सामाजिक न्याय
कोविड-प्रभावित परिवारों के लिये ईपीएफओ और ईएसआईसी का विस्तार
प्रिलिम्स के लियेकर्मचारी राज्य बीमा निगम योजना, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, कर्मचारी डिपॉजिट-लिंक्ड बीमा मेन्स के लियेकोविड-प्रभावित परिवारों के लिये बिमा सुरक्षा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने कोविड-19 से मरने वालों के परिवारों के लिये पेंशन कवरेज और बीमा लाभों के विस्तार की घोषणा की।
- कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees’ Provident Fund Organisation- EPFO) के तहत पंजीकृत सदस्यों के पेंशन कवरेज के लिये कर्मचारी राज्य बीमा निगम (Employees’ State Insurance Corporation- ESIC) योजना और कर्मचारी डिपॉज़िट-लिंक्ड बीमा (Employees’ Deposit-Linked Insurance) योजना के अंतर्गत बीमा लाभ को बढ़ाया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
ईएसआईसी योजना के तहत लाभों का विस्तार:
- मौजूदा नियमों के अनुसार, ऐसे व्यक्तियों (जिनकी मृत्यु कोविड से हुई है) के परिवार के सदस्य कर्मचारी को दिये गए औसत दैनिक वेतन के 90% के बराबर पेंशन पाने के पात्र होंगे।
- यह लाभ पूर्वव्यापी प्रभाव से 24 मार्च, 2020 से 24 मार्च, 2022 तक उपलब्ध रहेगा।
- ईएसआईसी लाभों के लिये पात्रता शर्तों में यह मानदंड शामिल होने की संभावना है कि बीमित व्यक्ति को कोविड से मरने के कम-से-कम तीन महीने पहले ईएसआईसी ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकृत होना चाहिये, साथ ही उसने कम-से-कम 78 दिनों तक काम किया हो।
ईपीएफओ-ईडीएलआई के तहत लाभ:
- अधिकतम बीमा लाभ 6 लाख रुपए से बढ़ाकर 7 लाख रुपए कर दिया गया है।
- 2.5 लाख रुपए के न्यूनतम बीमा लाभ का प्रावधान बहाल कर दिया गया है और यह अगले तीन वर्षों के लिये फरवरी 2020 से पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा।
- उन कर्मचारियों के परिवारों को भी लाभ उपलब्ध कराया जा रहा है, जिन्होंने अपनी मृत्यु से पहले पिछले 12 महीनों में नौकरी बदली हो।
- ईपीएफओ के अंतर्गत आने वाले कर्मचारी के मृत्यु के मामले में सभी आश्रित परिवार के सदस्य ईडीएलआई का लाभ उठाने के पात्र हैं।
- इसके अंतर्गत लगभग 6.53 करोड़ परिवारों के पात्र होने की उम्मीद है।
कर्मचारी राज्य बीमा योजना:
कर्मचारी राज्य बीमा योजना के विषय में:
- यह एक बहुआयामी सामाजिक व्यवस्था है जो ईएसआई योजना के तहत आने वाले श्रमिक या आश्रित परिवारों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है।
- ईएसआई योजना कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 में शामिल सामाजिक बीमा का एकीकृत रूप है।
कवरेज़:
- ईएसआई अधिनियम 10 या अधिक व्यक्तियों को रोज़गार देने वाले सभी कारखानों और अधिसूचित प्रतिष्ठानों, साथ ही 21,000 रुपएप्रति माह (विकलांग व्यक्तियों के लिये 25,000 रुपए) तक वेतन पाने वाले कर्मचारियों पर लागू होता है।
- यह कामगारों के लगभग 3.49 करोड़ परिवारों को कवर करता है और लगभग 13.56 करोड़ लाभार्थियों को नकद लाभ तथा उचित चिकित्सा सुविधा प्रदान करता है।
कर्मचारी डिपॉजिट-लिंक्ड बीमा
- यह निजी क्षेत्र के वेतनभोगी कर्मचारियों के लिये ईपीएफओ द्वारा प्रदान किया जाने वाला एक बीमा कवर है। इसे वर्ष 1976 में लॉन्च किया गया था।
- कोई भी कर्मचारी जिसके पास ईपीएफ खाता है, वह स्वतः ही ईडीएलआई योजना के लिये पात्र हो जाता है।
- पंजीकृत नामांकित (Nominee) व्यक्ति को बीमित व्यक्ति की मृत्यु की स्थिति में एकमुश्त भुगतान प्राप्त होता है।
- यह कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 के तहत पंजीकृत सभी संगठनों पर लागू होता है।
- ईडीएलआई योजना का प्रबंधन नियोक्ता द्वारा भुगतान किये गए मासिक वेतन के 0.5% के आधार पर किया जाता है और इसमें कर्मचारी का योगदान नहीं होता है। कर्मचारी द्वारा पंजीकृत नामांकित व्यक्ति योजना के तहत लाभ का दावा करने के लिये पात्र है।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन
- यह एक सरकारी संगठन है जो सदस्य कर्मचारियों की भविष्य निधि और पेंशन खातों का प्रबंधन करता है।
- यह कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान अधिनियम (Employee Provident Fund and Miscellanious Provisions Act), 1952 को लागू करता है।
- कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 कारखानों तथा अन्य प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिये भविष्य निधि संस्थान (Provident Fund Institution) के रूप में काम करता है।
- यह संगठन श्रम और रोज़गार मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रशासित है।
कर्मचारी भविष्य निधि योजना
- ईपीएफ योजना कर्मचारी भविष्य निधि और विविध अधिनियम, 1952 के अंतर्गत आने वाली प्रमुख योजना है।
- यह कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में कार्य करने वाले कर्मचारियों को संस्थागत भविष्य निधि प्रदान करती है।
- कर्मचारी के मूल वेतन और महँगाई भत्ते का 12% कर्मचारी और नियोक्ता दोनों ही ईपीएफ में जमा करते हैं।
- आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 2016-17 में सुझाव दिया गया था कि कर्मचारियों को अपने वेतन का 12% ईपीएफओ में जमा करने या इसे वेतन के रूप में प्राप्त करने का विकल्प को चुनने अनुमति दी जाए।
- यह योजना उन कर्मचारियों के लिये अनिवार्य है जिनका मूल वेतन प्रतिमाह 15,000 रुपए तक है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
कृषि
बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम
प्रिलिम्स के लियेबागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम, बागवानी कृषि, कृषि अवसंरचना कोष , राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, भारत में बागवानी फसलों के उत्पादन में अग्रणी राज्य, किसान उत्पादक संगठन मेन्स के लियेबागवानी कृषि की भूमिका, क्लस्टर विकास कार्यक्रम (CDP) संबंधी विभिन्न मुद्दे ( भूमिका, कार्यान्वयन, उद्देश्य, अपेक्षित लाभ), भारत में बागवानी क्षेत्र, बागवानी क्षेत्र संबंधी हालिया कदम |
चर्चा में क्यों?
बागवानी उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम (CDP) शुरू किया है।
- बागवानी कृषि (Horticulture) सामान्यतः फलों, सब्जियों और सजावटी पौधों से संबंधित है।
प्रमुख बिंदु
क्लस्टर विकास कार्यक्रम (CDP) :
- परिचय :
- यह एक केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य पहचान किये गए बागवानी क्लस्टर को विकसित करना है ताकि उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा बनाया जा सके।
- बागवानी क्लस्टर लक्षित बागवानी फसलों का क्षेत्रीय/भौगोलिक संकेंद्रण है।
- यह एक केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य पहचान किये गए बागवानी क्लस्टर को विकसित करना है ताकि उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा बनाया जा सके।
- कार्यान्वयन:
- इसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB) द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।
- इस प्रायोगिक (Pilot) परियोजना कार्यक्रम के लिये चुने गए कुल 53 बागवानी क्लस्टरों में से 12 बागवानी क्लस्टरों में इसे लागू किया जाएगा।
- इन क्लस्टरों को क्लस्टर विकास एजेंसियों (CDA) के माध्यम से कार्यान्वित किया जाएगा जिन्हें संबंधित राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकार की सिफारिशों पर नियुक्त किया जाता है।
- उद्देश्य:
- भारतीय बागवानी क्षेत्र से संबंधित सभी प्रमुख मुद्दों (उत्पादन, कटाई/हार्वेस्टिंग प्रबंधन, लॉजिस्टिक, विपणन और ब्रांडिंग सहित) का समाधान करना।
- भौगोलिक विशेषज्ञता (Geographical Specialisation) का लाभ उठाकर बागवानी क्लस्टरों के एकीकृत तथा बाज़ार आधारित विकास को बढ़ावा देना।
- सरकार की अन्य पहलों जैसे कि कृषि अवसंरचना कोष (AIF) के साथ अभिसरण करना।
- अपेक्षित लाभ:
- इस कार्यक्रम से लगभग 10 लाख किसानों को मदद मिलेगी और सभी 53 क्लस्टरों का कार्यान्वयन होने पर इसमें 10,000 करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित होने की अपेक्षा की गई है ।
भारत में बागवानी क्षेत्र:
- भारत बागवानी फसलों का विश्व में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जो दुनिया के फलों और सब्जियों के उत्पादन का लगभग 12% है।
- भारत केला, आम, अनार, चीकू (Sapota), निम्बू, आँवला जैसे फलों का सबसे बड़ा उत्पादक है।
- वित्तीय वर्ष 2018-19 में फल उत्पादन में शीर्ष राज्यों में क्रमशः आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश थे।
- सब्जी उत्पादन में शीर्ष राज्य क्रमशः पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश थे।
- बागवानी फसलों के अंतर्गत विस्तारित क्षेत्र वित्तीय वर्ष 2018-19 में बढ़कर 25.5 मिलियन हेक्टेयर हो गया, जिसके कुल क्षेत्रफल का लगभग 20% खाद्यान्न के अंतर्गत शामिल था तथा इसमें 314 मिलियन टन का उत्पादन हुआ।
- बागवानी क्षेत्र संबंधी हालिया कदम:
- कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare) ने वर्ष 2021-22 के लिये 'एकीकृत बागवानी विकास मिशन' (MIDH) हेतु 2250 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं।
- MIDH फल, सब्जी, जड़ व कंद फसलों, मशरूम, मसालों, फूल, सुगंधित पौधों, नारियल, काजू, कोको, बाँस आदि बागवानी क्षेत्र की फसलों के समग्र विकास हेतु एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
आगे की राह
- भारतीय बागवानी क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने की संभावनाएँ काफी ज़्यादा हैं, जो वर्ष 2050 तक देश के 650 मिलियन मीट्रिक टन फलों और सब्जियों की अनुमानित मांग को पूरा करने के लिये ज़रूरी है।
- इस दिशा में किये जाने वाले प्रयासों में खाद्यान्न उत्पादन हेतु रोपाई पर ध्यान केंद्रित करना, क्लस्टर विकास कार्यक्रम, कृषि अवसंरचना कोष (Agri Infra Fund) के माध्यम से ऋण मुहैया कराना, किसान उत्पादक संगठन (Farmers Producer Organisation) के गठन और विकास आदि शामिल हैं।
स्रोत : पी.आई.बी.
भारतीय समाज
IPC की धारा 304B: दहेज हत्याएँ
प्रीलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304B मेन्स के लिये:भारत में दहेज़ प्रथा तथा उससे संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304B के दायरे को यह संकेत देकर विस्तृत किया है कि महिलाओं के खिलाफ क्रूरता को निर्धारित करने के लिये कोई उपयुक्त फॉर्मूला नहीं है।
प्रमुख बिंदु:
IPC की धारा 304B:
- धारा 304 के अनुसार दहेज हत्या का मामला बनाने के लिये महिला की शादी के सात वर्ष के भीतर जलने या अन्य शारीरिक चोटों (सामान्य परिस्थितियों के अलावा) से मृत्यु होनी चाहिये।
- दहेज की मांग के संबंध में मृत्यु से ठीक पहले उसे पति या ससुराल वालों से क्रूरता या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा हो।
निर्णय की मुख्य बातें:
- दुल्हन को जलाने और दहेज की मांग संबंधी सामाजिक बुराई को रोकने की विधायी मंशा को ध्यान में रखते हुए IPC की धारा 304B की व्याख्या की जानी चाहिये।
- न्यायालय को यह निर्धारित करने के लिये अपने विवेक का उपयोग करना चाहिये कि क्या क्रूरता या उत्पीड़न और पीड़ित की मृत्यु के बीच की अवधि "सून बिफोर" पद के भीतर आएगी।
- इस तरह के निर्धारण के लिये एक महत्त्वपूर्ण कारक पीड़ित के साथ हुई क्रूरता और परिणामी मृत्यु के बीच "निकट और जीवंत संबंध" की स्थापना है।
- वर्षों से न्यायालयों ने धारा 304B में 'सून बिफोर' वाक्यांश की व्याख्या 'इमीडिएटली बिफोर' के रूप में की थी। यह व्याख्या एक पीड़ित महिला के लिये यह आवश्यक शर्त निर्धारित करती है कि मरने से पहले उसे परेशान किया गया हो।
- यहाँ तक कि क्रूरता का दायरा भी काफी विविध है, क्योंकि यह शारीरिक, मौखिक या भावनात्मक रूप से भी हो सकती है। इसलिये उपयुक्त फार्मुलों को यह परिभाषित करने के लिये निर्धारित नहीं किया जा सकता है कि 'सून बिफोर’ वाक्यांश सटीक है या नहीं।
- इसके अलावा इस खंड में ‘सामान्य परिस्थितियों के अलावा’ वाक्यांश एक व्याख्या की मांग करता है।
- IPC की धारा 304-B मृत्यु को मानव हत्या या आत्मघाती या आकस्मिक रूप में वर्गीकृत करने में एक ‘पिज़न अप्रोच’ का प्रयोग नहीं करती है।
- साथ ही आरोपी के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री के संबंध में निष्पक्ष तरीके से जाँच की जाए।
- हालाँकि अन्य महत्त्वपूर्ण विचारों को संतुलित करने की आवश्यकता है जैसे कि त्वरित परीक्षण का अधिकार।
दहेज हत्या पर रिपोर्ट:
- वर्ष 1999 से 2018 तक लगभग एक दशक तक देश में दहेज के लिये होने वाली मौतों में 40% से 50% की हत्या हुई।
- वर्ष 2019 में भारतीय दंड संहिता की धारा 304B के तहत दहेज हत्या के 7,115 मामले दर्ज किये गए।
दहेज:
- ‘दहेज’ शब्द को IPC में परिभाषित नहीं किया गया है बल्कि दहेज निषेध अधिनियम, 1961 में परिभाषित किया गया है। अधिनियम के अनुसार, इसे किसी भी संपत्ति या मूल्यवान वस्तु के रूप में परिभाषित किया गया है या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इसे देने के लिये सहमति व्यक्त की गई हो:
- एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को विवाह के लिये या
- विवाह में भाग लेने वाले दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति ने किसी दूसरे पक्ष अथवा किसी व्यक्ति को विवाह के समय, विवाह के पहले या विवाह के बाद विवाह की एक आवश्यक शर्त के रूप में दिया हो या देना स्वीकार किया हो।
- हालाँकि विभिन्न समाजों में प्रचलित प्रथागत भुगतान, जैसे कि बच्चे के जन्म के समय आदि दहेज के अंतर्गत नहीं आते हैं।
- दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध हैं।
- दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अतिरिक्त कानूनों को और अधिक कठोर बनाया गया है, अर्थात्,
- धारा 304B (दहेज मृत्यु) और धारा 498A (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) को भारतीय दंड संहिता में एकीकृत किया गया है।
- दहेज प्रथा और संबंधित मौतों के इस जघन्य कृत्य की समाप्तिन या इसे कम से कम करने के लिये धारा 113B (दहेज मृत्यु के रूप में अनुमान) को भारतीय साक्ष्य अधिनियम का हिस्सा बनाया गया है।
स्रोत-द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
कीटाणुशोधन प्रणाली वज्र कवच
प्रिलिम्स के लिये:वज्र कवच तथा निधि-प्रयास से संबंधित तथ्यात्मक जानकारी मेन्स के लिये:नवप्रवर्तनकर्त्ताओं व स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने में निधि प्रयास पहल की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
वज्र कवच एक सरल कीटाणुशोधन प्रक्रिया है जो कोरोना योद्धाओं को अपने मास्क और PPE किट को पुन: उपयोग करने में सक्षम बनाती है।
- इस प्रौद्योगिकी को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) द्वारा शुरू किये गए निधि-प्रयास कार्यक्रम के तहत विकसित किया गया है।
प्रमुख बिंदु
वज्र कवच के बारे में:
- वज्र कवच की यूवी (अल्ट्रा वायलेट) कीटाणुशोधन प्रणाली व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protective Equipment- PPE), एन95 मास्क, कोट, दस्ताने और गाउन पर से बीमारी पैदा करने वाले सार्स-सीओवी-2 (कोविड-19) वायरस के किसी भी संभावित लक्षण को हटा देती है।
- यह प्रणाली स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले PPE और अन्य सामग्रियों के दोबारा उपयोग को सक्षम बनाती है।
- इस प्रकार यह प्रणाली न केवल स्वास्थ्यकर्मियों की बल्कि जैव चिकित्सीय अपशिष्ट के उत्पादन में कमी लाकर हमारे पर्यावरण को भी सुरक्षित करने में मदद करती है। यह प्रणाली व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की अधिक उपलब्धता के साथ उन्हें किफायती और सुलभ भी बना रही है।
निधि-प्रयास:
- निधि-प्रयास (National Initiative for Developing and Harnessing Innovation PRomoting and Accelerating Young and aspiring Innovators & startups- NIDHI PRAYAS) नवोन्मेष के विकास एवं दोहन के लिये राष्ट्रीय पहल है जो युवा और महत्त्वाकांक्षी नवप्रवर्तनकर्त्ताओं व स्टार्टअप्स को बढ़ावा और गति प्रदान करती है।
- निधि कार्यक्रम, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा शुरू किया गया है जिसके तहत अन्वेषकों एवं उद्यमियों के लिये इन्क्यूबेटर्स (Incubators), सीड फंड (Seed Fund), एक्सेलेरेटर्स (Accelerators) और ‘प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट’ (Proof of concept) अनुदान की स्थापना के कार्यक्रम शुरू किये गए हैं।
- निधि के तहत प्रयास कार्यक्रम शुरू किया गया है जिसमें स्थापित प्रौद्योगिकी व्यापार इनक्यूबेटर (Technology Business Incubators- TBI) को प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट (Proof of Concept- PoC) और विकासशील प्रोटोटाइप के लिये अनुदान के साथ नवोन्मेषकों एवं उद्यमियों का समर्थन करने हेतु प्रयास अनुदान के साथ समर्थन किया जाता है।
- प्रयास केंद्र की स्थापना के लिये एक प्रौद्योगिकी व्यापार इनक्यूबेटर (TBI) को अधिकतम 220 लाख रुपए प्रदान किये जाते हैं, जिसमें प्रयास शाला (PRAYAS SHALA) के लिये 100 लाख रुपए तथा प्रयास (PRAYAS) केंद्र की परिचालन लागत के लिये 20 लाख रुपए और प्रोटोटाइप विकसित करने के लिये एक इनोवेटर को 10 लाख रुपए दिये जाते हैं। एक वर्ष में TBI को दस इनोवेटर्स के लिये फंड दिया जाता है।
- उद्देश्य:
- एक नवोन्मेषी विचार को एक प्रोटोटाइप में रूपांतरित करने में सक्षम बनाना।
- किसी स्टार्टअप को विचार से बाज़ार चरण तक उसके प्रत्येक चरण में समर्थन करना।
- स्थानीय और वैश्विक समस्याओं के लिये प्रासंगिक नवोन्मेषी समाधान सुनिश्चित करना।
- बड़ी संख्या में ऐसे युवाओं को आकर्षित करना जो समस्या समाधान में उत्साह और क्षमताओं का प्रदर्शन करते हैं।
- उनकी नई तकनीक/ज्ञान/नवाचार आधारित स्टार्टअप पर काम करना।
- इन्क्यूबेटरों के लिये नवोन्मेषी स्टार्टअप्स की गुणवत्ता और मात्रा के संदर्भ में प्रक्रियाओं में वृद्धि करना।
स्रोत: पीआईबी
शासन व्यवस्था
देशद्रोह की सीमा का निर्धारण: SC
प्रिलिम्स के लियेIPC की धारा 124A (देशद्रोह), 153A और 505 मेन्स के लियेदेशद्रोह कानून की प्रासंगिकता और उसकी आलोचना |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने दो तेलुगू (भाषा) न्यूज़ चैनलों को आंध्र प्रदेश सरकार की जबरन कार्रवाई से बचाते हुए कहा कि यह देशद्रोह की सीमा को परिभाषित करने का समय है।
- वर्तमान में ब्रिटिश युग की भारतीय दंड संहिता (IPC) में सुधारों का सुझाव देने के लिये केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित आपराधिक कानूनों में सुधार समिति, पहली बार ‘हेट स्पीच’ को परिभाषित करने का प्रयास कर रही है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- न्यूज़ चैनलों ने राज्य सरकार पर राज्य में कोविड-19 महामारी की मीडिया कवरेज और रिपोर्टिंग में बाधा डालकर भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद-19 प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार, मत और विश्वास को मौखिक, लेखन, मुद्रण, चित्र या किसी अन्य तरीके से स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- सर्वोच्च न्यायालय से उसके पिछले आदेश का उल्लंघन करने के मामले में राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध अवमानना कार्रवाई शुरू करने का आग्रह किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पिछले आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह शिकायत करने वाले नागरिकों पर मुकदमा चलाने और उन्हें गिरफ्तार करने संबंधी किसी भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कार्यवाही को तत्काल बंद करे।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- देशद्रोह कानून का अनुचित उपयोग
- सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के कोविड-19 प्रबंधन के विषय में शिकायत करने वाले आलोचकों, पत्रकारों, सोशल मीडिया उपयोगकर्त्ताओं और नागरिकों के विरुद्ध देशद्रोह कानून के अनुचित उपयोग को लेकर चिंता ज़ाहिर की है।
- यहाँ तक कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान चिकित्सा पहुँच, उपकरण, दवाएँ और ऑक्सीजन सिलेंडर की मांग करने वाले लोगों के विरुद्ध भी देशद्रोह कानून का उपयोग किया जा रहा है।
- ‘देशद्रोह’ की व्याख्या
- वर्तमान में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A (देशद्रोह), 153A और 505 के प्रावधानों के दायरे और मापदंडों की व्याख्या की जानी आवश्यक है।
- IPC की धारा 153A: यह धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और सद्भाव बनाए रखने के विरुद्ध कार्य करने वाले कृत्यों को दंडित करता है।
- IPC की धारा 505: यह ऐसी सामग्री के प्रकाशन और प्रसार को अपराध बनाता है, जिससे विभिन्न समूहों के बीच द्वेष या घृणा उत्पन्न हो सकती है।
- विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के समाचार, सूचना और अधिकारों को संप्रेषित करने के अधिकार के संदर्भ में, चाहे वे देश के किसी भी हिस्से में प्रचलित शासन के लिये आलोचनात्मक ही क्यों न हो।
- वर्तमान में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A (देशद्रोह), 153A और 505 के प्रावधानों के दायरे और मापदंडों की व्याख्या की जानी आवश्यक है।
- मीडिया के अधिकार
- न्यायालय ने इस तर्क को स्वीकार किया कि मीडिया को देशद्रोह कानून से प्रभावित हुए बिना एक प्रचलित शासन के विषय में महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों को प्रसारित करने का अधिकार है।
देशद्रोह (IPC की धारा 124A)
- भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के अनुसार, देशद्रोह एक प्रकार का अपराध है।
- IPC की धारा 124A देशद्रोह को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित करती है, जिसमें कोई व्यक्ति भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति मौखिक, लिखित (शब्दों द्वारा), संकेतों या दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने का प्रयत्न करता है।
- देशद्रोह में वैमनस्य और शत्रुता की सभी भावनाएँ शामिल होती हैं। हालाँकि इस खंड के तहत घृणा या अवमानना फैलाने की कोशिश किये बिना की गई टिप्पणियों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है।
देशद्रोह के लिये दंड
- देशद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है। देशद्रोह के अपराध में तीन वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है और इसके साथ ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है।
- इस कानून के तहत आरोपी व्यक्ति को सरकारी नौकरी करने से रोका जा सकता है।
- आरोपित व्यक्ति को पासपोर्ट रखने की अनुमति नहीं होती है, साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसे न्यायालय में उपस्थित रहना होगा।
आगे की राह
- IPC की धारा 124A राष्ट्र विरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों से निपटने में उपयोगी है। हालाँकि सरकार से असहमति और उसकी आलोचना एक जीवंत लोकतंत्र में परिपक्व सार्वजनिक बहस के आवश्यक तत्त्व हैं। इन्हें देशद्रोह के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायपालिका को अपनी पर्यवेक्षी शक्तियों का उपयोग भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्रावधानों को सुनिश्चित करने और पुलिस को संवेदनशील बनाने के लिये करना चाहिये।
- राजद्रोह की परिभाषा को संकुचित किया जाना चाहिये, जिसमें केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ देश की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों को ही शामिल किया जाए।
- देशद्रोह कानून के मनमाने प्रयोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये नागरिक समाज को पहल करनी चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
विश्व तंबाकू निषेध दिवस
प्रिलिम्स के लिये:विश्व तंबाकू निषेध दिवस, विश्व स्वास्थ्य संगठन मेन्स के लिये:तंबाकू नियंत्रण हेतु किये गए विभिन्न प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हर वर्ष 31 मई को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और वैश्विक साझेदारों द्वारा विश्व तंबाकू निषेध दिवस (WNTD) मनाया जाता है।
प्रमुख बिंदु:
WNTD 2021 का केंद्रीय विषय:
- विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2021 का विषय है- ‘कमिट टू क्विट’।
- WHO ने भारत में तंबाकू की खपत को नियंत्रित करने के प्रयासों के लिये भारतीय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को ‘महानिदेशक विशेष पुरस्कार’ से सम्मानित किया है।
- ई-सिगरेट और तंबाकू उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने के लिये वर्ष 2019 के राष्ट्रीय कानून में उनके नेतृत्व की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
'तंबाकू' का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:
- भारत में हर वर्ष तंबाकू के सेवन के कारण 13 लाख से अधिक लोगों की मौत होती है, यानी प्रतिदिन 3500 मौतें होती हैं।
- इसके कारण होने वाली मौतों और बीमारियों के अलावा तंबाकू देश के आर्थिक विकास को भी प्रभावित करता है।
- धूम्रपान करने वालों को कोविड-19 जैसी गंभीर बीमारी से होने वाली मौतों के मामले में 40-50% अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है।
- WHO के अध्ययन (अगस्त 2020 में प्रकाशित) को "भारत में तंबाकू के उपयोग से होने वाली बीमारियों और मौतों की आर्थिक लागत" शीर्षक से प्रकाशित किया गया।
- यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में तंबाकू के उपयोग से होने वाली बीमारियों और मौतों का आर्थिक बोझ सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1% (1.77 लाख करोड़ रुपये) तक है।
भारत में तंबाकू नियंत्रण की दिशा में किये गए उपाय:
- भारत ने ‘WHO फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल’ (WHO FCTC) के तहत तंबाकू नियंत्रण प्रावधानों को अपनाया है।
- सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, (COTPA) 2003
- इसके तहत वर्ष 1975 के सिगरेट अधिनियम को प्रतिस्थापित किया गया (यह अधिनियम सिगरेट के पैक और विज्ञापनों पर प्रदर्शित होने वाली सांविधिक चेतावनियों- 'सिगरेट धूम्रपान स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है’ तक सीमित था। इसमें गैर-सिगरेट उत्पादों को शामिल नहीं किया गया था।)
- वर्ष 2003 के अधिनियम में सिगार, बीड़ी, चुरूट, पाइप तंबाकू, हुक्का, चबाने वाला तंबाकू, पान मसाला और गुटखा को भी शामिल किया गया।
- इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट निषेध अध्यादेश, 2019: यह ई-सिगरेट के उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, भंडारण और विज्ञापन को प्रतिबंधित करता है।
- नेशनल टोबैको क्विटलाइन सर्विस (NTQLS): नेशनल टोबैको क्विटलाइन सर्विस का उद्देश्य तंबाकू छोड़ने के लिये टेलीफोन आधारित जानकारी, सलाह और समर्थन प्रदान करना है और इस हेल्पलाइन में बड़ी संख्या में तंबाकू उपयोगकर्त्ताओं तक पहुँचने की क्षमता है।
- mCessation कार्यक्रम: यह तंबाकू छोड़ने के लिये मोबाइल प्रौद्योगिकी आधारित एक पहल है।
- भारत ने सरकार की डिजिटल इंडिया पहल के हिस्से के रूप में वर्ष 2016 में टेक्स्ट संदेशों का उपयोग करते हुए mCessation की शुरुआत की थी।
तंबाकू की खपत में गिरावट:
- तंबाकू के उपयोग की व्यापकता वर्ष 2009-10 में 34.6 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2016-17 में 28.6 प्रतिशत हो गई।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के तहत भारत ने वर्ष 2025 तक तंबाकू के उपयोग को 30 प्रतिशत तक कम करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।
WHO फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल
- विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा ‘WHO फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल’ (WHO FCTC) के तंबाकू नियंत्रण प्रावधानों को अपनाया गया है और लागू किया गया है।
- यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के तत्वावधान में शुरू की गई पहली अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
- इसे 21 मई, 2003 को विश्व स्वास्थ्य सभा (WHO की शीर्ष निर्णयन संस्था) द्वारा अपनाया गया था और यह 27 फरवरी, 2005 को लागू हुई थी।
- इसे तंबाकू महामारी के वैश्वीकरण की प्रतिक्रिया के रूप में विकसित किया गया था और यह एक साक्ष्य-आधारित संधि है जो सभी लोगों के स्वास्थ्य के उच्चतम स्तर के अधिकार की पुष्टि करती है।
- तंबाकू के उपयोग को रोकने के लिये FCTC के उपायों में शामिल हैं:
- मूल्य और कर उपाय।
- तंबाकू पैकेजों पर बड़ी ग्राफिक चेतावनियाँ।
- शत-प्रतिशत धूम्रपान मुक्त सार्वजनिक स्थान।
- तंबाकू के विपणन पर प्रतिबंध।
- तंबाकू छोड़ने वालों का समर्थन करना।
- तंबाकू उद्योग के हस्तक्षेप को रोकना ।