मालाबार नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने पर विचार
प्रीलिम्स के लिये:मालाबार नौसैनिक अभ्यास मेन्स के लिये:हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति हेतु भारत के प्रयास, भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय सहयोग |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार द्वारा ऑस्ट्रेलिया को ‘मालाबार नौसैनिक अभ्यास’ में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
- भारत और ऑस्ट्रेलिया हमेशा से ही एक मुक्त, खुले, समावेशी और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र के समर्थक रहे हैं।
- गौरतलब है कि वर्ष 2016 से ही ऑस्ट्रेलिया ने मालाबार नौसैनिक अभ्यास में शामिल होने की इच्छा ज़ाहिर की है, परंतु भारत अभी तक ऑस्ट्रेलिया को इस नौसैनिक अभ्यास शामिल करने से बचता रहा है।
- इस मुद्दे पर भारतीय पक्ष का यह मत रहा है कि इस नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने से यह चीन के खिलाफ एक ‘चतुष्पक्षीय सैन्य गठबंधन’ के समान प्रतीत होगा जो क्षेत्र में भारत और चीन के बीच तनाव को और अधिक बढ़ा सकता है।
- हालाँकि इस बात की भी उम्मीद है कि हाल के दिनों में ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा' (Line of Actual Control- LAC) पर चीन और भारत के बीच तनाव बढ़ने से यह निर्णय बदल भी सकता है।
मालाबार नौसैनिक अभ्यास:
- मालाबार नौसैनिक अभ्यास भारत-अमेरिका-जापान की नौसेनाओं के बीच वार्षिक रूप से आयोजित किया जाने वाला एक त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास है।
- मालाबार नौसैनिक अभ्यास की शुरुआत भारत और अमेरिका के बीच वर्ष 1992 में एक द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास के रूप में हुई थी।
- वर्ष 2015 में इस अभ्यास में जापान के शामिल होने के बाद से यह एक त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास बन गया।
भारत-ऑस्ट्रेलिया रक्षा सहयोग:
- ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त के अनुसार, मालाबार नौसैनिक अभ्यास के संदर्भ में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार समूह के सदस्यों को ही है, परंतु ऑस्ट्रेलिया के लिये इस समूह में शामिल होना प्रसन्नता की बात होगी।
- पिछले 6 वर्षों में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच द्विपक्षीय सैन्य सहयोग में चार गुना वृद्धि हुई है।
- दोनों देशों ने ‘भारत-ऑस्ट्रेलिया संयुक्त नौसैनिक अभ्यास’ (AUSINDEX) और युद्ध अभ्यास 'पिच ब्लैक' (Pitch Black) के माध्यम से रक्षा क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा दिया है।
म्यूचुअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट:
- भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच ‘म्यूचुअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट’ (Mutual Logistics Support Agreement- MLSA) की घोषणा द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय है।
- इस समझौते के तहत दोनों देश एक दूसरे के सैन्य अड्डों का उपयोग कर सकेंगे।
- यह समझौता दोनों देशों के लिये सैन्य आपूर्ति को आसान बनाने के साथ परिचालन सुधार में सहायक होगा।
- वर्ष 2016 में भारत और अमेरिका के बीच 'लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट' (Logistics Exchange Memorandum of Agreement- LEMOA) पर हस्ताक्षर होने के बाद ऑस्ट्रेलिया पहला देश बना जिसने भारत के समक्ष MLSA का मसौदा प्रस्तुत किया था।
- इस समझौते पर पिछले वर्ष भारतीय रक्षा मंत्री की कैनबरा (Canberra) यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किया जाना प्रस्तावित था परंतु यह यात्रा रद्द होने और इसके बाद जनवरी 2020 में ऑस्ट्रेलिया की वनाग्नि तथा मई 2020 में COVID-19 के कारण इसे विलंबित कर दिया गया था।
समुद्री क्षेत्र जागरूकता
(Maritime Domain Awareness- MDA):
- भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच समुद्री क्षेत्र जागरूकता को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक ‘समुद्री सहयोग समझौते’ (Maritime Cooperation Agreement) पर कार्य किया जा रहा है।
- ऑस्ट्रेलिया ने भारतीय नौसेना के गुरुग्राम स्थित ‘सूचना संलयन केंद्र – हिंद महासागर क्षेत्र’ (Information Fusion Centre - Indian Ocean Region or IFC-IOR) पर अपने एक संपर्क अधिकारी को तैनात करने पर सहमति ज़ाहिर की है।
आगे की राह:
- समान विचारधारा होने के कारण पिछले कुछ वर्षों में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच कई क्षेत्रों में सहयोग की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
- हाल के वर्षों में दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता से क्षेत्र के देशों के साथ विश्व भर में चीन के व्यवहार पर प्रश्न उठने लगे हैं।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया पहले से ही ‘क्वाड’ (Quad) के माध्यम से एक ‘मुक्त, खुले और समावेशी’ ‘हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) क्षेत्र’ के लिये अपनी प्रतिबद्धता दिखा चुके हैं ऐसे में मालाबार नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने से क्षेत्र में शांति स्थापित करने के प्रति दोनों देशों की विचारधारा को मज़बूती प्रदान करने में सहायता प्राप्त होगी।
स्रोत: द हिंदू
ग्लोबल वैक्सीन शिखर सम्मेलन
प्रीलिम्स के लिये:ग्लोबल वैक्सीन शिखर सम्मेलन, ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइज़ेशन, भारत का वैक्सीन कार्यक्रम मेन्स के लिये:भारत का वैक्सीन कार्यक्रम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन द्वारा आयोजित आभासी ‘ग्लोबल वैक्सीन शिखर सम्मेलन’ (Global Vaccine Summit) को संबोधित करते हुए कहा कि COVID-19 महामारी के चुनौतीपूर्ण समय में भारत दुनिया के साथ एकजुट होकर खड़ा है।
प्रमुख बिंदु:
- आभासी सम्मेलन में 50 से अधिक देशों के शीर्ष व्यापारियों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों, नागरिक समाज, सरकारी मंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों और नेताओं ने भाग लिया।
- भारत ने 'अंतर्राष्ट्रीय वैक्सीन गठबंधन' (International Vaccine Alliance), ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइज़ेशन ' (Global Alliance for Vaccines and Immunisation- GAVI) को 15 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।
टीकाकरण (Vaccination):
- टीकाकरण या वैक्सीनैशन वह प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति को प्रतिरक्षित या संक्रामक रोगों के प्रति प्रतिरोधी क्षमता को विकसित किया जाता है।
- टीकाकरण बच्चे को जान लेवा रोगों से बचाने में मदद करता है। यह दूसरे व्यक्तियों में रोग के प्रसारण को कम करने में भी मदद करता है।
‘ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइजेशन '
(Global Alliance for Vaccines and Immunisation- GAVI):
- 1990 के दशक के अंत तक 'अंतर्राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रमों' की प्रगति रुक गई थी जिससे विकासशील देशों में लगभग 30 मिलियन बच्चों का घातक बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण नहीं हो पाया था।
- यद्यपि प्रभावी वैक्सीन बाज़ार में उपलब्ध थे परंतु विकासशील देश इन वैक्सीन की लागत वहन नहीं कर सकते थे।
- बिल तथा मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (Bill and Melinda Gates Foundation) और संस्थापक सहयोगियों के एक समूह ने विकासशील देशों में लागत प्रभावी वैक्सीन निर्माण की दिशा में कार्य किया।
- तथा वर्ष 2000 में इसके द्वारा 'ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइज़ेशन' (Global Alliance for Vaccines and Immunisation- GAVI) की स्थापना की गई।
मान्यता प्राप्त वैक्सीन मॉडल:
- GAVI वर्तमान में दुनिया के लगभग आधे बच्चों को टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध कराता है। GAVI के वैक्सीन कार्यक्रम के माध्यम से वैक्सीन कार्यक्रम के साथ जुड़े वाणिज्यिक जोखिमों (वाणिज्यिक लाभ) को दूर किया गया है ताकि वैक्सीन निर्माण की दिशा में निवेश को बढ़ावा मिले।
- GAVI के प्रयासों के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित 11 वैक्सीनों की लागत जहाँ अमेरिका में 1,100 डॉलर है वहीं GAVI में इनकी लागत 28 डॉलर है।
भारत का वैक्सीन कार्यक्रम:
- भारत में 'सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम' (Universal Immunisation Programme- UIP) की शुरुआत वर्ष 1985 में चरणबद्ध तरीके से की गई थी, जो कि विश्व के सबसे बड़े स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक था।
- UIP के तहत निम्नलिखित टीके उपलब्ध हैं:
- BCG:
- BCG का तात्पर्य बेसिल कालमेट-ग्युरिन (Basil Calumet-Guerin- BCG) वैक्सीन है। यह शिशुओं को ट्यूबरक्युलर मेनिंगजाइटिस (Tubercular Meningitis) और संचारित टीबी से बचाने के लिये दिया जाता है।
- OPV:
- OPV का तात्पर्य ओरल पोलियो वैक्सीन (Oral Polio Vaccine) है। यह बच्चों को पोलियोमेलाइटिस (Poliomyelitis) से बचाता है।
- हेपेटाइटिस B:
- हेपेटाइटिस B का टीका हेपेटाइटिस- B वायरस संक्रमण से बचाता है।
- पेंटावैलेंट वैक्सीन:
- पेंटावैलेंट वैक्सीन पाँच रोगों- डिप्थीरिया, टिटेनस, पर्टुसिस (काली खांसी), हीमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप- B, हेपेटाइटिस B से बच्चों को बचाने वाली संयुक्त वैक्सीन है।
- रोटावायरस वैक्सीन:
- रोटावायरस वैक्सीन (RVV) डायरिया के खिलाफ शिशुओं और बच्चों को सुरक्षा प्रदान करता है। यह वर्तमान में चुनिंदा राज्यों में दिया जाता है।
- PCV:
- PCV अर्थात न्यूमोकोकल संयुग्म टीकाकरण (Pneumococcal Conjugate Vaccination- PCV) शिशुओं तथा छोटे बच्चों को बैक्टीरिया स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया (Streptococcus Pneumoniae) के कारण होने वाली रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है।
- IPV:
- निष्क्रिय पोलियो टीकाकरण (Inactivated poliovirus vaccine- IPV) का उपयोग पोलियोमेलाइटिस के खिलाफ़ सुरक्षा बढ़ाने के लिये किया जाता है।
- मीज़ल्स (Measles):
- बच्चों को मीज़ल्स से बचाने के लिये मीज़ल्स वैक्सीन का उपयोग किया जाता है। कुछ राज्यों में मीज़ल्स और रूबेला संक्रमण से बचाव के लिये संयुक्त वैक्सीन दी जाती है।
- जापानी इन्सेफेलाइटिस (Japanese Encephalitis):
- यह जापानी इन्सेफेलाइटिस रोग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
- DPT:
- DPT एक संयुक्त वैक्सीन है, जो बच्चों को डिप्थीरिया, टिटेनस और काली खाँसी (पर्टुसिस) से बचाती है।
- टेटनस टोक्सॉयड (Tetanus Toxoid- TT):
- TT वैक्सीन का उपयोग टिटेनस के खिलाफ़ सुरक्षा प्रदान करने के लिये किया जाता है।
- भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने दिसंबर 2014 को ‘मिशन इन्द्रधनुष’ की शुरुआत की थी। जिसका उद्देश्य दुर्गम इलाकों सहित पूरे देश के बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं का पूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित करना था।
- भारत ने वैक्सीन आपूर्ति श्रृंखला का पूरी तरह डिजिटलीकरण कर दिया है तथा वैक्सीन कार्यक्रम की निगरानी के लिये एक 'इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क' (electronic Vaccine Intelligence Network- eVIN ) प्रणाली विकसित किया है।
निष्कर्ष:
- भारत के टीकाकरण कार्यक्रम को विश्व में सफलतम अभियानों में से एक माना जाता है। भारत ने कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण दवाओं एवं टीकों का उत्पादन करने की अपनी क्षमता सिद्ध की है।
स्रोत: पीआईबी
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण
प्रीलिम्स के लियेआवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के प्रमुख तथ्य मेन्स के लियेबेरोज़गारी के संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labor Force Survey- PLFS) के अनुसार, वर्ष 2018-19 में भारत की बेरोज़गारी दर में कमी आई है, जहाँ एक ओर वर्ष 2017-18 में यह 6.1 प्रतिशत थी, वहीं वर्ष 2018-19 में यह घटकर 5.8 प्रतिशत हो गई।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
- सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme ImplementationMoSPI) द्वारा जारी PLFS 2018-19 के अनुसार, इस अवधि के दौरान श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate) में 37.5 प्रतिशत के साथ मामूली सुधार हुआ है, जो कि 2017-18 में 36.9 प्रतिशत था।
- विदित हो कि श्रम बल को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो या तो कार्य कर रहे हैं या काम की तलाश कर रहे हैं अथवा काम के लिये उपलब्ध हैं।
- इस प्रकार श्रम बल भागीदारी दर देश की कुल आबादी में श्रम बल का प्रतिशत है।
- वहीं बेरोज़गारी दर का अभिप्राय श्रम बल के भीतर कार्य न पाने वाले लोगों के प्रतिशत से होता है।
- ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों में बेरोज़गारी दर 5.6 प्रतिशत थी एवं महिलाओं में 3.5 प्रतिशत, जबकि नगरीय क्षेत्र में यह दर पुरुषों में 7.1 प्रतिशत एवं महिलाओं के बीच 9.9 प्रतिशत थी।
- रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्र में एक कामगार ने औसतन करीब 45 घंटे कार्य किया, जबकि नगरीय क्षेत्रों में एक सप्ताह में एक विशिष्ट अवधि के दौरान एक कामगार ने औसतन 50 घंटे कार्य किया।
- बीते वर्ष आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) की रिपोर्ट से पता चला था कि देश में बेरोज़गारी दर बीते 45 वर्षों के सबसे उच्चे स्तर पर पहुँच गई थी।
- वर्ष 2018-19 के दौरान लगभग 51.7 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों की आय का प्रमुख स्रोत स्वनियोजन (Self Employment) था। वहीं 25.1 ग्रामीण परिवारों की आय का मुख्य स्रोत आकस्मिक मज़दूरी (Casual Wages) थी और लगभग 13.1 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों की आय का मुख्य स्रोत नियमित मज़दूरी थी।
- वर्ष 2018-19 के दौरान करीब 31.8 प्रतिशत नगरीय परिवारों की आय का मुख्य स्रोत स्वनियोजन था। वहीं 11.0 प्रतिशत नगरीय परिवारों की आय का मुख्य स्रोत आकस्मिक मज़दूरी (Casual Wages) थी और 42.8 प्रतिशत नगरीय परिवारों की आय का मुख्य स्रोत नियमित मज़दूरी थी।
- भारत में 68.4 प्रतिशत कामगार गैर-कृषि क्षेत्र में अनौपचारिक रूप से कार्य कर रहे थे।
- प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के बीच बेरोज़गारी दर में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
- 15-29 आयु वर्ग के युवाओं और शिक्षित व्यक्तियों में बेरोज़गारी की दर क्रमशः 17.3 प्रतिशत और 11 प्रतिशत रही।
- बेरोज़गारी के कारण शहरी युवा सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। आँकड़ों के अनुसार 2018-19 के दौरान नगरीय पुरुषों में बरोज़गारी दर 18.7 प्रतिशत एवं नगरीय महिलाओं में 25.7 प्रतिशत थी।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण
(Periodic Labor Force Survey- PLFS)
- यह रिपोर्ट राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Organisation- NSSO) द्वारा जारी की जाती है।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labor Force Survey-PLFS) को मुख्य रूप से देश में रोज़गार तथा बेरोज़गारी की स्थिति को मापने के उद्देश्यों से डिज़ाइन किया गया है।
रोज़गार और बेरोज़गारी संबंधी प्रमुख संकेतक
- श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): श्रम बल भागीदारी दर देश की कुल आबादी में श्रम बल का प्रतिशत है। श्रम बल को का अर्थ उन लोगों से है जो या तो कार्य कर रहे हैं या काम की तलाश कर रहे हैं अथवा काम के लिये उपलब्ध हैं।
- कामगार जनसंख्या अनुपात (WPR): WPR को कुल जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- बेरोज़गारी दर (UR): बेरोज़गारी दर की गणना श्रम बल से बेरोज़गारों की संख्या को विभाजित करके की जाती है।
स्रोत: द हिंदू
इनर लाइन परमिट तथा नागरिकता संशोधन अधिनियम
प्रीलिम्स के लिये:इनर लाइन परमिट, नागरिकता संशोधन अधिनियम मेन्स के लिये:इनर लाइन परमिट की प्रासंगिकता |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने ‘बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन’ (Bengal Eastern Frontier Regulation- BEFR), 1873 में संशोधन करने वाले राष्ट्रपति के आदेश; जो असम के ज़िलों को ‘इनर लाइन परमिट’ (Inner Line Permit) से बाहर रखता है, पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- याचिकाकर्ता ने BEFR का हवाला देते हुए कहा है कि असम के अधिकांश ज़िले मूलत: ILP प्रणाली के भाग थे, अत: राज्य में CAA को लागू नहीं किया जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर मामले पर दो सप्ताह में प्रतिक्रिया मांगी है।
इनर लाइन परमिट (Inner Line Permit):
- भारत में यह अवधारणा औपनिवेशिक शासकों द्वारा अपनाई गई थी जिसका उद्देश्य पूर्वोत्तर भारत में जनजातीय आबादी वाले पहाड़ी क्षेत्रों को मैदानी भागों से अलग करना था। इस अवधारणा की उत्पति 'बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन एक्ट (BEFR), 1873 से हुई है।
- ILP वाले पहाड़ी क्षेत्रों में प्रवेश करने तथा निवास करने के लिये अन्य क्षेत्रों के भारतीय नागरिकों को इनर लाइन परमिट (ILP) की आवश्यकता होती है।
- इस अवधारणा के तहत अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिज़ोरम को संरक्षण प्रदान किया गया था जिसमें हाल ही में मणिपुर को जोड़ा गया है।
- BEFR बाहरी नागरिकों (ब्रिटिश विषयों) के न केवल ILP क्षेत्रों में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाता है अपितु यह उनके वहाँ ज़मीन खरीदने पर भी प्रतिबंध लगाता है।
- ILP प्रणाली के माध्यम से अंग्रेजों द्वारा आदिवासी समुदायों से साथ की जाने वाले व्यावसाय हितों को भी संरक्षित किया गया था।
- स्वतंत्रता के बाद 'इनर लाइन परमिट' प्रणाली में भारत सरकार द्वारा संशोधन किया गया था 'ब्रिटिश विषयों' पद को 'भारत के नागरिक' से प्रतिस्थापित कर दिया गया।
- वर्तमान में ILP प्रणाली का मुख्य उद्देश्य, ILP के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में अन्य भारतीय नागरिकों को बसने से रोकना है ताकि स्थानीय आदिवासी समुदायों की रक्षा की जा सके।
ILP तथा नागरिकता संशोधन अधिनियम:
- नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act- CAA) में 'इनर लाइन प्रणाली' सहित कुछ अन्य श्रेणियों में छूट प्रदान की गई है।
- नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), संविधान की 6वीं अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों तथा इनर लाइन परमिट (ILP) प्रणाली के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा।
- CAA अधिनियम के पूर्वोत्तर भारत में विरोध के बाद राष्ट्रपति द्वारा कानून में (संशोधन) आदेश, 2019 जारी किया गया जो BEFR, 1873 में संशोधन का प्रावधान करता है। राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से ILP को मणिपुर तथा नगालैंड के कुछ हिस्सों में विस्तारित किया गया था।
याचिका में की गई मांग:
- मूल BEFR में असम के कामरूप, दारंग, नोगोंग (अब नागांव), सिबसागर, लखीमपुर और कछार ज़िले शामिल थे।
- याचिका में कहा गया है राष्ट्रपति के आदेश के बाद ILP को लागू करने की असम सरकार की शक्ति समाप्त हो गई है।
- अगर ‘इनर लाइन परमिट’ को असम राज्य में विस्तारित किया जाता है तो नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (Citizenship Amendment Act- CAA) राज्य में प्रभावी नहीं होगा। जिससे असम के लोगों के हितों का बेहतर तरीके से संरक्षण किया जा सकेगा।
असम पर प्रभाव:
- यदि असम में यदि ILP को लागू किया जाता है तो असम के अवैध आप्रवासियों को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत नागरिकता नहीं मिलेगी।
- अवैध आप्रवासियों को असम में प्रवेश करने से प्रतिबंधित किया जा सकेगा।
आगे की राह:
- असम राज्य कई वर्षों से अवैध प्रवास का सामना कर रहा है। केंद्र तथा राज्य सरकार के राजनीतिक स्वार्थों के कारण अभी तक असम में अभी अवैध प्रवास की समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। अत: केंद्र सरकार को चाहिये कि वह असम के संबंध में केंद्र सरकर की ILP नीति को स्पष्ट करे ताकि राज्य के हितों का बेहतर तरीके से समाधान किया जा सके।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
द अर्बन लर्निंग इंटर्नशिप प्रोग्राम-ट्यूलिप
प्रीलिम्स के लियेद अर्बन लर्निंग इंटर्नशिप प्रोग्राम-ट्यूलिप मेन्स के लियेट्यूलिप कार्यक्रम का विवरण और सरकार द्वारा इस विषय पर किये गए अन्य प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने देश में अपनी तरह का पहला ‘द अर्बन लर्निंग इंटर्नशिप प्रोग्राम-ट्यूलिप’ (The Urban Learning Internship Program-TULIP) लॉन्च किया है।
कार्यक्रम संबंधी प्रमुख बिंदु
- अपनी तरह के इस पहले कार्यक्रम में स्नातक स्तर की शिक्षा पूरी कर चुके छात्रों को देश भर के शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies-ULBs) एवं स्मार्ट सिटी जैसी परियोजनाओं में इंटर्नशिप (Internship) करने का अवसर मिलेगा।
- इंटर्नशिप की अवधि आठ सप्ताह से एक वर्ष तक की हो सकती है, हालाँकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस दौरान छात्रों को किसी प्रकार का भुगतान किया जाएगा अथवा नहीं।
- कार्यक्रम की शुरुआत के साथ ही इससे संबंधित पोर्टल भी लॉन्च किया गया है।
- ट्यूलिप कार्यक्रम 4400 शहरी स्थानीय निकायों और स्मार्ट शहरों के माध्यम से भारत में इंटर्नशिप का बड़ा अवसर प्रदान करेगा।
- इस कार्यक्रम का कोई भी विशिष्ट बजट निर्धारित नहीं किया गया है, किंतु शहरी स्थानीय निकाय और स्मार्ट सिटी चाहें तो वेतन अथवा भत्तों का भुगतान करने के लिये केंद्र द्वारा आवंटित प्रशासनिक खर्चों का उपयोग कर सकते हैं। इस संबंध में वे अपनी स्वयं की चयन प्रक्रिया भी निर्धारित कर सकते हैं।
- यह योजना आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) तथा अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (All India Council for Technical Education-AICTE) के मध्य 5 वर्ष का संयुक्त उपक्रम है।
- इस संबंध में जारी किये गए दिशा-निर्देशों के अनुसार, आवेदक भारतीय नागरिक होना चाहिये जिसने बीते 18 महीनों के भीतर कॉलेज का अंतिम वर्ष पूरा किया हो।
कार्यक्रम के लाभ
- अनुमान के अनुसार, पहले वर्ष में इस कार्यक्रम के तहत 25000 छात्रों को इंटर्नशिप का अवसर मिलेगा, इससे न केवल अधिक-से-अधिक युवाओं को शहरी स्थानीय निकायों की विस्तृत कार्यप्रणाली का प्रत्यक्ष अनुभव मिलेगा, बल्कि इसके ज़रिये देश में एक ऐसा मानव संसाधन पूल भी तैयार होगा जिसे उद्योग अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य के लिये अनुबंधित कर सकेंगे।
- इंटर्नशिप कार्यक्रम के माध्यम से छात्रों को व्यावहारिक परिस्थितियों में कार्य करने का अनुभव मिलेगा, जिससे वे बाज़ार की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का आसानी से सामना कर सकेंगे। इस प्रकार छात्रों के लिये उपलब्ध विकल्पों की संख्या में भी वृद्धि होगी।
- इसके ज़रिये राष्ट्र-निर्माण में युवाओं की क्षमता का यथासंभव प्रयोग हो सकेगा।
- यह कार्यक्रम भारत की शहरी चुनौतियों के समाधान के लिये सह-निर्माण की प्रक्रिया में युवाओं को जोड़ने के साथ ही नए विचारों और ऊर्जा के प्रसार को बढ़ावा देगा।
आगे की राह
- ट्यूलिप कार्यक्रम ‘न्यू इंडिया’ की नींव रखने में मददगार होगा क्योंकि यह छात्रों को व्यावहारिक अनुभव देने के साथ ही शहरी स्थानीय निकायों और स्मार्ट शहरों के कामकाज में नए विचारों और नवीन सोच को भी बढ़ावा देगा।
- यह कार्यक्रम युवाओं को नई सोच और अभिनव तौर तरीकों से स्थानीय शहरी निकायों के काम काज में सुधार लाने का अवसर प्रदान करेगा।
स्रोत: द हिंदू
लॉकडाउन के दौरान अवैध शिकार में वृद्धि
प्रीलिम्स के लिये:वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया ,वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 मेन्स के लिये:लॉकडाउन के दौरान अवैध शिकार में वृद्धि से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (World Wide Fund for Nature-India) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु देशभर में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान वन्यजीवों के शिकार में वृद्धि हुई है।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया के ‘ट्रैफिक’ (TRAFFIC) प्रभाग द्वारा यह अध्ययन किया गया है। ‘ट्रैफिक’ एक वन्यजीव तस्करी निगरानी नेटवर्क है जो वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर इंडिया के कार्यक्रम प्रभाग के रूप में कार्य करता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन अवधि के दौरान वन्यजीवों के अवैध शिकार में दोगुने से भी अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।
- रिपोर्ट के अनुसार, वन्यजीवों का अवैध शिकार भोजन और स्थानीय बाज़ारों में बिक्री हेतु किया गया है।
- लॉकडाउन के दौरान (23 मार्च-3 मई) वन्यजीवों के शिकार की संख्या बढ़कर 88 हो गई है, जबकि लॉकडाउन से पूर्व (10 फरवरी-22 मार्च) यह संख्या 35 थी।
- लॉकडाउन के दौरान कुल 9 तेंदुओं का शिकार किया गया है, जबकि लॉकडाउन से पहले यह संख्या 4 थी।
- रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा लगातार प्रयासों के बावजूद लॉकडाउन अवधि के दौरान वन्यजीव अत्यधिक खतरे में है।
- लॉकडाउन से पहले अंग्युलेट (Ungulate) के शिकार की संख्या 8 (35 में से) थी, जो लॉकडाउन के बाद बढ़कर 39 (88 में से) हो गई है। दूसरे शब्दों में कहे तो लॉकडाउन से पूर्व इन वन्यजीवों का 22% था, जबकि लॉकडाउन के बाद यह आँकड़ा 44% तक पहुँच गया।
- लॉकडाउन की अवधि के दौरान विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कुल 222 लोगों को अवैध शिकार के मामलों में गिरफ्तार किया गया, जबकि लॉकडाउन के पहले 85 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
- लॉकडाउन अवधि के दौरान कछुओं की अवैध तस्करी के मामले कम आए है साथ ही इससे संबंधित कोई गिरफ्तारी भी नहीं हुई है।
- राजस्थान में विलुप्त होने के कगार पर खड़े चिंकारा जैसे वन्यजीवों के अवैध शिकार की सूचना मिली है। चिंकारा जैसे अन्य वन्यजीव ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972’ के तहत संरक्षित हैं।
छोटे वन्यजीवों का शिकार:
- छोटे वन्यजीवों जैसे खरगोश, साही, पंगोलीन, बंदर, छोटी जंगली बिल्लियाँ, इत्यादि के भी अवैध शिकार में वृद्धि दर्ज की गई है।
- अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में छोटे वन्यजीवों की उच्च मांग रहती है लेकिन वर्तमान समय (लॉकडाउन के दौरान) में स्थानीय बाज़ारों में इनके मांस की आपूर्ति की गई है।
- लॉकडाउन से पूर्व इनके शिकार का प्रतिशत 17% था, जबकि लॉकडाउन के बाद यह आँकड़ा 25% तक पहुँच गया।
- रिपोर्ट के अनुसार, अगर इसी तरह छोटे वन्यजीवों का शिकार किया जाता रहा तो बाघ, शेर और तेंदुए जैसे वन्यजीवों को एक गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है जो हमारे पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाए रखने के लिये उचित नहीं है।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
[The wildlife (Protection) Act,1972]:
- वर्ष 1972 में स्टॉकहोम कांफ्रेंस के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये सरकार ने देश के वन्यजीवों की प्रभावी ढंग से रक्षा हेतु तस्करी, अवैध शिकार व वन्यजीव और वनोत्पादों के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 को अधिनियमित किया।
- जनवरी 2003 में इस अधिनियम को संशोधित किया गया और इसका नाम भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 2002 रखा गया इसके अंतर्गत दंड तथा ज़ुर्माने के प्रावधान को कठोर कर दिया गया।
- यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को और अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। यह अधिनियम भारत में लागू है।
- इस कानून में राज्य वन्यजीव सलाहकार बोर्ड, जंगली पशुओं और पक्षियों के शिकार पर नियंत्रण, वन्यजीवों से समृद्ध अभ्याराणों एवं राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना, जंगली पशुओं के व्यापार पर नियंत्रण, पशु उत्पादों पर कानून व कानून के उलंघन पर कानूनी सज़ा का प्रावधान है।
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (World Wide Fund for Nature-India) |
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आगे की राह:
- वन्यजीवों के संरक्षण हेतु देश में निर्मित सख्त कानूनों के बावजूद इनके शिकार को रोक पाना अभी भी संभव नहीं हुआ है।
- इन कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सरकारी एजेंसियों को जवाबदेह बनाए जाने के साथ ही भारत के प्रत्येक नागरिकों की भी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वे वन्यजीवों को किसी तरह का नुकसान न पहुँचाए। देश में वन्यजीवों के संरक्षण हेतु लागू नियम के बारे में लोगों को जागरूक करने की भी अवश्यकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत में प्राकृतिक आपदा से विस्थापन
प्रीलिम्स के लिये:सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट मेन्स के लिये:भारत में प्राकृतिक आपदा से विस्थापन की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (Centre for Science and Environment-CSE) द्वारा जारी एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में मौसम संबंधी आपदाओं के कारण 50 लाख लोग विस्थपित हुए हैं, जो कि विश्व में सबसे ज़्यादा है।
प्रमुख बिंदु:
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाले कुल आंतरिक विस्थापनों (Internal Displacements) में भारत का पाँचवा स्थान रहा। इन प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़, चक्रवात, सूखा, इत्यादि शामिल हैं।
- वर्ष 2019 में 19 प्रमुख चरम मौसमी की घटनाओं के कारण 1357 लोगों की मृत्यु हुई है।
- रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम मानसून के कारण आई बाढ़ से 26 लाख लोग विस्थापित हुए थे, जबकि सिर्फ चक्रवात फानी (Fani) के कारण 18 लाख लोगों का विस्थापन हुआ था।
- गौरतलब है कि 19 राज्यों में सूखे की स्थिति से उत्पन्न समस्याओं के कारण 63 हज़ार लोग विस्थापित हुए हैं।
- रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि कई लोग रोज़गार की तलाश में भी विस्थापित हुए हैं। वर्तमान में लगभग 45 करोड़ लोगों के विस्थापन में से अधिकांश अपने ही राज्य में विस्थापित हुए हैं। वर्ष 2011 में 1.7 करोड़ से अधिक नए लोग रोज़गार की तलाश में ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में विस्थापित हुए हैं।
रिपोर्ट के अन्य प्रमुख बिंदु:
- रिपोर्ट में वन, जल, अपशिष्ट, वायु, भूमि, वन्य जीवन और अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर भी कुछ जानकारियाँ साझा की गई हैं।
- वर्ष 2014-18 के बीच बाघों की संख्या में 747 की वृद्धि दर्ज की गई। हालाँकि बाघों के संरक्षण के लिये आवंटित कुल क्षेत्र में 179 वर्ग किलोमीटर की कमी दर्ज की गई है।
- 38% ज़िलों के वन आच्छादन में भी कमी आई है, जबकि 21 में से 5 नदियाँ खत्म होने की कगार पर हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (Centre for Science and Environment-CSE) |
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संयुक्त राष्ट्र बाल कोष द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट:
- गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund- UNICEF) द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में प्राकृतिक आपदाओं, संघर्ष और हिंसा के कारण 5 मिलियन से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं।
- वर्ष 2019 में भारत में आंतरिक रूप से सर्वाधिक विस्थापन हुआ है। भारत के बाद क्रमश: फिलीपींस, बांग्लादेश और चीन का स्थान है।
- भारत, फिलीपींस, बांग्लादेश, और चीन प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होने वाले शीर्ष देश हैं, इन देशों में वैश्विक आपदा-प्रेरित विस्थापन का लगभग 69% योगदान है।
- भारत में वर्ष 2019 में कुल 5,037,000 लोगों का आंतरिक विस्थापन हुआ जिनमें से 5,018,000 लोगों का विस्थापन प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुआ है।
स्रोत: द हिंदू
आर्कटिक क्षेत्र में तेल रिसाव
प्रीलिम्स के लिये:अंबरनाया नदी, पर्माफ्रॉस्ट तथा सक्रिय परत, तेल रिसाव मेन्स के लिये:पर्माफ्रॉस्ट का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
रूस के 'आर्कटिक क्षेत्र' में स्थित अंबरनाया (Ambarnaya) नदी में बड़े पैमाने पर ‘तेल रिसाव’ (Oil Spill) की दुर्घटना के बाद रूसी राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा की गई।
प्रमुख बिंदु:
- अंबरनाया नदी, जिसमें तेल रिसाव हुआ है, पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में बहने वाली एक नदी है। 20,000 टन डीज़ल फैलने के बाद, नदी की सतह गहरी लाल रंग की हो गई।
- नोरिल्स्क (Norilsk) नगर; जो आर्कटिक सर्किल के ऊपर स्थित है, के पास स्थित एक बिजली संयंत्र के ईंधन टैंक के गिर जाने के कारण यह घटना हुई है।
- यह दुर्घटना आधुनिक रूसी इतिहास की दूसरी बड़ी ‘तेल रिसाव’ घटना है। इससे पूर्व ऐसी ही दुर्घटना वर्ष 1994 में हुई थी जिसमें कच्चे तेल का रिसाव कई महीनों तक चला था।
तेल रिसाव का कारण:
- नॉरिल्स्क में स्थित तापविद्युत गृह ‘पर्माफ्रॉस्ट’ (Permafrost) पर बनाया गया है। पर्माफ्रॉस्ट सतह जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार कमज़ोर हो रही है।
- पर्माफ्रॉस्ट पिघलने के कारण वह आधार; जिस पर संयंत्र का ईंधन टैंक टिका हुआ था, कमज़ोर हो गया तथा 'तेल रिसाव' की दुर्घटना हो गई। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि ईंधन टैंक 30 वर्षों से इसी पर्माफ्रॉस्ट पर टिका हुआ था।
दुर्घटना का प्रभाव:
- पर्यावरणविदों के अनुसार, नदी की सफाई करना मुश्किल होगा क्योंकि नदी एकाकी निर्जन स्थान पर है तथा नदी की गहराई भी बहुत कम है। तेल रिसाव का आयतन भी बहुत अधिक है।
- आर्कटिक जलमार्ग के अवरुद्ध हो जाने के कारण कम-से-कम 76 मिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है।
- तेल रिसाव से वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि तथा मृदा प्रदूषण होगा।
पर्माफ्रॉस्ट तथा सक्रिय परत:
- पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) ऐसे स्थान को कहते हैं जो कम-से-कम लगातार दो वर्षों तक कम तापमान पर होने के कारण जमा हुआ हो।
- उत्तरी गोलार्द्ध में लगभग एक चौथाई भूमि क्षेत्र में पर्माफ्रॉस्ट है। पर्माफ्रॉस्ट पर हमेशा हिमावरण नहीं पाया जाता है।
- पर्माफ्रॉस्ट में मृदा, चट्टान और हिम एक साथ पाए जाते हैं।
- पर्माफ्रॉस्ट की ऊपरी मृदा परत जिसे ‘सक्रिय परत’ (Active Layer) कहा जाता है। ऊपरी सक्रिय परत में हिम ग्रीष्मकाल में पिघल जाती है जबकि शीतकाल में पिघल जाती है।
जलवायु परिवर्तन का पर्माफ्रॉस्ट पर प्रभाव:
- वैश्विक तापन के कारण पर्माफ्रॉस्ट पिघलना शुरू हो जाता है। जिसके निम्नलिखित प्रभाव देखने को मिल सकते हैं:
- उत्तरी गोलार्द्ध में कई ग्राम पर्माफ्रॉस्ट पर बसे हुए हैं। पर्माफ्रॉस्ट जमी अवस्था में एक मज़बूत आधार के रूप में कार्य करता है परंतु वैश्विक तापन से इसके पिघलने के कारण घरों, सड़कों तथा अन्य बुनियादी ढाँचे के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है।
- जब परमाफ्रॉस्ट जमी अवस्था में होता है तो मृदा में मौजूद जैविक कार्बन का विघटन नहीं हो पाता है परंतु जब परमाफ्रॉस्ट पिघलता है तो सूक्ष्म जीवाणु इस सामग्री को विघटित करना शुरू कर देते हैं। जिससे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में मुक्त होती हैं।
रूस द्वारा उठाए गए कदम:
- क्षेत्र में आपातकाल की घोषणा की गई है ताकि नदी की सफाई के लिये अतिरिक्त सुरक्षा बलों तथा संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
- दुर्घटना के बाद विद्युत संयंत्र के प्रमुख को हिरासत में लिया गया है, तथा उसके खिलाफ तीन आपराधिक मामलों के तहत कार्यवाही शुरू की गई है।
निष्कर्ष:
- यदि वैश्विक तापन को 2°C तक सीमित कर लिया जाता है तो वर्ष 2100 के अंत तक पर्माफ्रॉस्ट का एक चौथाई भाग समाप्त होगा। जिससे समुद्र जल स्तर में लगभग 1.1 मीटर तक वृद्धि हो सकती है।अत: पर्माफ्रॉस्ट के संरक्षण के लिये ‘आर्कटिक परिषद’ के सदस्यों तथा अन्य देशों को एक साथ मिलकर कार्य करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 05 जून, 2020
बासु चटर्जी
04 जून, 2020 को मशहूर फिल्मकार बासु चटर्जी (Basu Chatterjee) का 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। बासु चटर्जी ने हिंदी के साथ-साथ बंगाली सिनेमा में भी काफी कार्य किया था। यथार्थवादी फिल्मकार के रूप में पहचाने जाने वाले बासु चटर्जी की फिल्में 70 के दशक की फिल्मों के मूल स्वरूप से बिलकुल इतर थीं। बासु चटर्जी का जन्म वर्ष 1930 को अजमेर में हुआ था और एक लेखक तथा निर्देशक के तौर पर उन्हें उनकी अनूठी फिल्मों के लिये जाना जाता था। बासु चटर्जी ने वर्ष 1969 में आई फिल्म 'सारा आकाश' (Sara Akash) के साथ बतौर निर्देशक अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की थी। बासु चटर्जी की कुछ प्रमुख और लोकप्रिय फिल्मों में शामिल हैं- ‘छोटी सी बात’ (1976), ‘रजनीगंधा’ (1974), ‘मंज़िल’ (1979), ‘स्वामी' (1977) और ‘बातों बातों में' (1979)। इसके अतिरिक्त उन्होंने दूरदर्शन के लिये भी कई लोकप्रिय धारावाहिकों का निर्माण किया, जिसमें ‘ब्योमकेश बख्शी’ (Byomkesh Bakshi) काफी प्रचलित है। बासु चटर्जी भारतीय सिनेमा में 70 के दशक के एक अग्रणी नाम के रूप में जाने जाते थे, भारतीय सिनेमा और खासकर हिंदी सिनेमा में उनके बहुमूल्य योगदान को देखते हुए उन्हें कई बड़े पुरस्कारों से नवाज़ा गया था, वर्ष 1992 में उन्हें उनकी फिल्म ‘दुर्गा’ के लिये ‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया।
सुमेरु पैक्स (SUMERU PACS)
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) ने सुमेरु पैक्स (SUMERU PACS) नाम से एक उपकरण विकसित किया है जो स्वास्थ्य कर्मियों के समक्ष व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protective Equipment-PPE) के प्रयोग के दौरान आने वाली समस्याओं को समाप्त कर PPE के प्रयोग को और अधिक आरामदायक बनाएगा। उल्लेखनीय है कि कई शोधों में वैज्ञानिकों ने पाया कि PPE किट को 30 मिनट से अधिक समय तक प्रयोग करने से स्वास्थ्यकर्मी काफी अधिक असहज महसूस करते हैं और काफी लंबे समय तक PPE किट के प्रयोग से स्वास्थ्य कर्मियों को अत्यधिक पसीने (Sweating) जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे कार्य की स्थितियाँ और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाती हैं। इसी समस्या के समाधान के रूप में DRDO ने ‘सुमेरु पैक्स’ (SUMERU PACS) नाम से वायु संचालन प्रणाली (Air Circulation System) विकसित की है, जिसे व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) के अंदर लगभग 500 ग्राम वजन के छोटे बैग के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। DRDO द्वारा विकसित यह प्रणाली उन डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मचारियों के लिये अत्यधिक लाभदायक है जो अस्पतालों में छह से अधिक घंटों तक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) किट का प्रयोग करने को मज़बूर है। विदित हो कि DRDO रक्षा प्रणालियों के डिज़ाइन एवं विकास के साथ-साथ तीनों क्षेत्रों की रक्षा सेवाओं की आवश्यकताओं के अनुसार विश्व स्तर की हथियार प्रणाली एवं उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है। इसकी स्थापना वर्ष 1958 में की गई थी और यह रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के तहत कार्य करता है।
भारतीय उद्योग परिसंघ
कोटक महिंद्रा बैंक (Kotak Mahindra Bank) के मौजूदा मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) उदय कोटक को वर्ष 2020-21 के लिये भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation Of Indian Industry-CII) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। साथ ही संजीव बजाज को CII का उपाध्यक्ष चुना गया है। उल्लेखनीय है कि उदय कोटक बीते दो दशकों से CII के साथ जुड़े हुए हैं और उद्योग संगठन को अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) सलाह और परामर्शी प्रक्रियाओं के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था, उद्योग, सरकार और नागरिक समाज के विकास हेतु अनुकूल वातावरण बनाने की दिशा में कार्य करता है। CII एक गैर-सरकारी और गैर-लाभकारी संगठन है, जिसका नेतृत्व और प्रबंधन स्वयं भारतीय उद्योग से संबंधी लोगों द्वारा किया जाता है, इस संगठन में निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के लगभग 9100 सदस्य हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) की स्थापना वर्ष 1895 में हुई थी और तकरीबन 125 वर्षों से यह भारत की विकास यात्रा को आकार देने तथा राष्ट्रीय विकास में भारतीय उद्योग की भागीदारी को बढ़ाने की दिशा में कार्य कर रहा है।
तियानमेन स्क्वायर नरसंहार
04 जून, 2020 को तियानमेन स्क्वायर नरसंहार (Tiananmen Square Massacre) के 31 वर्ष पूरे हो गए हैं। तियानमेन स्क्वायर विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत अप्रैल 1989 में कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन शीर्ष नेता और समाज सुधारक हू याओबांग (Hu Yaobang) की मृत्यु के बाद हुई थी, जब हज़ारों छात्र और मज़दूर लोकतंत्र की मांग को लेकर सड़कों पर उतरने लगे, समय के साथ आंदोलनकारियों की संख्या बढ़ने लगी और तानाशाही समाप्त करने तथा लोकतंत्र बहाल करने की मांग भी तेज़ होने लगी। धीरे-धीरे विरोध प्रदर्शन इतने तेज़ हो गए कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार को अपने कई कार्यक्रम रद्द करने पड़े, ये विरोध प्रदर्शन चीन की सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरने लगे और अंततः चीन की सरकार ने सैन्य शक्ति के दम पर प्रदर्शन को कुचलने का निर्णय लिया। इसी उद्देश्य के साथ 4 जून को चीन की सेना ने तियानमेन स्क्वायर में प्रवेश किया और वहाँ मौजूद ‘गॉडेस ऑफ डेमोक्रेसी' की प्रतिमा को टैंक से उड़ा दिया गया, जब वहाँ मौजूद छात्रों और मज़दूरों ने इसका विरोध करना चाहा तो सैनिकों द्वारा उन पर गोलियाँ चलाई गईं। एक अनुमान के अनुसार, चीन की सरकार के आदेश पर की गई इस सैन्य कार्यवाही में तकरीबन 10000 लोगों की मृत्यु हुई थी। उल्लेखनीय है कि तियानमेन स्क्वायर में हुए विरोध प्रदर्शन को चीन के आधुनिक राजनीतिक इतिहास का सबसे बड़ा राजनीतिक प्रदर्शन कहा जाता है।