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भारतीय विरासत और संस्कृति

सांस्कृतिक संरक्षण से संबंधित योजनाएँ

  • 04 Mar 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र, गुरु शिष्य परंपरा, ऑक्टेव, राष्ट्रीय सांस्कृतिक विनिमय कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

आदिवासियों की भाषा, लोकनृत्य, कला और संस्कृति को संरक्षित करने एवं बढ़ावा देने के लिये प्रारंभ की गई योजनाएँ

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने आदिवासियों की भाषा, लोकनृत्य, कला और संस्कृति को संरक्षित करने एवं बढ़ावा देने के लिये कई योजनाएँ शुरू की हैं।

मुख्य बिंदु:

  • भारत सरकार ने पटियाला, नागपुर, उदयपुर, प्रयागराज, कोलकाता, दीमापुर और तंजावुर में क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र (Zonal Cultural Centres- ZCCs) स्थापित किये हैं।
  • केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत ये ZCCs लोक/जनजातीय कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये कई योजनाएँ लागू कर रहे हैं।

क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों द्वारा प्रारंभ की गईं योजनाएँ:

युवा प्रतिभाशाली कलाकारों को पुरस्कार:

  • ‘युवा प्रतिभाशाली कलाकार’ योजना का प्रारंभ विशेष रूप से दुर्लभ कला रूपों के क्षेत्र में युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने और पहचानने के लिये किया गया है।
  • इस योजना के अंतर्गत 18-30 वर्ष आयु वर्ग के प्रतिभाशाली युवाओं को चुना जाता है और उन्हें 10,000/- रुपए का नकद पुरस्कार दिया जाता है।

गुरु शिष्य परंपरा:

  • यह योजना आने वाली पीढ़ियों के लिये हमारी मूल्यवान परंपराओं को प्रसारित करने की परिकल्पना करती है।
  • शिष्यों को कला के उन स्वरूपों में प्रशिक्षित किया जाता है जो दुर्लभ और लुप्तप्राय हैं।
  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत क्षेत्र के दुर्लभ और लुप्त हो रहे कला रूपों की पहचान की जाती है और गुरुकुलों की परंपरा में प्रशिक्षण कार्यक्रमों को पूरा करने हेतु प्रख्यात प्रशिक्षकों का चयन किया जाता है।
  • इस योजना में गुरु को 7,500 रुपए, सहयोगी को 3,750 रुपए और शिष्य को 1,500 रुपए मासिक पारिश्रमिक के तौर पर छह महीने से लेकर अधिकतम 1 वर्ष की अवधि तक दिये जाएंगे।

रंगमंच कायाकल्प:

  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत स्टेज शो और प्रोडक्शन आधारित वर्कशॉप सहित थिएटर गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये TA और DA को छोड़कर प्रति शो 30,000 रुपए का भुगतान किया जाता है।
  • इन समूहों को इनकी साख के साथ-साथ इनके द्वारा प्रस्तुत प्रोजेक्ट की योग्यता के आधार पर अंतिम रूप दिया जाएगा।

अनुसंधान और प्रलेखन:

  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य संगीत, नृत्य, रंगमंच, साहित्य, ललित कला आदि के माध्यम से क्षेत्रीय लोक कला, आदिवासी और शास्त्रीय संगीत सहित लुप्त दृश्य और प्रदर्शन कला रूपों को बढ़ावा देना और उनका प्रचार करना है।
  • राज्य सांस्कृतिक विभाग के परामर्श से कला को अंतिम रूप दिया जाता है।

शिल्पग्राम:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले कारीगरों को डिज़ाइन के विकास और विपणन सहायता के लिये संगोष्ठियों, कार्यशालाओं, प्रदर्शनियों, शिल्प मेलों का आयोजन कर क्षेत्र की लोक कला, आदिवासी कला और शिल्प को बढ़ावा देना।

ऑक्टेव (सप्तक) (Octave):

  • इस कार्यक्रम के तहत उत्तर-पूर्व क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने हेतु प्रचार प्रसार करना है जिसमें आठ राज्य- अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मिज़ोरम, सिक्किम, नगालैंड, मणिपुर और त्रिपुरा शामिल हैं।

राष्ट्रीय सांस्कृतिक विनिमय कार्यक्रम:

(National Cultural Exchange Programme-NCEP):

  • इसे क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों की जीवनरेखा कहा जा सकता है। इस योजना के तहत सदस्य राज्यों में कला प्रदर्शन, प्रदर्शनियाँ, यात्रा आदि से संबंधित विभिन्न उत्सव आयोजित किये जाते हैं।
  • अन्य क्षेत्रों/राज्यों के कलाकारों को इन कार्यक्रमों में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया जाता है।
  • देश के अन्य हिस्सों में आयोजित होने वाले समारोहों में कलाकारों को भाग लेने हेतु सुविधा प्रदान की जाती है।
  • क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र भी सदस्य राज्यों के प्रमुख त्योहारों में भाग लेते हैं, इन त्योहारों के दौरान अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं जहाँ बड़ी संख्या में दर्शकों को अन्य क्षेत्रों के कला रूपों का आनंद लेने और समझने का मौका मिलता है।
  • ये त्योहार हमारे देश की विभिन्न संस्कृतियों को समझने का अवसर प्रदान करते हैं।

साहित्य अकादमी जो कि संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन है, भाषाओं के संरक्षण और संवर्द्धन को बढ़ावा देता है, विशेषकर लोक और आदिवासी भाषाओं को।

स्रोत- पीआईबी

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