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12 Jun 2019
सामान्य अध्ययन पेपर 3
पर्यावरण
भारत में पर्यावरणीय सोच को नियमों और विनियमों को लागू करने से परे नतीजों और परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो साझा समझ एवं सामान्य उद्देश्य की भावना से प्राप्त होते हैं। चर्चा करें।
उत्तर
प्रश्न हल करने का दृष्टिकोण
- उदाहरण के साथ चर्चा कीजिये कि पर्यावरण के मुद्दे से निपटने में कानून का शासन किस प्रकार पर्याप्त नहीं है।
- ऐसे उपायों पर चर्चा कीजिये जो समाज में पर्यावरण के लिये एक साझा समझ और सामान्य उद्देश्य की भावना विकसित करने में सहायक साबित होंगे।
- इस संबंध में उठाए गए कदमों पर एक उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये और भविष्य में इस संदर्भ में क्या किया जाना चाहिये।
प्रमुख बिंदु
- पर्यावरण अवशिष्ट सूची का विषय है। इसके अनुसरण में वन्यजीव अधिनियम, 1972; पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986; वायु प्रदूषण अधिनियम, 1981 आदि कई कानून लागू किये गए हैं।
- लेकिन इन सभी उपायों के बावजूद भारत की पर्यावरणीय स्थिति बहुत निराशाजनक है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 भारत में हैं।
- विश्व बैंक की अर्थव्यवस्था के अनुसार, पर्यावरणीय अवनति में लगने वाली लागत भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 5.7 प्रतिशत है।
- पर्यावरण शासन के लिये एक नए ढाँचे को अपनाए जाने की आवश्यकता है, जो न केवल बहुस्तरीय हो बल्कि केवल अनुपालन के बजाय पारिस्थितिक तंत्र और परिणामों पर भी आधारित हो।
पर्यावरणीय ढाँचे को निम्नलिखित सिद्धांतों में सहयोग करना चाहिये:
- सब्सिडी के सिद्धांत को अपनाया जाना चाहिये
- चूँकि कई पर्यावरणीय मुद्दे प्रकृति में स्थानीय और क्षेत्रीय होते हैं, इसलिये उन्हें संबोधित करते हुए स्थानीय क्षेत्रीय न्यायालयों एवं स्थानीय लोगों के जुड़ाव पर विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
- इसके लिये शहरी स्थानीय निकायों में सुधारों पर बल दिया जाना चाहिये ताकि संस्थागत और तकनीकी दोनों प्रकार के अपशिष्ट का बेहतर ढंग से प्रबंधन करें।
- 14वें वित्त आयोग द्वारा सुझाए गए अंतर सरकारी हस्तांतरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- अंतर-राज्य परिषद को सशक्त बनाया जाना चाहिये इससे उक्त एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- वायु और जल प्रदूषण का शमन प्रमुख प्राथमिकता
- भारतीय शहरों में वायु गुणवत्ता की स्थिति काफी गंभीर है, ऐसी ही स्थिति कमोबेश शहर के कई जल निकायों की भी है।
- इस संदर्भ में राज्यों को उल्लंघनकर्त्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को मज़बूत बनाया जाना चाहिये।
- राज्य स्तर पर सार्वजनिक निवेश में वृद्धि की जानी चाहिये ताकि सार्वजनिक बसों, मेट्रो और अनौपचारिक सार्वजनिक परिवहन की उपलब्धता को बढ़ाया जा सकें।
- शहरों और महानगरीय क्षेत्रों में समृद्ध क्षेत्रों के लिये भीड़ कर या वाहन कोटा लगाना।
- केंद्र सरकार को तुरंत अपशिष्ट और अपशिष्ट जल के प्रबंधन के लिये सुधारों को लागू करना चाहिये। यह तीन स्तरों पर होना चाहिये:
1. स्रोत पर अपशिष्ट और अपशिष्ट जल की कमी;
2. ऑनसाइट उपचार उपलब्ध कराए जाने चाहिये, विशेषकर जहाँ संभव हो;
3. गैर-उपभोगकारी उपयोग हेतु पानी के रूप में अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण।
- राष्ट्रीय और राज्य आय में हरित लेखांकन को अपनाया जाना चाहिये
- हरित आय लेखांकन पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग या कमी को शामिल करने के लिये आय खातों को संशोधित करता है।
- इस तरह के लेखांकन का मुख्य उद्देश्य आर्थिक उत्पादन में पर्यावरणीय संसाधनों के उपयोग को स्पष्ट करना है; अभी तक इनका उपयोग अदृश्य रहा है।
- पर्यावरण की संरक्षा हमारे सांस्कृतिक मूल्यों व परंपराओं का एक अंग है। अथर्ववेद में कहा गया है कि मनुष्य का स्वर्ग यहीं पृथ्वी पर है। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने भी कहा था कि दो चीजें असीमित हैं--एक ब्रह्माण्ड तथा दूसरी मानव की मूर्खता। मनुष्य ने अपनी मूर्खता के कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न की हैं, जिनमें पर्यावरण प्रदूषण भी एक है। इस पर अंकुश लगाने के लिये पर्यावरण संरक्षण को तभी प्रभावी बनाया जा सकता है जब उसमें लोगों की सहभागिता बढ़ाने के साथ पर्यावरण जागरूकता, पर्यावरण संबंधी शिक्षा का विकास करने व लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने के लिये पर्यावरण की रक्षा से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों का ज्ञान हो। यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कानूनी प्रयासों साथ ही सामूहिक सामंजस्य एवं आपसी समझ के द्वारा प्रयास करने से ही प्रदूषण पर प्रभावशाली तरीके से नियंत्रण करना संभव हो सकता है।