एथिक्स
भारत में पुलिसिंग और नैतिकता
मेन्स के लिये:भारतीय पुलिसिंग और नैतिकता, भारत में नैतिक पुलिसिंग के साथ विभिन्न मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने यह संदेश दिया कि 'आदर्श पुलिस व्यवस्था' यह दर्शाती है कि पुलिस अधिकारी का काम ज़िम्मेदारी और जवाबदेही से परिपूर्ण होता है।
पुलिसिंग में नैतिकता:
- नैतिक निर्णय लेना:
- जीवन और स्वतंत्रता मौलिक नैतिक मूल्य हैं और सभी मानव समाजों में ऐसा माना जाता है, पुलिस को नियमित रूप से यह तय करना पड़ता है कि गिरफ्तार करना है या नहीं अर्थात् किसी की स्वतंत्रता को समाप्त करना है या नहीं, और इसके चरम स्थिति पर कभी-कभी उन्हें यह तय करना होगा कि किसी के जीवन की स्वतंत्रता को सीमित करना है या नहीं।
- कोई भी नैतिक निर्णय लेते समय पुलिस को कई जटिल कार्रवाइयों पर विचार करना पड़ता है।
- उन्हें किसी व्यक्ति की अच्छाई और बुराई पर विचार करने से पहले विचार करना होगा कि क्या उनके कार्य गलत हैं या नहीं।।
- किसी व्यक्ति द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई के लिये उन्हें कार्रवाई की प्रेरणा और इरादों एवं उसके परिणामों को देखना होगा।
- खतरे या शत्रुता का सामना:
- पुलिस को अपना कर्तव्य करने के लिये खतरे या शत्रुता का सामना करना पड़ सकता है, और अनुमानतः अपने काम के दौरान पुलिस अधिकारियों को अन्य व्यवसायों के लोगों की तुलना में भय, क्रोध, संदेह, उत्तेजना और ऊब सहित कई तरह की भावनाओं का अनुभव होने की संभावना है।
- पुलिस के रूप में प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिये उन्हें इन भावनाओं का सही तरीके से जवाब देने में सक्षम होना चाहिये, जिसके लिये उनमें भावनात्मक बुद्धिमत्ता होना आवश्यक है।
भारत में नैतिक पुलिसिंग संबंधी विभिन्न चुनौतियाँ
- पुलिस का राजनीतिकरण:
- भारत में कानून का शासन है जो न्याय के बुनियाद पर आधारित है, उसे राजनीति के शासन ने कमज़ोर कर दिया है।
- पुलिस के राजनीतिकरण का प्रमुख कारण विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों की नियुक्ति के लिये उचित कार्यकाल नीति का अभाव और राजनीतिक हित के लिये उपयोग किये जाने वाले मनमाने तबादले एवं पोस्टिंग हैं।
- राजनेता पुलिस अधिकारियों को वश में करने के लिये स्थानांतरण और निलंबन को हथियार के रूप में उपयोग करते हैं।
- ये दंडात्मक उपाय पुलिस के मनोबल को प्रभावित करते हैं और संगठन के भीतर कमांड की शृंखला को हानि पहुँचाते हैं, जिससे उनके वरिष्ठ अधिकारियों के अधिकार को कम किया जा सकता है जो ईमानदार, सक्षम और निष्पक्ष हो सकते हैं, लेकिन पर्याप्त रूप से सहायक या राजनीतिक रूप से उपयोगी नहीं हैं।
- पुलिस की मनमानी :
- ‘बेले’ (Bayley) और ‘एथिकल इश्यूज इन पोलिसिंग’ (Ethical Issues in Policing) जैसी पुस्तकों में लेखकों का मानना है कि कानून के शासन को राजनीति के शासन से बदला जा रहा है, जो देश में सुशासन की स्थापना के लिये चिंता का विषय है।
- उनके अनुसार, पुलिस का गैर-ज़िम्मेदाराना और मनमानी पूर्ण व्यवहार इसके प्रमुख कारक हैं और यह उन ईमानदार और सक्षम पुलिस अधिकारियों को हतोत्साहित करता है जो भारतीय पुलिस संस्थानों का नवीनीकरण करने का प्रयास कर रहे हैं।
- भ्रष्टाचार:
- हालाँकि भ्रष्टाचार दुनिया के हर हिस्से में प्रचलित है, भारत भ्रष्टाचार बोध सूचकांक, 2021 में 180 देशों में से 85 वें स्थान पर है।
- लगभग प्रत्येक स्तर पर और विभिन्न रूपों में विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार से पुलिस विभाग अछूता नहीं है।
- ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी भ्रष्टाचार गतिविधियों में लिप्त पाए गए हैं और ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ निम्न श्रेणी के पुलिस अधिकारियों को रिश्वत लेते पकड़ा गया है।
- हिरासत में होने वाली मौतें:
- सरकारी आँकड़ों के अनुसार, भारत में हिरासत में होने वाली मौतों की कुल संख्या वर्ष 2020-21 में 1,940 से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 2,544 हो गई।
- उत्तर प्रदेश में पिछले दो वर्षों से सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की तुलना में हिरासत मेंं होने वाली मौत के सबसे अधिक मामले दर्ज किये गए हैं।
- अवपीड़न के तरीकों का उपयोग:
- पुलिस अवपीड़न (Police Coercion) शब्द को सबसे अच्छी तरह से परिभाषित किया जा सकता है, जब एक पुलिस अधिकारी किसी संदिग्ध से अपराध के स्वीकारोक्ति के प्रयास में अनुचित दबाव या धमकी का उपयोग करता है।
- पुलिस अवपीड़न कई रूप ले सकती है और पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाया जाता रहा है कि अपराध को कबूल कराने के प्रयास में विभिन्न प्रकार के अनुचित दबाव का उपयोग किया जाता है।
संबंधित सुझाव:
- शाह आयोग की सिफारिश (1978):
- शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट (रिपोर्ट संख्या II, 26 अप्रैल, 1978) में सुझाव दिया था कि सरकार को देश की राजनीति से पुलिस को निष्पक्ष रखने की व्यवहार्यता और वांछनीयता पर गंभीरता से विचार करना चाहिये और उन्हें पुलिस कर्तव्यों के अनुसार ईमानदारी से नियुक्त करना चाहिये।
- राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977):
- पुलिस को बाह्य और आंतरिक प्रभाव से बचाने के लिये, राष्ट्रीय पुलिस आयोग ने कई महत्त्वपूर्ण सुझाव भी दिये हैं।
- आयोग के अनुसार हिरासत में बलात्कार, पुलिस फायरिंग से मौत और अत्यधिक बल प्रयोग के मामले में न्यायिक जाँच को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- मॉडल पुलिस अधिनियम:
- आदर्श पुलिस अधिनियम बनाने के लिये सोली सोराबजी समिति की स्थापना की गई थी।
- समिति ने वर्ष 2006 में "पुलिस को एक कुशल, प्रभावी, जन अनुकूल और उत्तरदायी एजेंसी के रूप में संचालित करने में सक्षम बनाने के लिये"अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की।
- सामान्य तौर पर, समिति ने प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का अनुसरण किया।
- वर्ष 2006 के प्रकाश सिंह मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस सुधार के उद्देश्य से 7 निर्देश जारी किये थे।
- सामान्य तौर पर, समिति ने प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का अनुसरण किया।
- भारत सरकार ने संसद में वादा किया था कि निकट भविष्य में एक मॉडल पुलिस अधिनियम पेश किया जाएगा, जो अभी तक नहीं हुआ है।
आगे की राह:
- मानवाधिकारों की रक्षा करना:
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 1998 के अनुसार लोकतांत्रिक समाज में पुलिस को "शासन में कम और जवाबदेही में अधिक" होना चाहिये।
- इसके अलावा पुलिस नैतिकता और पुलिस संस्थान लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता एवं संपत्ति के अधिकारों की रक्षा के लिये उच्चतम नैतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु हैं।अतः मानवाधिकारों की सुरक्षा पुलिस का मुख्य कार्य है।
- पुलिस द्वारा नैतिक सिद्धांतों का पालन:
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 1998 के अनुसार, पुलिस को सावधानीपूर्वक तैयार किये गए नैतिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिये जो पीड़ितों के नैतिक अधिकारों को संदिग्धों के साथ उचित रूप से संतुलित करते हैं।
- उदाहरण के लिये नागरिकों और स्वयं की सुरक्षा के लिये पुलिस द्वारा बल का उपयोग आवश्यकता एवं आनुपातिकता के नैतिक सिद्धांतों के आधार पर होना चाहिये।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 1998 के अनुसार, पुलिस को सावधानीपूर्वक तैयार किये गए नैतिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिये जो पीड़ितों के नैतिक अधिकारों को संदिग्धों के साथ उचित रूप से संतुलित करते हैं।
- पुलिस का अराजनीतिकरण:
- राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिश के अनुसार पुलिस का अराजनीतिकरण करना और उसे बाहरी दबावों से बचाने के साथ ही प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर फिर से ज़ोर देना समय की तत्काल आवश्यकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
मिखाइल गोर्बाचेव और शीत युद्ध
प्रिलिम्स के लिये:मिखाइल गोर्बाचेव, सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी,ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका, विश्व युद्ध, शीत युद्ध, वारसॉ संधि, सोवियत संघ, गुटनिरपेक्ष आंदोलन। मेन्स के लिये:शीत युद्ध और गुटनिरपेक्ष आंदोलन। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सोवियत संघ के अंतिम नेता मिखाइल गोर्बाचेव का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
मिखाइल गोर्बाचेव का योगदान:
- परिचय:
- एक युवानेता के रूप में मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए, और स्टालिन की मृत्यु के बाद वे निकिता ख्रुश्चेव के स्टालिन के द्वारा लागू नीतियों में सुधार के प्रबल समर्थक बन गए।
- उन्हें वर्ष 1970 में स्टावरोपोल क्षेत्रीय समिति के प्रथम पार्टी सचिव के रूप में चुना गया था।
- वर्ष 1985 में उन्हें सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में, दूसरे शब्दों में सरकार के वास्तविक शासक के रूप में चुना गया था।
- उपलब्धियाँ:
- प्रमुख सुधार:
- इन्होंने "ग्लासनोस्त" और "पेरेस्त्रोइका" की नीतियों की शुरुआत की, जिसने भाषण तथा प्रेस की स्वतंत्रता और अर्थव्यवस्था के आर्थिक विस्तार में मदद की।
- पेरेस्त्रोइका का अर्थ है "पुनर्गठन", विशेष रूप से साम्यवादी अर्थव्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था का सोवियत अर्थव्यवस्था में बाज़ार अर्थव्यवस्था की कुछ विशेषताओं को शामिल करके। इसके परिणामस्वरूप वित्तीय निर्णय लेने में विकेंद्रीकरण भी हुआ।
- ग्लासनोस्त का अर्थ है- "खुलापन", विशेष रूप से सूचनाओं के संदर्भ में पारदर्शिता, इसी क्रम में सोवियत संघ का लोकतंत्रीकरण शुरू हुआ।
- इन्होंने "ग्लासनोस्त" और "पेरेस्त्रोइका" की नीतियों की शुरुआत की, जिसने भाषण तथा प्रेस की स्वतंत्रता और अर्थव्यवस्था के आर्थिक विस्तार में मदद की।
- शस्त्रों में कमी पर ज़ोर:
- उन्होंने दो विश्व युद्ध के बाद से यूरोप को विभाजित करने मुद्दों का समाधान करने और जर्मनी के एकीकरण के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हथियारों में कमी के लिये समझौते कर पश्चिमी शक्तियों के साथ साझेदारी की।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ द्वारा स्वयं और उसके आश्रित पूर्वी एवं मध्य यूरोपीय सहयोगियों को पश्चिम और अन्य गैर-कम्युनिस्ट देशों के साथ मुक्त संपर्क का अभाव ही प्रमुख राजनीतिक, सैन्य और वैचारिक अवरोध था।
- उन्होंने दो विश्व युद्ध के बाद से यूरोप को विभाजित करने मुद्दों का समाधान करने और जर्मनी के एकीकरण के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हथियारों में कमी के लिये समझौते कर पश्चिमी शक्तियों के साथ साझेदारी की।
- शीत युद्ध की समाप्ति:
- शीत युद्ध को समाप्त करने का श्रेय गोर्बाचेव को दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप अलग-अलग देशों के रूप में सोवियत संघ का विघटन हुआ।
- नोबेल शांति पुरुस्कार:
- अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य शीत युद्ध को समाप्त करने के उनके प्रयासों के लिये उन्हें वर्ष 1990 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- प्रमुख सुधार:
- भारत के साथ तत्कालीन संबंध:
- गोर्बाचेव दो बार वर्ष 1986 और वर्ष 1988 में भारत आए थे।
- उनका उद्देश्य यूरोप में अपने निरस्त्रीकरण की पहल को एशिया तक विस्तारित करना और भारतीय सहयोग को सुनिश्चित करना था।
- सोवियत संघ के नेता के रूप में पदभार संभालने के बाद गोर्बाचेव की गैर-वारसा संधि वाले देश की यह पहली यात्रा थी।
- तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गोर्बाचेव को "शांति के धर्मयोद्धा" (Crusader for peace) की उपाधि से सम्मानित किया किया था।
- यात्रा के दौरान भारत की संसद में उनके संबोधन को भारतीय और सोवियत मीडिया में अतिशयोक्तिपूर्ण कवरेज मिला और इसे भारतीय कूटनीति के एक उच्च बिंदु के रूप में देखा गया।
शीत युद्ध:
- परिचय:
- शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ एवं उसके आश्रित देशों (पूर्वी यूरोपीय देश) और संयुक्त राज्य अमेरिका एवं उसके सहयोगी देशों (पश्चिमी यूरोपीय देश) के बीच भू-राजनीतिक तनाव की अवधि (1945-1991) को कहा जाता है।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व दो महाशक्तियों – सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्चस्व वाले दो शक्ति समूहों में विभाजित हो गया था।
- यह पूंजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका और साम्यवादी सोवियत संघ के बीच वैचारिक युद्ध था जिसमें दोनों महाशक्तियाँ अपने-अपने समूह के देशों के साथ संलग्न थीं।
- "शीत" (Cold) शब्द का उपयोग इसलिये किया जाता है क्योंकि दोनों पक्षों के बीच प्रत्यक्ष रूप से बड़े पैमाने पर कोई युद्ध नहीं हुआ था।
- इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल अंग्रेज़ी लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने वर्ष 1945 में प्रकाशित अपने एक लेख में किया था।
- शीत युद्ध सहयोगी देशों (Allied Countries), जिसमें अमेरिका के नेतृत्व में यू.के., फ्राँस आदि शामिल थे और सोवियत संघ एवं उसके आश्रित देशों (Satellite States) के बीच शुरू हुआ था।
- भारत की भूमिका:
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन:
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नीति ने औपचारिक रूप से खुद को संयुक्त राज्य या सोवियत संघ के साथ संरेखित करने की कोशिश नहीं की बल्कि स्वतंत्र या तटस्थ रहने की मांग की।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की मूल अवधारणा वर्ष 1955 में इंडोनेशिया में आयोजित एशिया-अफ्रीका बांडुंग सम्मेलन में उत्पन्न हुई थी।
- पहला NAM शिखर सम्मेलन सितंबर 1961 में बेलग्रेड, यूगोस्लाविया में हुआ था।
- उद्देश्य:
- साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नव-उपनिवेशवाद, नस्लवाद और विदेशी अधीनता के सभी रूपों के खिलाफ उनके संघर्ष में "गुटनिरपेक्ष देशों की राष्ट्रीय स्वतंत्रता, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता एवं सुरक्षा" सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 1979 के हवाना घोषणा पत्र में संगठन का उद्देश्य तय किया गया था।
- शीत युद्ध के दौर में गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने विश्व व्यवस्था को स्थिर करने और शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- तटस्थ कदम:
- भारत महाशक्तियों के हितों की सेवा करने के बजाय अपने स्वयं के हितों की सेवा करते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय लेने और रुख अपनाने में सक्षम था।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न 1: भारत के निम्नलिखित राष्ट्रपतियों में से कौन कुछ समय के लिये गुटनिरपेक्ष आंदोलन के महासचिव भी थे? (2009) (a) डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन उत्तर: (c)
प्रश्न. मलाया प्रायद्वीप में उपनिवेशन उन्मूलन प्रक्रम में सन्निहित क्या-क्या समस्याएँ थीं? (मेन्स-2017) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
HIV दवाओं की कमी
प्रिलिम्स के लिये:ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV), राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम। मेन्स के लिये:ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV), HIV ड्रग्स की कमी के प्रभाव और इसकी व्यापकता। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी (ART) केंद्रों में ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV) एवं एंटीरेट्रोवायरल (ARV) दवाओं की कमी का सामना कर रहा है।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (National AIDS Control Organisation-NACO) केंद्रीय चिकित्सा सेवा सोसायटी के साथ-साथ राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (NACP) की गतिविधियों की निगरानी तथा समन्वय के लिये ज़िम्मेदार नोडल एजेंसी है, जो केंद्रीकृत निविदा और विभिन्न HIV उत्पादों की सामूहिक खरीद हेतु ज़िम्मेदार है।
ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV)
- HIV का वायरस शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में सीडी4 (CD4) नामक श्वेत रक्त कोशिका (टी-कोशिकाओं) पर हमला करता है। ये वे कोशिकाएँ होती हैं जो शरीर की अन्य कोशिकाओं में विसंगतियों और संक्रमण का पता लगाती हैं।
- शरीर में प्रवेश करने के बाद HIV की संख्या बढ़ती जाती है और कुछ ही समय में वह CD4 कोशिकाओं को नष्ट कर देता है एवं मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाता है। विदित हो कि एक बार जब यह वायरस शरीर में प्रवेश कर जाता है, तो इसे पूर्णतः समाप्त करना काफी मुश्किल है।
- HIV से संक्रमित व्यक्ति की CD4 कोशिकाओं में काफी कमी आ जाती है। ज्ञातव्य है कि एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में इन कोशिकाओं की संख्या 500-1600 के बीच होती है, परंतु HIV से संक्रमित लोगों में CD4 कोशिकाओं की संख्या 200 से भी नीचे जा सकती है।
दवाओं की कमी चिंता का विषय:
- HIV संक्रमित लोगों के वायरस को नियंत्रित करने, अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने और HIV-असंक्रमित साथी में वायरस के संचरण को रोकने के लिये एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी के रूप में उपयोग की जाने वाली दवाओं के संयोजन के साथ उपचार तक पहुँच की आवश्यकता होती है।
- वायरस को नियंत्रित करने के लिये लगातार एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी का उपयोग करना महत्त्वपूर्ण है।
इन दवाओं की कमी के कारण -
- सामूहिक खरीद तंत्र की विफलता, जीवन रक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवाओं की सामूहिक खरीद की निविदा में वर्ष 2014, 2017 और 2022 में प्रसाशनिक स्तर पर विलंब देखा गया है
- हालाँकि देश इनकी बहुत ज़्यादा कमी का सामना नहीं कर रहा है। इन दवाओंके वितरण में विलंब के साथ इनका कुछ भंडारण खराब होने के कगार पर है।
- इसमें कई बार अनियमितता के रूप में वयस्कों के लिये आवंटित दवाओं को बच्चों को आवंटित करने संबंधी स्थितियाँ भी देखी गई हैं।
इसके प्रभाव -
- यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो दवा की कमी के परिणामस्वरूप सार्वजनिक स्वास्थ्य गंभीर चिंता का विषय बन सकता है।
- NACO के अनुसार, इसकी निर्धारित मात्रा का पालन करने में किसी भी अनियमितता से HIV दवाओं के प्रति बीमारी की प्रतिरोधकता विकसित हो सकती है जिससे इन दवाओं के प्रभाव में कमी आ सकती है
- यदि ART को प्रतिदिन नहीं लिया जाता है तो शरीर में संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है, जिससे व्यक्ति में संक्रामकता बढ़ने लगती है।
- यह जोखिम HIV/एड्स के खिलाफ भारत द्वारा हासिल की गई उपलब्धि पर नकारात्मक प्रभाव डालने के साथ इस दिशा में हो रही वैश्विक प्रगति को बाधित करता है जो वर्ष 2030 तक एड्स को समाप्त करने के लक्ष्य को पूरा करने के मानक को पूरा नहीं करते हैं।
भारत में HIV/AIDS का प्रसार-
- सरकार की HIV आकलन रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत में 24.01 लाख लोग HIV (PLHIV) से संक्रमित हैं।
- वर्ष 2010 के बाद से भारत में नए HIV संक्रमण में 46% की वार्षिक गिरावट आई है ।
- महाराष्ट्र में इसके रोगियों की संख्या सबसे अधिक है इसके बाद आंध्र प्रदेश और कर्नाटक का स्थान आता है।
- 15-49 वर्ष के युवाओं में HIV संक्रमण की दर मिज़ोरम (2.37%) में सबसे अधिक है, इसके बाद नगालैंड और मणिपुर का स्थान आता है ।
- मिज़ोरम में HIV/एड्स का प्रसार राष्ट्रीय औसत (0.22%) से 10 गुणा अधिक है।
आगे की राह
- स्वास्थ्य मंत्रालय की राजनीतिक इच्छाशक्ति की तत्काल आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जैसा कि पिछले एक दशक में हुआ है वैसा टीबी और एड्स की दवा की कमी के रूप में वैसा दोबारा अनुभव न किया जाए।
- यदि अनदेखी की गई तो परिणाम, स्वास्थ्य के अधिकार को प्रभावित करने के साथ ही दवा प्रतिरोध देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती उत्पन्न करेगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही नहीं है? (a) यकृतशोध B विषाणु HIV की तरह ही संचरित होता है। उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा रोग टैटू गुदवाने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b)
अतः विकल्प (b) सही है। मेन्स स्वास्थ्य से संबंधित सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (एमडीजी) की पहचान कीजिये। इसे प्राप्त करने के लिये सरकार द्वारा की गई कार्रवाइयों की सफलता पर चर्चा कीजिये। (मेन्स-2013) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
कर्नाटक लौह अयस्क खनन
प्रिलिम्स के लिये:लौह अयस्क उद्योग, कर्नाटक में लौह अयस्क, ई-नीलामी। मेन्स के लिये:लौह उद्योग का महत्त्व, लौह अयस्क की नीलामी प्रक्रिया। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक में बेल्लारी, चित्रदुर्ग और तुमकुर ज़िलों के लिये लौह अयस्क खनन की "सीमा" को यह कहते हुए बढ़ा दिया कि पारिस्थितिकी और पर्यावरण का संरक्षण आर्थिक विकास की भावना के साथ-साथ होना चाहिये।
- कर्नाटक में लौह अयस्क के उत्पादन और बिक्री पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाने के दस वर्ष बाद न्यायालय ने अपने ही आदेशों में ढील दी है।
कर्नाटक लौह अयस्क खनन प्रतिबंध:
- पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध खनन के लिये वर्ष 2009 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) की जाँच शुरू होने के बाद बेल्लारी में ओबुलापुरम खनन कंपनी (OMC) को प्रतिबंधित कर दिया।
- अवैध खनन के परिणामस्वरूप सार्वजनिक संपत्ति की लूट हुई, राजकोष को भारी नुकसान हुआ, वन भूमि पर कब्जा कर लिया, पर्यावरण को भारी क्षति हुई और स्थानीय आबादी के बीच बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य का मुद्दा उठा।
- वर्ष 2008 और वर्ष 2011 की दो लोकायुक्त रिपोर्टों ने अवैध खनन घोटाले में शामिल तीन मुख्यमंत्रियों सहित 700 से अधिक सरकारी अधिकारियों का खुलासा किया।
- वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध खनन के लिये वर्ष 2009 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) की जाँच शुरू होने के बाद बेल्लारी में ओबुलापुरम खनन कंपनी (OMC) को प्रतिबंधित कर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय के आदेश:
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) की रिपोर्ट के पश्चात् खनन बड़े पैमाने पर हो रहे उल्लंघन की ओर ध्यान दिया गया तथा सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2011 में बेल्लारी में खनन कार्यों को रोकने हेतु एक आदेश जारी किया।
- इसके अतिरिक्त, सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक से लौह अयस्क के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय क्षरण को रोकना और अंतर-पीढ़ीगत इक्विटी की अवधारणा के हिस्से के रूप में भावी पीढ़ियों के लिये संरक्षित करना था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने A और B श्रेणी की खानों के लिये अधिकतम अनुमेय वार्षिक उत्पादन सीमा 35 MMT भी तय की।
- इसने भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) को अवैध खनन से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को कम करने के लिये एक सुधार और पुनर्वास (R&R) योजना तैयार करने का निर्देश दिया।
- वर्ष 2012 मेंं सर्वोच्च न्यायालयने 18 "श्रेणी A" खानों का परिचालन फिर से शुरू करने की अनुमति दी।
- खानों को उनके द्वारा की गई अवैधताओं की सीमा के आधार पर वर्गीकृत किया गया था:
- A श्रेणी की खदानें: ये "पट्टे हैं जिनमें कोई अवैधता/सीमांत अवैधता नहीं पाई गई है"
- अधिक गंभीर उल्लंघन वाली खदानें उनके द्वारा अवैधता के आधार पर B और C श्रेणियों में आती हैं।
- एक बार जब खदानों को फिर से संचालित करने की अनुमति मिली तो अयस्क को नीलामी के माध्यम से आवंटित किया गया।
- खानों को उनके द्वारा की गई अवैधताओं की सीमा के आधार पर वर्गीकृत किया गया था:
- आदेश का निहितार्थ:
- खानों के बंद होने से स्टील मिलों को कच्चे माल की कमी का सामना करना पड़ा जिससे उन्हें भारत के बाहर से आयात करने के लिये मज़बूर होना पड़ा परिणाम स्वरुप वैश्विक लौह अयस्क दिग्गजों के लिये देश व्यापार के लिये खोल दिया गया।
- उत्पादन, ई-नीलामी और कीमतों पर प्रतिबंधों ने कर्नाटक में लाखों खनन आश्रितों को भी प्रभावित किया था जिससे उनकी आजीविका अनिश्चित हो गई थी।
इस मुद्दे से सम्बंधित हाल के घटनाक्रम क्या रहे हैं
- खनन फर्मों की अपील:
- मई 2022 में खनन फर्मों ने सर्वोच्च न्यायालय से बेल्लारी, तुमकुर और चित्रदुर्ग ज़िलों में खनन पट्टेदारों के लिये लौह अयस्क के निर्यात या बिक्री में ई-नीलामी मानदंडों को समाप्त करने की अपील की है।
- इन्होंने दावा किया कि स्टॉक नहीं बिकने के कारण इन्हें क्लोजर का सामना करना पड़ रहा है।
- कर्नाटक सरकार का पक्ष:
- कर्नाटक सरकार सीलिंग सीमा को पूरी तरह से हटाने के पक्ष में है।
- मूल याचिकाकर्त्ता का पक्ष:
- मूल याचिकाकर्त्ता ने इस आधार पर किसी भी निर्यात का विरोध किया कि खनिज राष्ट्रीय संपत्ति हैं जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है और केवल तैयार स्टील का निर्यात किया जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय का आदेश:
- सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य में पहले से ही उत्खनित हो चुके लौह अयस्क के निर्यात को ई-नीलामी के अलावा अन्य तरीकों से फिर से शुरू करने की अनुमति दी है और इसके साथ ही निम्नलिखित खदानों के लिये खनन की सीमा को भी बड़ा दिया है:
- बेल्लारी: 28 MMT से 35 MMT
- चित्रदुर्ग और तुमकुर: 7 MMT से 15 MMT
- न्यायालय ने फैसला सुनाया कि देश के बाकी हिस्सों की खानों के सापेक्ष इन तीन ज़िलों में स्थित खानों के लिये समान प्रतिस्पर्धा बनाए रखना आवश्यक है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य में पहले से ही उत्खनित हो चुके लौह अयस्क के निर्यात को ई-नीलामी के अलावा अन्य तरीकों से फिर से शुरू करने की अनुमति दी है और इसके साथ ही निम्नलिखित खदानों के लिये खनन की सीमा को भी बड़ा दिया है:
लौह अयस्क खनन में ई-नीलामी:
- परिचय:
- ई-नीलामी विक्रेताओं (नीलामीकर्त्ताओं) और बोलीदाताओं (व्यापार से व्यावसायिक परिदृश्यों में आपूर्तिकर्त्ता) के बीच एक लेनदेन है जो इलेक्ट्रॉनिक बाज़ार के माध्यम में होता है।
- प्रक्रिया:
- प्रत्येक बोली के पूरा होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय निगरानी समिति, दस्तावेज़ प्रकाशित करती है जिसमें लौह अयस्क की गुणवत्ता, जिस खदान से संबंधित है, उसके लिये बोली लगाने वालों की संख्या और अंतिम लेने वालों का विवरण सूचीबद्ध होता है।
- एक बार पंजीकृत होने के बाद खरीदार आगामी नीलामी देख सकता है जिस पर वे बोली लगा सकते हैं।
- प्रत्येक विक्रेता उस अयस्क की गुणवत्ता को निर्दिष्ट करता है जो उसके प्रकार और उस न्यूनतम मूल्य के अंतर्गत होगा जिस पर बोली शुरू होनी है।
- विक्रेता वे हैं जिनके पास कानूनी लौह अयस्क खदानें हैं और खरीदार आमतौर पर स्टील निर्माता हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। प्रश्न : वर्तमान में लौह एवं इस्पात उद्योगों की कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थिति का उदाहरणों सहित कारण बताइये।(मुख्य परीक्षा, 2020) |
स्रोत: द हिंदू
नीतिशास्त्र
सिविल सेवक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
मेन्स के लिये:सरकारी नीति और कार्रवाई पर अपने विचार व्यक्त करने के लिये सिविल सेवकों का अधिकार। |
चर्चा में क्यों?
तेलंगाना की एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने सुश्री बानो के समर्थन में अपने पर्सनल अकाउंट से ट्वीट किया और वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार के आरोप में दोषी ठहराए गए 11 लोगों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले पर सवाल उठाया।
- इसने इस बारे में चर्चा को प्रेरित किया कि क्या अधिकारी ने सिविल सेवा (आचरण), 1964 के नियमों का उल्लंघन किया साथ ही कानून तथा शासन के मामलों पर अपने व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने के लिये सिविल सेवकों के अधिकार के बारे में बहस को संज्ञान में लाया।
बिलकिस बानो केस
- परिचय:
- 15 अगस्त, 2022 को बलात्कार और हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों की रिहा किया गया।
- कई लोगों ने यह भी बताया कि रिहाई संघीय सरकार और गुजरात राज्य सरकार दोनों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के उल्लंघन है, जिसमें दोनों का कहना है कि बलात्कार एवं हत्या के दोषियों को छूट नहीं दी जा सकती है।
- इन अपराधों में आमतौर पर भारत में मृत्युदंड तक दिया जाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने विपक्षी नेताओं और कार्यकर्त्ताओं द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई के बाद गुजरात सरकार से जवाब मांगा है.
- सिविल सेवक की भूमिका:
- बिलकिस बानो मामले पर ट्वीट में अधिकारी द्वारा "सिविल सेवक" शब्द जोड़ना इस अर्थ के साथ जुड़ा हुआ है कि सिविल सेवक का धर्म संवैधानिक सिद्धांतों को अक्षरशः और मूल रूप से तथा कानून के शासन को बनाए रखना है।
- इस मामले में संविधान की भावना और कानून के शासन दोनों को विकृत किया जा रहा है।
- यह एक बहुत ही खतरनाक मिसाल हो सकती है, क्योंकि हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार ने आठ हत्या के दोषियों को रिहा किया था (उनके द्वारा अनिवार्य 14 साल की जेल पूरी नहीं करने के बावजूद)।
- कुछ कार्यों के लिये यदि सिविल सेवक चाहे सेवानिवृत्त हो या सेवा में बोलते हैं, तो यह नौकरशाही शक्ति के मनमाने दुरुपयोग पर किसी प्रकार का निवारक [प्रभाव] होगा।
सिविल सेवक सरकार की नीति और कार्य पर अपने विचार की अभिव्यक्ति:
- भारत के संविधान में देश के नागरिकों को अभिव्यक्ति को स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 19 के तहत प्रदान किये जाने के कारण किसी सिविल सेवक को ट्वीट करने का अधिकार है लेकिन यह अधिकार राज्य की संप्रभुता, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, स्वास्थ्य, नैतिकता आदि को सुरक्षित रखने के हित में उचित प्रतिबंधों के अधीन होता है।
- लेकिन सरकारी सेवा में रहने के दौरान सिविल सेवक कुछ अनुशासनात्मक नियमों के अधीन होता है।
- यह नियम सरकारी कर्मचारी को किसी राजनीतिक संगठन, या इस तरह के किसी भी संगठन का सदस्य बनने से रोकते है और यह देश के शासन से संबंधित किसी भी विषय पर इन्हे स्वतंत्र अभिव्यक्ति को सीमित करते हैं।
- यह नियम ब्रिटिश कालीन है और उस समय यह नियम अधिकारी की अभिव्यक्ति को सीमित करते हुए अंति अनुशासन को बनाए रखना चाहते थे।
- हालाँकि लोकतंत्र में सरकार की आलोचना करने का अधिकार मौलिक अधिकार है।
संबंधित निर्णय:
- लिपिका पॉल बनाम त्रिपुरा राज्य:
- एक ऐतिहासिक फैसले में, जनवरी 2020 में, त्रिपुरा के उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ‘’एक सरकारी कर्मचारी अपने भाषण की स्वतंत्रता के अधिकार,एक मौलिक अधिकार से रहित नहीं है।’’
- न्यायालय ने स्वीकार किया कि भाषण के अधिकार की अभिव्यक्ति कुछ परिस्थितियों में काट-छांट के अधीन है, इस फैसले में सरकारी कर्मचारियों के लिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित महत्त्वपूर्ण अर्थ निहित है।
- बिलकिस बानो मामले में, अधिकारी को अपने स्वयं के विश्वासों को धारण करने और उन्हें अपनी इच्छानुसार व्यक्त करने का अधिकार था, जो त्रिपुरा में लागू आचरण नियमों में निर्धारित सीमाओं को पार नहीं करने के अधीन था।
- किसी विधायिका द्वारा बनाए गए वैध कानून के अलावा किसी मौलिक अधिकार में कटौती नहीं की जा सकती है।
- केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) के नियमों में से नियम सं.9 के अनुसार "कोई भी सरकारी कर्मचारी ... तथ्य या राय का कोई बयान नहीं देगा ... जिस पर केंद्र सरकार या राज्य सरकार की किसी मौजूदा या हालिया नीति या कार्रवाई की प्रतिकूल आलोचना का प्रभाव पड़ता है।"
- केरल उच्च न्यायालय का फैसला:
- वर्ष 2018 में केरल उच्च न्यायालय ने कहा था कि "केवल एक कर्मचारी होने के कारण किसी को अपने विचार व्यक्त करने से नहीं रोका जा सकता है"।
- एक लोकतांत्रिक समाज में, प्रत्येक संस्था लोकतांत्रिक मानदंडों द्वारा शासित होती है
आगे की राह
- लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखना:
- आजकल, कई सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों को सरकारी नीतियों को सोशल मीडिया के माध्यम से आम जनता तक पहुंँचाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
- दुर्भाग्य से सरकारी अधिकारियों को प्रोत्साहन का एक ही तरीका यानी मीडिया में अच्छी बातें कहने के लिये दिया जाता है।
- इसके साथ समस्या यह है कि यदि कोई नीति लागू की जा रही है तो लोकतंत्र में हर किसी को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार, आपत्ति का अधिकार तथा असहमति का अधिकार है।
- आजकल, कई सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों को सरकारी नीतियों को सोशल मीडिया के माध्यम से आम जनता तक पहुंँचाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
- अधिकारी के अधिकार को बनाए रखना:
- सोशल मीडिया के माध्यम से नीतियों के बारे में पारदर्शिता बढ़ाना सरकारी अधिकारियों का कर्तव्य है। केस-दर-केस दृष्टिकोण का पालन किया जाना चाहिये।
- अंतर करने की आवश्यकता :
- समय की मांग है कि समाज, संविधान और कानून के शासन को चोट पहुंँचाने वाली चीजों के बीच अंतर स्पष्ट किया जाए।
- बिलकिस बानो के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया, जिसे गुजरात सरकार द्वारा निष्पादित किया गया था, (सवाल यह है कि यह कैसे हुआ) जो एक अपवाद था।