20 Solved Questions with Answers
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अर्थव्यवस्था
प्रश्न 1. भारत में सुधारों के उपरांत की अवधि में सामाजिक सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय के स्वरूप एवं प्रवृत्ति का परीक्षण कीजिये। किस सीमा तक यह समावेशी संवृद्धि के उद्देश्य को प्राप्त करने के अनुरूप है?
हल करने का दृष्टिकोण:
- सामाजिक सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- सार्वजनिक व्यय के पैटर्न और प्रवृत्ति का उल्लेख कीजिये।
- समावेशी संवृद्धि प्राप्त करने में सार्वजनिक व्यय की सीमा बताइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
सामाजिक सेवाओं पर सरकारी व्यय वित्त वर्ष 2012 से वित्त वर्ष 2023 तक 5.9% CAGR की दर से बढ़ा, जो समावेशी संवृद्धि के लिये वर्ष 1991 के सुधारों के पश्चात् से शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास पर बढ़ते दृष्टिकोण को दर्शाता है।
मुख्य भाग:
सामाजिक सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय का पैटर्न और प्रवृत्ति (सुधारोत्तर अवधि):
- आवंटन में वृद्धि: शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण पर ध्यान केंद्रित करते हुए सामाजिक सेवाओं पर व्यय 2000-01 में सकल घरेलू उत्पाद के 5.3% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 8.3% हो गया।
- शिक्षा क्षेत्र: वर्ष 2022-23 तक सकल घरेलू उत्पाद का 2.8% से बढ़ाकर 3.1% किया जाएगा। वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में 1.12 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
- स्वास्थ्य क्षेत्र: वर्ष 2022-23 तक सकल घरेलू उत्पाद का 0.9% से बढ़कर 2.1% हो जाएगा। वित्त वर्ष 2023-24 के लिये आवंटन 89,155 करोड़ रुपए है।
- सामाजिक कल्याण कार्यक्रम: निर्धनता उन्मूलन के लिये मनरेगा का वित्तपोषण वर्ष 2023-24 में 60,000 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2024-25 में 86,000 करोड़ रुपए हो गया।
- कौशल और डिजिटल समावेशन: डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया (5 वर्ष की अवधि में 20 लाख युवाओं को कुशल बनाया जाएगा- बजट 2024-25) जैसे कार्यक्रमों को डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने, डिजिटल विभाजन को खत्म करने और कौशल विकास पहलों के माध्यम से रोज़गार प्रदान करने के लिये अधिक धनराशि प्राप्त हो रही है।
समावेशी संवृद्धि प्राप्त करने के साथ सामंजस्य:
सामाजिक सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के बावजूद, जनसंख्या की आवश्यकताओं के लिये आवंटन बहुत न्यून है।
- शिक्षा: पहुँच का विस्तार हुआ है, लेकिन गुणवत्ता और समानता में चुनौतियाँ बनी हुई हैं (भारत में 18-23 वर्ष आयु वर्ग के लिये GIR 28.4% है)।
- स्वास्थ्य: व्यय में वृद्धि हुई है, फिर भी भारत ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा और हाशिये पर पड़े समूहों तक पहुँच के मामले में पीछे है।
- निर्धनता और असमानता: कल्याणकारी कार्यक्रम निर्धनता को कम करने में सहायक हैं, लेकिन धन के न्यून उपयोग और कार्यान्वयन संबंधी समस्याओं के कारण समावेशी संवृद्धि में बाधा उत्पन्न होती है।
निष्कर्ष:
सुधार के पश्चात् के भारत में सामाजिक सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय समावेशी संवृद्धि को समर्थन देने में बढ़ोत्तरी हुई है। वास्तविक समावेशी संवृद्धि को प्राप्त करने के लिये बेहतर संसाधन दक्षता और लक्षित लाभार्थी समर्थन की आवश्यकता होती है। सामाजिक क्षेत्रों में निवेश को बनाए रखते हुए इन मुद्दों के समाधान करने हेतु प्रयास जारी रखना आवश्यक है।
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अर्थव्यवस्था
प्रश्न 2. भारत में निरंतर उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के क्या कारण हैं? इस प्रकार की मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में RBI की मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता पर टिप्पणी कीजिये।
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय में प्रासंगिक तथ्यों/आँकड़ों के साथ खाद्य मुद्रास्फीति पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये।
- जलवायु परिवर्तन, आपूर्ति शृंखला संबंधी मुद्दे और बढ़ती उत्पादन लागत जैसे कारकों पर चर्चा कीजिये।
- RBI के लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) दृष्टिकोण का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
- समग्र बनाम खाद्य मुद्रास्फीति के प्रबंधन में आरबीआई की सफलता का आकलन कीजिये।
- आपूर्ति पक्ष के मुद्दों पर मौद्रिक नीति की सीमाओं पर ध्यान केंद्रित कीजिये।
- सकारात्मक रूप से उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
CPI के अनुसार, अगस्त 2024 में खाद्य मुद्रास्फीति 5.66% थी, जिसमें ग्रामीण और शहरी मुद्रास्फीति क्रमशः 6.02% और 4.99% थी। भारत में निरंतर उच्च खाद्य मुद्रास्फीति आर्थिक चुनौतियों का सामना करती है तथा इसके कारणों को समझना भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये आवश्यक है।
मुख्य भाग:
भारत में निरंतर उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के कारण:
मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में RBI की मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता:
RBI द्वारा लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) ढाँचे के माध्यम से 4% मुद्रास्फीति का लक्ष्य रखा गया है, परंतु इसके उपायों के बावजूद खाद्य मुद्रास्फीति एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
- FIT दृष्टिकोण का लक्ष्य मूल्य स्थिरता और विकास है, लेकिन आपूर्ति पक्ष अघात से निरंतर खाद्य मुद्रास्फीति इसे जटिल बना देती है।
- RBI मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये दरों को समायोजित करता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और वैश्विक कीमतों जैसे कारकों के कारण खाद्य कीमतें स्थिर नहीं रहती हैं।
- मौद्रिक नीति की कार्रवाइयों को अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालने में 2-3 तिमाहियों का समय लगता है, जिससे अल्पकालिक खाद्य मूल्य अघात के लिये उनकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।
निष्कर्ष:
जबकि RBI की मौद्रिक नीति मुद्रास्फीति के प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है, भारत में निरंतर खाद्य मुद्रास्फीति से निपटने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। लक्षित राजकोषीय नीतियों, संरचनात्मक सुधारों, बेहतर कृषि पद्धतियों और बेहतर आपूर्ति शृंखलाओं के अनुरूप दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित होगी, जिससे उपभोक्ताओं तथा अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।
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अर्थव्यवस्था
प्रश्न 3. देश के कुछ भागों में भूमि सुधारों के सफल क्रियान्वयन के लिये उत्तरदायी कारक क्या थे? स्पष्ट कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में भूमि सुधारों के बारे में संक्षेप में लिखिये।
- देश के कुछ क्षेत्रों में इसके सफल कार्यान्वयन के कारणों पर चर्चा कीजिये।
- मुख्य भाग में उल्लिखित कारकों का सारांश देकर निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भूमि स्वामित्व या प्रबंधन में परिवर्तन कृषि सुधार का एक रूप है, जिसमें आमतौर पर गरीब भूमिहीन किसानों के जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से सरकारी उपाय शामिल होते हैं। काश्तकारी सुधार, भूमि चकबंदी, भूमि हदबंदी एवं बिचौलियों का उन्मूलन, सभी को भूमि सुधारों में शामिल किया गया।
मुख्य भाग:
देश के कुछ क्षेत्रों जैसे पश्चिम बंगाल और केरल में, निम्नलिखित कारकों के कारण भूमि सुधार सफलतापूर्वक लागू किये गए:
- दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और विधान: राज्य सरकारों ने भूमि सुधारों को प्रभावी ढंग से लागू किया। बिहार भूमि सुधार अधिनियम (1950) और बॉम्बे टेनेंसी एक्ट (1948) जैसे कानूनों ने भूमि सुधारों को आसान बनाया।
- किसान आंदोलन: पश्चिम बंगाल में बटाईदारी में परिवर्तन ऑपरेशन बर्गा के दौरान लामबंदी के परिणामस्वरूप हुआ।
- आधारभूत भूमि सुधार: तेलंगाना में भूदान और ग्रामदान समूहों द्वारा पुनर्वितरण के लिये स्वैच्छिक भूमि समर्पण को बढ़ावा दिया गया था।
- भूमि अभिलेखों का प्रभावी प्रबंधन: कर्नाटक जैसे स्थानों में डिजिटलीकरण से संघर्ष और भ्रष्टाचार में कमी आई है।
- राजनीतिक जागरूकता: स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कृषि संबंधी मुद्दों ने भूमि सुधारों की स्वीकार्यता को बढ़ा दिया।
अन्य भागों में भूमि सुधारों के खराब क्रियान्वयन के लिये उत्तरदायी कारक:
- खराब भू-अभिलेखों के कारण संपत्ति विवरण और सीमाओं में विसंगतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- नौकरशाही एवं राजनीतिक उदासीनता के कारण विलंब होता है।
- भूमि सुधारों में वृक्षारोपण को शामिल न करने के कारण असफल परिणाम सामने आए।
- भूमि की अधिकतम सीमा बहुत ऊँची निर्धारित की गई थी, परिणामस्वरूप लोगों को अधिकतम सीमा कानून से बचने में सहायता प्राप्त हुई।
निष्कर्ष:
डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP), सहकारी एवं सामूहिक खेती को बढ़ावा देना तथा भौगोलिक सूचना प्रणाली (स्वामित्व योजना) का लाभ उठाकर भूमि सुधार कार्यान्वयन को सफल बनाया जा सकता है।
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GS Paper 3
प्रश्न 4. भारत में स्वास्थ्य एवं पोषण की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये मोटे अनाजों की भूमिका को समझाइये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- मोटे अनाजों के महत्त्व को बताते हुए परिचय लिखिये।
- स्वास्थ्य और पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने में उनकी भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
मोटे अनाज शुष्कता प्रतिरोधी "पोषक-अनाज" हैं, जिसमें 7-12% प्रोटीन की मात्रा होती है इसके भूपृष्ठ में बेहतर अमीनो अम्ल परिच्छेदिका होती है। इन्हें प्रायः सुपरफूड कहा जाता है क्योंकि ये किफायती और पौष्टिक दोनों होते हैं।
- इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष के रूप में घोषित किया है।
मुख्य भाग:
स्वास्थ्य सुनिश्चित करने में मोटे अनाजों की भूमिका:
- ग्लूटेन-मुक्त विकल्प: मोटे अनाज स्वाभाविक रूप से ग्लूटेन-मुक्त होते हैं, इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है साथ ही फाइबर की मात्रा भी अधिक होती है, जो इसे ग्लूटेन असहिष्णु या सीलियेक रोग वाले व्यक्तियों के लिये आदर्श बनाता है।
- लाइफस्टाइल संबंधी रोगों को कम करना: डाइट फाइबर, एंटीऑक्सिडेंट और मैग्नीशियम तथा आयरन जैसे खनिजों से भरपूर मोटे अनाज मधुमेह, मोटापा आदि जैसी लाइफस्टाइल संबंधी रोगों को रोकने में सहायक हैं।
- प्रतिरक्षा में वृद्धि: प्रचुर मात्रा में विटामिन-B और जिंक तथा सेलेनियम जैसे खनिजों के साथ, बाजरा प्रतिरक्षा कार्य में सहायता करता है, विशेष रूप से मोती बाजरा (बाज़रा) , जो अपनी उच्च जिंक सामग्री के लिये जाना जाता है।
पोषण सुरक्षा में मोटे अनाज की भूमिका:
- अदृश्य भूख से निपटना: मोटे अनाज सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी से संघर्ष करता है; 15-49 वर्ष की आयु की लगभग 30% भारतीय महिलाएँ आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया से पीड़ित हैं (WHO)।
- पोषण सुरक्षा: मोटे अनाज प्रकाश के प्रति गैर-संवेदनशील, जलवायु-प्रतिरोधी और जल-कुशल "पोषक-अनाज" हैं जो पोषण का एक समृद्ध स्रोत प्रदान करता है। किसानों को सहायता प्रदान करने के लिये सूखा-ग्रस्त राज्यों (महाराष्ट्र और राजस्थान) में उनकी कृषि को प्रोत्साहित किया जाता है।
निष्कर्ष:
इस प्रकार ‘गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल (INSIMP)’ के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल और मोटे अनाज के लिये MSP में वृद्धि उचित दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं। अवधारणाओं को परिवर्तित करने और पोषक तत्त्वों से भरपूर इन अनाज़ों को शामिल करने से एक स्वस्थ भविष्य की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
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अर्थव्यवस्था
प्रश्न 5. जीवन सामग्रियों के संदर्भ में बौद्धिक संपदा अधिकारों का वर्तमान विश्व परिदृश्य क्या है? यद्यपि भारत पेटेंट दाखिल करने के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है, फिर भी केवल कुछ का ही व्यवसायीकरण किया गया है। इस कम व्यवसायीकरण के कारणों को स्पष्ट कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- जीवन सामग्री से संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) की जटिलता को समझाते हुए शुरुआत कीजिये।
- आँकड़े प्रस्तुत करने से चुनौतियों और संभावित समाधानों तथा संबंधित सरकारी हस्तक्षेपों पर प्रभाव पड़ता है।
- भारत द्वारा विभिन्न सुधारों के माध्यम से पेटेंट के व्यवसायीकरण में सुधार लाने की आवश्यकता पर बल देते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
वर्तमान वैश्विक संदर्भ में, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMO) और जैव-प्रौद्योगिकी आविष्कारों पर पेटेंट की अनुमति है, जबकि प्राकृतिक जीवित रूपों पर पेटेंट की अनुमति नहीं है। BRCA1 जैसे प्राकृतिक जीन को ट्रेडमार्क नहीं किया जा सकता है, लेकिन GMO को मोनसेंटो जैसे व्यवसायों द्वारा पेटेंट किया जा सकता है। जब समुदायों के आनुवंशिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है, तब उनके साथ उचित लाभ-साझाकरण नागोया प्रोटोकॉल जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों द्वारा सुनिश्चित किया जाता है।
मुख्य भाग:
नैसकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में, भारत में कुल 83,000 पेटेंट दाखिल किये गए, जो 24.6% की वृद्धि दर है, जो पिछले 20 वर्षों में सबसे अधिक है। हालाँकि भारत में 5% से भी कम पेटेंट का व्यवसायीकरण किया जाता है।
पेटेंट के व्यावसायीकरण की कमी से निपटने के लिये कारण, समाधान एवं सरकारी पहल:
कारण
समाधान
सरकारी पहल
पेटेंट सहयोग संधि (PCT) अनुप्रयोगों के बारे में स्टार्टअप्स के बीच जागरूकता की कमी
नवोदित उद्यमियों के बीच बौद्धिक संपदा के बारे में जागरूकता पैदा करना
राष्ट्रीय IPR नीति (2016)
विकास और नवाचार के लिये धन और उचित बुनियादी ढाँचे का अभाव
निरर्थक फाइलिंग को रोकने हेतु विरोध की उचित जाँच
स्टार्ट-अप बौद्धिक संपदा संरक्षण योजना (SIPP) (वर्ष 2016)
पेटेंट कार्यालय में जनशक्ति की कमी
बेहतर दक्षता और पर्याप्त स्टाफिंग आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करना
IP साक्षरता और जागरूकता के लिये कलाम कार्यक्रम (KAPILA) (वर्ष 2020)
प्रक्रिया के प्रत्येक चरण के लिये कोई निश्चित समय-सीमा नहीं
प्रत्येक राज्य में अधिक पेटेंट फाइलिंग केंद्रों की स्थापना
राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद (2020)
भारत में एक पेटेंट आवेदन का निपटारा करने में औसतन लगभग 58 महीने लगते हैं
सरकारी वेबसाइट पर वकीलों और परीक्षकों के बारे में जानकारी
MeitY स्टार्टअप हब (MSH)
निष्कर्ष:
नियामक सुधारों, उन्नत बुनियादी ढाँचे के विकास और सहयोग के माध्यम से व्यवसायीकरण को बढ़ाने की आवश्यकता भारत से पेटेंट आवेदनों की बढ़ती संख्या से स्पष्ट होती है। भारत अपने आविष्कार की क्षमता एवं पेटेंट प्रणाली को मज़बूत करके और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करके वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य के करीब पहुँच सकता है।
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विज्ञान और तकनीक
प्रश्न 6. राजमार्गों पर इलेक्ट्रॉनिक पथ-कर संग्रह करने के लिये कौन-सी प्रौद्योगिकी अपनाई जा रही है? उसके क्या-क्या लाभ और क्या-क्या सीमाएँ हैं? वे कौन-से परिवर्तन प्रस्तावित हैं जो इस प्रक्रिया को निर्बाध बना देंगे? क्या यह परिवर्तन कोई संभावित खतरे लेकर आएगा?
हल करने का दृष्टिकोण:
- राजमार्गों पर इलेक्ट्रॉनिक पथ-कर संग्रह का संक्षिप्त विवरण दीजिये।
- FASTag,GNSS,RFID और ANPR जैसी प्रमुख प्रौद्योगिकियों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- भीड़भाड़ में कमी लाने तथा तीव्र लेन-देन को सुलभ बनाने के रूप में इसके लाभों पर प्रकाश डालिये।
- बुनियादी ढाँचे से संबंधित समस्याओं एवं डिजिटल विभाजन जैसी चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- GNSS लेन जैसे प्रस्तावित परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
- साइबर सुरक्षा खतरों और तकनीकी विफलताओं जैसे जोखिमों पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
राजमार्गों पर इलेक्ट्रॉनिक पथ-कर संग्रह में फास्टैग और ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है। अनुमान है कि भारत 100% फास्टैग-आधारित टोल संग्रह को अपनाकर ईंधन के साथ मानव के कार्यों में कमी लाकर प्रतिवर्ष 12,000 करोड़ रुपए बचा सकता है।
प्रयुक्त प्रौद्योगिकी:
- RFID (रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन): वाहनों पर लगाए गए टैग (जैसे- फास्टैग) से टोल प्लाज़ा से गुज़रते समय स्वचालित रूप से टोल टैक्स की कटौती हो जाती है।
- GPS (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम): इसके द्वारा यात्रा की दूरी के आधार पर टोल की गणना करने के लिये वास्तविक समय में वाहन की स्थिति को ट्रैक किया जाता है।
- ANPR (स्वचालित नंबर प्लेट पहचान): इसके द्वारा निर्बाध टोल भुगतान के क्रम में वाहन पंजीकरण प्लेटों को कैप्चर किया जाता है।
इस प्रक्रिया को निर्बाध बनाने हेतु प्रस्तावित परिवर्तन:
- सैटेलाइट आधारित टोल संग्रह प्रणाली: GNSS के द्वारा टोल बूथों पर वाहनों को रोके बिना शुल्क की वसूली होती है।
- ऑन-बोर्ड यूनिट्स (OBU): वाहन मालिक अपने वाहनों में गैर-हस्तांतरणीय OBU (जो संभवतः नई कारों में फैक्ट्री द्वारा फिट किये जाएंगे) लगाएंगे, जो फास्टैग स्टिकर के समान होंगे।
- मल्टी-लेन फ्री फ्लो (MLFF) प्रौद्योगिकी: यह प्रौद्योगिकी चलती हुई गाड़ियों से टोल वसूलने के लिये RFID, ANPR और GNSS को समन्वित करती है।
- टोल संग्रहण प्रणाली: यह राज्यों और राजमार्गों पर टोल भुगतान को सुव्यवस्थित करने के लिये एकीकृत राष्ट्रीय मंच है।
इससे जुड़े संभावित खतरों में हैकिंग और डेटा उल्लंघनों से संबंधित साइबर सुरक्षा जोखिम के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक भुगतान विधियों तक पहुँच न रखने वाले निम्न आय वाले व्यक्तियों के लिये असमानताएँ शामिल हैं।
निष्कर्ष:
यद्यपि इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रहण प्रौद्योगिकी के अनेक लाभ हैं फिर भी इसके निर्बाध क्रियान्वयन हेतु इससे जुड़े संभावित खतरों का समाधान आवश्यक है, जिससे सभी उपयोगकर्त्ताओं के लिये निष्पक्षता एवं सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
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पर्यावरण
प्रश्न 7. नदी जल का औद्योगिक प्रदूषण भारत में एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दा है। इस समस्या से निपटने के लिये विभिन्न शमन उपायों और इस संबंध में सरकार की पहल पर चर्चा कीजिये।
हल करने का दृष्टिकोण:
- नदी जल के औद्योगिक प्रदूषण के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- शमन उपायों और सरकारी पहलों का उल्लेख कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत में नदी जल का औद्योगिक प्रदूषण, अनुपचारित अपशिष्टों के निर्वहन के माध्यम से जल की गुणवत्ता को नष्ट करके पारिस्थितिकी तंत्र, मानव स्वास्थ्य और आजीविका को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
मुख्य भाग:
शमन के उपाय:
- अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र (ETP): उद्योगों में अपशिष्ट जल को प्रवाहित करने से पहले उपचारित करने के लिये ईटीपी की स्थापना को अनिवार्य बनाना, ताकि हानिकारक प्रदूषकों को हटाया जा सके और नदियों पर विषाक्त पदार्थों को कम किया जा सके।
- सख्त निगरानी और विनियमन: प्रदूषण मानकों के अनुपालन के लिये उद्योगों का नियमित निरीक्षण हेतु सख्त निगरानी प्रणाली स्थापित करना।
- शून्य तरल निर्वहन (ZLD): उद्योगों को ZLD प्रणाली अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना, जो अपशिष्ट जल को पुनः चक्रित करती है, ताकि जल निकायों में निर्वहन को रोका जा सके।
- जन जागरूकता और सहभागिता: औद्योगिक प्रदूषण के प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और जल निकायों की निगरानी एवं सुरक्षा में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना।
- सतत् औद्योगिक प्रथाएँ: उद्योगों को स्वच्छ उत्पादन पद्धतियाँ अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना, जिससे अपशिष्ट उत्पादन और संसाधनों की खपत न्यूनतम हो सके।
सरकारी पहल:
- नियामक ढाँचा: औद्योगिक प्रदूषण का विनियमन जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के माध्यम से लागू किया जाता है।
- CPCB के निर्देश: CPCB ने जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 की धारा 18 (1) (b) के तहत CPCB/PCC को सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों (CETP) के गैर-अनुपालन के संबंध में निर्देश जारी किये हैं।
- ऑनलाइन निगरानी प्रणाली: औद्योगिक इकाइयों के लिये वास्तविक समय पर अपशिष्ट गुणवत्ता डेटा उपलब्ध कराने हेतु ऑनलाइन सतत् अपशिष्ट निगरानी प्रणाली (OCEMS) अनिवार्य है।
- उत्सर्जन मानक: पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986 के अंतर्गत सामान्य और उद्योग-विशिष्ट उत्सर्जन संबंधी मानक निर्धारित किये गए हैं।
- संरक्षण कार्यक्रम:
- नमामि गंगे कार्यक्रम
- अटल मिशन फॉर रेजुवेनशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत)
- स्मार्ट सिटी मिशन
निष्कर्ष:
भारत में नदी जल के औद्योगिक प्रदूषण से निपटने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सख्त विनियमन, तकनीकी प्रगति और सामुदायिक भागीदारी शामिल हो।
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पर्यावरण
प्रश्न 8. भारत में प्रमुख परियोजनाओं के लिये पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ई.आई.ए.) परिणामों को प्रभावित करने में पर्यावरणीय गैर-सरकारी संगठन और कार्यकर्ता क्या भूमिका निभाते हैं? सभी महत्त्वपूर्ण विवरणों सहित चार उदाहरण दीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
परिचय:
पर्यावरणीय गैर-सरकारी संगठन (ENGO) और कार्यकर्त्ता पर्यावरणीय स्थायित्व को बढ़ावा देने एवं नीति परिवर्तन को प्रोत्साहित करने में, विशेष रूप से प्रमुख परियोजनाओं के लिये पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मुख्य भाग:
भारत में EIA परिणामों को प्रभावित करने में ENGO और कार्यकर्त्ताओं की भूमिका:
- पर्यावरणीय मुद्दों के संबंध में सार्वजनिक जागरूकता प्रसार और स्थानीय जन-आबादी को EIA अभियानों में शामिल करना।
- पर्यावरणीय प्रभावों पर डेटा एकत्र करने के लिये अनुसंधान और सूचना का अधिकार अधिनियम का उपयोग एवं जवाबदेही सुनिश्चित करना।
- नैतिक मानकों को बढ़ावा देना तथा पर्यावरण प्रभाव आकलन में प्रभावी रूप से भाग लेने के लिये समुदायों को प्रशिक्षित करना।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की पारदर्शिता के लिये सरकारी एजेंसियों के साथ सहयोग करना तथा पर्यावरणीय मुद्दों को उजागर करने के लिये मीडिया को शामिल करना एवं निर्णयकर्त्ताओं पर दबाव डालना।
उदाहरण:
- साइलेंट वैली बचाओ आंदोलन: केरल शास्त्र साहित्य परिषद ने वर्षावन की रक्षा के लिये साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान में एक जलविद्युत परियोजना के विरुद्ध आवाज़ उठाई, जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र को जैवमंडल निचय बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ।
- पॉस्को स्टील परियोजना, ओडिशा: ग्रीनपीस इंडिया और स्थानीय समूहों ने पर्यावरणीय चिंताओं के कारण इस परियोजना का विरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप EIA में खामियों के कारण वर्ष 2017 में इसे रद्द कर दिया गया।
- नर्मदा बचाओ आंदोलन: इस आंदोलन के माध्यम से सरदार सरोवर बाँध के निर्माण का विरोध किया गया तथा इसके पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर प्रकाश डाला, जिसके परिणामस्वरूप परियोजना के संबंध में समुचित सुधार किया गया।
- स्टरलाइट कॉपर मामला: गैर-सरकारी संगठनों के विरोध और 'स्टरलाइट विरोधी आंदोलन' ने सर्वोच्च न्यायालय की समीक्षा को प्रभावित किया, जिसके परिणामस्वरूप प्रदूषण संबंधी मुद्दों के कारण संयंत्र को बंद कर दिया गया और प्रभावी पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की आवश्यकता पर बल दिया गया।
निष्कर्ष:
ENGO और कार्यकर्त्ता, अधिकारियों को जवाबदेह बनाते हैं साथ ही ये यह भी सुनिश्चित करते हैं कि विकास परियोजनाओं में पर्यावरण तथा सामाजिक प्रभावों को प्राथमिकता दी जाए। ENGO को सुदृढ़ करने से समुदायों और पारिस्थितिकी तंत्रों को लाभ पहुँचाने वाली स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है।
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अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा
प्रश्न 9. समझाइये कि नार्को-आतंकवाद संपूर्ण देश में किस प्रकार एक गंभीर खतरे के रूप में उभरकर आया है। नार्को-आतंकवाद से निपटने के लिये समुचित उपायों पर सुझाव दीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- नार्को आतंकवाद के बारे में संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- देशभर में नार्को-आतंकवाद के खतरे के रूप में उभरने की व्याख्या कीजिये।
- नार्को-आतंकवाद से निपटने के उपायों का उल्लेख कीजिये।
- एक समग्र निष्कर्ष लिखिये।p9
परिचय:
नार्को-आतंकवाद राज्यों, विद्रोहियों या आपराधिक नेटवर्क द्वारा नशीली दवाओं की तस्करी के माध्यम से राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये संगठित अपराध का उपयोग है। नार्को-आतंकवाद तेज़ी से स्वर्णिम अर्द्धचंद्र (Golden Crescent) और स्वर्णिम त्रिभुज (Golden Triangle) के नशीले पदार्थों के उत्पादक क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है।
मुख्य भाग:
- नार्को-आतंकवाद एक खतरा:
- यह हिंसा और संगठित अपराध का दोहरा खतरा उत्पन्न करता है, राष्ट्रों को अस्थिर करता है, संस्थाओं को भ्रष्ट करता है तथा वैश्विक स्तर पर विद्रोहों, कार्टेलो और चरमपंथी नेटवर्कों को वित्तपोषित करके सुरक्षा संकट को बढ़ावा देता है।
- भारत के पूर्वोत्तर राज्य, पंजाब और जम्मू-कश्मीर प्रमुख भारतीय राज्य हैं जो नार्को-आतंकवाद से पीड़ित हैं।
- भारत में, मादक पदार्थों की तस्करी करने वाले नेटवर्क आतंकवाद को वित्तपोषित करने के लिये, विशेष रूप से अफगानिस्तान और म्याँमार के साथ लगी खुली सीमाओं का फायदा उठाते हैं।
- नार्को-आतंकवाद का मुकाबला करने के उपाय:
- उन्नत सीमा निगरानी: नशीली दवाओं की तस्करी पर अंकुश लगाने के लिये ड्रोन, उपग्रह इमेजरी और एआई-आधारित निगरानी प्रणालियों जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करके सीमा सुरक्षा को मज़बूत करना।
- वित्तीय निगरानी: मादक पदार्थों से जुड़े आतंकवादी वित्तपोषण का पता लगाने और उसे रोकने के लिये मज़बूत वित्तीय खुफिया तंत्र को स्थापित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: वैश्विक नार्को-आतंकवादी नेटवर्क को नष्ट करने के लिये यूएनओडीसी(UNODC) और इंटरपोल जैसे संगठनों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को मज़बूत करना।
- जन जागरूकता और पुनर्वास: नशीली दवाओं के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाना और उपभोक्ता आधार को कमज़ोर करने के लिये नशामुक्ति कार्यक्रम स्थापित करना।
- कानूनी सुधार: मादक पदार्थों के तस्करों और आतंकवाद को वित्तपोषित करने वालों के खिलाफ सख्त सज़ा के लिये कानूनों को मज़बूत करना।
निष्कर्ष:
नार्को-आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सीमा सुरक्षा को मज़ बूत करना, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना और धन शोधन रोकथाम अधिनियम,2002 जैसे सख्त धन शोधन विरोधी उपायों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को संबोधित करना, वैकल्पिक आजीविका को बढ़ावा देना एवं शिक्षा में निवेश करना नशीली दवाओं की तस्करी तथा आतंकवाद की अपील को कम करने में सहायता कर सकता है, जिससे दीर्घकालिक स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।
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अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा
प्रश्न 10. डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के संदर्भ और मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के डेटा गोपनीयता परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 (DPDP अधिनियम) पेश किया गया।
- अधिनियम से संबंधित संदर्भ लिखिये।
- इसकी प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये।
- भारत में डेटा गोपनीयता पर अधिनियम के महत्त्व और संभावित प्रभाव पर बल देते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
डिजिटल प्रौद्योगिकी के तेज़ी से विकास और डेटा-संचालित सेवाओं पर बढ़ती निर्भरता के बीच, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 भारत के डेटा गोपनीयता परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
मुख्य भाग:
प्रसंग:
- तीव्र डिजिटलीकरण: वर्ष 2023 तक इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की संख्या 750 मिलियन से अधिक हो जाएगी।
- डेटा उल्लंघन में वृद्धि: वर्ष 2021 में एयर इंडिया डेटा उल्लंघन, व्यक्तिगत सूचनाओं/जानकारी से समझौता करने वाली घटनाओं में वृद्धि का एक उदाहरण है।
- वैश्विक डेटा संरक्षण रुझान: यूरोपीय संघ के सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन जैसे अंतर्राष्ट्रीय विनियम।
- व्यापक कानून का अभाव: पूर्ववर्ती IT अधिनियम, 2000 पर अत्यधिक निर्भरता।
- डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना: सबसे बड़ी बायोमेट्रिक ID प्रणाली आधार (Aadhaar) जैसी प्रणालियाँ।
मुख्य विशेषताएँ:
- प्रयोज्यता: यह भारत में वस्तुओं या सेवाओं की पेशकश करते समय भारत और विदेशों में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण पर लागू होता है।
- व्यक्तिगत डेटा प्रसंस्करण के लिये व्यक्तिगत सहमति की आवश्यकता होती है, साथ ही डेटा संग्रहण उद्देश्यों के संदर्भ में स्पष्ट सूचना भी दी जाती है।
- डेटा प्रिंसिपल के अधिकार: व्यक्ति डेटा प्रोसेसिंग के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, सुधार की मांग कर सकते हैं।
- डेटा फिड्युशरीज़ के दायित्व: डेटा फिड्युशरीज़ को डेटा की सटीकता सुनिश्चित करनी चाहिये और उद्देश्य पूरा होने के बाद डेटा को हटा/एरेज़ भी कर देना चाहिये।
- छूट: कुछ अधिकार और दायित्व अपराध की रोकथाम या राज्य सुरक्षा के लिये सरकारी गतिविधियों जैसे मामलों पर लागू नहीं होते हैं।
- भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड: एक नियामक निकाय अनुपालन की निगरानी करता है, दंड का प्रावधान करता है और शिकायतों का निवारण करता है।
निष्कर्ष:
डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 भारत के डेटा संरक्षण परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है, जो व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकारों, डिजिटल लोकतंत्र को उन्नत डिजिटल जाँच और राष्ट्रीय हितों की आवश्यकताओं के साथ संतुलित करने का प्रयास करता है।
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अर्थव्यवस्था
प्रश्न 11. भारत में श्रम बाज़ार सुधारों के संदर्भ में चार श्रम संहिताओं के गुण व दोषों की विवेचना कीजिये। इस संबंध में अभी तक क्या प्रगति हुई है? (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- श्रम संहिताओं का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- श्रम संहिताओं के गुण व दोषों की रूपरेखा तैयार कीजिये तथा अभी तक हुई प्रगति पर चर्चा कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत में चार श्रम संहिताएँ- मज़दूरी, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा - देश के श्रम कानूनों में महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व करती हैं।
मुख्य भाग:
गुण:
- कानूनों का आसान बनाना: 40 से अधिक श्रम कानूनों को चार संहिताओं में समेकित करने से व्यवसायों के लिये अनुपालन आसान हो जाएगा, जिससे विधिक जटिलताएँ कम हो जाएँगी।
- नियोक्ताओं के लिये बेहतर लचीलापन: औद्योगिक संबंध संहिता ने शासकीय अनुमोदन के बगैर कार्य करने वाली कंपनियों के लिये छंटनी की सीमा को 100 से बढ़ाकर 300 कर्मचारी तक कर दिया है।
- उन्नत श्रमिक सुरक्षा: सामाजिक सुरक्षा संहिता गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को लाभ प्रदान करती है।
- व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य: व्यावसायिक सुरक्षा संहिता कार्यस्थल पर सुरक्षा के कड़े मानकों को अनिवार्य बनाती है। इसमें स्वास्थ्य अन्वेषण, सुरक्षा समितियाँ और श्रमिकों के लिये बेहतर सुविधाएँ शामिल हैं।
दोष:
- परिभाषाओं में अस्पष्टता: श्रमिकों और गिग श्रमिकों की अस्पष्ट परिभाषा से शोषण तथा भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- कमज़ोर श्रमिकों का बहिष्कार: व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थितियां संहिता धर्मार्थ संगठनों या गैर सरकारी संगठनों को शामिल नहीं करती है, जिससे सामाजिक सेवा क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण भाग असुरक्षित महसूस करता है।
- राज्यों से विरोध: कुछ राज्य कार्यान्वयन में पिछड़ रहे हैं, जिससे श्रम कानूनों में असंगतता का खतरा है।
- सामूहिक सौदेबाज़ी में कमी: यूनियन मान्यता के लिये 75% श्रमिक समर्थन की आवश्यकता से प्रतिनिधित्व खंडित हो सकता है तथा सामूहिक सौदेबाज़ी में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- शोषण की संभावना: निश्चित अवधि के अनुबंधों के परिणामस्वरूप श्रमिकों का शोषण हो सकता है तथा उनके अधिकारों में कमी आ सकती है।
अभी तक हुई प्रगति:
- विधायी अनुमोदन: सभी चार श्रम संहिताओं को संसद द्वारा पारित कर दिया गया है तथा राष्ट्रपति की स्वीकृति भी प्राप्त हो गई है।
- जो अभी तक लागू नहीं हुआ: वर्ष 2019 और 2020 में पारित इन संहिताओं को अभी तक लागू नहीं किया गया है।
- जून 2024 तक भारत में 24 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) ने सभी चार नए श्रम संहिताओं के तहत नियम बनाए गए हैं।
निष्कर्ष:
इन संहिताओं के कार्यान्वयन से भारत के श्रम बाज़ार में महत्त्वपूर्ण बदलाव आने की उम्मीद है, जिसका उद्देश्य श्रम कानूनों को सरल और आधुनिक बनाना है, हालाँकि अंतिम क्रियान्वयन अभी भी प्रतीक्षित है।
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अर्थव्यवस्था
प्रश्न 12 भारत में क्षेत्रीय वायु कनेक्टिविटी के विस्तार की क्या आवश्यकता है? इस संदर्भ में सरकार की ‘उड़ान’ योजना तथा इसकी उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत जैसे विशाल और तेज़ी से विकास की ओर बढ़ते देश में क्षेत्रीय संपर्क के महत्त्व को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत की RCS-उड़ान योजना किस प्रकार उचित दिशा में उठाया गया कदम है।
- योजना के प्रमुख संस्करणों और उसकी उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत में व्यापक और समावेशी संवृद्धि हासिल करने के लिये क्षेत्रीय हवाई संपर्क का विस्तार करना महत्त्वपूर्ण है। क्षेत्रीय हवाई संपर्क को बढ़ाने के लिये भारत सरकार ने क्षेत्रीय संपर्क योजना- उड़े देश का आम नागरिक (RCS-उड़ान) योजना प्रारंभ की है।
मुख्य भाग:
क्षेत्रीय वायु कनेक्टिविटी – एक आवश्यकता:
- उन्नत कनेक्टिविटी दूर-दराज़ के क्षेत्रों में व्यापार, पर्यटन और निवेश को सुविधाजनक बनाकर स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहित करती है।
- बेहतर हवाई संपर्क से वंचित क्षेत्रों में लोगों के लिये आवश्यक सेवाओं तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित होती है।
- हवाई यातायात में वृद्धि से विमानन, आतिथ्य और संबंधित क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं, जिससे स्थानीय समुदायों को लाभ होगा।
- बेहतर कनेक्टिविटी से दूर-दराज़ और दर्शनीय क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा मिलता है, साथ ही शहरी-ग्रामीण विभाजन कम होता है तथा समान विकास को बढ़ावा मिलता है।
- बेहतर हवाई संपर्क से प्राकृतिक आपदाओं के दौरान त्वरित प्रतिक्रिया संभव होती है।
RCS-उड़ान:
- उड़ान योजना राष्ट्रीय नागरिक विमानन नीति, 2016 का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत में विशेष रूप से दूर-दराज़ और वंचित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे तथा कनेक्टिविटी में सुधार करने के साथ आम नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा करना है।
उपलब्धियाँ:
- अपनी शुरुआत के बाद से, उड़ान योजना के विभिन्न संस्करण लॉन्च किये गए हैं, जिनमें सबसे हालिया संस्करण उड़ान 5.1, 5.2 और 5.3 है, जो अंतिम मील कनेक्टिविटी और छोटे विमानों के माध्यम से पर्यटन पर केंद्रित हैं।
- इस योजना से 1 करोड़ से अधिक यात्री लाभान्वित हुए हैं और 2.5 लाख से अधिक उड़ानें संचालित हुई हैं, जिससे हवाईअड्डों के विकास में वृद्धि हुई है साथ ही हवाई यात्रा भी अधिक सुलभ तथा सस्ती हुई है, जिसके साथ रोज़गार के अवसर भी उत्पन्न हुए हैं।
- अप्रैल 2024 तक इस योजना के तहत 85 हवाई अड्डों का संचालन आरंभ कर दिया गया है।
- RCS-उड़ान देश भर में 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को जोड़ रहा है (जैसे- मुंद्रा (गुजरात) से अरुणाचल प्रदेश के तेजू से लेकर कर्नाटक के हुबली तक) तथा कम सुविधा वाले हवाई अड्डों, हेलीपोर्टस और वाटर एयरपोर्ट्स की शुरुआत कर रहा है।
निष्कर्ष:
निरंतर प्रयासों के बावजूद, परिचालन मार्गों की अपूर्ण कार्यक्षमता के कारण चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जो प्रायः न्यून अधिभोग दरों और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे से उत्पन्न होती हैं। हालाँकि RCS-उड़ान ने दूर-दराज़ के क्षेत्रों को जोड़कर और निम्न मध्यम वर्ग के नागरिकों के लिये हवाई यात्रा को अधिक किफायती बनाकर विमानन परिदृश्य को परिवर्तित कर दिया है।
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अर्थव्यवस्था
प्रश्न 13. हाल के दिनों में भारतीय सिंचाई प्रणाली के सामने क्या प्रमुख चुनौतियाँ हैं? कुशल सिंचाई प्रबंधन के लिये सरकार द्वारा अपनाए गए उपायों को बताइये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय सिंचाई प्रणाली का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- भारतीय सिंचाई प्रणालियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- कुशल सिंचाई प्रबंधन के लिये राज्य सरकार द्वारा अपनाए गए उपाय सुझाइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत में कृषि के लिये देश के वार्षिक ताज़े जल का लगभग 80% उपयोग किया जाता है, जो 700 बिलियन क्यूबिक मीटर है। वर्ष 2022-23 तक कुल बोए गए 141 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में से लगभग 52% को सिंचाई की सुविधा मिल गई है, जो वर्ष 2016 में 41% से उल्लेखनीय वृद्धि है, जो मौजूदा चुनौतियों के बीच कुशल सिंचाई प्रबंधन के महत्त्व को दर्शाता है।
मुख्य भाग:
भारतीय सिंचाई प्रणाली के समक्ष चुनौतियाँ
- जल की कमी: भूजल के अत्यधिक उपयोग के कारण भारत के 64% ज़िलों में जल स्तर में कमी आई है।
- जलवायु परिवर्तन: नदियों के मार्ग में परिवर्तन तथा फसलों के लिये जल की बढ़ती मांग के कारण जल एक सीमित संसाधन बन रहा है।
- पुरानी अवसंरचना: सिंचाई की अवसंरचना पुरानी हो चुकी है, इसमें महत्त्वपूर्ण उन्नयन की आवश्यकता है।
- खराब रखरखाव: नहरों का रखरखाव अपर्याप्त रूप से किया जाता है, जिसके कारण अकुशलताएँ उत्पन्न होती हैं; सहभागितापूर्ण प्रबंधन का अभाव समस्या को और बढ़ा देता है।
- भूमि उपयोग में परिवर्तन: भूमि उपयोग पैटर्न और फसल पद्धतियों में परिवर्तन, जैसे जल की कमी वाले क्षेत्रों में अधिक जल वाली फसलें उगाना, मूल कृषि योजनाओं से दूर करती हैं।
- धन की कमी: सब्सिडी स्थापना के लिये अपर्याप्त धन; विभिन्न योजनाओं में धन का गलत आवंटन और कम उपयोग।
कुशल सिंचाई प्रबंधन के लिये सरकारी उपाय:
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लक्ष्य के साथ सिंचाई वितरण नेटवर्क में सुधार और सिंचाई कवरेज का विस्तार करने के लिये शुरू की गई।
- जल शक्ति अभियान (JSA): वर्ष 2019 में आरंभ किया गया एक वार्षिक कार्यक्रम, जो संपूर्ण भारत में 256 जल-संकटग्रस्त ज़िलों में जल संरक्षण और प्रबंधन पर केंद्रित है।
- कैच द रेन (Catch the Rain): सभी ज़िलों के सभी ब्लॉकों को कवर करने के लिये वर्ष 2021 में आरंभ किया गया, जिसमें वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण पहलों पर बल दिया गया है।
- जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (BWUE): कृषि और सिंचाई समेत विभिन्न क्षेत्रों में जल उपयोग दक्षता को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2022 में स्थापित किया जाएगा।
- पर ड्रॉप मोर क्रॉप (PDMC): वर्ष 2015-16 से क्रियान्वित एक केंद्र प्रायोजित योजना, जिसका उद्देश्य ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणालियों जैसी सूक्ष्म सिंचाई विधियों के माध्यम से जल उपयोग दक्षता को बढ़ाना है।
निष्कर्ष:
जल की कमी और पुराने बुनियादी ढाँचे से निपटने के लिये, भारत को सतत् सिंचाई पद्धतियों को अपनाना चाहिये, प्रणालियों का आधुनिकीकरण करना चाहिये तथा सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देना चाहिये। जल सुरक्षा सुनिश्चित करने और कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिये कुशल निधि उपयोग एवं भागीदारी प्रबंधन आवश्यक है।
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अर्थव्यवस्था
प्रश्न 14. भारत में कृषि कीमतों के स्थिरीकरण के लिये सुरक्षित भंडार (बफर स्टॉक) के महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। बफर स्टॉक के भंडारण से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं? विवेचना कीजिये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- बफर स्टॉक के संदर्भ में प्रासंगिक तथ्यों के साथ संक्षेप में उत्तर लेखन का परिचय दीजिये।
- बफर स्टॉक क्या हैं और मूल्य स्थिरीकरण में उनकी भूमिका क्या है?
- खाद्य सुरक्षा और किसानों के लिये समर्थन सहित प्रमुख लाभों पर प्रकाश डालिये।
- भंडारण अपर्याप्तता और खरीद असंतुलन जैसे प्रमुख मुद्दों का अभिनिर्धारण कीजिये।
- अवसंरचना और वितरण दक्षता में सुधार का सुझाव दीजिये।
- खाद्य सुरक्षा और बाज़ार स्थिरता को बढ़ाने की संभावना पर बल देते हुए सकारात्मक रूप से निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
बफर स्टॉक वस्तुओं का एक भंडार है जिसका उद्देश्य मूल्य में उतार-चढ़ाव और आपात स्थितियों को संतुलित करना है। चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान शुरू किया गया, यह कृषि मूल्यों को स्थिर करता है, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है और किसानों के आय की गारंटी देता है।
मुख्य भाग:
भारत में कृषि मूल्यों को स्थिर रखने के लिये बफर स्टॉक का महत्त्व:
- खाद्य सुरक्षा: सूखे/अनावृष्टि या बाढ़ जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों के दौरान कमज़ोर आबादी के लिये खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
- सार्वजनिक वितरण: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं (OWS) के माध्यम से खाद्यान्न का मासिक वितरण सुनिश्चित करता है।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया: फसल विफलता, प्राकृतिक आपदाओं आदि से उत्पन्न अप्रत्याशित स्थितियों से निपटने में सहायता करता है।
- मूल्य स्थिरीकरण: आपूर्ति को विनियमित करके आवश्यक अनाज की स्थिर कीमतों को बनाए रखने में मदद करता है। उदाहरण के लिये, सत्र 2022-23 में, FCI ने 34.82 लाख टन गेहूँ विमोचित किया, जिससे अनाज में खुदरा मुद्रास्फीति कम हुई।
- किसानों को सहायता: उपज के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी, किसानों की आय को स्थिर करना और कृषि उत्पादन को प्रोत्साहित करता है।
- आपदा प्रबंधन: प्राकृतिक आपदाओं के दौरान तत्काल खाद्य राहत प्रदान करता है, जिसका उदाहरण कोविड-19 के दौरान निशुल्क राशन की आपूर्ति करना है।
चुनौतियाँ:
- भंडारण संबंधी समस्याएँ: अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं के कारण अधिक मात्रा में खाद्यान्न बर्बाद होता है और भारत में प्रतिवर्ष लगभग 74 मिलियन टन (खाद्यान्न उत्पादन का 22%) खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है।
- क्रय असंतुलन: चावल और गेहूँ की अत्यधिक खरीद से बफर स्टॉक अधिक हो जाता है, जिससे अन्य अनाजों की उपेक्षा होती है तथा फसल विविधीकरण बाधित होता है।
- वित्तीय बोझ: बफर स्टॉक की वृहद् खरीद, भंडारण और वितरण में उच्च लागत आती है, पारगमन घाटे के कारण FCI को सालाना लगभग 300 करोड़ रुपए का नुकसान होता है।
- वितरण अकुशलताएँ: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में लीकेज, चोरी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ हैं, 2022-23 NSS सर्वेक्षण के अनुसार लीकेज 22% है।
- गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ: खाद्यान्नों की गुणवत्ता को लंबे समय तक बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है।
निष्कर्ष:
भारत में कीमतों को स्थिर रखने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये बफर स्टॉक बहुत ज़रूरी है। भंडारण और खरीद के मुद्दों को हल करने के साथ-साथ बुनियादी अवसंरचना तथा वितरण में सुधार करने से यह प्रणाली अधिक प्रभावी बनेगी तथा किसानों एवं उपभोक्ताओं दोनों को फायदा होगा।
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विज्ञान और तकनीक
प्रश्न 15. विश्व को स्वच्छ एवं सुरक्षित मीठे पानी की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ रहा है। इस संकट का समाधान करने के लिये कौन-सी वैकल्पिक तकनीकें हैं? ऐसी किन्हीं तीन तकनीकों के मुख्य गुणों और दोषों का उल्लेख करते हुए संक्षेप में चर्चा कीजिये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- मीठे पानी की उपलब्धता के बारे में संक्षेप में लिखिये।
- पानी की कमी की वर्तमान स्थिति का उल्लेख कीजिये।
- उन उपलब्ध प्रौद्योगिकियों के बारे में लिखिये जो जल संकट की इस स्थिति से निपटने में सहायक हो सकती हैं।
- किन्हीं तीन प्रौद्योगिकियों के बारे में चर्चा कीजिये तथा उनके गुण-दोष बताइये।
- उपरोक्त बिंदुओं का सारांश देते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
पृथ्वी पर मौजूद पानी का केवल 2.5% ही मीठा पानी है, जिसमें से 1% आसानी से उपलब्ध है। अधिकतर मीठा पानी ग्लेशियरों और हिम के मैदानों में स्थित है, जिससे पृथ्वी पर 8 बिलियन लोगों के लिये मात्र 0.007% ही उपलब्ध है।
मुख्य भाग:
स्वच्छ एवं सुरक्षित मीठे पानी की कमी की स्थिति:
- पिछली शताब्दी में पानी के उपयोग में जनसंख्या वृद्धि की दर की तुलना में दोगुनी गति से वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2025 तक विश्व की आधी आबादी को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
- तीव्र जल संकट के कारण वर्ष 2030 तक लगभग 700 मिलियन लोग विस्थापित हो सकते हैं।
- वर्ष 2040 तक विश्व भर में 4 में से 1 बच्चा अत्यधिक जल तनाव वाले क्षेत्रों में रहेगा।
वैकल्पिक प्रौद्योगिकियाँ:
- विलवणीकरण प्रौद्योगिकियाँ: रिवर्स ऑस्मोसिस जैसी झिल्ली प्रौद्योगिकियाँ (Membrane technology) समुद्री पानी को पीने योग्य पानी में परिवर्तित करने में सहायक हैं।
- अपशिष्ट जल उपचार: इलेक्ट्रोकोएगुलेशन और मेम्ब्रेन बायोरिएक्टर जैसी प्रौद्योगिकियाँ अपशिष्ट जल को पुनः उपयोग हेतु उपचारित करने में सहायक हो सकती हैं।
- AI और IOT की भूमिका: यह रिसाव की पहचान करने और जल वितरण नेटवर्क की निगरानी करने तथा जल हानि को रोकने में सहायक है।
- नैनो प्रौद्योगिकी: कार्बन नैनोट्यूब (CNT) आधारित निस्यंदन प्रणालियाँ कार्बनिक, अकार्बनिक और जैविक यौगिकों को निष्कासित करती हैं।
- फोटोकैटेलिटिक जल शोधन: यह जल को विषाक्त पदार्थों और प्रदूषकों से मुक्त करने के लिये फोटोकैटेलिस्ट तथा पराबैंगनी किरणों का उपयोग करता है।
तकनीक
गुण
अवगुण
विलवणीकरण प्रौद्योगिकियाँ
समुद्री पानी से मीठे पानी का विश्वसनीय स्रोत
उच्च ऊर्जा खपत और कार्बन-गहन।
शुष्कता के दौरान जल आपूर्ति में विविधता लाना।
समुद्र में अवसांद्रित लवण का निपटान समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुँचा सकता है।
अपशिष्ट जल उपचार प्रौद्योगिकियाँ
जल के पुनः उपयोग को बढ़ावा देता है
उच्च प्रारंभिक पूंजी लागत
अनुपचारित अपशिष्ट जल को पारिस्थितिकी में प्रवेश करने से रोकता है
ऊर्जा-गहन और तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता।
कार्बन नैनोट्यूब (CNT) निस्पंदन प्रणाली
बैक्टीरिया और भारी धातुओं सहित विभिन्न संदूषकों को हटाता है।
CNT महँगे होते हैं, जिन्हें बड़े पैमाने पर तैनात करना सीमित होता है।
तीव्र निस्यंदन दर
CNT के उत्सर्जन पर पर्यावरण संबंधी चिंताएँ।
निष्कर्ष:
विलवणीकरण, अपशिष्ट जल उपचार और AI जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने से मीठे पानी की कमी के लिये अभिनव समाधान उपलब्ध होंगे, जिससे सतत् प्रबंधन के लिये दक्षता और जल की गुणवत्ता में वृद्धि होगी तथा सभी के लिये स्वच्छ जल तक पहुँच होगी।
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विज्ञान और तकनीक
प्रश्न 16. क्षुद्रग्रह क्या हैं? इनसे जीवन के विलुप्त होने का खतरा कितना वास्तविक है? ऐसे विध्वंस को रोकने के लिये क्या रणनीति विकसित की गई है? (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- क्षुद्रग्रहों के बारे में संक्षेप में परिचय दीजिये।
- क्षुद्रग्रहों से उत्पन्न खतरों और उन्हें रोकने के लिये विकसित रणनीतियों का उल्लेख कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
क्षुद्रग्रह (लघु ग्रह) लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व सौरमंडल के आरंभिक निर्माण के चट्टानी, वायुविहीन अवशेष हैं, जो मुख्य रूप से क्षुद्रग्रह पट्टी में मंगल और बृहस्पति के बीच सूर्य की परिक्रमा करते पाए जाते हैं।
मुख्य भाग:
क्षुद्रग्रहों से उत्पन्न संकट:
- ऐतिहासिक प्रभाव: 66 मिलियन वर्ष पूर्व एक वृहद क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराया था, जिसके कारण डायनासोर और अन्य प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं।
- स्थानीय विनाश: लघु क्षुद्रग्रह स्थानीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण क्षति पहुँचा सकते हैं, जिससे सुनामी, तथा वनाग्नि वायुमंडलीय व्यवधान के संकट उत्पन्न हो सकते हैं।
- वर्ष 2013 में चेल्याबिंस्क उल्कापिंड (रूस) में हुए विस्फोट से शहर के चारों ओर विनाश हुआ और कई लोग घायल हो गए।
- सबसे बड़ी ज्ञात प्रभाव घटना वर्ष 1808 में रूस के साइबेरिया में हुआ खतरनाक विस्फोट था जिसे तुंगुस्का घटना के नाम से जाना जाता है।
- अंतरिक्ष मलबा: एक खंडित क्षुद्रग्रह खतरनाक अंतरिक्ष मलबा उत्पन्न कर सकता है, जिससे उपग्रहों, अंतरिक्ष स्टेशनों और भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों को खतरा हो सकता है।
क्षुद्रग्रह प्रभाव आपदा को रोकने के लिये विकसित की गई रणनीतियाँ:
- क्षुद्रग्रह का पता लगाना और निगरानी करना:
- नासा, ईएसए और अन्य संगठन जैसी अंतरिक्ष एजेंसियाँ सक्रिय रूप से उन क्षुद्रग्रहों की निगरानी तथा सूची निर्मित करती हैं जो पृथ्वी के लिये खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।
- सर्वेक्षण और टेलीस्कोप: भूमि-आधारित और अंतरिक्ष-आधारित टेलीस्कोप, जैसे कि NASA का NEOWISE मिशन, NEOs पर नज़र रखती हैं तथा संभावित प्रभाव जोखिम प्रभाव का आकलन करती हैं।
- विक्षेपण मिशन:
- काइनेटिक इम्पैक्टर: नासा के डबल एस्टेरॉयड रीडायरेक्शन टेस्ट (DART) मिशन ने एक अंतरिक्ष यान को एक क्षुद्रग्रह से टकराकर, ग्रहीय सुरक्षा के लिये क्षुद्रग्रह विक्षेपण का प्रथम परीक्षण किया।
- ग्रेविटी ट्रैक्टर: एक अंतरिक्ष यान अपने गुरुत्वाकर्षण बल का उपयोग करके, किसी क्षुद्रग्रह के साथ प्रत्यक्ष संपर्क के बिना, समय के साथ उसके पथ को धीरे-धीरे परिवर्तित कर सकता है।
- परमाणु विस्फोट:
- यद्यपि विखंडन का खतरा है, लेकिन चरम परिस्थितियों में किसी क्षुद्रग्रह के निकट परमाणु बम विस्फोट करने से वह विखंडित हो सकता है या अपने टकराव पथ से अलग हो सकता है।
- भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण:
- इसरो ने ग्रहीय सुरक्षा में सुधार के लिये वर्ष 2029 में एक क्षुद्रग्रह का अध्ययन करने की योजना बनाई है, जिसके लिये वह संभवतः एपोफिस क्षुद्रग्रह मिशन के साथ सहयोग करेगा, जिसमें JAXA, ESA और NASA शामिल हैं।
निष्कर्ष:
जबकि क्षुद्रग्रह एक खतरा हैं, लेकिन खोज करने, विक्षेपण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में प्रगति के माध्यम से ग्रहों की सुरक्षा में सुधार हो रहा है। इससे क्षुद्रग्रह संसाधनों के दोहन के लिये बेहतर तैयारी और भविष्य की संभावनाएँ सुनिश्चित होंगी।
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आपदा प्रबंधन
प्रश्न 17. आपदा प्रतिरोध क्या है? इसे कैसे निर्धारित किया जाता है? एक प्रतिरोध ढाँचे के विभिन्न तत्त्वों का वर्णन कीजिये। आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई ढाँचे (2015-2030) के वैश्विक लक्ष्यों का भी उल्लेख कीजिये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: आपदा प्रतिरोध को परिभाषित कीजिये।
- मुख्यभाग:
- आपदा प्रतिरोध को निर्धारित करने वाले कारकों के साथ-साथ प्रतिरोध ढाँचे का उल्लेख कीजिये।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई ढाँचे के 7 वैश्विक लक्ष्यों (वर्ष 2015-2030) के साथ-साथ कार्रवाई की प्राथमिकताओं का उल्लेख कीजिये।
- निष्कर्ष: सेंडाई ढाँचे को लागू करने के लिये भारत सरकार की पहल बताइये।
परिचय:
आपदा प्रतिरोध, लोगों, स्थानों और पर्यावरण पर प्राकृतिक आपदाओं के हानिकारक प्रभावों का सामना करने, रोकने तथा उनसे उबरने की क्षमता है।
मुख्यभाग:
आपदा प्रतिरोध विभिन्न कारकों द्वारा निर्धारित होता है, जिसमें शामिल हैं:
- अनुकूलन क्षमता: गड़बड़ी से निपटने, क्षति को कम करने और आघातों से सीखने की क्षमता।
- संभावित जोखिम: आघात या तनाव की तीव्रता और आवृत्ति।
- संवेदनशीलता: किसी आघात या तनाव से कोई प्रणाली कितनी प्रभावित होती है।
- संगठन: अतीत की आपदाओं से सीखने और भविष्य के जोखिमों को कम करने के लिये स्वयं को संगठित करने की क्षमता।
प्रतिरोध ढाँचे के चार तत्त्व:
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई ढाँचे के वैश्विक लक्ष्य (वर्ष 2015-2030):
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाइ ढाँचा संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अनुमोदित एक समझौता है जिसका उद्देश्य वैश्विक लक्ष्यों और सरकारों तथा अन्य हितधारकों के बीच साझा ज़िम्मेदारी के संयोजन के माध्यम से आपदा जोखिम तथा क्षति को कम करना है।
कार्रवाई की प्राथमिकताएँ:
- प्राथमिकता-1: आपदा जोखिम प्रबंधन को भेद्यता, क्षमता, व्यक्तियों और परिसंपत्तियों का जोखिम, खतरे की विशेषताओं और पर्यावरण के समस्त आयामों में आपदा जोखिम की समझ पर आधारित होना चाहिये।
- प्राथमिकता-2: राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर आपदा जोखिम प्रबंधन सभी क्षेत्रों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- प्राथमिकता-3: संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपायों के माध्यम से आपदा जोखिम की रोकथाम तथा न्यूनीकरण में सार्वजनिक तथा निजी निवेश, व्यक्तियों, समुदायों, देशों और उनकी परिसंपत्तियों के साथ-साथ पर्यावरण की आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य तथा सांस्कृतिक प्रतिरोध बढ़ाने के लिये आवश्यक है।
- प्राथमिकता 4: प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये आपदा तैयारी को बढ़ाना तथा पुनर्प्राप्ति, पुनर्वास और पुनर्निर्माण में बेहतर निर्माण करना।
निष्कर्ष:
भारत सरकार ने सेंडाई ढाँचा वर्ष 2015-2030 के लक्ष्यों और प्राथमिकताओं के आधार पर प्राथमिकता वाली कार्रवाइयों का एक समूह जारी किया है। भारत सरकार ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (AMCDRR) 2016 के दौरान एशियाई क्षेत्र में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई ढाँचे के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये UNISDR को 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान प्रदान किया है।
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आपदा प्रबंधन
प्रश्न 18. शहरी क्षेत्रों में बाढ़ एक उभरती हुई जलवायु-प्रेरित आपदा है। इस आपदा के कारणों की चर्चा कीजिये। पिछले दो दशकों में भारत में आई ऐसी दो प्रमुख बाढ़ों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। भारत की उन नीतियों और ढाँचों का वर्णन कीजिये, जिनका उद्देश्य ऐसी बाढ़ों से निपटना है। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत शहरी बाढ़ को परिभाषित करते हुए कीजिये।
- शहरी बाढ़ के मुख्य कारणों पर चर्चा कीजिये। महत्त्वपूर्ण बाढ़ की घटनाओं पर प्रकाश डालिये, उनके कारणों पर ध्यान दीजिये। बाढ़ प्रबंधन से संबंधित नीतियों और रूपरेखाओं पर प्रकाश डालिये।
- बाढ़ को रोकने के लिये शहरी लचीलापन बढ़ाने के लिये प्रभावी प्रबंधन और सतत् बुनियादी ढाँचे के महत्त्व पर बल देते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
शहरी बाढ़, एक जलवायु-प्रेरित आपदा है, जो तब देखने को मिलती है जब भारी वर्षा के कारण जल अपवाह प्रणालियाँ प्रभावित होती हैं तथा शहरों जैसे सघन आबादी वाले क्षेत्रों में भूमि या संपत्ति जलमग्न हो जाती है।
मुख्य भाग:
शहरी बाढ़ के कारण:
- जलवायु परिवर्तन: वर्षा की तीव्रता में वृद्धि, शहरी बाढ़ को बढ़ावा देता है। उष्ण पवनों में अधिक आर्द्रता होती है, जिसके परिणामस्वरूप भारी वर्षा देखने को मिलती है। तापमान वृद्धि, विशेष रूप से अर्बन हीट आइसलैंड्स में, जलवायु पैटर्न को और बाधित करता है।
- समुद्र-स्तर में वृद्धि से तटीय शहरों के लिये खतरा बढ़ जाता है, जिससे बाढ़ और मीठे जल का प्रदूषण देखने को मिलता है।
- शहरीकरण: सतहों की अभेद्यता को बढ़ाकर बाढ़ के जोखिम को बढ़ाता है, जिससे जल अपवाह में वृद्धि होती है और जल अवशोषण कम होता है, जबकि बाढ़ के मैदानों पर अतिक्रमण से अपर्याप्त विनियमन के परिणामस्वरूप प्राकृतिक जल प्रवाह बाधित होता है।
- अनुचित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: इससे जल अपवाह प्रणालियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं, जिससे भारी वर्षा के दौरान जल का प्रवाह अधिक हो जाता है तथा सीवेज एवं वर्षा जल के मिल जाने से बाढ़ का खतरा और भी बढ़ जाता है।
प्रमुख बाढ़ की घटनाएँ:
- चेन्नई बाढ़ (2015): भारी वर्षा और खराब जल अपवाह तंत्र के साथ-साथ शहरी विकास के कारण 300 अंतर्देशीय जल निकायों के नष्ट होने से बाढ़ की स्थिति और भी बदतर हो गई है। पल्लीकरनई मार्श में उल्लेखनीय कमी ने प्राकृतिक पारिस्थितिकी और बाढ़ नियंत्रण को कमज़ोर कर दिया।
- मुंबई बाढ़ (2005): भारी वर्षा के कारण आई बाढ़, एक सदी पुरानी जल अपवाह तंत्र को ध्वस्त कर दिया गया, जिसे केवल 25 मिमी. प्रति घंटे की वर्षा को संभालने के लिये डिज़ाइन किया गया था। शहरीकरण के कारण मैंग्रोव में 40% की कमी आई और हरित क्षेत्रों में कमी आई, जिससे बाढ़ की समस्या में और वृद्धि हुई साथ ही जल का प्रभावी अवशोषण बाधित हुआ।
भारत में शहरी बाढ़ से निपटने के लिये नीतियाँ और रूपरेखा:
- शहरी बाढ़ प्रबंधन पर दिशा-निर्देश (2010): राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जारी ये दिशा-निर्देश शहरी बाढ़ प्रबंधन योजना के लिये बहु-विषयक दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं।
- स्मार्ट सिटीज़ मिशन (2015): स्मार्ट जल निकासी और बाढ़ प्रबंधन प्रणालियों समेत सतत् शहरी बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देता है।
- अमृत 2.0: बाढ़ की आशंका को कम करने के लिये चक्रवाती जल अपवाह और शहरी बुनियादी ढाँचे को उन्नत करने पर केंद्रित है।
- तूफान जल निकासी प्रणाली, 2019 पर मैनुअल: सतत् चक्रवात जल प्रबंधन और बाढ़ प्रतिक्रिया संबंधी योजना पर मार्गदर्शन प्रदान करता है।
निष्कर्ष:
जलवायु परिवर्तन के कारण शहरी बाढ़ से शहरों को बहुत अधिक जोखिम होता है। सतत् बुनियादी ढाँचे के माध्यम से प्रभावी प्रबंधन और NDMA के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए शहरी लचीलेपन में वृद्धि की जा सकती है।
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अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा
प्रश्न 19. भारत की चीन और पाकिस्तान के साथ दीर्घकालिक अशांत सीमा है, जिसमे अनेक विवादास्पद मुद्दे है। सीमा के साथ परस्पर-विरोधी मुद्दों तथा सुरक्षा-चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (बी.ए.डी.पी.) तथा सीमा अवसंरचना और प्रबंधन (बी.आई.एम.) योजना के अंतर्गत इन क्षेत्रों में किये जाने वाले विकास-कार्यों को भी उल्लिखित कीजिये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- चीन और पाकिस्तान के साथ भारत की सीमाओं के ऐतिहासिक तथा भू-राजनीतिक महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- बी.ए.डी.पी. और बी.आई.एम. के अंतर्गत परस्पर विरोधी मुद्दों, सीमा पर सुरक्षा चुनौतियों तथा विकास पहलों की जाँच कीजिये।
- विकास प्रयासों के साथ सुरक्षा उपायों को संयोजित करने के महत्त्व के साथ निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
चीन और पाकिस्तान के साथ भारत की सीमाएँ ऐतिहासिक विवादों तथा सतत् सुरक्षा चुनौतियों से भरी हुई हैं।
मुख्य भाग:
- चीन और पाकिस्तान के साथ भारत की सीमा:
- भारत-चीन सीमा, जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के नाम से जाना जाता है, जो लगभग 3,440 किलोमीटर तक फैली हुई है। पश्चिमी मोर्चे पर, भारत-पाकिस्तान सीमा जिसे नियंत्रण रेखा (LOC) के नाम से जाना जाता है, लगभग 740 किलोमीटर तक फैली हुई है।
- परस्पर विरोधी मुद्दे और सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ:
- चीनी मोर्चा:
- चीन के साथ मुख्य मुद्दा सीमा का अस्पष्टीकरण है, जिसके कारण प्राय: टकराव और झड़पें देखने को मिलते हैं। महत्त्वपूर्ण घटनाओं में वर्ष 2020 में गलवान घाटी संघर्ष, वर्ष 2017 में डोकलाम सैन्य गतिरोध शामिल हैं। LAC पर बुनियादी ढाँचे के निर्माण की होड़ तनाव को और बढ़ा देती है।
- इन भारत-चीन सीमा चौकियों के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य उपभोक्ता चीनी वस्तुओं की तस्करी बड़े पैमाने पर होती है।
- चीनी मोर्चा:
- पाकिस्तान मोर्चा:
- पाकिस्तान के साथ समस्या यह है कि वह प्राय: एलओसी का उल्लंघन करता है, सीमा पार से गोलाबारी करता है और आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ की कोशिश करता है। वर्ष 2019 का पुलवामा हमला और उसके बाद बालाकोट हवाई हमला इस अस्थिर स्थिति के हालिया उदाहरण हैं।
- पाकिस्तान का दावा है कि संपूर्ण सर क्रीक, जिसमें वर्ष 1914 के मानचित्र में "हरी रेखा" से चिह्नित उसका पूर्वी तट भी शामिल है, उनका है।
- सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (बी० ए० डी० पी०):
- बी.ए.डी.पी. का उद्देश्य सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे का विकास करना और लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना है।
- परियोजनाओं में सड़कें, स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाएँ निर्मित करना, सुरक्षा तथा सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाना शामिल है।
- हिमाचल प्रदेश के किन्नौर ज़िले में सांगला से होकर 40 किलोमीटर लंबे करछम-चितकुल मार्ग का विकास किया गया, जो चीन के साथ सीमा साझा करता है।
- सीमा अवसंरचना एवं प्रबंधन (बी.आई.एम.) योजना:
- यह पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, नेपाल, भूटान और म्याँमार के साथ भारत की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिये सीमा बाड़, सीमा फ्लड लाइट, तकनीकी समाधान, सीमा सड़कें और सीमा चौकियाँ (BOPs) तथा कंपनी संचालन अड्डों जैसे बुनियादी ढाँचे के निर्माण में सहायता करता है।
- भारत की योजना भारत-बाँग्लादेश सीमा पर 383 और भारत-पाकिस्तान सीमा पर 126 समग्र सीमा चौकियाँ बनाने की है।
निष्कर्ष:
बी.ए.डी.पी. और बी.आई.एम. जैसी पहलों के माध्यम से भारत न केवल सीमा सुरक्षा में वृद्धि कर रहा है, बल्कि इन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में विकास को भी बढ़ावा दे रहा है, जिसका उद्देश्य सीमा प्रबंधन के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना है।
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अंतर्राष्ट्रीय संबंध
प्रश्न 20 सोशल मीडिया एवं 'को गोपित' (एन्क्रिप्टिंग) संदेश सेवाएँ गंभीर सुरक्षा चुनौती हैं। सोशल मीडिया के सुरक्षा निहितार्थों को संबोधित करते हुए विभिन्न स्तरों पर क्या उपाय अपनाए गए हैं? इस समस्या को संबोधित करते हुए अन्य किन्हीं उपायों का भी सुझाव दीजिये।
हल करने का दृष्टिकोण:
- सोशल मीडिया के प्रसार पर प्रकाश डालते हुए उत्तर आरंभ कीजिये।
- सोशल मीडिया एवं 'को गोपित' (एन्क्रिप्टिंग) संदेश सेवाओं से संबंधित सुरक्षा चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- सोशल मीडिया से संबंधित सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये वर्तमान प्रयासों का उल्लेख कीजिये।
- इससे संबंधित समस्याओं के समाधान हेतु अन्य उपाय सुझाइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
सोशल मीडिया एवं 'को गोपित' (एन्क्रिप्टिंग) संदेश सेवाओं के प्रसार ने भारत में संचार के क्षेत्र में क्रांति ला दी है।
- ये प्लेटफॉर्म्स सूचना साझाकरण एवं कनेक्टिविटी के प्रमुख साधन बन गए हैं, किंतु ये राष्ट्रीय सुरक्षा, लोक सुरक्षा एवं सामाजिक सद्भाव के लिये जटिल जोखिम भी प्रस्तुत करते हैं।
- भ्रामक सूचनाओं के प्रसार से लेकर आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा देने तक, ये डिजिटल प्लेटफॉर्म्स सुरक्षा चिंताओं के लिये एक नया क्षेत्र बनकर उभरे हैं।
मुख्य भाग:
सोशल मीडिया एवं 'को गोपित' (एन्क्रिप्टिंग) संदेश सेवाओं से संबंधित सुरक्षा चुनौतियाँ:
- भ्रामक सूचना: सोशल मीडिया के माध्यम से भ्रामक सूचनाओं का प्रसार किया जाता है, जो कि आराजकता को बढ़ता है। (वर्ष 2022 से जारी रूस यूक्रेन युद्ध में, भ्रामक सूचनाओं से जुड़े प्लेटफॉर्म्स का व्यापक प्रसार देखने को मिला)।
- अतिवाद: एन्क्रिप्टेड ऐप्स के माध्यम से अतिवादी संगठन भर्ती करते हैं। (टेलीग्राम पर ISIS की गतिविधियाँ इसे सिद्ध करती हैं)
- साइबर अपराध: प्लेटफॉर्म्स स्कैम्स, आइडेंटिटी थेफ्ट को सक्षम करते हैं। (सेलिब्रिटियों की छवियों का प्रयोग कर ठगी या भ्रामकता का प्रसार किया जाता है)।
- डेटा गोपनीयता: उपयोगकर्त्ताओं के डेटा का दुरुपयोग, एक चिंता का विषय रहा है। (2018 कैम्ब्रिज एनालिटिका स्कैम)
- डिजिटल युद्ध: दुष्प्रचार और राज्य हित के लिये उपयोग किये जाने वाले प्लेटफॉर्म्स। (रूस द्वारा वर्ष 2020 के अमेरिकी चुनाव को डिजिटल माध्यम से प्रभावित किया गया)
सोशल मीडिया से संबंधित सुरक्षा चुनौतियों को समबोधित करने हेतु उपाय:
- IT अधिनियम 2000: ऑनलाइन संचार को नियंत्रित करता है; धारा 69A सुरक्षा के लिये सामग्री को अवरुद्ध करने में सक्षम बनाती है और धारा 79 (1) मध्यस्थों को सशर्त प्रतिरक्षा प्रदान करती है। (भारत ने वर्ष 2020 में 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया)
- IT नियम 2021: इसके माध्यम से कंटेंट मॉडरेशन और यूज़र प्राइवेसी नोटिफिकेशन को अनिवार्य बनाया गया है। (ट्विटर को वर्ष 2021 में अनुपालन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा)
- शिकायत अधिकारी: प्लेटफॉर्म्स को शिकायतों के प्रबंधन हेतु अधिकारियों की नियुक्ति करनी चाहिये। (मेटा ने वर्ष 2022 में स्पूर्ति प्रिया को नियुक्त किया)
- तथ्य-जाँच: प्लेटफॉर्म्स को सरकार द्वारा चिह्नित भ्रामक कंटेंट को हटाना की आवश्यता है। (वर्ष 2023 के नियम सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा के अधीन)
अन्य उपाय:
निष्कर्ष:
तकनीकी समाधानों, डिजिटल साक्षरता पहलों और हितधारकों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों को एकीकृत कर, भारत एक सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण का निर्माण कर सकता है। अंततः लक्ष्य राष्ट्रीय सुरक्षा हितों और व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकारों के बीच एक कमज़ोर संतुलन का निर्माण करना है, जिससे सभी नागरिकों के लिये एक सुरक्षित तथा जीवंत डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित हो सके।