भूकंप और दिल्ली-एनसीआर
प्रीलिम्स के लिये:भूकंप, भारत में भूकंपीय ज़ोन, रिक्टर पैमाना, मरकली पैमाना मेन्स के लिये:भूकंप और दिल्ली-एनसीआर |
चर्चा में क्यों?
‘वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी’ (Wadia Institute of Himalayan Geology- WIHG) के अनुसार, ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र-दिल्ली’ (National Capital Region-Delhi- NCR Delhi) में हाल ही में आए भूकंप के झटकों की श्रृंखला असामान्य नहीं है और इस क्षेत्र में मौज़ूद तनाव ऊर्जा (Strain Energy) की और संकेत करती है।
प्रमुख बिंदु:
- WIGH संस्थान ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Science & Technology- DST) के तहत एक स्वायत्त संस्थान है।
- WIGH द्वारा दिल्ली-एनसीआर को दूसरे उच्चतम भूकंपीय खतरे वाले क्षेत्र (ज़ोन IV) के रूप में पहचाना गया है।
भूकंपीय तीव्रता का निर्धारण:
- सामान्यत: किसी भी क्षेत्र में भूकंपीय तीव्रता का निर्धारण करते समय निम्नलिखित पक्षों को ध्यान में रखा जाता है:
- अतीत में आए भूकंप;
- तनाव ऊर्जा बजट की गणना;
- महाद्वीपीय विस्थापन के धरातलीय प्लेटों के विरूपण के कारण पृथ्वी के आंतरिक भागों में संग्रहीत ऊर्जा को तनाव ऊर्जा (Strain energy) कहा जाता है।
- सक्रिय भ्रंश की मैपिंग।
Delhi-NCR में भूकंप के संभावित कारण:
- ऊर्जा का मुक्त होना (Release of Energy):
- कमज़ोर क्षेत्रों या फॉल्ट के माध्यम से तनाव ऊर्जा का मुक्त होना, जो भारतीय प्लेट के उत्तर की और खिसकने तथा यूरेशियन प्लेट के साथ इसकी टक्कर के परिणामस्वरूप जमा होती है।
- प्लेटों का खिसकना (Movement of Plates):
- हिमालय भूकंपीय बेल्ट, भारतीय तट यूरेशियन प्लेट से अभिसरण क्षेत्र में स्थित है।
- हिमालयी क्षेत्र में भूकंप मुख्यत: मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) और हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट (HFT) से बीच ही आते हैं। इन भूकंपों का कारण द्विध्रुवीय सतह पर प्लेटों का आपस में खिसकना है।
- हिमालय से निकटता (Proximity to Himalayas):
- Delhi-NCR, उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व हिमालय बेल्ट जो भूकंपीय संभावित क्षेत्र V और IV से बहुत दूर स्थित नहीं है।
- फॉल्ट (Faults) और कगार (Ridges):
- Delhi-NCR में निम्नलिखित कमज़ोर क्षेत्र और फॉल्ट स्थित हैं:
- दिल्ली-हरिद्वार कगार,
- महेंद्र गढ़-देहरादून भ्रंश,
- मुरादाबाद भ्रंश,
- सोहना भ्रंश,
- ग्रेट बाउंड्री भ्रंश,
- दिल्ली-सरगोडा कगार,
- यमुना तथा यमुना गंगा नदी की दरार रेखाएँ (lineament)।
- इन कमज़ोर क्षेत्रों तथा भ्रंशों से आंतरिक तनाव ऊर्जा बाहर निकल सकती है तथा किसी बड़े भूकंप का कारण बन सकती है।
पूर्वाघात (Foreshocks):
- किसी क्षेत्र में बड़े भूकंप के आने से पूर्व आने वाले कम तीव्रता के भूकंपों को पूर्वाघात के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- हालाँकि इस बात का स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है कि इन कम तीव्रता के भूकंपीय झटकों के बाद कोई बड़ा भूकंप आएगा हालाँकि एक मजबूत भूकंप की संभावना को खारिज भी नहीं किया जा सकता है।
Delhi-NCR में अतीत के भूकंप का परिदृश्य:
भूकंप स्थान | वर्ष | भूकंप की तीव्रता |
दिल्ली | 1720 | 6.5 |
मथुरा | 1803 | 6.8 |
मथुरा | 1842 | 5.5 |
बुलंदशहर | 1956 | 6.7 |
फरीदाबाद | 1960 | 6.0 |
मुरादाबाद | 1966 | 5.8 |
भारत में भूकंपीय ज़ोन (Seismic Zones in India):
- भूकंपीयता से संबंधित वैज्ञानिक जानकारी, अतीत में आए भूकंप तथा विवर्तनिक व्यवस्था के आधार भारत को चार ‘भूकंपीय ज़ोनों’ में (II, III, IV और V) वर्गीकृत किया गया हैं।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है पूर्व भूकंप क्षेत्रों को, उसकी गंभीरता के आधार पर पाँच ज़ोनों में विभाजित किया गया था, लेकिन 'भारतीय मानक ब्यूरो' ( Bureau of Indian Standards- BIS) ने प्रथम 2 ज़ोनों का एकीकरण करके देश को चार भूकंपीय ज़ोनों में बाँटा गया है।
- BIS भूकंपीय खतरे के नक्शे (Hazard Maps) और कोड प्रकाशित करने के लिये आधिकारिक एजेंसी है।
भूकंपीय तीव्रता का मापन:
रिक्टर पैमाना (Richter Scale):
- परिमाण पैमाने (Magnitude scale) के रूप में भी जाना जाता है।
- भूकंप के दौरान उत्पन्न ऊर्जा का मापन से संबंधित है।
- इसे 0-10 तक पूर्ण संख्या में व्यक्त किया जाता है। हालाँकि 2 से कम तथा 10 से अधिक रिक्टर तीव्रता के भूकंप का मापन सामान्य संभव नहीं है।
- इसे तीव्रता पैमाने (Intensity Scale) के रूप में भी जाना जाता है।
- घटना के कारण दिखाई देने वाले नुकसान का मापन।
- पैमाने की परास 1-12 तक होती है।
आगे की राह:
- भूकंप का सामान्यत: पूर्वानुमान संभव नहीं हैं। हालाँकि भूकंपीय ज़ोन V और IV में बड़े भूकंप की संभावना है जो पूरे हिमालय तथा Delhi-NCR क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है।
- अत: संभावित जीवन तथा संपत्तियों के नुकसान को कम करने का एकमात्र समाधान भूकंप के खिलाफ प्रभावी तैयारी है। इस मामले में जापान जैसे देशों के साथ बेहतर सहयोग स्थापित किया जा सकता है।
- नगरीय नियोजन तथा भवनों के निर्माण में आवश्यक भूकंपीय मानकों को लागू किये जाने की आवश्यकता है।
- भूकंपीय आपदा के प्रबंधन की दिशा में लोगों की भागीदारी, सहयोग और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
स्रोत: पीआईबी
हागिया सोफिया संग्रहालय: इतिहास और विवाद
प्रीलिम्स के लियेहागिया सोफिया संग्रहालय, इस्तांबुल, बाइज़ेंटाइन साम्राज्य, ऑटोमन साम्राज्य मेन्स के लियेहागिया सोफिया संग्रहालय से संबंधित विवाद का अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में तुर्की के शीर्ष न्यायालय ने इस्तांबुल (Istanbul) के प्रतिष्ठित हागिया सोफिया संग्रहालय (Hagia Sophia museum) को मस्जिद में बदलने अथवा इसे संग्रहालय ही बने रहने के संबंध में सुनवाई पूरी कर ली है। अनुमानतः आगामी दो हफ्तों में न्यायालय अपना निर्णय स्पष्ट कर देगा।
प्रमुख बिंदु
- तकरीबन 1500 वर्ष पुराना यह ढाँचा (Structure) यूनेस्को विश्व विरासत स्थल के रूप में सूचीबद्ध है, गौरतलब है कि इस इमारत का निर्माण सर्वप्रथम एक गिरजाघर (Cathedral) के रूप में किया गया था, हालाँकि कुछ समय पश्चात् इसे मस्जिद के रूप में बदल दिया गया।
- जब आधुनिक तुर्की का जन्म हुआ तो, वहाँ के धर्मनिरपेक्ष नेताओं ने इस ईमारत को एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया।
- गौरतलब है कि तुर्की के इस्लामी और राष्ट्रवादी समूह लंबे समय से हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद के रूप में बदलने की मांग कर रहे थे।
- ध्यातव्य है कि बीते वर्ष चुनावों से पूर्व तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप एरदोगन (Recep Erdoğan) ने कहा था कि हागिया सोफिया को एक संग्रहालय में बदलना ‘बहुत बड़ी गलती’ थी और वे इस निर्णय को बदलने पर विचार कर रहे हैं।
हागिया सोफिया का ऐतिहासिक दृष्टिकोण
- इस्तांबुल की इस प्रतिष्ठित संरचना का निर्माण तकरीबन 532 ईस्वी में बाइज़ेंटाइन साम्राज्य (Byzantine Empire) के शासक जस्टिनियन (Justinian) के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ, उस समय इस शहर को कॉन्सटेनटिनोपोल (Constantinople) या कस्तुनतुनिया (Qustuntunia) के रूप में जाना जाता था।
- इस प्रतिष्ठित इमारत को बनाने के लिये काफी उत्तम किस्म की निर्माण सामग्री का प्रयोग किया गया था और इस कार्य में उस समय के सबसे बेहतरीन कारीगरों को लगाया गया था, वर्तमान में यह एक संग्रहालय के रूप में तुर्की के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है।
- गिरजाघर के रूप में इस ढाँचे का निर्माण लगभग पाँच वर्षों यानी 537 ईस्वी में पूरा हो गया। यह इमारत उस समय ऑर्थोडॉक्स इसाईयत (Orthodox Christianity) के लिये एक महत्त्वपूर्ण केंद्र थी, और कुछ ही समय में यह बाइज़ेंटाइन साम्राज्य की स्थापना का प्रतीक बन गया।
- यह इमारत लगभग 900 वर्षों तक ऑर्थोडॉक्स इसाईयत के लिये एक महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित रही, किंतु वर्ष 1453 में जब इस्लाम को मानने वाले ऑटोमन साम्राज्य (Ottoman Empire) के सुल्तान मेहमत द्वितीय (Sultan Mehmet II) ने कस्तुनतुनिया पर कब्ज़ा कर लिया, तब इसका नाम बदलकर इस्तांबुल कर दिया गया।
- हमलावर ताकतों ने हागिया सोफिया में काफी तोड़फोड़ की और कुछ समय बाद इसे मस्जिद में बदल दिया गया, मस्जिद के रूप में परिवर्तन होने के पश्चात् स्मारक की संरचना में कई आंतरिक और बाह्य परिवर्तन किये गए और वहाँ से सभी रूढ़िवादी प्रतीकों को हटा दिया गया था, साथ ही इस संरचना के बाहरी हिस्सों में मीनारों का निर्माण किया गया।
- एक लंबे अरसे तक हागिया सोफिया इस्तांबुल की सबसे महत्त्वपूर्ण मस्जिद रही।
- 1930 के दशक में आधुनिक तुर्की गणराज्य के संस्थापक मुस्तफा कमाल अतातुर्क (Mustafa Kemal Ataturk) ने तुर्की को अधिक धर्मनिरपेक्ष देश बनाने के प्रयासों के तहत मस्जिद को एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया।
- वर्ष 1935 में इसे एक संग्रहालय के रूप में आम जनता के लिये खोल दिया गया।
संबंधित विवाद
- विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तुर्की के वर्तमान राष्ट्रपति रेसेप एरदोगन ने तुर्की की राजनीति में प्रवेश किया था तो उनके प्रमुख एजेंडे में हागिया सोफिया की तत्कालीन स्थिति शामिल नहीं थी।
- तुर्की के आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार, रेसेप एरदोगन ने अपनी राजनीति के शुरुआत दौर में एक बार हागिया सोफिया को मस्जिद के रूप में बदलने की मांग पर आपत्ति भी ज़ाहिर की थी।
- हालाँकि राष्ट्रपति रेसेप एरदोगन ने इस्तांबुल में नगरपालिका चुनावों में हार के बाद अपना पक्ष पूरी तरह से बदल दिया।
- इसके पश्चात् जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा येरुशलम को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता दे दी गई, तब रेसेप एरदोगन ने भी हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में बदलने के पक्ष में बोलना शुरू कर दिया।
- जानकार मानते हैं कि हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद के रूप में बदलने को लेकर रेसेप एरदोगन का पक्ष राजनीतिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने की इच्छा से काफी हद तक जुड़ हुआ है। अपने इस कदम के माध्यम से वह पुनः अपना राजनीतिक समर्थन प्राप्त करना चाहते हैं, जो इस्तांबुल के नगरपालिका चुनावों के बाद लगातार कम हो रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
- गौरतलब है कि हागिया सोफिया को लेकर यह विवाद ऐसे समय में आया है जब तुर्की और ग्रीस के बीच विभिन्न मुद्दों पर कूटनीतिक तनाव बढ़ता जा रहा है।
- इसी वर्ष मई माह में ग्रीस ने पूर्व बाइज़ेंटाइन साम्राज्य पर ऑटोमन साम्राज्य के आक्रमण की 567वीं वर्षगांठ पर हागिया सोफिया संग्रहालय के अंदर कुरान के अंशों को पढ़ने पर आपत्ति जताई थी।
- ग्रीस के विदेश मंत्रालय ने इस संबंध में बयान जारी करते हुए कहा था कि तुर्की का यह कदम यूनेस्को के ‘विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण संबंधी कन्वेंशन’ (UNESCO’s Convention Concerning the Protection of the World Cultural and Natural Heritage) का उल्लंघन है।
- इस विषय पर ग्रीस ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि हागिया सोफिया विश्व भर के लाखों ईसाईयों के लिये आस्था का केंद्र और तुर्की में इसका प्रयोग राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिये किया जा रहा है।
- इससे पूर्व अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो (Mike Pompeo) ने अपने एक बयान में कहा था कि हागिया सोफिया को तुर्की की परंपराओं और उसके विविध इतिहास के एक उदाहरण के रूप में बनाए रखा जाना चाहिये।
- उन्होंने चेताया था कि हागिया सोफिया संग्रहालय की स्थिति में कोई भी बदलाव करने से अलग-अलग परंपराओं और संस्कृतियों के बीच एक ‘सेतु’ के रूप में सेवा करने की उसकी क्षमता को कमज़ोर करेगा।
आगे की राह
- तुर्की के के कानून विशेषज्ञों मानते हैं कि राष्ट्रपति रेसेप एरदोगन को हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में बदलने के लिये न्यायालय से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है, न्यायालय का यह निर्णय केवल एक प्रतीकात्मक निर्णय होगा।
- गौरतलब है कि तुर्की के भीतर राष्ट्रपति रेसेप एरदोगन की इस योजना का काफी कम विरोधी हो रहा है।
- बीते माह ग्रीस ने यूनेस्को से अपील की थी कि वह इस आधार पर तुर्की के कदमों पर आपत्ति जताए कि यह परिवर्तन अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन का उल्लंघन करता है।
- ऑर्थोडॉक्स इसाईयत के प्रतिनिधि ने तुर्की के इस निर्णय पर चिंता ज़ाहिर करते हुए दुःख व्यक्त किया है, ऐसे में तुर्की सरकार का यह निर्णय अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को दो पक्षों में विभाजित करता दिखाई दे रहा है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
ई-कचरा और भारत
प्रीलिम्स के लियेई-कचरा, संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय मेन्स के लियेस्वास्थ्य और पर्यावरण पर ई-कचरे का प्रभाव और भारत में इसका पुनर्नवीनीकरण |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (United Nations University-UNU) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 और वर्ष 2030 की अवधि में वैश्विक ई-कचरे (E-Waste) में तकरीबन 38 प्रतिशत तक बढ़ोतरी होगी।
प्रमुख बिंदु:
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में एशिया में ई-कचरे की सर्वाधिक मात्रा (लगभग 24.9 मीट्रिक टन) उत्पन्न हुई, जिसके पश्चात् अमेरिका (13.1 मीट्रिक टन) और यूरोप (12 मीट्रिक टन) का स्थान है।
- इस अवधि के दौरान अफ्रीका (Africa) और ओशिनिया (Oceania) में क्रमशः 2.9 मीट्रिक टन और 0.7 मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ।
- रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2019 में अधिकांश ई-कचरे में छोटे उपकरण (लगभग 17.4 मीट्रिक टन), बड़े उपकरण (13.1 मीट्रिक टन) और तापमान विनिमय उपकरण (10.8 मीट्रिक टन) शामिल थे।
- संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (UNU) की रिपोर्ट के अनुसार, कुल ई-कचरे में स्क्रीन और मॉनिटर (6.7 मीट्रिक टन), लैंप (4.7 मीट्रिक टन), IT और दूरसंचार उपकरण (0.9 मीट्रिक टन) शामिल थे।
- वर्ष 2019 में उत्पन्न कुल ई-कचरे के 18 प्रतिशत से भी कम हिस्से का पुनर्नवीनीकरण (Recycled) किया जा सका था।
- इसका अर्थ है कि सोना, चाँदी, तांबा, प्लेटिनम और अन्य उच्च-मूल्य वाली सामग्री को अधिकांशतः जला दिया गया, जबकि इसे एकत्र कर इसका पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता था।
- रिपोर्ट के अनुसार, यदि इस सामग्री का पुनर्नवीनीकरण किया जाता तो इससे कम-से-कम 57 बिलियन डॉलर प्राप्त किये जा सकते थे।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि अब वैश्विक स्तर पर उन देशों की संख्या 61 से बढ़कर 78 हो गई है जिन्होंने ई-कचरे से संबंधित कोई नीति, कानून या विनियमन अपनाया है।
- ध्यातव्य है कि इसमें भारत भी शामिल है।
ई-कचरे का अर्थ?
- कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण तथा टी.वी., वाशिंग मशीन एवं फ्रिज जैसे घरेलू उपकरण और कैमरे, मोबाइल फोन तथा उससे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है।
- देश में जैसे-जैसे डिजिटाइज़ेशन (Digitisation) बढ़ रहा है, उसी अनुपात में ई-कचरा भी बढ़ रहा है। इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों में तकनीक तथा मनुष्य की जीवन शैली में आने वाले बदलाव शामिल हैं।
- ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी चीजें जिन्हें हम रोज़मर्रा इस्तेमाल में लाते हैं, उनमें भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो इनके बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
- इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, लेकिन साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है।
- चीन में प्रतिवर्ष लगभग 61 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है और अमेरिका में लगभग 72 लाख टन तथा पूरी दुनिया में कुल 488 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है।
ई-कचरा और स्वास्थ्य
- ई-कचरे में मरकरी (Mercury), कैडमियम (Cadmium) और क्रोमियम (Chromium) जैसे कई विषैले तत्त्व शामिल होते हैं, जिनके निस्तारण के असुरक्षित तौर-तरीकों से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और तरह-तरह की बीमारियाँ होती हैं।
- लैंडफिल में ई-वेस्ट, मिट्टी और भूजल को दूषित करता है, जिससे खाद्य आपूर्ति प्रणालियों और जल स्रोतों में प्रदूषकों का जोखिम बढ़ जाता है।
भारत में ई-कचरा और उसका पुनर्नवीनीकरण
- ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर, 2017 के अनुसार, भारत प्रतिवर्ष लगभग 2 मिलियन टन ई-कचरे का उत्पन्न करता है तथा अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-कचरा उत्पादक देशों में यह 5वें स्थान पर है।
- हालाँकि सरकार द्वारा उपलब्ध किये गए आँकड़े बताते हैं कि भारत में उत्पादित ई-कचरा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के अनुमान से काफी कम है।
- आँकड़ों के अनुसार, भारत में ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण करने वाली कुल 312 अधिकृत कंपनियाँ हैं, जो कि प्रतिवर्ष 800 किलो टन ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण कर सकती हैं।
- हालाँकि अभी भी भारत में औपचारिक क्षेत्र की पुनर्चक्रण क्षमता का सही उपयोग संभव नहीं हो पाया है, क्योंकि ई-कचरे का बड़ा हिस्सा अभी भी अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, देश का लगभग 90 प्रतिशत ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण अनौपचारिक क्षेत्र में किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (UNU)
- संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (United Nations University-UNU) एक वैश्विक थिंक टैंक और स्नातकोत्तर (Postgraduate) शिक्षण संगठन है जिसका मुख्यालय जापान में स्थित है।
- यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की अकादमिक और अनुसंधान शाखा है।
- संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (UNU) का उद्देश्य सहयोगात्मक अनुसंधान और शिक्षा के माध्यम से मानव विकास तथा कल्याण से संबंधित वैश्विक समस्याओं को हल करना है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
असम में बाढ़: कारण और प्रभाव
प्रीलिम्स के लिये:असम में बाढ़ के कारण मेन्स के लिये:असम में बाढ़ के कारण, प्रभाव और समाधान |
चर्चा में क्यों?
पिछले कुछ दिनों से असम में बाढ़ की भीषण स्थिति बनी हुई है, इससे राज्य के 20 ज़िलों में 35 लोगों से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई तथा 13.27 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं।
प्रमुख बिंदु:
- 'असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण' के अनुसार, असम के बारपेटा, दक्षिण सल्मारा, गोलपारा, नलबाड़ी, और मोरीगांव ज़िले बाढ़ के कारण सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं।
- ब्रह्मपुत्र और उसकी तीन सहायक नदियों में आई बाढ़ तथा भू स्खलन से सबसे अधिक लोग प्रभावित हुए हैं।
असम में बाढ़ के कारण:
- भौगोलिक स्थिति:
- असम घाटी एक U आकर की घाटी है इससे आसपास के सभी क्षेत्रों से पानी की निकासी का मार्ग केवल असम की ओर होता है, जो असम में आने वाली बाढ़ का एक बड़ा कारण है।
- भूकंप/भूस्खलन:
- असम और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के अन्य क्षेत्र मुख्यत: उच्च भूकंप ज़ोन में अवस्थित है, जो भूस्खलन का कारण बनता है।
- भूस्खलन और भूकंप के कारण नदियों के तल में अवसादों के जमाव से नदियों का तल ऊँचा हो जाता है, जिससे नदियों की जल बहाव क्षमता में कमी आती है।
- तटीय कटाव:
- ब्रह्मपुत्र तथा उसकी सहायक नदियों के तेज़ बहाव के कारण तटीय भूमि कटाव के कारण नष्ट हो जाती है। ब्रह्मपुत्र नदी के तटों के कटाव के कारण इस घाटी की चौड़ाई 15 किमी. तक बढ़ गई है।
- बांधों का निर्माण:
- असम की नदियों के ऊपरी अपवाह क्षेत्र में अनेक बांधों का निर्माण किया गया है। चीन द्वारा भी ब्रह्मपुत्र नदी पर कुछ बांध बनाए गए हैं। इन बांधों के जल की अनियमित रिहाई से मैदानी भागों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- अतिक्रमण:
- पर्यावरणीय वन भूमि और जल निकायों में अतिक्रमण भी राज्य में बाढ़ का कारण बनता है।
- आर्द्रभूमि अतिरिक्त पानी की मात्रा को अवशोषित कर लेती थी, लेकिन इनकी कम होती संख्या ने बाढ़ की प्रभाविता को और बढ़ा दिया है।
- परियोजनाओं के कार्यान्वयन का अभाव:
- राज्य में बाढ़ की विकट स्थिति को देखते हुए ब्रह्मपुत्र नदी ड्रेज़िंग की परियोजना को मंज़ूरी दी गई थी, जिसके कार्यान्वयन में लगातार देरी की जा रही है।
- आवासित नदीय द्वीप:
- ब्रह्मपुत्र नदी में माजूली जैसे मानव अधिवासित द्वीप स्थित हैं, अत: नदियों के जल स्तर में वृद्धि होने पर ये लोग बाढ़ से प्रभावित होते हैं।
बाढ़ के प्रभाव:
- पारिस्थितिकी पर प्रभाव:
- वन विभाग द्वारा ‘काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान’ में अवैध शिकार रोकने के लिये अनेक शिविरों को स्थापित किया गया है, ये शिविर बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
- बाढ़ के समय राज्य में जानवरों की मृत्यु संख्या तथा शिकार की गतिविधियों में भी वृद्धि देखी जाती है।
- कृषि क्षेत्र में कमी:
- तटीय कटाव के कारण प्रतिवर्ष लगभग 8000 हेक्टेयर भूमि नष्ट हो जाती है, इससे भविष्य में कृषि क्षेत्रों का ह्रास होने की संभावना है।
- जान-माल की नुकसान:
- लगभग प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ के कारण लोगों का व्यापक स्तर पर विस्थापन तथा पुनर्वास किया जाता है, इससे न केवल को लोगों को जान-माल का नुकसान उठाना पड़ता है अपितु राज्य को भी आपदा प्रबंधन पर बहुत अधिक आर्थिक व्यय करना पड़ता है।
आगे की राह:
- सरकार और संबंधित एजेंसियों को तटबंध बनाने की मौजूदा नीति की समीक्षा करने की ज़रूरत है, तथा रुकी हुई परियोजनाओं को तेज़ी से क्रियान्वित करने की दिशा में कार्य करना चाहिये।
- भौगोलिक स्थलाकृतियों को ध्यान में रखते हुए बांधों का निर्माण, जल संरक्षण प्रबंधन प्रणालियों तथा लोगों की भागीदारी आधारित परियोजनाओं में निवेश को बढ़ाया जाना चाहिये।
- चीन, भूटान तथा अन्य पड़ोसी देशों के साथ नदीय जल उपयोग संबंधी आँकड़ों के साझाकरण की दिशा में सामूहिक पहल किये जाने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
भारत के सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में संकुचन
प्रीलिम्स के लिये:पर्चेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स मेन्स के लिये:भारतीय सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में गिरावट का कारण एवं प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
आईएचएस मार्किट इंडिया सर्विसेज पर्चेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स (IHS Markit India Services Purchasing Managers’ Index) के आधार पर COVID-19 महामारी के चलते देशव्यापी लॉकडाउन के कारण घरेलू मांग एवं निर्यात आर्डर में कमी के कारण भारतीय सेवा क्षेत्र में लगातार जून के चौथे माह में गिरावट दर्ज़ की गई है।
प्रमुख बिंदु:
- लंदन स्थित IHS मार्किट (IHS Markit) द्वारा जारी सर्वेक्षण के अनुसार, इंडिया सर्विसेज़ ‘पर्चेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स’ (Purchasing Managers’ Index-PMI) में यह संकुचन लगातार बना हुआ है।
- हालांकि जून में पर्चेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स बढ़कर 33.7 पर पहुँच गया है, जो मई में 12.6% तथा अप्रैल माह में 5.6 अंकों पर था लेकिन PMI अगर 50 अंकों से ऊपर है तो यह प्रसार की स्थिति तथा यदि यह 50 अंकों से नीचे है तो संकुचन की स्थिति को दर्शाता है।
- IHS मार्किट सर्वेक्षण के अनुसार, देश में कोरोना संकट गहराने के साथ जून माह में भी सेवा क्षेत्र में गिरावट जारी है।
- सर्वेक्षण के अनुसार कुछ कंपनियों/फर्मों ने अपनी आर्थिक गतिविधियों को स्थिर रखा है जो गिरावट की धीमी दर के स्तर को प्रतिबिंबित करती हैं।
- लगभग 59 प्रतिशत फर्मों ने मई के बाद से अपने उत्पादन कार्य में कोई परिवर्तन नहीं किया जिसके चलते केवल 4% फर्मों की आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि देखी गई जबकि 37% में कमी दर्ज की गई है।
- सर्वेक्षण के अनुसार विनिर्माण गतिविधियों में गिरावट देखी गई है जिसका मुख्य कारण क्षेत्रीय लॉकडाउन में विस्तार के कारण मांग में गिरावट तथा श्रम लॉजिस्टिक संबंधी चुनौतियाँ हैं ।
कमी का मुख्य कारण एवं इसका प्रभाव:
- जून माह में फर्मों को मिलने वाले ऑर्डर में कमी का होना।
- प्रतिकूल वातावरण के कारण ग्राहकों द्वारा अपने व्यवसाय बंद करना।
- निर्यात बिक्री में गिरावट।
- उपभोक्ताओं की आवाजाही पर रोक के चलते मांग का कम होना कुछ ऐसे प्रमुख कारण हैं जिनके कारण सेवा क्षेत्र में गिरावट देखी जा रही है।
- सर्वेक्षण के अनुसार, यदि देश में संक्रमण की दर नियंत्रित नहीं की गई तो देश एक अभूतपूर्व आर्थिक मंदी की चपेट में जा सकता है जो निश्चित रूप से इस वर्ष की दूसरी छमाही में देखी जा सकती है।
पर्चेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स:
- पर्चेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की आर्थिक गतिविधियों को मापने का एक इंडिकेटर है।
- इसके माध्यम से किसी देश की आर्थिक स्थिति का आकलन किया जाता है।
- यह इंडेक्स सेवा क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र की गतिविधियों पर आधारित होता है।
- इंडेक्स में शामिल सभी देशों की आर्थिक गतिविधयों की तुलना एक जैसे नियम से की जाती है।
- इसका उद्देश्य देश की आर्थिक स्थिति के बारे में सही जानकारी एवं आँकड़े उपलब्ध कराना है, जिससे अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में सटीक जानकारी मिल सके।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव ईंधन आपूर्ति शृंखला
प्रीलिम्स के लिये:कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जैव ईंधन, ग्रीनहाउस गैस, कार्बन क्रेडिट मेन्स के लिये:जैव ईंधन आपूर्ति श्रृंखला का पर्यावरणीय संदर्भ में महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology- IIT) हैदराबाद के शोधकर्त्ताओं द्वारा ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence) पर आधारित ऐसी कम्प्यूटेशनल विधियों (Computational Methods) को विकसित किया जा रहा है जो देश में जैव ईंधन को शामिल करने से जुड़े विभिन्न मुद्दों एवं समस्याओं को समझने में मददगार साबित हो सकती हैं।
प्रमुख बिंदु:
- इस शोध कार्य की एक विशेषता यह है कि इसके ढाँचे में केवल जैविक ईंधन की बिक्री को राजस्व सृजन का आधार नहीं माना गया है, बल्कि इस चक्र में 'ग्रीनहाउस गैस’ (Greenhouse Gas ) के उत्सर्जन में कटौती के माध्यम से प्राप्त ‘कार्बन क्रेडिट’ (Carbon Credit) को भी राजस्व सृजन में शामिल किया गया है।
- शोधकर्ताओं द्वारा विकसित मॉडल से पता चला है कि मुख्यधारा में उपयोग होने वाले ईंधन में बायो-एथेनॉल क्षेत्र को शामिल करने पर इससे जुड़े खर्च लागत इस प्रकार हैं-
- उत्पादन पर सबसे अधिक 43% खर्च का आकलन किया गया है।
- आयात पर 25% खर्च का आकलन किया गया है।
- परिवहन पर 17% खर्च का आकलन किया गया है।
- ढाँचागत संसाधनों पर 15% खर्च का आकलन किया गया है।
- इन्वेंटरी पर 0.43% खर्च का आकलन किया गया है।
- अपने इस शोध कार्य के दौरान शोधकर्त्ताओं द्वारा देश के विभिन्न क्षेत्रों में जैविक ऊर्जा उत्पादन के लिये प्रयुक्त विभिन्न तकनीकों का भी विश्लेषण किया है जिसमे शोधकर्त्ताओं द्वारा आपूर्तिकर्ताओं, परिवहन, भंडारण एवं उत्पादन के आँकड़ों का उपयोग करके जैव ईंधन की व्यवहार्यता का अध्ययन किया है।
- इस शोध कार्य में जैव ईंधन के आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क को समझने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता /मशीन लर्निंग तकनीक का उपयोग किया जा रहा है।
- इस शोध कार्य को क्लीनर प्रोडक्शन (Cleaner Production) पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
शोध का महत्त्व:
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीकी पर आधारित देशव्यापी बहुस्तरीय जैवईंधन आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क तकनीकी-आर्थिक-पर्यावरणीय विश्लेषण, मांग पूर्वानुमान, आपूर्ति श्रृंखला मापदंडों में विद्यमान अनिश्चितता को दूर करने में सहायक होगा।
- जैव ईंधन आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क परिचालन पर पड़ने वाले प्रभाव एवं दूरगामी निर्णय लेने में उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
- गैर-खाद्य स्रोतों से उत्पन्न जैविक ईंधन कार्बन-न्यूट्रल नवीकरणीय ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। जिनमें कृषि अपशिष्ट जैसे- पुआल, घास और लकड़ी जैसे अन्य उत्पाद शामिल हैं।
- जीवाश्म ईंधन के घटते भंडार तथा इसके उपयोग से होने वाले प्रदूषण से जुड़ी चिंताओं का समाधान के तौर पर जैव ईंधन के क्षेत्र में इस शोध कार्य का खासा महत्त्व हो जाता है।
स्रोत: पीआईबी
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 04 जुलाई, 2020
स्वामी विवेकानंद
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं। इस अवसर पर गृह मंत्री ने स्वामी विवेकानंद जी के विचारों को वर्तमान समय में काफी प्रासंगिक बताया। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था, और इन्हें बचपन में नरेंद्र नाथ दत्त के नाम से भी जाना जाता। कलकत्ता विश्वविद्यालय (Calcutta University) से स्नातक की डिग्री प्राप्त होने तक, उन्होंने विभिन्न विषयों, खासकर पश्चिमी दर्शन और इतिहास का व्यापक ज्ञान प्राप्त कर लिया था। स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था, रामकृष्ण परमहंस से स्वामी विवेकानंद की मुलाकात वर्ष 1881 में ऐसे समय में हुई थी जब विवेकानंद एक आध्यात्मिक संकट के दौर से गुज़र रहे थे और भगवान या ईश्वर के अस्तित्त्व जैसे प्रश्नों पर विचार कर रहे थे। रामकृष्ण परमहंस के शुद्ध और निस्वार्थ भाव ने स्वामी विवेकानंद को काफी प्रभावित किया और दोनों के बीच एक आध्यात्मिक गुरु-शिष्य संबंध शुरू हो गया। अपने गुरु के नाम पर विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन तथा रामकृष्ण मठ की भी स्थापना की थी। विश्व में भारतीय दर्शन विशेषकर वेदांत और योग को प्रसारित करने में विवेकानंद की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, साथ ही ब्रिटिश भारत के दौरान राष्ट्रवाद को अध्यात्म से जोड़ने में इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। उन्होंने सितंबर 1893 में शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में वैश्विक ख्याति अर्जित की तथा इसके माध्यम से ही भारतीय अध्यात्म का वैश्विक स्तर पर प्रचार-प्रसार हुआ। जनवरी 1897 में वे भारत वापस लौट आए, वापस लौटने के बाद 01 मई, 1897 में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जून 1899 में वह एक बार फिर पश्चिम की यात्रा पर गए, जहाँ उन्होंने अपना अधिकांश समय अमेरिका के पश्चिमी तट पर बिताया। वर्ष 1902 के शुरुआती महीनों में उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा और 4 जुलाई, 1902 को उनके जीवन का अंत हो गया।
“विचार व्यक्तित्त्व की जननी है, जो आप सोचते हैं बन जाते हैं”
- स्वामी विवेकानंद
ई-किसान धन
हाल ही में एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) ने भारतीय किसानों के लिये ‘ई-किसान धन’ (e-Kisaan Dhan) एप लॉन्च किया है। गौरतलब है कि इस एप का प्रयोग करते हुए किसान अपने मोबाइल फोन के माध्यम से ही बैंकिंग और कृषि दोनों सेवाओं का एक साथ लाभ प्राप्त कर सकेंगे। यह एप किसानों को कृषि प्रथाओं (Agriculture Practice) से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी प्राप्त करने में सहायता करेगा। यह एप मंडी की कीमतों, कृषि से संबंधी नवीनतम खबरों, मौसम की भविष्यवाणी, बीज किस्मों की जानकारी और किसान टीवी जैसी सभी मूल्यवर्द्धित सेवाएँ प्रदान करेगा। इसके अलावा इस एप के उपयोगकर्त्ता ऋण प्राप्त करने, बैंक खाते खोलने, बीमा सुविधाओं का लाभ उठाने और सरकारी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसी कई बैंकिंग सेवाओं का लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं। यह एप किसानों को पारंपरिक बैंकिंग सेवाओं जैसे ऋण हेतु आवेदन करना, फिक्स्ड डिपॉज़िट (Fixed Deposits), आवर्ती जमा (Recurring Deposits) और बचत खातों के उपयोग आदि की सुविधा भी प्रदान करेगा। वर्तमान में यह एप केवल अंग्रेज़ी भाषा में उपलब्ध है, किंतु एप निर्माताओं के अनुसार, यह एप जल्द ही अन्य भारतीय भाषों में भी उपलब्ध होगा।
टारगेट ओलंपिक पोडियम योजना
हाल ही में खेल एवं युवा मामलों के मंत्री किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र सरकार जल्द ही वर्ष 2028 तक देश को ओलिंपिक चैंपियन बनाने के उद्देश्य से जूनियर एथलीटों के लिये भी टारगेट ओलिंपिक पोडियम स्कीम (Target Olympic Podium Scheme-TOPS) की शुरुआत करेगी। टारगेट ओलंपिक पोडियम योजना की शुरुआत वर्ष 2014 में राष्ट्रीय खेल विकास कोष (National Sports Development Fund- NSDF) के तहत हुई थी। इसका लक्ष्य ओलंपिक खेलों में पदक जीतने की संभावना रखने वाले एथलीटों की पहचान कर उन्हें ओलंपिक की तैयारी के लिये समर्थन तथा सहायता देना है। ऐसे खेल जिनमें भारत की ओलंपिक में पदक जीतने की संभावना है, को उच्च प्राथमिकता वाले खेलों की सूची में रखा गया है, जो इस प्रकार हैं- (1) एथलेटिक्स, (2) बैडमिंटन, (3) हॉकी, (4) शूटिंग, (5) टेनिस, (6) भारोत्तोलन, (7) कुश्ती, (8) तीरंदाजी (9) मुक्केबाज़ी। उच्च प्राथमिकता वाले खेलों के अलावा अन्य खेलों को राष्ट्रीय खेल महासंघ (National Sports Federations- NSF) द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। ध्यातव्य है कि अब तक यह योजना केवल सीनियर एथलीटों तक ही सीमित थी, किंतु अब सरकार इस योजना का विस्तार जूनियर एथलीट तक करने पर विचार कर रही है।
नागरहोल नेशनल पार्क
वन विभाग जल्द ही नागरहोल नेशनल पार्क (Nagarahole National Park) से जुड़ी सड़कों और मैसूरु तथा कोडागु ज़िलों के आसपास की सड़कों पर ट्रैफिक निगरानी तंत्र (Traffic Monitoring Mechanism) स्थापित करेगा, ताकि मोटर चालकों द्वारा वन कानूनों का बेहतर अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके और इन क्षेत्रों में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं को कम किया जा सके। यह तंत्र सुनिश्चित करेगा कि मोटर चालक बीच रास्ते में अपनी गाड़ियाँ न रोकें और आस-पास की सड़कों पर कूड़ा न डालें, क्योंकि इनके कारण वन्यजीवों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा यह तंत्र यह भी सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि मोटर चालक अनावश्यक रूप से इधर-उधर न घूमें और अनुमति से अधिक गति पर गाड़ी न चलाएँ, क्योंकि इनके कारण अक्सर वन्यजीवों की मृत्यु हो जाती है। नागरहोल नेशनल पार्क कर्नाटक के मैसूर ज़िले में स्थित है। नागरहोल नेशनल पार्क भारत के पाँच प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है, इसे पहले ‘राजीव गांधी राष्ट्रीय उद्यान' के रूप में जाना जाता था। यह राष्ट्रीय उद्यान उन विशिष्ट स्थानों में शामिल है, जहाँ एशियाई हाथी पाए जाते हैं।