शहरों में आँगनवाड़ी लाभार्थी
प्रीलिम्स के लिये:एकीकृत बाल विकास योजना मेन्स के लिये:भारतीय शहरों में आँगनवाड़ी लाभार्थियों की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
समाचार पत्र ‘द हिंदू’ द्वारा सूचना के अधिकार (Right to Information- RTI) के तहत दायर एक याचिका के जवाब में सरकार द्वारा भारतीय शहरों में आँगनवाड़ी लाभार्थियों की स्थिति संबंधी जानकारी प्रदान की गई है।
मुख्य बिंदु:
- सरकार ने बताया है कि देश में प्रत्येक 100 आंगनवाड़ी लाभार्थियों में से केवल सात शहरी क्षेत्रों से संबंधित होते हैं।
पृष्ठभूमि:
- महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा एकीकृत बाल विकास योजना (Integrated Child Development Services-ICDS) के तहत छह सेवाओं का पैकेज प्रदान करने के लिये आँगनवाड़ी केंद्रों या डे-केयर सेंटर्स (Day-Care Centres) की स्थापना की जाती है।
- ये छः सेवाएँ हैं-
- पूरक पोषण (Supplementary Nutrition)
- प्री-स्कूल गैर-औपचारिक शिक्षा (Pre-School Non-Formal Education)
- प्रतिरक्षा (Immunisation)
- पोषण (Nutrition)
- स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education)
- रेफरल सेवाएँ (Referral Services)
- इन आँगनवाड़ी केंद्रों का उद्देश्य शिशु मृत्यु दर और बाल कुपोषण को कम करना है।
- आँगनवाड़ी लाभार्थियों में छह महीने से छह वर्ष की आयु के बच्चे, गर्भवती महिलाएँ और स्तनपान कराने वाली माताएँ शामिल हैं।
सरकार द्वारा प्रदत्त आँकड़े:
- शहरी क्षेत्रों की स्थिति:
- सरकार द्वारा दिये गए RTI के जवाब के अनुसार, 30 सितंबर, 2019 को देश में आँगनवाड़ी योजना के तहत पंजीकृत कुल 7.95 करोड़ लाभार्थियों में से केवल 55 लाख लाभार्थी शहरी आँगनवाड़ी केंद्रों में पंजीकृत थे।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल आबादी में से 32% शहरों में निवास करती है, हालाँकि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि शहरी अवस्थापन की परिभाषा को व्यापक कर दिया जाए तो शहरी आबादी का हिस्सा बहुत अधिक हो जाएगा।
- देश भर में लगभग 13.79 लाख आँगनवाड़ी केंद्र हैं, जिनमें से 9.31 लाख केंद्र सरकार की वेब-आधारित डेटा प्रविष्टि प्रणाली (Web-enabled Data Entry System) से जुड़े हुए हैं जिसे रैपिड रिपोर्टिंग सिस्टम (Rapid Reporting System) कहा जाता है।
- पूरे देश में बच्चों की स्थिति:
- पोषण स्थिति पर हाल ही में हुए एक अखिल भारतीय अध्ययन ‘व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण-2016-18’ (Comprehensive National Nutrition Survey 2016-18) के अनुसार पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में से 35% बच्चे बौनेपन (Stunting) और 17% बच्चे लंबाई के अनुसार कम वज़न (Wasting) की समस्या से प्रभावित पाए गए।
- यह भी देखा गया कि देश में 5 से 9 वर्ष आयु वर्ग के कुल बच्चों में से 22% बच्चे बौनेपन (Stunting) और 23% बच्चे उम्र के अनुसार कम वज़न (UnderWeight) से ग्रस्त पाए गए।
- ग्रामीण क्षेत्रों से तुलना:
- केंद्र सरकार की वेब-आधारित डेटा प्रविष्टि प्रणाली से संबंधित आँगनवाड़ी केंद्रों में से 1.09 लाख शहरी क्षेत्रों में और शेष 8.22 लाख देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं।
- आँकड़ों से यह भी पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों के बच्चों में ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की तुलना में दो से तीन गुना अधिक मोटापे की समस्या देखी गई है।
- कारण:
- शहरों में यह स्थिति मुख्य रूप से आँगनवाड़ी केंद्रों की भारी कमी के कारण है।
- शहरी क्षेत्रों में आँगनवाड़ी केंद्रों की कमी के कारण शिशु एवं बाल विकास के लिये सरकार द्वारा चलाए जा रहे प्रमुख कार्यक्रमों तक शहरी आबादी की पहुँच सुनिश्चित नहीं हो पाती है।
आगे की राह:
नीति आयोग ने शहरों में प्रवासन, जनसंख्या घनत्व एवं श्रमिकों और लाभार्थियों के समक्ष लंबे समय से चली आ रही चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए शहरी क्षेत्रों में ICDS कार्यक्रम को मज़बूत करने हेतु एक मसौदा संबंधी कार्य पत्र तैयार किया है।
स्रोत- द हिंदू
ग्राम न्यायालय
प्रीलिम्स के लिये:ग्राम न्यायालय मेन्स के लिये:ग्राम न्यायालयों के गठन से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आठ राज्यों पर ग्राम न्यायालयों की स्थापना न करने के कारण जुर्माना लगाया है।
मुख्य बिंदु:
- वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने गैर-सरकारी संगठन ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ सोसाइटी फॉर फास्ट जस्टिस’ (National Federation of Societies for Fast Justice) द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया था।
क्या था मामला?
- PIL जारी करने के समय केवल 208 ग्राम न्यायालय कार्य कर रहे थे जबकि 12वीं पंचवर्षीय योजना के मुताबिक, देश में 2500 ग्राम न्यायालयों की आवश्यकता थी।
- आवश्यक कार्यवाही न करने वाले राज्यों असम, चंडीगढ़, गुजरात, हरियाणा, ओडिशा, पंजाब, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों पर सर्वोच्च न्यायालय ने एक-एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया।
जुर्माना लगाने का उद्देश्य:
- सर्वोच्च न्यायालय ने ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब आबादी की न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 2008 में संसद द्वारा पारित एक अधिनियम के मद्देनज़र ग्राम न्यायालय स्थापित करने में विफल रहने के मामले में कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों पर जुर्माना लगाया है।
ग्राम न्यायालय (Gram Nyayalaya):
- विधि एवं न्याय मंत्रालय ने न्याय प्रणाली को आम जन-मानस के निकट ले जाने के लिये संविधान के अनुच्छेद 39-A के अनुरूप ‘ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008’, संसद में पारित किया।
- इसके तहत 2 अक्तूबर, 2009 से कुछ राज्यों में ग्राम न्यायालयों ने कार्य करना शुरू किया।
अनुच्छेद-39 (a):
समान न्याय और नि:शुल्क कानूनी सहायता का प्रावधान; राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि कानूनी व्यवस्था का संचालन समान अवसर के आधार पर हो जो न्याय को बढ़ावा देता हो और विशेष रूप से उपयुक्त कानून या योजनाओं या किसी अन्य तरीके से मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करेगा,साथ ही यह सुनिश्चित करेगा कि आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित नहीं किया गया है।
ग्राम न्यायालय की संरचना:
- ग्राम न्यायालय में प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट स्तर का न्यायाधीश होता है जिसे ‘न्यायाधिकारी’ कहा जाता है।
- इसकी नियुक्ति संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्य सरकार करती है।
ग्राम न्यायालय का कार्यक्षेत्र:
- ग्राम न्यायालय सिविल और आपराधिक दोनों प्रकार के मामले देखता है। यह आपराधिक मामलों में उन्हीं को देखता है जिनमें अधिकतम 2 वर्ष की सज़ा होती है।
- सिविल मामलों में न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम 1948, सिविल अधिकार अधिनियम 1955, बंधुआ मज़दूरी (उन्मूलन) अधिनियम 1976, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के मामले आते हैं।
ग्राम न्यायालय की कार्यप्रणाली:
- इसमें सिविल मामलों को आपसी समझौतों से, जबकि आपराधिक मामलों में ‘प्ली बार्गेनिंग’ (Plea Bargaining) के माध्यम से अभियुक्तों को अपना अपराध स्वीकार करने का मौका दिया जाता है।
अपील का तरीका:
- आपराधिक मामलों में अपील सत्र न्यायालय में की जा सकती है जहाँ इस तरह की अपील की सुनवाई तथा निपटान अपील दायर करने की तारीख से छह महीने के भीतर किया जाएगा।
- दीवानी मामलों में अपील ज़िला न्यायालय के पास की जाएगी, जिसकी सुनवाई और निपटान अपील दायर करने की तारीख से छह महीने के भीतर किया जाएगा।
आगे की राह:
ऐसा अनुमान है कि ग्राम न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों में विलंबित मामलों की संख्या में 50% तक की कमी ला सकते हैं, अतः लोगों को अधिक जागरूक करने के साथ-साथ ग्राम न्यायालयों को अधिक स्वयायत बनाने की आवश्यकता है ताकि सामाजिक न्याय के लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।
स्त्रोत: पीआईबी
जलवायु परिवर्तन शमन के लिये नाइट्रोजन प्रबंधन
प्रीलिम्स के लिये :नाइट्रोजन और जलवायु परिवर्तन मेन्स के लिये:नाइट्रोजन का पोषक तत्त्वों से प्रदूषक में बदलना |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) द्वारा प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन (Reactive Nitrogen) के बारे में फ्रंटियर्स रिपोर्ट (Frontiers Report) का प्रकाशन किया गया।
मुख्य बिंदु:
- रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन द्वारा उत्पन्न किया जा रहा एक मिश्रण स्वास्थ्य, जलवायु तथा पारिस्थितिक तंत्र के लिये खतरा बनकर उभरा है।
- यह अध्ययन 2018 -2019 के दौरान किया गया, जिसने नाइट्रोजन प्रदूषक को एक व्यापक चेतावनी के रूप में पेश किया है, फिर भी यह समस्या बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक समझ के परे अज्ञात और अनजान बनी हुई है।
रिपोर्ट से संबंधित महत्त्वपूर्ण पक्ष:
- यूरोपीय नाइट्रोजन मूल्यांकन (European Nitrogen Assessment) में नाइट्रोजन प्रदूषण के पाँच प्रमुख खतरों की पहचान की गई है:
- पानी की गुणवत्ता
- वायु गुणवत्ता
- ग्रीनहाउस गैस संतुलन
- पारिस्थितिक तंत्र
- जैव विविधता
- नाइट्रोजन प्रदूषण और संबंधित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के स्तर में तेज़ वृद्धि के कारकों में कृषि, परिवहन, उद्योग और ऊर्जा क्षेत्रों की बढ़ती मांग मुख्यतया ज़िम्मेदार है। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि नाइट्रस ऑक्साइड (N2O), ग्रीनहाउस गैस के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड से 300 गुना अधिक शक्तिशाली है।
नाइट्रोजन जनित समस्याएँ:
- एल्गी प्रस्फुटन:
उर्वरक, जल-वाह (Run-off) झीलों और जलमार्गों में एल्गी प्रस्फुटन (Algal Blooms) के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- मृत क्षेत्र :
- ‘मृत क्षेत्र’ हाइपोक्सिया (Hypoxia) के लिये एक अधिक सामान्य शब्द है, जो पानी में ऑक्सीजन के कम स्तर को संदर्भित करता है।
- हाइपोक्सिक क्षेत्र स्वाभाविक रूप से भी निर्मित हो सकते हैं, लेकिन वैज्ञानिक मानव गतिविधियों द्वारा निर्मित या विकसित के बारे में चिंतित हैं। हालाँकि कई भौतिक, रासायनिक और जैविक कारक हैं जो मृत क्षेत्रों के निर्माण के लिये ज़िम्मेदार है, लेकिन पोषक तत्त्वों से युक्त प्रदूषण मानव द्वारा बनाए गए इन क्षेत्रों का प्राथमिक कारण है।
- इसके अतिरिक्त पोषक तत्त्व जो भूमि से बाहर निकलते हैं या अपशिष्ट जल के रूप में नदियों और तटों में जमा होते हैं, शैवालों की अतिवृद्धि की स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं, जो कि एक सीमा के बाद पानी के तल में बैठ जाते हैं और विघटित हो जाते हैं। अपघटन प्रक्रिया ऑक्सीजन का उपभोग करती है और स्वस्थ समुद्री जीवन के लिये उपलब्ध ऑक्सीजन की आपूर्ति को कम करती है तथा ‘मृत क्षेत्र’ का निर्माण करती है ।
- ग्लोबल वार्मिंग:
जीवाश्म ईंधन और बायोमास दहन प्रक्रियाएँ नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) छोड़ती हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से NOx कहा जाता है। NOx एक अप्रत्यक्ष ग्रीनहाउस गैस है जो ग्लोबल वार्मिंग के लिये ज़िम्मेदार गैस है। - अम्ल-वर्षा:
कृषि से अमोनिया (NH3) का उत्सर्जन होता है जो अंततः प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों तक पहुँचता है तथा ग्रीनहाउस गैस नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन को बढ़ाता है।यह अंतिम उत्पाद के रूप में अम्लीय वर्षा के लिये उत्तरदायी है। - शीतलन प्रभाव:
अमोनिया गौण पार्टिकुलेट मैटर (PM-2.5) बनाने के लिये NOx के उत्पादों के साथ प्रतिक्रिया करता है जिसके परिणामस्वरूप PM-2.5 का वास्तव में जलवायु पर शीतलन प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह प्रकाश बिखेरता है और बादलों के निर्माण को बढ़ावा देता है।
अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी:
- स्कॉटलैंड अपने 2019 जलवायु परिवर्तन विधेयक में नाइट्रोजन बजट शामिल करने वाले देशों में से एक है।
- श्रीलंका की सरकार UNEP और अंतर्राष्ट्रीय नाइट्रोजन प्रबंधन प्रणाली के साथ सतत् नाइट्रोजन प्रबंधन पर संयुक्त राष्ट्र वैश्विक अभियान शुरू करने के लिये तैयार है।
नाइट्रोजन चक्र:
एक पारिस्थितिकीय परिप्रेक्ष्य से नाइट्रोजन चक्र में निम्न चरणों का समावेश होता है:
- नाइट्रोजन फिक्सेशन (Nitrogen Fixation):
वायुमंडलीय नाइट्रोजन मुख्य रूप से निष्क्रिय रूप (N2) में होता है जो कुछ जीवों द्वारा उपयोग किया जा सकता हैं; इसलिये इसे नाइट्रोजन निर्धारण (Fixation) नामक प्रक्रिया में जैविक या किसी अन्य निश्चित रूप में परिवर्तित किया जाना चाहिये। - नाइट्रीफिकेशन (Nitrification):
अमोनिया का नाइट्रेट में परिवर्तन- नाइट्रोसोमोनस जीवाणु अमोनिया को नाइट्रेट में तथा नाइट्रोबेक्टर द्वारा नाइट्रेट को नाइट्राइट में बदला जाता है। - एस्सिमिलेशन (Assimilation):
विभिन्न रूपों में नाइट्रोजन यौगिक, जैसे कि नाइट्रेट, नाइट्राइट, अमोनिया और अमोनियम के रूप में मिट्टी में नाइट्रोजन का प्रवेश। - अमोनीफिकेशन (Ammonification):
जैविक अपशिष्ट या जब जानवर अपशिष्ट का उत्सर्जन करते हैं, ऑर्गेनिक पदार्थ के रूप में नाइट्रोजन मिट्टी में पुनः प्रवेश करता है जहाँ अन्य विघटनकारी जीव इसे तोड़ने का कार्य करते हैं। इस विघटन से अमोनिया उत्पन्न होती है जो अन्य जैविक प्रक्रियाओं के लिये उपलब्ध होती है। - डिनाइट्रीफिकेशन (Denitrification):
यदि जलाक्रांत जैसी अवस्था होती है तो स्यूडोमोनास जैसे जीवाणु नाइट्रेट को अंतिम रूप से नाइट्रस ऑक्साइड और नाइट्रोजन में बदल देते हैं।
स्त्रोत: UNEP report
राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति मेन्स के लिये:राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2020-21 के बजट में की गई घोषणा के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (National Logistics Policy) जारी की जाएगी।
मुख्य बिंदु:
- प्रस्तावित नई नीति में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और प्रमुख नियामकों की भूमिकाओं को स्पष्ट किया जाएगा।
- भारत का लॉजिस्टिक्स क्षेत्र 20 से अधिक सरकारी एजेंसियों, 37 निर्यात संवर्द्धन परिषदों (Export Promotion Councils), 500 प्रमाणपत्रों (Certifications), 10000 उत्पादों (Commodities) और 160 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के बाज़ार के साथ अत्यधिक जटिल एवं विभाजित है।
- इसके अलावा इसमें 12 मिलियन रोज़गार आधार (Employment Base), 200 शिपिंग एजेंसियाँ (Shipping Agencies), 36 लॉजिस्टिक्स सेवाएँ (Logistics Services), 129 अंतर्देशीय कंटेनर डिपोट्स (Inland Container Depots-ICDs), 168 कंटेनर फ्रेट स्टेशन (Container Freight Stations- CFSs), 50 आईटी इकोसिस्टम (IT Ecosystems), बैंक और बीमा एजेंसियाँ भी शामिल हैं।
- भारतीय लॉजिस्टिक्स क्षेत्र 22 मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करता है, अत: इस क्षेत्र में सुधार करने से अप्रत्यक्ष लॉजिस्टिक्स लागत में 10% की कमी आएगी जिससे निर्यात में 5 से 8% की वृद्धि होगी।
- अगले दो वर्षों में भारतीय लॉजिस्टिक्स बाजार जो कि वर्तमान में 160 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है, बढ़कर 215 बिलियन अमेरीकी डॉलर होने की संभावना है।
- वर्तमान समय में लॉजिस्टिक्स लागत जो कि मौजूदा जीडीपी की 14% है, को वर्ष 2022 तक घटाकर जीडीपी के 10% से कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
लॉजिस्टिक्स नीति की आवश्यकता क्यों?
- वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति से भारत की व्यापार प्रतिस्पर्द्धा में सुधार होगा साथ ही, वैश्विक रैंकिंग में भारत के प्रदर्शन में सुधार से भारत को वैश्विक स्तर पर लॉजिस्टिक्स केंद्र बनाने में यह नीति मददगार साबित होगी।
- इस नीति को अपनाने से सिंगल विंडो इलेक्ट्रॉनिक लॉजिस्टिक्स बाजार के गठन और रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिलेगा।
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (Micro, Small and Medium Enterprises- MSME) को और अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये एक नई राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति बनाने की आवश्यकता है ।
राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति के लिये बजट वर्ष 2020- 21 में की गई घोषणाएँ-
- लॉजिस्टिक्स नीति के बेहतर क्रियान्वयन और परिवहन लागत को कम करने के लिये जीएसटी को अपनाया गया है जिसने परिवहन लागत को 20% कम किया है।
- सभी वेयरहाउस की जियो-टैगिंग की जाएगी।
- मछली और नाशपाती के लिये कोल्ड स्टोरेज चेन को बढ़ावा दिया जाएगा।
- वेयरहाउसिंग डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी (Warehousing Development and Regulatory Authority- WDRA) संबंधी मानदंडों को बेहतर तरीके से अपनाने के लिये भंडारण को बढ़ावा दिया जाएगा।
- भारतीय खाद्य निगम, केंद्रीय भंडारण निगम की मदद से सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership-PPP) मॉडल पर ब्लॉक/तालुक स्तर पर वेयरहाउसिंग स्थापित करने के लिये विजिबिलिटी गैप फंडिंग (Viability Gap Funding- VGF) की सुविधा प्रदान की जाएगी।
- बीजों को ग्राम भंडारण योजना के तहत महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाएगा जिससे लॉजिस्टिक्स लागत में कमी आएगी। इस उद्देश्य के लिये मुद्रा ऋण और नाबार्ड के तहत वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
- कृषि ट्रेनों को भी PPP Model पर चलाया जाएगा।
- जल्दी खराब होने वाले खाद्य पदार्थों की शीघ्र आवाजाही के लिये रेफ्रिजरेटेड वैन को पैसेंजर ट्रेनों के साथ जोड़ा जाएगा।
- शीघ्र खराब होने वाले खाद्य पदार्थों को वायुमार्ग के माध्यम से ले जाने के लिये ‘कृषि उड़ान योजना ‘ (Krishi Udan scheme) को बढ़ावा दिया जाएगा/लॉन्च किया जाएगा, जिसके चलते विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र और आदिवासी क्षेत्र लाभान्वित होंगे। यह निश्चित रूप से उत्पादन से उपभोग तक खाद्य पदार्थों की आवाजाही में मददगार साबित होगा।
- जैविक उत्पादों को प्रोत्साहन देने के लिये राष्ट्रीय जैविक ई-बाज़ार विकसित किया जाएगा।
- बागवानी को बढ़ावा देने के लिये क्लस्टर दृष्टिकोण अपनाया जाएगा। इसके लिये ‘एक उत्पाद एक जिले ‘ को प्रोत्साहित किया जाएगा।
- वेयरहाउसिंग के वित्तपोषण को बढ़ावा दिया जाएगा और ई-राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (National Agriculture Market) के साथ इसके एकीकरण को प्रोत्साहित किया जाएगा।
- उदय योजना के तहत 100 और हवाई अड्डे स्थापित किये जाएंगे।
- वर्तमान के 600 हवाई जहाज़ो में और 1200 हवाई जहाज़ो को शामिल किया जाएगा।
- वर्ष 2020-21 के संघीय बजट में परिवहन क्षेत्र के लिये 7 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
- अंतर्देशीय जलमार्ग, विशेष रूप से जल विकास मार्ग-1 (NW1) को शुरू किया जाएगा।
- वर्ष 2022 तक असम में धुबरी से सदिया तक अंतर्देशीय जलमार्ग का विस्तार किया जाएगा।
- अंतर्देशीय जलमार्ग को अर्थ-गंगा (Arth-Ganga) नामक कार्यक्रम के तहत बढ़ावा दिया जाएगा अर्थात, जिसमें नदी तट के क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देना शामिल हैं।
- दिल्ली-मुंबई और चेन्नई-बंगलूरु एक्सप्रेस हाई वे वर्ष 2023 तक चालू किये जाएंगे।
- 6000 किलोमीटर से अधिक के 12 राजमार्गों के निर्माण के लिये वर्ष 2024 तक फंड की पेशकश की जाएगी।
- एक और प्रमुख बंदरगाह के निगमीकरण के लिये शासकीय संरचना प्रस्तुत की जाएगी।
- 100 लाख करोड़ रुपये की राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन शुरू की गई है जिसमें 6500 से अधिक बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ शामिल हैं।
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन में सड़कों के लिये 19.6 लाख करोड़ रुपए, रेलवे के लिये 13.69 लाख करोड़ रुपये, हवाई अड्डों के लिये 14.3 लाख करोड़ रुपए और बंदरगाहों के लिये रुपए 1.01 लाख रुपए की परियोजनाएँ शामिल हैं।
स्रोत : पीआईबी
क्वांटम तकनीक और उसके अनुप्रयोग पर राष्ट्रीय मिशन
प्रीलिम्स के लिये:क्वांटम टेक्नोलॉजी और एप्लीकेशन पर राष्ट्रीय मिशन, क्वांटम तकनीक, बजट 2020-21 मेन्स के लिये:भारत में क्वांटम तकनीक के विकास से संबंधित मुद्दे, क्वांटम तकनीक और भविष्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने बजट 2020-21 में क्वांटम तकनीक और उसके अनुप्रयोग पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Quantum Technologies & Applications- NMQTA) की घोषणा की है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- इस मिशन के अंतर्गत क्वांटम प्रौद्योगिकी के विकास हेतु 5 वर्षों के लिये 8000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।
- इस मिशन का क्रियान्वयन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology) द्वारा किया जाएगा।
- चूँकि नई अर्थव्यवस्था नवाचार पर आधारित है तथा वर्तमान आर्थिक व्यवस्था को बाधित करती है क्योंकि वर्तमान समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट-ऑफ-थिंग्स, 3 डी प्रिंटिंग, ड्रोन, डीएनए डेटा स्टोरेज, क्वांटम कंप्यूटिंग आदि द्वारा दुनिया के आर्थिक विकास का पुनः निर्धारण किया जा रहा है इसलिये क्वांटम तकनीक के विकास एवं विस्तार की दिशा में उठाया गया यह कदम महत्त्वपूर्ण है।
- यदि भारत इस प्रौद्योगिकी (क्वांटम) में सफल रहता है तो भारत इस तकनीक में कामयाब होने वाला विश्व का तीसरा देश होगा।
मिशन का उद्देश्य
- इस मिशन का उद्देश्य भारत में क्वांटम तकनीक को विकसित कर देश के विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देकर प्रगतिशील बनाना है।
- क्वांटम तकनीक के विकास से कंप्यूटिंग, संचार, साइबर सुरक्षा क्षेत्र में नए आयाम सृजित किये जा सकते हैं।
मिशन के फोकस क्षेत्र
- आधारभूत विज्ञान से संबंधित क्षेत्र
- अनुवाद संबंधी अनुसंधान
- तकनीक का विकास
- राष्ट्रीय महत्त्व के अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में उच्च कौशल युक्त नौकरियों, मानव संसाधन का विकास, स्टार्ट-अप और उद्यमिता के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया है जो तकनीकी विकास का नेतृत्व करता है।
मिशन का महत्त्व
- यह मिशन अगली पीढ़ी के लिये कौशल युक्त जनशक्ति तैयार करने, अनुवाद संबंधी अनुसंधान को बढ़ावा देने और उद्यमिता एवं स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को प्रोत्साहित करने में सहायता करेगा।
- क्वांटम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, प्रौद्योगिकी विकास और उच्च शिक्षा विज्ञान तथा इंजीनियरिंग विषयों में उन्नत अनुसंधान को बढ़ावा देकर भारत को अन्य उन्नत देशों के समकक्ष लाया जा सकता है और कई प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभों को प्राप्त किया जा सकता है।
- क्वांटम प्रौद्योगिकियाँ तेज़ी से एक बड़ी विघटनकारी क्षमता के साथ विश्व स्तर पर विकसित हो रही हैं। अगली पीढ़ी की परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों जैसे- क्वांटम कंप्यूटर और कंप्यूटिंग, क्वांटम संचार, क्वांटम कुंजी वितरण, एन्क्रिप्शन, क्रिप्ट विश्लेषण, क्वांटम डिवाइस, क्वांटम सेंसिंग, क्वांटम सामग्री, क्वांटम घड़ी आदि को इस मिशन के तहत प्रेरित किया जा सकता है।
- क्वांटम विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विस्तार एयरो-स्पेस इंजीनियरिंग, न्यूमेरिकल वेदर प्रेडिक्शन (Numerical Weather Prediction), सिमुलेशन, संचार और वित्तीय लेनदेन, साइबर सुरक्षा, उन्नत विनिर्माण, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा इत्यादि क्षेत्र को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा।
- यह मिशन समाज की बढ़ती तकनीकी आवश्यकताओं को संबोधित करने में सक्षम होगा और अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए प्रमुख देशों के अंतर्राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी रुझानों और सड़कों के मानचित्रण को ध्यान में रखेगा।
- इस मिशन के कार्यान्वयन से क्वांटम कंप्यूटर, अवरोध मुक्त सुरक्षित संचार व्यवस्था, क्वांटम एन्क्रिप्शन, क्रिप्ट-विश्लेषण और इससे संबंधित तकनीकें विकसित होंगी जिससे देश में विशिष्ट राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों के समाधान में सहायता प्राप्त होगी।
- क्वांटम प्रौद्योगिकियों की सीमा एक प्रमुख प्रौद्योगिकी व्यवधान है, जो गणना, संचार और एन्क्रिप्शन के संपूर्ण प्रतिमान को बदल देगी। किंतु यह माना जाता है कि इस प्रौद्योगिकी से उभरते हुए क्षेत्र में बढ़त हासिल करने वाले देशों को बहुपक्षीय आर्थिक विकास और नेतृत्व की भूमिका निभाने से अधिक लाभ प्राप्त होगा।
क्वांटम प्रौद्योगिकी के बारे में
- क्वांटम प्रौद्योगिकी क्वांटम सिद्धांत पर आधारित है, जो परमाणु और उप-परमाणु स्तर पर ऊर्जा और पदार्थ की प्रकृति की व्याख्या करती है।
- इस तकनीक की सहायता से डेटा और इन्फॉर्मेशन को कम-से-कम समय में प्रोसेस किया जा सकता है।
- क्वांटम कंप्यूटर की मदद से कंप्यूटिंग से जुड़े टास्क कम-से-कम समय में किए जा सकते हैं।
- क्वांटम कंप्यूटर्स क्वांटम टू लेवल सिस्टम (क्वांटम बिट्स या क्यूबिट्स) का उपयोग करके जानकारी संग्रहीत करते हैं और जो क्लासिकल बिट्स के विपरीत सुपर स्पेशल स्टेट्स में तैयार किये जा सकते हैं।
- यह महत्त्वपूर्ण क्षमता क्वांटम कंप्यूटरों को पारंपरिक कंप्यूटरों की तुलना में बेहद शक्तिशाली बनाती है।
आगे की राह
- सरकार और उद्योग दोनों के लिये यह अनिवार्य हो गया है कि वे इन उभरती और विघटनकारी तकनीकों को विकसित करने के लिये तत्पर रहें जिससे कि संचार, वित्तीय लेन-देन, प्रतिस्पर्द्धी सामाजिक प्रगति, रोज़गार, आर्थिक विकास और जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार किया जा सके।
- सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम अत्यंत प्रगतिशील है किंतु अब सरकार को इस मिशन की सफलता की दिशा में व्यापक कदम उठाने की आवश्यकता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
विशुद्ध टेरेप्थेलिक अम्ल
प्रीलिम्स के लिये:विशुद्ध टेरेप्थेलिक अम्ल, एंटी डंपिंग शुल्क मेन्स के लिये:एंटी डंपिंग शुल्क से संबंधित मुद्दे, भारत में व्यापार व्यवस्था एवं एंटी डंपिंग शुल्क |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने पॉलिएस्टर निर्माण में प्रयुक्त रसायन शुद्ध टेरेप्थेलिक अम्ल (Purified Terephthalic Acid) पर लगने वाले एंटी डंपिंग शुल्क (Anti Dumping Duty) को हटाने का निर्णय लिया है।
मुख्य बिंदु
- सरकार ने बजट सत्र के दौरान सार्वजानिक हित में PTA पर लगाए गए एंटी डंपिंग शुल्क को हटाने का निर्णय लिया है।
- पॉलिएस्टर के घरेलू निर्माताओं ने सरकार के इस कदम को राहत वाला बताया है। ध्यातव्य है कि इससे उन्हें कम दाम पर कच्चा माल प्राप्त हो जाएगा और लागत कम होगी।
शुद्ध टेरेप्थेलिक अम्ल (Purified Terephthalic Acid- PTA) क्या है?
- यह एक महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है जिसका उपयोग पॉलिएस्टर कपड़ों सहित विभिन्न उत्पादों को बनाने के लिये किया जाता है।
- यह मानव निर्मित कपड़ों या उनके घटकों के निर्माण में शामिल लोगों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- इससे निर्मित उत्पादों में पॉलिएस्टर स्टेपल फाइबर, स्पून यार्न, खेलों के लिये कपड़े, स्विम सूट, पर्दे, सोफा कवर, जैकेट, कार सीट कवर और बेड शीट में पॉलिएस्टर का एक निश्चित अनुपात होता है।
सरकार के फैसले का प्रभाव
सकारात्मक
- सरकार द्वारा इस रसायन पर एंटी डंपिंग शुल्क हटाने से इस रसायन को सस्ती दर पर विभिन्न बाह्य स्रोतों से आयात किया जा सकता है।
- प्रतिस्पर्द्धी कीमतों पर इनपुट की आसान उपलब्धता रोज़गार निर्माण में अहम भूमिका निभाएगी तथा कपड़ा उद्योग में अपार संभावनाओं के द्वार खुलेंगे।
- शुल्क लगने के कारण चीन, ताइवान, मलेशिया, इंडोनेशिया, ईरान, कोरिया और थाईलैंड जैसे देशों से आयात करने पर आयातक को PTA के प्रत्येक 1,000 किलोग्राम के लिये 27 से 160 डॉलर का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ रहा था, जबकि शुल्क हटने से यह प्रति 1,000 किलो 30 डॉलर सस्ता हो जाएगा।
नकारात्मक
- सरकार द्वारा PTA से डंपिंग शुल्क हटाए जाने से PTA के घरेलू उत्पादकों को बाह्य बाज़ार से चुनौती मिलेगी।
सरकार ने PTA पर शुल्क क्यों लगाया था?
- PTA पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाने के लिये दो घरेलू निर्माताओं MCC PTA India Corp Pvt Ltd. और रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड (Reliance Industries Ltd.) द्वारा अक्तूबर 2013 में व्यापार उपचार महानिदेशालय वाणिज्य विभाग (Directorate General of Trade Remedies- DGTR) से अनुरोध किया गया था।
- इन कंपनियों का तर्क था कि कुछ देश अपने घरेलू बाज़ारों में मूल्य से कम कीमत पर भारत को इस उत्पाद का निर्यात कर रहे हैं। भारतीय बाज़ार में PTA की डंपिंग से घरेलू उद्योग पर एक महत्त्वपूर्ण प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
- जाँच के बाद DGTR ने MCCPI और RIL के दावों के प्रति सहमति जताई और वर्ष 2014 एवं 2015 में दक्षिण कोरिया तथा थाईलैंड से आयातित PTA पर और वर्ष 2015 एवं 2016 में चीन, इंडोनेशिया, ताइवान, ईरान तथा मलेशिया से आयातित PTA पर डंपिंग रोधी शुल्क लगाया।
सरकार द्वारा उठाया गया कदम विवादास्पद क्यों था?
- पॉलिएस्टर उत्पादों के निर्माण के लिये PTA का उपयोग करने वाली कंपनियों ने दावा किया था कि यह कदम सरकार द्वारा कपड़ा क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी उद्योग बनाने के दृष्टिकोण के विपरीत है।
- PTA पर डंपिंग शुल्क लगाने से पॉलिएस्टर उत्पादों का निर्माण करने वाली कंपनियों को केवल घरेलू स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता था और घरेलू बाजार में इसकी कीमत भी ज्यादा थी जिसके कारण सरकार के इस कदम को लेकर विवाद उत्पन्न हुए थे।
- घरेलू उत्पादक उद्योगों के लिये आवश्यक मात्रा में कच्चा माल उत्पादन करने में असमर्थ थे, जिसके कारण उद्योगों की उत्पादन क्षमता प्रभावित हुई।
- सरकार के इस कदम के फलस्वरूप वर्ष 2014-16 के दौरान पॉलिएस्टर से बने कुछ उत्पादों के निर्यात में गिरावट आई और उत्पादों के आयात में वृद्धि हुई क्योंकि इन डाउनस्ट्रीम पॉलिएस्टर-आधारित उत्पादों के सस्ते संस्करणों के आयात के खिलाफ कोई शुल्क आरोपित नहीं था।
इस संदर्भ में अन्य मुद्दे
- मोनो एथिलीन ग्लाइकॉल (Mono Ethylene Glycol- MEG) जो पॉलिएस्टर के निर्माण में प्रयुक्त कच्चा माल है, के संदर्भ में DGTR एंटी डंपिंग शुल्क लगाने संबंधी जाँच कर रहा है।
- यह जाँच रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड एवं इंडिया ग्लाइकोल्स लिमिटेड के दावे के बाद शुरू की गई। ध्यातव्य है कि इनके द्वारा दावा किया गया है कि कुवैत, सऊदी अरब, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे MEG निर्यातक इस उत्पाद को डंप कर रहे हैं और परिणामस्वरूप घरेलू MEG उद्योग इससे प्रभावित हो रहे हैं।
- साथ ही अन्य कपड़ा उद्योग संगठन DGTR से मिलकर डंपिंग शुल्क न लगाने की सिफारिश कर रहे हैं, उनका तर्क है कि MEG पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाने से कपड़ा उद्योग पर भी उसी तरह प्रतिकूल प्रभाव डालेगा जिस तरह से PTA पर लगाए गए शुल्क के मामले में देखा गया था।
व्यापार उपचार महानिदेशालय वाणिज्य विभाग (DGTR) के बारे में
- इसका गठन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत अप्रैल 1998 में किया गया था।
- DGTR द्वारा किये जाने वाले प्रमुख कार्य निम्नानुसार हैं:
- एंटी डंपिंग जाँच का आयोजन।
- विरोधी सब्सिडी की (काउंटरवेलिंग ड्यूटी) जाँच।
- विरोधी-घेरे की जाँच का आयोजन।
- विदेशी एजेंसियों द्वारा किये जा रहे विभिन्न काउंटरवेलिंग ड्यूटी जाँच से भारतीय निर्यातकों का बचाव।
एंटी डंपिंग शुल्क के बारे में
- किसी देश द्वारा दूसरे मुल्क में अपने उत्पादों को लागत से भी कम दाम पर बेचने को डंपिंग कहा जाता है। इससे घरेलू उद्योगों के उत्पाद महँगे हो जाते हैं जिसके कारण वे प्रतिस्पर्द्धा में पीछे रह जाते हैं।
- सरकार इसे रोकने के लिये निर्यातक देश में उत्पाद की लागत और अपने यहाँ मूल्य के अंतर के बराबर शुल्क लगा देती है। इसे ही डंपिंगरोधी शुल्क यानी एंटी डंपिंग ड्यूटी कहा जाता है।
आगे की राह
- सरकार को कच्चे माल एवं वस्तु दोनों के उत्पादन एवं उत्पादकों को ध्यान में रख कर अपनी नीतियों का निर्धारण करना चाहिये।
- सरकार को घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने हेतु बेहतर प्रयास करने की आवश्यकता है। साथ ही उद्योगों को शुरू करने एवं बंद करने से संबंधित नियमों को समय के साथ संशोधित किया जाना चाहिये।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 05 फरवरी, 2020
राम मंदिर निर्माण के लिये ट्रस्ट का गठन
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिये एक ट्रस्ट के गठन का फैसला किया है। इस कार्य के लिये ट्रस्ट का नाम श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र रखा गया है। आधिकारिक सूचना के अनुसार, इस कार्य के लिये लगभग 67 एकड़ भूमि ट्रस्ट को हस्तांतरित की जाएगी। साथ ही अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ भूमि दी जाएगी। यह ट्रस्ट मंदिर निर्माण से संबंधित फैसले स्वयं लेगा।
सतत् विकास कर
भूटान सरकार ने भारत समेत बांग्लादेश और मालदीव से आने वाले यात्रियों का अपने देश में निशुल्क प्रवेश बंद करने का फैसला किया है। नए नियमों के अनुसार, तीनों देशों से भूटान जाने वाले यात्रियों को 1200 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान करना होगा। भूटान सरकार ने तीन देशों (भारत, बांग्लादेश और मालदीव) से आने वाले यात्रियों पर लगने वाले कर को सतत् विकास कर नाम दिया है।
किशोर कुमार सम्मान-2018
हाल ही में बॉलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्री वहीदा रहमान को ‘किशोर कुमार सम्मान-2018’ से सम्मानित किया गया है। गायक किशोर कुमार के नाम पर दिया जाने वाला यह पुरस्कार मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है। इस अवसर पर उन्हें सम्मान स्वरूप दो लाख रुपए, शाल-श्रीफल और प्रशस्ति पट्टिका प्रदान की गई। ज्ञात हो कि किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त, 1929 को खंडवा में हुआ था। वर्ष 1955 में तेलुगु फिल्म के जरिये अभिनय की दुनिया में शुरुआत करने वाली वहीदा रहमान की फिल्मों में किशोर कुमार ने कई गीत गाए थे।