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डेली न्यूज़

  • 02 May, 2022
  • 34 min read
शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के लिये अधिदेश दस्तावेज़

प्रिलिम्स के लिये:

मैंडेट डॉक्यूमेंट, नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क, नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP), 2020,

मेन्स के लिये:

शिक्षा में सुधार, भारतीय शिक्षा प्रणाली का विऔपनिवेशीकरण, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 के तहत राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा के लिये "जनादेश दस्तावेज़" जारी किया है। 

  • जनादेश दस्तावेज़ की परिकल्पना बच्चों के समग्र विकास, कौशल पर ज़ोर, शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका, मातृभाषा में सीखने, सांस्कृतिक जड़ता पर ध्यान देने के साथ एक आदर्श बदलाव लाने के लिये की गई है।  
  • यह एक कदम भारतीय शिक्षा प्रणाली के विऔपनिवेशीकरण की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण है।

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा: 

  • परिवर्तनकारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन का केंद्र नया राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा  (NCF) है जो हमारे स्कूलों और कक्षाओं में एनईपी 2020 के दृष्टिकोण को वास्तविकता में परिवर्तित करके देश में उत्कृष्ट शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सशक्त बनाएगा। 
  • NCF के विकास को राष्ट्रीय संचालन समिति (NSC) द्वारा निर्देशित किया जा रहा है, इसकी अध्यक्षता डॉ. के कस्तूरीरंगन कर रहे हैं जो राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के साथअधिदेश समूह द्वारा समर्थित है।
  • NCF में शामिल होंगे: 
    • स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCFSE), 
    • बचपन की देखभाल और शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCFECCE) 
    • शिक्षकों की शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCFTE)
    • प्रौढ़ शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCFAE)
  • सरकार का मानना है कि नई शिक्षा नीति एक दर्शन है, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा एक मार्ग है और वर्तमान में जारी किया गया दस्तावेज़ वह अधिदेश  है जो 21वीं सदी की बदलती मांगों को अनुकूल बनाने तथा भविष्य को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाला संविधान है।
  • जनादेश समूह ने 28 फरवरी, 2023 को नए NCF के आधार पर पाठ्यक्रम के संशोधन की समय- सीमा तय की है।

जनादेश दस्तावेज़ की मुख्य विशेषताएँ:

  • परामर्शी प्रक्रिया: यह NCF के सुसंगत और व्यापक विकास हेतु तंत्र स्थापित करता है, जो पहले से चल रहे व्यापक परामर्श का पूरी तरह से लाभ उठाता है।
  • बहु-अनुशासनात्मक शिक्षा: डिज़ाइन की गई प्रक्रिया लंबवत (चरणों में) और क्षैतिज रूप से समग्र, एकीकृत एवं बहु-विषयक शिक्षा को सुनिश्चित करने हेतु NEP- 2020 में निर्धारित किये गए सहज एकीकरण को सुनिश्चित करती है। 
  • शिक्षण के लिये अनुकूल वातावरण: यह NEP- 2020 द्वारा परिकल्पित परिवर्तनकारी सुधारों के एक अभिन्न अंग के रूप में शिक्षक शिक्षा के पाठ्यक्रम के साथ स्कूलों के पाठ्यक्रम के बीच महत्त्वपूर्ण  जुड़ाव स्थापित करता है।
    • इस प्रकार सभी शिक्षकों के लिये एक कठिन तैयारी, निरंतर व्यावसायिक विकास और सकारात्मक कार्य वातावरण को निर्मित करना।
  • जीवन भर सीखना: यह देश के सभी नागरिकों के लिये जीवन भर सीखने के अवसरों को सृजित करने की सूचना प्रदान करता है।
  • अत्याधुनिक अनुसंधान: विभिन्न संदर्भों में कक्षाओं और स्कूलों के वास्तविक जीवन के चित्रण हेतु सरल भाषा का उपयोग करते हुए ध्वनि सिद्धांत और अत्याधुनिक शोध का सहारा लिया गया है। 
  • ह्यूज़ लर्निंग लोस: पिछले दो वर्षों में महामारी के कारण नियमित शिक्षण और सीखने में रुकावट की वजह को छात्रों के बीच "ह्यूज़ लर्निंग लोस" की पहचान हेतु राज्यों व केंद्र द्वारा "तत्काल संज्ञान में लिया जाना चाहिये"।

भारतीय शिक्षा प्रणाली का औपनिवेशीकरण (Decolonization): 

  • औद्योगीकरण और उसके परिणामस्वरूप साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद ने विश्व को तीन शताब्दियों तक प्रभावित किया है।
  • भारत दो सदियों से ब्रिटिश साम्राज्य का उपनिवेश रहा है। 
  • भारतीय इतिहास की इन महत्त्वपूर्ण दो शताब्दियों ने न केवल ब्रिटेन की राजनीतिक और आर्थिक शक्ति का प्रभाव देखा, बल्कि भारतीय जीवन के हर क्षेत्र पर इसके प्रभाव को देखा जा सकता है।
  • भारत की स्वदेशी शिक्षा प्रणाली धीरे-धीरे प्रतिस्थापित हो गई और शिक्षा का औपनिवेशिक मॉडल औपनिवेशिक-राज्य के संरक्षण में स्थापित हो गया है।  
  • उपनिवेशवादी भाषा, शिक्षा शास्त्र, मूल्यांकन और ज्ञान आबादी के लिये स्वाभाविक बाध्यता (प्राकृतिक दायित्व) बन गई।  
  • हालाँकि भारत को वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त हो गई थी, फिर भी भारतीय शिक्षा प्रणाली में पश्चिमी दुनिया का भारी वर्चस्व है।
  • इसलिये भारतीय शिक्षा प्रणाली को तुरंत राजनैतिक रूप से स्वतंत्र करने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद 

  • NCERT भारत सरकार का एक स्वायत्त संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1961 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक साहित्यिक, वैज्ञानिक और धर्मार्थ सोसायटी के रूप में की गई थी।
  • इसका उद्देश्य अनुसंधान, प्रशिक्षण, नीति निर्माण और पाठ्यक्रम विकास के माध्यम से स्कूली शिक्षा प्रणाली में सुधार करना है।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन

प्रिलिम्स के लिये:

अर्द्धचालक और उनसे जुड़ी योजनाएँ 

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में अर्द्धचालक उपकरणों का महत्त्व, इलेक्ट्रॉनिक और सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने की आवश्यकता, भारत को आत्मनिर्भर बनाने में इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की भूमिका।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बंगलूरू में ‘इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन’ (ISM) के तहत पहले सेमीकॉन इंडिया, 2022 सम्मेलन का उद्घाटन किया। 

  • यह पीएम के भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स, विनिर्माण और सेमीकंडक्टर उद्योग का वैश्विक हब बनाने के विज़न को पूरा करने में एक बड़े कदम के रूप में काम करेगा। 
  • सम्मेलन का विषय: भारत के अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र को उत्प्रेरित करना। 

अर्द्धचालक: 

  • एक कंडक्टर (Conductor) और इन्सुलेटर (Insulator) के बीच विद्युत चालकता में मध्यवर्ती क्रिस्टलीय ठोस का कोई भी वर्ग।
  • अर्द्धचालकों का उपयोग डायोड, ट्रांज़िस्टर और एकीकृत सर्किट सहित विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में किया जाता है। इस तरह के उपकरणों को उनकी कॉम्पैक्टनेस, विश्वसनीयता, बिजली दक्षता एवं कम लागत के कारण व्यापकरूप से प्रयोग में लाया जाता है। 
  • अलग-अलग घटकों के रूप में इनका उपयोग सॉलिड-स्टेट-लेज़र सहित बिजली उपकरणों, ऑप्टिकल सेंसर तथा प्रकाश उत्सर्जक में किया जाता है।

इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन: 

  • परिचय: 
    • ISM को वर्ष 2021 में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तत्त्वावधान में कुल 76,000 करोड़ रुपए के वित्तीय परिव्यय के साथ लॉन्च किया गया था।
    • यह देश में स्थायी अर्द्धचालक और प्रदर्शन पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिये व्यापक कार्यक्रम का हिस्सा है।
    • कार्यक्रम का उद्देश्य अर्द्धचालक, डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग और डिज़ाइन इकोसिस्टम में निवेश करने वाली कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
    • अर्द्धचालक और डिस्प्ले उद्योग में वैश्विक विशेषज्ञों के नेतृत्व में आईएसएम योजनाओं के कुशल, सुसंगत एवं सुचारू कार्यान्वयन के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा। 
  • घटक: 
    • भारत में सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने के लिये योजना:
      • यह सेमीकंडक्टर फैब की स्थापना के लिये पात्र आवेदकों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है जिसका उद्देश्य देश में सेमीकंडक्टर वफर फैब्रिकेशन सुविधाओं की स्थापना हेतु बड़े निवेश को आकर्षित करना है।
    • भारत में डिस्प्ले फैब स्थापित करने के लिये योजना:
      • यह डिस्प्ले फैब की स्थापना के लिये पात्र आवेदकों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जिसका उद्देश्य देश में टीएफटी एलसीडी/AMOLED आधारित डिस्प्ले फैब्रिकेशन सुविधाओं की स्थापना के लिए बड़े निवेश को आकर्षित करना है।
    • भारत में कंपाउंड सेमीकंडक्टर्स/सिलिकॉन फोटोनिक्स/सेंसर फैब और सेमीकंडक्टर असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग एवं पैकेजिंग (एटीएमपी)/ओएसएटी सुविधाओं की स्थापना के लिये योजना: 
      • यह योजना भारत में कंपाउंड सेमीकंडक्टर्स/सिलिकॉन फोटोनिक्स (एसआईपीएच)/सेंसर (एमईएमएस सहित) फैब और सेमीकंडक्टर एटीएमपी/ओएसएटी (आउटसोर्स सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्ट) सुविधाओं की स्थापना के लिये पात्र आवेदकों को पूंजीगत व्यय के 30% की वित्तीय सहायता प्रदान करती है। .
    • डिज़ाइन लिंक्ड प्रोत्साहन (DLI) योजना:
      • यह इंटीग्रेटेड सर्किट (आईसी), चिपसेट, सिस्टम ऑन चिप्स (एसओसी), सिस्टम और आईपी कोर तथा सेमीकंडक्टर लिंक्ड डिज़ाइन के विकास और तैनाती के विभिन्न चरणों में बुनियादी ढाँचा व वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है।
  • दृष्टिकोण:
    • भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण और डिजाइन के लिये वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने हेतु व्यवसायिक अर्द्धचालक (Vibrant Semiconductor), प्रदर्शन डिज़ाइन तथा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने की आवश्यकता है।
  • महत्व: 
    • ISM अर्द्धचालक और प्रदर्शन उद्योग को संरचित, केंद्रित व व्यापक तरीके से बढ़ावा देने के प्रयासों को व्यवस्थित करने हेतु काफी महत्त्वपूर्ण है।
    • यह देश में सेमीकंडक्टर्स, डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज़ और सेमीकंडक्टर डिज़ाइन इकोसिस्टम विकसित करने हेतु व्यापक दीर्घकालिक रणनीति तैयार करेगा।
    • यह विश्वसनीय इलेक्ट्रॉनिक्स को सुरक्षित अर्द्धचालकों और प्रदर्शन आपूर्ति शृंखलाओं के माध्यम से अपनाने की सुविधा प्रदान करेगा जिसमें कच्चे माल, विशेष रसायन, गैस एवं विनिर्माण उपकरण भी शामिल होंगे।
    • यह प्रारंभिक चरण के स्टार्टअप हेतु इलेक्ट्रॉनिक डिज़ाइन ऑटोमेशन (EDA) उपकरण, फाउंड्री सेवाओं और अन्य उपयुक्त तंत्र के रूप में अपेक्षित सहयोग प्रदान करके भारतीय अर्द्धचालक डिज़ाइन उद्योग के बहुमुखी विकास को सक्षम बनाएगा। 
    • यह स्वदेशी बौद्धिक संपदा (IP) उत्पादन को बढ़ावा देने एवं सुविधा प्रदान करने के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (ToT) को सक्षम और प्रोत्साहित करेगा।
    • ISM सहयोगी अनुसंधान, व्यावसायीकरण और कौशल विकास को उत्प्रेरित करने के लिये राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों, उद्योगों और संस्थानों के साथ सहयोग तथा साझेदारी कार्यक्रमों को बढ़ावा देगा। 

अर्द्धचालक उद्योग को बढ़ावा देने की आवश्यकता:

  • अर्द्धचालचालक वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख घटक है। 
  • आज तकनीक की दुनिया में जब लगभग सबकुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के इर्द-गिर्द घूमता है, ऐसे समय में इन माइक्रोचिप्स (microchips) के महत्त्व को कम नहीं आँका जा सकता है। ये इंटीग्रेटेड सर्किट (IC) के रूप में भी जाने जाते हैं, ये चिप मुख्य रूप से सिलिकॉन और जर्मेनियम से बने होते हैं।
  • इस चिप के बिना स्मार्टफोन, रेडियो, टीवी, लैपटॉप, कंप्यूटर या यहाँ तक कि उन्नत चिकित्सा उपकरण भी नहीं बन सकते हैं।
  • इनका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाने के लिये किया जाता है। साथ ही ई-वाहनों के आने से अर्द्धचालकों की मांग में भारी उछाल आने की उम्मीद है।
  • कोविड-19 महामारी ने दिखा दिया है कि इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों  की मांग समय के साथ बढ़ती जाएगी।
  • परिणामस्वरूप यह एक आकर्षक उद्योग प्रतीत होता है।
    • भारत में अर्द्धचालकों की खपत वर्ष 2026 तक 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2030 तक 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार करने की उम्मीद है।
  • दुनिया में कुछ ही देश हैं जो इस चिप का निर्माण करते हैं।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान और नीदरलैंड इसके अग्रणी निर्माता और निर्यातक हैं। 
    • जर्मनी भी इंटीग्रेटेड सर्किट (IC) का एक उभरता हुआ उत्पादक है।
  • अतः भारत को भी इस अवसर का ज़्यादा से ज़्यादा लाभ उठाना चाहिये।

अर्द्धचालकों से संबंधित पहलें:

  • सेमी-कंडक्टर लेबोरेटरी (SCL): 
    • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) सेमी-कंडक्टर लेबोरेटरी (SCL) के आधुनिकीकरण तथा व्यवसायीकरण हेतु आवश्यक कदम उठाएगा।
  • कंपाउंड सेमीकंडक्टर्स:
    • सरकार योजना के तहत स्वीकृत इकाइयों को पूंजीगत व्यय की 30 प्रतिशत वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।
  • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन राशि:

आगे की राह

  • सेमीकंडक्टर्स और डिस्प्ले आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स की नींव हैं जो उद्योग 4.0 के तहत डिजिटल परिवर्तन के अगले चरण का संचालन कर रहे हैं।
  • भारत के सार्वजनिक उपक्रम जैसे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड या हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड का उपयोग एक वैश्विक प्रमुख की मदद से सेमीकंडक्टर फैब फाउंड्री स्थापित करने के लिये किया जा सकता है।
  • भारत को स्वदेशी सेमीकंडक्टर्स के लक्ष्य को छोड़ने की ज़रूरत है। इसके बजाय, इसका लक्ष्य एक विश्वसनीय, बहुपक्षीय अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनने का होना चाहिये।
    • बहुपक्षीय अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये अनुकूल व्यापार नीतियाँ महत्त्वपूर्ण हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


कृषि

जूट उद्योग

प्रिलिम्स के लिये:

जूट क्षेत्र, जूट उत्पादन के लिये जलवायु स्थिति। 

मेन्स के लिये:

भारत के जूट उद्योग की क्षमता और संबंधित चिंताएंँ।

चर्चा में क्यों? 

पश्चिम बंगाल में जारी संकट के कारण कई जूट मिलें बंद हो गई हैं 

प्रमुख बिंदु 

मुद्दा:

  • मिलों द्वारा खरीद की उच्च दर: 
    • मिलें कच्चे जूट को प्रसंस्करण के बाद बेचे जाने वाली कीमतों से अधिक मूल्य पर खरीद रही हैं।
    • मिलें अपना कच्चा माल सीधे किसानों से प्राप्त नहीं करती हैं, इसके निम्नलिखित कारण हैं:
      • मिलों और किसान के बीच अत्यधिक दूरी:
        • जूट की आवश्यक मात्रा प्राप्त करने के लिये मिलों को किसानों के पास जाना होगा क्योंकि एक भी किसान पूरी मिल की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु जूट का पर्याप्त उत्पादन नहीं करता है।  
      • खरीद की बोझिल प्रक्रिया: 
        • खरीद अब बिचौलियों या व्यापारियों के माध्यम से होती है।  
        • एक मानक प्रथा के रूप में बिचौलिये अपनी सेवाओं के लिये मिलों से शुल्क लेते हैं, जिसमें किसानों से जूट की खरीद, छंटनी, बिल तैयार करना और फिर गाँठों को मिल में लाना शामिल है।
  • जमाखोरी:
    • सरकार के पास किसानों से कच्चे जूट की खरीद के लिये एक निश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) है, जो कि वित्तीय वर्ष 2022-23 हेतु 4,750 रुपए प्रति क्विंटल है।
    • हालांकि यह मिल तक 7,200 रुपए प्रति क्विंटल, अंतिम उत्पाद के लिये 6,500 प्रति क्विंटल की अधिकतम सीमा से 700 रुपए अधिक है।
  • चक्रवात का प्रभाव:
    • मई 2020 में अम्फान चक्रवात की घटना के बाद प्रमुख जूट उत्पादक राज्यों में बारिश के साथ स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक हो गई है। 
      • इन घटनाओं के कारण रकबों में कमी आई है, जिसकी वजह से पिछले वर्षों की तुलना में उत्पादन और उपज में भी कमी आई। 
    • इसके कारण वर्ष 2020-21 में जूट फाइबर की निम्न गुणवत्ता वाली किस्म का उत्पादन हुआ क्योंकि बड़े किसानों ने खेतों में जल-जमाव के परिणामस्वरूप समय से पहले ही फसल की कटाई कर दी।

संबंधित चिंताएँ:

  • चूंँकि जूट क्षेत्र देश में 3.70 लाख श्रमिकों को प्रत्यक्ष रोज़गार प्रदान करता है और लगभग 40 लाख किसान परिवारों की आजीविका में सहयोग करता है, अतः मिलों के बंद होने से श्रमिकों को प्रत्यक्ष, जबकि किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से (जिनके उत्पादन का उपयोग मिलों में किया जाता है) नुकसान होगा।
    • भारत के कुल उत्पादन में पश्चिम बंगाल, बिहार और असम का लगभग 99% हिस्सा है।

जूट क्षेत्र से संबंधित पहलें:

  •  भारत में जूट उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु सरकार की दो पहलें हैं- गोल्डन फाइबर क्रांति, जूट और मेस्टा पर प्रौद्योगिकी मिशन।
    • इसकी उच्च लागत के कारण सिंथेटिक फाइबर और पैकिंग सामग्री विशेष रूप से नायलॉन के लिये बाज़ार लुप्त हो रहा है।  
  • जूट पैकेजिंग सामग्री अधिनियम, 1987:
    • सरकार जूट पैकेजिंग सामग्री (JPM) अधिनियम के तहत लगभग 4 लाख श्रमिकों और 40 लाख किसान परिवारों के हितों की रक्षा कर रही है।
      • अधिनियम कच्चे जूट और जूट पैकेजिंग सामग्री के उत्पादन एवं उत्पादन में लगे व्यक्तियों के हितों में तथा उनसे जुड़े मामलों के लिये कुछ वस्तुओं की आपूर्ति और वितरण में जूट पैकेजिंग सामग्री के अनिवार्य उपयोग का प्रावधान करता है।
  •  जूट जियो-टेक्सटाइल (JGT): 
  • जूट स्‍मार्ट:
    • जूट स्‍मार्ट (Jute SMART) ई- कार्यक्रम: जूट क्षेत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार ने दिसंबर 2016 में जूट स्‍मार्ट ई-कार्यक्रम की शुरुआत की है जिसमें बी-ट्विल सेकिंग (B-Twill sacking) किस्‍म के टाट के बोरों की खरीद के लिये सरकारी एजेंसियों द्वारा एक समन्वित प्‍लेटफॉर्म उपलब्‍ध कराया गया है। 

जूट की कृषि के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ:

  • तापमान: 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच
  • वर्षा: लगभग 150-250 सेमी
  • मिट्टी का प्रकार: अच्छी जल निकासी वाली जलोढ़ मिट्टी।
  • उत्पादन:
    • भारत जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है जिसके बाद बांग्लादेश और चीन का स्थान आता है। 
      • हालाँकि क्षेत्र और व्यापार के मामले में बांग्लादेश भारत के 7% की तुलना में वैश्विक जूट निर्यात के तीन-चौथाई भाग का प्रतिनिधित्त्व करता है।
    • इसका उत्पादन  मुख्य रूप से पूर्वी भारत में गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा की समृद्ध जलोढ़ मिट्टी पर केंद्रित है।
    • प्रमुख जूट उत्पादक राज्यों में पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा शामिल हैं। 
  • उपयोग: 
    • इसे गोल्डन फाइबर के रूप में जाना जाता है। इसका उपयोग जूट की थैली, चटाई, रस्सी, सूत, कालीन और अन्य कलाकृतियों को बनाने में किया जाता है। 

Major-Jute-Producing-States

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

दिल्ली में विधायी शक्तियों का टकराव

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के संविधान में 69वाँ संशोधन।

मेन्स के लिये:

नई दिल्ली सरकार बनाम केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021, सहकारी संघवाद, संवैधानिक संशोधन।

चर्चा में क्यों?

दिल्ली को राज्य का दर्जा प्राप्त न होने के कारण नई दिल्ली के क्षेत्रीय प्रशासन के लिये निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल (LG-केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त) के बीच शक्तियों को लेकर लंबे समय से टकराव रहा है।

  • दोनों के बीच कई अवसरों पर विवाद हुआ है, जिसमें भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, सिविल सेवा और बिजली बोर्ड जैसी एजेंसियों पर नियंत्रण शामिल है। 
  • इसके अलावा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 में  हुआ 2021 का संशोधन बताता है कि संघर्ष की संभावना खत्म नहीं हुई है। 

Delhi-govt-again

नई दिल्ली का गवर्नेंस मॉडल:

  • संविधान की अनुसूची 1 के तहत दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश होने का दर्जा प्राप्त है जबकि संविधान के 69वें संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 239AA के तहत 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र' का नाम दिया गया है।
  • 69वें संशोधन द्वारा भारत के संविधान में अनुच्छेद 239AA को सम्मिलित किया गया, जिसने केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को एक उपराज्यपाल द्वारा प्रशासित करने की घोषणा की, जो निर्वाचित विधानसभा की सहायता एवं सलाह पर काम करता है।
    • हालाँकि 'सहायता और सलाह' खंड केवल उन मामलों से संबंधित है, जिन पर निर्वाचित विधानसभा के पास राज्यसमवर्ती सूचियों के तहत सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस तथा भूमि के अपवाद के साथ अधिकार प्राप्त हैं।
  • इसके अलावा अनुच्छेद 239AA यह भी कहता है कि उपराज्यपाल को या तो मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होता है या वह राष्ट्रपति द्वारा किसी संदर्भ में लिये गए निर्णय को लागू करने के लिये बाध्य होता है।
  • साथ ही अनुच्छेद 239AA के अनुसार, उपराज्यपाल के पास मंत्रिपरिषद के निर्णय को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करने की विशेष शक्तियाँ हैं।
  • इस प्रकार उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच इस दोहरे नियंत्रण से सत्ता-संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है।

इस मामले में न्यायपालिका की राय:

  • दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा केंद्रशासित प्रदेश के रूप में दिल्ली की स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार के पक्ष में निर्णय किया गया।
  • हालांँकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उपराज्यपाल  (Lieutenant Governor-LG) की तुलना में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियों से संबंधित कानून के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर फैसला करने हेतु मामले को एक संविधान पीठ को संदर्भित कर दिया गया।
  • संवैधानिक पीठ को संदर्भित मामले को एनसीटी बनाम यूओआई मामला, 2018 (NCT vs UOI case, 2018) के रूप में जाना जाता है। पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने NCT के प्रशासन में एक नया न्यायशास्त्रीय अध्याय के मार्ग को प्रशस्त किया। 
    • उद्देश्यपूर्ण निर्माण: न्यायालय ने उद्देश्यपूर्ण निर्माण के नियम का हवाला देते हुए कहा कि संविधान (69वांँ संशोधन) अधिनियम के पीछे उद्देश्य अनुच्छेद 239AA की व्याख्या का मार्गदर्शन करना है।
      • अर्थात् अनुच्छेद 239AA में संघवाद और लोकतंत्र के सिद्धांत शामिल हैं, जिससे अन्य केंद्रशासित प्रदेशों से भिन्न स्थिति प्रदान करने की संसदीय मंशा का पता चलता है।
    • उपराज्यपाल द्वारा सहायता और सलाह पर कार्रवाई करना: न्यायालय ने घोषणा की कि उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की "सहायता और सलाह" के अधीन कार्य करता है, यह देखते हुए कि दिल्ली विधानसभा के पास राज्य सूची में शामिल तीन विषयों को छोड़कर समवर्ती सूची में शामिल सभी विषयों पर कानून बनाने की शक्ति है।
      • उपराज्यपाल को मंत्रिपरिषद की "सहायता और सलाह" पर कार्य करना चाहिये, सिवाय इसके कि वह किसी मामले को अंतिम निर्णय के लिये राष्ट्रपति को संदर्भित करे।
    • हर मामले में लागू नही: किसी भी मामले को राष्ट्रपति को संदर्भित करने के लिये उपराज्यपाल की शक्ति, जिस पर उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच मतभेद है, के बारे में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि "किसी भी मामले" का अर्थ "हर मामले" से नहीं लगाया जा सकता है,” और ऐसा संदर्भ केवल असाधारण परिस्थितियों में ही उत्पन्न होगा। 
    • सहायक के रूप में उपराज्यपाल: उपराज्यपाल स्वयं को निर्वाचित मंत्रिपरिषद के विरोधी के रूप में प्रस्तुत करने के बजाय एक सूत्रधार के रूप में कार्य करेगा।  
    • नई दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता: साथ ही न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को संवैधानिक योजना के तहत राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।

आगे की राह 

  • संवैधानिक विश्वास के माध्यम से कार्य करना:  शीर्ष अदालत ने सही निष्कर्ष निकाला था कि संविधान और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम,1991 में निर्धारित योजना एक सहयोगी संरचना की परिकल्पना करती है जिसे केवल संवैधानिक विश्वास के माध्यम से ही साकार किया जा सकता है।
  • सब्सिडियरी का सिद्धांत (Principle of Subsidiarity) सुनिश्चित करना: सब्सिडियरी (राजकोषीय संघवाद का संस्थापक) सिद्धांत आवश्यक रूप से उपराष्ट्रीय सरकारों को सशक्त बनाता है।
    • इसलिये केंद्र सरकार को शहरी सरकारों को अधिक-से-अधिक शक्तियाँ आवंटित करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये।
    • इस संदर्भ में भारत को जकार्ता और सियोल से लेकर लंदन व पेरिस जैसे महानगरों का अनुसरण करना चाहिये जहाँ मज़बूत उप-राष्ट्रीय सरकारें कार्यरत हैं।

स्रोत: द हिंदू


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