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डेली न्यूज़

  • 02 Aug, 2022
  • 51 min read
शासन व्यवस्था

भारतीय उच्च शिक्षा आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय उच्च शिक्षा आयोग, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग

मेंन्स के लिये:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति का महत्त्व, एचईसीआई के कार्य और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने घोषणा की कि वह भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का मसौदा (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का निरसन अधिनियम) विधेयक, 2018 के मसौदे पर फिर से काम कर रहे हैं, जो कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा हेतु भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) को जीवंत करेगा।

भारतीय उच्च शिक्षा आयोग विधेयक, 2018 का मसौदा:

  • परिचय:
    • यह विधेयक "भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का मसौदा (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का निरसन अधिनियम) विधेयक, 2018" से संबंधित है।
    • इसे जनवरी, 2018 में पेश किया गया था।
      • लेकिन इसे कभी अंतिम रूप नहीं दिया गया और दो वर्ष के भीतर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की घोषणा की गई।
  • प्रमुख बिंदु:
    • यह विधेयक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 को निरस्त करता है और भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) की स्थापना करता है।
    • HECI निम्नलिखित द्वारा उच्च शिक्षा में शैक्षणिक मानकों को बनाए रखेगा:
      • पाठ्यक्रमों के लिये सीखने के परिणामों को निर्दिष्ट करना।
      • कुलपतियों के लिये पात्रता मानदंड निर्दिष्ट करना।
      • न्यूनतम मानकों का पालन करने में विफल रहने वाले उच्च शिक्षण संस्थानों को बंद करने का आदेश।
    • डिग्री या डिप्लोमा प्रदान करने का अधिकार प्राप्त प्रत्येक उच्च शिक्षण संस्थान को अपना पहला शैक्षणिक संचालन शुरू करने के लिये HECI में आवेदन करना होगा।
      • HECI के पास निर्दिष्ट आधारों पर अनुमति रद्द करने की शक्ति भी है।
    • विधेयक केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री की अध्यक्षता में एक सलाहकार परिषद के गठन का भी प्रावधान करता है।
      • परिषद केंद्र और राज्यों के बीच उच्च शिक्षा में समन्वय और मानकों के निर्धारण के लिये सलाह देगी।
  • कवरेज:
    • यह विधेयक निम्न 'उच्च शिक्षण संस्थानों' पर लागू होगा जिसमें शामिल हैं:
      • संसद या राज्य विधानसभाओं के अधिनियमों द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय।
      • विश्वविद्यालय और कॉलेज के रूप में स्थापित संस्थान।
      • इसमें राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान शामिल नहीं हैं।

वर्ष 2018 के विधेयक में प्रमुख चुनौतियाँ:

  • स्वायत्तता:
    • विधेयक का उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को बढ़ावा देना है।
      • हालाँकि विधेयक के कुछ प्रावधान इस घोषित उद्देश्य को पूरा नहीं करते हैं।
      • यह तर्क दिया जा सकता है कि उच्च शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता देने के बज़ाय विधेयक HECI को व्यापक नियामक नियंत्रण प्रदान करता है।
  • नियामक क्षेत्र:
    • वर्तमान में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की पेशकश करने वाले संस्थानों को 14 व्यावसायिक परिषदों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
      • इनमें से यह विधेयक कानूनी और वास्तुकला शिक्षा को HECI के दायरे में लाने का प्रयास करता है।
      • यह स्पष्ट नहीं है कि केवल इन दो क्षेत्रों को ही HECI के नियामक दायरे में क्यों शामिल किया गया है, जबकि व्यावसायिक शिक्षा के अन्य क्षेत्रों को नहीं।
  • अनुदानों का संवितरण:
    • वर्तमान में UGC के पास विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान आवंटित करने और वितरित करने का अधिकार है।
      • हालाँकि यह विधेयक UGC की जगह लेता है, लेकिन इसमें अनुदानों के वितरण के संबंध में कोई प्रावधान शामिल नहीं है।
      • इससे यह सवाल उठता है कि क्या उच्च शिक्षण संस्थानों को अनुदान के वितरण में HECI की कोई भूमिका होगी।
  • स्वतंत्र विनियम:
    • वर्तमान में केंद्रीय उच्च शिक्षा सलाहकार बोर्ड (CABE) शिक्षा से संबंधित मामलों पर केंद्र और राज्यों को समन्वय और सलाह देता है।
    • यह विधेयक एक सलाहकार परिषद् का निर्माण करता है और HECI को अपनी सिफारिशों को लागू करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
      • यह HECI को एक स्वतंत्र नियामक के रूप में कार्य करने से प्रतिबंधित कर सकता है।

HECI के कार्य:

  • HECI उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को बढ़ावा देने और उच्च शिक्षा में शैक्षणिक मानकों के रखरखाव को सुनिश्चित करने के तरीकों की अनुशंसा करेगा।
  • यह निम्नलिखित मानदंड निर्दिष्ट करेगा:
    • पाठ्यक्रमों के लिये सीखने के परिणाम।
    • शिक्षण और अनुसंधान के मानक।
    • संस्थानों के वार्षिक शैक्षणिक प्रदर्शन को मापने के लिये मूल्यांकन प्रक्रिया।
    • संस्थानों का प्रत्यायन।
    • संस्थानों को बंद करने का आदेश
  • इसके अलावा HECI कई अन्य मानदंड निर्दिष्ट कर सकता है:
    • शैक्षणिक संचालन शुरू करने के लिये संस्थानों को प्राधिकरण प्रदान करना।
    • उपाधि या डिप्लोमा प्रदान करना।
    • विश्वविद्यालयों के साथ संस्थानों की संबद्धता।
    • स्वायत्तता प्रदान करना।
    • श्रेणीबद्ध स्वायत्तता।
    • कुलपतियों की नियुक्ति के लिये पात्रता मानदंड।
    • संस्थानों की स्थापना और समापन।
    • शुल्क विनियमन।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 का महत्त्व:

  • शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों के महत्त्व को पहचानना:
    • 3 वर्ष की उम्र से स्कूली शिक्षा के लिये 5+3+3+4 मॉडल अपनाने की नीति बच्चे के भविष्य को आकार देने में 3 से 8 वर्ष की उम्र के प्रारंभिक वर्षों के महत्त्व को दर्शाती है।
  • साइलो मानसिकता से दूरी:
    • नई नीति में स्कूली शिक्षा का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू हाई स्कूल में कला, वाणिज्य और विज्ञान धाराओं के विभाजन में लचीलापन लाना है।
      • साइलो मानसिकता का तात्पर्य ऐसी स्थिति से है जब कुछ विभाग या क्षेत्र एक ही कंपनी में दूसरों के साथ जानकारी साझा नहीं करना चाहते हैं।
  • शिक्षा और कौशल का संगम:
    • इंटर्नशिप के साथ वोकेशनल कोर्स की शुरुआत।
      • यह समाज के कमज़ोर वर्गों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिये प्रेरित कर सकता है।
  • शिक्षा को अधिक समावेशी बनाना:
  • विदेशी विश्वविद्यालयों को अनुमति:
    • दुनिया के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों को एक नए कानून के माध्यम से भारत में संचालित करने के लिये ''सुविधा'' दी जाएगी।
  • हिंदी बनाम अंग्रेजी बहस समाप्त करना:
    • यह कम-से-कम ग्रेड 5 तक मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर ज़ोर देता है, जिसे शिक्षण का सबसे अच्छा माध्यम माना जाता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)

Q. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 सतत् विकास लक्ष्य -4 (2030) के अनुरूप है। यह भारत में शिक्षा प्रणाली के पुनर्गठन और पुनर्रचना पर विचार करता है। कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2020)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

टोबैको एंडगेम

प्रिलिम्स के लिये:

तंबाकू, डब्ल्यूएचओ, डब्ल्यूएचओ एफसीटीसी, डेनिकॉटाइजेशन, एनएफएचएस -5।

मेन्स के लिये:

तंबाकू - इसका प्रभाव और उन्मूलन उपाय।

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2025 तक धूम्रपान मुक्त होने की अपनी योजना को पूरा करने के लिये न्यूज़ीलैंड की संसद ने हाल ही में धूम्रपान मुक्त वातावरण और विनियमित उत्पाद (स्मोक्ड टोबैको) संशोधन विधेयक पेश किया है।

  • न्यूज़ीलैंड का अनुकरण करते हुए मलेशिया वर्ष 2007 के बाद पैदा हुए लोगों को धूम्रपान और ई-सिगरेट सहित सभी तंबाकू उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने पर भी विचार कर रहा है।

तंबाकू एंडगेम पर न्यूज़ीलैंड का विधेयक:

  • परिचय:
    • ‘टोबैको एंडगेम’ एक नीतिगत दृष्टिकोण को संदर्भित करता है जो 'तंबाकू मुक्त भविष्य' के उद्देश्य से तंबाकू से होने वाली बीमारी को समाप्त करने पर केंद्रित है।
    • विधेयक में धूम्रपान को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करने या इसे समाप्त करने के लिये तीन रणनीतियों की मांग की गई है।
    • यदि विधेयक को लागू किया जाता है तो यह दुनिया का पहला कानून होगा जो अगली पीढ़ी को कानूनी रूप से सिगरेट खरीदने से रोकेगा।
  • प्रस्तावित रणनीतियाँ:
    • तंबाकू में निकोटीन (जिसे "डिनिकोटिनाइज़ेशन" या "बहुत कम निकोटीन सिगरेट- VLNC” के रूप में जाना जाता है) की मात्रा को काफी कम कर देना ताकि नशे की लत न हो।
    • तंबाकू बेचने वाली दुकानों की संख्या में 90% से 95% की कमी।
    • 1 जनवरी, 2009 को या उसके बाद पैदा हुए लोगों को तंबाकू बेचना अवैध (इस प्रकार "धूम्रपान मुक्त पीढ़ी") बनाना।

तंबाकू सेवन की वर्तमान स्थिति:

  • वैश्विक:
    • तंबाकू महामारी दुनिया के अब तक के सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों में से एक है, जिसके कारण प्रति वर्ष 80 लाख से अधिक लोग मारे जाते हाते हैं (विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार), जिसमें अप्रत्यक्ष तौर पर (सिगरेट के धुँए आदि कारणों से) प्रभावित 1.2 मिलियन मौतें शामिल हैं।
      • दुनिया भर में हर चार में से एक व्यक्ति तंबाकू का सेवन करता है।
    • तंबाकू के सभी रूप हानिकारक हैं, और तंबाकू के संपर्क में आने का कोई सुरक्षित स्तर नहीं है।
      • सिगरेट धूम्रपान दुनिया भर में तंबाकू के उपयोग का सबसे आम रूप है।
      • अन्य तंबाकू उत्पादों में वाटरपाइप तंबाकू, विभिन्न धुआँ रहित तंबाकू उत्पाद, सिगार, सिगारिलोस, रोल-योर-ओन तंबाकू, पाइप तंबाकू, बीड़ी और क्रेटेक्स शामिल हैं।
    • तंबाकू का उपयोग कई दीर्घकालिक बीमारियों के लिये एक प्रमुख जोखिम कारक है, जिसमें कैंसर, फेफड़े की बीमारी, हृदय रोग और स्ट्रोक शामिल हैं।
  • भारत में स्थिति:
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (वर्ष 2019-21) के अनुसार, 15 वर्ष से अधिक आयु के 38% पुरुष और 9% महिलाएँ तंबाकू उत्पादों का सेवन करते हैं।
    • अनुसूचित जनजाति से संबंधित महिलाएँ (19%) और पुरुष (51%) में किसी भी अन्य जाति/जनजाति समूह के लोगों की तुलना में तंबाकू का सेवन करने की अधिक संभावना होती है।
    • पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं में, शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (पुरुषों के लिये 43 प्रतिशत और महिलाओं के लिये 11 प्रतिशत) में तंबाकू सेवन अधिक होता है।
    • लगभग पाँच में से तीन पुरुष और 15% महिलाएँ बिना स्कूली शिक्षा या 5 साल से कम स्कूली शिक्षा के साथ तंबाकू का उपयोग करती हैं।
  • तंबाकू की खपत का सामाजिक-आर्थिक बोझ:
    • तंबाकू के उपयोग के कारण लोग घर के खर्च, भोजन और आश्रय जैसी बुनियादी ज़रूरतों पर खर्च नहीं करतें हैं बल्कि तंबाकू पर खर्च करते हैं जिससे गरीबी में वृद्धि होती है।
    • तंबाकू के उपयोग की आर्थिक लागत पर्याप्त है और इसमें तंबाकू के उपयोग से होने वाली बीमारियों के इलाज के लिये ज़रूरी स्वास्थ्य देखभाल लागत के साथ-साथ तंबाकू के कारण होने वाली रुग्णता और मृत्यु दर के परिणामस्वरूप मानव पूंजी की हानि भी शामिल है।
    • यह भारत में मृत्यु और बीमारी के प्रमुख कारणों में से एक है और हर साल लगभग 1.35 मिलियन मौतों का कारण है।
      • भारत तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और उत्पादक भी है। देश में विभिन्न प्रकार के तंबाकू उत्पाद बहुत कम कीमतों पर उपलब्ध हैं।
      • तंबाकू के उपयोग के लिये ज़िम्मेदार कुल आर्थिक लागत (वर्ष 2017-18 में भारत में सभी बीमारियों से 35 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये) 177,341 करोड़ रुपये थी।

उच्च तंबाकू खपत से निपटने हेतु उपाय:

  • वैश्विक पहल:
    • तंबाकू नियंत्रण पर डब्ल्यूएचओ फ्रेमवर्क कन्वेंशन:
      • इसे तंबाकू महामारी के वैश्विक रोकथाम के लिये विकसित किया गया था और यह एक साक्ष्य-आधारित संधि है जो सभी लोगों के स्वास्थ्य के उच्चतम स्तर के अधिकार की पुष्टि करती है।
      • भारत ने WHO FCTC के इस ढाँचे के तहत तंबाकू नियंत्रण प्रावधानों को अपनाया है।
    • विश्व तंबाकू निषेध दिवस:
      • तंबाकू सेवन के घातक प्रभावों के बारे में जागरूकता का विस्तार करने हेतु प्रत्येक वर्ष 31 मई को 'विश्व तंबाकू निषेध दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
  • भारत द्वारा की गई पहल:
    • सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम (COTPA), 2003:
      • इसने 1975 के सिगरेट अधिनियम (उत्पादन, आपूर्ति और वितरण विनियमन) को बदल दिया (बड़े पैमाने पर वैधानिक चेतावनियों तक सीमित- 'सिगरेट धूम्रपान स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है' को सिगरेट पैक और विज्ञापनों पर प्रदर्शित किया जाता है। इसमें गैर-सिगरेट उत्पाद शामिल नहीं थे)।
      • वर्ष 2003 के अधिनियम में सिगार, बीड़ी, चेरूट (फिल्टर रहित बेलनाकार सिगार), पाइप तंबाकू, हुक्का, चबाने वाला तंबाकू, पान मसाला और गुटखा भी शामिल थे।
    • ई-सिगरेट निषेध अध्यादेश, 2019:
      • यह ई-सिगरेट के उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, भंडारण और विज्ञापन को प्रतिबंधित करता है।
    • नेशनल टोबैको क्विटलाइन सर्विसेज (NTQLS):
      • नेशनल टोबैको क्विटलाइन सर्विसेज़ बड़ी संख्या में तंबाकू उपयोगकर्ताओं तक पहुँच बनाने में सक्षम है, जिसका एकमात्र उद्देश्य टेलीफोन आधारित जानकारी, सलाह, समर्थन और तंबाकू छोड़ने के इच्छुक लोगों को परामर्श सेवाएँ प्रदान करना है।
    • एम-सेसेशन (mCessation) कार्यक्रम:
      • यह कार्यक्रम तंबाकू छोड़ने के लिये मोबाइल प्रौद्योगिकी पर आधारित एक पहल है।
      • भारत ने वर्ष 2016 में सरकार के डिजिटल इंडिया पहल के हिस्से के रूप में पाठ्य संदेशों (Text Messages) का उपयोग कर इस कार्यक्रम की शुरूआत की थी।

स्रोत:डाउन टू अर्थ


भूगोल

शुष्कता विसंगति आउटलुक सूचकांक: आईएमडी

प्रिलिम्स के लिये:

आईएमडी, सूखा, खरीफ मौसम।

मेन्स के लिये:

शुष्कता विसंगति आउटलुक सूचकांक और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने जुलाई महीने का 'शुष्कता विसंगति आउटलुक सूचकांक' (Aridity Anomaly Outlook Index) जारी किया है। सूचकांक के अनुसार, जुलाई माह में पूरे भारत में कम से कम 85% ज़िले शुष्क परिस्थितियों से प्रभावित रहे।

शुष्कता विसंगति आउटलुक सूचकांक:

  • परिचय:
    • सूचकांक कृषि सूखे, एक ऐसी स्थिति जब परिपक्वता तक स्वस्थ फसल विकास का समर्थन करने के लिये वर्षा और मिट्टी की नमी अपर्याप्त होती है की निगरानी करता है, जिसके कारण फसल के लिये प्रतिकूल स्थितियाँ होती हैं।
    • सामान्य रूप से एक विसंगति इन ज़िलों में पानी की कमी को दर्शाती है जो सीधे कृषि गतिविधि को प्रभावित कर सकती है।
    • इसे भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा विकसित किया गया है।
  • विशेषताएँ:
    • वास्तविक समय सूखा सूचकांक में जल संतुलन पर विचार किया जाता है।
    • शुष्कता सूचकांक (AI) की गणना साप्ताहिक या पाक्षिक अवधि के लिये की जाती है।
    • प्रत्येक अवधि के लिये, उस अवधि हेतु वास्तविक शुष्कता की तुलना उस अवधि के सामान्य शुष्कता से की जाती है।
    • नकारात्मक मान नमी के अधिशेष को इंगित करता है जबकि सकारात्मक मान नमी की कमी को इंगित करता है।
  • निर्धारक:
    • वास्तविक वाष्पीकरण और परिकलित संभावित वाष्पीकरण के लिये तापमान, हवा और सौर विकिरण की आवश्यकता होती है।
      • वास्तविक वाष्पीकरण जल की वह मात्रा है जिसकी वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रियाओं के कारण सतह से हानि होती है।
      • वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन के कारण किसी दिये गए फसल के लिये संभावित वाष्पोत्सर्जन अधिकतम प्राप्य या प्राप्त करने योग्य वाष्पोत्सर्जन है।
  • अनुप्रयोग:
    • कृषि में सूखे के प्रभाव वाले क्षेत्र जो विशेष रूप से उष्ण कटिबंध के परिभाषित आर्द्र और शुष्क मौसम जलवायु व्यवस्था का हिस्सा हैं।
    • इस पद्धति का उपयोग करके सर्दी और गर्मी दोनों फसल मौसमों का आकलन किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

  • 756 में से केवल 63 ज़िले गैर-शुष्क हैं, जबकि 660 अलग-अलग डिग्री जैसे- हल्का, मध्यम और गंभीर की शुष्कता का सामना कर रहे हैं।
  • कुछ 196 ज़िले सूखे की 'गंभीर' डिग्री की चपेट में हैं और इनमें से 65 उत्तर प्रदेश (उच्चतम) में हैं।
    • बिहार में शुष्क परिस्थितियों का सामना करने वाले ज़िलों (33) की संख्या दूसरे स्थान पर थी। राज्य में 45% की उच्च वर्षा की कमी भी है।
  • 'गंभीर शुष्क' परिस्थितियों का सामना कर रहे अन्य ज़िलों में झारखंड, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली, तेलंगाना, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, कर्नाटक तथा तमिलनाडु के ज़िले शामिल हैं।
  • DEWS प्लेटफॉर्म पर SPI पिछले छह महीनों में इन क्षेत्रों में लगातार वर्षा की कमी को भी उजागर करता है।
  • शुष्क परिस्थितियों ने चल रही खरीफ बुवाई को प्रभावित किया है, क्योंकि जुलाई, 2022 तक विभिन्न खरीफ फसलों के तहत बोया गया क्षेत्र वर्ष 2021 में इसी अवधि की तुलना में 13.26 मिलियन हेक्टेयर कम था।

मानकीकृत वर्षा सूचकांक (SPI):

  • SPI व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला सूचकांक है जो समय-समय पर मौसम संबंधी सूखे की विशेषता बताता है।
  • अल्प समय में, SPI मिट्टी की नमी से निकटता से संबंधित है, जबकि लंबे समय तक, SPI भूजल और जलाशय भंडारण से संबंधित होता है।
  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर (IIT-G) द्वारा प्रबंधित एक वास्तविक समय सूखा निगरानी प्लेटफॉर्म, सूखा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (DEWS) पर SPI पिछले छह महीनों में इन क्षेत्रों में लगातार वर्षा की कमी को संदर्भित करता है।
  • उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर पूर्व के कुछ हिस्से अत्यधिक सूखे की स्थिति में हैं और इससे इन क्षेत्रों की कृषि प्रभावित हो सकती है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD):

  • IMD की स्थापना वर्ष 1875 में हुई थी।
  • यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक एजेंसी है।
  • यह मौसम संबंधी अवलोकन, मौसम पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान के लिये गठित एक प्रमुख एजेंसी है।

सिविल सर्विस परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रारंभिक परीक्षा:

प्र. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014)

कार्यक्रम/परियोजना मंत्रालय
1. सूखा-प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम कृषि मंत्रालय
2. मरुस्थल विकास कार्यक्रम पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
3. वर्षापूरित क्षेत्रों हेतु राष्ट्रीय जल संभरण विकास परियोजना ग्रामीण विकास मंत्रालय

उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं?

(A) केवल 1 और 2

(B) केवल 3

(C) 1, 2 और 3

(D) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर:D

व्याख्या:

  • सूखा-प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम का उद्देश्य फसलों और पशुओं के उत्पादन तथा भूमि, जल एवं मानव संसाधनों की उत्पादकता पर सूखे के प्रतिकूल प्रभावों को कम करना है, जिससे अंततः प्रभावित क्षेत्रों में सूखे से बचाव होता है। यह भूमि संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत आता है। अत: युग्म 1 सुमेलित नहीं है।
  • मरुस्थल विकास कार्यक्रम का उद्देश्य सूखे के प्रतिकूल प्रभाव को कम करना और चिह्नित मरुस्थलीय क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधन आधार के कायाकल्प के माध्यम से मरुस्थलीकरण को नियंत्रित करना है। यह भूमि संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत आता है। अत: युग्म 2 सही सुमेलित नहीं है।
  • वर्षा सिंचित क्षेत्रों के लिये राष्ट्रीय वाटरशेड विकास कार्यक्रम (NWDPRA) प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, विकास एवं सतत् प्रबंधन, कृषि उत्पादकता तथा उत्पादन को एक स्थायी तरीके से बढ़ाने के लिये एक कार्यक्रम है। यह कृषि सहकारिता और किसान कल्याण विभाग (कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय) के अंतर्गत आता है। अत: युग्म 3 सुमेलित नहीं है।
  • अतः विकल्प (d) सही है।

मेन्स:

Q. सूक्ष्म जलसंभर विकास परियोजनाएँ भारत के सूखाग्रस्त और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में जल संरक्षण में किस प्रकार मदद करती हैं? (2016)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

हेट स्पीच तथा ईशनिंदा

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का विधि आयोग, हेट स्पीच, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)।

मेन्स के लिये:

ईशनिंदा, हेट स्पीच, और उनके विनियमन।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत में हेट स्पीच, ईशनिंदा से संबंधित मामलों में वृद्धि हुई है।

हेट स्पीच

  • परिचय:
    • भारत के विधि आयोग (Law Commission) की 267वीं रिपोर्ट में हेट स्पीच को मुख्य रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन, धार्मिक विश्वास आदि के खिलाफ घृणा को उकसाने के रूप में देखा गया है।
      • इस प्रकार हेट स्पीच कोई भी लिखित या मौखिक शब्द, संकेत, किसी व्यक्ति की सुनने या देखने से भय या डराना, या हिंसा के लिये उकसाने का प्रतिनिधित्त्व है।
  • संबंधित डेटा:
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, समाज में हेट स्पीच को बढ़ावा देने और असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाले दर्ज मामलों में भारी वृद्धि हुई है।
      • वर्ष 2014 में केवल 323 मामले दर्ज किये गए थे, वर्ष 2020 में यह बढ़कर 1,804 हो गया।

ईशनिंदा से संबंधित विनियम:

  • परिचय:
    • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295 (A), किसी भी भाषण, लेखन, या संकेत को दंडित करती है जो "पूर्व नियोजित और दुर्भावनापूर्ण इरादे से" नागरिकों के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करते हैं, इसके दो या फिर अधिकतम तीन साल की सजा व आर्थिक दंड का प्रावधान है
  • सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या:
    • रामजी लाल मोदी मामला (1957):
      • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की बेंच ने धारा 295 (A) की वैधता की पुष्टि की थी।
        • सर्वोच्च न्यायालय ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 19 (2) सार्वजनिक व्यवस्था के लिये भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त निर्बंधन की अनुमति देता है,
          • धारा 295 (A) के तहत सज़ा ईशनिंदा के गंभीर रूप से संबंधित है जो किसी भी वर्ग की धार्मिक संवेदनाओं को ठेस पहुँचाने के दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से की जाती है।
    • अधीक्षक, केंद्रीय कारागार, फतेहगढ़ बनाम राम मनोहर लोहिया मामला (1960):
      • इसमें कहा गया है कि दिये गए भाषण और इसके परिणामस्वरूप होने वाले किसी भी सार्वजनिक अव्यवस्था के बीच की कड़ी का आईपीसी की धारा 295 (A) के बीच घनिष्ठ संबंध है।
      • इसके अलावा वर्ष 2011 में यह निष्कर्ष निकाला गया कि केवल भाषण जो “आसन्न गैरकानूनी कार्रवाई के लिये उकसाने” के बराबर है, को दंडित किया जा सकता है।
        • यानी अभिव्यक्ति को दबाने के औचित्य के रूप में सार्वजनिक अशांति का उपयोग करने से पहले राज्य को एक उपकरण मिलना चाहिये।

ईशनिंदा और हेट स्पीच कानूनों के बीच अंतर की आवश्यकता

  • बहुत व्यापक व्याख्या:
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 295A के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति भारतीय समाज के किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से दुर्भावनापूर्ण जानबूझकर कोई काम करता है या ऐसा कोई बयान देता है तो उसे दोषी माना जाएगा।
  • धारा 295 (A) में अभद्र भाषा के क़ानून शामिल हैं:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कई मौकों पर कहा है कि शायद धारा 295 (A) कानून का लक्ष्य हेट स्पीच के पूर्वाग्रह को रोकना और समानता सुनिश्चित करना है।
  • कानूनों में स्पष्टता की कमी:
    • हेट स्पीच कानून धर्म की आलोचना करने या उसका उपहास करने और अपने विश्वास के कारण व्यक्तियों या समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह या आक्रामकता को प्रोत्साहित करने के बीच महत्त्वपूर्ण अंतर पर आधारित हैं।
      • दुर्भाग्य से इस स्पष्टीकरण और वास्तविक शब्दों के बीच एक बड़ी असमानता है जिसके कारण प्रशासन के सभी स्तरों पर कानून का अभी भी शोषण किया जा रहा है।

आगे की राह

  • ईशनिंदा जो आम तौर पर धर्म की आलोचना को प्रतिबंधित करती है, लोकतांत्रिक समाज के सिद्धांतों से असंगत है।
    • एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक समाज में भाषण या आपत्तियों की कोई जाँच नहीं होनी चाहिये।
    • आस्था और हेट स्पीच के संरक्षण के बीच की सूक्ष्म रेखा का पालन करते हुए, ईशनिंदा को कानून के दायरे में रखना और इसे गैर-आपराधिक बनाना ही एकमात्र व्यवहार्य समाधान है।

स्रोत : द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में अफ्रीकन स्वाइन फीवर

प्रिलिम्स के लिये:

अफ्रीकन स्वाइन फीवर, क्लासिकल स्वाइन फीवर, ICAR, IVRI, WOAH, टीकाकरण

मेन्स के लिये:

पशु-पालन पर स्वाइन फीवर के प्रभाव, पशु स्वास्थ्य के लिये विश्व संगठन की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, केरल के एक निजी सुअर फार्म में पहली बार अफ्रीकी स्वाइन फीवर की पुष्टि हुई है, पिछले दस दिनों में इस बीमारी के कारण फार्म पर 15 से अधिक सूअरों की मृत्यु हो गई ।

अफ्रीकन स्वाइन फीवर:

african-swine-fever

  • परिचय:
    • अफ्रीकी स्वाइन फीवर घरेलू और जंगली सूअरों में होने वाली एक अत्यधिक संक्रामक रक्तस्रावी वायरल (Haemorrhagic Viral) बीमारी है।
    • रोग के अन्य लक्षणों में शामिल हैं:
      • उच्च बुखार
      • अवसाद
      • एनॉरेक्सिया
      • भूख में कमी
      • त्वचा में रक्तस्राव
      • डायरिया।
    • यह पहली बार वर्ष 1920 के दशक में अफ्रीका में पाया गया था।
      • ऐतिहासिक रूप से, अफ्रीका और यूरोप के कुछ हिस्सों, दक्षिण अमेरिका और कैरीबियन में संक्रमण की सूचना मिली है।
        • हालाँकि, वर्ष 2007 के बाद से, अफ्रीका, एशिया और यूरोप के कई देशों में घरेलू और जंगली सूअरों में इस बीमारी की सूचना मिली है।
    • इसमें मृत्यु दर लगभग 95-100% है और इस बुखार का कोई इलाज़ नहीं है, इसलिये इसके प्रसार को रोकने का एकमात्र तरीका जानवरों को मारना है।
    • अफ्रीकी स्वाइन फीवर मनुष्य के लिये खतरा नहीं होता है, क्योंकि यह केवल जानवरों से जानवरों में फैलता है।
    • अफ्रीकी स्वाइन फीवर, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE) के पशु स्वास्थ्य कोड में सूचीबद्ध एक बीमारी है।
  • नैदानिक संकेत:
    • ASF बीमारी के लक्षण तथा मृत्यु दर वायरस की क्षमता तथा सुअर की प्रजातियों के अनुसार भिन्न हो सकती हैं।
    • तीव्र रूप में सूअर का तापमान उच्च (40.5 डिग्री सेल्सियस या 105 डिग्री फरेनहाइट) होता है, फिर यह सुस्त हो जाते हैं और अपना भोजन छोड़ देते हैं।
      • ASF के लक्षणों में:
        • उल्टी
        • दस्त (कभी-कभी खूनी)
        • त्वचा का लाल होना या काला पड़ना, विशेष रूप से कान और थूथन
        • श्रमसाध्य साँस लेना और खाँसना
        • गर्भपात, मृत जन्म और कमज़ोर बच्चे
        • कमजोरी और खड़े होने में असमर्थता
      • ASF के लक्षणों में उच्च बुखार, अवसाद, भूख में कमी, त्वचा में रक्तस्राव (कान, पेट और पैरों पर आदि की त्वचा का लाल होना), गर्भपात होना आदि है।
  • प्रसारण:
    • संक्रमित सूअरों, मल या शरीर के तरल पदार्थों के सीधे संपर्क में आना।
    • उपकरण, वाहन या ऐसे लोग जो अप्रभावी जैव सुरक्षा वाले सुअर फार्मों के बीच सूअरों के साथ काम करते हैं, जैसे फोमाइट्स के माध्यम से अप्रत्यक्ष संपर्क।
    • संक्रमित सुअर का मांँस या मांँस उत्पाद खाने वाले सूअर।
    • जैविक वैक्टर – ऑर्निथोडोरोस प्रजाति के टिक्स।

क्लासिकल स्वाइन फीवर (CSF) :

  • क्लासिकल स्वाइन बुखार को हॉग हैजा (Hog Cholera) के नाम से भी जाना जाता है, यह सूअरों से संबंधित एक गंभीर बीमारी है।
  • यह दुनिया में सूअरों से संबंधित आर्थिक रूप से सर्वाधिक हानिकारक महामारी, संक्रामक रोगों में से एक है।
  • यह फ्लेविविरिडे (Flaviviridae) फैमिली के जीनस पेस्टीवायरस के कारण होता है, जो कि इस वायरस से निकटता से संबंधित है जो मवेशियों में ‘बोवाइन संक्रमित डायरिया’ और भेड़ों में ‘बॉर्डर डिज़ीज़’ का कारण बनता है।
  • इसमें मृत्यु दर 100% है।
  • हाल ही में इससे बचने के लिये ICAR-IVRI ने एक ‘सेल कल्चर CSF वैक्सीन (लाइव एटेन्यूटेड या जीवित ऊतक) विकसित की, जिसमें लैपिनाइज़्ड वैक्सीन वायरस का उपयोग एक बाह्य स्ट्रेन के माध्यम से किया गया।
    • नया टीका टीकाकरण के 14 दिन से 18 महीने तक सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रदान करता है।

विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन

(World Organisation for Animal Health or OIE)

  • यह दुनिया-भर में पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार हेतु उत्तरदायी एक अंतर-सरकारी संगठन (Intergovernmental Organisation) है।
  • वर्तमान में कुल 182 देश इसके सदस्य हैं। भारत इसके सदस्य देशों में से एक है।
  • यह नियमों से संबंधित मानक दस्तावेज़ विकसित करता है जिनके उपयोग से सदस्य देश बीमारियों और रोगजनकों से स्वयं को सुरक्षित कर सकते हैं। इसमें से एक क्षेत्रीय पशु स्वास्थ्य संहिता भी है।
  • इसके मानकों को विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा संदर्भित संगठन (Reference Organisation) के अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता नियमों के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • इसका मुख्यालय पेरिस (फ्राँस) में स्थित है।

सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. H1N1 वायरस का उल्लेख प्रायः समाचारों में निम्नलिखित में से किस एक बीमारी के संदर्भ में किया जाता है? (2015)

(A) एड्स

(B) बर्ड फलू

(C) डेंगू

(D) स्वाइन फ्लू

उत्तर:D

व्याख्या:

  • स्वाइन फ्लू (H1N1) वायरस स्वाइन फ्लू से संबंधित है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2009 में H1N1 के कारण होने वाले फ्लू को वैश्विक महामारी घोषित किया था।
  • H1N1 के लक्षणों में बुखार, खाँसी, गले में खराश, ठंड लगना, कमज़ोरी और शरीर में दर्द शामिल हैं।
  • स्वाइन इन्फ्लूएंजा जीनोम में 8 अलग-अलग खंडित भाग होते हैं और 11 अलग-अलग प्रकार के प्रोटीनों को इनकोड करते हैं:
    • एनवलप प्रोटीन हेमाग्लगुटिनिन (HA) और न्यूरोमिनिडेस (NA)।
    • वायरल आरएनए पोलीमरेज़ जिसमें PB2, PB1, PB1-F2, PA और PB शामिल हैं।
    • मैट्रिक्स प्रोटीन M1 और M2।
    • गैर-संरचनात्मक प्रोटीन NS1 और NS2, जो रोगजनन और वायरल प्रतिकृति के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • अतः विकल्प D सही है।

स्रोत:द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जीन थेरेपी की प्रभावकारित

प्रिलिम्स के लिये:

जीन थेरेपी, DNA, अल्फा -1 एंटीट्रिप्सिन, प्रोटियोस्टेसिस।

मेन्स के लिये:

जीन थेरेपी की बढ़ती प्रभावकारिता और इसके निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में "सीक्रेशन ऑफ फंक्शनल अल्फा-1 एंटीट्रिप्सिन इज़ सेल टाइप डिपेंडेंट शीर्षक से एक अध्ययन प्रकाशित किया गया है, जो दर्शाता है कि शरीर में प्रोटीन विनियमन नेटवर्क को बदलकर आनुवंशिक रोगों के इलाज में मदद करके जीन थेरेपी की प्रभावकारिता को बढ़ाया जा सकता है।

जीन थेरेपी

  • जीन थेरेपी एक मरीज के DNA (डीऑक्सी-राइबो न्यूक्लिक एसिड) में त्रुटि के स्रोत को ठीक करके आनुवंशिक रोगों का इलाज करने का एक तरीका है।
  • जीन थेरेपी तकनीक डॉक्टरों को दवाओं या सर्जरी का उपयोग करने के बजाय किसी व्यक्ति के आनुवंशिक कमी को पूरा करके विकार का इलाज करने की अनुमति देती है।
  • एक हानिरहित वायरल या बैक्टीरियल वेक्टर का उपयोग रोगी की कोशिकाओं में सुधारात्मक जीन को ले जाने के लिये किया जाता है, जहाँ जीन रोग के इलाज़ हेतु आवश्यक प्रोटीन का उत्पादन करने के लिये कोशिका को निर्देशित करता है।
  • माँसपेशियों की कोशिकाएँ सामान्य इसका लक्ष्य हैं क्योंकि माँसपेशियों में इंजेक्ट की गई जीन थेरेपी अन्य मार्गों से शरीर में प्रवेश करने की तुलना में अधिक सुलभ हैं।
  • लेकिन माँसपेशियों की कोशिकाएँ वांछित प्रोटीन का उतनी कुशलता से उत्पादन नहीं कर सकती हैं, जितना कि जीन उसे करने का निर्देश देता है, वह उस कार्य से बहुत अलग होता है जिसमें वह विशेषज्ञता रखता है।

निष्कर्ष:

  • जीन थेरेपी की प्रभावशीलता:
    • इंजेक्शन के माध्यम से शरीर में AAT (अल्फा -1 एंटीट्रिप्सिन) जीन थेरेपी देने के लिये एक माध्यम के रूप में एडेनो- एसोसिएटेड वायरस के हानिरहित संस्करण का उपयोग करने की रणनीति विकसित की गई, जिससे कई वर्षों तक प्रोटीन निरंतर स्त्रावित हो सके।
      • AAT एक ऐसी स्थिति है जिसमें यकृत कोशिकाएँ पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन AAT बनाने में असमर्थ होती हैं।
      • इसके परिणामस्वरूप फेफड़े के ऊतकों का विखंडन होता है जो गंभीर श्वसन समस्याओं का कारण बन सकता है, जिसमें गंभीर फेफड़े के रोग, जैसे कि- क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (COPD) या वातस्फीति का विकास शामिल है।
    • सुबेरॉयलनिलाइड हाइड्रॉक्सैमिक एसिड (SAHA) नामक एक अणु को जोड़ने से माँसपेशियों की कोशिकाओं को AAT को उत्पादन स्तर पर यकृत कोशिकाओं की तरह बनाने में मदद मिलती है।
      • प्रोटियोस्टेसिस वह प्रक्रिया है जो कोशिकीय प्रोटिओम और जीव दोनों के स्वास्थ्य को बनाए रखने हेतु कोशिका के भीतर प्रोटीन को नियंत्रित करती है।
      • प्रोटियोस्टेसिस में पथों का एक अत्यधिक जटिल अंतर्संबंध शामिल होता है जो संश्लेषण से लेकर क्षरण तक एक प्रोटीन की संरचना को प्रभावित करता है।
    • SAHA या इसी तरह के प्रोटियोस्टेसिस रेगुलेटर को जीन थेरेपी में शामिल करने से कई आनुवंशिक रोगों के लिये इन उपचारों की प्रभावशीलता बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
      • मरीजों का इलाज़ आमतौर पर इन्फ्यूजन के माध्यम से AAT प्राप्त करके किया जाता है। इसके लिये रोगियों को या तो नियमित रूप से अस्पताल का चक्कर लगाना पड़ता है या जीवन भर महँगे उपकरण घर पर ही रखने पड़ते हैं।
    • AAT की कमी का कारण बनने वाले दोषपूर्ण जीन को प्रतिस्थापित करना रोगियों के लिये एक वरदान साबित हो सकता है।
      • वर्तमान जीन थेरेपी AAT-उत्पादक जीन को पेशियों में इंजेक्ट करती है।
  • निहितार्थ:
    • मांसपेशियों की कोशिकाओं के प्रोटीन उत्पादन में वृद्धि संभावित रूप से वैक्सीन प्रतिरक्षा में सुधार कर सकती है।
    • कोशिकाओं में प्रोटीन होमियोस्टेसिस के वृद्धि कारक को जोड़कर प्रोटीन निर्माण का अनुकूलन हो सकता है तथा दवा की प्रभावकारिता में वृद्धि हो सकती है।
      • कई दवाएँ प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होती हैं जो किसी कोशिका की प्रोटीन उत्पादन क्षमता पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं।
      • लेकिन इनमें से कई दवाएँ उन कोशिकाओं का उपयोग करती हैं जो बड़ी मात्रा में प्रोटीन निर्माण के लिये विशिष्ट नहीं हैं।
    • प्रोटीन होमियोस्टेसिस के माध्यम से कोशिका तंत्र को बेहतर करके आयु वृद्धि दर में कमी करने तथा बीमारियों की एक विस्तृत शृंखला के इलाज के लिये कई नए दरवाजे खोलने में मदद की जा सकती है।

स्रोत:डाउन टू अर्थ


आंतरिक सुरक्षा

मिग-21 क्रैश

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय वायु सेना, IAF मॉडर्नाइज़ेशन ड्राइव, फ्लाइंग कॉफिन।

मेन्स के लिये:

मिग-21 विमान, विमान दुर्घटनाएँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय वायु सेना (IAF) का मिग-21 बाइसन विमान राजस्थान के बाड़मेर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें लड़ाकू विमान के प्रशिक्षण संस्करण में सवार दो पायलटों की मौत हो गई।

  • वर्तमान में IAF के पास लगभग 70 मिग-21 विमान और 50 मिग-29 संस्करण हैं।
  • वर्तमान में भारतीय वायुसेना में मिग-21 बाइसन विमान के चार स्क्वाड्रन सेवारत हैं, प्रत्येक स्क्वाड्रन में 16-18 विमान शामिल हैं, जिसमें दो प्रशिक्षण संस्करण भी शामिल हैं।

mig-21

फेज़ आउट

  • IAF ने अगले पाँच वर्षों में मिग -29 लड़ाकू जेट के तीन स्क्वाड्रनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की भी योजना बनाई है।
  • यह भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण अभियान का एक हिस्सा है।
  • वर्ष 2025 तक सभी चार मिग-21 स्क्वाड्रनों को सेवानिवृत्त करने की योजना है।

मिग-21:

  • मिग 21 एक सुपरसोनिक जेट लड़ाकू और इंटरसेप्टर विमान है, जिसे सोवियत संघ में मिकोयान-गुरेविच डिज़ाइन ब्यूरो द्वारा निर्मित किया गया है।
    • मिग सोवियत संघ से खरीदा गया एक लड़ाकू विमान है जो वर्ष 1959 से AIF में सेवारत है।
  • चार महाद्वीपों के लगभग 60 देशों ने मिग-21 का उपयोग किया है और यह अपनी पहली उड़ान के छह दशक बाद भी कई देशों में सेवारत है।
  • भारत ने वर्ष 1963 में मिग-21 को शामिल किया और पूर्ण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और देश में विमान के लाइसेंस-निर्माण के अधिकार प्राप्त किये।
  • वर्ष 1985 में रूस ने विमान का उत्पादन बंद कर दिया, जबकि भारत ने उन्नत संस्करणों का संचालन जारी रखा।

भारत में मिग-21 क्रैश:

  • पिछले दस वर्षों में 108 हवाई दुर्घटनाएँ और क्षति हुई है, जिसमें भारतीय वायुसेना, नौसेना, सेना और तटरक्षक बल सभी के आयुध शामिल हैं।
  • इनमें से 21 दुर्घटनाओं में मिग-21 बाइसन और इसके वेरिएंट शामिल हैं।
    • दुर्घटनाओं की उच्च दर के कारण विमान को 'फ्लाइंग कॉफिन' का उपनाम दिया गया।
  • सैन्य विमान दुर्घटनाओं का कोई एकल सामान्य कारण नहीं है। ये मौसम, मानवीय त्रुटि, तकनीकी त्रुटि से लेकर ‘बर्ड हिट’ तक हो सकते हैं।
  • मिग-21 सिंगल इंजन फाइटर जेट है जो कुछ दुर्घटनाओं का कारण भी हो सकता है।
    • यह सिंगल इंजन फाइटर जेट है और जब इसका इंजन बंद हो जाता है, तो इसे फिर से स्टार्ट करने की ज़रूरत होती है लेकिन इसमें एक नियत समय लगता है, इसलिये यदि आप न्यूनतम ऊँचाई से नीचे हैं तो आपको विमान से कूदना पड़ता है।

आगे की राह

  • भविष्य की विमान दुर्घटनाओं को रोकना प्रौद्योगिकी के संयोजन और उपयुक्त तथा पर्याप्त पायलट प्रशिक्षण के उपयोग में निहित है।
  • विमान में ‘ग्राउंड प्रॉक्सिमिटी वार्निंग सिस्टम’ की स्थापना से शुरुआती संकेत उत्पन्न होंगे जो फ्लाइट क्रू को CFIT की शुरुआत के खिलाफ निवारक उपाय करने के लिये सचेत कर सकते हैं।
  • पायलट प्रशिक्षण में स्थितिजन्य जागरूकता विकसित करने और सही हस्तक्षेप करने के लिये पायलटों के प्रभावी प्रशिक्षण पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


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