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  • 12 Jun 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    जलवायु परिवर्तन के मद्देनज़र स्थायी कृषि और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये क्या कदम उठाए जाने की आवश्यकता है?

    उत्तर

    प्रश्न हल करने का दृष्टिकोण

    • खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध स्थापित करना।
    • जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खाद्य सुरक्षा चुनौतियों के संदर्भ में स्थायी कृषि का महत्त्व बताए। जलवायु परिवर्तन का विचार प्रस्तुत करें और यह भी बताए कि कृषि को किस प्रकार प्रभावित करेगा।
    • प्रासंगिक उदाहरणों के साथ खाद्य सुरक्षा और स्थायी कृषि को सुनिश्चित करने के तरीके सुझाए।

    प्रमुख बिंदु

      • सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) का मुख्य उद्द्देश्य भूख को समाप्त करना, खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना और पोषण में सुधार करना हैं।
      • वर्ष 1996 में आयोजित विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार, खाद्य सुरक्षा के तीन मुख्य आयाम हैं: भोजन की उपलब्धता, भोजन तक पहुँच और भोजन का अवशोषण (food absorption)।
    • भोजन की उपलब्धता:
      भारत का खाद्य उत्पादन, जलवायु परिवर्तन प्रति बहुत अधिक संवेदनशील है क्योंकि इस क्षेत्र का मानसून परिवर्तनशीलता प्रति अत्यधिक संवेदनशील होना जारी है और पैदावार की दर कम होने के कारण उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित होता है।
      • पहुँच:
        मौसम की किसी भी अतिविषम घटना के कारण विस्थापन, आजीविका का नुकसान या उत्पादक परिसंपत्तियों को होने वाले नुकसान का सीधा प्रभाव उत्पादन और घरेलू खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा जैसा कि भविष्य के जलवायु परिवर्तन के तहत अनुमानित है।
      • अवशोषण:
        जलवायु परिस्थितियों में परिवर्तन खाद्य पदार्थों के पोषण की गुणवत्ता (जिंक और आयरन जैसे प्रोटीन एवं खनिजों में एकाग्रता में कमी) में कमी का कारण बन सकता है। यह मोटे तौर पर उपेक्षित महामारी को बढ़ावा दे सकता है जिसे "छिपी हुई भूख" (hidden hunger) या सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी के रूप में जाना जाता है।
      • भारतीय कृषि और इस प्रकार भारत का खाद्य उत्पादन, जलवायु परिवर्तन के प्रति काफी हद तक संवेदनशील है क्योंकि यह क्षेत्र मानसून परिवर्तनशीलता के प्रति भी अत्यधिक संवेदनशील है।
      • भारत सरकार ने स्थायी कृषि को बढ़ावा देने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (National Mission for Sustainable) शुरू किया है।
    • अनुकूल अंतर-फसल प्रणाली (Resilient Intercropping System):
      मानसून में देरी होने जैसी समस्याओं से निपटने के लिये लघु अवधि वाले पर्यायक्रमिक फसलों जैसे- काला चना, मूंगफली आदि की खेती की जा सकती है जिससे आय के स्रोत को बनाए रखने में मदद मिलेगी।
      • शून्य जुताई (Zero tillage):
        शून्य जुताई तकनीक को अपनाने से नुकसान कम होगा और उत्पादन में वृद्धि होगी। शून्य जुताई या ज़ीरो टिलेज बुवाई गेहूँ (तने के झुकने) के कारण नुकसान को कम करता है।
      • जल का कुशल उपयोग:
        दक्षता बढ़ाने के लिये जल और पोषक तत्त्वों का कुशल प्रबंधन किया जाना चाहिये। पानी को बचाने के लिये बाढ़ सिंचाई के स्थान पर टपक-सिंचाई जैसे तरीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिये।
      • जलवायु अनुकूल फसलें:
        सरकार को चाहिये की वह किसानों को जलवायु-अनुकूल या जलवायु के प्रति सहनशील फसल की किस्मों का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करें। यह जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली फसलों की विफलता से निपटने में किसानों की मदद करेगा। उदाहरण के लिये- केरल का पोक्कली धान, एक ऐसी किस्म है जो खारे पानी में भी उगाई जा सकती है।
      • फसल विविधीकरण:
        फसल विविधीकरण का तात्पर्य एक विशेष खेत में कृषि उत्पादन के लिये नई फसलों या फसल प्रणाली को शामिल करने से है। फसल विविधीकरण कृषि को संवहनीय या टिकाऊ बनाने में मदद करता है तथा पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।
      • शहरी कृषि,
        शहरी खेती, या शहरी बागवानी खेती या प्रसंस्करण और शहरी क्षेत्रों में या आसपास भोजन वितरित करने का एक अभ्यास है। शहरी कृषि में पशुपालन, जलीय कृषि, कृषि व्यवसाय, शहरी मधुमक्खी पालन और बागवानी को शामिल किया जा सकता है। शहरी आबादी के लिये खाद्य संसाधनों का विविधिकरण करके उसे जलवायु परिवर्तन के अनुकूल किया जा सकता है। गत वर्षों के दौरान तेज़ी से शहरीकरण होने के कारण इन क्षेत्रों में सब्जियाँ, फलों और फूलों की मांग निरंतर बढ़ रही है। शहरी कृषि से महत्त्वपूर्ण स्थानीय खाद्यान्न उत्पादन केंद्र वाली विविधकृत खाद्यान्न प्रणाली के विकास से मूल्य स्थिरिकरण में सहायता होगी। इससे परिवहन पर बोझ कम होगा, और ताज़े उत्पादों के शीत भंडार गृहों वाली ग्रीन हाउस गैस को कम करने में मदद मिलेगी।
    • शून्य बजट प्राकृतिक खेती (Zero Budget Natural Farming- ZBNF):
      ZBNF जैसी विधियाँ उपज, मृदा संरक्षण, बीज विविधता, उपज की गुणवत्ता, घरेलू खाद्य स्वायत्तता, आय एवं स्वास्थ्य में सुधार को बढ़ावा देती है। शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) प्राकृतिक खेती विधियों के एक सेट को संदर्भित करती है, जहाँ फसलों की बुवाई और कटाई शून्य लागत प्रभावी ढंग से की जाती है। यह किसी भी उर्वरक, कीटनाशक या अन्य विदेशज तत्त्व को फसल और भूमि में उपयोग किये बिना प्राकृतिक रूप से फसलों की वृद्धि में विश्वास करती है। भारत की बढ़ती खाद्य ज़रूरतों को देखते हुए ZBNF, देश में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये एक सही कदम है।

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