दो बच्चों की नीति | 03 Apr 2021
देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, आवास, रोज़गार पर बढ़ते दबाव को देखते हुए दो बच्चों की नीति अनिवार्य करने की मांग में तेज़ी आई है। हालाँकि विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को चीन से सबक लेते हुए इस मुद्दे पर कोई निर्णय लेना चाहिये।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 के नवीनतम आँकड़ों से यह प्रमाणित होता है कि परिवार नियोजन के संबंध में भारत में सुधार हुआ है एवं बच्चों के जन्म की औसत दर में भी गिरावट देखी गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे यह साबित होता है कि देश की आबादी स्थिर है एवं जनसंख्या विस्फोट का डर एवं दो बच्चों की अनिवार्य नीति गुमराह करने वाली है। इसके साथ ही यह विषय इसलिये भी चर्चा का मुद्दा बन जाता है कि भारत जैसे देश के लिये दो बच्चों की नीति अपनाना किस हद तक तार्किक है एवं इस संबंध में भारत को चीन से क्या सीख लेनी चाहिये।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2019 में स्वतंत्रता दिवस पर भाषण के दौरान देश से जनसंख्या नियंत्रण हेतु अपील की थी। प्रधानमंत्री के भाषण का एक बड़ा हिस्सा पर्यावरण और व्यवहार संबंधी परिवर्तनों से संबंधित चिंताओं से प्रेरित था। प्रधानमंत्री ने जनसंख्या नियंत्रण संबंधी प्रयासों को देशभक्ति का ही एक रूप बताया था और इसे प्राप्त करने हेतु पूरे समाज को आगे आने की बात भी कही थी। उन्होंने कहा था कि देश में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति भविष्य की पीढ़ियों के लिये विभिन्न समस्याएँ उत्पन्न करेगी। जो लोग छोटे परिवार की नीति का पालन करते हैं वे भी विकास में योगदान करते हैं।
नीति आयोग ने बाद में इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर के परामर्श हेतु विभिन्न हितधारकों को आमंत्रित किया किंतु आगे चलकर इसे रद्द कर दिया गया।
वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री ने महिलाओं के लिये विवाह की उम्र को संशोधित करने के संबंध में एक संभावित निर्णय के बारे में बात की थी, जिसे कई लोग जनसंख्या को नियंत्रण करने के अप्रत्यक्ष प्रयास के रूप में देखते हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 रिपोर्ट का पहला भाग जिसे कुछ समय पूर्व ही सार्वजनिक किया गया था, 17 राज्यों और 5 केंद्रशासित प्रदेशों के आँकड़ो को दर्शाता है। अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन जनसंख्या परिषद (Population Council) द्वारा इन आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत के 17 में से 14 राज्यों में कुल प्रजनन दर (प्रति महिला जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या) में कमी आई है या प्रति महिला प्रजनन दर 2-1 या उससे कम है। इसका अर्थ यह हुआ कि अधिकांश राज्यों ने प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन (Replacement Level Fertility) अर्थात् प्रति महिला जन्म लेने वाले बच्चों की औसत संख्या, जिसकी एक आबादी खुद को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पूरी तरह से बदल सकती है।
यह डेटा दर्शाता है कि दो बच्चे से संबंधित धारणा गलत और मिथक है। हालाँकि परिवार स्वास्थ्य कार्यक्रम व्यक्तियों के अधिकार और सम्मान को बनाए रखने हेतु आवश्यक है।
वर्ष 2005 और 2016 के मध्य आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 3 एवं राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 के दौरान 22 में से 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में गर्भनिरोधक के आधुनिक तरीकों के इस्तेमाल में गिरावट देखी गई थी। जबकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 में 12 में से 11 राज्यों में जहाँ इन गर्भनिरोधकों का उपयोग पहले कम या उसमें अब वृद्धि देखी गई। विशेषज्ञों द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार, बाल विवाह की वृद्धि के संबंध में भी ध्यान आकर्षित किया गया है एवं अपील की गई है कि नीति-निर्माताओं को इस क्षेत्र में शुरुआती गर्भधारण पर अंकुश लगाने हेतु ध्यान देना आवश्यक है। हालाँकि देखा गया है कि प्रति परिवार दो बच्चों के संबंध में कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है। इस मामले में नवंबर 2019 में राज्यसभा में एक विधेयक पेश किया गया था, जिसमें छोटे परिवारों के लिये प्रोत्साहन का प्रस्ताव रखा गया था।
विभिन्न राज्यों में दो बच्चों से संबंधित नीति: 2019 तक की स्थिति
असम
असम मंत्रिमंडल द्वारा लिये गए फैसले के अनुसार, वर्ष 2021 से दो से अधिक बच्चों वाले लोग सरकारी नौकरी हेतु अयोग्य माने जाएंगे।
राजस्थान
सरकारी नौकरियों के मामले में जिन उम्मीदवारों के दो से अधिक बच्चे होंगे वे नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे।
राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति के दो से अधिक बच्चे हैं तो उसे ग्राम पंचायत या वार्ड सदस्य के रूप में चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य घोषित किया जाएगा। हालाँकि पिछली सरकार ने विकलांग बच्चे के मामले में दो बच्चों संबंधी मानदंड में ढील दी थी।
मध्य प्रदेश
यह राज्य वर्ष 2001 के बाद से दो बच्चों के मानदंड संबंधी नीति का पालन कर रहा है। मध्य प्रदेश सिविल सेवा (सेवाओं की सामान्य स्थिति) नियमों के अनुसार, 26 जनवरी, 2001 को या उसके बाद यदि तीसरे बच्चे का जन्म होता है तो वह व्यक्ति किसी भी सरकारी सेवा हेतु अयोग्य माना जाएगा। यह नियम उच्चतर न्यायिक सेवाओं पर भी लागू होता है।
मध्य प्रदेश ने वर्ष 2005 तक स्थानीय निकाय चुनावों के उम्मीदवारों के लिये दो-बच्चों के आदर्श का पालन किया परंतु व्यावहारिक रूप से आपत्तियाँ आने के बाद इसे बंद कर दिया गया। हालाँकि विधानसभा और संसदीय चुनावों में ऐसा नियम लागू नहीं था।
तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश
धारा 19 (3) के तहत तेलंगाना पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 153 (2) और 184 (2) के तहत दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य घोषित किया जाएगा।
हालाँकि 30 मई, 1994 से पहले अगर किसी व्यक्ति के दो से अधिक बच्चे थे तो उसे अयोग्य घोषित नहीं किया जाएगा। आंध्र प्रदेश पंचायत राज्य अधिनियम, 1994 में समान खंड आंध्र प्रदेश के लिये भी लागू होता है, जहाँ दो से अधिक बच्चे वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जाएगा।
गुजरात
वर्ष 2005 में सरकार द्वारा गुजरात स्थानीय प्राधिकरण अधिनियम में संशोधन किया गया था जिसके अनुसार स्थानीय स्वशासन, पंचायतों, नगर पालिकाओं और नगर निगम के निकायों का चुनाव लड़ने हेतु दो से अधिक बच्चों वाले किसी भी व्यक्ति को अयोग्य घोषित किया गया है।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र ज़िला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम स्थानीय निगम चुनाव (ग्राम पंचायत से लेकर नगर निगम तक) लड़ने के लिये दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को अयोग्य घोषित किया जाएगा।
महाराष्ट्र सिविल सेवा (छोटे परिवार की घोषणा) निगम, 2005 के अनुसार, दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को राज्य सरकार के किसी भी पद हेतु अयोग्य घोषित किया गया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को नहीं दिया जाता।
उत्तराखंड
राज्य सरकार द्वारा दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को पंचायत चुनाव लड़ने से रोकने का फैसला लिया गया था एवं इस संबंध में विधानसभा में एक विधेयक पारित किया गया था। परंतु ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत वार्ड सदस्य का चुनाव लड़ने वालों द्वारा इस फैसले को उच्च न्यायालय में दी गई चुनौती के उपरांत उन्हें राहत प्रदान की गई। इसके तहत दो बच्चों वाले मानदंड की शर्त केवल उन लोगों पर लागू की गई है जिन्होंने ज़िला पंचायत के चुनाव लड़े।
कर्नाटक
कर्नाटक (ग्राम स्वराज और पंचायत राज) अधिनियम, 1993 दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्तियों को ग्राम पंचायत जैसे- स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित नहीं कर सकता।
हालाँकि कानून के अनुसार, एक व्यक्ति ‘‘जिसके परिवार के सदस्यों के उपयोग के लिये सैनिटरी शौचालय उपलब्ध नहीं है,’’ वह चुनाव लड़ने हेतु अयोग्य होगा।
ओडिशा
ओडिशा ज़िला परिषद अधिनियम दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करता है।
दो बच्चों से संबंधित राष्ट्रनीति
13 अगस्त, 2018
दो बच्चों से संबंधित राष्ट्र नीति को लागू करने हेतु राष्ट्रपति को याचिका सौंपी गई।
15 अगस्त, 2019
स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताई थी।
10 जनवरी, 2020
सर्वोच्च न्यायालय ने जनसंख्या नियंत्रण कानून वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।
18 जनवरी, 2020
RSS के संघ संचालक मोहन भागवत द्वारा जनसंख्या नियंत्रण का मुद्दा उठाया गया।
सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका में कहा गया था कि क्या भारत में सिर्फ दो बच्चे पैदा करने वाला कानून पास हो सकता है? क्या भारत सरकार चीन की तरह वन चाइल्ड पॉलिसी लेकर आ सकती है? हालाँकि इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि यह संसद के हस्तक्षेप का क्षेत्र है।
दो बच्चों की राष्ट्र नीति के नकारात्मक पहलू
आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, वर्ष 2040 तक भारत में बुजुर्गों की आबादी 16 फीसदी तक पहुँच जाएगी। वर्ष 2050 तक यह संख्या 33 करोड़ पार कर जाएगी और विशेषज्ञों द्वारा आशंका जताई जा रही है कि अगर दो बच्चों की राष्ट्र नीति नहीं अपनाई गई तो इन आँकड़ों में और अधिक वृद्धि हो सकती है।
दो बच्चों की राष्ट्र नीति के सकारात्मक पहलू
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आबादी वर्ष 2027 तक 158 करोड़ हो जाएगी, जो फिलहाल 131 करोड़ है। वहीं चीन की जनसंख्या वर्ष 2027 में 153 करोड़ हो जाएगी। इस प्रकार भारत वर्ष 2027 तक विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा।
गौरतलब है कि जनसंख्या बढ़ने से बेरोज़गारी, गरीबी, अशिक्षा, निम्न स्वास्थ्य स्तर और प्रदूषण जैसी समस्याओं में वृद्धि होगी।
जनसंख्या के संबंध में चीन की स्थिति
वर्ष 1979 में चीन द्वारा एक बच्चे की राष्ट्र नीति को लाने का उद्देश्य बढ़ती हुई आबादी पर नियंत्रण पाना था। उस वक्त चीन की जनसंख्या 97 करोड़ थी जो वर्ष 2019 में 139 करोड़ हो गई है। इस नीति से 40 करोड़ बच्चे कम पैदा हुए लेकिन कामगार आबादी में तेज़ी से गिरावट हुई। इससे वहाँ वृद्ध जनसंख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई एवं बुजुर्ग पीढ़ी को सहारा देने के लिये युवा आबादी में कमी आने लगी। इसे देखते हुए चीन ने अपनी नीति को बदलते हुए वर्ष 2016 में एक बच्चे की राष्ट्र नीति को वापस ले लिया एवं दो बच्चों की इजाजत दे दी।
आगे की राह
भारत में जनसंख्या संबंधी कैसी नीति होनी चाहिये, इस पर राष्ट्रव्यापी बहस की आवश्यकता है। इसके लिये केंद्र, राज्यों और अन्य संबंधित संस्थाओं को एक साथ मिलकर किसी निष्कर्ष पर पहुँचना होगा। चीन का सबक भी यही कहता है कि भारत को ऐसा अनिवार्य कानून बनाना चाहिये जो सस्ती-सुलभ शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि कर इस कार्य को इस कार्य को सुनिश्चित कर सके।