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डेली न्यूज़

  • 03 Mar, 2023
  • 21 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम

प्रिलिम्स के लिये:

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR), भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, 1976 का आपातकाल, राजद्रोह।

मेन्स के लिये:

विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) के प्रावधान।

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में गृह मंत्रालय ने विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (Foreign Contribution Regulation Act -FCRA) के तहत सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के लाइसेंस पंजीकरण को रद्द कर दिया है।

  • हाल में ऑक्सफैम इंडिया और इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक-स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन (IPSMF) के साथ ही CPR (गैर-लाभकारी संगठन) पर आयकर विभाग द्वारा सर्वेक्षण किया गया था। 

विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम: 

  • परिचय:  
    • विदेशी सरकारों द्वारा भारत के आंतरिक मामलों को प्रभावित करने के लिये स्वतंत्र संगठनों की सहायता से किये जाने वाले वित्तपोषण की आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए FCRA को 1976 में आपातकाल के दौरान अधिनियमित किया गया था।
    • इस कानून ने व्यक्तियों और संघों को दिए जाने वाले विदेशी दान को विनियमित करने की मांग की ताकि वे "एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य के मूल्यों के अनुरूप" कार्य कर सकें।
  • संशोधन:  
    • विदेशी धन के उपयोग पर "कानून को सशक्त करने" तथा "राष्ट्रीय हित में हानिकारक किसी भी गतिविधि" के लिये उसके उपयोग को "प्रतिबंधित" करने हेतु वर्ष 2010 में एक संशोधित FCRA अधिनियमित किया गया था। 
    • वर्ष 2020 में कानून में फिर से संशोधन किया गया, जिसने गैर-सरकारी संगठनों द्वारा विदेशी धन की प्राप्ति और उपयोग पर नियंत्रण तथा जाँच हेतु सरकार को और मज़बूती प्रदान की। 
  • मानदंड:
    • प्रत्येक व्यक्ति या NGO जो विदेशी दान प्राप्त करना चाहता है, के लिये FCRA निम्नलिखित प्रावधान करता है:
      • अधिनियम के तहत पंजीकृत हो
      • भारतीय स्टेट बैंक, दिल्ली में विदेशी धन की प्राप्ति के लिये एक बैंक खाता खोला गया हो
      • निधियों का उपयोग केवल उसी उद्देश्यों के लिये करना जिसके लिये उन्हें प्राप्त किया गया है और अधिनियम में इनको निर्धारित किया गया है।
    • विशिष्ट सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षिक, धार्मिक या सामाजिक कार्यक्रमों को करने  वाले व्यक्ति या संगठन FCRA के पंजीकरण हेतु पात्र हैं।
  • अपवाद:  
    • एफसीआरए के तहत आवेदक को फर्जी नहीं होना चाहिये और एक धर्म से दूसरे धर्म में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रलोभन या बल के माध्यम से धर्मांतरण के उद्देश्य से गतिविधियों में शामिल होने के लिए मुकदमा या दोषी नहीं ठहराया गया हो।
    • आवेदक पर सांप्रदायिक तनाव या वैमनस्य फैलाने के लिये कोई मुकदमा नहीं चलाया गया हो या किसी अपराध के लिये दोषी न ठहराया गया हो।
      • इसके अलावा वह राजद्रोह की गतिविधियों में शामिल न हो या उसके इसमें सम्मिलित होने की संभावना न हो। 
    • यह अधिनियम चुनावी उम्मीदवारों, पत्रकारों या अखबारों और मीडिया प्रसारण कंपनियों, न्यायाधीशों एवं सरकारी कर्मचारियों, विधायिका तथा राजनीतिक दलों के सदस्यों या उनके पदाधिकारियों, साथ ही राजनीतिक प्रकृति के संगठनों द्वारा विदेशी धन की प्राप्ति पर रोक लगाता है।
  • वैधता:  
    • NGOs को अपने FCRA पंजीकरण के नवीनीकरण की तिथि समाप्त होने के छह महीने के भीतर आवेदन करना आवश्यक है क्योंकि यह केवल पाँच साल के लिये  वैध होता है। 
    • सरकार किसी भी NGO का FCRA पंजीकरण भी रद्द कर सकती है यदि यह पाया जाता है कि NGO, अधिनियम का उल्लंघन कर रहा है या लगातार दो वर्षों तक समाज के लाभ के लिये अपने चुने हुए क्षेत्र में किसी भी उचित गतिविधि में शामिल नहीं हुआ है, या निष्क्रिय रहा हो। 
  • FCRA 2022 नियम:  
    • जुलाई 2022 में MHA ने FCRA नियमों में बदलाव किया जिससे अधिनियम के तहत समाशोधन/समाधेय योग्य अपराधों की संख्या 7 से बढ़कर 12 हो गई।
    • सरकार को अब विदेशों में रह रहे भारतीय (रिश्तेदारों) से 10 लाख रुपए (पहले 1 लाख रुपए से अधिक) के योगदान की अधिसूचना की आवश्यकता नहीं है और बैंक खाते खोलने के लिये अधिसूचित करने की समय-सीमा बढ़ा दी गई है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजव्यवस्था

ECI नियुक्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

प्रिलिम्स के लिये:

भारत निर्वाचन आयोग, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

भारत निर्वाचन आयोग और उसके कार्य, स्वतंत्रता, नियुक्ति प्रक्रिया

चर्चा में क्यों? 

सर्वोच्च न्यायालय (SC) के पाँच-न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।  

  • यदि विपक्ष का नेता उपलब्ध न हो तो लोकसभा में सबसे अधिक जन-प्रतिनिधियों वाले विपक्षी दल का मुखिया इस समिति का सदस्य होगा। 

फैसले के अन्य प्रमुख बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय का फैसला: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ECI की नियुक्ति पर संविधान सभा (Constituent Assembly- CA) की बहस से स्पष्ट होता है कि सभी सदस्यों का स्पष्ट मत था कि चुनाव एक स्वतंत्र आयोग द्वारा आयोजित किये जाने चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त "संसद द्वारा इस संबंध में स्थापित किसी भी कानून की शर्तों के अधीन" वाक्यांश का उद्देश्यपूर्ण समावेश इंगित करता है कि संविधान सभा ने संसद द्वारा भारतीय निर्वाचन आयोग की नियुक्तियों को नियंत्रित करने के लिये मानकों को स्थापित करने की परिकल्पना की थी।
    • आमतौर पर न्यायालय विशेष विधायी शक्तियों के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है, परंतु संविधान के संदर्भ में विधायिका की निष्क्रियता और उससे उत्पन्न शून्यता को देखते हुए न्यायालय को निश्चित रूप से हस्तक्षेप करना चाहिये।
    • मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त को हटाए जाने की प्रक्रिया समान होनी चाहिये अथवा नहीं, के सवाल पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह एक समान नहीं हो सकती क्योंकि मुख्य निर्वाचन आयुक्त का दर्जा विशेष होता है और उसके बिना अनुच्छेद 324 की सक्रियता काफी प्रभावित हो सकती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग, स्थायी सचिवालय के वित्तपोषण और भारत के समेकित कोष पर खर्च किये जाने वाले वित्त की आवश्यकता के सवाल को सरकार के निर्णय के लिये छोड़ दिया।
  • सरकार का तर्क:
    • सरकार के अनुसार, "ऐसे कानून के अभाव में राष्ट्रपति के पास संवैधानिक शक्तियाँ होती हैं। सरकार ने न्यायालय से न्यायिक संयम बनाए रखने का अनुरोध किया है।

चुनौतियाँ:

  • जैसा कि संविधान, संसद को ECE की नियुक्ति पर कोई भी कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है, अर्थात् इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत को चुनौती देता है।
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि यह निर्णय संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के अधीन होगा, जिसका अर्थ है कि संसद इसे पूर्ववत करने हेतु एक कानून बना सकती है।
  • एक अन्य दृष्टिकोण यह है कि इस विषय पर संसद द्वारा कोई कानून पारित नहीं किया गया है, अतः न्यायालय को "संवैधानिक शून्य" को भरने हेतु कदम उठाना चाहिये।

ECI में नियुक्ति हेतु मौजूदा प्रावधान:

  • संवैधानिक प्रावधान:  
    • भारतीय संविधान का भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनावों से संबंधित है और इन मामलों के लिये एक आयोग की स्थापना की गई है।
  • ECI की संरचना: 
    • मूल रूप से आयोग में केवल एक चुनाव आयुक्त था लेकिन चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम,1989 के बाद इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय (1 मुख्य चुनाव आयुक्त और 2 अन्य चुनाव आयुक्त) बना दिया गया। 
    • अनुच्छेद 324 के अनुसार, CEC और कोई अतिरिक्त चुनाव आयुक्त, जिन्हें राष्ट्रपति समय-समय पर नियुक्त कर सकता है, चुनाव आयोग में शामिल होंगे। 
  • नियुक्ति प्रक्रिया: 
    • अनुच्छेद 324(2): इस संबंध में संसद द्वारा पारित किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन राष्ट्रपति द्वारा CEC और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की जाएगी। 
      • कानून मंत्री द्वारा प्रधानमंत्री के विचार हेतु उपयुक्त उम्मीदवारों की सिफारिश की जाती है। नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
    • राष्ट्रपति चुनाव आयुक्तों की सेवा संबंधी की शर्तों और कार्य अवधि का निर्धारण करता है।
      • उनका कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक होता है।
  • निष्कासन: 
    • वह कभी भी इस्तीफा दे सकता है या कार्यकाल समाप्त होने से पहले उसे हटाया भी जा सकता है।
    • CEC को संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान माध्यम से ही पद से हटाया जा सकता है।
    • CEC की सिफारिश के बिना किसी अन्य निर्वाचन आयुक्त को नहीं हटाया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017) 

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच सदस्यीय निकाय है।
  2. संघ का गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
  3. निर्वाचन आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)  

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, भारत का निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं को प्रशासित करने के लिये उत्तरदायी  है।
  • यह निकाय भारत में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं और देश में राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के चुनावों का संचालन करता है।
  • मूल रूप से आयोग में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त था। इसमें वर्तमान में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त शामिल हैं। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों के निपटान हेतु आयोग अर्द्ध-न्यायिक शक्तियों से युक्त है। अतः कथन 3 सही है।
  • यह चुनाव के संचालन के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है, चाहे आम चुनाव हों या उपचुनाव। अतः कथन 2 सही नहीं है। 

अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के इस्तेमाल संबंधी हाल के विवाद के आलोक में भारत में चुनावों की 'विश्वास्यता सुनिश्चित करने के लिये भारत के निर्वाचन आयोग के समक्ष क्या-क्या चुनौतियाँ है? (2018)

प्रश्न. भारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिये भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण है? (2017) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

हीलियम भंडार का दोहन

प्रिलिम्स के लिये:

हीलियम, कार्बन फुटप्रिंट, रेडियोधर्मी तत्त्व, परमाणु चुंबकीय अनुनाद (NMR)

मेन्स के लिये:

हीलियम गैस का महत्त्व, हीलियम का उपयोग, हीलियम की कमी।

चर्चा में क्यों?

हाल के एक नए अध्ययन से पता चला है कि हीलियम भंडार, जिनके कार्बन फुटप्रिंट नहीं हैं, पृथ्वी के नीचे भूगर्भीय संरचनाओं में मौजूद होने की संभावना है। शोधकर्त्ताओं ने संबंधित संकट के निदान हेतु हीलियम भंडार के दोहन हेतु एक नया मॉडल प्रस्तावित किया है।

  • हीलियम उत्पादन में उच्च कार्बन फुटप्रिंट है क्योंकि यह ड्रिल किये गए प्राकृतिक गैस या तेल से प्राप्त होता है।

हीलियम भंडार का दोहन करने हेतु प्रस्तावित मॉडल: 

  • यह गैस क्रिस्टलीय चट्टानों में उत्पादित और संग्रहीत होने में सक्षम है, ये चट्टान सघन हैं जो मेंटल से लेकर निकट-सतह तक फैले हुए हैं।
    • इन चट्टानों में यूरेनियम और थोरियम मौजूद हैं, जिनके प्राकृतिक रूप से क्षय के कारण हीलियम बनता है।
  • ये चट्टानें 30-40 किलोमीटर मोटी होती हैं। ये लाखों या अरबों वर्षों से मौजूद हैं, जिससे बड़ी मात्रा में हीलियम का उत्पादन और भंडारण किया जा सकता है।
  • साथ ही ये चट्टानें हाइड्रोजन का स्रोत भी हो सकती हैं। इस मॉडल से संकेत मिले हैं कि यूरेनियम और थोरियम के रेडियोधर्मी क्षय से उत्पन्न ऊर्जा जल को हाइड्रोजन में विभाजित कर सकती है।

हीलियम गैस का महत्त्व:  

  • परिचय:  
    • हीलियम एक नोबल गैस है और इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास क्लोज़्ड शेल जैसा होता है, जो इसे स्थिर और अक्रियाशील बनाता है।
    • इसका क्वथनांक और गलनांक (Boiling and Melting Point) सबसे कम होता है तथा चरम परिस्थितियों के अतिरिक्त केवल गैस के रूप में पाया जाता है।
  • हीलियम की खोज:
    • वर्ष 1868 में फ्राँसीसी खगोलशास्त्री जूल्स जानसेन और ब्रिटिश खगोलशास्त्री जोसेफ नॉर्मन लॉकयर द्वारा पहली बार हीलियम की खोज की गई थी, सूर्य ग्रहण के दौरान उन्होंने सूर्य द्वारा उत्सर्जित प्रकाश में एक पीली वर्णक्रमीय रेखा (Spectral line) देखी।
    • हीलियम का नाम ग्रीक शब्द "हेलिओस" से लिया गया है, जिसका अर्थ है सूर्य
  • हीलियम के स्रोत और इसका निष्कासन
    • हाइड्रोजन के बाद हीलियम दूसरा सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला तत्त्व है। हालाँकि यह पृथ्वी पर दुर्लभ है, क्योंकि इसका अधिकांश भाग पृथ्वी की भू-पर्पटी में रेडियोधर्मी तत्त्वों के क्षय द्वारा निर्मित होता है।
    • प्राकृतिक गैस पृथ्वी पर हीलियम का प्राथमिक स्रोत है।
      • हीलियम को क्रायोजेनिक आसवन नामक प्रक्रिया का उपयोग कर प्राकृतिक गैस से प्राप्त किया जाता है।
  • भंडार और उत्पादन:
    • वर्ष 2022 तक विश्व स्तर पर हीलियम का सबसे बड़ा भंडार संयुक्त राज्य अमेरिका में है, जिसके बाद अल्जीरिया और रूस का स्थान है। 
    • झारखंड में भारत का राजमहल ज्वालामुखी बेसिन अरबों वर्षों से हीलियम का भंडार रहा है। 
  • हीलियम का उपयोग:
    • बैलून्स और हवाई पोत (क्योंकि यह हवा से हल्का होता है और अन्य तत्त्वों के साथ रासायनिक रूप से प्रतिक्रिया नहीं करता है)।
    • अर्द्धचालक और फाइबर ऑप्टिक केबलों के उत्पादन में वेल्डिंग, शीतलन और एक सुरक्षात्मक गैस के रूप में औद्योगिक अनुप्रयोग। 
    • चिकित्सा अनुप्रयोग जैसे- MRI का सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट के लिये कूलिंग एजेंट के रूप में उपयोग।
    • इसका उपयोग परमाणु चुंबकीय अनुनाद (NMR) स्पेक्ट्रोस्कोपी और गैस क्रोमैटोग्राफी में वाहक गैस के रूप में भी किया जाता है।
  • हीलियम की कमी: 
    • वर्तमान में विश्व भर में हीलियम की कमी है, जिसकी मांग आपूर्ति से ज़्यादा है। 
    • इसकी कमी का कारण कुछ हीलियम संयंत्रों का बंद होना, उभरती अर्थव्यवस्थाओं में हीलियम की बढ़ती खपत और हीलियम के नए स्रोतों की कमी है।
      • हीलियम की कमी के चलते गुब्बारों और वायुयानों के साथ-साथ चिकित्सा एवं औद्योगिक अनुप्रयोगों में इसके उपयोग को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।

निष्कर्ष:   

  • हाइड्रोजन उत्पादन के अतिरिक्त लाभ के साथ कार्बन मुक्त हीलियम भंडार तक पहुँच के लिये सुझाई गई विधि वर्तमान हीलियम की कमी का दीर्घकालिक, किफायती समाधान प्रदान कर सकती है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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