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डेली न्यूज़

  • 05 Dec, 2019
  • 33 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत सरकार और ADB के बीच समझौता

प्रीलिम्स के लिये:

एशियाई विकास बैंक

मेन्स के लिये:

भारत और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank-ADB) और भारत सरकार ने तमिलनाडु के चुने हुए शहरों में पानी की आपूर्ति और सीवरेज के बुनियादी ढाँचे को विकसित करने तथा शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies-ULB ) की क्षमताओं को मज़बूत करने के लिये 206 मिलियन डॉलर के ऋण के समझौते पर हस्ताक्षर किये।

प्रमुख बिंदु:

  • यह तमिलनाडु अर्बन फ्लैगशिप इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम (Tamilnadu Urban Flagship Investment Programme) के तहत ADB समर्थित 500 मिलियन डॉलर मल्टी-ट्रेंच वित्तपोषण के लिये दिया गया दूसरा परियोजना ऋण है।
  • इसके अंतर्गत तमिलनाडु के कुल 10 शहरों में पानी की आपूर्ति, सीवरेज और जल निकासी के बुनियादी ढाँचे का विकास किया जाएगा।
  • वर्तमान समय में पहली परियोजना 169 मिलियन डॉलर के वित्तपोषण के साथ क्रियान्वयित है।
  • इस परियोजना का लक्ष्य तमिलनाडु के चुने हुए शहरों में लोगों का जीवन स्तर सुधारना है।
  • इस परियोजना से राज्य के निवासियों, श्रमिकों और उद्योगों को आर्थिक लाभ होगा, औद्योगिक प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और रोज़गारों का सृजन भी होगा।
  • यह परियोजना चार शहरों अम्बुर, तिरुचिरापल्ली, तिरुप्पुर और वेल्लोर को सीवेज उपचार एवं जल निकासी प्रणाली विकसित करने के लिये लक्षित करेगी।
  • मदुरई और तिरुप्पुर शहरों में जल आपूर्ति प्रणालियों में सुधार को लक्षित किया जाएगा।

एशियाई विकास बैंक

(Asian Development Bank- ADB)

  • ADB एक क्षेत्रीय विकास बैंक है, जिसकी स्थापना 19 दिसंबर, 1966 को की गई थी l
  • 1 जनवरी, 1967 को इस बैंक ने पूरी तरह से काम करना शुरू किया थाl
  • इस बैंक की स्थापना का उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक और सामाजिक विकास को गति प्रदान करना थाl
  • इसकी अध्यक्षता जापान द्वारा की जाती हैl
  • इसका मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में स्थित हैl
  • इसके सदस्य देशों की संख्या 68 है l
  • वर्ष 2019 में निउए (Niue) को इस समूह में शामिल किया गया l

स्रोत- PIB


जैव विविधता और पर्यावरण

वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2020

प्रीलिम्स के लिये:

वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण थिंक टैंक जर्मनवाच द्वारा वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक जारी किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट के अनुसार, विगत 20 वर्षों में कुल 12000 मौसम संबंधी घटनाओं में लगभग 5,00,000 लोगों की मौत हुई और लगभग 3.54 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।
  • वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक के अनुसार, वर्ष 2018 में जापान, फिलीपींस और जर्मनी सबसे अधिक जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देश पाए गए, इसके बाद क्रमशः मेडागास्कर, भारत और श्रीलंका का स्थान रहा।
    • जापान ने वर्ष 2018 में अत्यधिक बारिश के बाद बाढ़, गर्मी और गत 25 वर्षों में सबसे विनाशकारी तूफान जेबी का सामना किया।
    • रिपोर्ट के अनुसार वर्ष का सबसे शक्तिशाली श्रेणी-5 का मैंगहट तूफान सितंबर महीने में उत्तरी फिलीपींस से होकर गुज़रा।
    • इसकी वजह से करीब ढाई लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा और प्राण घातक भूस्खलन की घटनाएँ हुईं।
    • जर्मनी को वर्ष 2018 में दीर्घकालिक गर्मी और सूखे का सामना करना पड़ा। जमर्नी के औसत तापमान में लगभग तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज़ की गई।
    • मेडागास्कर को विनाशकारी तूफान एवा का सामना करना पड़ा।
    • भारत में केरल में आई बाढ़ के अलावा पूर्वी तटों को तितली और गाज़ा तूफानों का भी सामना करना पड़ा जिसमें लगभग 1000 लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी।
      • केरल में आई बाढ़ पिछले 100 सालों में सबसे विनाशकारी साबित हुई।
      • इसमें लगभग 2,20,000 लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा।
      • 20000 घर और 80 बाँध बर्बाद हो गए इसके अलावा लगभग 2.8 बिलियन डॉलर की क्षति हुई।
  • वर्ष 1999 से 2018 तक जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित देश प्यूर्टो रिको, म्याँमार और हैती रहे हैं।
    • रिपोर्ट के अनुसार इस पूरी अवधि में जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों की सूची में फिलीपींस, पाकिस्तान और वियतनाम क्रमशः चौथे, पांचवे और छठे स्थान पर है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली क्षति का एक प्रमुख कारण हीटवेव थीं।
  • रिपोर्ट में COP 25 सम्मेलन में मौसम जनित समस्याओं से प्रभावित देशों के आर्थिक मदद के लिये विचार करने की बात की गई है।

Climate Risk Index

वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक:

  • इस सूचकांक के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न मौसम सम्बन्धी समस्याओं के वैश्विक स्तर पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत मॉरिशस संबंध

प्रीलिम्स के लिये

मॉरिशस की भौगोलिक स्थिति एवं उससे संबंधित अन्य तथ्य

मेन्स के लिये

भारत मॉरिशस संबंधों का कूटनीतिक महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मॉरिशस में हुए आम चुनावों में प्रधानमंत्री प्रविंद जगनाथ को दोबारा जीत मिली तथा जीत के बाद वे भारत की यात्रा पर आने वाले हैं। ऐसे में भारत को मॉरिशस को लेकर अपनी नीतियों में परिवर्तन करने के साथ ही दोनों देशों को साथ मिलकर परस्पर विकास की नई संभावनाओं की तलाश करनी चाहिये।

Mauritius

मुख्य बिंदु:

  • भारत ने एक लंबे समय तक मॉरिशस को भारतीय मूल के प्रवासियों (Diaspora) के संदर्भ में ही देखा है जिनकी संख्या इस देश में अधिक है।
  • विगत कुछ वर्षों में भारत ने पश्चिमी हिंद महासागर में बसे इस द्वीपीय देश को सामरिक दृष्टि से महत्त्व देना प्रारंभ किया है।
  • वर्ष 2015 में अपनी मॉरिशस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने महत्त्वाकांक्षी नीति सागर (Security and Growth for All-SAGAR) की शुरुआत की। यह पिछले कई दशकों में भारत द्वारा हिंद महासागर में किया गया एक महत्त्वपूर्ण प्रयास था।
  • भारत के लिये मॉरिशस में सामरिक दृष्टिकोण से अपार संभावनाएँ निहित हैं तथा दोनों देशों की साझेदारी गन्ने के बागान, वित्तीय सेवाएँ तथा तकनीकी नवाचारों से कहीं आगे जा सकती है।
  • अफ्रीकी संघ (African Union), हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association) तथा हिंद महासागर आयोग (Indian Ocean Commission) का सदस्य होने के कारण इसकी भूमिका न सिर्फ सैन्य बल्कि भौगोलिक आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है।

ऐतिहासिक दृष्टि से मॉरिशस का महत्त्व

  • प्रारंभिक यूरोपीय अन्वेषकों ने अफ्रीका महाद्वीप के चारों ओर होते हुए भारत जाने का रास्ता खोजा। इस यात्रा के दौरान उन्होंने इस द्वीप का नाम मॉरिशस रखा और इसे हिंद महासागर का तारा और चाबी (Star and Key of the Indian Ocean) कहा।
  • हालाँकि पुर्तगाली तथा डच यहाँ पहले पहुँचे लेकिन प्रारंभिक 18वीं शताब्दी में फ्राँसीसियों ने इस पर स्थायी नियंत्रण हासिल किया।
  • फ्राँसीसियों ने यहाँ गन्ने के बागान विकसित किये, जहाज़ों का निर्माण प्रारंभ किया तथा नौसैनिक अड्डा बनाया। तत्कालीन फ्राँसीसियों ने मॉरिशस को विश्व के प्रत्येक स्थान को जोड़ने वाला भौगोलिक केंद्र कहा।
  • नेपोलियनकालीन युद्धों (Napoleonic Wars) के समय इस पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। इसके बाद इसे सैन्य अड्डे के रूप में विकसित किया गया जिसने अंग्रेज़ों के लिये भारत-यूरोप की संचार रेखा की रक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • इस देश की भौगोलिक स्थिति की उपयोगिता इस बात से समझी जा सकती है कि डिएगो ग्रेसिया (Diego Grecia), जो एक समय में मॉरिशस का हिस्सा था, वर्तमान में विदेश में स्थित अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है।

भारत-मॉरिशस संबंधों का भविष्य:

  • आगामी समय में अफ्रीका में बाज़ार तथा निवेश बढ़ने के आसार हैं। इस स्थिति में भारत की अफ्रीका में पहुँच सुनिश्चित करने में मॉरिशस की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
  • अभी तक भारत ने हिंद महासागर के वनिला द्वीपों (Vanilla Islands)- कोमोरोस, मेडागास्कर मॉरिशस, सेशेल्स, रीयूनियन द्वीप के साथ द्विपक्षीय आधार पर ही बातचीत की है। यदि भारत उन्हें संयुक्त रूप से एकत्रित करने की कोशिश करता है तो भारत की इस नीति में मॉरिशस की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।
  • मॉरिशस दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में भारत की अनेकों वाणिज्यिक गतिविधियों जैसे-बैंकिंग, हवाई यातायात तथा पर्यटन आदि को बढ़ावा देने के लिये सेवा प्रदाता हो सकता है।
  • भारत मॉरिशस को तकनीकी नवाचार केंद्र के रूप में विकास करने में मददगार साबित हो सकता है। अभी तक भारत ने मॉरिशस की शिक्षा तथा सूचना प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं के लिये कोई विशेष कार्य नहीं किया है।
  • जलवायु परिवर्तन, सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति, ब्लू इकॉनमी (Blue Economy) तथा सामुद्रिक शोध को बढ़ावा देने के लिये मॉरिशस, भारत का एक अहम साझेदार हो सकता है।
  • दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर में सुरक्षा सहयोग के दृष्टिकोण से मॉरिशस की भूमिका केंद्र में होगी जिससे दोनों देश अन्य सभी द्वीपीय देशों के हितों की रक्षा करने में सहायक होंगे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

GST क्षतिपूर्ति का मुद्दा

प्रीलिम्स के लिये:

GST परिषद, GST क्षतिपूर्ति, सिन गुड्स

मेन्स के लिये:

GST क्षतिपूर्ति से संबंधित विभिन्न मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में GST परिषद ने सभी राज्यों को यह सूचित किया कि केंद्र सरकार वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप राज्यों को होने वाले राजस्व नुकसान की क्षतिपूर्ति में सक्षम नहीं है।

  • GST परिषद केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली एक संवैधानिक संस्था है और इसमें सभी राज्यों के वित्त/राजस्व और वित्त राज्य मंत्री शामिल होते हैं।
  • यह GST से संबंधित सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सिफारिशें/सुझाव देती है।

प्रमुख बिंदु

  • राजस्व स्थिति:
    • सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिये 6,63,343 करोड़ रुपए GST संग्रहण का लक्ष्य रखा, जिसमें से उसने पहले आठ महीनों में केवल 50% का संग्रह किया है। इसने 1,09,343 करोड़ रुपए का क्षतिपूर्ति उपकर संग्रह का लक्ष्य निर्धारित किया था जिसमें से अभी तक केवल 64,528 करोड़ रुपए का ही संग्रह किया गया है।
  • क्षतिपूर्ति की स्थिति:
    • केंद्र ने अप्रैल-नवंबर, 2019 के दौरान क्षतिपूर्ति उपकर के रूप में 64,528 करोड़ रुपए का संग्रह किया और अप्रैल-जुलाई, 2019 की अवधि में 45,744 करोड़ रुपए का भुगतान किया।
    • GST परिषद के अनुसार, कर संग्रह में कमी और सरकार के राजकोषीय घाटे की संभावना को देखते हुए अगस्त-सितंबर 2019 में राज्यों को किये जाने वाले क्षतिपूर्ति भुगतान पर रोक लगा दी।
  • GST परिषद ने राज्यों को 6 दिसंबर, 2019 तक विभिन्न मदों में दी जाने वाली छूट, GST और क्षतिपूर्ति उपकर दरों के तहत वस्तुओं की समीक्षा के बारे में अपने इनपुट और प्रस्ताव देने के लिये भी कहा है।
    • GST के तहत केवल विलासिता की वस्तुओं और सिन गुड्स (शराब, तंबाकू, ड्रग्स, फास्ट फूड, कॉफी, जुआ और पोर्नोग्राफी) पर उपकर लगाया जाता है। अधिक उपकर संग्रह करने के लिये या तो इन वस्तुओं पर उपकर की दर में वृद्धि की जाएगी अथवा GST व्यवस्था के तहत 28% के उच्चतम कर स्लैब में कुछ परिवर्तन किया जाएगा।

पृष्ठभूमि

  • 101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 के लागू होने के बाद 1 जुलाई, 2017 से GST संपूर्ण देश में लागू हो गया। इसमें बड़ी संख्या में केंद्र और राज्य स्तर पर लगने वाले अप्रत्यक्ष कर एक ही कर में विलीन हो गए।
  • केंद्र ने GST के लागू होने की तिथि से पाँच वर्ष की अवधि तक GST कार्यान्वयन के कारण कर राजस्व में आने वाली कमी के लिये राज्यों को क्षतिपूर्ति देने का वादा किया था। केंद्र सरकार के इस वादे के चलते बड़ी संख्या में अनिच्छुक राज्य नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था पर हस्ताक्षर करने के लिये सहमत हो गए थे।
  • GST अधिनियम के अनुसार वर्ष 2022 यानी GST कार्यान्वयन शुरू होने के बाद पहले पाँच वर्षों तक GST कर संग्रह में 14% से कम वृद्धि (आधार वर्ष 2015-16) दर्शाने वाले राज्यों के लिये क्षतिपूर्ति की गारंटी दी गई है। केंद्र द्वारा राज्यों को प्रत्येक दो महीने में क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाता है।
    • क्षतिपूर्ति उपकर ऐसा उपकर है जिसे 1 जुलाई, 2022 तक चुनिंदा वस्तुओं और सेवाओं या दोनों की आपूर्ति पर संग्रहीत किया जाएगा।
    • सभी करदाता (विशिष्ट अधिसूचित वस्तुओं को निर्यात करने वालों को और GST कंपोजीशन स्कीम का विकल्प चुनने वालों को छोड़कर) GST क्षतिपूर्ति उपकर के संग्रहण और केंद्र सरकार को इसके प्रेषण के लिये उत्तरदायी हैं।
    • इसके बाद, केंद्र सरकार इसे राज्यों को वितरित करती है।
  • केंद्र ने अगस्त-सितंबर 2019 के लिये GST राजस्व संग्रह में कमी हेतु राज्यों को क्षतिपूर्ति देने में पहले ही देरी कर दी है, जिसके लिये भुगतान अक्तूबर, 2019 में होने वाला था। 20 नवंबर, 2019 को पाँच राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों- केरल, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, राजस्थान और पंजाब ने एक संयुक्त बयान जारी कर इस विषय में चिंता व्यक्त की थी।

प्रभाव

  • केंद्र द्वारा कर प्राप्तियों में कमी से राज्यों को अधिक नुकसान होता है क्योंकि निरपेक्ष राशि के रूप में राज्य वही राशि प्राप्त करते हैं जो कि हस्तांतरण नियम के अनुसार निर्धारित होती है।
  • ऐसे समय में जब विकास दर में अस्थिरता बनी हुई है, GST अधिनियम के तहत दी गई गारंटी के अनुसार क्षतिपूर्ति के भुगतान में देरी से राज्यों में वित्तीय संकट की स्थिति बन सकती है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत का दूसरा अंतरिक्ष केंद्र

प्रीलिम्स के लिये:

ISRO, भारत का दूसरा अंतरिक्ष केंद्र,

मेन्स के लिये:

दूसरा अंतरिक्ष केंद्र स्थापित करने का कारण एवं आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने तमिलनाडु के कुलसेकरपट्टिनम के पास थूथुकुडी (Thoothukudi) में अपने दूसरे अंतरिक्ष केंद्र के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रगति करने वाले प्रमुख देशों में कई अंतरिक्ष केंद्र हैं।
  • ISRO का पहला और एकमात्र सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (Satish Dhawan Space Centre- SDSC) आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 1971 में हुई थी तथा वर्तमान में यहाँ दो सक्रिय लॉन्चपैड हैं।
  • ISRO यहाँ से अपने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle- PSLV) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल Geosynchronous Satellite Launch Vehicle- GSLV) रॉकेट लॉन्च करता है।

भारत को नए अंतरिक्ष केंद्र की आवश्यकता क्यों?

  • नये अंतरिक्ष केंद्र ISRO के आगामी लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (Small Satellite Launch Vehicle- SSLV) के लॉन्च के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
  • PSLV को उपग्रहों को ध्रुवीय तथा पृथ्वी की कक्षाओं में लॉन्च करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • हालाँकि लॉन्च के बाद यह सीधे ध्रुवीय या पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि रॉकेट के किसी टुकड़े या अवशेष के गिरने की आशंका के कारण इसके प्रक्षेपवक्र (Trajectory) को श्रीलंका के ऊपर उड़ान से बचना होता है।
    • इसलिये एक बार श्रीहरिकोटा से रॉकेट के उड़ान भरने के बाद इसे श्रीलंका से बचाने के लिये पहले यह पूर्व की ओर उड़ान भरता है फिर वापस दक्षिण ध्रुव की ओर बढ़ता है।
    • इस प्रक्रिया में अधिक ईंधन की आवश्यकता होती है
  • थूथुकुडी में नए अंतरिक्ष केंद्र की स्थापना के बाद SSLV लक्षद्वीप के ऊपर से उड़ान भरेगा और अधिक ऊँचाई पर जाने के साथ श्रीलंका के चारों ओर घूमकर जाएगा।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन

(Indian Space Research Organisation- ISRO)

  • भारत की अंतरिक्ष एजेंसी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) की स्थापना वर्ष 1969 में हुई।
  • इसे भारत सरकार के ‘अंतरिक्ष विभाग’ द्वारा प्रबंधित किया जाता है, जो सीधे भारत के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है।
  • ISRO का उद्देश्य अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान और ग्रहों की खोज को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रीय विकास के लिये अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करना है।

अंतरिक्ष केंद्र के रुप में थूथुकुडी का चुनाव ही क्यों?

1. समुद्र तट का सामीप्य (Proximity to Seashore):

  • थूथुकुडी की समुद्र के साथ निकटता रॉकेट को "सीधे दक्षिण की ओर" लॉन्च करने के लिये आदर्श स्थान बनाती है।
    • श्रीहरिकोटा से इस तरह के दक्षिण दिशा की ओर लॉन्च संभव नहीं हैं क्योंकि रॉकेटों को श्रीलंका के चारों ओर से उड़ान भरनी होती है।
  • रॉकेट थूथुकुडी से एक सीधे प्रक्षेपवक्र के अनुसार प्रक्षेपित होने में सक्षम होंगे जो उनके भारी पेलोड ले जाने में सहायक होगा।

2. भूमध्य रेखा से निकटता (Proximity to Equator):

  • थूथुकुडी को SDSC की तरह ही भूमध्य रेखा के निकट होने के कारण एक अंतरिक्ष केंद्र के रूप में चुना गया है।
    • क्योंकि रॉकेट लॉन्च केंद्र पूर्वी तट पर और भूमध्य रेखा के पास होना चाहिये।

3. ढुलाई/संचालन में आसानी (Logistical Ease):

  • ISRO का तिरुनेलवेली ज़िले के महेंद्रगिरि में अपना तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र (Liquid Propulsion Systems Centre- LPSC) है जहाँ PSLV के लिये दूसरे और चौथे चरण के इंजन को असेंबल किया जाता है।
  • दूसरे और चौथे चरण के इंजन को महेंद्रगिरि से श्रीहरिकोटा ले जाने के बजाय, अगर इन्हें कुलसेकरपट्टिनम में बनाया जाएगा तो उन्हें लॉन्च पैड पर स्थानांतरित करना आसान होगा। जो लगभग थूथुकुडी से 100 किमी० की दूरी पर है।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


सामाजिक न्याय

अल्पसंख्यकों के शिक्षण संस्थान

प्रीलिम्स के लिये

अनुच्छेद-30(1), अल्पसंख्यकों के अधिकार

मेन्स के लिये

संवैधानिक प्रावधानों द्वारा अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा, नीतिशास्त्र के प्रश्न-पत्र में केस-स्टडी के लिये उपयोगी।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जो किसी शिक्षण संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से संबंधित थी।

मुख्य बिंदु:

  • केरल उच्च न्यायालय ने अपने 5 अगस्त के फैसले में कहा था कि किसी शिक्षण संस्थान को अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान का दर्जा (Minority Educational Institute Status) तभी दिया जाएगा जब वह अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा न सिर्फ प्रशासित (Administered) हो बल्कि उसकी स्थापना (Establishment) भी अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा की गई हो।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने भी संविधान के अनुच्छेद-30(1) का संदर्भ देते हुए केरल उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराया तथा इस याचिका को ख़ारिज कर दिया।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद-30(1) अल्पसंख्यकों, चाहे धार्मिक हों या भाषायी, को अधिकार प्रदान करता है कि सभी अल्पसंख्यक वर्गों को उनकी रुचि की शिक्षण संस्थाओं की स्थापना का अधिकार होगा।

अल्पसंख्यक संस्थान तीन प्रकार के होते हैं:

  1. राज्य से आर्थिक सहायता एवं मान्यता लेने वाले संस्थान।
  2. ऐसे संस्थान जो राज्य से मान्यता लेते हैं लेकिन उन्हें आर्थिक सहायता नहीं प्राप्त होती।
  3. ऐसे संस्थान जो राज्य से मान्यता या आर्थिक सहायता नहीं लेते।

पृष्ठभूमि:

  • यह मामला केरल राज्य के कोझिकोड ज़िले के एक प्राथमिक विद्यालय से संबंधित है। इस विद्यालय का नाम नल्लूर नारायण निम्न प्राथमिक विद्यालय (Nallur Narayana Lower Primary School) है।
  • इस विद्यालय की स्थापना वर्ष 1936 में नल्लूर नारायण मेनन द्वारा की गई थी। उनकी मृत्यु के बाद इस विद्यालय के प्रबंधन का कार्यभार के. के. शशिधरन को सौंपा गया।
  • वर्ष 2005 में के. के. शाशिधरन ने इस विद्यालय की संपत्ति तथा इसके प्रशासन का अधिकार पी. के. मोहम्मद हाजी को हस्तांतरित कर दिया तथा इस हस्तांतरण को वर्ष 2005 में राज्य के संबंधित विभाग द्वारा मान्यता प्रदान की गई।
  • वर्ष 2013 में हाजी ने राज्य सरकार को एक अनापत्ति प्रमाण-पत्र (Non Objection Certificate-NOC) जारी करने के लिये आवेदन किया। ताकि इस संस्थान को अल्पसंख्यक वर्ग के संस्थान के तौर पर स्थापित किया जा सके लेकिन यह आवेदन स्वीकार नहीं किया गया।
  • वर्ष 2014 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities) द्वारा इसे अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान का दर्जा दिया गया।
  • आयोग के इस फैसले को विद्यालय के शिक्षकों द्वारा चुनौती दी गई। शिक्षकों का आरोप था कि इस तरह विद्यालय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से उनकी प्रोन्नति में प्रबंधक द्वारा पक्षपात किया जाएगा एवं अपने करीबी को प्राध्यापक का दर्जा दिया जाएगा।
  • शिक्षकों का मानना है कि अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा किसी शिक्षा संस्थान की स्थापना तथा उसके प्रबंधन, दोनों ही स्थिति में उसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया जा सकता है। जबकि इस विद्यालय का केवल प्रबंधन ही किसी अल्पसंख्यक के पास है।
  • केरल उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में स्थापित (Established) शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि संविधान के संदर्भ में इसका व्यापक अर्थ तथा शब्द व्युत्पत्ति (Etymology) के आधार पर ही इसका अर्थ नहीं समझना चाहिये।
  • अनुच्छेद-30(1) का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करना तथा इस भावना का प्रसार करना है कि उनके पास बहुसंख्यक समुदायों के समान अधिकार हैं।
  • इस प्रकार उच्च न्यायालय ने कहा कि कोई संस्थान जिसे किसी अल्पसंख्यक ने खरीदा हो तथा वह अल्पसंख्यकों के हित के लिये प्रतिबद्ध हो तो वह संस्था अनुच्छेद-30(1) के अंतर्गत आएगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (05 दिसंबर)

बॉब विलिस: इंग्लैंड क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और तेज़ गेंदबाज़ बॉब विलिस का 4 दिसंबर, 2019 को निधन हो गया। विदित है बॉब विलिस 70 साल के थे। अपने समय के बेहतरीन तेज़ गेंदबाज़ो में शुमार रहे बॉब विलिस को चिर प्रतिद्वंदी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वर्ष 1981 की एशेज सीरिज़ में उनके शानदार प्रदर्शन के लिये याद किया जाता है। बॉब विलिस ने अपने करियर में इंग्लैंड टीम के लिये कुल 90 टेस्ट मैच खेले थे, जो कि किसी भी खिलाड़ी के लिये एक बड़ा आँकड़ा है। इन टेस्ट मैचों में बॉब विलिस ने कुल 325 विकेट अपने नाम किये थे।


कमला हैरिस: कैलिफोर्निया की डेमोक्रेटिक सांसद भारतीय मूल की कमला हैरिस ने अगले साल राष्ट्रपति पद के लिये होने वाले चुनाव से अपना नाम वापस ले लिया है। उल्लेखनीय है कि हाल के सप्ताहों में हुए एग्जिट पोल में उनका प्रदर्शन खराब बताया जा रहा था। 2 दिसंबर, 2019 को जारी एक नये एग्जिट पोल में उनकी रेटिंग घटकर मात्र तीन प्रतिशत रह गई जो दिखाता है कि उनका अभियान आगे बढ़ने के लिये संघर्ष कर रहा है। हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी की पहली बड़ी नेता थीं जिन्होंने जनवरी, 2018 में राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल होने की घोषणा की थी। उस समय कार्यक्रम में 20,000 से अधिक समर्थक शामिल हुए थे।


अंतर्राष्ट्रीय वालंटियर दिवस: संपूर्ण विश्व में 05 दिसंबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक दिवस'/अंतर्राष्ट्रीय वालंटियर दिवस मनाया जाता है। गौरतलब है कि यह दिन उन सभी लोगों के प्रति आभार प्रकट करने हेतु मनाया जाता है जो बिना किसी मौद्रिक लाभ के मुफ्त में काम कर रहे हैं और अन्य लोगों की सहायता करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक दिवस 2019 का मुख्य विषय- ‘वालंटियर फॉर एन इंक्लूसिव फ्यूचर (Volunteer for an inclusive future)’ है। यह दिवस स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सभी स्तरों पर परिवर्तन करने में लोगों की भागीदारी के सम्मान का एक वैश्विक उत्सव है।


रेपो रेट: RBI ने रेपो रेट या अल्पकालिक उधार दर को अपरिवर्तित 5.15% पर रखा है। यह निर्णय RBI की पाँचवीं द्विमासिक नीति समीक्षा के दौरान लिया गया। वर्तमान में रेपो रेट 5.15% पर है, वर्ष 2010 के बाद यह निम्नतम स्तर है। रिज़र्व बैंक ने GDP विकास दर के अनुमान को 6.1% से कम करके 5% किया है।


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