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भूगोल

8 Solved Questions with Answers
  • 2024

    ट्विस्टर क्या है? मेक्सिको की खाड़ी के आस-पास के क्षेत्रों में अधिकांश ट्विस्टर क्यों देखे जाते हैं? (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • ट्विस्टर्स को परिभाषित करते हुए उत्तर लिखिये।
    • मेक्सिको की खाड़ी में बार-बार आने वाले ट्विस्टर के कारणों का उल्लेख कीजिये।
    • मुख्य बिंदुओं का सारांश देते हुए निष्कर्ष लिखिये। 

    परिचय: 

    ट्विस्टर एक गंभीर चक्रवात है जिसमें घुमावदार, कीप के आकार के मेघ होते हैं। इसमें पवन का एक घूमावदार स्तंभ निर्मित होता है, जो भू-पृष्ठ को कपासी वर्षी मेघ या कतिपय कपासी मेघ से जोड़ता है। ये वैश्विक स्तर पर हो सकते हैं लेकिन मेक्सिको की खाड़ी क्षेत्र में ये अधिक सामान्य हैं।

    मुख्य भाग:

    • मेक्सिको की खाड़ी में ट्विस्टर की होने वाली घटनाओं के लिये ज़िम्मेदार कारक: 
    • उष्ण, आर्द्र पवन: मेक्सिको की खाड़ी उष्ण,आर्द्र पवन प्रदान करती है जो ऊपर उठती है, जिससे चक्रवर्तीय परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं।
    • शीत, शुष्क पवन: रॉकी पर्वत या कनाडा से शीत, शुष्क पवन दक्षिण की ओर बढ़ती है, जो उष्ण, आर्द्र पवनों से टकराती है और वायुमंडलीय अस्थिरता उत्पन्न करती है।
    • तीक्ष्ण पवनें: विभिन्न ऊँचाइयों पर पवन की गति और दिशा में बदलाव के कारण तीव्र पवनें उत्पन्न होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप क्षैतिज घूर्णन प्रभाव उत्पन्न होता है, जो ट्विस्टर के निर्माण के लिये आवश्यक है।
    • भौगोलिक विशेषताएँ: ग्रेट प्लेन और मिसिसिपी नदी घाटी का समतल भूभाग तीव्रता के साथ गर्म होता है, जिससे ट्विस्टर के लिये आदर्श परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं।
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात और हरिकेन: खाड़ी उष्णकटिबंधीय चक्रवात और हरिकेन से ग्रस्त है, जिससे भूस्खलन के बाद ट्विस्टर उत्पन्न होने की संभावना होती है।

    निष्कर्ष: 

    इस प्रकार ट्विस्टर, पवन के घूर्णित स्तंभों से निर्मित होने वाले भीषण चक्रवात हैं। मेक्सिको की खाड़ी के क्षेत्र में ऊष्ण, आर्द्र पवन और शीत, शुष्क पवनों के टकराव के साथ-साथ अनुकूल भूगोल तथा मौसमी पैटर्न के कारण प्रायः ट्विस्टर आते हैं।

    https://www.ncert.nic.in/ncerts/l/kegy210.pdf 

    https://www.britannica.com/science/tornado/Occurrence-in-the-United-States

  • 2024

    क्षेत्रीय असमानता क्या है? यह विविधता से किस प्रकार भिन्न है? भारत में क्षेत्रीय असमानता का मुद्दा कितना गंभीर है? (250 शब्द)

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • क्षेत्रीय असमानता और विविधता को परिभाषित कीजिये।
    • क्षेत्रीय असमानता और विविधता के मध्य अंतर पर प्रकाश डालिये।
    • भारत में क्षेत्रीय असमानता के मुद्दे पर चर्चा कीजिये।
    • अंत में, क्षेत्रीय असमानता के मुद्दों के समाधान हेतु उपाय सुझाइये।

    परिचय: 

    क्षेत्रीय असमानता का तात्पर्य किसी देश के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक संसाधनों, विकास, बुनियादी ढाँचे और अवसरों के असमान वितरण से है। विविधता का तात्पर्य किसी आबादी या क्षेत्र में मौजूद सांस्कृतिक, भाषाई, भौगोलिक और सामाजिक विशेषताओं की विविधता से है।

    मुख्य भाग:

    क्षेत्रीय असमानता और विविधता के बीच मुख्य अंतर:    

    पहलू

    क्षेत्रीय असमानता

    क्षेत्रीय विविधता

    केंद्र

    आर्थिक एवं विकासात्मक असमानताएँ (आय, शिक्षा, बुनियादी ढाँचा)

    सांस्कृतिक, जातीय और सामाजिक विविधताएँ

    कारण

    औपनिवेशिक विरासत, संसाधन वितरण, नीतिगत पूर्वाग्रह।

    समुदायों का प्राकृतिक विकास, प्रवासन, व्यापार

    प्रभाव

    सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ (गरीबी, बेरोज़गारी, सेवाओं की कमी) उत्पन्न होती हैं।

    रचनात्मकता, सामाजिक सामंजस्य और नवाचार को बढ़ाता है।

    भारत में क्षेत्रीय असमानता की गंभीरता: 

    • आर्थिक असंतुलन: भारत के पाँच सबसे विकसित राज्यों की प्रति व्यक्ति आय सबसे गरीब राज्यों की तुलना में लगभग 338% अधिक है।
    • शैक्षिक असमानता: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, केरल की साक्षरता दर 96.2% है, जबकि बिहार की साक्षरता दर केवल 61.8% है।
    • स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति एक लाख लोगों पर केवल 0.36 के अनुपात में अस्पताल हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह दर प्रति एक लाख लोगों पर अस्पताल 3.6 के अनुपात में है।
    • परिवहन और कनेक्टिविटी: विकसित क्षेत्रों में बेहतर परिवहन नेटवर्क और कनेक्टिविटी होती है, जिससे व्यापार तथा गतिशीलता में सुविधा होती है। 
    • डिजिटल डिवाइड: एनएसएसओ के आँकड़ों के अनुसार, ग्रामीण भारतीय परिवारों में से केवल 24% के पास इंटरनेट तक पहुँच है, जबकि शहरों में यह पहुँच 66% है।
    • प्रवासन पर विषम प्रभाव: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, महाराष्ट्र और दिल्ली अंतर्राज्यीय प्रवासियों को प्राप्त करने वाले शीर्ष राज्य थे, जबकि उत्तर प्रदेश तथा बिहार अंतर्राज्यीय प्रवासियों के मुख्य स्रोत थे।

    निष्कर्ष: 

    सरकार ने भारत में क्षेत्रीय असमानता को दूर करने के लिये कई पहल लागू की हैं, जिनमें पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन शामिल हैं। यह सुनिश्चित करने के लिये कि सभी क्षेत्र आर्थिक प्रगति और अवसरों से लाभान्वित हो सकें, यह आवश्यक है कि संतुलित विकास को बढ़ावा देने के लिये इन असमानताओं को दूर किया जाए।

  • 2024

    ऑरोरा ऑस्ट्रालिस और ऑरोरा बोरियालिस क्या हैं? ये कैसे सक्रिय होते हैं? (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये) 15 अंक

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • ऑरोरा को स्पष्ट कीजिये 
    • विभिन्न प्रकार के ऑरोरा का वर्णन कीजिये तथा स्पष्ट कीजिये कि वे कैसे उत्पन्न होते हैं।
    • निष्कर्ष लिखिये

    परिचय: 

    ऑरोरा चमकदार और रंगीन प्रकाश है। इन्हें केवल रात्रि में ही देखा जा सकता है तथा ये आमतौर पर निचले ध्रुवीय क्षेत्रों तक ही सीमित रहते हैं। ऑरोरा मुख्य रूप से पूरे वर्ष उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के ध्रुवों के पास दिखाई देते हैं, लेकिन कभी-कभी वे निचले अक्षांशों तक भी विस्तृत होते हैं।

    मुख्य भाग:

    ऑरोरा के प्रकार: 

    • ऑरोरा ऑस्ट्रालिस (दक्षिणी प्रकाश): दक्षिणी गोलार्द्ध में विशेष रूप से अंटार्कटिक सर्कल के आस-पास ऑस्ट्रेलिया,न्यूज़ीलैंड,अंटार्कटिका और दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी भागों जैसे देशों में दिखाई देता है।
    • ऑरोरा बोरियालिस (उत्तरी प्रकाश): आर्कटिक सर्कल के पास देखा जाता है, जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और वायुमंडल के साथ सौर कणों के संपर्क के कारण होता है। यह नॉर्वे,स्वीडन,फिनलैंड,आइसलैंड, कनाडा और अलास्का जैसे देशों में हरे,लाल और बैंगनी रंग की प्रकाश दिखाता है।

    ऑरोरा को क्या प्रेरित करता है:

    • सौर पवनें: सूर्य द्वारा उत्पन्न सौर पवन कणों की पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ अंतःक्रिया से ध्रुवीय ज्योति उत्पन्न होती है।  
    • कोरोनल मास इजेक्शन (Coronal Mass Ejection- CME):  CME कोरोनल प्लाज़्मा के विशाल बुलबुले होते हैं जो तीव्र चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं से घिरे होते हैं और कई घंटों के दौरान सूर्य से बाहर निकलते हैं। ये पृथ्वी पर पहुँचने वाले आवेशित कणों की संख्या बढ़ाकर ऑरोरल गतिविधि को बढ़ा सकते हैं। 
    • मैग्नेटोस्फीयर में अशांति: यह ऑरोरा को प्रेरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब सौर पवनें, जिसमें सूर्य से प्राप्त आवेशित कण होते हैं, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से संपर्क करती है,तब यह मैग्नेटोस्फीयर में अशांति उत्पन्न करती है। 
    • वायुमंडलीय अंतःक्रिया: आवेशित कण,मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन,पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा ध्रुवीय क्षेत्रों की ओर निर्देशित होते हैं। जब ये कण ऊपरी वायुमंडल में गैसों से टकराते हैं और साथ ही इन गैसों को उत्प्रेरित करते हैं,जिसके परिणामस्वरूप प्रकाश का उत्सर्जन होता है। 

    निष्कर्ष: 

    पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र तथा सौर गतिविधि गतिशील रूप से परस्पर क्रिया करते हैं,जैसा कि ऑरोरा द्वारा प्रदर्शित होता है,जो जटिल अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं का परिणाम है। इसका सबसे हालिया प्रकटीकरण,ऑरोरा बोरियालिस,लद्दाख के हनले गाँव के समीप देखा गया था। 

    स्रोत: 

    https://education.nationalgeographic.org/resource/aurora/ 

    https://www.jpl.nasa.gov/nmp/st5/SCIENCE/aurora.html#:~:text=Auroras%20are%20brilliant%20ribbons%20of,ejections%20(ejected%20gas%20bubbles )।

  • 2024

    गंगा घाटी की भूजल क्षमता में गंभीर गिरावट आ रही है। यह भारत की खाद्य सुरक्षा पर कैसे प्रभावित कर सकती है?

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • समस्या का संक्षिप्त विवरण देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये। 
    • भूजल स्तर में गिरावट के कारणों को सूचीबद्ध कीजिये तथा बताइये कि भूजल उपलब्धता में गिरावट से खाद्य सुरक्षा किस प्रकार बाधित होगी। 
    • इस मुद्दे को कैसे संबोधित किया जाए, इस संदर्भ में निष्कर्ष लिखिये। 

    परिचय: 

    गंगा घाटी, अपनी उपजाऊ जलोढ़ मृदा और प्रचुर जल आपूर्ति के साथ सहस्राब्दियों से सघन आबादी का समर्थन करने के साथ-साथ सभ्यताओं तथा संस्कृतियों को बढ़ावा देती रही है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार इस क्षेत्र में भूजल स्तर प्रतिवर्ष 0.5 से 1 मीटर की खतरनाक दर से घट रहा है। 

    मुख्य भाग:

    भूजल स्तर में गिरावट के कारण:

    • तीव्र शहरीकरण: मांग में वृद्धि के कारण भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है। बोरवेल की अनियमित ड्रिलिंग इसका एक प्रमुख कारण है।
    • अति-सिंचाई: यह बहुतायत लोगों की समस्या है, इससे मृदा स्वास्थ्य भी बिगड़ता है।
    • अपर्याप्त वर्षा जल संचयन: मानसून के दौरान भूजल की आपूर्ति होने के स्थान पर वर्षा जल नष्ट हो जाता है।
    • जलवायु परिवर्तन और अनियमित वर्षा: अनियमित वर्षा पैटर्न, लंबे समय तक शुष्कता और तापमान वृद्धि के कारण वाष्पीकरण में वृद्धि भूजल पुनर्भरण में बाधा डालती है।

    संकट के बीच खाद्य सुरक्षा: 

    • फसल उत्पादन में कमी: भूजल की उपलब्धता कम होने से किसानों को सिंचाई के लिये जल की कमी का सामना करना पड़ेगा, विशेष रूप से शुष्क मौसम के दौरान।  
    • इससे चावल और गेहूँ जैसी अधिक जल की आवश्यकता वाली फसलों की उपज कम हो सकती है, जो भारत में मुख्य खाद्यान्न हैं। 
    • वर्षा पर निर्भरता में वृद्धि: जैसे-जैसे भूजल स्तर गिरता जाएगा, किसानों की अप्रत्याशित मानसून पर निर्भरता बढ़ती जाएगी। 
    • इससे कृषि क्षेत्र शुष्क और अनियमित वर्षा के प्रति अधिक संवेदनशील हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप खाद्य उत्पादन अस्थिर हो गया है। 
    • उत्पादन की उच्च लागत: किसानों को अधिक गहरे कुएँ खोदने पड़ सकते हैं या जल निष्कर्षण की अधिक महँगी विधियों में निवेश करना पड़ सकता है, जिससे कृषि की लागत बढ़ सकती है।  
    • इससे भोजन महँगा हो जाएगा और उसकी उपलब्धता कम हो जाएगी, जिससे उसके सामर्थ्य पर प्रभाव पड़ेगा। 
    • आजीविका का नुकसान: भूजल स्तर में गिरावट छोटे और सीमांत किसानों को कृषि छोड़ने के लिये विवश कर सकती है, जिससे कृषि उत्पादन में कमी आएगी तथा ग्रामीण आजीविका को खतरा होगा, जिससे खाद्य सुरक्षा और अधिक प्रभावित होगी। 

    भूजल में आई कमी को न्यूनतम करना: 

    • ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी कुशल सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देना। 
    • भूजल स्तर की पुनःआपूर्ति के लिये शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन प्रणाली लागू करना।
    • चावल और गन्ना जैसी अधिक जल की खपत वाली फसलों से दूरी बनाना।
    • निर्माण हेतु जल कुशल और तकनीकी रूप से उन्नत विधियों को प्रोत्साहित करना।
    • किसानों को जल-कुशल प्रौद्योगिकियों और पद्धतियों को अपनाने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने जैसे नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
    • कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाओं के साथ-साथ नमामि गंगे जैसे नदी पुनर्जीवन कार्यक्रमों के उचित कार्यान्वयन से भूजल पुनर्भरण में सहायता मिल सकती है। 

    निष्कर्ष:

    गंगा घाटी में घटते भूजल स्तर से भारत की खाद्य सुरक्षा को खतरा है। देश की दीर्घकालिक खाद्य आपूर्ति को सुरक्षित करने के लिये सतत् भूजल प्रबंधन और कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।

  • 2024

    जनसांख्यिकीय शीत (डेमोग्राफिक विंटर) की अवधारणा क्या है? क्या यह दुनिया ऐसी स्थिति की ओर अग्रसर है? विस्तार से बताइये।

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • जनसांख्यिकीय शीत को परिभाषित करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये। 
    • जनसांख्यिकीय शीत की अवधारणा को समझाइये तथा इसके कारणों पर प्रकाश डालिये। 
    • इसके प्रभाव को बताते हुए इससे निपटने की विधियों पर संक्षिप्त जानकारी दीजिये और निष्कर्ष लिखिये। 

    परिचय: 

    "जनसांख्यिकीय शीत" शब्द से तात्पर्य जन्म दर में उल्लेखनीय कमी, साथ-ही-साथ वृद्ध होती आबादी और घटती हुई कामकाजी आयु वाली आबादी से है। यह प्रवृत्ति विभिन्न देशों में देखने को मिलती है।

    मुख्य भाग:

    जनसांख्यिकीय शीत के कारण: 

    • न्यून प्रजनन दर: वर्ष 1960 से वर्ष 2021के बीच वैश्विक प्रजनन दर, प्रति महिला लगभग 5 बच्चों से घटकर लगभग 2.3 हो गई है।  
    • विभिन्न विकसित देशों की प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर (2.1) से नीचे चली गई है। 
    • जापान (1.26), दक्षिण कोरिया (0.78) और इटली (1.24) जैसे देशों में प्रजनन दर विश्व में सबसे कम है। 
    • वृद्ध होती जनसंख्या: यह वर्ष 2020 तक वैश्विक जनसंख्या का लगभग 9% थी, जो 65 वर्ष या उससे अधिक आयु की होगा, जिसका वर्ष 2050 तक लगभग 16% तक बढ़ने का अनुमान है। 
    • यूरोप में 20% से अधिक जनसंख्या पहले से ही 65 वर्ष से अधिक आयु की है। 
    • परिवर्तित पारिवारिक संरचना: सामाजिक बदलाव, जिसमें विवाह और बच्चे पैदा करने में विलंब तथा एकल-व्यक्ति परिवारों में वृद्धि शामिल है, जन्म दर में कमी लाने में योगदान करते हैं। 
    • आर्थिक दबाव: उच्च जीवन-यापन लागत, आवास की कीमतें और रोज़गार की असुरक्षा परिवारों को अधिक बच्चे पैदा करने से हतोत्साहित करती हैं। 

    निष्कर्ष: 

    विकसित क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय शीत के लिये आर्थिक विकास और सामाजिक प्रणालियों को बनाए रखने के लिये पारिवारिक समर्थन, कार्यबल भागीदारी तथा बढ़े हुए आव्रजन पर व्यापक नीतियों की आवश्यकता है।

  • 2024

    ‘बादल फटने’ की परिघटना क्या है? व्याख्या कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये) 10

    हल करने का दृष्टिकोण 

    • ‘बादल फटने’ की परिघटना का हाल ही के उदाहरणों के साथ परिचय दीजिये।
    • ‘बादल फटने’ की क्रियाविधि और प्रभावों का उल्लेख कीजिये। 
    • तद्नुसार यथोचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय: 

    ‘बादल फटने’ की परिघटना तीव्र वर्षण की स्थिति है, जो 20-30 वर्ग किलोमीटर के छोटे क्षेत्र में 100 मिमी./घंटा से अधिक होती हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के कारण यह परिघटना चर्चा में है।

    मुख्य भाग: 

    बादल फटने का तंत्र: 

    ‘बादल फटने’ की परिघटना तब होती है जब गर्म, आर्द्र वायु विभिन्न कारकों के कारण आरोहण होता है:

    • पर्वतीय उन्नयन: आर्द्र वायु को पर्वतों या पहाड़ियों के सहारे ऊपर की ओर उठाता है, जिससे वह शीघ्र ही ठंडी हो जाती है और संघनित होकर भारी वर्षा में परिवर्तित हो जाती है।
    • संवहनीय प्रक्रियाएँ: सतह के पास की गर्म वायु का तापमान के अंतर के कारण आरोहण होता है और कपासी वर्षा मेघ निर्मित करती है। 
    • यदि अधिक ऊँचाई पर वायु तीव्र रूप से ठंडी हो जाए तो वह नमी को रोक सकती है, जिससे अचानक भारी वर्षा हो सकती है।
    • यदि वायु तीव्र रूप से ठंडी हो जाए तो अधिक ऊँचाई पर आर्द्रता निर्मित होती है, जिसके परिणामस्वरूप अचानक तीव्र वर्षण होता है।

    जब इन बादलों में आर्द्रता बहुत अधिक हो जाती है, तो कम समय के लिये तीव्र वर्षण की स्थिति उत्पन्न होती है, जिसके साथ प्राय: गड़गड़ाहट और बिजली भी चमकती है।

    प्रभाव:

    • आकस्मिक बाढ़: अचानक जल प्रवाह से नदियाँ उफान पर आ जाती हैं, जिससे समुदाय में संकट उत्पन्न होता है।
    • भूस्खलन: पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षण से भूस्खलन होता है।
    • बुनियादी ढाँचे की क्षति: सड़कें, पुल और इमारतें गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।
    • जीवन की हानि: बादल फटने से, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में, मृत्यु हो सकती है।

    निष्कर्ष: 

    भारत में बादल फटने की घटनाओं में विशेषकर हिमालय और तटीय शहरों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में वृद्धि देखी गई है। इन आपदाओं को कम करने के लिये बेहतर मौसम निगरानी और जलवायु अनुकूलन योजनाओं की तत्काल आवश्यकता है।

    स्रोत: 

    https://www.drittiias.com/daily-updates/daily-news-analyse/cloudbursts-in-himachal-praदेश 

    https://ncert.nic.in/ncerts/l/kegy107.pdf

  • 2024

    छोटे शहरों की तुलना में बड़े शहर अधिक प्रवासियों को क्यों आकर्षित करते हैं? विकासशील देशों की स्थितियों के आलोक में इसकी विवेचना कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)

    हल करने का दृष्टिकोण 

    • प्रवासन को कुछ आँकड़ों के साथ परिभाषित कीजिये।
    • उन कारकों का उल्लेख कीजिये, जो प्रवासियों को बड़े शहरों की ओर आकर्षित करते हैं। 
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय: 

    प्रवासन, लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर बेहतर रोज़गार के अवसरों और रहने की स्थिति की तलाश में स्थानांतरण की प्रक्रिया है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में कुल आंतरिक प्रवास में ग्रामीण से शहरी प्रवास का भाग 18.9% है।

    मुख्य भाग: 

    बड़े शहरों की ओर प्रवासियों को आकर्षित करने वाले कारक 

    बुनियादी ढाँचा और सेवाएँ: बड़े शहर परिवहन, आवास और उपयोगिताओं समेत बेहतर बुनियादी ढाँचा प्रदान करते हैं, जिससे वे प्रवासियों के लिये अधिक आकर्षक बन जाते हैं। 

    शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल: शहरी क्षेत्रों में आमतौर पर बेहतर शैक्षणिक संस्थान और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ होती हैं, जो बेहतर सेवाओं तथा जीवन की गुणवत्ता की तलाश करने वाले परिवारों को आकर्षित करती हैं। 

    उदाहरण के लिये, बिहार और झारखंड के लोग बेहतर शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा के अवसरों की खोज में दिल्ली तथा कोलकाता जैसे राज्यों में प्रवास करते हैं।

    आर्थिक अवसर: छोटे शहरों की तुलना में बड़े शहर बेहतर कार्य के अवसर प्रदान करते हैं, जैसे- उच्च वेतन तथा विविध रोज़गार क्षेत्र आदि। 

    भारत में प्रवासन सर्वेक्षण (2020-21) से ज्ञात होता है कि लगभग 22% आंतरिक प्रवासी आर्थिक कारणों से उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से क्रमशः महाराष्ट्र तथा पश्चिम बंगाल चले गए।

    सांस्कृतिक और सामाजिक सुविधाएँ: शहरों में सांस्कृतिक, मनोरंजक और सामाजिक सुविधाओं की उपलब्धता जैसे इंटरनेट तथा सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग से समग्र जीवन अनुभव में वृद्धि होती है, जिससे शहरी क्षेत्र अधिक आकर्षक बनते हैं। 

    निष्कर्ष: 

    प्रवासन में प्रभाव का क्षेत्र उन भौगोलिक क्षेत्रों को परिभाषित करता है, जो प्रवासियों को विशिष्ट गंतव्यों तक पहुँचाते हैं। इन क्षेत्रों को पहचानने से नीति-निर्माताओं को प्रवासन संबंधी चुनौतियों से निपटने और अधिक संतुलित क्षेत्रीय रणनीति बनाने में सहायता मिलती है।

    स्रोत: https://www.sciencedirect.com/topics/social-sciences/rural-to-urban-migration 

        https://www.drittiias.com/daily-updates/daily-news-analyse/india-s-internal-migration

  • 2024

    समुद्र सतह के तापमान में वृद्धि क्या है? यह उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के निर्माण को कैसे प्रभावित करता है? (150 शब्द)

    हल करने का दृष्टिकोण : 

    • समुद्र सतह तापमान (SST) को परिभाषित कीजिये।
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के निर्माण में SST वृद्धि की भूमिका को समझाइये।
    • समुद्र सतह के बढ़ते तापमान के लिये सुरक्षा तंत्र का सुझाव दीजिये।

    परिचय: 

    समुद्र सतह का तापमान (SST) समुद्र की सबसे ऊपरी परत के तापमान के रूप में परिभाषित किया जाता है। समुद्र सतह के तापमान में वृद्धि मुख्य रूप से मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के कारण होती है, जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का बहुत बड़ा योगदान है। SST मौसम के पैटर्न को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेषकर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के निर्माण में।

    मुख्य भाग: 

    उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के निर्माण पर SST वृद्धि का प्रभाव: 

    • ऊर्जा स्रोत: समुद्र सतह का बढ़ता तापमान आवश्यक ऊष्मा और नमी प्रदान करता है, जो उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के निर्माण और प्रबलता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • संवहन: उच्च समुद्र तल तापमान संवहन प्रक्रियाओं को बढ़ाता है, जिससे उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का विकास होता है।
    • विकास सीमा: यदि समुद्र सतह तापमान 26°C सीमा से नीचे है, तो चक्रवात विकास के लिये उपलब्ध ऊर्जा अपर्याप्त होती है।
    • तीव्रता: गर्म समुद्र-तटीय पवनें न केवल चक्रवातों के निर्माण को आरंभ करती हैं, बल्कि मौजूदा तूफानों की तीव्रता में भी योगदान देती हैं, जिससे संभावित रूप से उनकी वायु गति और विनाशकारी क्षमता बढ़ जाती है।
    • आवृत्ति: वैश्विक तापमान में वृद्धि से समुद्री सतह का तापमान बढ़ने से उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ सकती है।
    • मार्ग में परिवर्तन: जैसे-जैसे वैश्विक स्तर पर समुद्री सतह तापमान में वृद्धि हो रही है, उष्णकटिबंधीय चक्रवात नए क्षेत्रों में बन सकते हैं या अपना मार्ग बदल सकते हैं, जिससे पूर्व में अप्रभावित रहे क्षेत्र भी प्रभावित हो सकते हैं।

    निष्कर्ष: 

    समुद्री सतह के बढ़ते तापमान से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और जलवायु-अनुकूल अवसंरचना विकसित करना आवश्यक है। साथ ही, संधारणीय प्रथाओं के माध्यम से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण और पूर्वानुमान क्षमताओं में सुधार करने से चरम मौसम की घटनाओं के प्रति क्षेत्र की सुभेद्यता कम होगी।

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