रेलवे का विद्युतीकरण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने उत्तर-पश्चिमी रेलवे के नए विद्युतीकृत दिघावाड़ा-बांदीकुई रेल खंड का उद्घाटन किया और दिघावाड़ा स्टेशन पर आयोजित कार्यक्रम में इस नए विद्युतीकृत रेल मार्ग पर पहली ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।
प्रमुख बिंदु
- रेलवे का इतिहास:
- 1832: भारत में रेलवे को लेकर पहला प्रस्ताव मद्रास में प्रस्तुत किया गया था।
- 1837: भारत को अपनी पहली ट्रेन रेड हिल रेलवे के रूप में मिली, जिसे सड़क निर्माण हेतु ग्रेनाइट परिवहन के एकमात्र उद्देश्य के लिये शुरू किया गया था।
- 1853: अप्रैल 1853 में ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे द्वारा संचालित भारत की पहली यात्री ट्रेन बोरी बंदर (मुंबई) और ठाणे के बीच चली।
- 1925: फरवरी 1925 में भारत में पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन मुंबई में विक्टोरिया टर्मिनस और कुर्ला के बीच चलाई गई थी।
- 1951: भारतीय रेलवे का राष्ट्रीयकरण किया गया।
- वर्तमान विद्युतीकरण
- भारतीय रेलवे ने दिसंबर 2023 तक अपने ब्रॉड गेज नेटवर्क के विद्युतीकरण कार्य को पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- ब्रॉड गेज मार्ग के 66 प्रतिशत से अधिक हिस्से का विद्युतीकरण हो चुका है।
- 18065 किलोमीटर मार्ग का विद्युतीकरण कार्य पूरा करने के बाद रेलवे ने वर्ष 2009-2014 की तुलना में वर्ष 2014-20 के दौरान विद्युतीकरण में 371 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है।
- विद्युतीकरण के लाभ
- गति: शत-प्रतिशत विद्युतीकरण के परिणामस्वरूप बाधारहित ट्रेन संचालन संभव हो सकेगा और ट्रैक्शन (कर्षण) में परिवर्तन यानी डीज़ल से इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रिक से डीज़ल ट्रेक्शन में परिवर्तन के कारण ट्रेनों को रोककर रखने की प्रवृत्ति समाप्त हो सकेगी।
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ट्रैक्शन (कर्षण): किसी चीज़ को सतह पर खींचने और धकेलने की क्रिया।
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क्षमता: इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव की उच्च गति और अधिक वहन क्षमता के कारण भारतीय रेलवे की लाइन क्षमता (Line Capacity) बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- लाइन क्षमता का अभिप्राय किसी एक रेलवे खंड पर 24 घंटे में चलने वाली ट्रेनों की संख्या से है।
- सुरक्षा: बेहतर सिग्नलिंग प्रणाली के चलते ट्रेन परिचालन में सुरक्षा बढ़ेगी।
- वित्तीय बोझ में कमी: डीज़ल ट्रैक्शन की तुलना में इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन बहुत सस्ता और कुशल है, क्योंकि इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन पर चलने वाली ट्रेनें डीज़ल की तुलना में 50 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं।
- निर्बाध संचालन: उपनगरीय क्षेत्रों के लिये इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट्स (EMUs) को एक आदर्श रेल वाहन के तौर पर देखा जाता है, क्योंकि ऐसे स्थानों पर बार-बार ट्रेन रोकने और शुरू करने की आवश्यकता होती है।
- रोज़गार सृजन: अनुमान के मुताबिक रेलवे के विद्युतीकरण के शुरुआती दौर में प्रत्यक्ष रूप से तकरीबन 20.4 करोड़ मानव दिवस का सृजन किया जा सकेगा, जिससे रोज़गार में काफी बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।
- ऊर्जा सुरक्षा: शत-प्रतिशत विद्युतीकरण से जीवाश्म ईंधन की खपत में लगभग 2.83 बिलियन लीटर प्रतिवर्ष की कमी आएगी, जिससे ग्रीनहाउस गैसों (GHG) के उत्सर्जन में भी कमी आएगी। विद्युतीकरण को रेलवे में पर्यावरण के अधिक अनुकूल विकल्प माना जा सकता है।
- विद्युतीकरण के कारण वर्ष 2027-28 तक रेलवे का कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन 24 प्रतिशत तक कम हो जाएगा।
- ईंधन बिल में कमी: विद्युतीकरण के कारण ईंधन बिल में प्रतिवर्ष 13,510 करोड़ रुपए की बचत की जा सकेगी, क्योंकि डीज़ल इंजन की तुलना में इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव का रखरखाव काफी सुगम और सस्ता है।
- गति: शत-प्रतिशत विद्युतीकरण के परिणामस्वरूप बाधारहित ट्रेन संचालन संभव हो सकेगा और ट्रैक्शन (कर्षण) में परिवर्तन यानी डीज़ल से इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रिक से डीज़ल ट्रेक्शन में परिवर्तन के कारण ट्रेनों को रोककर रखने की प्रवृत्ति समाप्त हो सकेगी।
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अक्षय ऊर्जा का अधिक उपयोग
- जुलाई 2020 में भारतीय रेलवे ने अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये अपनी भूमि का उपयोग कर ऊर्जा आवश्यकताओं के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने का निर्णय लिया था।
- भारतीय रेलवे अपनी ट्रैक्शन शक्ति संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सौर ऊर्जा का उपयोग करेगी।
स्रोत: पी.आई.बी.
चीन-नेपाल द्विपक्षीय सहयोग
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीनी रक्षा मंत्री की नेपाल यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को मज़बूत करने, प्रशिक्षण एवं छात्र विनिमय कार्यक्रमों को पुनः शुरू करने आदि जैसे कई महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की गई।
प्रमुख बिंदु:
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- वर्ष 1955 में नेपाल ने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये।
- नेपाल ने वर्ष 1956 में तिब्बत को चीन के एक हिस्से के रूप में स्वीकार किया तथा वर्ष 1960 में शांति और मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किये।
- वर्ष 1970 में नेपाल के शासक राजा बीरेंद्र द्वारा नेपाल को भारत और चीन के बीच ‘शांति क्षेत्र’ के रूप में चिह्नित किये जाने के प्रस्ताव पर भारत ने अधिक रुचि नहीं दिखाई गई, जबकि चीन द्वारा इसका समर्थन किया गया। एस मुद्दे और ऐसे ही कई मामलों ने भारत तथा चीन के संबंधों में दरार पैदा की, जबकि इसी दौरान चीन नेपाल को समर्थन तथा सहयोग देने के लिये तत्पर रहा।
- भारत-नेपाल संबंधों में वर्ष 2015 में एक नया मोड़ तब आया जब भारत ने नेपाल पर एक अनौपचारिक परंतु प्रभावी नाकाबंदी लागू की, जिसके कारण नेपाल में ईंधन और दवा की भारी कमी हो गई।
- गौरतलब है कि अप्रैल-मई 2015 के दौरान आए भूकंप के बाद नेपाल और चीन के बीच हिमालय से होकर जाने वाला सड़क संपर्क मार्ग पूरी तरह बाधित हो गया है, जिसके कारण नेपाल द्वारा अपना लगभग पूरा तेल भारत के रास्ते आयात किया जाता है।
- भारत के साथ विवादों के बढ़ने के कारण ही चीन ने तिब्बत में नेपाल से लगी अपनी सीमा खोल दी।
- चीनी राष्ट्रपति की हालिया नेपाल यात्रा के बाद नेपाल ने ‘वन चाइना पॉलिसी’ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए किसी भी सेना को चीन के विरुद्ध अपने क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति न देने वादा किया है।
चीन का हित
- हालाँकि भारत और नेपाल के बीच बॉर्डर खुला होने के साथ ही लोगों को स्वतंत्र आवाजाही की अनुमति दी गई है, परंतु चीन पिछले कुछ समय से नेपाल के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार होने के भारत के दर्जे को हथियाने के लिये बढ़-चढ़ कर प्रयास कर रहा है।
- भारत दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और पिछले कुछ समय से यह दक्षिण एशियाई देशों के नेतृत्त्वकर्त्ता के रूप में उभर रहा है।
- चीन भारत की बढ़ती शक्ति और प्रतिष्ठा को रोकना चाहता है, जो कि भविष्य में चीन के एक महाशक्ति बनने के मार्ग में बाधा बन सकता है।
- तिब्बत में भारत का बढ़ता प्रभाव चीन के लिये सुरक्षा की दृष्टि से चिंता का विषय बना हुआ है।
- इसलिये दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में बनाए रखने और चीन विरोधी गतिविधियों के लिये नेपाल की भूमि के उपयोग को रोकने हेतु नेपाल के साथ सक्रिय सहयोग बनाए रखना चीन की नेपाल नीति का प्रमुख हिस्सा बन गया है।
- चीन के साथ नेपाल की उत्तरी सीमा पूरी तरह से तिब्बत से मिलती है, जिसके कारण चीन तिब्बती मामलों को नियंत्रित करने के लिये नेपाल के साथ सुरक्षा सहयोग को काफी महत्त्वपूर्ण मानता है।
नेपाल के लिये चीन का महत्त्व
- नेपाल, चीन को आवश्यक वस्तुओं का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्त्ता तथा देश की अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने के लिये एक सहायक के रूप में देखता है।
- नेपाल की लगभग आधी आबादी बेरोज़गार है और आधी से अधिक आबादी निरक्षर है। वहीं नेपाल में 30 प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
- गरीबी और बेरोज़गारी जैसी आंतरिक समस्याओं से निपटने के लिये नेपाल को चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था की सहायता की आवश्यकता है।
- चूँकि चीन को भी तिब्बत जैसे मामलों में नेपाल की सहायता की आवश्यकता है, इसलिये चीन के साथ वार्ता में नेपाल को काफी महत्त्व दिया जाता है, साथ ही इसके माध्यम से नेपाल, भारत के ‘बिग ब्रदर’ वाले दृष्टिकोण से मुकाबला कर सकता है।
- चीन-नेपाल आर्थिक गलियारे के माध्यम से नेपाल, चीन के साथ संपर्क बढ़ाकर अपने व्यापार मार्गों पर भारतीय प्रभुत्व को समाप्त अथवा कम करना चाहता है।
भारत की चिंताएँ
- चीन और नेपाल के बीच इन समीकरणों को देखते हुए भारत की सबसे बड़ी चिंता यह है कि चीन अपनी ‘सुरक्षा कूटनीति’ का उपयोग नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिये एक उपकरण के रूप में कर सकता है।
- चूँकि नेपाल भारत के लिये एक ‘बफर स्टेट’ के रूप में कार्य करता है, इसलिये इसे चीन के प्रभाव क्षेत्र में जाते देखना किसी भी प्रकार से भारत के रणनीतिक हित में नहीं होगा।
- चीन की मज़बूत वित्तीय स्थिति भारत के लिये पड़ोसी देशों में चीन के प्रभाव को नियंत्रित करना और भी चुनौतीपूर्ण बना रही है।
- चीन-नेपाल आर्थिक गलियारे के माध्यम से चीन को अपनी उपभोक्ता वस्तुओं को भारत में डंप करने का एक अन्य विकल्प मिल जाएगा, जिससे भविष्य में चीन के साथ भारत का व्यापार संतुलन और अधिक बिगड़ सकता है।
आगे की राह
- नेपाल ने भारत के साथ अपनी सीमा पर अनौपचारिक नाकाबंदी के बाद ही चीन के साथ अपने संबंधों में बढ़ोतरी की थी, ज्ञात हो कि इस नाकाबंदी के कारण नेपाल में ईंधन और दवा की भारी कमी हो गई थी।
- यद्यपि भारत के पास इस तरह की नाकाबंदी को लागू करने का पूरा अधिकार है, किंतु भारत को ऐसे कदमों से बचना चाहिये, क्योंकि यह नेपाल और उसके नागरिकों की नज़र में भारत की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है।
- आवश्यक है कि भारत, नेपाल के विकास में एक सेतु के रूप में कार्य करे और नेपाल को यह विश्वास दिलाया जाए कि भारत की विदेश नीति में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
- नेपाल के साथ अपने संबंधों के महत्त्व को देखते हुए भारत को चीन-नेपाल के मज़बूत संबंधों पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिये, खासतौर पर ऐसे समय में जब भारत-चीन की सीमा पर दोनों देशों के बीच पहले से ही तनाव बना हुआ है।
- चूँकि भारत-नेपाल की सीमा पर लोगों को स्वतंत्र आवाजाही की अनुमति है, इसलिये नेपाल को भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है, अतः भारत को नेपाल के साथ स्थिर और मैत्रीपूर्ण संबंध सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
हिडन एपिडेमिक (डायबिटीज)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘डायबेटोलोगिया’ (Diabetologia) जो मधुमेह के अध्ययन के लिये यूरोपीय संघ की एक पत्रिका है, में प्रकाशित एक नए शोध में मधुमेह के प्रति भारतीय युवाओं की भेद्यता (Vulnerability) पर प्रकाश डाला गया है।
प्रमुख बिंदु
- ‘भारत में महानगरीय शहरों में मधुमेह का लाइफटाइम रिस्क’ (Lifetime Risk of Diabetes in Metropolitan Cities in India) शीर्षक पर शोध भारत, यू.के. और यू.एस. ए. में लेखकों की एक टीम द्वारा किया गया, जिसका नेतृत्त्व शम्मी लुहार, सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं प्राथमिक देखभाल विभाग तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा किया गया।
- अध्ययन का निष्कर्ष:
- भारत में 20 वर्ष की आयु के आधे से अधिक पुरुषों (55%) और दो-तिहाई (65%) महिलाओं में मधुमेह होने की संभावना अधिक पाई जाती है, इनमें से अधिकांश मामलों में (लगभग 95%) टाइप-2 मधुमेह (Type 2 Diabetes) होने की संभावना होती है।
- टाइप-2 मधुमेह: यह मानव शरीर के इंसुलिन के उपयोग के तरीके को प्रभावित करता है। इस अवस्था में टाइप-1 के विपरीत अग्न्याशय में इंसुलिन तो बनता है लेकिन शरीर की कोशिकाएँ इस इन्सुलिन का स्वस्थ शरीर की तरह प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाती (प्रतिक्रिया नहीं देती हैं)।
- टाइप-2 मधुमेह ज़्यादातर 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में पाया जाता है।
- यह लोगों में तेज़ी से बढ़ते मोटापे (Obesity) का कारण बनता है।
- टाइप-2 मधुमेह: यह मानव शरीर के इंसुलिन के उपयोग के तरीके को प्रभावित करता है। इस अवस्था में टाइप-1 के विपरीत अग्न्याशय में इंसुलिन तो बनता है लेकिन शरीर की कोशिकाएँ इस इन्सुलिन का स्वस्थ शरीर की तरह प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाती (प्रतिक्रिया नहीं देती हैं)।
- 20 साल के पुरुषों एवं महिलाओं में मधुमेह के प्रसार से मुक्ति का लाइफटाइम रिस्क क्रमशः 56% एवं 65% होता है।
- मोटापा मधुमेह के प्रति लोगों को संवेदनशील बनता है।
- यह महानगरीय क्षेत्र के 20 साल की महिलाओं (86%) और पुरुषों (87%) में अधिक पाया जाता है।
- भारत में वर्तमान में 77 मिलियन वयस्क मधुमेह से पीड़ित हैं और यह संख्या वर्ष 2045 तक लगभग दोगुनी होकर 134 मिलियन हो सकती है।
- महिलाओं में आमतौर पर अपने पूरे जीवनकाल में मधुमेह होने का खतरा सबसे अधिक होता है।
- उम्र बढ़ने के साथ मधुमेह का खतरा कम होता जाता है। शोधकर्त्ताओं के अनुसार, जो लोग वर्तमान में 60 वर्ष की आयु के हैं और मधुमेह से मुक्त हैं, उनके शेष जीवन में मधुमेह होने की संभावना कम है।
- भारत में 20 वर्ष की आयु के आधे से अधिक पुरुषों (55%) और दो-तिहाई (65%) महिलाओं में मधुमेह होने की संभावना अधिक पाई जाती है, इनमें से अधिकांश मामलों में (लगभग 95%) टाइप-2 मधुमेह (Type 2 Diabetes) होने की संभावना होती है।
- अध्ययन के लिये डेटा स्रोत:
- वर्ष 2010 से वर्ष 2018 के मध्य ‘सेंटर फॉर कार्डियो मेटाबोलिक रिस्क रिडक्शन इन साउथ एशिया’ (Centre for Cardio metabolic Risk Reduction in South Asia) से लिये गए आँकड़ों के आधार पर शहरी भारत में मधुमेह का आकलन लिंग एवं BMI-विशिष्ट घटनाओं की दर के आधार पर किया गया।
- भारत सरकार द्वारा अधिसूचित अवधि (2014) से आयु, लिंग एवं शहरी विशिष्ट मृत्यु दर संबंधी आँकड़े।
- वर्ष 2008 से वर्ष 2015 तक ‘इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च इंडिया डायबिटीज़ स्टडी’ (Indian Council for Medical Research India Diabetes Study) से लिये गए मधुमेह के प्रसार संबंधी आँकड़े।
- मधुमेह की उच्च संभावनाओं का प्रभाव:
- देश में पहले से ही तनावग्रस्त स्वास्थ्य ढाँचे पर अतिरिक्त दबाव बढ़ेगा।
- मधुमेह के उपचार के लिये रोगियों पर अतिरिक्त जेब खर्च भी बढ़ेगा।
- उच्च मधुमेह की घटनाओं का कारण:
- शहरीकरण
- आहार की गुणवत्ता में कमी
- शारीरिक गतिविधि के स्तर में कमी
- प्रभावी जीवन-शैली द्वारा मधुमेह को रोकना जैसे:
- स्वस्थ आहार
- शारीरिक गतिविधियों में वृद्धि
- मोटे या अधिक वज़न वाले लोगों को वज़न कम करने के लिये प्रेरित करना
स्रोत: द हिंदू
दिव्यांगजन सहायता शिविर
चर्चा में क्यों:
हाल ही में 'सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री' (Minister of Social Justice and Empowerment) द्वारा दिव्यांगजन/दिव्यांगों को सहायता प्रदान करने और उन्हें उपकरणों के मुफ्त वितरण के लिये 'दिव्यांगजन सहायता’ (Assistance to Disabled Persons-ADIP) शिविर का उद्घाटन किया है।
- दिव्यांगजन का अर्थ है 'दिव्य शरीर वाला'। भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा निर्णय लिया गया है कि विकलांग व्यक्तियों को अब विकलांग व्यक्ति या विकलांग (गैर-कार्यात्मक शरीर के अंगों वाला व्यक्ति) नहीं कहा जाना चाहिये।
प्रमुख बिंदु:
- शिविर का आयोजन 'भारतीय कृत्रिम अंग विनिर्माण निगम' (ALIMCO), कानपुर द्वारा किया गया था।
- ALIMCO वर्ष 1972 में स्थापित गैर-लाभकारी 'केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम' (PSU) है, जो 'दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग' ( Department of Empowerment of Person with Disability- DEPwD) के संरक्षण में कार्य करता है।
दिव्यांगजन सहायता योजना:
इसका क्रियान्वयन वर्ष 1981 से किया जा रहा है।
परिभाषा:
- यह योजना 'विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम' {Persons with Disabilities (Equal Opportunities, Protection of Rights and Full Participation)- PWD)}, 1995 में दी गई विभिन्न प्रकार की विकलांगताओं की परिभाषा का अनुसरण करती है।
- पीडब्ल्यूडी अधिनियम को 'दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम' (Right of Persons with Disabilities Act)- 2016 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
उद्देश्य:
- ज़रूरतमंद दिव्यांगजनों को टिकाऊ, परिष्कृत और वैज्ञानिक रूप से निर्मित, आधुनिक, मानक सहायता के साथ ही उनके आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पुनर्वास को बढ़ावा देने वाले उपकरणों की खरीद में सहायता प्रदान करना ताकि विकलांगता के प्रभाव को कम किया जा सके एवं उनकी आर्थिक क्षमता को बढ़ाया जा सके।
अनुदान:
- इसके तहत आर्थिक सहायता तथा सहायक उपकरणों की खरीद एवं वितरण के लिये विभिन्न कार्यान्वयन एजेंसियों (भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम, राष्ट्रीय संस्थान, समग्र क्षेत्रीय केंद्र, ज़िला विकलांगता पुनर्वास केंद्र, राज्य विकलांग विकास निगम, गैर सरकारी संगठन इत्यादि) को अनुदान दिया जाता है।
- यदि आय 15,000 रुपए प्रतिमाह से कम हो तो आर्थिक सहायता /उपकरण खरीद की पूरी लागत वहन की जाती है और यदि आय 15,001 रुपए से 20,000 रुपए प्रतिमाह के बीच हो तो आर्थिक सहायता/उपकरण की लागत का 50% वहन किया जाता है।
अन्य संबंधित सरकारी पहलें:
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम'- 2016:
- 'दिव्यांगजन' से आशय दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी दोषों वाले व्यक्ति से है, जिससे उन्हें लोगों के मिलने-जुलने तथा समाज में अपनी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी निभाने में बाधा महसूस होती है।
सुगम्य भारत अभियान: दिव्यांगजनों के लिये सुलभ पर्यावरण का निर्माण
- यह सार्वभौमिक पहुँच को सुनिश्चित करने वाला एक राष्ट्रव्यापी फ्लैगशिप अभियान है, जो दिव्यांगजनों को समान अवसर प्रदान करने तथा स्वतंत्र रूप से जीने एवं एक समावेशी समाज में जीवन के सभी पहलुओं में पूर्ण भागीदारी निभाने में सक्षम बनाता है।
दीनदयाल विकलांग पुनर्वास योजना:
- योजना के तहत NGOs को विशेष स्कूल, व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र, समुदाय-आधारित पुनर्वास, प्री-स्कूल और प्रारंभिक हस्तक्षेप जैसी विभिन्न सेवाएँ प्रदान करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
दिव्यांग छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप:
- इसका उद्देश्य उच्च शिक्षा के लिये दिव्यांग छात्रों हेतु अवसरों को बढ़ाना और प्रतिवर्ष 200 दिव्यांग छात्रों को फैलोशिप प्रदान करना है।
विशिष्ट दिव्यांग पहचान योजना:
- इसका उद्देश्य दिव्यांगजनों के लिये एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करना और विकलांगता प्रमाण पत्र के साथ विशिष्ट विकलांगता पहचान (UDID) कार्ड जारी करना है।
- एक बार परियोजना में दिव्यांग व्यक्तियों को शामिल करने के बाद विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिये UDID कार्ड अनिवार्य कर दिया जाएगा।
सहायक उपकरण / उपकरण की खरीद / फिटिंग के लिये सहायता योजना:
- इस योजना `का उद्देश्य टिकाऊ, अनुकूलन और वैज्ञानिक रूप से निर्मित, आधुनिक, मानक सहायता और उपकरणों को खरीदने में अक्षम ज़रूरतमंद दिव्यांगजनों की सहायता करना है।
अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगता दिवस:
- यह प्रत्येक वर्ष 3 दिसंबर को पूरे विश्व में मनाया जाता है और वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 47/3 द्वारा इसकी घोषणा की गई थी।
- इसका उद्देश्य समाज और विकास के सभी क्षेत्रों में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देना तथा राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक यानी जीवन के हर पहलू में दिव्यांग व्यक्तियों की स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
मानसिक स्वास्थ्य स्थिति में सुधार के लिये पहलें:
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, जिसकी शुरुआत वर्ष 1982 में भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार लाने हेतु की गई थी।
किरण (KIRAN):
- मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास हेल्पलाइन मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से निपटने के लिये शुरू की गई थी जो ‘एक से अधिक विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय संस्थान’ (NIEPMD), तमिलनाडु और ‘राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान’ (NIMHR), मध्य प्रदेश के समन्वय से काम करता है।
स्रोत: पीआईबी
मनरेगा के तहत काम की मांग में वृद्धि
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना पोर्टल पर नवंबर माह तक उपलब्ध आँकड़ों के हालिया विश्लेषण से ज्ञात होता है कि मनरेगा (MGNREGA) के तहत कार्य की मांग में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
प्रमुख बिंदु
- यह एक मांग आधारित योजना है, जिसने कोरोना वायरस महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में वापस लौटने वाले बेरोज़गार प्रवासी श्रमिकों को आजीविका प्रदान करने में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
- आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि महामारी से संबंधित प्रतिबंधों में ढील देने के बावजूद वित्तीय वर्ष 2020-21 में पहली बार 96 प्रतिशत से अधिक ग्राम पंचायतों में योजना के तहत काम की मांग की गई है।
- चालू वित्त वर्ष के दौरान शून्य कार्यदिवस वाली ग्राम पंचायतों की कुल संख्या देश भर में 2.68 लाख यानी केवल 3.42 प्रतिशत है, जो कि बीते आठ वर्षों का सबसे निचला स्तर है।
- वर्ष 2019 की संपूर्ण अवधि में शून्य कार्यदिवस वाली ग्राम पंचायतों की कुल संख्या 2.64 लाख यानी 3.91 प्रतिशत थी।
- आँकड़ों की मानें तो अप्रैल माह की शुरुआत से नवंबर माह के अंत तक तकरीबन 6.5 करोड़ घरों (जिनमें 9.42 करोड़ लोग शामिल हैं) को मनरेगा के तहत काम प्रदान किया गया है, जो कि अब तक की सबसे अधिक संख्या है।
- इस वर्ष अब तक 265.81 करोड़ व्यक्ति दिवस उत्पन्न किये गए, जो कि वर्ष 2019 में उत्पन्न 265.44 करोड़ व्यक्ति दिवस से अधिक है।
- अक्तूबर 2020 में 1.98 करोड़ परिवारों ने इस योजना का लाभ उठाया, जो वर्ष 2019 की इसी अवधि की तुलना में 82 प्रतिशत अधिक है।
- मनरेगा (MGNREGA) के तहत काम की सबसे अधिक मांग तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में देखी गई।
- इस अवधि के दौरान वेतन व्यय भी 53,522 करोड़ रुपए पर पहुँच गया है, जो कि अब तक का सबसे अधिक वेतन व्यय है।
- तमिलनाडु में जुलाई माह के बाद से पूरे देश में इस कार्यक्रम का लाभ उठाने वाले परिवारों की संख्या सबसे अधिक है, जिसके बाद पश्चिम बंगाल का स्थान है।
- ध्यातव्य है कि ये दोनों राज्य गरीब कल्याण रोज़गार अभियान के तहत शामिल नहीं थे।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (NREGS)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (NREGA-नरेगा) के रूप में प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 2010 में नरेगा (NREGA) का नाम बदलकर मनरेगा (MGNREGA) कर दिया गया।
- राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (NREGS) का प्रस्ताव इसी अधिनियम के तहत किया गया था।
- इस अधिनियम के तहत ग्रामीण भारत में प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों (18 वर्ष की आयु से अधिक) के लिये 100 दिन का गारंटीयुक्त रोज़गार का प्रावधान किया गया है, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आजीविका सुरक्षा प्रदान की जा सके।
- योजना के तहत केंद्र सरकार अकुशल श्रम की पूरी लागत और सामग्री की लागत का 75 प्रतिशत हिस्सा (शेष राज्यों द्वारा वहन किया जाता है) वहन करती है।
- यह एक मांग-संचालित सामाजिक सुरक्षा योजना है जिसका उद्देश्य ‘काम के अधिकार’ को मूर्त रूप प्रदान करना है।
- केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से इस योजना के कार्यान्वयन की निगरानी की जाती है।
गरीब कल्याण रोज़गार अभियान
- इस अभियान की शुरुआत जून 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अपने गृह राज्यों में लौटे प्रवासी श्रमिकों और ग्रामीण नागरिकों को आजीविका के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी।
- यह कुल 125 दिनों का अभियान था, जिसे कुल 50,000 हज़ार करोड़ रुपए की लागत से मिशन मोड में संचालित किया गया था।
- इस अभियान के तहत छह राज्यों यथा- बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड तथा ओडिशा से कुल 116 ज़िलों को चुना गया था।
- आँकड़ों के अनुसार, इन ज़िलों में लॉकडाउन के कारण वापस लौटे प्रवासी श्रमिकों की संख्या सबसे अधिक थी।
- अभियान के तहत चुने गए कुल ज़िलों में 27 आकांक्षी ज़िले (aspirational districts) भी शामिल थे।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
इन्फ्लूएंज़ा और बैक्टीरियल संक्रमण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट (Sweden’s Karolinska Institute) में हुए शोधों ने सुपर संक्रमण (Super Infections) पर कुछ निष्कर्ष निकाले हैं और इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि इन्फ्लूएंज़ा लोगों को जीवाणु संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।
प्रमुख बिंदु
- सुपर संक्रमण (Super Infections): यह ‘पूर्व संक्रमण’ के बाद होने वाला एक संक्रमण है, यह विशेष रूप से व्यापक स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक (Broad-Spectrum Antibiotics) दवाओं से उपचार के बाद होता है। यह एंटीबायोटिक दवाओं से होने वाले जीवाणु या किण्व (Yeast) असंतुलन के कारण बहुत तेज़ी से वृद्धि करता है।
- उदाहरण के लिये इन्फ्लूएंज़ा एक वायरस के कारण होता है, लेकिन इन्फ्लूएंज़ा रोगियों में मृत्यु का सबसे आम कारण द्वितीयक निमोनिया (Pneumonia) है, जो बैक्टीरिया के कारण होता है।
- हालाँकि बैक्टीरियल निमोनिया के बढ़ते जोखिम के कारण इन्फ्लूएंज़ा संक्रमण के पीछे का कारण ज्ञात नहीं है।
- उदाहरण के लिये इन्फ्लूएंज़ा एक वायरस के कारण होता है, लेकिन इन्फ्लूएंज़ा रोगियों में मृत्यु का सबसे आम कारण द्वितीयक निमोनिया (Pneumonia) है, जो बैक्टीरिया के कारण होता है।
- स्पेनिश फ्लू की केस स्टडी:
- यह एक इन्फ्लूएंज़ा महामारी थी जो वर्ष 1918-1920 में दुनिया भर में फैली।
- इससे मरने वाले लोगों की संख्या में सबसे अधिक संख्या युवा स्वस्थ वयस्कों की थी और इसका प्रमुख कारण बैक्टीरिया, विशेष रूप से न्यूमोकोकी (Pneumococci) के कारण होने वाला सुपर इंफेक्शन (Superinfection) था।
- ‘न्यूमोकोकल संक्रमण’ (Pneumococcal Infections) समुदाय द्वारा अधिगृहीत निमोनिया और मृत्यु का एक प्रमुख वैश्विक कारण है।
- एक अग्रिम इन्फ्लूएंज़ा वायरस संक्रमण अक्सर एक न्यूमोकोकल संक्रमण के बाद होता है।
- अनुसंधान से प्राप्त निष्कर्ष:
- जब कोई व्यक्ति इन्फ्लूएंज़ा से संक्रमित होता है तो उसके रक्त से विभिन्न पोषक तत्त्वों एवं एंटीऑक्सीडेंट जैसे- विटामिन C का रिसाव होता है।
- पोषक तत्त्वों और एंटीऑक्सीडेंट की अनुपस्थिति फेफड़ों में बैक्टीरिया के लिये अनुकूल वातावरण बनाती है।
- बैक्टीरिया हाई टेम्परेचर रिक्वायरमेंट्स A (High Temperature Requirement A -HtrA) नामक एंजाइम के उत्पादन को बढ़ाकर उत्तेजक वातावरण के अनुरूप हो जाते हैं।
- HtrA की उपस्थिति प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करती है और इन्फ्लूएंज़ा-संक्रमित वायुमार्ग में बैक्टीरिया के विकास को भी बढ़ावा देती है।
- न्यूमोकोकस (Pneumococcus- एक जीवाणु जो निमोनिया एवं दिमागी बुखार के कुछ रूपों से संबंधित है) के बढ़ने की क्षमता उच्च स्तर के ऑक्सीकरणरोधी (Antioxidants) के साथ पोषक तत्त्वों से भरपूर वातावरण पर निर्भर करती है जो उच्च स्तर के ऑक्सीकरणरोधी के साथ एक वायरल संक्रमण के दौरान होता है।
- महत्त्व:
- इन परिणामों का उपयोग इन्फ्लूएंज़ा वायरस और न्यूमोकोकल बैक्टीरिया के बीच दोहरे संक्रमण के लिये नए उपचारों को खोजने हेतु किया जा सकता है।
- इसलिये एक संभावित रणनीति के तहत फेफड़ों में न्यूमोकोकल की वृद्धि को रोकने के लिये प्रोटीन अवरोधकों का उपयोग किया जा सकता है।
- यह जानकारी COVID-19 पर शोध में योगदान कर सकती है।
- हालाँकि यह अभी ज्ञात नहीं है कि क्या COVID-19 रोगी भी ऐसे माध्यमिक जीवाणु संक्रमण के प्रति संवेदनशील हैं।
- इन परिणामों का उपयोग इन्फ्लूएंज़ा वायरस और न्यूमोकोकल बैक्टीरिया के बीच दोहरे संक्रमण के लिये नए उपचारों को खोजने हेतु किया जा सकता है।
इन्फ्लूएंज़ा (Influenza)
- यह एक वायरल संक्रमण है जो श्वसन प्रणाली यानी नाक, गले और फेफड़ों को प्रभावित करता है जिसे आमतौर पर फ्लू (Flu) कहा जाता है।
लक्षण:
- बुखार, ठंड लगना, मांसपेशियों में दर्द, खाॅसी, नाक बहना, सिरदर्द और थकान आदि।
सामान्य उपचार:
- फ्लू में मुख्य रूप से रोगी को आराम और तरल पदार्थ का सेवन करने की सलाह दी जाती है ताकि शरीर संक्रमण से लड़ सके।
- पेरासिटामोल (Paracetamol) इन लक्षणों में मदद कर सकता है लेकिन गैर-स्टेरायडल सूजन-रोधी दवाओं (Non Steroidal Anti-inflammatory Drugs) से बचा जाना चाहिये। एक वार्षिक टीका इस फ्लू को रोकने और इसकी जटिलताओं को सीमित करने में मदद कर सकता है।
- छोटे बच्चों, वयस्कों, गर्भवती महिलाओं और पुरानी बीमारी या कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग इससे अधिक प्रभावित हो सकते हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
गैर-कानूनी धर्मांतरण पर उत्तर प्रदेश सरकार का अध्यादेश
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गैर-कानूनी धर्मांतरण की समस्या से निपटने के लिये एक अध्यादेश जारी किया गया है, जिसके तहत विवाह के लिये धर्मांतरण को गैर-जमानती अपराध घोषित करते हुए कारावास के साथ आर्थिक दंड का भी प्रावधान किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म पविर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020:
- इस अध्यादेश के तहत विवाह के लिये धर्मांतरण को गैर-जमानती अपराध घोषित कर दिया गया है तथा इसके तहत प्रतिवादी को यह प्रमाणित करना होगा कि धर्मांतरण विवाह के उद्देश्य से नहीं किया गया था।
- इस अध्यादेश के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को धर्मांतरण के लिये दो माह पूर्व ज़िला मजिस्ट्रेट को एक नोटिस देना होगा।
- यदि किसी मामले में एक महिला द्वारा केवल विवाह के उद्देश्य से ही धर्म परिवर्तन किया जाता है, तो ऐसे विवाह को अमान्य घोषित कर दिया जाएगा।
- इस अध्यादेश के प्रावधानों के उल्लंघन के मामलों में आरोपी को न्यूनतम एक वर्ष के कारावास का दंड दिया जा सकता है, जिसे पाँच वर्ष के कारावास और 15 हज़ार रुपए के जुर्माने तक बढ़ाया जा सकता है।
- हालाँकि यदि किसी नाबालिक, महिला अथवा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित व्यक्ति का गैर-कानूनी तरीके से धर्मांतरण कराया जाता है तो ऐसे मामलों में कम-से-कम तीन वर्ष के कारावास का दंड दिया जा सकता है, जिसे 25,000 रुपए के ज़ुर्माने के साथ 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- इस अध्यादेश के तहत सामूहिक धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान किया गया है, सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में कम-से-कम तीन वर्ष के कारावास का दंड दिया जा सकता है, जिसे 50,000रुपए के ज़ुर्माने के साथ 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- साथ ही इसके तहत धर्मांतरण में शामिल सामाजिक संस्थानों के पंजीकरण को रद्द किये जाने का प्रावधान भी किया गया है।
विवाह और धर्मांतरण पर उच्चतम न्यायालय का मत:
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में यह स्वीकार किया है कि जीवन साथी के चयन के मामले में एक वयस्क नागरिक के अधिकार पर राज्य और न्यायालयों का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है यानी सरकार अथवा न्यायालय द्वारा इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।
- भारत एक ‘स्वतंत्र और गणतांत्रिक राष्ट्र’ है और एक वयस्क के प्रेम तथा विवाह के अधिकार में राज्य का हस्तक्षेप व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- विवाह जैसे मामले किसी व्यक्ति की निजता के अंतर्गत आते हैं, विवाह अथवा उसके बाहर जीवन साथी के चुनाव का निर्णय व्यक्ति के "व्यक्तित्व और पहचान" का हिस्सा है।
- किसी व्यक्ति द्वारा जीवन साथी चुनने का पूर्ण अधिकार कम-से-कम धर्म से प्रभावित नहीं होता है।
संबंधित पूर्व मामले:
- वर्ष 2017 का हादिया मामला:
- हादिया मामले में निर्णय देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ‘अपनी पसंद के कपड़े पहनने, भोजन करने, विचार या विचारधाराओं और प्रेम तथा जीवनसाथी के चुनाव का मामला किसी व्यक्ति की पहचान के केंद्रीय पहलुओं में से एक है।’ ऐसे मामलों में न तो राज्य और न ही कानून किसी व्यक्ति को जीवन साथी के चुनाव के बारे में कोई आदेश दे सकते हैं या न ही वे ऐसे मामलों में निर्णय लेने के लिये किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकते हैं।
के. एस. पुत्तुस्वामी निर्णय (वर्ष 2017):
- किसी व्यक्ति की स्वायत्तता से आशय जीवन के महत्त्वपूर्ण मामलों में उसकी निर्णय लेने की क्षमता से है।
लता सिंह मामला (वर्ष 1994):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि देश एक बड़े बदलाव के दौर से गुज़र रहा है और इस दौरान संविधान तभी मज़बूत बना रह सकता है जब हम अपनी संस्कृति की बहुलता तथा विविधता को स्वीकार कर लें।
- अंतर्धार्मिक विवाह से असंतुष्ट रिश्तेदार हिंसा या उत्पीड़न का सहारा लेने की बजाय सामाजिक संबंधों को तोड़ने’ का विकल्प चुन सकते हैं।
सोनी गेरी मामला, 2018:
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने न्यायाधीशों को ‘माँ की भावनाओं या पिता के अभिमान’ के आगे झुककर ‘सुपर-गार्ज़ियन’ की भूमिका निभाने से आगाह किया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट 2020 के सलामत अंसारी-प्रियंका खरवार केस:
- अपनी पसंद के साथी को चुनना या उसके साथ रहने का अधिकार नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। (अनुच्छेद-21)
- न्यायालय ने यह भी कहा कि विवाह के लिये धर्मांतरण के निर्णय को पूर्णतः अस्वीकृत करने के विचार के समर्थन से जुड़े अदालत के पूर्व फैसले वैधानिक रूप से सही नहीं हैं।
आगे की राह:
- ऐसे कानूनों को लागू करने वाली सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ये किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सीमित न करते हों और न ही इनसे राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुँचती हो; ऐसे कानूनों के लिये स्वतंत्रता और दुर्भावनापूर्ण धर्मांतरण के मध्य संतुलन बनाना बहुत ही आवश्यक है।