8 Solved Questions with Answers
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2024
प्रश्न 1. भारत में सुधारों के उपरांत की अवधि में सामाजिक सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय के स्वरूप एवं प्रवृत्ति का परीक्षण कीजिये। किस सीमा तक यह समावेशी संवृद्धि के उद्देश्य को प्राप्त करने के अनुरूप है?
हल करने का दृष्टिकोण:
- सामाजिक सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- सार्वजनिक व्यय के पैटर्न और प्रवृत्ति का उल्लेख कीजिये।
- समावेशी संवृद्धि प्राप्त करने में सार्वजनिक व्यय की सीमा बताइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
सामाजिक सेवाओं पर सरकारी व्यय वित्त वर्ष 2012 से वित्त वर्ष 2023 तक 5.9% CAGR की दर से बढ़ा, जो समावेशी संवृद्धि के लिये वर्ष 1991 के सुधारों के पश्चात् से शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास पर बढ़ते दृष्टिकोण को दर्शाता है।
मुख्य भाग:
सामाजिक सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय का पैटर्न और प्रवृत्ति (सुधारोत्तर अवधि):
- आवंटन में वृद्धि: शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण पर ध्यान केंद्रित करते हुए सामाजिक सेवाओं पर व्यय 2000-01 में सकल घरेलू उत्पाद के 5.3% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 8.3% हो गया।
- शिक्षा क्षेत्र: वर्ष 2022-23 तक सकल घरेलू उत्पाद का 2.8% से बढ़ाकर 3.1% किया जाएगा। वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में 1.12 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
- स्वास्थ्य क्षेत्र: वर्ष 2022-23 तक सकल घरेलू उत्पाद का 0.9% से बढ़कर 2.1% हो जाएगा। वित्त वर्ष 2023-24 के लिये आवंटन 89,155 करोड़ रुपए है।
- सामाजिक कल्याण कार्यक्रम: निर्धनता उन्मूलन के लिये मनरेगा का वित्तपोषण वर्ष 2023-24 में 60,000 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2024-25 में 86,000 करोड़ रुपए हो गया।
- कौशल और डिजिटल समावेशन: डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया (5 वर्ष की अवधि में 20 लाख युवाओं को कुशल बनाया जाएगा- बजट 2024-25) जैसे कार्यक्रमों को डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने, डिजिटल विभाजन को खत्म करने और कौशल विकास पहलों के माध्यम से रोज़गार प्रदान करने के लिये अधिक धनराशि प्राप्त हो रही है।
समावेशी संवृद्धि प्राप्त करने के साथ सामंजस्य:
सामाजिक सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के बावजूद, जनसंख्या की आवश्यकताओं के लिये आवंटन बहुत न्यून है।
- शिक्षा: पहुँच का विस्तार हुआ है, लेकिन गुणवत्ता और समानता में चुनौतियाँ बनी हुई हैं (भारत में 18-23 वर्ष आयु वर्ग के लिये GIR 28.4% है)।
- स्वास्थ्य: व्यय में वृद्धि हुई है, फिर भी भारत ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा और हाशिये पर पड़े समूहों तक पहुँच के मामले में पीछे है।
- निर्धनता और असमानता: कल्याणकारी कार्यक्रम निर्धनता को कम करने में सहायक हैं, लेकिन धन के न्यून उपयोग और कार्यान्वयन संबंधी समस्याओं के कारण समावेशी संवृद्धि में बाधा उत्पन्न होती है।
निष्कर्ष:
सुधार के पश्चात् के भारत में सामाजिक सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय समावेशी संवृद्धि को समर्थन देने में बढ़ोत्तरी हुई है। वास्तविक समावेशी संवृद्धि को प्राप्त करने के लिये बेहतर संसाधन दक्षता और लक्षित लाभार्थी समर्थन की आवश्यकता होती है। सामाजिक क्षेत्रों में निवेश को बनाए रखते हुए इन मुद्दों के समाधान करने हेतु प्रयास जारी रखना आवश्यक है।
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2024
प्रश्न 2. भारत में निरंतर उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के क्या कारण हैं? इस प्रकार की मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में RBI की मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता पर टिप्पणी कीजिये।
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय में प्रासंगिक तथ्यों/आँकड़ों के साथ खाद्य मुद्रास्फीति पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये।
- जलवायु परिवर्तन, आपूर्ति शृंखला संबंधी मुद्दे और बढ़ती उत्पादन लागत जैसे कारकों पर चर्चा कीजिये।
- RBI के लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) दृष्टिकोण का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
- समग्र बनाम खाद्य मुद्रास्फीति के प्रबंधन में आरबीआई की सफलता का आकलन कीजिये।
- आपूर्ति पक्ष के मुद्दों पर मौद्रिक नीति की सीमाओं पर ध्यान केंद्रित कीजिये।
- सकारात्मक रूप से उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
CPI के अनुसार, अगस्त 2024 में खाद्य मुद्रास्फीति 5.66% थी, जिसमें ग्रामीण और शहरी मुद्रास्फीति क्रमशः 6.02% और 4.99% थी। भारत में निरंतर उच्च खाद्य मुद्रास्फीति आर्थिक चुनौतियों का सामना करती है तथा इसके कारणों को समझना भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये आवश्यक है।
मुख्य भाग:
भारत में निरंतर उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के कारण:
मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में RBI की मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता:
RBI द्वारा लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) ढाँचे के माध्यम से 4% मुद्रास्फीति का लक्ष्य रखा गया है, परंतु इसके उपायों के बावजूद खाद्य मुद्रास्फीति एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
- FIT दृष्टिकोण का लक्ष्य मूल्य स्थिरता और विकास है, लेकिन आपूर्ति पक्ष अघात से निरंतर खाद्य मुद्रास्फीति इसे जटिल बना देती है।
- RBI मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये दरों को समायोजित करता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और वैश्विक कीमतों जैसे कारकों के कारण खाद्य कीमतें स्थिर नहीं रहती हैं।
- मौद्रिक नीति की कार्रवाइयों को अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालने में 2-3 तिमाहियों का समय लगता है, जिससे अल्पकालिक खाद्य मूल्य अघात के लिये उनकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।
निष्कर्ष:
जबकि RBI की मौद्रिक नीति मुद्रास्फीति के प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है, भारत में निरंतर खाद्य मुद्रास्फीति से निपटने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। लक्षित राजकोषीय नीतियों, संरचनात्मक सुधारों, बेहतर कृषि पद्धतियों और बेहतर आपूर्ति शृंखलाओं के अनुरूप दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित होगी, जिससे उपभोक्ताओं तथा अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।
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2024
प्रश्न 3. देश के कुछ भागों में भूमि सुधारों के सफल क्रियान्वयन के लिये उत्तरदायी कारक क्या थे? स्पष्ट कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में भूमि सुधारों के बारे में संक्षेप में लिखिये।
- देश के कुछ क्षेत्रों में इसके सफल कार्यान्वयन के कारणों पर चर्चा कीजिये।
- मुख्य भाग में उल्लिखित कारकों का सारांश देकर निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भूमि स्वामित्व या प्रबंधन में परिवर्तन कृषि सुधार का एक रूप है, जिसमें आमतौर पर गरीब भूमिहीन किसानों के जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से सरकारी उपाय शामिल होते हैं। काश्तकारी सुधार, भूमि चकबंदी, भूमि हदबंदी एवं बिचौलियों का उन्मूलन, सभी को भूमि सुधारों में शामिल किया गया।
मुख्य भाग:
देश के कुछ क्षेत्रों जैसे पश्चिम बंगाल और केरल में, निम्नलिखित कारकों के कारण भूमि सुधार सफलतापूर्वक लागू किये गए:
- दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और विधान: राज्य सरकारों ने भूमि सुधारों को प्रभावी ढंग से लागू किया। बिहार भूमि सुधार अधिनियम (1950) और बॉम्बे टेनेंसी एक्ट (1948) जैसे कानूनों ने भूमि सुधारों को आसान बनाया।
- किसान आंदोलन: पश्चिम बंगाल में बटाईदारी में परिवर्तन ऑपरेशन बर्गा के दौरान लामबंदी के परिणामस्वरूप हुआ।
- आधारभूत भूमि सुधार: तेलंगाना में भूदान और ग्रामदान समूहों द्वारा पुनर्वितरण के लिये स्वैच्छिक भूमि समर्पण को बढ़ावा दिया गया था।
- भूमि अभिलेखों का प्रभावी प्रबंधन: कर्नाटक जैसे स्थानों में डिजिटलीकरण से संघर्ष और भ्रष्टाचार में कमी आई है।
- राजनीतिक जागरूकता: स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कृषि संबंधी मुद्दों ने भूमि सुधारों की स्वीकार्यता को बढ़ा दिया।
अन्य भागों में भूमि सुधारों के खराब क्रियान्वयन के लिये उत्तरदायी कारक:
- खराब भू-अभिलेखों के कारण संपत्ति विवरण और सीमाओं में विसंगतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- नौकरशाही एवं राजनीतिक उदासीनता के कारण विलंब होता है।
- भूमि सुधारों में वृक्षारोपण को शामिल न करने के कारण असफल परिणाम सामने आए।
- भूमि की अधिकतम सीमा बहुत ऊँची निर्धारित की गई थी, परिणामस्वरूप लोगों को अधिकतम सीमा कानून से बचने में सहायता प्राप्त हुई।
निष्कर्ष:
डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP), सहकारी एवं सामूहिक खेती को बढ़ावा देना तथा भौगोलिक सूचना प्रणाली (स्वामित्व योजना) का लाभ उठाकर भूमि सुधार कार्यान्वयन को सफल बनाया जा सकता है।
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2024
प्रश्न 5. जीवन सामग्रियों के संदर्भ में बौद्धिक संपदा अधिकारों का वर्तमान विश्व परिदृश्य क्या है? यद्यपि भारत पेटेंट दाखिल करने के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है, फिर भी केवल कुछ का ही व्यवसायीकरण किया गया है। इस कम व्यवसायीकरण के कारणों को स्पष्ट कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- जीवन सामग्री से संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) की जटिलता को समझाते हुए शुरुआत कीजिये।
- आँकड़े प्रस्तुत करने से चुनौतियों और संभावित समाधानों तथा संबंधित सरकारी हस्तक्षेपों पर प्रभाव पड़ता है।
- भारत द्वारा विभिन्न सुधारों के माध्यम से पेटेंट के व्यवसायीकरण में सुधार लाने की आवश्यकता पर बल देते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
वर्तमान वैश्विक संदर्भ में, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMO) और जैव-प्रौद्योगिकी आविष्कारों पर पेटेंट की अनुमति है, जबकि प्राकृतिक जीवित रूपों पर पेटेंट की अनुमति नहीं है। BRCA1 जैसे प्राकृतिक जीन को ट्रेडमार्क नहीं किया जा सकता है, लेकिन GMO को मोनसेंटो जैसे व्यवसायों द्वारा पेटेंट किया जा सकता है। जब समुदायों के आनुवंशिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है, तब उनके साथ उचित लाभ-साझाकरण नागोया प्रोटोकॉल जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों द्वारा सुनिश्चित किया जाता है।
मुख्य भाग:
नैसकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में, भारत में कुल 83,000 पेटेंट दाखिल किये गए, जो 24.6% की वृद्धि दर है, जो पिछले 20 वर्षों में सबसे अधिक है। हालाँकि भारत में 5% से भी कम पेटेंट का व्यवसायीकरण किया जाता है।
पेटेंट के व्यावसायीकरण की कमी से निपटने के लिये कारण, समाधान एवं सरकारी पहल:
कारण
समाधान
सरकारी पहल
पेटेंट सहयोग संधि (PCT) अनुप्रयोगों के बारे में स्टार्टअप्स के बीच जागरूकता की कमी
नवोदित उद्यमियों के बीच बौद्धिक संपदा के बारे में जागरूकता पैदा करना
राष्ट्रीय IPR नीति (2016)
विकास और नवाचार के लिये धन और उचित बुनियादी ढाँचे का अभाव
निरर्थक फाइलिंग को रोकने हेतु विरोध की उचित जाँच
स्टार्ट-अप बौद्धिक संपदा संरक्षण योजना (SIPP) (वर्ष 2016)
पेटेंट कार्यालय में जनशक्ति की कमी
बेहतर दक्षता और पर्याप्त स्टाफिंग आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करना
IP साक्षरता और जागरूकता के लिये कलाम कार्यक्रम (KAPILA) (वर्ष 2020)
प्रक्रिया के प्रत्येक चरण के लिये कोई निश्चित समय-सीमा नहीं
प्रत्येक राज्य में अधिक पेटेंट फाइलिंग केंद्रों की स्थापना
राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद (2020)
भारत में एक पेटेंट आवेदन का निपटारा करने में औसतन लगभग 58 महीने लगते हैं
सरकारी वेबसाइट पर वकीलों और परीक्षकों के बारे में जानकारी
MeitY स्टार्टअप हब (MSH)
निष्कर्ष:
नियामक सुधारों, उन्नत बुनियादी ढाँचे के विकास और सहयोग के माध्यम से व्यवसायीकरण को बढ़ाने की आवश्यकता भारत से पेटेंट आवेदनों की बढ़ती संख्या से स्पष्ट होती है। भारत अपने आविष्कार की क्षमता एवं पेटेंट प्रणाली को मज़बूत करके और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करके वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य के करीब पहुँच सकता है।
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2024
प्रश्न 11. भारत में श्रम बाज़ार सुधारों के संदर्भ में चार श्रम संहिताओं के गुण व दोषों की विवेचना कीजिये। इस संबंध में अभी तक क्या प्रगति हुई है? (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- श्रम संहिताओं का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- श्रम संहिताओं के गुण व दोषों की रूपरेखा तैयार कीजिये तथा अभी तक हुई प्रगति पर चर्चा कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत में चार श्रम संहिताएँ- मज़दूरी, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा - देश के श्रम कानूनों में महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व करती हैं।
मुख्य भाग:
गुण:
- कानूनों का आसान बनाना: 40 से अधिक श्रम कानूनों को चार संहिताओं में समेकित करने से व्यवसायों के लिये अनुपालन आसान हो जाएगा, जिससे विधिक जटिलताएँ कम हो जाएँगी।
- नियोक्ताओं के लिये बेहतर लचीलापन: औद्योगिक संबंध संहिता ने शासकीय अनुमोदन के बगैर कार्य करने वाली कंपनियों के लिये छंटनी की सीमा को 100 से बढ़ाकर 300 कर्मचारी तक कर दिया है।
- उन्नत श्रमिक सुरक्षा: सामाजिक सुरक्षा संहिता गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को लाभ प्रदान करती है।
- व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य: व्यावसायिक सुरक्षा संहिता कार्यस्थल पर सुरक्षा के कड़े मानकों को अनिवार्य बनाती है। इसमें स्वास्थ्य अन्वेषण, सुरक्षा समितियाँ और श्रमिकों के लिये बेहतर सुविधाएँ शामिल हैं।
दोष:
- परिभाषाओं में अस्पष्टता: श्रमिकों और गिग श्रमिकों की अस्पष्ट परिभाषा से शोषण तथा भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- कमज़ोर श्रमिकों का बहिष्कार: व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थितियां संहिता धर्मार्थ संगठनों या गैर सरकारी संगठनों को शामिल नहीं करती है, जिससे सामाजिक सेवा क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण भाग असुरक्षित महसूस करता है।
- राज्यों से विरोध: कुछ राज्य कार्यान्वयन में पिछड़ रहे हैं, जिससे श्रम कानूनों में असंगतता का खतरा है।
- सामूहिक सौदेबाज़ी में कमी: यूनियन मान्यता के लिये 75% श्रमिक समर्थन की आवश्यकता से प्रतिनिधित्व खंडित हो सकता है तथा सामूहिक सौदेबाज़ी में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- शोषण की संभावना: निश्चित अवधि के अनुबंधों के परिणामस्वरूप श्रमिकों का शोषण हो सकता है तथा उनके अधिकारों में कमी आ सकती है।
अभी तक हुई प्रगति:
- विधायी अनुमोदन: सभी चार श्रम संहिताओं को संसद द्वारा पारित कर दिया गया है तथा राष्ट्रपति की स्वीकृति भी प्राप्त हो गई है।
- जो अभी तक लागू नहीं हुआ: वर्ष 2019 और 2020 में पारित इन संहिताओं को अभी तक लागू नहीं किया गया है।
- जून 2024 तक भारत में 24 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) ने सभी चार नए श्रम संहिताओं के तहत नियम बनाए गए हैं।
निष्कर्ष:
इन संहिताओं के कार्यान्वयन से भारत के श्रम बाज़ार में महत्त्वपूर्ण बदलाव आने की उम्मीद है, जिसका उद्देश्य श्रम कानूनों को सरल और आधुनिक बनाना है, हालाँकि अंतिम क्रियान्वयन अभी भी प्रतीक्षित है।
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2024
प्रश्न 12 भारत में क्षेत्रीय वायु कनेक्टिविटी के विस्तार की क्या आवश्यकता है? इस संदर्भ में सरकार की ‘उड़ान’ योजना तथा इसकी उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत जैसे विशाल और तेज़ी से विकास की ओर बढ़ते देश में क्षेत्रीय संपर्क के महत्त्व को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत की RCS-उड़ान योजना किस प्रकार उचित दिशा में उठाया गया कदम है।
- योजना के प्रमुख संस्करणों और उसकी उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत में व्यापक और समावेशी संवृद्धि हासिल करने के लिये क्षेत्रीय हवाई संपर्क का विस्तार करना महत्त्वपूर्ण है। क्षेत्रीय हवाई संपर्क को बढ़ाने के लिये भारत सरकार ने क्षेत्रीय संपर्क योजना- उड़े देश का आम नागरिक (RCS-उड़ान) योजना प्रारंभ की है।
मुख्य भाग:
क्षेत्रीय वायु कनेक्टिविटी – एक आवश्यकता:
- उन्नत कनेक्टिविटी दूर-दराज़ के क्षेत्रों में व्यापार, पर्यटन और निवेश को सुविधाजनक बनाकर स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहित करती है।
- बेहतर हवाई संपर्क से वंचित क्षेत्रों में लोगों के लिये आवश्यक सेवाओं तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित होती है।
- हवाई यातायात में वृद्धि से विमानन, आतिथ्य और संबंधित क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं, जिससे स्थानीय समुदायों को लाभ होगा।
- बेहतर कनेक्टिविटी से दूर-दराज़ और दर्शनीय क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा मिलता है, साथ ही शहरी-ग्रामीण विभाजन कम होता है तथा समान विकास को बढ़ावा मिलता है।
- बेहतर हवाई संपर्क से प्राकृतिक आपदाओं के दौरान त्वरित प्रतिक्रिया संभव होती है।
RCS-उड़ान:
- उड़ान योजना राष्ट्रीय नागरिक विमानन नीति, 2016 का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत में विशेष रूप से दूर-दराज़ और वंचित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे तथा कनेक्टिविटी में सुधार करने के साथ आम नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा करना है।
उपलब्धियाँ:
- अपनी शुरुआत के बाद से, उड़ान योजना के विभिन्न संस्करण लॉन्च किये गए हैं, जिनमें सबसे हालिया संस्करण उड़ान 5.1, 5.2 और 5.3 है, जो अंतिम मील कनेक्टिविटी और छोटे विमानों के माध्यम से पर्यटन पर केंद्रित हैं।
- इस योजना से 1 करोड़ से अधिक यात्री लाभान्वित हुए हैं और 2.5 लाख से अधिक उड़ानें संचालित हुई हैं, जिससे हवाईअड्डों के विकास में वृद्धि हुई है साथ ही हवाई यात्रा भी अधिक सुलभ तथा सस्ती हुई है, जिसके साथ रोज़गार के अवसर भी उत्पन्न हुए हैं।
- अप्रैल 2024 तक इस योजना के तहत 85 हवाई अड्डों का संचालन आरंभ कर दिया गया है।
- RCS-उड़ान देश भर में 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को जोड़ रहा है (जैसे- मुंद्रा (गुजरात) से अरुणाचल प्रदेश के तेजू से लेकर कर्नाटक के हुबली तक) तथा कम सुविधा वाले हवाई अड्डों, हेलीपोर्टस और वाटर एयरपोर्ट्स की शुरुआत कर रहा है।
निष्कर्ष:
निरंतर प्रयासों के बावजूद, परिचालन मार्गों की अपूर्ण कार्यक्षमता के कारण चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जो प्रायः न्यून अधिभोग दरों और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे से उत्पन्न होती हैं। हालाँकि RCS-उड़ान ने दूर-दराज़ के क्षेत्रों को जोड़कर और निम्न मध्यम वर्ग के नागरिकों के लिये हवाई यात्रा को अधिक किफायती बनाकर विमानन परिदृश्य को परिवर्तित कर दिया है।
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2024
प्रश्न 13. हाल के दिनों में भारतीय सिंचाई प्रणाली के सामने क्या प्रमुख चुनौतियाँ हैं? कुशल सिंचाई प्रबंधन के लिये सरकार द्वारा अपनाए गए उपायों को बताइये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय सिंचाई प्रणाली का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- भारतीय सिंचाई प्रणालियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- कुशल सिंचाई प्रबंधन के लिये राज्य सरकार द्वारा अपनाए गए उपाय सुझाइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत में कृषि के लिये देश के वार्षिक ताज़े जल का लगभग 80% उपयोग किया जाता है, जो 700 बिलियन क्यूबिक मीटर है। वर्ष 2022-23 तक कुल बोए गए 141 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में से लगभग 52% को सिंचाई की सुविधा मिल गई है, जो वर्ष 2016 में 41% से उल्लेखनीय वृद्धि है, जो मौजूदा चुनौतियों के बीच कुशल सिंचाई प्रबंधन के महत्त्व को दर्शाता है।
मुख्य भाग:
भारतीय सिंचाई प्रणाली के समक्ष चुनौतियाँ
- जल की कमी: भूजल के अत्यधिक उपयोग के कारण भारत के 64% ज़िलों में जल स्तर में कमी आई है।
- जलवायु परिवर्तन: नदियों के मार्ग में परिवर्तन तथा फसलों के लिये जल की बढ़ती मांग के कारण जल एक सीमित संसाधन बन रहा है।
- पुरानी अवसंरचना: सिंचाई की अवसंरचना पुरानी हो चुकी है, इसमें महत्त्वपूर्ण उन्नयन की आवश्यकता है।
- खराब रखरखाव: नहरों का रखरखाव अपर्याप्त रूप से किया जाता है, जिसके कारण अकुशलताएँ उत्पन्न होती हैं; सहभागितापूर्ण प्रबंधन का अभाव समस्या को और बढ़ा देता है।
- भूमि उपयोग में परिवर्तन: भूमि उपयोग पैटर्न और फसल पद्धतियों में परिवर्तन, जैसे जल की कमी वाले क्षेत्रों में अधिक जल वाली फसलें उगाना, मूल कृषि योजनाओं से दूर करती हैं।
- धन की कमी: सब्सिडी स्थापना के लिये अपर्याप्त धन; विभिन्न योजनाओं में धन का गलत आवंटन और कम उपयोग।
कुशल सिंचाई प्रबंधन के लिये सरकारी उपाय:
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लक्ष्य के साथ सिंचाई वितरण नेटवर्क में सुधार और सिंचाई कवरेज का विस्तार करने के लिये शुरू की गई।
- जल शक्ति अभियान (JSA): वर्ष 2019 में आरंभ किया गया एक वार्षिक कार्यक्रम, जो संपूर्ण भारत में 256 जल-संकटग्रस्त ज़िलों में जल संरक्षण और प्रबंधन पर केंद्रित है।
- कैच द रेन (Catch the Rain): सभी ज़िलों के सभी ब्लॉकों को कवर करने के लिये वर्ष 2021 में आरंभ किया गया, जिसमें वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण पहलों पर बल दिया गया है।
- जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (BWUE): कृषि और सिंचाई समेत विभिन्न क्षेत्रों में जल उपयोग दक्षता को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2022 में स्थापित किया जाएगा।
- पर ड्रॉप मोर क्रॉप (PDMC): वर्ष 2015-16 से क्रियान्वित एक केंद्र प्रायोजित योजना, जिसका उद्देश्य ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणालियों जैसी सूक्ष्म सिंचाई विधियों के माध्यम से जल उपयोग दक्षता को बढ़ाना है।
निष्कर्ष:
जल की कमी और पुराने बुनियादी ढाँचे से निपटने के लिये, भारत को सतत् सिंचाई पद्धतियों को अपनाना चाहिये, प्रणालियों का आधुनिकीकरण करना चाहिये तथा सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देना चाहिये। जल सुरक्षा सुनिश्चित करने और कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिये कुशल निधि उपयोग एवं भागीदारी प्रबंधन आवश्यक है।
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2024
प्रश्न 14. भारत में कृषि कीमतों के स्थिरीकरण के लिये सुरक्षित भंडार (बफर स्टॉक) के महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। बफर स्टॉक के भंडारण से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं? विवेचना कीजिये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- बफर स्टॉक के संदर्भ में प्रासंगिक तथ्यों के साथ संक्षेप में उत्तर लेखन का परिचय दीजिये।
- बफर स्टॉक क्या हैं और मूल्य स्थिरीकरण में उनकी भूमिका क्या है?
- खाद्य सुरक्षा और किसानों के लिये समर्थन सहित प्रमुख लाभों पर प्रकाश डालिये।
- भंडारण अपर्याप्तता और खरीद असंतुलन जैसे प्रमुख मुद्दों का अभिनिर्धारण कीजिये।
- अवसंरचना और वितरण दक्षता में सुधार का सुझाव दीजिये।
- खाद्य सुरक्षा और बाज़ार स्थिरता को बढ़ाने की संभावना पर बल देते हुए सकारात्मक रूप से निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
बफर स्टॉक वस्तुओं का एक भंडार है जिसका उद्देश्य मूल्य में उतार-चढ़ाव और आपात स्थितियों को संतुलित करना है। चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान शुरू किया गया, यह कृषि मूल्यों को स्थिर करता है, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है और किसानों के आय की गारंटी देता है।
मुख्य भाग:
भारत में कृषि मूल्यों को स्थिर रखने के लिये बफर स्टॉक का महत्त्व:
- खाद्य सुरक्षा: सूखे/अनावृष्टि या बाढ़ जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों के दौरान कमज़ोर आबादी के लिये खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
- सार्वजनिक वितरण: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं (OWS) के माध्यम से खाद्यान्न का मासिक वितरण सुनिश्चित करता है।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया: फसल विफलता, प्राकृतिक आपदाओं आदि से उत्पन्न अप्रत्याशित स्थितियों से निपटने में सहायता करता है।
- मूल्य स्थिरीकरण: आपूर्ति को विनियमित करके आवश्यक अनाज की स्थिर कीमतों को बनाए रखने में मदद करता है। उदाहरण के लिये, सत्र 2022-23 में, FCI ने 34.82 लाख टन गेहूँ विमोचित किया, जिससे अनाज में खुदरा मुद्रास्फीति कम हुई।
- किसानों को सहायता: उपज के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी, किसानों की आय को स्थिर करना और कृषि उत्पादन को प्रोत्साहित करता है।
- आपदा प्रबंधन: प्राकृतिक आपदाओं के दौरान तत्काल खाद्य राहत प्रदान करता है, जिसका उदाहरण कोविड-19 के दौरान निशुल्क राशन की आपूर्ति करना है।
चुनौतियाँ:
- भंडारण संबंधी समस्याएँ: अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं के कारण अधिक मात्रा में खाद्यान्न बर्बाद होता है और भारत में प्रतिवर्ष लगभग 74 मिलियन टन (खाद्यान्न उत्पादन का 22%) खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है।
- क्रय असंतुलन: चावल और गेहूँ की अत्यधिक खरीद से बफर स्टॉक अधिक हो जाता है, जिससे अन्य अनाजों की उपेक्षा होती है तथा फसल विविधीकरण बाधित होता है।
- वित्तीय बोझ: बफर स्टॉक की वृहद् खरीद, भंडारण और वितरण में उच्च लागत आती है, पारगमन घाटे के कारण FCI को सालाना लगभग 300 करोड़ रुपए का नुकसान होता है।
- वितरण अकुशलताएँ: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में लीकेज, चोरी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ हैं, 2022-23 NSS सर्वेक्षण के अनुसार लीकेज 22% है।
- गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ: खाद्यान्नों की गुणवत्ता को लंबे समय तक बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है।
निष्कर्ष:
भारत में कीमतों को स्थिर रखने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये बफर स्टॉक बहुत ज़रूरी है। भंडारण और खरीद के मुद्दों को हल करने के साथ-साथ बुनियादी अवसंरचना तथा वितरण में सुधार करने से यह प्रणाली अधिक प्रभावी बनेगी तथा किसानों एवं उपभोक्ताओं दोनों को फायदा होगा।