महत्त्वपूर्ण टॉपिक्स 2020
दिवस 56
- 14 Sep 2020
- 1 min read
प्रिलिम्स रिफ्रेशर प्रोग्राम 2020 के आर्टिकल पेज पर आपका स्वागत है। इस पेज पर हम आपको 3 सुविधाएँ उपलब्ध कराएँगे:
- रीविज़न के लिये टॉपिक्स की एक सूची।
- यदि आवश्यक हो तो टॉपिक्स पर एक संक्षिप्त चर्चा।
- इन टॉपिक्स को तैयार करने के लिये विभिन्न स्रोतों के लिंक।
कृपया अपने साथी अभ्यर्थियों के प्रति सौहार्दपूर्ण रहें तथा संशय-समाधान से संबंधित इन संवादों का उपयोग स्पष्ट रूप से इसके निर्दिष्ट उद्देश्यों के लिये ही करें।
समापन दिवस (फाइनल ट्रिप्स एवं ट्रिक्स)
प्रिय अभ्यर्थियों एस्पिरेंट्स, हमें हम आशा करते हैं कि CSE प्रिलिम्स 2020 के लिये आपकी तैयारी अच्छी चल रही है। आज हम आपके लिए कुछ ऐसे टिप्स और ट्रिक्स लेकर आए हैं, जो प्रारंभिक परीक्षा में मददगार हो सकते हैं और आपको सफल अभ्यर्थियों की पंक्ति में शामिल कर सकते हैं।
समय प्रबंधन
- पहली और सबसे ज़रूरी बात है पेपर-1 यानी सामान्य अध्ययन की परीक्षा अवधि में समय-प्रबंधन की। वैसे तो समय-प्रबंधन जीवन के हर क्षेत्र में इंसान की बेहतरी के लिये आवश्यक है। चूँकि ‘परीक्षा’ निश्चित समय-सीमा में अपने ज्ञान-कौशल के प्रदर्शन का ही दूसरा नाम है, इसलिये समय-प्रबंधन परीक्षा का अनिवार्य पहलू है।
- प्रारंभिक परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र में प्रश्नों की कुल संख्या 100 होती है जिन्हें महज 2 घंटे या 120 मिनट में हल करना होता है। इस लिहाज से देखा जाए तो परीक्षार्थियों को हरेक प्रश्न के लिये महज 72 सेकेण्ड का समय मिलता है, जबकि प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्नों की जटिलता और गहराई सर्वविदित है।
- अधिकांश प्रश्नों में आरंभ में 2-3 कथन या तथ्य दिये जाते हैं जिनमें से कुछ सही, और कुछ गलत होते हैं। इसके बाद इन कथनों/तथ्यों के संयोजन से जटिल प्रकृति के चार विकल्प दिये जाते हैं, जैसे- कथन 1 और 3 सही हैं और कथन 2 गलत आदि।
- परीक्षार्थी को 72 सेकेंड के अंदर ही इन विकल्पों में से सही उत्तर को चुनकर, उसके लिये उत्तर-पत्रक में सही गोले को काला करना होता है। ऐसे में प्रश्न के गलत होने का खतरा तो होता ही है, साथ ही कठिन विकल्पों के कारण प्रश्नों को हल करने में ज़्यादा समय भी लगता है। इस कारण कई दफा छात्र पूरा पेपर तक नहीं पढ़ पाते हैं। कहने का तात्पर्य है कि यू.पी.एस.सी. के प्रश्नों की प्रकृति इतनी गहरी और विकल्प इतने जटिल होते हैं कि अंत में समय-प्रबंधन खुद एक चुनौती बन जाता है।
- इस चुनौती से निपटने का एक तरीका यह है कि सर्वप्रथम वही प्रश्न हल किये जाएँ जो परीक्षार्थी की ज्ञान की सीमा के दायरे में हों। जिन प्रश्नों के उत्तर पता न हों या जिन पर उधेड़बुन हो, उन्हें निशान लगाकर छोड़ देना चाहिये और अगर अंत में समय बचे तो उनका उत्तर देने की कोशिश करनी चाहिये, वरना उन्हें छोड़ देने में ही भलाई है।
- दूसरा तरीका यह है कि उम्मीदवार सभी प्रश्नों को हल करने का लालच छोड़कर अपने अधिकार क्षेत्र वाले प्रश्न यानी जिन खंडों पर मज़बूत पकड़ हो, उनसे संबंधित प्रश्नों पर ही फोकस करें। हाँ, समय बचने पर अन्य खंडों के प्रश्नों पर ध्यान दिया जा सकता है।
- इस मामले में छात्रों को यह सावधानी ज़रूर बरतनी चाहिये कि वे कम-से-कम इतने खंडों का चुनाव अवश्य कर लें जिनसे सम्मिलित रूप से 75-80 प्रश्न उनके दायरे में आ जाएँ। शेष एकाध खंड छूट भी जाए तो बहुत परेशानी वाली बात नहीं है।
- इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि परीक्षार्थियों को प्रति प्रश्न मिलने वाले औसत समय (72 सेकेंड) में वृद्धि होगी जिससे वे अपने चुने हुए प्रश्नों पर अधिक ध्यान और समय दे पाएंगे। इस बात को आगे दी गई तालिका के माध्यम से समझा जा सकता है।
आपके द्वारा किये जाने वाले प्रश्नों की संख्या |
कुल समय |
प्रति प्रश्न औसत समय |
100 |
2 घंटे/120 मिनट/ 7200 सेकेण्ड |
72 सेकेण्ड/1.2 मिनट |
90 |
2 घंटे/120 मिनट/7200 सेकेण्ड |
80 सेकेण्ड/ 1.33 मिनट |
80 |
2 घंटे/120 मिनट/ 7200 सेकेण्ड |
90 सेकेण्ड/ 1.5 मिनट |
75 |
2 घंटे/120 मिनट/ 7200 सेकेण्ड |
96 सेकेण्ड/ 1.6 मिनट |
70 |
2 घंटे/120 मिनट/ 7200 सेकेण्ड |
103 सेकेण्ड/ 1.7 मिनट |
निगेटिव मार्किंग तथा प्रश्नों को हल करने की टैक्टिक
- जैसा कि आप लोगों को पता है, प्रारंभिक परीक्षा में किसी भी प्रश्न का गलत उत्तर देने पर, उस प्रश्न के लिये निर्धारित अंकों में से 33% अंक काट दिये जाते हैं। अगर सरल शब्दों में कहें तो एक सही उत्तर पर जितने अंक मिलते हैं, उतने ही अंक तीन गलत उत्तर देने पर काट दिये जाते हैं। इसे ही ‘निगेटिव मार्किंग’ कहते हैं। इस नियम के अनुसार, सामान्य अध्ययन पेपर में प्रत्येक गलत उत्तर के लिये एक-तिहाई यानी 0.66 अंक (प्रश्न के लिये निर्धारित दो अंकों में से) कट जाते हैं।
- अगर परीक्षार्थी कोई प्रश्न बिना उत्तर दिये छोड़ देता है तो उस पर न तो अंक मिलते हैं, और न ही काटे जाते हैं। इस स्थिति में परीक्षार्थियों की कोशिश यह होनी चाहिये कि न तो अंधाधुंध खतरे उठाएँ और न ही तुक्के पर तुक्के लगाते जाएँ और न ही अनुमान करने से इतना घबराएँ कि बहुत कम प्रश्नों को ही हल कर पाएँ।
- यह परीक्षा परीक्षार्थी से ‘कैल्कुलेटिव रिस्क’ उठाते हुए प्रश्नों को हल करने की सही टैक्टिक की अपेक्षा करती है। प्रश्नपत्र को हल करने के लिये ‘कैल्कुलेटिव रिस्क’ पद्धति को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं-
- जहाँ उत्तर का बिल्कुल भी अनुमान न हो अर्थात् प्रश्न का कोई सिर-पैर न सूझ रहा हो तो वहाँ हवाई तुक्का लगाने से बचें, बल्कि समय बचाने के लिये ऐसे प्रश्नों को छोड़ देना ही बेहतर है।
- जब उम्मीदवार किसी प्रश्न के चारों विकल्पों में से किसी एक के बारे में जानता हो लेकिन शेष तीन विकल्पों के बारे में उसे कोई जानकारी न हो तो कैल्कुलेटिव रिस्क के आधार पर उसे ऐसे प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश करनी चाहिये। इससे परीक्षार्थियों को अंकों के मामले में अंततः फायदा ही होगा। किंतु इस प्रकार के प्रश्नों को बाकी प्रश्न करने के बाद बचे हुए समय में हल करना श्रेयस्कर होगा।
- यदि उम्मीदवार किसी प्रश्न के चारों विकल्पों में से दो के बारे में जानता हो और दो के बारे में नहीं, तो उसे अनुमान के आधार पर उत्तर ज़रूर देना चाहिये। अगर आप 6 प्रश्नों में ऐसा करते हैं और मान लिया जाए कि 50% संभाव्यता के अनुसार आपके 3 प्रश्न सही होते हैं और 3 गलत; तो आपको शुद्ध रूप से 4 अंकों का लाभ मिलेगा जो सफलता की दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है।
- प्रश्नों को हल करने की टैक्टिक में छात्रों को हमेशा प्रश्नों की प्रकृति समझते हुए ‘आसान-प्रश्न’ से ‘जटिल-प्रश्न’ की ओर क्रमिक रूप से बढ़ना चाहिये। साथ ही, उन्हें जिन प्रश्नों के उत्तर सीधे तौर पर नहीं आते हों उनमें ‘निष्कासन विधि’ यानी ‘इलेमनेटिंग पद्धति’ का इस्तेमाल करना चाहिये। निष्कासन विधि के तहत चारों विकल्पों में से जिसके गलत होने की संभावना सर्वाधिक हो उसे छाँटते हुए धीरे-धीरे सही उत्तर तक पहुँचना होता है। यह विधि बहुत कारगर है इसलिये परीक्षा देते समय इसका इस्तेमाल ज़रूर करना चाहिये।
सामान्य अध्ययन या पेपर-1 की रणनीति
- आमतौर पर परीक्षा भवन में प्रवेश करने से पहले परीक्षार्थी यह निश्चय ज़रूर कर लेता है कि उसे न्यूनतम या अधिकतम कितने प्रश्न हल करने हैं। इस सोच के पीछे प्रारंभिक परीक्षा के विगत वर्षों के कट-ऑफ आँकड़े तथा आगामी परीक्षा के संभावित कट-ऑफ का अनुमान शामिल होता है।
- चूँकि सीसैट को क्वालीफाइंग है इसलिये कट-ऑफ की दृष्टि से यह अप्रासंगिक है और सारा दारोमदार पेपर-1 यानी सामान्य अध्ययन पर है। इसलिये, विशेषकर हिन्दी माध्यम के अभ्यर्थियों के लिये सामान्य अध्ययन पेपर की कट-ऑफ बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
- चाहे विज्ञान पृष्ठभूमि के छात्र हों अथवा कॉमर्स, या फिर मानविकी पृष्ठभूमि के, उन्हें अपनी जानकारी और रुचि के मुताबिक कम से कम इतने खंडों को तो अच्छी तरह से तैयार करके परीक्षा भवन में जाना चाहिये जिससे कि वे लगभग 70-75 प्रश्नों को अच्छे से हल कर सकें।
- सामान्य अध्ययन में अपने लक्ष्य के अनुरूप अंक प्राप्त करने हेतु उम्मीदवार के पास कितने प्रश्न करने और कितने छोड़ने की सुविधा है, इस पर भी ध्यान देना आवश्यक है।
सीसैट या पेपर-2 की रणनीति
- सीसैट प्रश्नपत्र क्वालीफाइंग होने के बावजूद भी इसे नज़रअंदाज करना परीक्षार्थियों के हित में कतई नहीं हो सकता। ध्यातव्य है कि यू.पी.एस.सी. की मुख्य परीक्षा में भी अंग्रेज़ी (अनिवार्य पेपर) क्वालीफाइंग होने के बावजूद हर वर्ष हज़ारों की संख्या में छात्र डिस्क्वालीफाई हो जाते हैं। इसलिये छात्रों को प्रारंभिक या मुख्य, किसी भी परीक्षा में क्वालीफाइंग पेपर को हल्के में नहीं लेना चाहिये। अतः परीक्षार्थियों को यह सलाह दी जाती है कि परीक्षा भवन में प्रवेश करने से पहले सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा के द्वितीय प्रश्नपत्र (सीसैट) के लिये भी एक बेहतर रणनीति बनाकर ही जाएँ।
- बेशक सीसैट वाले पेपर में परीक्षार्थी को 33% या 66 अंक लाने हैं जिसके लिये लगभग 27 प्रश्न ही सही करने हैं किंतु इसके लिये भी परीक्षा के उन दो घंटों में छात्रों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जाती है ताकि प्रारंभिक परीक्षा में आपकी सफलता सुनिश्चित हो सके।
अधिक से अधिक अभ्यास
- मॉक टेस्ट करने से, आप अपनी स्वयं की ट्रिक्स विकसित कर पाएंगे और प्रारंभिक परीक्षा में सफल होने के लिये कुशलता विकसित कर पाएंगे।
- चूँकि पाठ्यक्रम बहुत बड़ा है, इसलिये पूरे पाठ्यक्रम का रिवीज़न करने में आपको कठिनाई हो सकती है। ऐसे में टेस्ट के माध्यम से रिवीज़न स्वयं को प्रिलिम्स के लिये तैयार करने का एक शानदार तरीका हो सकता है।
- इसलिये यदि 60 Steps to Prelims तथा प्रिलिम्स रिफ्रेशर प्रोग्राम को पूरा नहीं कर पाए हैं तो इस कार्यक्रम में दिये गए 20 टेस्ट के माध्यम से भी रिवीज़न कर सकते हैं।
कुछ अन्य सुझाव
- परीक्षार्थियों को यह समझना ज़रूरी है कि यू.पी.एस.सी. की यह परीक्षा सभी के लिये समान रूप से कठिन है। इसलिये किसी छात्र विशेष को इस मामले में अतिरिक्त तनाव लेने की बजाय परीक्षा भवन की अपनी रणनीति पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिये। कोई भी परीक्षा सरल या कठिन आपकी तैयारी, रणनीति व मनो...
- परीक्षार्थियों को यह समझना ज़रूरी है कि यू.पी.एस.सी. की यह परीक्षा सभी के लिये समान रूप से कठिन है। इसलिये किसी छात्र विशेष को इस मामले में अतिरिक्त तनाव लेने की बजाय परीक्षा भवन की अपनी रणनीति पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिये।
- कोई भी परीक्षा सरल या कठिन आपकी तैयारी, रणनीति व मनोदशा के अनुरूप ही होती है। यदि आपकी तैयारी बेहतर और परीक्षा भवन की रणनीति सशक्त है तो तय मानिये कि आपकी मनोदशा कभी भी परीक्षा को लेकर तनावग्रस्त नहीं होगी। अतः डरना छोड़कर लड़ने को तैयार रहें।
- संभव है कि परीक्षा से एक दिन पहले छात्र तनाव महसूस करें। चूँकि यह सबके साथ होता है, अतः इसे लेकर बहुत ज़्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। ध्यान रखें कि हल्का-फुल्का तनाव सकारात्मक योगदान भी देता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार एक निश्चित स्तर का तनाव हमारे निष्पादन/प्रदर्शन को बढ़ाता है किंतु उससे ज़्यादा तनाव प्रदर्शन को कम भी कर देता है। कहने का तात्पर्य यह है कि थोड़ा तनाव या डर आपको सतर्क बनाए रखता है तथा लक्ष्य को भूलने नहीं देता है। ‘परीक्षा’ इसी का नाम है। इसलिये इस संदर्भ में फिक्र करने की बजाय इसे सकारात्मक दिशा प्रदान कर जीत सुनिश्चित करनी चाहिये। याद रखें डर के आगे ही जीत है।
- यू.पी.एस.सी. की परीक्षा बहुत बड़ा मंच है। इसके लिये उम्मीदवार वर्षों अध्ययनरत रहते हैं। किंतु कई दफा बेहतर तैयारी के बावजूद परीक्षा भवन में जाने से पूर्व उन्हें लगता है कि जैसे वे सब कुछ भूल गए हों, उन्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा हो तथा दिमाग सुन्न-सा हो रहा हो। ऐसी स्थिति में यदि आपका मित्र कोई प्रश्न पूछ लेता है और आप उसका सही जवाब नहीं दे पाते हैं तो आपका आत्मविश्वास न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाता है। इस प्रकार की परिस्थिति छात्रों के लिये पीड़ादायक होती है। किंतु यहाँ सबसे मजेदार बात यह है कि इस अवधि में भूलना या याद न आना महज एक तात्कालिक स्थिति होती है।
- तात्कालिक रूप से परीक्षार्थियों को भले यह लगे कि वे सब कुछ भूल गए हैं, किंतु वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं होता। परीक्षार्थियों द्वारा पढ़ी गई समस्त चीज़ें उनके अवचेतन मन में जमा रहती हैं। अत्यधिक तनाव की वजह से भले वह ‘एक्टिव मोड’ में न रहे लेकिन परीक्षा भवन में प्रश्न देखते ही आप पाएंगे कि वह जानकारी प्रश्नों से कनेक्ट होते ही कैसे सक्रिय हो जाती है। फिर उन्हें सब कुछ स्वतः याद आने लगता है। इसलिये, परीक्षार्थियों को दिमाग से यह भ्रम निकाल देना चाहिये कि वे सब कुछ भूल गए हैं। याद रखें, ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता, न ही उसका लोप होता है। बस सही रणनीति के ज़रिये उसे सक्रिय रखना होता है।
- संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा सिर्फ छात्रों के ज्ञान और व्यक्तित्व का ही नहीं बल्कि उनके धैर्य, साहस और जुझारूपन का भी परीक्षण करती है।
- यह महज एक परीक्षा नहीं बल्कि छात्रत्व को गौरवान्वित करने तथा उनकी योग्यता-क्षमता-प्रतिभा को सम्मानित करने का एक मंच भी है। जिस प्रकार आग में तपे-गले बिना सोने में निखार या चमक नहीं आती, वैसे ही परीक्षा की कसौटी पर खरे उतरे बिना छात्र जीवन की सार्थकता सिद्ध नहीं हो सकती। परीक्षा तो परीक्षार्थियों का पुरुषार्थ होता है और ‘सफलता’ उसका आभूषण। लेकिन मेहनत की भट्टी में बिना जले, तनाव के दरिया से बिना गुज़रे इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। यही इसका सौंदर्य है, यही इसका वैशिष्ट्य है। अतः इससे क्या घबराना।
- यदि आप इस्पाती ढाँचे (सरकारी मशीनरी) का अहम हिस्सा बनना चाहते हैं तो आपके हौंसले भी चट्टानी होने चाहियें। इसलिये, इस परीक्षा के प्रथम पड़ाव यानी प्रारंभिक परीक्षा में लेशमात्र कोताही या किंचित मात्र कमज़ोरी भी आपके सपने को चकनाचूर कर सकती है।
- इस परीक्षा में जीतने की शर्त सिर्फ पढ़ाकू होना नहीं बल्कि जुझारू होना भी है। याद रखिये रणभेरी बजने पर सच्चा सैनिक कभी पीठ नहीं दिखाता बल्कि अपनी संपूर्ण शक्ति समेटकर मैदान में डटकर खड़ा हो जाता है। और आपकी तो तैयारी मुकम्मल है, रणनीति वैज्ञानिक व व्यावहारिक है, फिर डर किस बात का? अतः अंतिम समय में छात्रोचित गुण का परिचय दीजिये और सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में सफलता हासिल कीजिये। ध्यान रहे, जीतता वही है जो अपनी संपूर्ण शक्ति और सही रणनीति के साथ लड़ता है, वरना आधे-अधूरे मन से कभी भी पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती।