डेली न्यूज़ (01 Jan, 2022)



जीएसटी क्षतिपूर्ति विस्तार

प्रिलिम्स के लिये: जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर शासन, केंद्र प्रायोजित योजनाएँ

मेन्स के लिये: कोविड-19 महामारी, सहकारी संघवाद, राजकोषीय संघवाद के कारण राजस्व की कमी और आर्थिक मंदी।

चर्चा में क्यों?

कई राज्यों ने मांग की है कि जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर व्यवस्था को और पाँच वर्ष के लिये बढ़ाया जाए। साथ ही राज्यों ने मांग की है कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी बढ़ाई जाए।

  • ये मांगें इसलिये की गई हैं क्योंकि कोविड-19 महामारी ने उनके राजस्व को प्रभावित किया है।
  • जीएसटी क्षतिपूर्ति का प्रावधान जून 2022 में खत्म होने जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय: 
    • जीएसटी कराधान: 101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 के लागू होने के बाद 1 जुलाई 2017 से जीएसटी लागू हो गया।
      • जीएसटी के साथ बड़ी संख्या में केंद्रीय और राज्य के अप्रत्यक्ष करों का एक ही कर में विलय हो गया।
    • जीएसटी क्षतिपूर्ति: सैद्धांतिक रूप से जीएसटी को पिछली कर व्यवस्था के रूप में ज्यादा राजस्व उत्पन्न करना चाहिये। हालाँकि नई कर व्यवस्था में उपभोग पर कर लगाया जाता है न कि विनिर्माण पर।
      • इसका मतलब है कि उत्पादन के स्थान पर कर नहीं लगाया जाएगा जिसका अर्थ यह भी है कि विनिर्माता राज्यों को नुकसान होगा और इसलिये कई राज्यों ने जीएसटी के विचार का कड़ा विरोध किया।
      • इन राज्यों को आश्वस्त करने के लिये क्षतिपूर्ति का विचार रखा गया था।
      • केंद्र ने पाँच वर्ष की अवधि हेतु जीएसटी कार्यान्वयन के कारण कर राजस्व में किसी भी कमी के लिये राज्यों को क्षतिपूर्ति का वादा किया।
      • इस वादे ने बड़ी संख्या में अनिच्छुक राज्यों को नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था पर हस्ताक्षर करने के लिये राजी कर लिया।
  • क्षतिपूर्ति उपकर: 
    • राज्यों को वर्ष 2022 में समाप्त होने वाले पहले पाँच वर्षों के लिये 14% की वृद्धि (आधार वर्ष 2015-16) से नीचे किसी भी राजस्व कमी के लिये क्षतिपूर्ति की गारंटी दी जाती है।
      • जीएसटी क्षतिपूर्ति का भुगतान केंद्र द्वारा राज्यों को हर दो महीने में मुआवजा उपकर से किया जाता है।
      • क्षतिपूर्ति उपकर जीएसटी (राज्यों को मुआवजा) अधिनियम, 2017 द्वारा निर्दिष्ट किया गया था।
      • सभी करदाता, जो विशिष्ट अधिसूचित वस्तुओं का निर्यात करते हैं और जिन्होंने जीएसटी संरचना योजना का विकल्प चुना है, केंद्र सरकार को जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर जमा करने के लिये उत्तरदायी हैं।
    • क्षतिपूर्ति  उपकर कोष: जीएसटी अधिनियम में कहा गया है कि एकत्र किये गए उपकर और जीएसटी परिषद द्वारा अनुशंसित राशि को फंड में जमा किया जाएगा।
  • राज्यों की चिंताएँ:
    • राजस्व की कमी: वर्ष 2020-21 में राज्य का जीएसटी राजस्व अंतर लगभग 3 लाख करोड़ रुपए, जबकि उपकर संग्रह 65,000 करोड़ रुपये की कमी के साथ 2.35 लाख करोड़ रुपए तक पहुँचने का अनुमान है। 
    • आर्थिक मंदी: ऐसे समय में जब विकास की गति कम हो रही है, जीएसटी अधिनियम द्वारा गारंटी के अनुसार राज्यों को मुआवजे का भुगतान करने में देरी से उनके लिये अपने स्वयं के वित्त को पूरा करना अधिक कठिन हो जाएगा।
    • घटता केंद्रीय हस्तांतरण: अधिकांश राज्यों का विचार है कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं में केंद्र की हिस्सेदारी धीरे-धीरे कम हो गई है और राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ गई है।
      • इसके चलते उनकी सबसे बड़ी मांग केंद्र प्रायोजित योजनाओं में हिस्सेदारी बढ़ाना है।

वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax)

  • जीएसटी को 101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 के माध्यम से पेश किया गया था।
  • यह देश के सबसे बड़े अप्रत्यक्ष कर सुधारों में से एक है।
    • इसे 'वन नेशन वन टैक्स' के नारे के साथ पेश किया गया था
  • जीएसटी ने उत्पाद शुल्क, मूल्य वर्द्धित कर (वैट), सेवा कर, लक्जरी टैक्स आदि जैसे अप्रत्यक्ष करों को समाहित कर दिया है।
  • यह अनिवार्य रूप से एक उपभोग कर है और अंतिम उपभोग बिंदु पर लगाया जाता है।
  • इसने दोहरे कराधान, करों के व्यापक प्रभाव, करों की बहुलता, वर्गीकरण के मुद्दों आदि को कम करने में मदद की है और एक आम राष्ट्रीय बाज़ार का नेतृत्व किया है।
  • वस्तु या सेवाओं (यानी इनपुट पर) की खरीद के लिये एक व्यापारी जो जीएसटी का भुगतान करता है, उसे बाद में अंतिम वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर लागू करने के लिये तैयार या सेट किया जा सकता है। 
    • सेट ऑफ टैक्स को इनपुट टैक्स क्रेडिट कहा जाता है।
  • इस प्रकार जीएसटी कर पर पड़ने वाले व्यापक प्रभाव को कम कर सकता है क्योंकि इससे अंतिम उपभोक्ता पर कर का बोझ बढ़ जाता है।
  • जीएसटी के तहत कर संरचना:
    • उत्पाद शुल्क, सेवा कर आदि को कवर करने के लिये केंद्रीय जीएसटी।
    • वैट, लक्जरी टैक्स आदि को कवर करने के लिये राज्य जीएसटी।
    • अंतर्राज्यीय व्यापार को कवर करने के लिये एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी)।
      • IGST स्वयं एक कर नहीं है बल्कि राज्य और संघ करों के समन्वय के लिये एक प्रणाली है।.
    •  इन बहुतायत चरणों (Slabs ) के अंतर्गत आने वाली वस्तुओं और सेवाओं के लिये जीएसटी को चार दरों ( 5%, 12%, 18% और 28%) पर लगाया जाता है।

GST

 स्रोत: द हिंदू


पुद्दुचेरी द्वारा राज्य के दर्जे की मांग

प्रिलिम्स के लिये:

राज्य पुनर्गठन अधिनियम, केंद्रशासित प्रदेश, अनुच्छेद -3।

मेन्स के लिये:

नए राज्यों के निर्माण और संबंधित मुद्दों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पुद्दुचेरी के मुख्यमंत्री ने पुद्दुचेरी केंद्रशासित प्रदेश (UT) को राज्य का दर्जा देने की मांग की है।

  • पुद्दुचेरी के लिये राज्य की मांग एक लंबे समय से लंबित मुद्दा है, जिससे यह पुद्दुचेरी में और अधिक उद्योगों को आमंत्रित कर तथा पर्यटन के लिये बुनियादी सुविधाओं का निर्माण कर रोज़गार क्षमता पैदा करने के लिये किसी भी शक्ति का प्रयोग करने में असमर्थ है।

केंद्रशासित प्रदेश

  • UT उन संघीय क्षेत्रों को संदर्भित करता है जो स्वतंत्र होने के लिये बहुत छोटे हैं या आसपास के राज्यों के साथ विलय करने हेतु बहुत अलग (आर्थिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से) हैं या आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं या राजनीतिक रूप से अस्थिर हैं।
    • इन कारणों से वे अलग-अलग प्रशासनिक इकाइयों के रूप में नहीं रह सके और उन्हें केंद्र सरकार द्वारा प्रशासित करने की आवश्यकता थी। 
  • केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। संघशासित प्रदेशों में लेफ्टिनेंट गवर्नरों को भारत के राष्ट्रपति द्वारा उनके प्रशासकों के रूप में नियुक्त किया जाता है।
    • हालाँकि पुद्दुचेरी, जम्मू और कश्मीर और दिल्ली इस संबंध में अपवाद हैं तथा आंशिक राज्य की स्थिति के कारण एक निर्वाचित विधायिका और सरकार है।
  • वर्तमान में भारत में 8 केंद्रशासित प्रदेश हैं- दिल्ली, अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली तथा दमन एवं दीव, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, लक्षद्वीप व पुद्दुचेरी।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 1949 में जब भारत के संविधान को अपनाया गया था, तब भारतीय संघीय ढाँचे में शामिल थे:
      • भाग A राज्यों में ब्रिटिश भारत के नौ तत्कालीन गवर्नर प्रांत शामिल थे।
      • भाग B राज्यों में विधायिकाओं के साथ नौ पूर्ववर्ती रियासतें शामिल थीं।
      • भाग C राज्यों में तत्कालीन मुख्य आयुक्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत प्रांत और कुछ पूर्ववर्ती रियासतें शामिल थीं।
      • भाग D राज्य में केवल अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल थे।
    • वर्ष 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के बाद, भाग सी और भाग डी राज्यों को 'केंद्रशासित प्रदेश' की एक श्रेणी में मिला दिया गया। संघ शासित प्रदेश की अवधारणा को संविधान के सातवें संशोधन अधिनियम, 1956 द्वारा जोड़ा गया था।
  • मांग का कारण:
    • भाषायी और सांस्कृतिक कारण देश में नए राज्यों के निर्माण का प्राथमिक आधार हैं।
    • अन्य कारक हैं:
    • स्थानीय संसाधनों के लिये प्रतियोगिता।
    • कुछ क्षेत्रों के प्रति सरकार की लापरवाही।
    • संसाधनों का अनुचित आवंटन।
    • संस्कृति, भाषा, धर्म आदि में अंतर।
    • रोज़गार के पर्याप्त अवसर पैदा करने में अर्थव्यवस्था की विफलता
    • लोकप्रिय लामबंदी और लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रिया भी इसका एक कारण है।
    • 'मिट्टी के पुत्र' जैसी भावनाएँ।
  • नए राज्यों के निर्माण से उत्पन्न मुद्दे:
    • अलग-अलग राज्य का दर्ज़ा उनकी सत्ता संरचनाओं पर प्रमुख समुदाय/जाति/जनजाति के आधिपत्य को जन्म दे सकता है।
    • इससे उप-क्षेत्रों के बीच अंतर-क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता का उदय हो सकता है।
    • नए राज्यों के निर्माण के कुछ नकारात्मक राजनीतिक परिणाम भी हो सकते हैं जैसे विधायकों का एक छोटा समूह अपनी इच्छा से सरकार बना या बिगाड़ सकता है।
    • अंतर्राज्यीय जल, बिजली और सीमा विवाद बढ़ने की भी संभावना है।
    • राज्यों के विभाजन के लिये नई राजधानियों के निर्माण और बड़ी संख्या में प्रशासकों को बनाए रखने के लिये भारी धन की आवश्यकता होगी जैसा कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के विभाजन में हुआ था।
    • छोटे राज्यों का निर्माण केवल पहले से मौजूद संस्थानों जैसे- ग्राम पंचायत, ज़िला कलेक्टर आदि को सशक्त किये बिना पुराने राज्य की राजधानी से नई राज्य की राजधानी में सत्ता हस्तांतरित तथा  राज्यों के पिछड़े क्षेत्रों में विकास का प्रसार करता है।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • भारतीय संविधान केंद्र सरकार को मौज़ूदा राज्यों से नए राज्य बनाने या एक राज्य को दूसरे में विलय करने का अधिकार देता है तथा इस प्रक्रिया को राज्यों का पुनर्गठन कहा जाता है।
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2 के अनुसार संसद कानून द्वारा ऐसे नियमों और शर्तों पर संघ में प्रवेश या नए राज्यों की स्थापना कर सकती है।
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अनुसार, केंद्र सरकार के पास नए राज्य को निर्मित करने, किसी भी राज्य के आकार को बढ़ाने या घटाने और किसी भी राज्य की सीमाओं या नाम को परिवर्तित करने की शक्ति है।

Pondichery

पुद्दुचेरी

  • पुद्दुचेरी शहर दक्षिण-पूर्वी भारत में स्थित पुद्दुचेरी केंद्रशासित प्रदेश की राजधानी है।
  • इस UT का गठन वर्ष 1962 में फ्रांस के भारत में  चार पूर्व उपनिवेशों में से एक के रूप में किया गया था 
    • पांडिचेरी (अब पुद्दुचेरी) और कराईकल भारत के दक्षिणपूर्वी कोरोमंडल तट के साथ यनम, पूर्वी तट के साथ उत्तर में, और माहे, केरल राज्य से घिरे पश्चिमी मालाबार तट पर स्थित है।
  •  वर्ष 1674 में इसकी उत्पत्ति एक फ्राँसीसी व्यापार केंद्र के रूप में हुई थी, जब इसे एक स्थानीय शासक से खरीदा गया था। 
  • पांडिचेरी उपनिवेश 17वीं शताब्दी के अंत तक फ्राँसीसी और डच के बीच लगातार लड़ाई का केंद्र  बना रहा और इस पर कई बार ब्रिटिश सैनिकों द्वारा कब्जा किया गया। हालाँकि यह वर्ष 1962 तक भारत में स्थानांतरित होने तक फ्राँसीसी औपनिवेशिक अधिकार में बना रहा।

आगे की राह 

  • राजनीतिक विचारों के बजाय आर्थिक और सामाजिक व्यवहार्यता को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • धर्म, जाति, भाषा या बोली के बजाय विकास, विकेंद्रीकरण और शासन जैसी लोकतांत्रिक चिंताओं को नए राज्य की मांगों को स्वीकार करने हेतु वैध आधार देना बेहतर है।
  • इसके अलावा विकास और शासन की कमी जैसी मूलभूत समस्याओं जैसे- सत्ता का संकेंद्रण, भ्रष्टाचार, प्रशासनिक अक्षमता आदि का समाधान किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू 


मल कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन

प्रिलिम्स के लिये:

मल कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन (FSSM), नीति आयोग, स्वच्छ सर्वेक्षण, कायाकल्प तथा शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT) एवं स्वच्छ गंगा के लिये राष्ट्रीय मिशन (NMCG), सतत् विकास लक्ष्य (SDG)

मेन्स के लिये:

भारत की अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली में शामिल मुद्दे और चुनौतियाँ तथा इस संबंध में उठाए गए कदम 

चर्चा में क्यों? 

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में मल कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन, सेवा और व्यवसाय मॉडल के तहत वर्ष 2021 तक 700 से अधिक शहर/कस्बे मल कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन (FSSM) कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं।

प्रमुख बिंदु 

  •  मल कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन (FSSM):
    • FSSM के बारे में:
      • भारत स्वच्छता कवरेज में अंतराल को पहचानते हुए वर्ष 2017 में FSSM पर राष्ट्रीय नीति की घोषणा करने वाला प्रथम देश बन गया है।
      • FSSM मानव मल प्रबंधन वेस्ट स्ट्रीम, जिसमें रोग फैलाने की उच्चतम क्षमता होती है, को प्राथमिकता देता है।
      • यह एक कम लागत वाला और आसानी से मापनीय स्वच्छता समाधान है जो मानव अपशिष्ट के सुरक्षित संग्रह, परिवहन, उपचार और पुन: उपयोग पर केंद्रित है।. 
      • नतीजतन, FSSM एक समयबद्ध तरीके से सभी के लिये पर्याप्त और समावेशी स्वच्छता के सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के लक्ष्य 6.2 को प्राप्त करने में सही है।
    • संबंधित पहल:
  • भारत के सीवेज उपचार संयंत्रों की क्षमता:
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सीवेज़ ट्रीटमेंट प्लांट (STPs) प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले एक-तिहाई से अधिक सीवेज़ का उपचार करने में सक्षम हैं।
    • भारत ने 72,368 MLD (मिलियन लीटर प्रतिदिन) का उत्पादन किया, जबकि STPs की स्थापित क्षमता 31,841 MLD (43.9%) थी।
    • 5 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और कर्नाटक में देश की कुल स्थापित उपचार क्षमता का 60% हिस्सा है।
  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे:
    • शहरी स्थानीय निकायों (ULB) में अपशिष्ट प्रबंधन के लिये वित्त की कमी।
    • तकनीकी विशेषज्ञता और उपयुक्त संस्थागत व्यवस्था का अभाव। 
    • उचित संग्रह, पृथक्करण, परिवहन और उपचार/निपटान प्रणाली शुरू करने के प्रति यूएलबी की अनिच्छा।
    • जागरूकता की कमी के कारण कचरा प्रबंधन के प्रति नागरिकों की उदासीनता।
    • अपशिष्ट प्रबंधन और स्वच्छ परिस्थितियों के प्रति सामुदायिक भागीदारी का अभाव

आगे की राह

  • FSSM गठबंधन का उपयोग: राष्ट्रीय मल कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन (NFSSM) गठबंधन ने अब तक भारत में FSSM क्षेत्र में एक उत्प्रेरक भूमिका निभाई है और राज्य एवं शहर के अधिकारियों के लिये एक तैयार संसाधन और मंच के रूप में कार्य करता है।
  • दीर्घकालिक स्थिरता और गुणवत्ता कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये राज्यों और शहरों को क्षमता निर्माण, गुणवत्ता आश्वासन और गुणवत्ता नियंत्रण एवं निगरानी सुनिश्चित करनी चाहिये। इसके अलावा यह महत्त्वपूर्ण है कि राज्य संस्थागतकरण के लिये कदम उठाएँ।
  • सबसे कमज़ोर, वंचित, महिलाओं और शहरी गरीबों को इस प्रयास के केंद्र में रखते हुए, राज्यों एवं शहरों को अभिनव समाधान पेश करने के लिये तेज़ी से आगे बढ़ना चाहिये।
  • इसके साथ ही भारत न केवल खुले में शौच को समाप्त करने के लिये बल्कि सुरक्षित रूप से प्रबंधित समग्र स्वच्छता हेतु भी दुनिया के लिये एक उदाहरण बन सकता है।

स्रोत- डाउन टू अर्थ


निषेध कानून और मुद्दे

प्रिलिम्स के लये:

निजता का अधिकार, शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने वाले राज्य, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP), मौलिक कर्त्तव्य।

मेन्स के लिये:

भारत में प्रोहिबिशन एक्ट्स से जुड़ी चिंताएँ, अनुच्छेद 47 बनाम निजता का अधिकार (अपनी पसंद के खाने और पीने के अधिकार सहित जीवन का अधिकार)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बिहार सरकार ने अवैध शराब निर्माण की निगरानी के लिये ड्रोन का उपयोग करने का निर्णय लिया है।

  • इसने निषेध अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिये भौतिक और वित्तीय संसाधनों के उपयोग की उपयोगिता पर बहस शुरू कर दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • निषेध कानून द्वारा किसी चीज़ को मना करने का कार्य या अभ्यास है: विशेष रूप से यह शब्द मादक पेय पदार्थों के निर्माण, भंडारण (चाहे बैरल में या बोतलों में), परिवहन, बिक्री, कब्ज़ा और खपत पर प्रतिबंध लगाने को संदर्भित करता है।
    • संवैधानिक प्रावधान:
      • अनुच्छेद 47: भारत के संविधान में निर्देशक सिद्धांतों में कहा गया है कि "राज्य मादक पेय और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक दवाओं के औषधीय प्रयोजनों को छोड़कर इनके उपभोग पर प्रतिबंध लगाने के लिये नियम बनाएगा"।
      • राज्य का विषय: शराब, भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूची में एक विषय है।
  • भारत में अन्य निषेध अधिनियम:
    • बॉम्बे आबकारी अधिनियम, 1878: शराब निषेध पर पहला संकेत बॉम्बे आबकारी अधिनियम, 1878 के माध्यम से था
      • यह अधिनियम वर्ष 1939 और 1947 में किये गए संशोधनों के माध्यम से अन्य बातों और शराब निषेध के पहलुओं पर नशीले पदार्थों को लेकर शुल्क लगाने से संबंधित था।
    • बॉम्बे निषेध अधिनियम, 1949: बॉम्बे आबकारी अधिनियम, 1878 में शराबबंदी लागू करने के सरकार के फैसले के दृष्टिकोण से "कई खामियाँ" थीं।
      • इसके कारण बॉम्बे प्रोहिबिशन एक्ट, 1949 का जन्म हुआ।
      • सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने वर्ष 1951 में बॉम्बे राज्य बनाम एफएन बलसारा के फैसले में कुछ धाराओं को छोड़कर अधिनियम को व्यापक रूप से बरकरार रखा।
    • गुजरात निषेध अधिनियम, 1949:
      • गुजरात ने वर्ष 1960 में शराबबंदी नीति को अपनाया और बाद में इसे और अधिक कठोरता के साथ लागू किया, लेकिन विदेशी पर्यटकों और आगंतुकों के लिये शराब परमिट प्राप्त करने की प्रक्रिया को भी आसान बना दिया।
      • वर्ष 2011 में, अधिनियम का नाम बदलकर गुजरात निषेध अधिनियम कर दिया गया। वर्ष 2017 में गुजरात निषेध (संशोधन) अधिनियम को इस राज्य में शराब के निर्माण, खरीद, बिक्री और परिवहन पर दस साल तक की जेल के प्रावधान के साथ पारित किया गया था।
    • बिहार मद्य निषेध अधिनियम, 2016: बिहार मद्य निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम 2016 में लागू किया गया था।
      • 2016 से कड़े शराबबंदी कानून के तहत 3.5 लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिसके कारण जेलों में भीड़भाड़ है और अदालतें बंद हैं।
    • अन्य राज्य: मिज़ोरम, नगालैंड राज्यों के साथ-साथ केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप में शराबबंदी लागू है।
  • शराबबंदी के खिलाफ तर्क:
    • निजता का अधिकार: 
      • किसी व्यक्ति के भोजन और पेय पदार्थों के चुनाव के अधिकार में राज्य द्वारा कोई भी हस्तक्षेप एक अनुचित प्रतिबंध के बराबर है और व्यक्ति की निर्णयात्मक व शारीरिक स्वायत्तता को नष्ट कर देता है।
      • वर्ष 2017 के बाद से कई फैसलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में रखा गया है।
    • हिंसा की भावना: विभिन्न शोधों और अध्ययनों से पता चला है कि शराब हिंसा की भावना को बढ़ा देती है।
      • महिलाओं और बच्चों के खिलाफ घरेलू हिंसा के अधिकांश अपराध बंद दरवाजों के पीछे होते हैं।
    • राजस्व की हानि: शराब से प्राप्त कर राजस्व किसी भी सरकार के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है। ये सरकार को कई जन कल्याणकारी योजनाओं को वित्तपोषित करने में सक्षम बनाती हैं। इन राजस्वों की अनुपस्थिति राज्य की लोक कल्याणकारी कार्यक्रमों को चलाने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
    • रोज़गार का स्रोत: आज भारतीय विदेशी शराब (आईएमएफएल) उद्योग हर साल करों में 1 लाख करोड़ से अधिक का योगदान देता है। यह लाखों किसान परिवारों की आजीविका का समर्थन करता है और उद्योग में कार्यरत लाखों श्रमिकों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार प्रदान करता है।
  • शराबबंदी के पक्ष में तर्क:
    • आजीविका पर प्रभाव: शराब पारिवारिक संसाधनों नष्ट कर देती है और महिलाओं और बच्चों को इसके सबसे कमज़ोर शिकार के रूप में छोड़ देती है। कम से कम जहां तक ​​परिवार इकाई का संबंध है, एक सामाजिक कलंक अभी भी शराब के सेवन से जुड़ा हुआ है।
    • नियमित खपत को हतोत्साहित करें: शराब के नियमित और अत्यधिक सेवन को हतोत्साहित करने के लिये सख्त राज्य विनियमन अनिवार्य है।
    • जैसा कि अनुसूची सात के तहत राज्य सूची में निषेध का उल्लेख है, यह राज्य का कर्तव्य है कि वह शराबबंदी से संबंधित प्रावधान करे।

आगे की राह

  • नैतिकता, निषेध या पसंद की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों के बीच अर्थव्यवस्था, नौकरी आदि जैसे कारक भी हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। इसके कारणों और प्रभावों पर एक सूचित और रचनात्मक संवाद की आवश्यकता है।
  • नीति निर्माताओं को ऐसे कानून बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो ज़िम्मेदार व्यवहार और अनुपालन को प्रोत्साहित करते हैं।
    • शराब पीने की उम्र को पूरे देश में एक समान किया जाना चाहिये और इससे नीचे के किसी भी व्यक्ति को शराब खरीदने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
    • सार्वजनिक रूप से शराब के नशे में व्यवहार, प्रभाव में घरेलू हिंसा और शराब पीकर गाड़ी चलाने के खिलाफ सख्त कानून बनाए जाने चाहिये।
    • सरकारों को शराब से अर्जित राजस्व का एक हिस्सा सामाजिक शिक्षा, नशामुक्ति और सामुदायिक समर्थन के लिये अलग रखना चाहिये।

स्रोत- द हिंदू