भूगोल
कावेरी नदी प्रदूषण तथा लॉकडाउन
प्रीलिम्स के लिये:कावेरी नदी, जल प्रदूषण के निर्धारक मेन्स के लिये:नदी प्रदूषण |
चर्चा में क्यों?
‘कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (Karnataka State Pollution Control Board- KSPCB) के अनुसार COVID-19 महामारी के कारण हाल ही में लागू किये गए 21-दिन के लॉकडाउन का कठोरता से अनुपालन के चलते पुराने मैसूर क्षेत्र में कावेरी तथा अन्य नदियों के प्रदूषण में गिरावट आई है।
मुख्य बिंदु:
- KSPCB के अनुसार, कावेरी तथा उसकी सहायक नदियों के जल की गुणवत्ता के में इतना अधिक सुधार देखा गया है कि इस प्रकार की जल गुणवत्ता इन नदियों में दशकों पूर्व पाई जाती थी।
- लॉकडाउन के दौरान औद्योगिक और धार्मिक गतिविधियों पर रोक से नदियों में प्रदूषण के स्तर को कम करने में मदद मिली है।
औद्योगिक प्रदूषक:
- नदियों में खतरनाक औद्योगिक तत्त्वों जैसे- लेड, फ्लोराइड, फेकल कॉलीफॉर्म (Faecal Coliform) तथा अन्य अत्यधिक खतरनाक निलंबित ठोस पदार्थों का स्तर बहुत अधिक था, परंतु लॉकडाउन के चलते नदियों में प्रदूषण के स्तर में काफी गिरावट आई है।
धार्मिक गतिविधियों के कारण प्रदूषण:
- प्रतिदिन कम-से-कम 3,000 लोग श्रीरंगपट्टनम नगर के विभिन्न घाटों तथा मंदिरों में जाते हैं तथा कावेरी में पौधों के पत्तों, मालाएँ, मिट्टी के घड़े, नारियल, देवताओं की तस्वीरें, कपड़े, पॉलिथीन कवर, बचे हुए भोजन तथा अन्य पूजा सामग्री को डंप करते हैं।
जल प्रदूषण:
- जल की भौतिक रासायनिक तथा जैविक विशेषताओं में हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करने वाले परिवर्तन को जल प्रदूषण कहते हैं।
जल प्रदूषण के प्रकार:
- जल प्रदूषण को उनके उत्पत्ति स्रोत के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत जा सकता है-
- औद्योगिक प्रदूषक
- कृषि जनित प्रदूषक
- नगरीय प्रदूषक
- प्राकृतिक प्रदूषक
जल प्रदूषण के निर्धारक:
- भौतिक निर्धारक:
- इसमें तापमान, घनत्व, निलंबित ठोस कण आदि शामिल हैं।
- रासायनिक निर्धारक:
- इनका निर्धारण घुलित ऑक्सीजन, जैविक ऑक्सीजन मांग, रासायनिक ऑक्सीजन मांग, अम्लता का स्तर आदि के आधार पर किया जाता है।
- जैविक निर्धारक:
- इसका निर्धारण कॉलीफॉर्म की संख्या जिसे कॉलीफॉर्म MPN (Most Probable Number) के रूप में जाना जाता है, के आधार पर किया जाता है।
आगे की राह:
- देश में जल प्रदूषण को नियंत्रित करने तथा उसकी गुणवत्ता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये वर्ष 1974 में जल प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण अधिनियम बनाया गया। जल प्रदूषण के भिन्न-भिन्न स्रोत हैं ऐसे में इनके प्रभावी नियंत्रण के लिये उत्पन्न होने वाले स्रोतों को बंद कर समुचित प्रबंधन एवं शोधन उपचार द्वारा शुद्ध किया जाना आवश्यक है।
कावेरी नदी:
- उद्गम स्थल:
- यह कर्नाटक में पश्चिमी घाट की ब्रह्मगिरी पहाड़ से निकलती है।
- अपवाह बेसिन:
- यह कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों से बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। यह नदी एक विशाल डेल्टा का निर्माण करती है, जिसे ‘दक्षिण भारत का बगीचा’ (Garden of Southern India) कहा जाता है।
- सहायक नदियाँ:
- अर्कवती, हेमवती, लक्ष्मणतीर्थ, शिमसा, काबिनी, भवानी, हरंगी आदि।
स्रोत: द हिंदू
भूगोल
मानसून-पूर्व फसल
प्रीलिम्स के लिये:मानसून-पूर्व फसल, भारत में शस्य प्रतिरूप मेन्स के लिये:भारतीय फसल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में COVID-19 महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन के चलते कर्नाटक सहित अनेक राज्यों में मानसून-पूर्व फसल (Pre-monsoon Crop) के प्रभावित होने की संभावना है।
मुख्य बिंदु:
- सामान्यतः मानसून-पूर्व फसलों की बुवाई का कार्य अप्रैल के प्रथम सप्ताह से प्रारंभ हो जाता है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार कुछ स्थानों पर बुवाई का कार्य पूरा कर लिया गया है, लेकिन यह कई स्थानों पर शुरू ही नहीं किया गया है।
- लॉकडाउन के चलते लोग घरों के अंदर रुके हुए हैं, इससे श्रम, बीज एवं उर्वरकों की आपूर्ति में कमी आई है।
- उत्तरी कर्नाटक के सिंचित क्षेत्रों में धान की बेल्ट में किसान फसल की कटाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन किसानों को श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- यद्यपि ज़िला प्रशासन का कहना है कि वह बीज और उर्वरकों की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये डीलरों के साथ लगातार काम कर रहा है।
कर्नाटक राज्य में फसल उत्पादन:
- कर्नाटक राज्य में मुख्यत: रागी तथा मक्का (खरीफ फसल) का उत्पादन किया जाता है तथा रागी उत्पादन में यह अग्रणी राज्य है। राज्य में मानसून पूर्व मौसम में हरे चने, काले चने तथा तिल की खेती मैसूर, चामराजनगर, मांड्या तथा हासन ज़िलों में की जाती है।
मानसून पूर्व फसलों का महत्त्व:
- ग्रीष्मकाल-पूर्व की फसलों की कटाई के बाद पौधों के ठूँठों (Stubs) को खेत में छोड़ दिया जाता है इससे मानसून के समय जब किसान खेत तैयार करते हैं तो इन पौधों के ठूँठ हरी खाद में बदल जाते हैं, जो मानसून फसलों के लिये लाभप्रद होते हैं। यद्यपि मानसून पूर्व फसल का कर्नाटक राज्य के कुल कृषि उत्पादन में 10% से कम योगदान है परंतु फिर भी इसका बहुत अधिक महत्त्व है।
- मानसून पूर्व की फसल वर्षा सिंचित क्षेत्रों (rain-fed regions) में शुरुआती बारिश पर निर्भर करती है, लेकिन जिन किसानों के पास अपनी सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध है वे किसान बारिश का इंतजार नहीं करते हैं।
- कृषि में उत्पादन में उचित समय पर कृषि क्रियाओं यथा- बुवाई, जुताई, तथा कटाई का बहुत अधिक महत्त्व होता है। यदि बुवाई में देरी होती है, तो इससे उपज और समग्र उत्पादकता को नुकसान होता है।
ग्रीष्म ऋतु:
- मार्च में सूर्य के कर्क रेखा की ओर आभासी बढ़त के साथ ही उत्तरी भारत में तापमान बढ़ने लगता है। अप्रैल, मई व जून में उत्तरी भारत में स्पष्ट रूप से ग्रीष्म ऋतु होती हैै। भारत के अधिकांश भागों में तापमान 30° से 32° सेल्सियस तक पाया जाता है। मार्च में दक्कन पठार पर दिन का अधिकतम तापमान 38° सेल्सियस हो जाता है, जबकि अप्रैल में गुजरात और मध्य प्रदेश में यह तापमान 38° से 43° सेल्सियस के बीच पाया जाता है। मई में ताप पेटी और अधिक उत्तर में खिसक जाती है, जिससे देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में 48° सेल्सियस के आसपास तापमान का होना असामान्य बात नहीं है।
- दक्षिणी भारत में ग्रीष्म ऋतु मृदु होती है तथा उत्तरी भारत जैसी प्रखर नहीं होती। दक्षिणी भारत की प्रायद्वीपीय स्थिति समुद्र के समकारी प्रभाव के कारण यहाँ के तापमान को उत्तरी भारत में प्रचलित तापमानों से नीचे रखती है। अतः दक्षिण में तापमान 26° से 32° सेल्सियस के बीच रहता है।
भारत में शस्य प्रतिरूप :
- कालिक संदर्भ में भारत में रबी, खरीफ और जायद तीन शस्य ऋतुएँ हैं ।
- रबी फसल:
- इनको शीत ऋतु में अक्तूबर से दिसंबर के मध्य बोया जाता है और ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है। गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों आदि मुख्य रबी की फसलें हैं।
- ये फसलें देश के विस्तृत भाग में बोई जाती हैं। उत्तर और उत्तरी पश्चिमी राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में गेहूँ और अन्य रबी फ़सलों के उत्पादन के लिये महत्त्वपूर्ण राज्य हैं।
- शीत ऋतु में शीतोष्ण पश्चिमी विक्षोभों से होने वाली वर्षा इन फ़सलों के अधिक उत्पादन में सहायक होती है।
- खरीफ फसल:
- देश के विभिन्न क्षेत्रों में मानसून के आगमन के साथ बोई जाती हैं और सितंबर-अक्तूबर में काट ली जाती हैं। इस ऋतु में बोई जाने वाली मुख्य फसलों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, तुर,अरहर, मूँग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली और सोयाबीन शामिल हैं।
- ज़ायद फसल:
- रबी और खरीफ फसल ऋतुओं के बीच ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली फसल को ज़ायद कहा जाता है। इस ऋतु में मुख्यत: तरबूज, खरबूज, खीरे, सब्जियों और चारे की फसलों की खेती की जाती है।
स्रोत: द स्रोत
शासन व्यवस्था
मज़दूरों पर केमिकल का छिड़काव
प्रीलिम्स के लिये:COVID-19, सोडियम हाइपोक्लोराइट मेन्स के लियेसोडियम हाइपोक्लोराइट की रासायनिक विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शहरों से अपने घरों को लौटने वाले प्रवासी मज़दूरों को बरेली (उत्तर प्रदेश) में प्रवेश करने से पहले उनके ऊपर रसायन का छिड़काव किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु इस तरह के रसायन का छिड़काव सभी शहरों में किया जा रहा है।
- बरेली में COVID-19 के प्रभारी नोडल अधिकारी के अनुसार, निस्संक्रामक रासायनिक घोल नहीं बल्कि केवल क्लोरीन और पानी का मिश्रण था। हालाँकि, बरेली के चिकित्सा अधिकारी के अनुसार, प्रवासी मज़दूरों पर सोडियम हाइपोक्लोराइट (Sodium Hypochlorite) घोल का छिड़काव किया गया था।
- संपूर्ण घटनाक्रम पर यह तर्क दिया गया कि सरकार द्वारा चलाई गई विशेष बसों से आने वाले प्रवासियों की सुरक्षा के लिये केमिकल का छिड़काव किया गया क्योंकि यह बीमारी के संभावित प्रसार को रोकने हेतु आवश्यक था।
सोडियम हाइपोक्लोराइट (Sodium Hypochlorite):
- आमतौर पर सोडियम हाइपोक्लोराइट का उपयोग एक विरंजन एजेंट (Bleaching Agent), ‘निस्संक्रामक’ (Disinfectant) के रूप में तथा स्विमिंग पूल को साफ करने के लिये भी किया जाता है।
- सोडियम हाइपोक्लोराइट में क्लोरीन (Chlorine) की अत्यधिक मात्रा होने के कारण यह मनुष्यों के लिये हानिकारक है।
- उपयोग:
- आमतौर पर सामान्य ब्लीच (Bleach) में 2-10% सोडियम हाइपोक्लोराइट का घोल होता है।
- इस रसायन का उपयोग त्वचा पर घावों जैसे कि कट या खरोंच के उपचार हेतु किया जाता है जिसमे सोडियम हाइपोक्लोराइट की मात्रा 0.25-0.5% होती है।
- सोडियम हाइपोक्लोराइट को कभी-कभी कम सांद्रता वाले विलयन के रूप में हैंडवाश (Handwash) में उपयोग में लाया जाता है।
- मनुष्य पर हानिकारक प्रभाव:
- सोडियम हाइपोक्लोराइट संक्षारक होता है, और इसका उपयोग कठोर सतहों को साफ करने में होता है।
- यदि यह शरीर के अंदर प्रवेश करता है, तो यह फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुँचा सकता है।
- सोडियम हाइपोक्लोराइट का 0.05% घोल भी आँखों के लिये बहुत हानिकारक हो सकता है।
- यह मनुष्यों के शरीर पर खुजली या जलन पैदा कर सकता है और निश्चित रूप से इसका छिड़काव (Spray) नहीं किया जाना चाहिये।
- कोरोनावायरस पर प्रभाव:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) ने कोरोनोवायरस से निपटने हेतु कठोर सतहों को साफ करने के लिये लगभग 2-10% सांद्रता वाले ब्लीच का उपयोग करने की सलाह दी है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
सार्वजनिक स्वास्थ्य बनाम निजी जानकारी
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, COVID-19, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, मेन्स के लिये:COVID-19 के संदिग्धों की निजी जानकारी से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में COVID-19 के संदिग्धों की निजी जानकारी न केवल सोशल मीडिया पर पाई गई बल्कि कुछ राज्य सरकारों ने भी आधिकारिक रूप से डेटा का खुलासा किया है।
प्रमुख बिंदु:
- COVID-19 के संदिग्धों की निजी जानकारी का खुलासा करने से सार्वजनिक स्वास्थ्य, डॉक्टर-मरीज की गोपनीयता और निजता के अधिकार का हनन हो सकता है।
- किसी राष्ट्रीय प्रोटोकॉल या कानून की अनुपस्थिति के कारण राज्य सरकारें COVID-19 से उत्पन्न समस्याओं से निपटने हेतु अलग-अलग उपाय अपना रही हैं।
- कुछ राज्य नागरिकों को बेहतर जानकारी देने हेतु सार्वजनिक रूप से निजी जानकारी का खुलासा कर रहे हैं, वही अन्य राज्य गोपनीयता का सम्मान करते हुए ऐसा करने से बच रहे हैं।
- कर्नाटक सरकार ने ऐसे लोगों की एक ज़िलेवार सूची प्रकाशित की है जिनको एकांत में रखा गया है। स्वास्थ्य और परिवार नियोजन विभाग की वेबसाइट पर एकांत में रखे गए लोगों का यात्रा विवरण और घर का पता मौजूद है।
- दिल्ली, गुजरात और कर्नाटक सहित कई अन्य राज्यों ने स्थानीय अधिकारियों को निर्देश दिया है कि उन घरों के बाहर नोटिस चस्पा करे जहाँ व्यक्तियों को एकांत में रखा गया है।
- हालाँकि, पश्चिम बंगाल सरकार ने व्यक्तियों या अस्पतालों की पहचान का खुलासा नहीं किया है।
कानूनी परिप्रेक्ष्य:
- चिकित्सा आचार संहिता के तहत, भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा निर्धारित नियम के अनुसार, उपचार के दौरान किसी विशेष परिस्थिति में रोगी से संबंधित जानकारी का खुलासा कर सकते हैं।
- निगरानी के लिये स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों के अनुसार एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (Integrated Disease Surveillance Programme) के तहत राज्य/ज़िला स्तर की निगरानी इकाइयों या किसी अन्य प्राधिकरण के साथ लोगों की निजी जानकारी साझा कर सकते है लेकिन इन दिशा-निर्देशों में रोगी के विवरण को सार्वजनिक रूप से साझा करने का कोई प्रावधान नहीं है।
- महामारी अधिनियम, 1897 (Epidemic Act, 1897) और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 (Disaster Management Act, 2005) के तहत किसी विकट समस्या से निपटने हेतु लोगों की भलाई के लिये की गयी कार्रवाई को कानूनी शक्ति प्रदत्त है लेकिन लोगों की निजी जानकारी को सार्वजनिक रूप से साझा करने का कोई कानून नही है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
(National Disaster Management Authority):
- यह भारत में आपदा प्रबंधन के लिये एक सर्वोच्च निकाय है, जिसका गठन ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ के तहत किया गया था।
- यह आपदा प्रबंधन के लिये नीतियों, योजनाओं एवं दिशा-निर्देशों का निर्माण करने के लिये ज़िम्मेदार संस्था है, जो आपदाओं के वक्त समय पर एवं प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है।
- भारत के प्रधानमंत्री द्वारा इस प्राधिकरण की अध्यक्षता की जाती है।
समस्या:
- सोशल मीडिया पर या लोगों के घर की दीवार पर उनके नाम और पता के साथ नोटिस चस्पा कर देने से परिवारों को शारीरिक या भावनात्मक संकट का खतरा हो सकता है।
- नोटिस लगाने से आपातकाल में लोगों में ज्यादा दहशत भी पैदा हो सकती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
COVID-19 के विषय में स्वतंत्र चर्चा का अधिकार
प्रीलिम्स के लियेCOVID-19 मेन्स के लियेन्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय के प्रभाव, फेक न्यूज़ का महामारी पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कोरोनावायरस (COVID-19) के विषय में स्वतंत्र चर्चा के अधिकार को सही ठहराते हुए मुख्यधारा की मीडिया को निर्देश दिया है कि समाज में बड़े पैमाने पर घबराहट फैलाने से बचने के लिये इस विषय पर केवल आधिकारिक सूचना को ही प्रकाशित एवं प्रसारित किया जाए।
प्रमुख बिंदु
- न्यायालय ने सरकार को आगामी 24 घंटों में मीडिया के सभी माध्यमों से कोरोनावायरस (COVID-19) के संदर्भ में हो रहे विकास पर एक दैनिक बुलेटिन शुरू करने का आदेश दिया।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अगुवाई वाली एक न्यायपीठ ने केंद्र सरकार के अनुरोध पर निर्णय दिया है, ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार ने अपने अनुरोध में कहा था कि मीडिया संस्थानों को ‘न्याय के हित’ में सटीक तथ्यों का पता लगाने के पश्चात् ही कोरोनावायरस (COVID-19) पर कुछ भी प्रकाशित या प्रसारित करना चाहिये।
- इस संदर्भ में गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, मीडिया विशेष रूप से वेब पोर्टल द्वारा प्रकाशित और प्रसारित किसी भी गलत सूचना में आम जनमानस में घबराहट पैदा करने की क्षमता है।
- मंत्रालय के अनुसार, इस तरह की रिपोर्टिंग के आधार पर एक मौजूदा संकट की स्थिति में किसी भी तरह की घबराहट की प्रतिक्रिया संपूर्ण राष्ट्र को नुकसान पहुँचा सकती है।
- उल्लेखनीय है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत इस प्रकार का आतंक पैदा करना एक प्रकार का आपराधिक कृत्य है।
- विश्लेषकों के अनुसार, न्यायालय ने अपने निर्णय से पत्रकारिता की स्वतंत्रता और स्थिति के दौरान समाज में घबराहट से बचने की आवश्यकता दोनों में संतुलित स्थापित किया है।
फेक न्यूज़ और COVID-19
- फेक न्यूज़ को आप एक विशाल वट-वृक्ष मान सकते हैं, जिसकी कई शाखाएँ और उपशाखाएँ हैं। इसके तहत किसी के पक्ष में प्रचार करना व झूठी खबर फैलाने जैसे कृत्य आते हैं।
- किसी व्यक्ति या संस्था की छवि को नुकसान पहुँचाने या लोगों को उसके खिलाफ झूठी खबर के ज़रिये भड़काने की कोशिश करना फेक न्यूज़ है।
- जान-बूझकर या अनजाने में फेक न्यूज़ और जनता के मन में आतंक पैदा करने में सक्षम सामग्री को कोरोनावायरस के मौजूदा संकट के प्रबंधन में एक बड़ी बाधा के रूप में देखा जा रहा है।
- सोशल मीडिया पर कोरोनावायरस को लेकर कई प्रकार की झूठी खबरें चल रहीं हैं, जिनसे न केवल आम लोगों में भ्रम पैदा हो रहा है, बल्कि कोरोनावायरस महामारी के विरुद्ध चल रही लड़ाई भी कमज़ोर हो रही है।
- गृह मंत्रालय के अनुसार, इस प्रकार की झूठी खबरें गरीबों के मध्य भय पैदा कर रहा है और उन्हें सामूहिक पलायन करने को मज़बूर कर रहा है, जिसके कारण सरकार द्वारा उठाए जा रहे निवारक उपाय विफल हो रहे हैं।
COVID-19 की मौजूदा स्थिति
- कोरोनावायरस मौजूदा समय में विश्व के समक्ष एक गंभीर चुनौती बन गया है और दुनिया भर में इसके कारण अब तक 42000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और तकरीबन 800000 लोग इसकी चपेट में हैं।
- भारत में भी स्थिति काफी गंभीर है और इस खतरनाक वायरस के कारण अब तक देश में 35 लोगों की मृत्यु हो चुकी है तथा देश में 1300 से अधिक लोग इसकी चपेट में हैं।
- भारत सरकार द्वारा कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में 21 दिवसीय लॉकडाउन की घोषणा की थी।
- इसके अलावा गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार के निर्देश पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा 21,064 राहत शिविर बनाए गए हैं और लगभग 6,66,291 लोगों को शरण दी गई है।
- रिपोर्ट के अनुसार, हवाई अड्डों पर 15.25 लाख यात्रियों की जाँच की गई, 12 प्रमुख बंदरगाहों पर 40,000 लोगों की जाँच की गई और भूमि सीमाओं पर 20 लाख लोगों की जाँच की गई है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
कोरोनावायरस पर समन्वित शोध के लिये समिति का गठन
प्रीलिम्स के लिये:COVID-19, मेंस के लिये:स्वास्थ्य क्षेत्र में तकनीकी का प्रयोग, COVID-19 से निपटने के लिये भारत सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कोरोनावायरस की चुनौती से निपटने हेतु समन्वित शोध कार्यक्रमों के संचालन के लिये एक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अधिकार प्राप्त समिति (Science and Technology Empowered Committee) का गठन किया गया है।
मुख्य बिंदु:
- स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, कोरोनावायरस पर समन्वित शोध के लिये बनी इस समिति की अध्यक्षता नीति आयोग के एक सदस्य और भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (Principal Scientific Adviser) द्वारा की जाएगी।
- देश में COVID-19 के नियंत्रण और इसके परीक्षणों की मात्रा में वृद्धि की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान और विकास पर तेज़ निर्णय लेने के लिये इस समिति में अनेक महत्त्वपूर्ण संस्थानों के व्यक्तियों और भारत सरकार के कई विभागों के सचिवों के साथ अन्य विशेषज्ञों को भी जोड़ा गया है। जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ( Department of Science & Technology- DST)
- जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology- DBT)
- वैज्ञानिक और औद्योगिकी अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR)
- इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय
- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO)
- विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी)
- स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) और भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) आदि
- स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, यह समिति विभिन्न विज्ञान एजेंसियों, वैज्ञानिकों, नियामकीय संस्थाओं और औद्योगिक क्षेत्र के बीच संपर्क और अन्य मामलों में सहायता प्रदान करने का कार्य करेगी।
उद्देश्य:
- पहले से उपलब्ध ऐसी दवाओं के बारे में जानकारी जुटाना जिनका उपयोग COVID-19 के नियंत्रण के लिये किया जा सके तथा इस प्रक्रिया के कानूनी पहलुओं पर विचार करना।
- COVID-19 के प्रसार की निगरानी और चिकित्सा उपकरणों तथा अन्य सहायक ज़रूरतों का अनुमान लगाने के लिये गणितीय मॉडल तैयार करना।
- भारत में COVID-19 परीक्षण किट और वेंटीलेटर के विनिर्माण में सहयोग करना।
COVID-19 पर नियंत्रण के अन्य प्रयास:
- स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, COVID-19 से संक्रमित लोगों और उनके संपर्क में आए अन्य व्यक्तियों की पहचान सुनिश्चित करने के लिये राज्य सरकारों के सहयोग से कड़े कार्यक्रम चलाए जा रहें हैं।
- साथ ही COVID-19 की चुनौती से निपटने में आवश्यक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों जैसे- मास्क (Mask), वेंटीलेटर (Ventilator) आदि की उपलब्धता की निगरानी की जा रही है।
- आवश्यक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की आपूर्ति के लिये स्वास्थ्य मंत्रालय सभी राज्यों, कपड़ा मंत्रालय (Ministry of Textiles) और उपकरण निर्माता कंपनियों तथा फैक्टरियों से समन्वय बनाए हुए है।
- इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा वेबसाइट के माध्यम से देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत एएनएम (ANM), आशा (ASHA), आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, आयुष चिकित्सकों और नर्सों आदि को COVID-19 से संक्रमित मामलों में क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।
- इसके तहत COVID-19 से संक्रमित मरीजों के पर्यवेक्षण, प्रयोगशाला परीक्षण, चिकित्सीय प्रबंधन, अलगाव सुविधा (Isolation facility) प्रबंधन , गहन देखभाल (Intensive Care) आदि से संबंधित जानकारी को शामिल किया गया है।
- इस पहल के तहत 30 मार्च, 2020 को स्वस्थ्य मंत्रालय द्वारा दो वेबिनार (webinar) के आयोजन के माध्यम से लगभग 15,000 नर्सों को ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया गया।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
COVID-19 एवं ऑर्फन ड्रग अधिनियम
प्रीलिम्स के लिये:COVID-19, दुर्लभ रोग मेंस के लिये:दुर्लभ रोगों हेतु राष्ट्रीय नीति-2020, ऑर्फन ड्रग अधिनियम, पेटेंट अधिनियम, 2005 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (Food and Drug Administration- FDA) द्वारा COVID-19 (COVID-19) को ऑर्फन रोग (Orphan Disease) या दुर्लभ रोग (Rare Disease) घोषित कर दिया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- FDA के अनुसार किसी रोग को ऑर्फन रोग तब घोषित किया जाता है जब अमेरिका में यह रोग 2 लाख से ज्यादा व्यक्तियों को हुआ हो।
दुर्लभ रोग:
- दुर्लभ रोग एक ऐसी स्वास्थ्य स्थिति होती है जिसका प्रचलन लोगों में प्रायः कम पाया जाता है या सामान्य बीमारियों की तुलना में बहुत कम लोग इन बीमारियों से प्रभावित होते हैं।
- दुर्लभ बीमारियों की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है तथा अलग-अलग देशों में इसकी अलग-अलग परिभाषाएँ हैं।
- 80 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियाँ मूल रूप से आनुवंशिक होती हैं, इसलिये बच्चों पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- भारत की दुर्लभ रोगों हेतु राष्ट्रीय नीति-2020 के अनुसार, दुर्लभ बीमारियों में आनुवंशिक रोग ( Genetic Diseases), दुर्लभ कैंसर (Rare Cancer), उष्णकटिबंधीय संक्रामक रोग ( Infectious Tropical Diseases) और अपक्षयी रोग (Degenerative Diseases) शामिल हैं।
- नीति के तहत, दुर्लभ बीमारियों की तीन श्रेणियाँ हैं:
- एक बार के उपचार के लिये उत्तरदायी रोग (उपचारात्मक)।
- ऐसे रोग जिनमें लंबे समय तक उपचार की आवश्यकता होती है लेकिन लागत कम होती है।
- ऐसे रोग जिन्हें उच्च लागत के साथ दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता है।
- पहली श्रेणी के कुछ रोगों में ऑस्टियोपेट्रोसिस (Osteopetrosis) और प्रतिरक्षा की कमी के विकार शामिल हैं।
- भारत में 56-72 मिलियन लोग दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित हैं।
संयुक्त राज्य ऑर्फन ड्रग अधिनियम, 1983:
- संयुक्त राज्य ऑर्फन ड्रग अधिनियम, 1983 के अनुसार यदि किसी रोग को ऑर्फन रोग घोषित कर दिया जाता है तो उस रोग के लिये जो कंपनी औषधि बनाती है उसे कई प्रकार के प्रोत्साहन प्रदान किये जाते हैं। जैसे-
- उसे खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) द्वारा कम समय में स्वीकृति मिल जाती है।
- अनुसंधान और विकास के लिये सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- इसके अलावा उसे 7 वर्षों के लिये विपणन विशिष्टता (Market Exclusivity) मिल जाती है।
भारत के संदर्भ में:
- भारत के पेटेंट अधिनियम, 2005 में यह प्रावधान है कि भारत जेनरिक ड्रग के उत्पादन के लिये किसी तीसरे पक्ष (Third Party) को लाइसेंस दे सकता है। ताकि आवश्यकता पड़ने पर ऐसी दवाओं का उत्पादन किया जा सके।
मुद्दे:
- कोविद -19 दुर्लभ बीमारी नहीं- ऑर्फन ड्रग अधिनियम COVID-19 के लिये संभावित दवाओं पर लागू होता है जो कि दुनिया भर में 800,049 मामलों की पुष्टि के साथ एक दुर्लभ बीमारी के अलावा कुछ भी नहीं है।
- इसके अलावा दुर्लभ रोगों के लिये विकसित की गई दवाओं की कीमत साधारण दवाओं की तुलना में अधिक होती है।
आगे की राह:
- भारत ने अभी तक पेटेंट अधिनियम, 2005 के प्रावधान का उपयोग नही किया है परंतु COVID-19 से निपटने के लिये इसका उपयोग किया जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
दूरसंचार नेटवर्क क्षमता में वृद्धि की आवश्यकता
प्रीलिम्स के लिये:‘राइट ऑफ वे’ पॉलिसी, 2016 मेन्स के लिये:भारतीय दूरसंचार क्षेत्र की चुनौतियाँ, दूरसंचार क्षेत्र पर COVID-19 के प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कोरोनावायरस की रोकथाम हेतु लागू 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान देश में इंटरनेट डेटा ट्रैफिक में अत्यधिक वृद्धि को देखते हुए ‘टॉवर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स एसोसिएशन’ ने देश के दूरसंचार नेटवर्क क्षमता में शीघ्र ही वृद्धि किये जाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।
मुख्य बिंदु:
- टॉवर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स एसोसिएशन (Tower and Infrastructure Providers Association- TAIPA) के अनुसार, पिछले कुछ दिनों से लॉकडाउन और अधिकतर लोगों के घर से काम करने के कारण देश में डाटा ट्रैफिक में कम-से-कम 30% की वृद्धि हुई है।
- इस दौरान देश के कुछ शहरों जैसे-बंगलूरु और हैदराबाद में सेल्युलर नेटवर्क डेटा ट्रैफिक में 70% तक की वृद्धि देखने को मिली है।
टॉवर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स एसोसिएशन
(Tower and Infrastructure Providers Association- TAIPA):
- TAIPA ‘भारतीय संस्था पंजीकरण अधिनियम’ (Indian Society registration act), 1860 के तहत पंजीकृत एक उद्योग प्रतिनिधि निकाय है।
- इसकी स्थापना वर्ष 2011 में की गई थी।
- यह संस्था टेलीकॉम क्षेत्र के विकास के लिये नीति निर्माताओं, नियामकों, वित्तीय संस्थानों और अन्य हितधारकों के बीच समन्वय तथा विचार-विमर्श को बढ़ावा देने का कार्य करती है।
- TAIPA के अनुसार, देश में इंटरनेट डेटा की मांग को पूरा करने और दूरसंचार सेवाओं की 24x7 आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण और मज़बूत बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है।
- ध्यातव्य है कि कोरोनावायरस के प्रसार पर नियंत्रण के लिये 24 मार्च, 2020 को प्रधानमंत्री द्वारा देश में अगले 21 दिनों के लिये संपूर्ण लॉकडाउन लागू किये जाने की घोषणा की गई थी।
- इस दौरान कुछ अति आवश्यक सेवाओं को छोड़कर अन्य सभी गतिविधियों (उद्योग, यातायात आदि) पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया।
- लॉकडाउन के दौरान अधिकतर कंपनियों ने इंटरनेट के माध्यम से घर पर रहकर काम करने का विकल्प अपनाया, जिसके कारण पिछले कुछ दिनों में सेल्युलर नेटवर्क डेटा ट्रैफिक में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
- साथ ही स्कूलों और कॉलेजों द्वारा लॉकडाउन के दौरान ई-लर्निंग जैसी पहल की शुरुआत के कारण दूरसंचार क्षेत्र पर दबाव बढ़ा है।
टेलीकॉम क्षेत्र के कमज़ोर बुनियादी ढाँचे के कारण:
- TAIPA महानिदेशक के अनुसार, देश के 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से मात्र 16 ने ही बड़े पैमाने पर ‘राइट ऑफ वे’ पॉलिसी, 2016 के अनुरूप अपनी नीतियाँ बनाई हैं।
भारतीय तार मार्ग के अधिकार नियम
(Indian Telegraph Right of Way Rules, 2016):
- भारत सरकार द्वारा ये नियम ‘भारतीय तार अधिनियम (Indian Telegraph Act),1885’ के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए मोबाइल टावर और भूमिगत अवसंरचना (ऑप्टिकल फाइबर) को विनियमित करने के लिये बनाए गए थे।
- इन नियमों के तहत मोबाइल टावर लगाने, ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का लाइसेंस और अनुमति देने तथा समयबद्ध तरीके से विवादों को निपटाने की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।
- भारतीय तार मार्ग के अधिकार नियम को नवंबर 2016 में लागू किया गया था।
- हाल के वर्षों में टेलीकॉम क्षेत्र में सक्रिय बहुत सी कंपनियाँ घाटे में रही हैं और बकाया समायोजित सकल राजस्व (Adjusted Gross Revenue-AGR) के विवाद के कारण टेलीकॉम क्षेत्र की कंपनियाँ भारी दबाव में रहीं हैं।
- पिछले कुछ वर्षों में तकनीकी विकास, सस्ती टेलीकॉम सुविधाओं (स्मार्टफोन, डेटा शुल्क) की उपलब्धता और विभिन्न सरकारी तथा गैर-सरकारी सेवाओं के ऑनलाइन होने से इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।
समाधान:
- TAIPA द्वारा ‘दूरसंचार विभाग’ (Department of Telecommunication- DoT) के सचिव और राज्य सचिवों को लिखे पत्र में बढ़े इंटरनेट ट्रैफिक के दबाव से निपटने के लिये देश के दूरसंचार नेटवर्क क्षमता में शीघ्र ही वृद्धि किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- TAIPA के अनुसार, देश के दूरसंचार नेटवर्क क्षमता को बढ़ाने के लिये वर्तमान अवसंरचना के उन्नयन के साथ ही नए उपकरणों की मात्रा में भी वृद्धि करनी होगी।
- इसके तहत नेटवर्क टॉवर, सेल ऑन वील्स (Cell on Wheels) और ऑप्टिकल फाइबर केबल तंत्र के विकास पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
COVID- 19 संकट इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़: PM मोदी
प्रीलिम्स के लिये:सामाजिक दूरी मेन्स के लिये:आपदा प्रबंधन में मानव-केंद्रित संकल्पना |
चर्चा में क्यों?
विदेश मंत्रालय की एक विज्ञप्ति के अनुसार, भारतीय प्रधानमंत्री ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति के साथ हुई टेलीफोन वार्ता पर फ्राँस में महामारी के कारण हुई मौतों पर शोक व्यक्त किया।
मुख्य बिंदु:
- दोनों देशों की वार्ता में भारतीय प्रधानमंत्री ने COVID- 19 महामारी को 'इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़' (Turning Point in History) के रूप में इंगित किया है।
- भारत तथा फ्राँस के दोनों नेताओं ने विशेषज्ञों में निवारक उपायों (Prevenstive Measures), उपचार पर शोध तथा टीके संबंधी जानकारी साझा करने के लिये सहमति व्यक्त की है।
मानव-केंद्रित अवधारणा (Human-Centric Concept):
- फ्राँस के राष्ट्रपति ने, भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा COVID- 19 महामारी को इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ मानने वाले दृष्टिकोण पर दृढ़ता से सहमति व्यक्त की तथा बताया कि COVID- 19 महामारी से निपटने के लिये वैश्वीकरण के युग में हमें एक नवीन मानव-केंद्रित अवधारणा (Human-Centric Concept) की आवश्यकता है।
- हाल ही में आयोजित 'G- 20 वर्चुअल समिट' में भारतीय प्रधानमंत्री बताया कि महामारी, जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये सिर्फ आर्थिक पक्ष ही नहीं बल्कि मानवीय पहलुओं में भी सहयोग की आवश्यकता है।
- दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने सहमति जताई कि जलवायु परिवर्तन जैसी अन्य वैश्विक समस्याएँ समग्र मानवता को प्रभावित करती है, अत: इनमें अधिक मानवीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- साथ ही इस बात पर बल दिया कि वर्तमान COVID- 19 संकट के दौरान अफ्रीका के कम विकसित देशों की ज़रूरतों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
सामाजिक दूरी (Social Distancing) की व्यावहारिकता:
- हाल में लॉकडाउन के दौरान लागू ‘सामाजिक दूरी’ का दुनिया भर के स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा समर्थन किया गया तथा उनका मानना है कि कोरोनोवायरस के प्रसार को रोकने का केवल यही एक तरीका है। जबकि कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि सामाजिक दूरी की अवधारणा अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक पूर्वाग्रहों को बढ़ावा दे सकती है। इसे हम निम्नलिखित देशों के उदाहरणों से समझ सकते हैं-
- कोरिया:
- दक्षिण कोरिया में COVID- 19 महामारी की शुरुआत एक विवादास्पद चर्च से मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस चर्च में आने वाले अनुयायियों के बीच वुहान से दक्षिण कोरिया तक लगातार यात्रा के कारण COVID- 19 का प्रसार हुआ।
- नतीजतन, महामारी की शुरुआत में सभी आधे से अधिक मरीज़ इस धर्मिक आंदोलन से संबंधित थे, जो कि कोरियाई आबादी का 1% से भी कम है। सामाजिक दूरी ने इस धार्मिक समुदाय को जो पहले से कोरियाई समाज के हाशिये पर है और अधिक खराब स्थिति में ला दिया है।
- ईरान:
- ईरान में विशेष परिस्थितियों के कारण यह पश्चिम एशिया में COVID-19 का एक प्रमुख हॉट स्पॉट बन गया है।
- यह अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के कारण चीन के साथ संबंध विकसित करने के लिये मजबूर था, ऐसे में ईरानी व्यापारी जिसने वुहान की व्यापारिक यात्रा की, ईरान में कथित तौर पर प्रथम COVID- 19 रोगी माना गया। ईरान में रोग संचरण का प्रारंभिक केंद्र कॉम (Qom) नामक धार्मिक स्थल था, जो शिया मुसलमानों के लिये एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है।
- ईरान में COVID- 19 का अगला केंद्र ईरानी संसद था, जिसका ईरानी समाज के आध्यात्मिक केंद्र कॉम के साथ मज़बूत संबंध थे। सभी सांसदों में से 8% अर्थात 23 सांसद 3 मार्च तक इस महामारी से संक्रमित थे। सामाजिक दूरी ईरान में विशेष रूप से सत्ताधारी अभिजात वर्ग के बीच सामाजिक अभिवादन के लोकप्रिय रूपों के विपरीत थी।
- ईरान में इस महामारी के प्रत्येक मामले में वैश्वीकरण तथा अंतर्राष्ट्रीय पहलुओं से जोड़ा गया तथा राजनीतिक व धार्मिक प्रक्रियाओं ने इन मामलों को ओर तेज़ करने का कार्य किया।
- श्रीलंका तथा भारत:
- भारत और श्रीलंका में COVID- 19 महामारी की शुरुआत पर्यटन तथा श्रम प्रवास से मानी जाती है जो बहुत कुछ वैश्वीकरण के साथ जुड़ी हुई हैं। श्रीलंका तथा केरल की एक बड़ी श्रम शक्ति विदेशों में कार्यरत हैं। इन श्रमिकों के विदेश से आगमन ने दक्षिण एशियाई देशों में COVID- 19 महामारी के प्रसार में योगदान दिया है। उदाहरण के लिये श्रीलंका में 15 मार्च तक COVID- 19 के 18 रोगियों में 11 (61%) इटली से आने वाले श्रीलंकाई श्रमिक थे।
आगे की राह:
- इस प्रकार, COVID- 19 महामारी को, विशेष रूप से दक्षिण विश्व के देशों में वैश्वीकरण की बुराई के रूप में देखा जा सकता है। सामाजिक दूरी अब तक इतनी कारगर नहीं रही क्योंकि श्रमिक तथा उनके परिवार अक्सर दो अलग-अलग राज्यों में रह रहे होते हैं, तथा दोनों स्थानों पर इन परिवारों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
- हमें एक सैन्य शैली लॉकडाउन तथा सामाजिक दूरी से परे सोचने तथा दक्षिण विश्व में महामारी से निपटने में वैश्वीकरण से उत्पन्न समस्याओं के समाधान की आवश्यकता है।