2 Solved Questions with Answers
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2024
प्रश्न 17. आपदा प्रतिरोध क्या है? इसे कैसे निर्धारित किया जाता है? एक प्रतिरोध ढाँचे के विभिन्न तत्त्वों का वर्णन कीजिये। आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई ढाँचे (2015-2030) के वैश्विक लक्ष्यों का भी उल्लेख कीजिये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: आपदा प्रतिरोध को परिभाषित कीजिये।
- मुख्यभाग:
- आपदा प्रतिरोध को निर्धारित करने वाले कारकों के साथ-साथ प्रतिरोध ढाँचे का उल्लेख कीजिये।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई ढाँचे के 7 वैश्विक लक्ष्यों (वर्ष 2015-2030) के साथ-साथ कार्रवाई की प्राथमिकताओं का उल्लेख कीजिये।
- निष्कर्ष: सेंडाई ढाँचे को लागू करने के लिये भारत सरकार की पहल बताइये।
परिचय:
आपदा प्रतिरोध, लोगों, स्थानों और पर्यावरण पर प्राकृतिक आपदाओं के हानिकारक प्रभावों का सामना करने, रोकने तथा उनसे उबरने की क्षमता है।
मुख्यभाग:
आपदा प्रतिरोध विभिन्न कारकों द्वारा निर्धारित होता है, जिसमें शामिल हैं:
- अनुकूलन क्षमता: गड़बड़ी से निपटने, क्षति को कम करने और आघातों से सीखने की क्षमता।
- संभावित जोखिम: आघात या तनाव की तीव्रता और आवृत्ति।
- संवेदनशीलता: किसी आघात या तनाव से कोई प्रणाली कितनी प्रभावित होती है।
- संगठन: अतीत की आपदाओं से सीखने और भविष्य के जोखिमों को कम करने के लिये स्वयं को संगठित करने की क्षमता।
प्रतिरोध ढाँचे के चार तत्त्व:
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई ढाँचे के वैश्विक लक्ष्य (वर्ष 2015-2030):
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाइ ढाँचा संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अनुमोदित एक समझौता है जिसका उद्देश्य वैश्विक लक्ष्यों और सरकारों तथा अन्य हितधारकों के बीच साझा ज़िम्मेदारी के संयोजन के माध्यम से आपदा जोखिम तथा क्षति को कम करना है।
कार्रवाई की प्राथमिकताएँ:
- प्राथमिकता-1: आपदा जोखिम प्रबंधन को भेद्यता, क्षमता, व्यक्तियों और परिसंपत्तियों का जोखिम, खतरे की विशेषताओं और पर्यावरण के समस्त आयामों में आपदा जोखिम की समझ पर आधारित होना चाहिये।
- प्राथमिकता-2: राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर आपदा जोखिम प्रबंधन सभी क्षेत्रों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- प्राथमिकता-3: संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपायों के माध्यम से आपदा जोखिम की रोकथाम तथा न्यूनीकरण में सार्वजनिक तथा निजी निवेश, व्यक्तियों, समुदायों, देशों और उनकी परिसंपत्तियों के साथ-साथ पर्यावरण की आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य तथा सांस्कृतिक प्रतिरोध बढ़ाने के लिये आवश्यक है।
- प्राथमिकता 4: प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये आपदा तैयारी को बढ़ाना तथा पुनर्प्राप्ति, पुनर्वास और पुनर्निर्माण में बेहतर निर्माण करना।
निष्कर्ष:
भारत सरकार ने सेंडाई ढाँचा वर्ष 2015-2030 के लक्ष्यों और प्राथमिकताओं के आधार पर प्राथमिकता वाली कार्रवाइयों का एक समूह जारी किया है। भारत सरकार ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (AMCDRR) 2016 के दौरान एशियाई क्षेत्र में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई ढाँचे के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये UNISDR को 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान प्रदान किया है।
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2024
प्रश्न 18. शहरी क्षेत्रों में बाढ़ एक उभरती हुई जलवायु-प्रेरित आपदा है। इस आपदा के कारणों की चर्चा कीजिये। पिछले दो दशकों में भारत में आई ऐसी दो प्रमुख बाढ़ों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। भारत की उन नीतियों और ढाँचों का वर्णन कीजिये, जिनका उद्देश्य ऐसी बाढ़ों से निपटना है। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत शहरी बाढ़ को परिभाषित करते हुए कीजिये।
- शहरी बाढ़ के मुख्य कारणों पर चर्चा कीजिये। महत्त्वपूर्ण बाढ़ की घटनाओं पर प्रकाश डालिये, उनके कारणों पर ध्यान दीजिये। बाढ़ प्रबंधन से संबंधित नीतियों और रूपरेखाओं पर प्रकाश डालिये।
- बाढ़ को रोकने के लिये शहरी लचीलापन बढ़ाने के लिये प्रभावी प्रबंधन और सतत् बुनियादी ढाँचे के महत्त्व पर बल देते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
शहरी बाढ़, एक जलवायु-प्रेरित आपदा है, जो तब देखने को मिलती है जब भारी वर्षा के कारण जल अपवाह प्रणालियाँ प्रभावित होती हैं तथा शहरों जैसे सघन आबादी वाले क्षेत्रों में भूमि या संपत्ति जलमग्न हो जाती है।
मुख्य भाग:
शहरी बाढ़ के कारण:
- जलवायु परिवर्तन: वर्षा की तीव्रता में वृद्धि, शहरी बाढ़ को बढ़ावा देता है। उष्ण पवनों में अधिक आर्द्रता होती है, जिसके परिणामस्वरूप भारी वर्षा देखने को मिलती है। तापमान वृद्धि, विशेष रूप से अर्बन हीट आइसलैंड्स में, जलवायु पैटर्न को और बाधित करता है।
- समुद्र-स्तर में वृद्धि से तटीय शहरों के लिये खतरा बढ़ जाता है, जिससे बाढ़ और मीठे जल का प्रदूषण देखने को मिलता है।
- शहरीकरण: सतहों की अभेद्यता को बढ़ाकर बाढ़ के जोखिम को बढ़ाता है, जिससे जल अपवाह में वृद्धि होती है और जल अवशोषण कम होता है, जबकि बाढ़ के मैदानों पर अतिक्रमण से अपर्याप्त विनियमन के परिणामस्वरूप प्राकृतिक जल प्रवाह बाधित होता है।
- अनुचित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: इससे जल अपवाह प्रणालियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं, जिससे भारी वर्षा के दौरान जल का प्रवाह अधिक हो जाता है तथा सीवेज एवं वर्षा जल के मिल जाने से बाढ़ का खतरा और भी बढ़ जाता है।
प्रमुख बाढ़ की घटनाएँ:
- चेन्नई बाढ़ (2015): भारी वर्षा और खराब जल अपवाह तंत्र के साथ-साथ शहरी विकास के कारण 300 अंतर्देशीय जल निकायों के नष्ट होने से बाढ़ की स्थिति और भी बदतर हो गई है। पल्लीकरनई मार्श में उल्लेखनीय कमी ने प्राकृतिक पारिस्थितिकी और बाढ़ नियंत्रण को कमज़ोर कर दिया।
- मुंबई बाढ़ (2005): भारी वर्षा के कारण आई बाढ़, एक सदी पुरानी जल अपवाह तंत्र को ध्वस्त कर दिया गया, जिसे केवल 25 मिमी. प्रति घंटे की वर्षा को संभालने के लिये डिज़ाइन किया गया था। शहरीकरण के कारण मैंग्रोव में 40% की कमी आई और हरित क्षेत्रों में कमी आई, जिससे बाढ़ की समस्या में और वृद्धि हुई साथ ही जल का प्रभावी अवशोषण बाधित हुआ।
भारत में शहरी बाढ़ से निपटने के लिये नीतियाँ और रूपरेखा:
- शहरी बाढ़ प्रबंधन पर दिशा-निर्देश (2010): राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जारी ये दिशा-निर्देश शहरी बाढ़ प्रबंधन योजना के लिये बहु-विषयक दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं।
- स्मार्ट सिटीज़ मिशन (2015): स्मार्ट जल निकासी और बाढ़ प्रबंधन प्रणालियों समेत सतत् शहरी बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देता है।
- अमृत 2.0: बाढ़ की आशंका को कम करने के लिये चक्रवाती जल अपवाह और शहरी बुनियादी ढाँचे को उन्नत करने पर केंद्रित है।
- तूफान जल निकासी प्रणाली, 2019 पर मैनुअल: सतत् चक्रवात जल प्रबंधन और बाढ़ प्रतिक्रिया संबंधी योजना पर मार्गदर्शन प्रदान करता है।
निष्कर्ष:
जलवायु परिवर्तन के कारण शहरी बाढ़ से शहरों को बहुत अधिक जोखिम होता है। सतत् बुनियादी ढाँचे के माध्यम से प्रभावी प्रबंधन और NDMA के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए शहरी लचीलेपन में वृद्धि की जा सकती है।