3 Solved Questions with Answers
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2024
प्रश्न 6. राजमार्गों पर इलेक्ट्रॉनिक पथ-कर संग्रह करने के लिये कौन-सी प्रौद्योगिकी अपनाई जा रही है? उसके क्या-क्या लाभ और क्या-क्या सीमाएँ हैं? वे कौन-से परिवर्तन प्रस्तावित हैं जो इस प्रक्रिया को निर्बाध बना देंगे? क्या यह परिवर्तन कोई संभावित खतरे लेकर आएगा?
हल करने का दृष्टिकोण:
- राजमार्गों पर इलेक्ट्रॉनिक पथ-कर संग्रह का संक्षिप्त विवरण दीजिये।
- FASTag,GNSS,RFID और ANPR जैसी प्रमुख प्रौद्योगिकियों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- भीड़भाड़ में कमी लाने तथा तीव्र लेन-देन को सुलभ बनाने के रूप में इसके लाभों पर प्रकाश डालिये।
- बुनियादी ढाँचे से संबंधित समस्याओं एवं डिजिटल विभाजन जैसी चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- GNSS लेन जैसे प्रस्तावित परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
- साइबर सुरक्षा खतरों और तकनीकी विफलताओं जैसे जोखिमों पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
राजमार्गों पर इलेक्ट्रॉनिक पथ-कर संग्रह में फास्टैग और ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है। अनुमान है कि भारत 100% फास्टैग-आधारित टोल संग्रह को अपनाकर ईंधन के साथ मानव के कार्यों में कमी लाकर प्रतिवर्ष 12,000 करोड़ रुपए बचा सकता है।
प्रयुक्त प्रौद्योगिकी:
- RFID (रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन): वाहनों पर लगाए गए टैग (जैसे- फास्टैग) से टोल प्लाज़ा से गुज़रते समय स्वचालित रूप से टोल टैक्स की कटौती हो जाती है।
- GPS (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम): इसके द्वारा यात्रा की दूरी के आधार पर टोल की गणना करने के लिये वास्तविक समय में वाहन की स्थिति को ट्रैक किया जाता है।
- ANPR (स्वचालित नंबर प्लेट पहचान): इसके द्वारा निर्बाध टोल भुगतान के क्रम में वाहन पंजीकरण प्लेटों को कैप्चर किया जाता है।
इस प्रक्रिया को निर्बाध बनाने हेतु प्रस्तावित परिवर्तन:
- सैटेलाइट आधारित टोल संग्रह प्रणाली: GNSS के द्वारा टोल बूथों पर वाहनों को रोके बिना शुल्क की वसूली होती है।
- ऑन-बोर्ड यूनिट्स (OBU): वाहन मालिक अपने वाहनों में गैर-हस्तांतरणीय OBU (जो संभवतः नई कारों में फैक्ट्री द्वारा फिट किये जाएंगे) लगाएंगे, जो फास्टैग स्टिकर के समान होंगे।
- मल्टी-लेन फ्री फ्लो (MLFF) प्रौद्योगिकी: यह प्रौद्योगिकी चलती हुई गाड़ियों से टोल वसूलने के लिये RFID, ANPR और GNSS को समन्वित करती है।
- टोल संग्रहण प्रणाली: यह राज्यों और राजमार्गों पर टोल भुगतान को सुव्यवस्थित करने के लिये एकीकृत राष्ट्रीय मंच है।
इससे जुड़े संभावित खतरों में हैकिंग और डेटा उल्लंघनों से संबंधित साइबर सुरक्षा जोखिम के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक भुगतान विधियों तक पहुँच न रखने वाले निम्न आय वाले व्यक्तियों के लिये असमानताएँ शामिल हैं।
निष्कर्ष:
यद्यपि इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रहण प्रौद्योगिकी के अनेक लाभ हैं फिर भी इसके निर्बाध क्रियान्वयन हेतु इससे जुड़े संभावित खतरों का समाधान आवश्यक है, जिससे सभी उपयोगकर्त्ताओं के लिये निष्पक्षता एवं सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
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2024
प्रश्न 15. विश्व को स्वच्छ एवं सुरक्षित मीठे पानी की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ रहा है। इस संकट का समाधान करने के लिये कौन-सी वैकल्पिक तकनीकें हैं? ऐसी किन्हीं तीन तकनीकों के मुख्य गुणों और दोषों का उल्लेख करते हुए संक्षेप में चर्चा कीजिये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- मीठे पानी की उपलब्धता के बारे में संक्षेप में लिखिये।
- पानी की कमी की वर्तमान स्थिति का उल्लेख कीजिये।
- उन उपलब्ध प्रौद्योगिकियों के बारे में लिखिये जो जल संकट की इस स्थिति से निपटने में सहायक हो सकती हैं।
- किन्हीं तीन प्रौद्योगिकियों के बारे में चर्चा कीजिये तथा उनके गुण-दोष बताइये।
- उपरोक्त बिंदुओं का सारांश देते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
पृथ्वी पर मौजूद पानी का केवल 2.5% ही मीठा पानी है, जिसमें से 1% आसानी से उपलब्ध है। अधिकतर मीठा पानी ग्लेशियरों और हिम के मैदानों में स्थित है, जिससे पृथ्वी पर 8 बिलियन लोगों के लिये मात्र 0.007% ही उपलब्ध है।
मुख्य भाग:
स्वच्छ एवं सुरक्षित मीठे पानी की कमी की स्थिति:
- पिछली शताब्दी में पानी के उपयोग में जनसंख्या वृद्धि की दर की तुलना में दोगुनी गति से वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2025 तक विश्व की आधी आबादी को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
- तीव्र जल संकट के कारण वर्ष 2030 तक लगभग 700 मिलियन लोग विस्थापित हो सकते हैं।
- वर्ष 2040 तक विश्व भर में 4 में से 1 बच्चा अत्यधिक जल तनाव वाले क्षेत्रों में रहेगा।
वैकल्पिक प्रौद्योगिकियाँ:
- विलवणीकरण प्रौद्योगिकियाँ: रिवर्स ऑस्मोसिस जैसी झिल्ली प्रौद्योगिकियाँ (Membrane technology) समुद्री पानी को पीने योग्य पानी में परिवर्तित करने में सहायक हैं।
- अपशिष्ट जल उपचार: इलेक्ट्रोकोएगुलेशन और मेम्ब्रेन बायोरिएक्टर जैसी प्रौद्योगिकियाँ अपशिष्ट जल को पुनः उपयोग हेतु उपचारित करने में सहायक हो सकती हैं।
- AI और IOT की भूमिका: यह रिसाव की पहचान करने और जल वितरण नेटवर्क की निगरानी करने तथा जल हानि को रोकने में सहायक है।
- नैनो प्रौद्योगिकी: कार्बन नैनोट्यूब (CNT) आधारित निस्यंदन प्रणालियाँ कार्बनिक, अकार्बनिक और जैविक यौगिकों को निष्कासित करती हैं।
- फोटोकैटेलिटिक जल शोधन: यह जल को विषाक्त पदार्थों और प्रदूषकों से मुक्त करने के लिये फोटोकैटेलिस्ट तथा पराबैंगनी किरणों का उपयोग करता है।
तकनीक
गुण
अवगुण
विलवणीकरण प्रौद्योगिकियाँ
समुद्री पानी से मीठे पानी का विश्वसनीय स्रोत
उच्च ऊर्जा खपत और कार्बन-गहन।
शुष्कता के दौरान जल आपूर्ति में विविधता लाना।
समुद्र में अवसांद्रित लवण का निपटान समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुँचा सकता है।
अपशिष्ट जल उपचार प्रौद्योगिकियाँ
जल के पुनः उपयोग को बढ़ावा देता है
उच्च प्रारंभिक पूंजी लागत
अनुपचारित अपशिष्ट जल को पारिस्थितिकी में प्रवेश करने से रोकता है
ऊर्जा-गहन और तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता।
कार्बन नैनोट्यूब (CNT) निस्पंदन प्रणाली
बैक्टीरिया और भारी धातुओं सहित विभिन्न संदूषकों को हटाता है।
CNT महँगे होते हैं, जिन्हें बड़े पैमाने पर तैनात करना सीमित होता है।
तीव्र निस्यंदन दर
CNT के उत्सर्जन पर पर्यावरण संबंधी चिंताएँ।
निष्कर्ष:
विलवणीकरण, अपशिष्ट जल उपचार और AI जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने से मीठे पानी की कमी के लिये अभिनव समाधान उपलब्ध होंगे, जिससे सतत् प्रबंधन के लिये दक्षता और जल की गुणवत्ता में वृद्धि होगी तथा सभी के लिये स्वच्छ जल तक पहुँच होगी।
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2024
प्रश्न 16. क्षुद्रग्रह क्या हैं? इनसे जीवन के विलुप्त होने का खतरा कितना वास्तविक है? ऐसे विध्वंस को रोकने के लिये क्या रणनीति विकसित की गई है? (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- क्षुद्रग्रहों के बारे में संक्षेप में परिचय दीजिये।
- क्षुद्रग्रहों से उत्पन्न खतरों और उन्हें रोकने के लिये विकसित रणनीतियों का उल्लेख कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
क्षुद्रग्रह (लघु ग्रह) लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व सौरमंडल के आरंभिक निर्माण के चट्टानी, वायुविहीन अवशेष हैं, जो मुख्य रूप से क्षुद्रग्रह पट्टी में मंगल और बृहस्पति के बीच सूर्य की परिक्रमा करते पाए जाते हैं।
मुख्य भाग:
क्षुद्रग्रहों से उत्पन्न संकट:
- ऐतिहासिक प्रभाव: 66 मिलियन वर्ष पूर्व एक वृहद क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराया था, जिसके कारण डायनासोर और अन्य प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं।
- स्थानीय विनाश: लघु क्षुद्रग्रह स्थानीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण क्षति पहुँचा सकते हैं, जिससे सुनामी, तथा वनाग्नि वायुमंडलीय व्यवधान के संकट उत्पन्न हो सकते हैं।
- वर्ष 2013 में चेल्याबिंस्क उल्कापिंड (रूस) में हुए विस्फोट से शहर के चारों ओर विनाश हुआ और कई लोग घायल हो गए।
- सबसे बड़ी ज्ञात प्रभाव घटना वर्ष 1808 में रूस के साइबेरिया में हुआ खतरनाक विस्फोट था जिसे तुंगुस्का घटना के नाम से जाना जाता है।
- अंतरिक्ष मलबा: एक खंडित क्षुद्रग्रह खतरनाक अंतरिक्ष मलबा उत्पन्न कर सकता है, जिससे उपग्रहों, अंतरिक्ष स्टेशनों और भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों को खतरा हो सकता है।
क्षुद्रग्रह प्रभाव आपदा को रोकने के लिये विकसित की गई रणनीतियाँ:
- क्षुद्रग्रह का पता लगाना और निगरानी करना:
- नासा, ईएसए और अन्य संगठन जैसी अंतरिक्ष एजेंसियाँ सक्रिय रूप से उन क्षुद्रग्रहों की निगरानी तथा सूची निर्मित करती हैं जो पृथ्वी के लिये खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।
- सर्वेक्षण और टेलीस्कोप: भूमि-आधारित और अंतरिक्ष-आधारित टेलीस्कोप, जैसे कि NASA का NEOWISE मिशन, NEOs पर नज़र रखती हैं तथा संभावित प्रभाव जोखिम प्रभाव का आकलन करती हैं।
- विक्षेपण मिशन:
- काइनेटिक इम्पैक्टर: नासा के डबल एस्टेरॉयड रीडायरेक्शन टेस्ट (DART) मिशन ने एक अंतरिक्ष यान को एक क्षुद्रग्रह से टकराकर, ग्रहीय सुरक्षा के लिये क्षुद्रग्रह विक्षेपण का प्रथम परीक्षण किया।
- ग्रेविटी ट्रैक्टर: एक अंतरिक्ष यान अपने गुरुत्वाकर्षण बल का उपयोग करके, किसी क्षुद्रग्रह के साथ प्रत्यक्ष संपर्क के बिना, समय के साथ उसके पथ को धीरे-धीरे परिवर्तित कर सकता है।
- परमाणु विस्फोट:
- यद्यपि विखंडन का खतरा है, लेकिन चरम परिस्थितियों में किसी क्षुद्रग्रह के निकट परमाणु बम विस्फोट करने से वह विखंडित हो सकता है या अपने टकराव पथ से अलग हो सकता है।
- भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण:
- इसरो ने ग्रहीय सुरक्षा में सुधार के लिये वर्ष 2029 में एक क्षुद्रग्रह का अध्ययन करने की योजना बनाई है, जिसके लिये वह संभवतः एपोफिस क्षुद्रग्रह मिशन के साथ सहयोग करेगा, जिसमें JAXA, ESA और NASA शामिल हैं।
निष्कर्ष:
जबकि क्षुद्रग्रह एक खतरा हैं, लेकिन खोज करने, विक्षेपण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में प्रगति के माध्यम से ग्रहों की सुरक्षा में सुधार हो रहा है। इससे क्षुद्रग्रह संसाधनों के दोहन के लिये बेहतर तैयारी और भविष्य की संभावनाएँ सुनिश्चित होंगी।