RBI और खुदरा डिजिटल रुपया
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, ई-रुपया, केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (Central Bank Digital Currency- CBDC), आभासी मुद्रा, डिजिटल भुगतान। मेन्स के लिये:ई-रुपया और आभासी मुद्राओं का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने पहले पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में खुदरा डिजिटल रुपया लॉन्च करने की घोषणा की है जिसे केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा भी कहा जाता है।
- सरकारी प्रतिभूतियों के रूप में द्वितीयक बाज़ार लेनदेन के लिये, RBI ने 01 नवंबर, 2022 को थोक बाज़ार हेतु डिजिटल रुपए की शुरुआत की थी।
इस पायलट प्रोजेक्ट के प्रमुख बिंदु:
- इस पायलट प्रोजेक्ट का प्रारंभिक चरण कुछ विशिष्ट स्थानों और बैंकों पर ध्यान केंद्रित करेगा जो भाग लेने वाले ग्राहकों और व्यापार मालिकों से बने एक सीमित उपयोगकर्त्ता समूह ( closed user group - CUG) में होंगे।
- यह पायलट प्रोजेक्ट शुरू में मुंबई, नई दिल्ली, बेंगलुरु और भुवनेश्वर जैसे शहरों को कवर करेगा, जहाँ ग्राहक और व्यापारी डिजिटल रुपए (ई-आर) या ई-रुपए का उपयोग करने में सक्षम होंगे।
- केंद्रीय बैंक के मुताबिक, यह पायलट प्रोजेक्ट वास्तविक समय (रियलटाइम) में डिजिटल रुपए के निर्माण, वितरण और खुदरा उपयोग की पूरी प्रक्रिया की मज़बूती का परीक्षण करेगा।
ई-रुपया (e-rupee):
- परिभाषा:
- RBI, CBDC को केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किये गए मुद्रा के डिजिटल संस्करण के रूप में परिभाषित करता है। देश की मौद्रिक नीति के अनुसार यह केंद्रीय बैंक (इस मामले में, RBI) द्वारा जारी एक संप्रभु या पूरी तरह से स्वतंत्र मुद्रा है।
- लीगल टेंडर:
- एक बार आधिकारिक रूप से जारी होने के बाद CBDC को तीनों पक्षों - नागरिक, सरकारी निकायों और उद्यमों द्वारा भुगतान का माध्यम एवं लीगल टेंडर माना जाएगा। सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त होने के कारण इसे किसी भी वाणिज्यिक बैंक की मुद्रा या नोटों में स्वतंत्र रूप से परिवर्तित किया जा सकता है।
- RBI ई-रुपए पर ब्याज के पक्ष में नहीं है क्योंकि लोग बैंकों से पैसे निकालकर इसे डिजिटल रुपए में बदल सकते हैं, जिससे बैंक विफल हो सकते हैं।
- क्रिप्टोकरेंसी से भिन्नता:
- क्रिप्टोकरेंसी (डिस्ट्रिब्यूटेड लेज़र) की अंतर्निहित तकनीक डिजिटल रुपया प्रणाली के कुछ आयामों को कम कर सकती है, लेकिन RBI ने अभी तक इस पर फैसला नहीं किया है। हालाँकि बिटकॉइन या एथेरियम जैसी क्रिप्टोकरेंसी प्रकृति में 'निजी' हैं। दूसरी ओर डिजिटल रुपए को RBI द्वारा जारी और नियंत्रित किया जाएगा।
- वैश्विक परिदृश्य:
- जुलाई 2022 तक करीब 105 देश CBDC पर विचार कर रहे थे। दस देशों ने CBDC की शुरुआत कर दी है जिनमें सबसे पहला है वर्ष 2020 में बहामियन सैंड डॉलर तथा सबसे नवीनतम है जमैका का JAM-DEX।
ई-रुपया के प्रकार:
- डिजिटल रुपए द्वारा किये गए उपयोग और कार्यों के आधार पर तथा पहुँच के विभिन्न स्तरों पर विचार करते हुए, RBI ने डिजिटल रुपए को दो व्यापक श्रेणियों - खुदरा और थोक में सीमांकित किया है।
- खुदरा ई-रुपया नकदी का एक इलेक्ट्रॉनिक संस्करण है जो मुख्य रूप से खुदरा लेनदेन के लिये है। यह संभावित रूप से सभी - निजी क्षेत्र, गैर-वित्तीय उपभोक्ताओं और व्यवसायों द्वारा उपयोग के लिये उपलब्ध होगा और भुगतान तथा निपटान के लिये सुरक्षित धन तक पहुँच प्रदान कर सकता है क्योंकि यह केंद्रीय बैंक की प्रत्यक्ष देयता है
- थोक CBDC को चुनिंदा वित्तीय संस्थानों तक सीमित पहुँँच के लिये डिज़ाइन किया गया है। इसमें सरकारी प्रतिभूतियों (G-sec) और पूँजी बाजार में बैंकों द्वारा किये गए वित्तीय लेनदेन के लिये निपटान प्रणालियों को परिचालन लागत, संपार्श्विक तथा तरलता प्रबंधन के उपयोग के मामले में अधिक कुशल एवं सुरक्षित बनाने की क्षमता है।
खुदरा डिजिटल रुपया:
- e₹-R एक डिजिटल टोकन के रूप में होगा जो कानूनी निविदा का प्रतिनिधित्व करता है। यह कागज़ी मुद्रा और सिक्कों के समान मूल्यवर्ग में ज़ारी किया जाएगा और मध्यस्थों यानी बैंकों के माध्यम से वितरित किया जाएगा।
- RBI के अनुसार, उपयोगकर्त्ता भाग लेने वाले बैंकों द्वारा पेश किये गए डिजिटल वॉलेट के माध्यम से e₹-R के साथ लेनदेन करने में सक्षम होंगे और मोबाइल फोन तथा उपकरणों पर संग्रहीत होंगे।
- लेनदेन व्यक्ति से व्यक्ति (P2P) और व्यक्ति से व्यापारी (P2M) दोनों हो सकते हैं।
- व्यापारियों को भुगतान स्थानों पर प्रदर्शित क्यूआर कोड का उपयोग करके किया जा सकता है।
- e₹-R में ट्रस्ट, सुरक्षा और निपटान को अंतिम रूप देने जैसी भौतिक नकदी की सुविधाएँ प्रदान की जाएँगी।
- नकदी के मामले में, यह कोई ब्याज अर्जित नहीं करेगा और इसे बैंकों के साथ धन के अन्य रूपों में परिवर्तित किया जा सकता है।
ई-रुपए के फायदे:
- भौतिक नकद प्रबंधन में शामिल परिचालन लागत में कमी, वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना, भुगतान प्रणाली में लचीलापन, दक्षता और नवीनता लाना।
- जनता को ऐसी सुविधा प्रदान करता है जो कोई भी निजी आभासी मुद्राएँ जोखिमों के बिना प्रदान कर सकती हैं।
भारत में CBDC से संबंधित मुद्दे:
- साइबर सुरक्षा:
- CBDC पारिस्थितिकी तंत्र को साइबर हमलों जैसे जोखिम हो सकते हैं जो वर्तमान भुगतान प्रणाली में पहले से मौजूद हैं।
- गोपनीयता का मुद्दा:
- CBDC से वास्तविक समय में डेटा के विशाल मात्रा के उत्पन्न होने की उम्मीद है। डेटा की गोपनीयता, इसके अज्ञात से संबंधित चिंताएँ और इसका प्रभावी उपयोग एक चुनौती होगी।
- डिजिटल अंतराल और वित्तीय निरक्षरता:
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey-NFHS)-5 ग्रामीण-शहरी विभाजन के आधार पर डेटा पृथक्करण की सुविधा भी प्रदान करता है। केवल 48.7% ग्रामीण पुरुषों और 24.6% ग्रामीण महिलाएँ इंटरनेट का उपयोग करती हैं। इसलिये CBDC डिजिटल डिवाइड के साथ-साथ वित्तीय समावेशन में लिंग आधारित बाधाओं को बढ़ा सकता है।
आगे की राह
- उन अंतर्निहित तकनीकों पर निर्णय लेने के लिये तकनीकी स्पष्टता सुनिश्चित की जानी चाहिये जिन पर सुरक्षा और स्थिरता के लिये भरोसा किया जा सकता है।
- CBDC को एक सफल पहल और आंदोलन बनाने के लिये RBI को व्यापक आधार हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी स्वीकृति बढ़ाने के लिये मांग पक्ष के बुनियादी ढाँचे तथा ज्ञान के अंतराल को दूर करना चाहिये।
- RBI को विभिन्न मुद्दों, डिज़ाइन के विचारों और डिजिटल मुद्रा की शुरुआत के निकट प्रभावों को ध्यान में रखते हुए सावधानी से आगे बढ़ना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1और 3 उत्तर: (b) प्रश्न. क्रिप्टोकरेंसी क्या है? यह वैश्विक समाज को कैसे प्रभावित करता है? क्या यह भारतीय समाज को भी प्रभावित कर रहा है? (मुख्य परीक्षा, 2021) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
न्यायपालिका में महिलाएँ
प्रिलिम्स के लिये:भारत के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट मेन्स के लिये:कम महिला प्रतिनिधियों के कारण, उच्च महिला प्रतिनिधित्त्व का महत्त्व और आगे की राह, महिलाओं से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने इतिहास में तीसरी बार महिला पीठ की नियुक्ति की गई है।
- सर्वोच्च न्यायालय में पहली बार वर्ष 2013 में तथा दूसरी बार वर्ष 2018 में महिला पीठ का निर्माण किया गया था।
न्यायपालिका में महिलाओं की स्थिति:
- पिछले 70 वर्षों के दौरान उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय में महिलाओं के लिये पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व प्रदान करने के लिये कोई महत्त्वपूर्ण प्रयास नहीं किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना के समय से अब तक केवल 11 महिला न्यायाधीश रही हैं तथा कोई भी महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं बनी हैं।
- उच्च न्यायालयों में 680 न्यायाधीशों में से मात्र 83 महिलाएँ हैं।
- अधीनस्थ न्यायाधीशों में केवल 30% महिलाएँ हैं।
कम महिला प्रतिनिधित्त्व के कारण:
- समाज में पितृसत्ता: न्यायपालिका में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्त्व का प्राथमिक कारण समाज में पितृसत्ता है।
- महिलाओं को अक्सर न्यायालयों के भीतर अपमानजनक माहौल का सामना करना पड़ता है। उत्पीड़न, बार और बेंच के सदस्यों से सम्मान की कमी, उनकी राय को अनसुना किया जाना तथा कुछ अन्य दर्दनाक अनुभव हैं जो कई महिला वकीलों द्वारा बताए जाते हैं।
- अपारदर्शी कॉलेजियम कार्यप्रणाली: प्रवेश परीक्षा के माध्यम से भर्ती की विधि के कारण प्रवेश स्तर पर अधिक महिलाएँ निचली न्यायपालिका में प्रवेश करती हैं।
- हालाँकि, उच्च न्यायपालिका में एक कॉलेजियम प्रणाली है, जो अधिक अपारदर्शी है और इसमें पूर्वाग्रह को प्रतिबिंबित करने की अधिक संभावना है।
- महिला आरक्षण नहीं होना: कई राज्यों में निचली न्यायपालिका में महिलाओं के लिये आरक्षण नीति है, जो उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में नहीं है।
- असम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और राजस्थान जैसे राज्यों को इस तरह के आरक्षण का लाभ मिला है क्योंकि उनके पास अब 40-50% महिला न्यायिक अधिकारी हैं।
- पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ उम्र और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के कारक भी अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं से उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों की पदोन्नति को प्रभावित करते हैं।
- मुकदमेबाजी में पर्याप्त महिलाएँ नहीं होना: चूँकि बार से बेंच तक पदोन्नत वकील उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों का एक महत्त्वपूर्ण अनुपात बनाते हैं, इसलिये यह ध्यान देने योग्य है कि महिला अधिवक्ताओं की संख्या अभी भी कम है, जिससे महिला न्यायाधीशों का चयन किया जा सकता है।
- न्यायिक बुनियादी ढाँचा: न्यायिक बुनियादी ढाँचा या इसकी कमी, पेशे में महिलाओं के लिये एक और बाधा है।
- छोटे, भीड़ भरे कोर्ट रूम, टॉयलेट की कमी और चाइल्डकैअर सुविधाओं का आभाव जैसी बाधाएँ शामिल हैं।
उच्च महिला प्रतिनिधित्व का महत्त्व:
- न्यायाधीशों और वकीलों के रूप में महिलाओं की उपस्थिति से न्याय वितरण प्रणाली में काफी सुधार होगा।
- महिलाएँ कानून के समक्ष अलग दृष्टिकोण प्रदर्शित करती हैं, जो उनके अनुभव पर आधारित होता है
- उनके पास पुरुषों और महिलाओं पर कुछ कानूनों के अलग-अलग प्रभावों की अधिक बारीक समझ है।
- महिला न्यायाधीश न्यायालयों की वैधता को बढ़ाती हैं, जिससे एक शक्तिशाली संदेश जाता है कि वे उन लोगों के लिये खुले और सुलभ हैं जिन्हें न्याय की आवश्यकता है।
- यौन हिंसा से जुड़े मामलों में संतुलित और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने के लिये न्यायपालिका में महिलाओं का बेहतर प्रतिनिधित्व होना चाहिये।
आगे की राह:
- उच्च न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों के रूप में महिला सदस्यों के एक निश्चित प्रतिशत के साथ लैंगिक विविधता को बनाए रखने और बढ़ावा देने की आवश्यकता है। यह भारत की लिंग-तटस्थ न्यायिक प्रणाली के विकास का नेतृत्त्व करेगी।
- समावेशिता पर बल देकर और संवेदनशील बनाकर भारत की आबादी के बीच संस्थागत, सामाजिक और व्यवहारिक परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।
- यह कानूनी पेशा, समानता के गेट कीपर के रूप में और अधिकारों के संरक्षण के लिये प्रतिबद्ध एक संस्था के रूप में लैंगिक समानता का प्रतीक होना चाहिये।
- न्यायालय एक नए परिप्रेक्ष्य के अनुसार खुद पर विचार कर सकती है और इसके लंबे समय से चली आ रही जनसांख्यिकी में बदलाव होने पर आधुनिकीकरण और सुधार की संभावना में वृद्धि हो सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. विविधता, समता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये। (2021) |
बागवानी कलस्टर विकास कार्यक्रम
प्रिलिम्स के लिये:बागवानी, क्लस्टर विकास कार्यक्रम, संबंधित पहल मेन्स के लिये:भारत का बागवानी क्षेत्र, क्लस्टर विकास कार्यक्रम और इसका महत्त्व, बागवानी के लिये सरकार की पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम (Horticulture Cluster Development Programme- CDP) के लिये एक बैठक आयोजित की गई थी।
- CDP के कार्यान्वयन की मदद से देश में बागवानी के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- बागवानी पौधे कृषि की वह शाखा है जो बगीचे की फसलों, सामान्यतः फलों, सब्जियों और सजावटी पौधों से संबंधित है।
बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम:
- परिचय:
- यह एक केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य पहचान किये गए बागवानी क्लस्टर को विकसित करना है ताकि उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाया जा सके।
- बागवानी क्लस्टर लक्षित बागवानी फसलों का क्षेत्रीय/भौगोलिक संकेंद्रण है।
- कार्यान्वयन:
- इसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB) द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।
- अरुणाचल प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिज़ोरम, झारखंड, उत्तराखंड आदि राज्यों को भी 55 क्लस्टरों की सूची में शामिल किया जाएगा, जिनकी पहचान उनके फोकस/मुख्य फसलों के साथ की जाएगी।
- इससे पहले पायलट चरण में इसे 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करने वाले 12 क्लस्टरों में लागू किया गया था।
- उद्देश्य:
- CDP का उद्देश्य लक्षित फसलों के निर्यात में लगभग 20% की वृद्धि करना और क्लस्टर फसलों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिये क्लस्टर-विशिष्ट ब्रांड बनाना है।
- भारतीय बागवानी क्षेत्र से संबंधित सभी प्रमुख मुद्दों को संबोधित करना जिसमें पूर्व-उत्पादन, उत्पादन, कटाई के बाद प्रबंधन, रसद, विपणन और ब्रांडिंग शामिल हैं।
- भौगोलिक विशेषज्ञता (Geographical Specialisation) का लाभ उठाकर बागवानी क्लस्टरों के एकीकृत तथा बाज़ार आधारित विकास को बढ़ावा देना।
- सरकार की अन्य पहलों जैसे कि कृषि अवसंरचना कोष (AIF) के साथ अभिसरण करना।
- CDP के माध्यम से बागवानी क्षेत्र में निवेश बढ़ाना।
- महत्त्व:
- क्लस्टर विकास कार्यक्रम में बागवानी उपज के कुशल और समय पर निकासी तथा परिवहन के लिये मल्टीमॉडल परिवहन के उपयोग के साथ अंतिम-मील कनेक्टिविटी (last-mile connectivity) बनाकर संपूर्ण बागवानी पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने की एक बड़ी क्षमता है।
भारत में बागवानी की स्थिति:
- स्थिति:
- बागवानी फसलों के उत्पादन में भारत विश्व स्तर पर दूसरे स्थान पर है।
- भारत आम, केला, अनार, चीकू, एसिड लाइम और आँवला जैसे फलों के उत्पादन में अग्रणी है।
- वर्ष 2021-22 में, उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल बागवानी उत्पादन में शीर्ष राज्य थे।
- सब्जी उत्पादन में शीर्ष राज्य क्रमशः पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश थे।
- फल उत्पादन में शीर्ष राज्य क्रमशः महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश थे।
- वर्ष 2021-22 में बागवानी फसलों का क्षेत्रफल बढ़कर 27.74 मिलियन हेक्टेयर हो गया और इससे लगभग 341.63 मिलियन टन उत्पादन हुआ।
- बागवानी फसलों के उत्पादन में भारत विश्व स्तर पर दूसरे स्थान पर है।
- बागवानी से संबंधित पहल:
- एकीकृत बागवानी विकास मिशन (Mission for Integrated Development of Horticulture- MIDH)
- MIDH फलों, सब्जियों और अन्य क्षेत्रों समेत बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास के लिये एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
- MIDH के तहत, भारत सरकार सभी राज्यों में विकास कार्यक्रमों के लिये कुल परिव्यय का 60% योगदान करती है (पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों को छोड़कर जहाँ भारत सरकार 90% योगदान करती है) और 40% योगदान राज्य सरकारों द्वारा दिया जाता है।
- बागवानी पर इसकी 5 प्रमुख योजनाएँ हैं:
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM)
- पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिये बागवानी मिशन (HMNEH)
- राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB))
- नारियल विकास बोर्ड (CBD) और
- केंद्रीय बागवानी संस्थान (CIH), नागालैंड
- एकीकृत बागवानी विकास मिशन (Mission for Integrated Development of Horticulture- MIDH)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. बागवानी फार्मों के उत्पादन, उत्पादकता और आय को बढ़ावा देने में राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) की भूमिका का आकलन कीजिये। यह किसानों की आय बढ़ाने में कहाँ तक सफल रही है? (2018) |
स्रोत: पी.आई.बी
GDP और GVA
प्रिलिम्स लिये:सकल घरेलू उत्पाद, सकल मूल्यवर्द्धन मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि और विकास। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (2022-23 या वित्त वर्ष 2023) के लिये भारत के आर्थिक विकास के आँकड़े जारी किये।
- भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) दूसरी तिमाही में 6.3% बढ़ा और इसी दौरान सकल मूल्यवर्द्धन (GVA) में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 5.6% वृद्धि हुई।
- विशेष रूप से भारत सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहा क्योंकि चीन ने जुलाई-सितंबर, 2022 में 3.9% की ही आर्थिक वृद्धि दर्ज की।
- GDP और GVA देश के आर्थिक प्रदर्शन का पता लगाने के दो मुख्य तरीके हैं।
GDP और GVA:
- GDP:
- सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) किसी देश की सीमाओं के भीतर एक विशिष्ट समय अवधि, आम तौर पर 1 वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है। यह एक राष्ट्र की समग्र आर्थिक गतिविधि का एक व्यापक माप है।
- चार प्रमुख "GDP विकास के इंजन":
- भारतीयों द्वारा अपने निजी उपभोग (अर्थात् निजी अंतिम उपभोग व्यय या PFCE) के लिये खर्च किया गया सारा पैसा।
- सरकार द्वारा अपने वर्तमान उपभोग पर खर्च किया गया सारा पैसा, जैसे कि वेतन [सरकारी अंतिम उपभोग व्यय या GFCE]
- अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता को बढ़ावा देने के लिये निवेश किया गया सारा पैसा। इसमें फैक्टरियों में निवेश करने वाली व्यावसायिक फर्म या सड़कों और पुलों का निर्माण करने वाली सरकारें शामिल हैं [सकल स्थायी पूंजीगत व्यय]।
- निर्यात का शुद्ध प्रभाव (विदेशियों ने हमारी वस्तुओं पर जो खर्च किया) और आयात (भारतीयों ने विदेशी वस्तुओं पर जो खर्च किया) [शुद्ध निर्यात या NX]।
- GDP की गणना:
- GDP = निजी खपत + कुल निवेश + सरकार द्वारा निवेश + सरकार द्वारा खर्च + (आयात-निर्यात)
- सकल मूल्य वर्द्धन (Gross Value Added- GVA):
- GVA आपूर्ति पक्ष के संदर्भ में राष्ट्रीय आय की गणना करता है।
- यह विभिन्न क्षेत्रों के सभी मूल्य वर्द्धन का योग करता है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, किसी क्षेत्र के GVA को आउटपुट के मूल्य में से मध्यवर्ती इनपुट के मूल्य को घटा कर प्राप्त मूल्य के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह "मूल्य वर्द्धन " उत्पादन, श्रम और पूंजी के प्राथमिक कारकों के बीच साझा किया जाता है।
- GVA वृद्धि को देखकर यह समझना आसान है कि अर्थव्यवस्था के कौन- से क्षेत्र मज़बूत है और कौन- क्षेत्र संघर्षशील है।
GDP और GVA में संबंध:
- GDP का मुख्य आधार GVA डेटा होता है।
- GDP और GVA निम्नलिखित समीकरण द्वारा संबंधित हैं: GDP = (GVA) + (सरकार द्वारा अर्जित कर)-(सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सब्सिडी) ।
- जैसे, अगर सरकार द्वारा अर्जित कर उसके द्वारा प्रदान की जाने वाली सब्सिडी से अधिक है, तो सकल घरेलू उत्पाद GVA से अधिक होगा।
- सकल घरेलू उत्पाद डेटा वार्षिक आर्थिक विकास का आकलन करने और देश के आर्थिक विकास की तुलना बीते समय अथवा किसी अन्य देश की आर्थिक विकास से करने काफी सहायक होता है।
प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
प्रश्न. किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में कर में कमी निम्नलिखित में से किसको दर्शाती है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही है। प्रश्न. संभावित सकल घरेलू उत्पाद को परिभाषित करते हुए इसके निर्धारकों की व्याख्या कीजिये। वे कौन-से कारक हैं जो भारत को अपनी संभावित GDP को साकार करने से रोक रहे हैं? (मुख्य परीक्षा, 2020) प्रश्न. वर्ष 2015 से पहले और वर्ष 2015 के बाद भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की कंप्यूटिंग पद्धति के बीच अंतर को स्पष्ट कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
वैश्विक जल संसाधन रिपोर्ट 2021: WMO
प्रिलिम्स के लिए:जलवायु परिवर्तन, जल संकट, ला नीना, सूखा, बाढ़, क्रायोस्फीयर, इंडो-गेंजेटिक मैदान। मेन्स के लिए:विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO), वैश्विक जल संसाधन रिपोर्ट 2021. |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में WMO (विश्व मौसम विज्ञान संगठन) ने अपनी पहली वार्षिक स्टेट ऑफ ग्लोबल वाटर रिसोर्सेज रिपोर्ट 2021 जारी की है।
रिपोर्ट:
- इस वार्षिक रिपोर्ट का उद्देश्य बढ़ती मांग और सीमित आपूर्ति के युग में वैश्विक ताजे जल के संसाधनों की निगरानी और प्रबंधन का समर्थन करना है।
- रिपोर्ट तीन प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित है:
- धारा प्रवाह, किसी भी समय नदी धारा के माध्यम से बहने वाले जल की मात्रा।
- स्थलीय जल भंडारण (TWS) - भूमि की सतह पर और उप-सतह में के सभी जल की मात्रा।
- हिममंडल
रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- परिचय:
- 2001 और 2018 के बीच, UN-WATER ने बताया कि सभी प्राकृतिक आपदाओं का 74% जल से संबंधित था।
- मिस्र में हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, COP27 ने सरकारों से अनुकूलन प्रयासों में जल को एकीकृत करने का आग्रह किया, पहली बार COP में जल के महत्त्व के परिणामों को दस्तावेज़ों में संदर्भित किया गया है।
- 6 अरब लोगों को प्रति वर्ष कम से कम एक महीने जल तक अपर्याप्त पहुँच है और वर्ष 2050 तक यह बढ़कर पाँच अरब से अधिक होने की उम्मीद है।
- वर्ष 2021 में विश्व के बड़े क्षेत्रों में सामान्य से अधिक शुष्क स्थिति दर्ज की गई, जो एक ऐसा वर्ष था जिसमें जलवायु परिवर्तन और ला नीना घटना से वर्षा के प्रतिरूप प्रभावित हुए थे।
- 30 साल के हाइड्रोलॉजिकल औसत की तुलना में औसत प्रवाह से कम वाला क्षेत्र औसत प्रवाह से अधिक वाले क्षेत्र की तुलना में लगभग दो गुना बड़ा था।
- क्षेत्रवार धारा प्रवाह:
- सूखा: असामान्य रूप से शुष्क क्षेत्रों में दक्षिण अमेरिका का रियो डी ला प्लाटा क्षेत्र शामिल है, जहाँ वर्ष 2019 से लगातार सूखे ने इस क्षेत्र को प्रभावित किया है।
- सामान्य से नीचे: अफ्रीका में नाइज़र, वोल्टा, नील और कांगो जैसी प्रमुख नदियों में वर्ष 2021 में औसत से कम जल प्रवाह था। यही प्रवृत्ति रूस, पश्चिम साइबेरिया और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों में नदियों में देखी गई थी।
- सामान्य से ऊपर: दूसरी ओर कुछ उत्तरी अमेरिकी बेसिनों, उत्तरी अमेज़ॅन और दक्षिण अफ्रीका के साथ-साथ चीन के अमूर नदी बेसिन एवं उत्तरी भारत में नदी जल की मात्रा सामान्य से अधिक थी।
- स्थलीय आवरण:
- सामान्य से नीचे: नदी के प्रवाह में बदलाव के अलावा, समग्र स्थलीय जल भंडारण को संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी तट पर, दक्षिण- मध्य अमेरिका और पेटागोनिया, उत्तरी अफ्रीका एवं मेडागास्कर, मध्य एशिया तथा मध्य पूर्व, पाकिस्तान और उत्तर भारत में सामान्य से नीचे के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
- सामान्य से ऊपर: यह मध्य अफ्रीका, उत्तरी दक्षिण अमेरिका विशेष रूप से अमेज़ॅन बेसिन एवं उत्तरी चीन में सामान्य से ऊपर था।
- हिममंडल:
- पहाड़ों को अक्सर प्राकृतिक "वाटर टावर्स" कहा जाता है क्योंकि वे अनुमानित रूप से 9 बिलियन लोगों के लिये नदियों और मीठे जल की आपूर्ति का स्रोत हैं।
- हिममंडल जल संसाधनों में परिवर्तन खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र की अखंडता और रखरखाव को प्रभावित करते हैं तथा आर्थिक एवं सामाजिक विकास पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
भारतीय परिदृश्य:
- पूर्वी पाकिस्तान, उत्तरी भारत, दक्षिणी नेपाल और पूरे बांग्लादेश में फैले सिंधु-गंगा के मैदान (Indo-Gangetic Plain- IGP) पर ग्लोबल वार्मिंग के कुप्रभाव देखे जा सकते हैं।
- वर्ष 2021 में कुल जल भंडारण में गिरावट आने के बावजूद गंगा-ब्रह्मपुत्र और सिंधु घाटियों में हिमनदों के पिघलने के कारण इनकी नदी धाराओं में अधिक जल का प्रवाह दर्ज किया गया।
- यह बेहद चिंताजनक खबर है क्योंकि IGP चार देशों के लगभग आधे अरब लोगों के जीवन यापन हेतु सहायक है।
सुझाव:
- मीठे जल के संसाधनों के वितरण, मात्रा और गुणवत्ता में हुए परिवर्तन संबंधी समझ पर्याप्त नहीं है, इस अंतर को समाप्त करने और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जल की उपलब्धता का संक्षिप्त विवरण प्रदान करने की आवश्यकता है।
- सूखे और बाढ़ की पूर्व चेतावनी प्रणाली के लिये एंड-टू-एंड विकास की आवश्यकता है।
- ग्लेशियर के पिघलने और उच्च जल उपलब्धता के समय का दीर्घकालिक अनुमान अनुकूलन निर्णयों के लिये महत्त्वपूर्ण इनपुट होना चाहिये।
- जल विज्ञान डेटा की उपलब्धता और साझाकरण में तेज़ी लाने की आवश्यकता है, जिसमें नदी के निर्वहन और सीमा पार नदी बेसिन की जानकारी शामिल है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO):
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) 192 देशों की सदस्यता वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है।
- भारत विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य देश है।
- इसकी उत्पत्ति अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुई है, जिसे वर्ष 1873 के वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस के बाद स्थापित किया गया था।
- 23 मार्च, 1950 को WMO कन्वेंशन के अनुसमर्थन द्वारा स्थापित WMO, मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), जल विज्ञान तथा इससे संबंधित भू-भौतिकीय विज्ञान हेतु संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी बन गई है।
- WMO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विश्व एड्स दिवस
प्रिलिम्स के लिये:विश्व एड्स दिवस, एड्स, HIV मेन्स के लिये:विश्व स्तर पर और राष्ट्रीय स्तर पर एड्स की स्थिति, एड्स, HIV, संबंधित पहल |
चर्चा में क्यों?
विश्व एड्स दिवस प्रत्येक वर्ष 01 दिसंबर को पूरी दुनिया में इस बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उन सभी लोगों को याद करने के लिये मनाया जाता है जिन्होंने इससे अपनी जान गँवाई है।
विश्व एड्स दिवस
- परिचय:
- इसकी शुरुआत वर्ष 1988 में 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' (WHO) द्वारा की गई थी और यह 'एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम' (एड्स) के बारे में जन-जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से घोषित पहला 'वैश्विक स्वास्थ्य दिवस' था।
- थीम 2022:
- ‘इक्विलाइज़ (Equalize)/ समानता
- यह HIV परीक्षण, रोकथाम और HIV देखभाल तक पहुँच में बाधाएँ पैदा करने वाली असमानताओं को खत्म करने के लिये लोगों को विश्व स्तर पर एकजुट होने हेतु प्रोत्साहित करता है।
- ‘इक्विलाइज़ (Equalize)/ समानता
- महत्त्व:
- विश्व एड्स दिवस अंतर्राष्ट्रीय समुदायों तथा सरकारों को याद दिलाता है कि HIV का अभी पूरी तरह से उन्मूलन किया जाना बाकी है। इस दिशा में अधिक धन जुटाने, जागरूकता बढ़ाने, पूर्वाग्रह को समाप्त करने और साथ ही लोगों को इस बारे में शिक्षित किया जाना महत्त्वपूर्ण है।
- यह दिवस दुनिया भर में एचआईवी ग्रसित लाखों लोगों के साथ एकजुटता दिखाने का अवसर प्रदान करता है।
एड्स (AIDS) रोग:
- परिचय:
- एड्स (अक्वायर्ड इम्युनो डेफिशिएंसी सिन्ड्रोम) एक गंभीर बीमारी है जो ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) के कारण होती है। इसमें शरीर की प्रतिरक्षा को गंभीर नुकसान पहुँचता है तथा इसके कारण किसी व्यक्ति की संक्रमण से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है।
- HIV का वायरस शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में सीडी4 (CD4) नामक श्वेत रक्त कोशिका (टी-सेल्स) पर हमला करता है।
- टी कोशिकाएँ वे कोशिकाएँ होती हैं जो शरीर की अन्य कोशिकाओं में विसंगतियों और संक्रमण का पता लगाती हैं।
- शरीर में प्रवेश करने के बाद HIV की संख्या बढ़ती जाती है और कुछ ही समय में वह CD4 कोशिकाओं को नष्ट कर देता है एवं मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाता है। विदित हो कि एक बार जब यह वायरस शरीर में प्रवेश कर जाता है, तो इसे पूर्णतः समाप्त करना काफी मुश्किल है।
- HIV से संक्रमित व्यक्ति की CD4 कोशिकाओं में काफी कमी आ जाती है। ज्ञातव्य है कि एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में इन कोशिकाओं की संख्या 500-1600 के बीच होती है, परंतु HIV से संक्रमित लोगों में CD4 कोशिकाओं की संख्या 200 से भी नीचे जा सकती है।
- प्रसार:
- एचआईवी कई स्रोतों के माध्यम से फैल सकता है एचआईवी रक्त, वीर्य (Semen) योनि स्राव (Vaginal Fluid), गुदा तरल पदार्थ (Anal Fluid) और स्तन के दूध सहित शारीरिक तरल पदार्थों के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।
- लक्षण:
- एक बार जब एचआईवी एड्स में परिवर्तित हो जाता है तो प्रारंभिक लक्षणों में बुखार, ठंड लगना, जोड़ों में दर्द, माँसपेशियों में दर्द, गले में खराश, रात में पसीना आना, ग्रंथियों का बढ़ जाना, शरीर पर लाल चकत्ते, जननांगों या गर्दन के आसपास घाव, निमोनिया, थकान, कमज़ोरी, वजन का अचानक गिरना और छाले (thrush) शामिल हैं।
- रोकथाम:
- सुरक्षात्मक तकनीकों का उपयोग करना।
- दूषित सुइयों के उपयोग से बचना।
- माँ से बच्चे में संचरण को रोकना।
- अगर किसी को अपने शरीर में संक्रमण के बारे में पता है तो सही उपचार सुनिश्चित करना।
- शादी से पहले प्री-मैरिटल टेस्ट के सेट का विकल्प चुनना जिसमें एचआईवी टेस्ट शामिल हो, यह साथ ही अन्य यौन संचारित रोगों से सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करता है।
AIDS की वैश्विक और राष्ट्रीय स्थिति:
- वैश्विक:
- HIV/AIDS पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम (UNAIDS) के अनुसार, 2021 तक, 38.4 मिलियन लोग HIV के साथ रह रहे थे, जिनमें से 1.7 मिलियन बच्चे थे।
- HIV के साथ रहने वाले सभी लोगों में से 54% महिलाएँ और लड़कियां थीं।
- HIV के साथ रहने वाले सभी लोगों में से 85% 2021 में अपनी HIV स्थिति जानते थे।
- 2021 में AIDS से संबंधित बीमारियों से 6,50,000 लोगों की मौत हुई।
- HIV/AIDS पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम (UNAIDS) के अनुसार, 2021 तक, 38.4 मिलियन लोग HIV के साथ रह रहे थे, जिनमें से 1.7 मिलियन बच्चे थे।
- राष्ट्रीय:
- UNAIDS के अनुसार, 2021 में भारत में अनुमानित 2.4 मिलियन लोग HIV के साथ रह रहे थे जिसमें 70,000 बच्चे हैं।
- महाराष्ट्र में सबसे अधिक संख्या थी, इसके बाद आंध्र प्रदेश और कर्नाटक थे।
AIDS रोग को रोकने के लिए भारत की विभिन्न पहलें:
- एचआईवी और एड्स (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017: इस अधिनियम के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारें एचआईवी या एड्स के प्रसार को रोकने के लिये उपाय करेंगी।
- ART तक पहुँच:
- भारत ने एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (ART) को दुनिया में एचआईवी के साथ रहने वाले 90 प्रतिशत से अधिक लोगों के लिये सस्ती और सुलभ बना दिया है।
- समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding- MoU):
- HIV/AIDS संबंधी जागरूकता में सुधार लाने और मादक द्रव्यों के दुरुपयोग के पीड़ितों, बच्चों और HIV/AIDS संक्रमण वालों के साथ रहने वाले लोगों के खिलाफ सामाजिक दुर्व्यवहार तथा भेदभाव को कम करने के लिये, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण तथा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने वर्ष 2019 एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया।
- प्रोजेक्ट सनराइज:
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़ते HIV के प्रसार से निपटने हेतु, विशेष रूप से ड्रग्स इंजेक्शन का प्रयोग करने वाले लोगों में इसके प्रयोग को रोकने हेतु 'प्रोजेक्ट सनराइज़' (Project Sunrise) को शुरू किया गया था।