भूगोल
भारत के मुख्य शीत लहर क्षेत्र
प्रीलिम्स के लिये:
भारत के प्रमुख शीत लहर क्षेत्र
मेन्स के लिये:
भारत के प्रमुख शीत लहर क्षेत्रों में औसत वार्षिक तापमान बढ़ने का कारण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) ने देश के अधिकांश हिस्सों में औसत न्यूनतम तापमान के ‘औसत से अधिक गर्म’ रहने की भविष्यवाणी की है।
प्रमुख बिंदु
- IMD के अनुसार, भारत के 'मुख्य शीत लहर' वाले क्षेत्रों में भी सर्दियों के दौरान न्यूनतम तापमान के उच्च होने की उम्मीद है।
- इस घटना का मुख्य कारण भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर की सतह के जल का गर्म होना है।
- 'मुख्य शीत लहर' क्षेत्र में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना के क्षेत्र आते हैं।
- देश में सर्दियों के दौरान औसत से अधिक तापमान और समग्र रूप से बढ़ता हुआ वैश्विक तापमान ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) का संकेतक है।
- भारत का तापमान 50 साल पहले की तुलना में औसतन 0.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो गया है।
- इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान 3.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की उम्मीद है जिस कारण विश्व में कई मौसमी घटनाएँ घटित हो सकती हैं।
भारत मौसम विज्ञान विभाग
India Meteorological Department (IMD)
- IMD की स्थापना वर्ष 1875 में हुई थी।
- यह भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक संस्था है।.
- यह मौसम संबंधी अवलोकनों, मौसम की भविष्यवाणी और भूकंपीय विज्ञान के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख एजेंसी है।
स्रोत- द हिंदू
शासन व्यवस्था
स्वतंत्र निदेशकों का डेटाबैंक
प्रीलिम्स के लिये:
स्वतंत्र निदेशकों का डेटाबैंक
मेन्स के लिये:
‘स्वतंत्र निदेशकों का डेटाबैंक’ के तकनीकी पक्ष
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ( Ministry of Corporate Affairs- MCA) द्वारा नई दिल्ली में ‘स्वतंत्र निदेशकों का डेटाबैंक’ (Independent Director’s Databank) पोर्टल प्रारंभ किया गया है।
मुख्य बिंदु:
- स्वतंत्र निदेशकों के कामकाज़ को मज़बूती प्रदान करने के उद्देश्य से कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने कंपनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों तथा उसके अंतर्गत बनाए जाने वाले नियमों को ध्यान में रखते हुए ‘स्वतंत्र निदेशकों का डेटाबैंक’ शुरू किया है।
- इस डेटाबैंक के बारे में जानकारी कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर पोर्टल के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।
- इस डेटाबैंक पोर्टल को भारतीय कॉरपोरेट कार्य संस्थान (Indian Institute for Corporate Affairs) द्वारा विकसित किया गया है।
स्वतंत्र निदेशकों का डेटाबैंक
(Independent Director’s Databank):
- यह कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा उठाया गया एक अभूतपूर्व कदम है, इसके तहत वर्तमान स्वतंत्र निदेशकों तथा स्वतंत्र निदेशक बनने की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों को पोर्टल पर पंजीकरण कराने की सुविधा उपलब्ध होगी।
- इस डेटाबैंक के ज़रिये वे कंपनियाँ भी अपना पंजीकरण करा सकती हैं, जो कुशल व्यक्तियों को चुनकर उनसे जुड़ना चाहती हैं तथा उन व्यक्तियों को स्वतंत्र निदेशक के रूप में नियुक्त करना चाहती हैं।
- इसके तहत विभिन्न विषयों पर ई-लर्निंग पाठ्यक्रम की विस्तृत श्रेणी उपलब्ध होगी। इससे उपयोगकर्त्ताओं को विभिन्न संसाधनों के माध्यम से आसानी से ज्ञान प्राप्त करने तथा अलग-अलग प्रकार के कौशल विकसित करने में सहायता मिलेगी तथा यह के कंपनी संचालन, नियमों और अनुपालन को लेकर उनके ज्ञान में वृद्धि करेगा।
- इसके तहत सभी मौजूदा स्वतंत्र निदेशकों को 1 दिसंबर, 2019 से तीन महीने के भीतर डेटाबैंक में अपना पंजीकरण कराना आवश्यक है।
- पंजीकृत व्यक्तियों को 1 मार्च, 2020 से 1 वर्ष के भीतर एक ऑनलाइन स्व-मूल्यांकन परीक्षा भी उत्तीर्ण करनी होगी।
- पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाया गया है और इसके तीन आसान चरण हैं–
- मंत्रालय की वेबसाइट पर यूज़र अकाउंट के ज़रिए लॉग-इन करना।
- लॉग-इन करने के बाद यूज़र के लिये डेटाबैंक खुल जाएगा।
- ई-लर्निंग और ई-प्रोफिशियंसी मूल्यांकन के लिये सब्सिक्रिप्शन प्लान चुनना।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय राजनीति
शपथ-ग्रहण संबंधी विवाद
प्रीलिम्स के लिये:
संविधान में शपथ-ग्रहण संबंधी प्रावधान
मेन्स के लिये:
शपथ-ग्रहण संबंधी विवाद तथा संबंधित विषय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा के पहले सत्र के दौरान आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष द्वारा नई सरकार पर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।
मुख्य बिंदु:
- विपक्ष द्वारा नई सरकार पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्रियों ने संविधान में दिये गए प्रारूप के अनुसार शपथ ग्रहण नहीं की है।
- विपक्ष के अनुसार, नवगठित सरकार के मुख्यमंत्री तथा कई मंत्रियों ने राजनीतिक नेताओं तथा ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को अपनी शपथ के पाठ में शामिल किया था।
- महाराष्ट्र के एक पूर्व महाधिवक्ता के अनुसार, शपथ का सार तत्त्व काफी महत्वपूर्ण होता है। यह संविधान में निर्धारित प्रारूप के अनुसार होना चाहिये।
- शपथ से पहले या बाद में कुछ जोड़ना गैर-कानूनी नहीं है जब तक कि शपथ के सार से छेड़छाड़ न की गई हो।
संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 164(3) के अनुसार, किसी मंत्री द्वारा पद ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिये दिये गए प्रारूपों के अनुसार उसको पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा।
- तीसरी अनुसूची के अनुसार किसी राज्य के मंत्री की शपथ का प्रारूप यह है- 'मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, [संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित], मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं --------- राज्य के मंत्री के रूप में अपने कर्त्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।'
- अनुच्छेद 164 से यह स्पष्ट होता है कि शपथ का सार तत्त्व पवित्र होता है तथा शपथ लेने वाले व्यक्ति को इसे संविधान में प्रदत्त प्रारूप के अनुसार ही पढ़ना है।
- यदि कोई व्यक्ति शपथ लेने के दौरान शपथ के प्रारूप से भटक जाता है तो शपथ दिलाने वाले व्यक्ति (इस मामले में राज्यपाल) की ज़िम्मेदारी है कि वह शपथ लेने वाले व्यक्ति को रोककर उसे शपथ को सही तरीके से पढ़ने के लिये कहे।
राज्यपाल की भूमिका:
- राज्य के मुख्यमंत्री या मंत्रियों के शपथ संबंधी विवाद में राज्यपाल का अनुमोदन महत्त्वपूर्ण होता है।
- शपथ लेने के तुरंत बाद, जिस व्यक्ति ने शपथ ली है, उसे एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करना होता है। रजिस्टर को राज्यपाल के सचिव द्वारा सत्यापित किया जाता है, जिसका अर्थ होता है कि इसे राज्यपाल द्वारा अनुमोदित किया गया है। इसके बाद यह अधिसूचना राज़पत्र में प्रकाशित हो जाती है तथा शपथ की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है।
- महाराष्ट्र में यह प्रक्रिया 30 नवंबर को संबंधित अधिसूचना जारी होने के बाद पूर्ण हो चुकी है।
स्रोत- द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-स्वीडन संबंध
प्रीलिम्स के लिये
स्वीडन की भौगोलिक स्थिति
मेन्स के लिये
भारत के आर्थिक विकास में स्वीडन की भूमिका
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्वीडन के राजा कार्ल 16वें गुस्ताफ तथा रानी सिल्विया भारत दौरे पर आए। इस यात्रा के दौरान भारत-स्वीडन ने कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों से संबंधित नवाचार नीतियों पर उच्च स्तरीय वार्ता का आयोजन किया।
मुख्य बिंदु:
- इस मौके पर दोनों देशों के मध्य ध्रुवीय क्षेत्रों में शोध, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा समुद्री शुल्क के संबंध में समझौते हुए।
- इसके अलावा डिजिटल स्वास्थ्य (Digital Health), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), भविष्य में गतिशीलता (Future Mobility) तथा चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) के विषय पर सहयोग देने की बात कही गई।
- एशिया में चीन तथा जापान के बाद भारत, स्वीडन का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार (Trade Partner) है। पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश ने मज़बूती हासिल की है।
- भारत के मेक इन इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, स्वच्छ भारत, डिजिटल इंडिया तथा स्मार्ट सिटी कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन के लिये स्वीडन महत्त्वपूर्ण सहयोगी है।
- स्वीडिश कंपनियों ने भारत में बड़े स्तर पर निवेश किया है। जिसमें संचार उत्पाद, ऑटोमोबाइल, फार्मास्युटिकल्स, रासायनिक एवं यांत्रिक उत्पाद आदि शामिल हैं।
- भविष्य में ये स्वीडिश कंपनियाँ भारत में स्वच्छ तकनीक (Clean Technologies), चक्रीय अर्थव्यवस्था, जल साझेदारी (Water Partnership) तथा अगली पीढ़ी की अवसंरचना (Next Generation Infrastructure) के विकास के लिये कार्य करने की क्षमता रखती हैं।
- भारत के सैन्य क्षेत्र के विकास के लिये आवश्यक है कि स्वीडिश कंपनियाँ भारत में सैन्य विनिर्माण के क्षेत्र में निवेश करें जिससे रक्षा क्षेत्र में हम आत्मनिर्भर बन सकें। इससे न सिर्फ भारत के घरेलू सैन्य बाज़ार का विकास होगा बल्कि हम निर्यात भी कर सकेंगे।
- भारत की अनेकों कंपनियों ने स्वीडन में निवेश किया है जिसमें प्रमुख रूप से आईटी तथा अन्य तकनीकी समाधान वाली कंपनियाँ शामिल हैं।
- भारत तथा स्वीडन ने जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिये प्रत्येक मंच पर अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है तथा भारत ने स्वीडन को अंतर्राष्ट्रीय सौर संगठन (International Solar Alliance) में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया है।
स्रोत: पीआईबी, द हिंदू
भारतीय राजनीति
लोकसभा की आचार समिति
प्रीलिम्स के लिये
लोकसभा की आचार समिति, इसकी संरचना, कार्यकाल
मेन्स के लिये
लोकसभा में नैतिकता बनाए रखने में आचार समिति की भूमिका
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा की कार्यवाही के दौरान इसके सदस्यों की आचरण संबंधी शिकायतों की खबरें चर्चा में रहीं जिसके बाद लोकसभा की आचार समिति को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। अतः इस संदर्भ में लोकसभा की आचार समिति (Committee on Ethics) तथा इसके कार्यों को समझना आवश्यक है।
आचार समिति (Committee on Ethics)
- लोकसभा की आचार समिति के बारे में लोकसभा की नियमावली (Rules of Procedure and Conduct of Business in Lok Sabha) में दिया गया है।
- इसके अनुसार लोकसभा में एक आचार समिति होगी जिसमें 15 सदस्य होंगे तथा इनका कार्यकाल 1 वर्ष का होगा।
- आचार समिति के सदस्यों की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा होगी।
- यह समिति लोकसभा की कार्यवाही के दौरान किसी सदस्य द्वारा किये गए अनैतिक आचरण के संबंध में शिकायतों की सुनवाई करेगी जिसे लोकसभा अध्यक्ष द्वारा संज्ञान में लिया गया हो।
- समिति लोकसभा के सदस्यों के लिये आचार संहिता का निर्माण करेगी तथा उसे समय-समय पर इसमें संशोधन एवं बदलाव करने का अधिकार होगा।
- इस समिति के लिये निर्दिष्ट किसी शिकायत पर प्राथमिक जाँच होगी। जाँच पूरी होने के बाद समिति द्वारा की गई सिफारिशों (Recommendations) को एक रिपोर्ट के तौर पर लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
- लोकसभा अध्यक्ष इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने की अनुमति देगा जिसके बाद इस पर सदस्यों द्वारा चर्चा या सवाल-जवाब किया जाएगा। इस प्रकार की चर्चा आधे घंटे से अधिक की नहीं होगी।
- चर्चा के बाद सदस्यों की सहमति या असहमति के आधार पर इस प्रस्ताव को पारित किया जाएगा।
आचार संहिता
- लोकसभा में पहली आचार समिति का गठन 16 मई, 2000 को हुआ था।
- आचार समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा इसमें लोकसभा की रूलबुक (Rulebook) में संशोधन से संबंधित सुझाव दिये।
- 18 दिसंबर, 2014 को यह रिपोर्ट सदन के पटल पर प्रस्तुत की गई तथा इसके सुझावों को लोकसभा की विनियम समिति (Rules Committee) की रिपोर्ट में शामिल किया गया।
- इसमें कहा गया है कि आचार समिति लोकसभा के सदस्यों के लिये एक आचार संहिता का निर्माण करेगी तथा समय-समय पर इस संहिता में संशोधन करेगी या नए प्रावधान जोड़ेगी।
- तब से यह मामला आचार समिति के पास लंबित है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चिली में विरोध प्रदर्शन
प्रीलिम्स के लिये
चिली की भौगोलिक स्थिति एवं अन्य जानकारी
मेन्स के लिये
चिली में विरोध प्रदर्शन, इस प्रकार के प्रदर्शन के कारण तथा विकासशील देशों के लिये चिली से सबक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चिली में बढ़ती आर्थिक विषमता का विरोध करने एवं बेहतर सामाजिक सेवाओं और पेंशन की मांग के समर्थन में हो रहे हिंसक विरोध प्रदर्शनों के दौरान पिछले कुछ दिनों में कई लोगों ने अपनी आँखों की रोशनी खो दी।
पृष्ठभूमि:
- चिली में मेट्रो के किराए में 4 फीसदी वृद्धि को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे किंतु बाद में अन्य कई मुद्दों पर भी विरोध जताया जाने लगा। ये विरोध प्रदर्शन काफी शांतिपूर्वक शुरू हुए थे किंतु इन विरोध प्रदर्शनों ने वर्तमान में हिंसक रुप ले लिया। इसमें काफी संख्या में लोगों की मौत भी हुई।
- बताया जा रहा है कि 1990 में ऑगस्टो पिनोचे की सरकार के गिरने के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं।
- चिली में जारी विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए सरकार ने दो अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों (एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग सम्मेलन एवं संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन) का आयोजन रद्द कर दिया था। इन दोनों आयोजनों के रद्द होने से चिली की छवि काफी धूमिल हुई है।
- हिंसक प्रदर्शनों को देखते हुए राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा ने सेंटियागो में आपातकाल की घोषणा कर दी थी और सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सेना को सौंप दी थी किंतु विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए बाद में सरकार ने आपात स्थिति को समाप्त कर दिया था।
चिली में ऐसे हालात क्यों बने?
चिली: आर्थिक उदारीकरण का एक उदाहरण
- दक्षिण अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में विशाल समुद्र तट से सटा चिली की गिनती लैटिन अमेरिका के सबसे अमीर देशों में की जाती है। इसे आर्थिक उदारीकरण के उदाहरण के तौर पर देखा जाता है। माना जा रहा है कि आर्थिक उदारीकरण के कारण चिली में आर्थिक असमानताएँ काफी बढ़ गई हैं।
सरकारी नीतियाँ
- चिली में वर्ष 1970-73 के बीच वामपंथ की तरफ झुकाव रखने वाली साल्वोडोर आयेन्दे की सरकार थी। इस सरकार ने लोकलुभावन योजनाएँ लागू की किंतु इन योजनाओं से अर्थव्यवस्था में अधिक सुधार नहीं हुआ और उन्हें सत्ता से हटा दिया गया।
- साल्वोडोर आयेन्दे की सरकार के बाद ऑगस्टो पिनोचे की सरकार सत्ता में आई जिसने ‘आर्थिक उदारीकरण की नीति’ अपनाई। पिनोचे ने ट्रेड यूनियन को प्रतिबंधित किया, स्थानीय व्यवसायों को टैक्स से मिलने वाली छूट हटा दी, निजीकरण को बढ़ावा दिया एवं देश की लगभग सभी सरकारी इकाइयों का निजीकरण कर दिया।
- वर्ष 1990 में ऑगस्टो पिनोचे की सत्ता ख़त्म हो गई किंतु देश में अब भी वर्ष 1990 का वही संविधान लागू है जिसमें आर्थिक उदारीकरण को अपनाया गया था।
- चिली के वर्तमान संविधान में कुछ मूल धाराएँ ऐसी हैं कि उदारवादी अर्थव्यवस्था में बदलाव नहीं लाया जा सकता बल्कि उनको बढ़ावा ही दिया जा सकता है। बताया जा रहा है कि यह संविधान सेना ने बनाया था जिसमें सेना के अधिकारों और बड़े-बड़े पूंजीपतियों के हितों की बात की गई थी किंतु इसमें आम नागरिकों के हितों की उपेक्षा की गई थी।
- चिली में अर्थव्यवस्था का निजीकरण इस प्रकार हुआ है कि मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग उसका लाभ लेने में सक्षम नहीं हैं जबकि मध्यम वर्ग अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा कर के रूप में देता है।
- बिगड़ती अर्थव्यवस्था के संदर्भ में चिली की स्थिति ब्राज़ील, अर्जेंटीना, इक्वाडोर और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों से बहुत अलग नहीं है, लोगों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। एक तरफ लोगों की आर्थिक बिगड़ रही है, तो वहीं दूसरी तरफ लोगों को मज़बूर किया जा रहा है कि वे सार्वजनिक सेवाओं के लिए अधिक भुगतान करें।
प्रदर्शनकारियों की मांग
- राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा इस्तीफा दें।
- सामाजिक-आर्थिक सुधार लागू हों।
- वर्तमान संविधान में मूलभूत परिवर्तन किया जाए।
नए संविधान की मांग क्यों?
- राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा ने प्रदर्शनकारियों को आश्वासन दिया है कि उनकी सरकार पेंशन बढ़ाने, दवाओं की कीमतें कम करने, स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर और सस्ती करने के लिये प्रयास कर रही हैं एवं अन्य कई क्षेत्रों, जैसे रोज़गार, वहनीय कीमत पर बिजली और मूलभूत सुविधाओं के लिये भी कार्य किया जा रहा है किंतु विरोध प्रदर्शनों में कोई कमी नही आई है।
- चिली के लोगों में काफ़ी गुस्सा है, लोग सरकार के छोटे-छोटे वादों पर भी यकीन करने को तैयार नहीं हैं, वे एक मूलभूत परिवर्तन चाहते हैं। लोगों का मानना है कि संविधान में मूलभूत परिवर्तन होने से उन्हें आर्थिक उदारीकरण के बाद उत्पन्न समस्याओं से कुछ राहत मिलेगी। यही कारण है कि वे नए संविधान और राष्ट्रपति के इस्तीफ़े मांग कर रहे हैं।
- सरकार और नागरिकों के बीच विश्वास की कमी देखी जा रही है क्योंकि जहाँ एक तरफ सरकार ने सुधारों की बात की हैं तो वहीं दूसरी तरफ सड़कों पर अब भी सेना तैनात है और प्रदर्शनकारियों का दमन जारी है।
विकासशील देशों के लिये सबक
- आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाने वाले विकासशील देशों के लिये चिली में उपजे वर्तमान हालात एक उदाहरण है जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
- विकासशील देशों को अपने देश में आर्थिक उदारीकरण को बढ़ावा देते समय यह ध्यान में रखना चाहिये कि आर्थिक विकास का लाभ सभी वर्गों तक संतुलित तरीके से पहुँचे।
- गत दिनों जारी ऑक्सफैम इंडिया रिपोर्ट- 2018 इस बात की ओर इंगित करती है कि भारत में आय असमानता तेज़ी से बढ़ रही है।
चिली: एक नज़र में
- चिली दक्षिण अमेरिका में एंडीज़ पर्वतमाला और प्रशांत महासागर के मध्य स्थित है।
- चिली के उत्तर में पेरू, उत्तर-पूर्व में बोलीविया, पूर्व में अर्जेंटीना और दक्षिण छोर पर ड्रेक पैसेज स्थित है।
- चिली दक्षिण अमेरिका के उन दो देशों (दूसरा इक्वाडोर) में से है जिसकी सीमाएँ ब्राजील से नहीं मिलती है।
- विश्व के प्रमुख रेगिस्तानों में से एक 'अटाकामा रेगिस्तान' उत्तरी चिली में स्थित एक तटीय रेगिस्तान है।
- चिली की राजधानी ‘सैंटियागो’ चिली के मध्य में स्थित है।
- सैंटियागो शराब उत्पादन के लिये प्रसिद्ध है।
- विश्व का सबसे शुष्क स्थान ‘अरिका’ उत्तरी चिली में अवस्थित है।
- विश्व का सबसे बड़ा तांबा उत्पादक शहर ‘चुक्वीकमाटा’ चिली में अवस्थित है ।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस, बीबीसी
विविध
RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (03 दिसंबर)
अग्नि-3 का रात में पहली बार सफल प्रक्षेपण
परमाणु क्षमता से लैस सतह-से-सतह तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-3 का 30 नवंबर को पहली बार रात में परीक्षण हुआ। अग्नि 3 का यह नाइट ट्रायल सफल रहा। ओडिशा के बालासोर तट पर एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप स्थित इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज से रात 7 बजकर 20 मिनट पर मिसाइल का परीक्षण किया गया। अग्नि-3 जो पहले से ही सेना का हिस्सा है, का पहली बार रात को सफल परीक्षण किया गया। विदित हो कि इसका परीक्षण इंडियन आर्मी की स्ट्रैटजिक कमांड फोर्स ने किया और DRDO ने इसे लॉजिस्टिक सपोर्ट प्रदान किया। रात को भी दुश्मन को ढेर कर देने वाली अग्नि-3 की सबसे बड़ी खासियत इसकी मारक क्षमता है। यह मिसाइल 3500 किलोमीटर की दूरी तक वार कर सकती है। अग्नि-3 का वज़न करीब 50 टन, लंबाई 17 मीटर, व्यास 2 मीटर है और यह डेढ़ टन तक परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम है। अग्नि-3 हाइब्रिड नेविगेशन से लैस है और इसमें उन्नत ऑन-बोर्ड, कंप्यूटर कंट्रोल पैनल के साथ जुड़ा हुआ है।
मोबाइल फोन के लिये चीन में फेस स्कैनिंग
चीन में अब नया मोबाइल कनेक्शन लेना आसान नहीं होगा, इसके लिये फेस स्कैन कराना अनिवार्य कर दिया गया है। चीन ने साइबरस्पेस पर ठोस नियंत्रण बनाए रखने के लिये एक नया कड़ा प्रावधान शुरू किया है जिसके तहत अब नया मोबाइल कनेक्शन लेने के लिये फेस स्कैन कराना होगा। यह नियम 1 दिसंबर से लागू हो गया है। चीन की इंडस्ट्री एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री के अनुसार, ऑनलाइन नागरिकों की सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिये ऐसा करना ज़रूरी हो गया है। अब टेलिकॉम ऑपरेटर्स को नए नंबर लेने वाले इच्छुक लोगों की फेसस्कैनिंग करनी होगी। मोबाइल कनेक्शन के लिये जिस व्यक्ति का चेहरा स्कैन किया जाएगा उसका दिये गए पहचान-पत्र से मिलान किया जाएगा।
गौरतलब है कि चीन पहले से ही जनगणना के लिये चेहरे से पहचान करने वाली तकनीक (Facial Recognition Technology) का इस्तेमाल कर रहा है।
सोमा रॉय बर्मन
1986 बैच की भारतीय नागरिक लेखा सेवा (आईसीएएस) अधिकारी सोमा रॉय बर्मन ने अकाउंट कंट्रोलर (CGA) में नए लेखा महानियंत्रक के रूप में पदभार संभाल लिया। वे 24वीं लेखा महानियंत्रक हैं और इस पद को संभालने वाली सातवीं महिला हैं। उन्होंने अपने 33 साल के लंबे करियर के दौरान, गृह मंत्रालय, सूचना और प्रसारण, उद्योग, वित्त, मानव संसाधन विकास और नौवहन, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग आदि मंत्रालयों में विभिन्न स्तरों पर कैडर पदों पर कार्य किया है। उन्होंने केंद्रीय पेंशन लेखा कार्यालय (सीपीएओ) के मुख्य नियंत्रक (पेंशन) और सरकारी लेखा एवं वित्त संस्थान (आईएनजीएएफ), नई दिल्ली में निदेशक के रूप में भी कार्य किया है। CGA का प्रभार संभालने से पहले सोमा रॉय बर्मन ने लेखा नियम, नीति और सुधार, वित्तीय रिपोर्टिंग, डेटा विश्लेषिकी, नकद और बजट प्रबंधन के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को संभालते हुए CGA कार्यालय में अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में कार्य किया।
हरिमोहन
हरिमोहन ने 1 दिसंबर से ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड (OFB) के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाल लिया। उन्होंने सौरभ कुमार की जगह ली है जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं। 1982 बैच के ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड सेवा (IOFS) के अधिकारी हरिमोहन ने अपने 39 साल लंबे करियर में ऑर्डिनेंस से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। इसके अलावा उन्हें बख्तरबंद वाहनों, आर्टिलरी, टैंक और गोला बारूद, लघु हथियार गोला बारूद, परियोजना प्रबंधन एवं कॉर्पोरेट प्रशासन के निर्माण के क्षेत्र में विविध अनुभव प्राप्त हैं। उन्होंने अजमेरा टैंक, एमबीटी अर्जुन, ब्रिज लेयर और ट्रैवल्स टैंक जैसे आर्मर्ड फाइटिंग व्हीकल्स के उत्पादन को बेहतर बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
भास्कर मेनन
वरिष्ठ पत्रकार भास्कर मेनन का 1 दिसंबर को निधन हो गया। वह 87 वर्ष के थे। वह PTI न्यूज़ एजेंसी में उप-संपादक के तौर पर शामिल हुए थे और तरक्की पाते हुए PTI के क्षेत्रीय ब्यूरो प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने कई प्रमुख घटनाओं की रिपोर्टिंग की, जिनमें राजीव गांधी हत्याकांड भी शामिल है। सेवानिवृत्ति के बाद भी कई वर्षों तक वह पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रहे।