम उठा रहे हैं।
    • उदाहरण: बहुराष्ट्रीय मेगा अभ्यास 'मिलन’ में सऊदी अरब, ओमान, कुवैत और अन्य खाड़ी देशों की भागीदारी रही।

आगे की राह

  • खाड़ी क्षेत्र का भारत के लिये ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक महत्त्व है। भारत और खाड़ी सहयोग परिषद के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) दोनों के द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक मज़बूती प्रदान कर सकता है।
  • विश्लेषकों का अनुमान है कि मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में सऊदी अरब एक लुप्त होती शक्ति है, जबकि संयुक्त अरब अमीरात, कतर और ईरान नए क्षेत्रीय शक्तियों के रूप में उभर रहे हैं। ओमान तथा इराक को अपनी संप्रभु पहचान बनाए रखने के लिये संघर्ष करना होगा।
  • इस प्रकार भारतीय हितों के लिये यही सबसे बेहतर होगा कि इस क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग के माध्यम से स्थिरता सुनिश्चित की जाए, क्योंकि यदि प्रतिस्पर्द्धी सुरक्षा का विकल्प अपनाया जाता है तो इस क्षेत्र में स्थिरता लाना काफी चुनौतीपूर्ण होगा।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

एशियाई जलपक्षी गणना -2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आंध्र प्रदेश में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (Bombay Natural History Society- BNHS) के विशेषज्ञों के तत्त्वावधान में दो दिवसीय एशियाई जलपक्षी गणना-2020 (Asian Waterbird Census-2020)  संपन्न हुई।

प्रमुख बिंदु: 

  • प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में एशिया और ऑस्ट्रेलिया के हज़ारों स्वयंसेवकों द्वारा अपने देश में आर्द्रभूमियों (Wetlands) की यात्रा की जाती है और इस दौरान वे वाटरबर्ड्स/जलपक्षियों   की गिनती करते हैं। इस नागरिक विज्ञान कार्यक्रम (Citizen Science Programme) को एशियाई जलपक्षी गणना (AWC) कहा जाता है।
  • AWC,  ग्लोबल वॉटरबर्ड मॉनीटरिंग प्रोग्राम (Global Waterbird Monitoring programme) तथा  इंटरनेशनल वॉटरबर्ड सेंसस ( International Waterbird Census-IWC) का एक अभिन्न अंग है, जो वेटलैंड्स इंटरनेशनल (Wetlands International) द्वारा समन्वित है।
    • IWC का संचालन 143 देशों में किया जाता है, यह आर्द्रभूमि साइटों पर जलपक्षियों की संख्या के बारे में जानकारी एकत्र करने से संबंधित है।
    • वेटलैंड्स इंटरनेशनल एक ग्लोबल नॉट-फॉर-प्रॉफिट ऑर्गेनाइज़ेशन है जो आर्द्रभूमियों  के संरक्षण और बहाली के लिये समर्पित है।
    • इसका संचालन अफ्रीका, यूरोप, पश्चिम एशिया, नियोट्रोपिक्स और कैरिबियन में अंतर्राष्ट्रीय जलपक्षी गणना  के अन्य क्षेत्रीय कार्यक्रमों के समानांतर होता है।

विस्तार:

  •  एशियाई जलपक्षी गणना को वर्ष 1987 में भारतीय उपमहाद्वीप में शुरू किया गया तथा इसका विस्तार तेज़ी से अफगानिस्तान से पूर्व की ओर जापान, दक्षिण-पूर्व एशिया और आस्ट्रेलिया तक हो गया है।
  •  जलपक्षी गणना में पूरे पूर्वी एशियाई - ऑस्ट्रेलियाई फ्लाइवे और मध्य एशियाई फ्लाइवे का एक बड़ा हिस्सा शामिल है।
    • पूर्वी एशिया- ऑस्ट्रेलिया फ्लाइवे आर्कटिक रूस और उत्तरी अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया तथा  न्यूज़ीलैंड की दक्षिणी सीमा तक फैला हुआ है। इसमें पूर्वी एशिया एवं दक्षिण-पूर्व एशिया का बड़ा क्षेत्र शामिल हैं जिसमें पूर्वी भारत तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं।
    • मध्य एशियाई फ्लाइवे (Central Asian Flyway- CAF) आर्कटिक और भारतीय महासागरों और संबद्ध द्वीप शृंखलाओं के बीच यूरेशिया के एक बड़े महाद्वीपीय क्षेत्र को कवर करता है।

लाभ:

  • गणना से न केवल पक्षियों की वास्तविक संख्या का पता चलता है बल्कि आर्द्रभूमि की वास्तविक स्थिति का भी अंदाजा लगता है, अर्थात् जलपक्षियों की उच्च संख्या यह इंगित करती हैं कि आर्द्रभूमि क्षेत्र में भोजन की पर्याप्त मात्रा , पक्षियों के आराम करने, रोस्टिंग (Roosting) और फोर्जिंग (Foraging) स्पॉट विद्यमान हैं।
  • एकत्र की गई जानकारी राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित क्षेत्रों, रामसर साइट्स, पूर्वी एशियाई - ऑस्ट्रेलियन फ्लाइवे नेटवर्क साइट्स, महत्वपूर्ण पक्षी और जैव विविधता क्षेत्रों जैसे अंतर्राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण स्थलों के निर्धारण और प्रबंधन को बढ़ावा देने में सहायक होती है।
  • यह कन्वेंशन ऑन माइग्रेटरी स्पीसीज़ (Convention on Migratory Species- CMS) और कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (Convention on Biological Diversity‘s- CBD) को लागू करने में भी मदद करता है।

भारत में एशियाई जलपक्षी गणना:

  • भारत में AWC को बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी और वेटलैंड्स इंटरनेशनल द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है।
    • BNHS एक अखिल भारतीय वन्यजीव अनुसंधान संगठन है, जो वर्ष 1883 से प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा दे रहा है।
  • भारत में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण AWC साइटों और वेटलैंड IBA की एक संदर्भ सूची तैयार की गई है।
    • भारत में कुल 42 रामसर स्थल हैं, इनमें लद्दाख का त्सो कर वेटलैंड  नवीनतम शामिल क्षेत्र है।
    • बर्डलाइफ से संबंधित महत्त्वपूर्ण पक्षी और जैव विविधता क्षेत्र (Important Bird and Biodiversity Area- IBA) कार्यक्रम पक्षियों और अन्य वन्यजीवों के संरक्षण हेतु प्राथमिकता वाले स्थलों के वैश्विक नेटवर्क की पहचान, निगरानी और सुरक्षा करता है। भारत में ऐसी 450 से अधिक साइटें विद्यमान हैं।
    • फरवरी 2020 में  गुजरात की राजधानी गांधीनगर में ‘वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS) की शीर्ष निर्णय निर्मात्री निकाय कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP) के 13वें सत्र का आयोजन किया गया।
      • COP13 में CMS परिशिष्ट में दस नई प्रजातियांँ शामिल की गईं। इनमें एशियाई हाथी ( Asian Elephant), जगुआर (Jaguar), ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian Bustard), बंगाल फ्लोरिकन (Bengal Florican) इत्यादि सहित सात प्रजातियों को परिशिष्ट-1 (जो कि सबसे कड़ी सुरक्षा प्रदान करता है) में शामिल किया गया था।
    • भारत द्वारा दिसंबर 2018 में जैव विविधता सम्मेलन (Convention on Biological Diversity- CBD) पर अपनी छठी राष्ट्रीय रिपोर्ट (NR6) प्रस्तुत की गई।

स्रोत: द हिंदू 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नील नदी पर विवाद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इथियोपिया, सूडान और मिस्र ने हॉर्न ऑफ अफ्रीका में ग्रैंड रेनेसां डैम (Grand Rennaissance Dam) जलविद्युत परियोजना पर लंबे समय से चल रहे जटिल विवाद को हल करने के लिये फिर से बातचीत शुरू करने पर सहमति व्यक्त की है।

  • हॉर्न ऑफ अफ्रीका, अफ्रीकी भूमि का सबसे पूर्वी विस्तार है और इसमें ज़िबूती, इरिट्रिया, इथियोपिया तथा सोमालिया देशों के क्षेत्र शामिल हैं, जिनकी संस्कृतियों को उनके लंबे इतिहास से जोड़ा गया है।
  • 'ग्रैंड रेनेसां डैम' का निर्माण इथियोपिया द्वारा नील नदी पर किया जा रहा है।

Horn-Of-Africa

प्रमुख बिंदु:

विवाद:

  • अफ्रीका की सबसे लंबी नदी नील एक दशक से चल रहे जटिल विवाद के केंद्र में है, इस विवाद में कई देश शामिल हैं जो नदी के जल पर निर्भर हैं।
  • ग्रैंड रेनेसां डैम:
    • इथियोपिया द्वारा 145 मीटर लंबे (475 फुट लंबा) पनबिजली प्रोजेक्ट का निर्माण शुरू किया जाना इस विवाद का प्रमुख कारण है ।
    • बाँध के चलते इथियोपिया नील नदी के जल पर नियंत्रण कर सकता है। यह मिस्र के लिये चिंता का विषय है क्योंकि मिस्र नील नदी के अनुप्रवाह क्षेत्र में स्थित है।
      • ब्लू नील, नील नदी की एक सहायक नदी है और यह पानी की मात्रा का दो-तिहाई भाग तथा अधिकांश गाद को वहन करती है।
    • इस विवाद में सबसे आगे इथियोपिया, मिस्र और सूडान हैं।
  • इथियोपिया के लिये बाँध का महत्त्व:
    • इथियोपिया का मानना है कि बाँध निर्माण से लगभग 6,000 मेगावाट विद्युत उत्पन्न की जा सकेगी। इथियोपिया की 65% आबादी वर्तमान में विद्युत की कमी का सामना कर रही है। 
    • बाँध निर्माण से देश के विनिर्माण उद्योग को मदद मिलेगी तथा पड़ोसी देशों को विद्युत की आपूर्ति किये जाने से राजस्व में वृद्धि की संभावना है। 
      • केन्या, सूडान, इरिट्रिया और दक्षिण सूडान जैसे पड़ोसी देश भी विद्युत की कमी से प्रभावित हैं और यदि इथियोपिया उन्हें विद्युत बेचने का फैसला करता है, तो वे भी जलविद्युत परियोजना से लाभान्वित हो सकते हैं।
  • मिस्र की चिंता:
    • यह मिस्र के लिये चिंता का विषय है क्योंकि मिस्र नील नदी के अनुप्रवाह क्षेत्र में स्थित है। मिस्र का मानना है कि नदी पर इथियोपिया का नियंत्रण होने से उसकी सीमाओं के भीतर  जल स्तर कम हो सकता है।
    • मिस्र पेयजल और सिंचाई की आपूर्ति के लिये आवश्यक पानी के लगभग 97% हेतु नील नदी पर निर्भर है।
    • यह बाँध मिस्र के आम नागरिकों की खाद्य और जल सुरक्षा तथा आजीविका को खतरे में डाल सकता है।
  • सूडान का रुख:
    • सूडान भी इस बात से चिंतित है कि यदि इथियोपिया नदी पर नियंत्रण करता है तो यह सूडान के जल स्तर को प्रभावित करेगा
    • बाँध से उत्पन्न बिजली से सूडान को लाभ होने की संभावना है।
    • नदी का विनियमित प्रवाह सूडान को अगस्त और सितंबर माह में आने वाली गंभीर बाढ़ से बचाएगा। इस प्रकार इसने बाँध के संयुक्त प्रबंधन का प्रस्ताव दिया है।

 वर्तमान स्थिति:

  • इथियोपिया, सूडान और मिस्र के बीच वार्ताओं के नवीनतम दौर का आयोजन दक्षिण अफ्रीका तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की उपस्थिति में किया गया। 
  • पिछली बातचीत के बावजूद विवाद का मुद्दा नहीं बदला है।

नील नदीNile-River

  • नील नदी अफ्रीका में स्थित है। यह भूमध्यरेखा के दक्षिण में बुरुंडी से निकलकर उत्तर-पूर्वी अफ्रीका से होकर भूमध्य सागर में गिरती है। 
  • स्रोत
    • नील नदी की दो प्रमुख सहायक नदियाँ- व्हाइट नील और ब्लू नील हैं। व्हाइट नील नदी का उद्गम मध्य अफ्रीका के ‘महान अफ्रीकी झील’ (African Great Lakes) क्षेत्र से होता है, जबकि ब्लू नील का उद्गम इथियोपिया की 'लेक टाना' से होता है। 
  • नील नदी को दुनिया की सबसे लंबी नदियों में से एक माना जाता है।
  • नील नदी की लंबाई लगभग 6,695 किलोमीटर (4,160 मील) है।
  • नील नदी का बेसिन काफी विशाल है और इसमें तंजानिया, बुरुंडी, रवांडा, कांगो और केन्या आदि देश शामिल हैं।
  • नील नदी एक चापाकार डेल्टा का निर्माण करती है। त्रिकोणीय अथवा धनुषाकार आकार वाले डेल्टा को चापाकार डेल्टा कहा जाता है।

आगे की राह

  • विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिये पड़ोसी देशों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों की भूमिका तथा मध्यस्थता काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • यदि सभी पक्ष विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से वार्ता के माध्यम से हल करने में असमर्थ रहते हैं, तो अंततः विवाद की समाप्ति के लिये एक मुआवज़ा पद्धति को अपनाया जा सकता है, जिसमें सभी देशों को एक-दूसरे के नुकसान की भरपाई करनी होगी।
  • इसलिये विवाद में शामिल सभी देशों को शांतिपूर्ण ढंग से इस मुद्दे को हल करने की आवश्यकता है, ताकि सभी देश जहाँ तक संभव हो बाँध का फायदा उठा सकें और इस क्षेत्र में शांति एवंसुरक्षा फिर से बहाल की जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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