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डेली न्यूज़

  • 02 Mar, 2021
  • 51 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2021

चर्चा में क्यों?

सर चंद्रशेखर वेंकट रमन द्वारा रमन इफेक्ट ’की खोज करने की स्मृति में हर वर्ष 28 फरवरी को  राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (National Science Day- NSD) के रूप में मनाया जाता है। वेंकट रमन को उनके इस कार्य के लिये वर्ष 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पहला राष्ट्रीय विज्ञान दिवस वर्ष 1987 में मनाया गया था।

प्रमुख बिंदु:

  • मूल उद्देश्य: लोगों में विज्ञान के महत्त्व और उसके अनुप्रयोग के संबंध में संदेश का प्रचार करना।
  • थीम: वर्ष 2021 के लिये राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की थीम है- एसटीआई का भविष्य (विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार): शिक्षा, कौशल, कार्य पर प्रभाव (Future of STI (Science, Technology and Innovations): Impacts on Education, Skills, and Work)।
  • आयोजन: इसका आयोजन विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय की राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद (National Council for Science & Technology Communication- NCSTC) द्वारा किया जाता है।
  • पुरस्कार वितरण
    • इस अवसर पर नेशनल एसएंडटी कम्युनिकेशन अवार्ड्स, ऑगमेंटिंग राइटिंग स्किल्स फॉर आर्टिकुलेटिंग रिसर्च (AWSAR) अवार्ड्स, एसईआरबी वुमन एक्सीलेंस अवार्ड्स तथा विज्ञान मीडिया और पत्रकारिता में उत्कृष्ट कार्य हेतु राजेंद्र प्रभु मेमोरियल एप्रिसिएशन शील्ड का वितरण किया गया।
    • भारत में एसएंडटी अवार्ड् और विदेश में भारतीय मूल के शिक्षाविदों पर पहली बार राष्ट्रीय एसएंडटी डेटाबेस जारी किया गया।
  • ऑगमेंटिंग राइटिंग स्किल्स फॉर आर्टिकुलेटिंग रिसर्च (AWSAR):
    • AWSAR एक पहल है जिसका उद्देश्य भारतीय अनुसंधान से संबंधित कहानियों को आम जनता के समझने हेतु आसान प्रारूप में प्रसारित करना है।
    • उद्देश्य:
      • अपने शोध कार्य के आधार पर कम-से-कम एक कहानी/लेख प्रस्तुत करने हेतु उच्च अध्ययन करने वाले युवाओं को प्रोत्साहित करना। 
      • लोकप्रिय विज्ञान लेखन के माध्यम से विज्ञान की समझ को बढ़ावा देना और विद्वानों के मध्य विज्ञान संचार/लोकप्रियता की संस्कृति का निर्माण करना।
      • प्राकृतिक, भौतिक, गणितीय और सूचना विज्ञान, व्यावहारिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग एवं बहु-विषयक विज्ञान के विशिष्ट पहलुओं पर शोधकर्त्ताओं की पहल और आउटपुट की पहचान करना।
      • शोधकर्त्ताओं के लिये प्रारंभिक शोध चरणों (पीएचडी स्कॉलर्स और पीडीएफ) मे  प्रशिक्षण कार्यशालाओं का संचालन करना। 
  • हालिया विकास:
    • नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (NRF): इसे नई शिक्षा नीति (New Education Policy- NEP) 2020 के तहत एक स्वायत्त निकाय के रूप में स्थापित किया जाना है।
      • यह भारत में 'अनुसंधान की गुणवत्ता' हेतु  वित्तपोषण, सलाह और निर्माण आदि  कार्यों को देखेगा । NRF भारत में विभिन्न विषयों पर कार्य करने वाले शोधकर्ताओं को निधि प्रदान करता  है।
    • राष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति (STIP 2020) का मसौदा ।

रमन प्रभाव: 

  • रमन प्रभाव अणुओं द्वारा फोटॉन कणों का लचीला प्रकीर्णन है जो उच्च कंपन या घूर्णी ऊर्जा स्तरों को प्रोत्साहित करते हैं। इसे रमन स्कैटरिंग भी कहा जाता है।
    • सरल शब्दों में यह प्रकाश की तरंगदैर्ध्य में परिवर्तन है जो प्रकाश की किरणों के अणुओं द्वारा विक्षेपित होने के कारण होता है
    • जब प्रकाश की एक किरण किसी रासायनिक यौगिक के धूल रहित एवं पारदर्शी नमूने से होकर गुज़रती है तो प्रकाश का एक छोटा हिस्सा आपतित किरण की दिशा से भिन्न अन्य दिशाओं में उभरता है।
    • इस प्रकिर्णित प्रकाश के अधिकांश हिस्से का तरंगदैर्ध्य अपरिवर्तित रहता है। हालांँकि प्रकाश का एक छोटा हिस्सा ऐसा भी होता है जिसका तरंगदैर्ध्य आपतित प्रकाश के तरंगदैर्ध्य से भिन्न होता है और इसकी उपस्थिति रमन प्रभाव का परिणाम है।
  • रमन प्रभाव रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का आधार निर्मित करता  है जिसका उपयोग रसायन विज्ञानियों और भौतिकविदों द्वारा सामग्री के बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु किया जाता है।
    • स्पेक्ट्रोस्कोपी पदार्थ और विद्युत चुंबकीय विकिरण के मध्य का अध्ययन है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पाकिस्तान-श्रीलंका और भारत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने श्रीलंका का दौरा किया। यह वर्ष 2016 के बाद किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की पहली श्रीलंका यात्रा है और कोविड -19 महामारी शुरू होने के बाद से किसी देश की सरकार के प्रमुख द्वारा की गई पहली यात्रा है।

प्रमुख बिंदु:

श्रीलंका-पाकिस्तान संबंध (पृष्ठभूमि):

  • व्यापार:
    • श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच वर्ष 2005 में एक मुक्त व्यापार समझौता हुआ। पाकिस्तान दक्षिण एशिया में श्रीलंका का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
  • संस्कृति:
    • पिछले दशक में पाकिस्तान ने श्रीलंका के साथ अपने प्राचीन बौद्ध संबंधों और स्थलों के संदर्भ में सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने की कोशिश की है।
  • रक्षा सहयोग:
    • रक्षा सहयोग श्रीलंका-पाकिस्तान द्विपक्षीय संबंधों में एक मजबूत स्तंभ है।
    • वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान श्रीलंका ने पाकिस्तानी जेट विमानों को ईंधन भरने की अनुमति दी थी।
    • वर्ष 2009 में ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ (LTTE) के खिलाफ गृह युद्ध में श्रीलंका ने युद्ध के अंतिम चरण में अपने लड़ाकू पायलटों हेतु हथियारों और गोला-बारूद के लिये पाकिस्तान का रुख किया।
    • हाल ही में श्रीलंका ने पाकिस्तान के बहुराष्ट्रीय नौसैनिक अभ्यास अमन-21 में भाग लिया।

यात्रा के संबंध में:

  • रक्षा क्रेडिट लाइन सुविधा:
    • पाकिस्तान ने रक्षा क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये श्रीलंका को 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर की नई क्रेडिट लाइन प्रदान करने की पेशकश की है
  • सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा:
    • पाकिस्तान द्वारा श्रीलंका के कैंडी स्थित पेरेडेनिया विश्वविद्यालय में एशियाई संस्कृति और सभ्यताओं के अध्ययन के लिये एक केंद्र स्थापित किया जाएगा।
    • श्रीलंका ने कोलंबो में एक खेल संस्थान का नाम पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के नाम पर रखा तथा दोनों देशों के बीच क्रिकेट संबंधों पर प्रकाश डाला गया।

यात्रा का महत्त्व:

  • पाकिस्तान के संदर्भ में:
    • व्यापार संबंधों में वृद्धि:
  • श्रीलंका के संदर्भ में:
    • UNHRC में समर्थन की मांग:
      • श्रीलंका ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के सदस्य राज्यों से इस द्वीपीय राष्ट्र में मानवाधिकार को लेकर जवाबदेही और सामंजस्य पर आगामी प्रस्ताव को खारिज करने की अपील की है।
      • श्रीलंका अपने 26 वर्षीय गृह युद्ध (1983-2009) पीड़ितों को न्याय दिलाने एवं मानवाधिकारों का हनन करने वालों को पकड़ने के लिये नए प्रस्ताव का सामना कर रहा है। यह युद्ध मुख्य रूप से सिंहली प्रभुत्व वाली श्रीलंकाई सरकार और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के विद्रोही समूह के बीच एक संघर्ष था, जिसके बाद तमिल अल्पसंख्यकों के लिये एक अलग राज्य की स्थापना की उम्मीद की गई थी।
    • भारत और पाकिस्तान के साथ संतुलित संबंध:
      • इसने श्रीलंका को भारत और पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने का अवसर प्रदान किया है।
      • श्रीलंका ने अपनी संसद में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के संबोधन को इसलिये रद्द कर दिया क्योंकि इस बात की आशंका थी कि वे कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे।
    • मुस्लिम विरोधी छवि में सुधार:
      • यह यात्रा इस्लामिक देशों में श्रीलंका की छवि को हुए नुकसान में सुधार कर सकती है, क्योंकि श्रीलंका ने हाल ही में कोविड-19 से मरने वाले मुसलमानों के शवों को दफनाने से इनकार कर दिया था।
      • श्रीलंका की आबादी में लगभग 11% मुस्लिम हैं, पिछले कुछ दशकों से सिंहली बौद्धों के साथ इनके संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं, जिसकी परिणति पिछले कुछ वर्षों में दंगों एवं अशांति के रूप में हुई है।

भारत के लिये चिंता का विषय:

  • पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिशों में बाधाएँ:
    • भारत निकटतम पड़ोसी के रूप में पाकिस्तान को अब तक श्रीलंका के संदर्भ में गंभीर प्रतिद्वंद्वी नहीं मानता है।
    • हालाँकि इस यात्रा से यह संकेत मिला है कि पाकिस्तान को "अलग-थलग" करने के भारत के प्रयासों के बावजूद श्रीलंका उसका पड़ोसी मित्र है।
  • चीन से बढ़ती निकटता:
    • कोलंबो बंदरगाह पर ईस्ट कंटेनर टर्मिनल के विकास के लिये एक त्रिपक्षीय समझौते (जापान और भारत के साथ) से श्रीलंका के अलग होने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की यात्रा और जाफना के एक द्वीप पर हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा संबंधी कंपनी स्थापित करने के लिये एक चीनी कंपनी को अनुबंध प्रदान करना भारत के लिये चिंता का कारण है।
  • हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के हितों को खतरा:
    • हिंद महासागर क्षेत्र में श्रीलंका, चीन और पाकिस्तान के बीच हितों का बढ़ता सामंजस्य चिंता का विषय है।
    • हिंद महासागर के लिये भारत की रणनीतिक दृष्टि (SAGAR) की उपलब्धि में और चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति का मुकाबला करने में श्रीलंका की केंद्रीय भूमिका है।
    • श्रीलंका द्वारा पाकिस्तान को 50 मिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन ऐसे समय में प्रदान की गई है जब भारत ने नौसेना की क्षमता को मज़बूत करने के लिये पड़ोसी मालदीव को 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट लाइन प्रदान की  है और तटीय सुरक्षा के लिये मॉरीशस के साथ 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का समझौता किया है।
  • संपर्क:
    • ग्वादर बंदरगाह CPEC द्वारा चीन के झिंजियांग प्रांत से जुड़ा है, जो वर्ष 2013 में चीन द्वारा शुरू की गई महत्त्वाकांक्षी मल्टी बिलियन डॉलर की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ का एक महत्त्वपूर्ण तटीय किनारा है।
    • वर्तमान में पाकिस्तान द्वारा श्रीलंका के साथ संबंध स्थापित करने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह पर फिर से काम शुरू करने की कोशिश कर रहा है, जिसे भारत मध्य एशिया और अफगानिस्तान के लिये पाकिस्तान को दरकिनार कर एक मार्ग के रूप में देखता है।
  • पाकिस्तान द्वारा कट्टरपंथ का प्रसार:
    • भारतीय सुरक्षा संस्थाओं ने छिटपुट मात्रा में विशेष रूप से पूर्वी श्रीलंका के मुस्लिमों के कट्टरपंथीकरण में पाकिस्तान की भूमिका पर चिंता व्यक्त की है।

आगे की राह:

  • श्रीलंका ने भारत और पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को स्पष्ट रूप से संतुलित करने का प्रयत्न किया है तथा यह संकेत दिया है कि दोनों देशों के साथ उसके अलग-अलग संबंध हैं तथा भारत को श्रीलंका-पाकिस्तान संबंधों से चिंतित नहीं होना चाहिये। श्रीलंका और मालदीव के साथ वर्ष 2020 में एक त्रिपक्षीय समुद्री वार्ता को पुनर्जीवित करना इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
  • भारत को श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे द्वारा प्रस्तावित एक पुराने उपाय पर भी विचार करना चाहिये, जिसके तहत भारत के मध्य से एक ओवरलैंड आर्थिक गलियारे की बात की गई थी जो श्रीलंका को मध्य एशिया और उससे आगे के लिये एक मार्ग प्रदान करेगा।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय इतिहास

मोरारजी देसाई

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की 125वीं जयंती मनाई गई।

  • वह भारत के चौथे प्रधानमंत्री (1977-79) थे। उल्लेखनीय है कि वह प्रधानमंत्री बनने वाले पहले गैर-कॉन्ग्रेसी थे।

प्रमुख बिंदु

  • आरंभिक जीवन:
    • मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी, 1896 को भदेली गाँव में हुआ था जो वर्तमान में गुजरात के बुलसार ज़िले में है।
    • वर्ष 1918 में विल्सन सिविल सर्विस, बॉम्बे  से स्नातक करने के बाद उन्होंने 12 वर्षों तक डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्य किया।
  • स्वतंत्रता संग्राम में योगदान 
    • वर्ष 1930 में जब भारत महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गए सविनय अवज्ञा आंदोलन के मध्य चरण में था, उस समय ब्रिटिश सरकार की न्याय व्यवस्था के प्रति मोरारजी देसाई का विश्वास खत्म हो गया था और उन्होंने सरकारी सेवा से इस्तीफा देने तथा स्वतंत्रता के लिये जारी संघर्ष में शामिल होने का फैसला किया।
    • स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वह तीन बार जेल गए। वर्ष 1931 में वह अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस समिति के सदस्य बने तथा वर्ष 1937 तक गुजरात प्रदेश कॉन्ग्रेस समिति के सचिव रहे।
    • महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गए व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा अक्तूबर 1941 में छोड़ दिया गया एवं अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया।
  • राजनीतिक जीवन:
    • वर्ष 1952 में वह बॉम्बे के मुख्यमंत्री बने।
    • नवंबर 1956 में वह वाणिज्य और उद्योग मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए, इसके बाद मार्च 1958 में उन्हें वित्त विभाग का कार्यभार सौंपा गया।
    • वर्ष 1963 में कामराज योजना/प्लान के तहत उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। पंडित नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें प्रशासनिक व्यवस्था के पुनर्गठन के लिये गठित प्रशासनिक सुधार आयोग का अध्यक्ष बनने के लिये राजी किया।
      • कामराज प्लान के अनुसार, यह प्रस्ताव किया गया कि कॉन्ग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिये और अपनी सारी ऊर्जा कॉन्ग्रेस  के पुनरुद्धार हेतु समर्पित कर देनी चाहिये।
    • आपातकाल की घोषणा के दौरान 26 जून, 1975 को मोरारजी देसाई को गिरफ्तार कर लिया गया। गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन के समर्थन के लिये उन्होंने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की।
      • नवनिर्माण अंदोलन आर्थिक संकट और सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन था जिसे वर्ष 1974 में गुजरात के छात्रों और मध्यम वर्ग के लोगों द्वारा शुरू किया गया।
    • बाद में सर्वसम्मति से उन्हें संसद में जनता पार्टी के नेता के रूप में चुना गया और 24 मार्च, 1977 को उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
  • उनकी विचारधारा:
    • असमानता के खिलाफ: वह मानते थे कि जब तक गाँवों और कस्बों में रहने वाले गरीब लोग सामान्य जीवन जीने में सक्षम नहीं हैं, तब तक समाजवाद का कोई मतलब नहीं है। मोरारजी देसाई ने किसानों एवं किरायेदारों की कठिनाइयों के समाधान की दिशा में प्रगतिशील कानून बनाकर अपनी इस सोच को कार्यान्वित करने का ठोस कदम उठाया।
    • मितव्ययिता का समर्थन: उन्होंने अपनी सोच को आर्थिक नियोजन एवं वित्तीय प्रशासन से संबंधित मामलों में कार्यान्वित किया। रक्षा एवं विकास संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये उन्होंने राजस्व में वृद्धि की, अपव्यय को कम किया एवं प्रशासन पर होने वाले सरकारी खर्च में मितव्ययिता को बढ़ावा दिया। उन्होंने वित्तीय अनुशासन को लागू कर वित्तीय घाटे को अत्यंत निम्न स्तर पर रखा। उन्होंने समाज के उच्च वर्गों द्वारा किये जाने वाले फिज़ूलखर्च को प्रतिबंधित कर उसे नियंत्रित करने का प्रयास किया।
    • विधि का शासन: प्रधानमंत्री के रूप में मोरारजी देसाई यह चाहते थे कि भारत के लोगों को इस हद तक निडर बनाया जाए कि देश में कोई भी व्यक्ति, चाहे वह सर्वोच्च पद पर ही आसीन क्यों न हो, अगर कुछ गलत करता है तो कोई भी उसे उसकी गलती का अहसास करा सके। उन्होंने बार-बार यह कहा, “कोई भी, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री भी देश के कानून से ऊपर नहीं होना चाहिये”। 
    • सख्त अनुशासन: उनके लिये सच्चाई एक अवसर नहीं बल्कि विश्वास के एक मानक के रूप में थी। उन्होंने शायद ही कभी अपने सिद्धांतों को स्थिति की बाध्यता के आगे दबने दिया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

स्विट्ज़रलैंड की ‘तटस्थता’ नीति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्विट्ज़रलैंड के राजदूत ने कहा कि विश्व में बदलती राजनीतिक स्थितियों के कारण स्विट्ज़रलैंड की ‘तटस्थता’ की पारंपरिक विदेश नीति (अर्थात् स्विस तटस्थता) के प्रति एक बार पुनः आकर्षण बढ़ रहा है।

Switzerland

प्रमुख बिंदु

‘तटस्थता’ की विदेश नीति

  • इस प्रकार की विदेश नीति में कोई देश भविष्य के किसी भी युद्ध में ‘तटस्थ’ रहने की प्रतिबद्धता प्रकट करता है। एक संप्रभु राज्य जो किसी अन्य पक्ष द्वारा हमला किये जाने की स्थिति में युद्ध में प्रवेश करता है तो उसे ‘सशस्त्र तटस्थता’ की स्थिति वाला देश कहा जाता है।
  • स्थायी रूप से तटस्थ देश वह संप्रभु देश होता है, जो किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि अथवा अपनी स्वयं की घोषणा के कारण भविष्य के सभी युद्धों में तटस्थ रहने को बाध्य होता है। स्थायी रूप से ‘तटस्थ’ स्विट्ज़रलैंड इसका सबसे प्रमुख उदाहरण है। इसके अलावा आयरलैंड और ऑस्ट्रिया आदि भी इसी सूची में शामिल हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में तटस्थता के मूल्य के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रत्येक वर्ष 12 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय तटस्थता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
    • राष्ट्रीय तटस्थता नीतियों का उद्देश्य निवारक कूटनीति के उपयोग को बढ़ावा देना है, जो संयुक्त राष्ट्र का एक मुख्य कार्य है।
    • यह ‘निवारक कूटनीति’ विवादों को संघर्ष का रूप लेने से रोकने और संघर्षों के प्रसार को सीमित करने के लिये की गई राजनयिक कार्यवाही को संदर्भित करती है।

स्विट्ज़रलैंड की ‘तटस्थता’ नीति और उसका विकास

  • स्विट्ज़रलैंड अपनी ‘तटस्थता’ की नीति को लेकर काफी प्रसिद्ध है, हालाँकि उसकी इस नीति को शांतिवाद की अवधारणा मानकर भ्रमित नहीं होना चाहिये। स्विट्ज़रलैंड में पुरुषों के लिये सैन्य सेवा में शामिल होना अनिवार्य है।
  • स्विट्ज़रलैंड ने अंतिम बार तकरीबन 500 वर्ष पूर्व फ्राँसीसियों के विरुद्ध जंग में हिस्सा लिया था, जिसमें स्विट्ज़रलैंड की हार हुई थी।
  • वर्ष 1783 में पेरिस संधि के तहत स्विट्ज़रलैंड को एक ‘तटस्थ’ देश के रूप में स्वीकार किया गया था।
    • पेरिस संधि पर 3 सितंबर, 1783 को ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा द्वारा पेरिस में हस्ताक्षर किये गए थे तथा इसने आधिकारिक रूप से अमेरिकी युद्ध को समाप्त कर दिया था।
  • प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान स्विट्ज़रलैंड ने अपने निष्पक्ष रुख को बनाए रखा, इस दौरान स्विट्ज़रलैंड ने अपनी सेना जुटाई और शरणार्थियों को शरण दी, किंतु सैन्य रूप से किसी का भी पक्ष लेने से इनकार कर दिया।
  • 1920 में नवगठित ‘लीग ऑफ नेशंस’ ने आधिकारिक तौर पर स्विट्ज़रलैंड की ‘तटस्थता’ नीति को मान्यता दी और जिनेवा में अपना मुख्यालय स्थापित किया।
  • स्विट्ज़रलैंड की ‘तटस्थता’ नीति पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान तब खतरा उत्पन्न हो गया, जब स्विट्ज़रलैंड ने स्वयं को धुरी राष्ट्रों से घिरा पाया। हालाँकि तब भी स्विट्ज़रलैंड ने आक्रमण की स्थिति में प्रतिशोध का वादा कर अपनी स्वतंत्रता और ‘तटस्थता’ को बनाए रखा।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से स्विट्ज़रलैंड ने मानवीय पहलों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अधिक सक्रिय भूमिका निभाई है, किंतु सैन्य मामलों में वह तटस्थ रहा है। वह उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) या यूरोपीय संघ (UN) में कभी शामिल नहीं हुआ और केवल वर्ष 2002 में संयुक्त राष्ट्र में शामिल हुआ था।
  • 21वीं सदी में भी स्विट्ज़रलैंड मुश्किल विषयों पर वार्ता के लिये एक मार्ग प्रदान कर रहा है।
    • सीरिया, लीबिया और यमन को लेकर वार्ता जिनेवा में ही हुई थी।

भारत के लिये महत्त्व

  • भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति और स्विट्ज़रलैंड की तटस्थता की नीति के कारण दोनों देशों के बीच घनिष्ठ साझेदारी स्थापित हुई है।
  • वर्ष 1948 में दोनों देशों के बीच मैत्री संधि हुई थी। दोनों देश लोकतंत्र और बहुलवाद की भावना में विश्वास करते हैं।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन

  • परिचय
    • यह विश्व के 120 विकासशील देशों का एक मंच है, जिसमें वे देश शामिल हैं, जो औपचारिक तौर पर विश्व की किसी भी बड़ी महाशक्ति के गुट में शामिल नहीं हैं।
  • पृष्ठभूमि
    • इस समूह की शुरुआत वर्ष 1961 में बेलग्रेड, यूगोस्लाविया में हुई थी।
    • इस समूह का गठन यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज़ टिटो, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के दूसरे राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर, घाना के पहले राष्ट्रपति क्वामे नक्रमा और इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो द्वारा किया गया था।
    • गुटनिरपेक्ष आंदोलन के गठन की प्रक्रिया में वर्ष 1955 में आयोजित बांडुंग सम्मेलन को काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
  • उद्देश्य
    • इसका उद्देश्य विश्व राजनीति में एक स्वतंत्र मार्ग का निर्माण करना है, ताकि सदस्य देश प्रमुख शक्तियों के बीच संघर्ष में मात्र प्यादा बनकर न रह जाएँ।
    • यह (1) स्वतंत्र निर्णय के अधिकार, (2) साम्राज्यवाद एवं नव-उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष और (3) वैश्विक शक्तियों के संबंध में संतुलित नीति के उपयोग को उसके दृष्टिकोण को प्रभावित करने वाले तीन मूल तत्त्वों के रूप में स्वीकारता है।
    • वर्तमान में इसका एक अतिरिक्त लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के पुनर्गठन में सहायता करना है।
  • सिद्धांत
    • मूलभूत अधिकारों और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों का सम्मान करना।
    • सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना।
    • सभी नस्लों और सभी राष्ट्रों के बीच समानता स्थापित करना, चाहे वे छोटे हों या बड़े।
    • किसी अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
    • संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुरूप स्वयं के बचाव के लिये व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से  प्रत्येक राष्ट्र के अधिकार का सम्मान करना।
    • किसी भी वैश्विक शक्ति के विशिष्ट हितों को लाभ पहुँचाने के लिये सामूहिक रक्षा संधि का उपयोग न करना।
    • किसी भी राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता या राजनीतिक स्वतंत्रता के विरुद्ध आक्रामकता और बल के उपयोग के खतरों से बचना।
    • शांतिपूर्ण ढंग से सभी अंतर्राष्ट्रीय विवादों का निपटारा करना।
    • आपसी हित और सहयोग को बढ़ावा देना।
    • न्याय और अंतर्राष्ट्रीय दायित्व का सम्मान करना।

स्रोत:द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रियाद पर हूती हमला

चर्चा में  क्यों?

हाल ही में सऊदी अरब की राजधानी रियाद पर हूती विद्रोहियों द्वारा किये गए बैलिस्टिक मिसाइल हमले को सऊदी अरब के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन द्वारा विफल कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब के नेतृत्‍व वाला सैन्‍य गठबंधन पिछले एक वर्ष से यमन के साथ संघर्षरत है।

Yemen

प्रमुख बिंदु

हालिया हमले के कारण:

  • लाभ उठाने के लिये:
    • हूती विद्रोही लगातार सफल होते जा रहे हैं, उनके विस्तार (विशेष रूप से सऊदी अरब की सीमा से लगे जॉफ प्रांत में) में अत्यधिक प्रगति हुई है।
    • अब वे उत्तर में यमन सरकार के अंतिम गढ़ मारिब शहर पर हमला करने की योजना बना रहे हैं।
  • ईरान का समर्थन:
    • हूती विद्रोहियों द्वारा लिये जा रहे निर्णयों में ईरान शामिल होता है क्योंकि वह सऊदी अरब को यमन की अराजकता में उलझाए रखना चाहता है।
    • ईरानी क्रांति के बाद पिछले 40 वर्षों से सऊदी अरब और ईरान एक-दूसरे के साथ छद्म युद्ध में संलग्न हैं। अब यमन इन संघर्ष पीड़ितों में से एक है।

पृष्ठभूमि:

  • यमन संघर्ष:
    • वर्ष 2014 से यमन बहुपक्षीय संघर्ष का सामना कर रहा है जिसमें स्थानीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अभिकर्त्ता शामिल हैं।
    • लगभग 1,000 वर्षों तक यमन में एक राज्य पर शासन करने वाले हूती नामक ज़ैदी शिया मुसलमानों के एक समूह ने लंबे समय से प्रतीक्षित चुनावों को स्थगित करने और नए संविधान पर वार्ता स्थगन के राष्ट्रपति हादी के फैसले के खिलाफ व्यापक गुस्से का इज़हार किया।
    • उन्होंने अपने गढ़ साडा प्रांत से राजधानी सना तक मार्च यानी प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति के महल को घेर लिया, इस घटना में हादी को नज़रबंद कर लिया गया।
  • सऊदी अरब द्वारा हस्तक्षेप:
    • हूती विद्रोहियों के दक्षिण में प्रसार को जारी रखने तथा सरकार के अंतिम गढ़ अदन को जीतने की धमकी के बाद हादी के अनुरोध पर सऊदी अरब के नेतृत्व में एक सैन्य गठबंधन ने मार्च 2015 में विश्व के सबसे विकट राजनीतिक संकटों में से एक को रोकने के लिये यमन में हस्तक्षेप किया।
  • संघर्ष विराम:
  • हूती हमलों की पुनः शुरुआत:

चिंताएँ:

  • यमन सामरिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोड़ने वाले एक जलडमरूमध्य पर स्थित है, जहाँ से विश्व के अधिकांश तेलवाहक जहाज़ गुज़रते हैं।
  • इस देश में व्याप्त अस्थिरता के कारण उत्पन्न खतरे (जैसे कि अल कायदा अथवा IS से जुड़े हमले) पश्चिमी देशों के लिये चिंता का विषय है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विद्रोहियों को आतंकवादियों की सूची से हटाने और छह वर्षों से जारी संघर्ष को समाप्त करने के प्रयासों के बावजूद राज्य पर हूती विद्रोहियों ने सीमा पार हमलों में वृद्धि की है।
  • इस संघर्ष को शिया शासित ईरान और सुन्नी शासित सऊदी अरब के बीच एक क्षेत्रीय शक्ति संघर्ष के हिस्से के रूप में भी देखा जाता है।

भारत के हित:

  • भारत की तेल सुरक्षा तथा इस क्षेत्र में रह रहे 8 मिलियन भारतीय प्रवासी जो भारत में प्रतिवर्ष 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की धनराशि प्रेषित करते हैं, पर विचार किया जाए तो यमन में व्याप्त अस्थिरता भारत के लिये भी एक चुनौती है।

भारत द्वारा की गई पहलें:

  • ऑपरेशन राहत
    • अप्रैल 2015 में 4000 से अधिक भारतीयों को यमन से सुरक्षित वापस लाने के लिये भारत ने व्यापक स्तर पर हवाई तथा समुद्री ऑपरेशन का संचालन किया।
  • मानवीय सहायता:
    • अतीत में भारत ने यमन को भोजन और चिकित्सा सहायता प्रदान की है तथा यमन के हज़ारों नागरिकों ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में चिकित्सा उपचार का लाभ उठाया है।
    • विभिन्न भारतीय संस्थानों में बड़ी संख्या में यमन के नागरिकों को शिक्षा की सुविधा प्रदान की जाती है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय विरासत और संस्कृति

राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव 2021 का तीसरा और अंतिम संस्करण 27 फरवरी, 2021 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में आरंभ हुआ। 

  • इस अवसर पर स्थानीय कलाकारों द्वारा विभिन्न रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए, जिनमें ‘बाउल गान’, ‘अल्कुप गान’, ‘लेटो गान’, ‘झुमुरिया’ और रंपा लोकनृत्य शामिल थे।

प्रमुख बिंदु:

  • राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव संस्कृति मंत्रालय का प्रमुख उत्सव है।
  • इसका आयोजन वर्ष 2015 से सात क्षेत्रीय संस्कृति केंद्रों (Zonal Culture Centres) की सक्रिय भागीदारी के साथ किया जा रहा है।
  • इसकी शुरुआत देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को अपने सभी समृद्ध और विविध आयामों जैसे- हस्तशिल्प, भोजन, चित्रकला, मूर्तिकला और प्रदर्शन कला- लोक, जनजातीय, शास्त्रीय एवं समकालीन सभी को एक ही स्थान पर प्रदर्शित करने के उद्देश्य से की गई थी।
  • महत्त्व:
    • यह भारत की जीवंत संस्कृति को रंगभवनों (Auditorium) और दीर्घाओं (Galleries) तक सीमित रखने के बजाय इसे जन-जन तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
    • यह अलग-अलग राज्यों में अन्य राज्यों की लोक और जनजातीय कला, नृत्य, संगीत, व्यंजन और संस्कृति को प्रदर्शित करने में मददगार रहा है, जो ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ (Ek Bharat Shreshtha Bharat)  के लक्ष्य को सुदृढ़ बनाता है 
    • इसके अलावा यह कलाकारों और कारीगरों को उनकी आजीविका में सहायता करने हेतु  एक प्रभावी मंच उपलब्ध कराता है।
    • यह लोगों (विशेष रूप से युवाओं) को उनकी स्वदेशी संस्कृति, इसकी बहुआयामी प्रकृति, भव्यता और ऐतिहासिक महत्त्व के साथ सहस्राब्दि से भारत को एक राष्ट्र के रूप में जोड़े हुए है।
  • अब तक राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव का आयोजन दिल्ली, वाराणसी, बंगलूरू, तवांग, गुजरात, कर्नाटक, टिहरी और मध्य प्रदेश आदि विभिन्न स्थानों पर किया जाता रहा है।

एक भारत श्रेष्ठ भारत

  • इस अभियान को वर्ष 2015 में विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लोगों के मध्य जुड़ाव को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया था ताकि विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के बीच आपसी समझ और संबंधों को बढ़ाया जा सके तथा भारत की एकता और अखंडता को मज़बूत किया जा सके।
  • यह शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है।
  • इस पहल के व्यापक उद्देश्य इस प्रकार हैं:
    • राष्ट्र की विविधता में एकता कायम करना तथा लोगों के मध्य पारंपरिक रूप से विद्यमान भावनात्मक बंधन को बनाए रखना और उसे मज़बूती प्रदान करना
    • सभी भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच एक वार्ता तथा बेहतर संबंध स्थापित कर राष्ट्रीय एकीकरण की भावना को बढ़ावा देना।
    • लोगों को भारत की विविधता को समझने, उसकी सराहना करने, विभिन्न राज्यों की समृद्ध विरासत और संस्कृति, रीति-रिवाजों तथा परंपराओं को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से सामान्य पहचान की भावना को बढ़ावा देना
    • लंबे समय तक काम में संलग्न होने के लिये एक ऐसा वातावरण निर्मित करना जो सर्वोत्तम प्रथाओं और अनुभवों को साझा कर विभिन्न राज्यों के मध्य सीखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देता हो।
  • देश के प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश को एक समय अवधि हेतु किसी अन्य राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के साथ जोड़ा जाएगा, इस दौरान वे भाषा, साहित्य, भोजन, त्योहारों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, पर्यटन आदि के क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ जुड़ाव महसूस करेंगे ।
  • क्षेत्रीय संस्कृति केंद्र:
  • इन केंद्रों का लक्ष्य प्राचीन भारतीय संस्कृति को मज़बूत करना और समग्र राष्ट्रीय संस्कृति को विकसित और समृद्ध करना है
  • भारत में सात क्षेत्रीय संस्कृति केंद्र (ZCC) विद्यमान हैं: 
    • पूर्वी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र, कोलकाता
    • उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, इलाहाबाद
    • उत्तर-पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, दीमापुर
    • उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला
    • दक्षिण-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर
    • दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, तंजावुर
    • पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर
  • ये केंद्र  नियमित रूप से पूरे देश में विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों और कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। 
  • इन केंद्रों द्वारा संचालित कुछ अन्य योजनाएंँ इस प्रकार है:
    • युवा प्रतिभाशाली कलाकारों को पुरस्कार
    • गुरु शिष्य परंपरा
    •  रंगमंच कायाकल्प
    •  शिल्पग्राम
    • ऑक्टेव और राष्ट्रीय सांस्कृतिक विनिमय कार्यक्रम (NCEP)

स्रोत: पी.आई.बी


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत और तकनीकी मंदी

चर्चा में क्यों?

वित्तीय वर्ष 2020-21 की तीसरी (अक्तूबर-दिसंबर) तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद दर में 0.4% की वृद्धि और विनिर्माण तथा कृषि में सुधार के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था तकनीकी मंदी (Technical Recession) से बाहर निकल गई है ।

  • गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 की अप्रैल-जून और जुलाई-सितंबर की तिमाहियों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में क्रमशः 24.4% तथा 7.3% की गिरावट ने देश की अर्थव्यवस्था को तकनीकी मंदी की स्थिति में धकेल दिया था।
  • ध्यातव्य है कि जब किसी देश की जीडीपी में एक ही वित्तीय वर्ष की लगातार दो तिमाहियों में गिरावट देखने को मिलती है, तो इस स्थिति को तकनीकी मंदी कहा जाता है।

प्रमुख बिंदु: 

विकास अनुमान: 

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने पूरे वित्तीय वर्ष (2020-21) के लिये 8% के संकुचन का अनुमान लगाया है जो कि आर्थिक सर्वेक्षण (7.7%) और भारतीय रिज़र्व बैंक (7.5%) के पूर्वानुमानों की तुलना में अधिक है। 
  • वर्तमान वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही (2020-21) के लिये वास्तविक जीडीपी में 0.4% की वृद्धि का अनुमान है। पिछले वित्तीय वर्ष की इसी तिमाही में अर्थव्यवस्था में 3.3% की दर से वृद्धि देखी गई थी।
  • अप्रैल-जून तिमाही (Q1) और जुलाई-सितंबर (Q2) के लिये अर्थव्यवस्था की संकुचन दर को क्रमशः 23.9% से 24.4% और 7.5% से 7.3% तक संशोधित किया गया था।

प्रमुख क्षेत्रों में वृद्धि:

  • उद्योग और सेवा क्षेत्र:
    • बिजली और विनिर्माण क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन के साथ उद्योग क्षेत्र ने भी पहली दो तिमाहियों में संकुचन के खिलाफ तीसरी तिमाही में 2.6% की वृद्धि दर दर्ज की। 
    • हालाँकि जीडीपी में 57% की सबसे बड़ी हिस्सेदारी के साथ सेवा क्षेत्र में अभी भी 0.9% की वार्षिक गिरावट के साथ संकुचन की स्थिति बनी हुई है। 
      • वित्तीय, अचल संपत्ति और पेशेवर सेवाओं की वृद्धि दर 6.6% रही, जिसमें पिछली तिमाही में 9.5% संकुचन तथा पिछले वर्ष की इसी अवधि में 5.5% की वृद्धि देखी गई थी।
      • खनन, व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण सेवाएँ तथा सार्वजनिक प्रशासन सेवाएँ आदि क्षेत्रों में तीसरी तिमाही के दौरान संकुचन दर्ज किया गया तथा ये नकारात्मक वृद्धि वाले क्षेत्र बने रहे।
  • कोर सेक्टर आउटपुट:
    • जनवरी 2021 में भारत के आठ प्रमुख क्षेत्रों ने उत्पादन में 0.1% की वृद्धि दर्ज की, इसमें विद्युत क्षेत्र में 5.1% की वृद्धि, उर्वरकों में 2.7% की वृद्धि और इस्पात उत्पादन में 2.6% की वृद्धि हुई, जबकि अन्य पाँच क्षेत्रों में गिरावट देखने को मिली।
    • कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद और सीमेंट में जनवरी में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई।   
    • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में आठ मुख्य उद्योगों की भागीदारी 40.27% है।
  • कृषि: 
    • अक्तूबर-दिसंबर में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.9% रही, जिसमें जुलाई-सितंबर में 3% की वृद्धि और पिछले वर्ष की इसी तिमाही के दौरान 3.4% की वृद्धि दर्ज हुई थी।

तर्क:

  • नया निवेश: 
    • निवेश की मांग (सकल स्थायी पूंजी निर्माण- GFCF) में देखी गई सकारात्मक गति तीसरी तिमाही में 2.6% बढ़ी।
      • GFCF: यह अनिवार्य रूप से निवल निवेश है। यह जीडीपी गणना की व्यय पद्धति का एक घटक है।
    • यह निवेश में वृद्धि सुनिश्चित करने हेतु आत्मनिर्भर भारत में शामिल विभिन्न पहलों के तहत सरकार के अथक प्रयासों का परिणाम है।
    • केंद्रीय बजट 2021-22 में उपलब्ध समर्थन पैकेज और 'उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन' (Production-Linked Incentive-PLI) सहित अन्य उपायों के माध्यम से आर्थिक रिकवरी हेतु एक मज़बूत वृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा। 
  • केंद्र के पूंजीगत व्यय में वृद्धि:
    • तीसरी तिमाही के दौरान सरकारी अंतिम उपभोग व्यय (GFCE) में पुनर्सुधार के लिये केंद्र के पूंजीगत व्यय में सालाना आधार पर अक्तूबर में 129%, नवंबर में 249% और दिसंबर में 62% की वृद्धि हुई।
      • GFCE एक देश की राष्ट्रीय आय पर कुल लेन-देन राशि है जो वस्तुओं और सेवाओं पर सरकारी व्यय का प्रतिनिधित्व करती है, इसे व्यक्तिगत आवश्यकताओं (व्यक्तिगत खपत) या समुदाय के सदस्यों की सामूहिक ज़रूरतों की प्रत्यक्ष संतुष्टि के लिये उपयोग किया जाता है।
  • V-शेप्ड रिकवरी:
    • तीसरी तिमाही के जीडीपी आँकड़ों ने सरकार की प्रारंभिक नीति "आजीविका पर जीवन” (lives over livelihood) की सफलता को दर्शाया है। तीव्र ‘V-शेप्ड रिकवरी’ में निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) और ‘ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन’ (GFCF) दोनों को एक अंशशोघित राजकोषीय प्रोत्साहन के संयोजन के रूप में संचालित किया गया है।
      • PFCE: इसे निवासियों और गैर-लाभकारी संस्थाओं द्वारा खर्च के रूप में परिभाषित किया गया है जो कि घरों और सेवाओं के उपभोग पर आधारित होते हैं, चाहे वे आर्थिक क्षेत्र के भीतर हों या बाहर।

अन्य आर्थिक संकेतक:. 

  • घरेलू उपभोग: आँकड़ों से पता चलता है कि तीसरी तिमाही में घरेलू खपत बढ़कर तीसरी तिमाही की जीडीपी के 58.6% पर आ गई, जबकि पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में यह 60.2% थी। 
  • सरकारी व्यय: जैसा कि GFCE में दर्शाया गया है, सरकारी खर्च दूसरी तिमाही में जीडीपी के 10% से घटकर तीसरी तिमाही में 9.8% हो गया।
  • GVA अनुमान: सकल मूल्यवर्द्धित (GVA) के संदर्भ में विकास दर, जो कि सकल घरेलू उत्पाद में से शुद्ध उत्पाद कर को घटाने से प्राप्त होती है और आपूर्ति में वृद्धि को दर्शाती है, पिछले वर्ष के 7.2% और 3.9% के अनुमानों के मुकाबले वर्ष 2020-21 में 6.5% दर्ज की गई है।

स्रोत- द हिंदू


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