पीसीएस
हायर सर्विसेज़ (प्रवर) रणनीति
- 11 Apr 2023
- 32 min read
यू.पी.पी.सी.एस. (प्रवर) - रणनीति
रणनीति की आवश्यकता क्यों?
- उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में सफलता सुनिश्चित करने के लिये उसकी प्रकृति के अनुरूप उचित एवं गतिशील रणनीति बनाने की आवश्यकता है। यह वह प्रथम प्रक्रिया है जिससे आपकी आधी सफलता प्रारंभ में ही सुनिश्चित हो जाती है।
- ध्यातव्य हैं कि यह परीक्षा सामान्यत: तीन चरणों (प्रारंभिक, मुख्य एवं साक्षात्कार) में आयोजित की जाती है जिसमें प्रत्येक अगले चरण में पहुँचने के लिये उससे पूर्व के चरण में सफल होना आवश्यक है।
- इन तीनों चरणों की परीक्षा की प्रकृति एक-दूसरे से भिन्न होती है। अत: प्रत्येक चरण में सफलता सुनिश्चित करने के लिये अलग-अलग रणनीति बनाने की आवश्यकता है।
प्रारंभिक परीक्षा की रणनीति
- किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्द्धा में विजेता वही होता है, जिसने अपनी तैयारी शुरुआत से की हो। इस दृष्टि से अभ्यर्थियों के लिये उचित होगा कि वे सर्वप्रथम परीक्षा के पाठ्यक्रम का अध्ययन करें एवं उसके समस्त भाग तथा पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सुविधा व रुचि के अनुसार वरीयता क्रम निर्धारित करें।
- तत्पश्चात् विगत 5 से 10 वर्षों में प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों का सूक्ष्म अवलोकन करें और उन बिंदुओं तथा शीर्षकों पर ज्यादा ध्यान दें, जिनसे विगत वर्षों में प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति ज्यादा रही है।
- इस अवलोकन से यह अंदाज़ा लगाना आसान हो जाएगा कि परीक्षा के अनुरूप हमें किन खंडों पर अपनी अवधारणात्मक एवं तथ्यात्मक जानकारी मज़बूत करनी है।
- संपूर्ण पाठ्यक्रम की अध्ययन सामग्री को रट लेना किसी भी विद्यार्थी के लिये संभव नहीं है, ऐसे में बेहतर होगा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ अध्ययन किया जाए। इससे तथ्यों को याद रखने में आसानी होगी, उदाहरण के लिये- अगर हम भारत के भूगोल को उसके नक्शे के साथ पढ़ेंगे तो तथ्यों की पूरी एक श्रृंखला ही हमारे दिमाग में छप जाएगी।
- चूँकि प्रारंभिक परीक्षा में प्रश्नों की प्रकृति वस्तुनिष्ठ (बहुविकल्पीय) प्रकार की होती है अत: इसमें तथ्यों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। जैसे- अशोक के अभिलेख को सर्वप्रथम किसने पढ़ा था? भारत की कौन-सी नदी ‘दक्षिण की गंगा’ के नाम से जानी जाती है? कौन-सा हार्मोन ‘लड़ो और उड़ो’ के नाम से जाना जाता है? इत्यादि।
- इन प्रश्नों को याद रखने और हल करने का सबसे आसान तरीका है कि विषय की तथ्यात्मक जानकारी से संबंधित संक्षिप्त नोट्स बना लिया जाए और उसका नियमित अध्ययन किया जाए जैसे- एक प्रश्न पूछा गया कि भारतीय संविधान में ‘समवर्ती सूची’ की अवधारणा किस देश से ली गई है? तो आपको भारतीय संविधान में विभिन्न देशों से ली गई प्रमुख अवधारणाओं की एक लिस्ट तैयार कर लेनी चाहिये।
- प्रथम प्रश्नपत्र ‘सामान्य अध्ययन’ में पूछे जाने वाले परंपरागत प्रश्न मुख्यत: ‘भारत का इतिहास एवं भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन’, ‘भारत एवं विश्व का भूगोल’, ‘भारतीय राजनीति एवं शासन’, ‘आर्थिक एवं सामाजिक विकास’, ‘पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी’ एवं ‘सामान्य विज्ञान’ से संबंधित होते हैं।
- सामान्य अध्ययन के इन परंपरागत प्रश्नों को हल करने के लिये संबंधित शीर्षक की कक्षा-6 से कक्षा-12 तक की एनसीईआरटी की पुस्तकों का अध्ययन करने के साथ-साथ दृष्टि पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित मानक मासिक पत्रिका ‘दृष्टि करेंट अफेयर्स टुडे’ के सामान्य अध्ययन के विशेषांक खंडों का अध्ययन करना लाभदायक रहेगा।
- इस परीक्षा में समसामयिक घटनाओं एवं राज्य विशेष से पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या उत्तार-चढ़ाव होता रहता है। अत: इनका नियमित रूप से गंभीर अध्ययन करना चाहिये।
- समसामयिक घटनाओं के प्रश्नों की प्रकृति और संख्या को ध्यान में रखते हुए आप नियमित रूप से किसी दैनिक अखबार जैसे- द हिन्दू, दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण) इत्यादि के साथ-साथ दृष्टि वेबसाइट पर उपलब्ध करेंट अफेयर्स के बिंदुओं का अध्ययन कर सकते हैं। इसके अलावा इस खंड की तैयारी के लिये मानक मासिक पत्रिका ‘दृष्टि करेंट अफेयर्स टुडे’ का अध्ययन करना लाभदायक सिद्ध होगा।
- राज्य विशेष से संबंधित प्रश्नों को हल करने में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘उत्तर प्रदेश’ या बाज़ार में उपलब्ध किसी मानक राज्य स्तरीय पुस्तक का अध्ययन करना लाभदायक रहेगा।
- इन परीक्षाओं में संस्थाओं इत्यादि से पूछे जाने वाले प्रश्नों के लिये प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित ‘भारत’ (इंडिया इयर बुक)’ का बाज़ार में उपलब्ध संक्षिप्त विवरण पढ़ना लाभदायक रहता है।
- द्वितीय प्रश्नपत्र ‘सीसैट’ में मुख्यत: कॉम्प्रिहेंशन, अंतर्वैयक्तिक क्षमता एवं संप्रेषण कौशल, तार्किक एवं विश्लेषणात्मक योग्यता, निर्णयन क्षमता एवं समस्या समाधान, सामान्य बौद्धिक योग्यता एवं हाईस्कूल स्तर की प्रारंभिक गणित, सामान्य हिंदी एवं सामान्य अंग्रेजी से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं।
- इसकी तैयारी के लिये बाज़ार में उपलब्ध किसी स्तरीय पुस्तक का अध्ययन करने के साथ-साथ प्रैक्टिस सेटों को हल करना उचित रहेगा।
- सीसैट का प्रश्नपत्र केवल क्वालिफाइंग (न्यूनतम 33% अंक) होता है। इसमें प्राप्त अंकों को कट-ऑफ निर्धारण में नहीं जोड़ा जाता है।
- यदि कोई अभ्यर्थी सीसैट के प्रश्नपत्र में क्वालिफाइंग अंक से कम अंक प्राप्त करता है तो उसके प्रथम प्रश्नपत्र का मूल्यांकन ही नहीं किया जाता है।
- इस परीक्षा में अभ्यर्थियों के योग्यता क्रम का निर्धारण उनके द्वारा प्रथम प्रश्नपत्र में प्राप्त किये गये अंकों के आधार पर किया जाता है।
- प्रारंभिक परीक्षा तिथि से सामान्यत: 15-20 दिन पूर्व प्रैक्टिस पेपर्स एवं विगत वर्षों में प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों को निर्धारित समय सीमा (सामान्यत: दो घंटे) के अंदर हल करने का प्रयास करना लाभदायक होता है। इन प्रश्नों को हल करने से जहाँ विषय की समझ विकसित होती है, वहीं इन परीक्षाओं में दोहराव (रिपीट) वाले प्रश्नों को हल करना आसान हो जाता है।
- यू.पी.पी.एस.सी. की प्रारंभिक परीक्षा में ऋणात्मक अंक (1/3) के प्रावधान होने के कारण किसी भी ऐसे प्रश्न जिसके चारों विकल्पों के बारे में आप अनभिज्ञ हो या उनके संबंध में आप कुछ नही जानते हो, तो ऐसे प्रश्नों को अनुत्तरित छोड़ देना बेहतर होगा।
- सामान्यत: इस परीक्षा का कट-ऑफ 110-120 अंकों तक रहता है, किंतु कभी-कभी प्रश्नों की कठिनाई के स्तर की वज़ह से यह कट-ऑफ थोड़ा कम-ज़्यादा भी हो सकता है। इसके मुताबिक ही अभ्यर्थी को अपना टारगेट स्कोर सेट करना चाहिये।
- इस परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों ने नियमित अध्ययन को अपनी सफलता का मूलमंत्र माना है, अत: अपनी नियमित दिनचर्या से 5-6 घंटे का समय अध्ययन के लिये निकालना उचित होगा। यदि समसामयिक घटनाओं एवं रिवीज़न के लिये भी 1-2 घंटे का समय देते हैं, तो काफी बेहतर स्थिति में रहेंगे।
मुख्य परीक्षा की रणनीति
- यू.पी.पी.सी.एस. की मुख्य परीक्षा की प्रकृति लिखित (वर्णनात्मक) होने के कारण इसकी तैयारी की रणनीति प्रारंभिक परीक्षा से अलग होती है। इसलिये यह आवश्यक हो जाता है कि सभी विषयों पर अवधारणात्मक एवं विश्लेषणात्मक जानकारी सुदृढ़ करते हुए समग्र रणनीति बनाई जाए।
- प्रारंभिक परीक्षा की प्रकृति जहाँ क्वालिफाइंग होती है, वहीं मुख्य परीक्षा में प्राप्त अंकों को अंतिम मेधा सूची में जोड़ा जाता है। अत: परीक्षा का यह चरण अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं काफी हद तक निर्णायक होता है।
- यू.पी.पी.सी.एस. (प्रवर) मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन के छ: प्रश्नपत्र तथा सामान्य हिन्दी एवं निबंध की प्रकृति लिखित (वर्णनात्मक) होती है। इन विषयों में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिये सामान्य अध्ययन विषयों की गहरी समझ एवं विश्लेषणात्मक क्षमता का होना अनिवार्य है। प्रश्नों की प्रकृति अब रटंत पद्धति से हटकर अवधारणात्मक सह-विश्लेषणात्मक प्रकार की हो गई है।
- मुख्य परीक्षा के इस बदले हुए परिवेश में जहाँ समय प्रबंधन एक चुनौती बनकर उभरा है, वहीं इस मुख्य परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिये न केवल संपूर्ण पाठ्यक्रम के विस्तृत समझ की आवश्यकता है बल्कि विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्नों एवं उस पर आधारित मॉडल प्रश्नों का निर्धारित शब्द सीमा व समय में उत्तर-लेखन अति आवश्यक है।
- इस परीक्षा में हिन्दी के प्रश्नपत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसमें अच्छे अंक प्राप्त करने के लिये हिन्दी के व्याकरण (उपसर्ग, प्रत्यय, विलोम इत्यादि) की समझ, संक्षिप्त सार, अपठित गद्यांश इत्यादि की अच्छी जानकारी आवश्यक है। इसके लिये हिन्दी की स्तरीय पुस्तक जैस- ‘वासुदेवनंदन प्रसाद’ एवं ‘हरदेव बाहरी’ की ‘सामान्य हिंदी एवं व्याकरण’ पुस्तक का गहराई से अध्ययन एवं उपरोक्त विषयों पर निरंतर लेखन कार्य करना लाभदायक रहेगा।
- निबंध का प्रश्नपत्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं निर्णायक होता है। पाठ्यक्रम से स्पष्ट है कि यह तीन विशेष खंडों में विभाजित रहता है, जिसमें अभ्यर्थी को अपनी रूचि एवं विषय पर गहरी समझ के अनुसार प्रत्येक खंड से एक-एक निबंध लिखना होता है।
- निबंध को रोचक बनाने के लिये श्लोक, कविता, उद्धरण, महापुरुषों के कथन इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है। निबंध की तैयारी के लिये दृष्टि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘निबंध-दृष्टि’ का अध्ययन करना लाभदायक रहेगा, क्योंकि इस पुस्तक में लिखे गए निबंध न केवल परीक्षा के दृष्टिकोण से श्रेणी क्रम में विभाजित हैं बल्कि प्रत्येक निबंध की भाषा-शैली एवं अप्रोच स्तरीय हैं।
- यू.पी.पी.एस.सी. (प्रवर) मुख्य परीक्षा कुल 1500 अंकों की होती है जिसमें सामान्यत: 950-1000 अंक प्राप्त करने पर साक्षात्कार के लिये आमंत्रित किया जाता है, किन्तु कभी-कभी प्रश्नों के कठिनाई स्तर को देखते हुए यह कट ऑफ कम भी हो सकता है।
- विदित है कि वर्णनात्मक प्रकृति वाले प्रश्नपत्रों में उत्तर को उत्तर-पुस्तिका में लिखना होता है, अत: ऐसे प्रश्नों के उत्तर लिखते समय लेखन शैली एवं तारतम्यता के साथ-साथ समय प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना चाहिये।
- किसी भी प्रश्न का सटीक एवं सारगर्भित उत्तर लिखने के लिए दो बातें महत्वपूर्ण होती है- पहली, विषय की व्यापक समझ हो तथा दूसरी, उत्तर लेखन का निरंतर अभ्यास किया जाए।
- उ.प्र. से संबंधित प्रश्नों एवं समसामयिक घटनाओं के लिये नियमित रूप से मासिक पत्रिका ‘दृष्टि उत्तर प्रदेश करेंट अपेयर्स’ का अध्ययन करना अत्यंत लाभदायक होगा। इसके साथ ही आप ‘दृष्टि वेबसाइट’ एवं ‘दृष्टि यूट्यूब चैनल्स’ पर उपलब्ध कंटेंट का भी अध्ययन कर सकते हैं, जिन्हें परीक्षा की दृष्टि से ही तैयार किया जाता है।
- अपनी तैयारी को अंतिम रूप से परखने के लिये आप इस परीक्षा पर आधारित कोई टेस्ट सीरीज़ जॉइन कर सकते हैं। इससे निश्चित समय-सीमा में प्रश्नों के उत्तर लिखने एवं समय प्रबंधन की दक्षता में भी वृद्धि होगी। इसके लिये आप दृष्टि संस्थान की ‘उत्तर प्रदेश टेस्ट सीरीज़’ जॉइन कर अपनी तैयारी को पुख्ता कर सकते हैं।
- बिल्कुल साफ-सुथरा, उदाहरणयुक्त, प्रासंगिक अवधारणाओं सहित स्पष्ट एवं रचनात्मक उत्तर हमेशा अंकदायी होते हैं। इसके लिये दृष्टि वेबसाइट पर दिये गए एडिटोरियल सहित कुछ समाचार-पत्रों का अध्ययन आपको समग्रता प्रदान करने में मदद कर सकता है। याद रखें, अच्छा लिखने की पहली शर्त यही है कि आपमें पढ़ने की भी अच्छी आदत हो।
अंतिम क्षणों की रणनीति
- परीक्षा से 4-5 दिन पहले कुछ भी नया खंड या टॉपिक पढ़ने से बचें, बल्कि आत्मविश्वास बनाए रखते हुए जो टॉपिक अब तक आपने पढ़ा है, उसी का रिवीज़न करें व लेखन अभ्यास जारी रखें।
- प्रश्नपत्र के जिस खंड पर आपकी पकड़ मज़बूत हो, उसी खंड के प्रश्नों को पहले हल करने का प्रयास करें। इससे आपको मनोवैज्ञानिक सपोर्ट व सकारात्मक माहौल मिलेगा।
- प्रश्नों का उत्तर देते समय महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित करना न भूलें। इस क्रम में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि अति महत्त्वपूर्ण तथ्यों को ही रेखांकित करना है। इस क्रम में आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देश का भी ध्यान रखें।
साक्षात्कार की रणनीति
- साक्षात्कार किसी भी परीक्षा का अंतिम एवं महत्त्वपूर्ण चरण होता है। इसमें न तो प्रारंभिक परीक्षा की तरह सही उत्तर के लिये विकल्प दिये जाते हैं और न ही मुख्य परीक्षा के प्रश्नपत्रों की तरह प्रश्नों को हल करने की सुविधा होती है।
- अंकों की दृष्टि से कम लेकिन अंतिम चयन एवं पद निर्धारण में इसका विशेष योगदान होता है।
- यू.पी.पी.एस.सी. (प्रवर) परीक्षा में साक्षात्कार के लिये कुल 100 अंक निर्धारित किये गए हैं। आपका अंतिम चयन मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार में प्राप्त अंकों के योग के आधार पर तैयार की गई मेधा सूची (मेरिट लिस्ट) के आधार पर होता है।
- साक्षात्कार में किसी भी प्रश्न के लिये दिये गए उत्तर पर प्रति-प्रश्न पूछे जाने की संभावना भी बनी रहती है। आपके द्वारा दिये गए किसी भी गलत या हल्के उत्तर का निगेटिव मार्क़िग जैसा ही प्रभाव पड़ने की संभावना भी बनी रहती है।
- किसी भी उम्मीदवार के लिये साक्षात्कार के चरण की सबसे मुश्किल बात यह होती है कि प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा के विपरीत इसके लिये कोई निश्चित पाठ्यक्रम निर्धारित नहीं है। यही वजह है कि साक्षात्कार के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्नों का दायरा बहुत व्यापक होता है। अत: उम्मीदवारों को यह सवाल बार-बार परेशान करता है कि इतनी कठिन परीक्षा की तैयारी कैसे की जाए, क्या पढ़ा जाए और क्या नहीं? सिर्फ पढ़ा जाए या किताबों से बाहर भी झाँका जाए? आत्मविश्वास कैसे बढ़ाया जाए? ऐसा व्यक्तित्व कैसे गढ़ा जाए कि सिर्फ आधे-एक घंटे के भीतर हम इंटरव्यू पैनल के सदस्यों को प्रभावित कर पाने में सफल हो जाएँ।
- इसके लिये सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि इंटरव्यू बोर्ड के सदस्य आखिर किस आधार पर उम्मीदवारों का मूल्यांकन करते हैं? क्या यह शरीर की बनावट और ड्रेसिंग सेंस से तय होता है? क्या सदस्य उम्मीदवार की भाषा-शैली और हाव-भाव से उसका मूल्यांकन करते हैं? क्या अंकों का सीधा संबंध उम्मीदवार के उत्तरों की गुणवत्ता से होता है? क्या जीवन और विभिन्न मुद्दों के प्रति उम्मीदवार का नज़रिया इसमें केंद्रीय भूमिका निभाता है? इन सभी प्रश्नों के उचित जवाब देने एवं साक्षात्कार की सटीक तैयारी करने हेतु ‘साक्षात्कार की रणनीति’ पर चर्चा की जा रही है।
साक्षात्कार की तैयारी क्यों आवश्यक है?
- सामान्यत: साक्षात्कार के लिये निर्धारित पैनल/बोर्ड में एक अध्यक्ष और 3-4 सदस्य होते हैं (पुरुष एवं महिला दोनों हो सकते हैं)। यह कह सकते हैं कि साक्षात्कार बोर्ड में उम्मीदवारों के ज्ञान, अभिव्यक्ति एवं भाषा-शैली, हाव-भाव, ड्रेसिंग सेंस, उत्तरों की गुणवत्ता एवं जीवन और विभिन्न मुद्दों के प्रति उनके निष्पक्ष नज़रिये का संयुक्त रूप से प्रभाव पड़ता है, जो कि परीक्षा में उनके अंतिम चयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि, यह दावा करना कठिन है कि इन सभी तत्त्वों का अनुपात क्या होगा? प्राय: हर उम्मीदवार के मामले में इनका अनुपात अलग-अलग हो सकता है। संभव है कि कोई उम्मीदवार तथ्यों में कमज़ोर हो, दिखने में कम आकर्षक हो पर अपने सुलझे हुए दृष्टिकोण की बदौलत बोर्ड पर ठीक-ठाक प्रभाव कायम करने में सफल हो जाए। इसी तरह, यह भी संभव है कि कोई उम्मीदवार अपने आकर्षक चेहरे, प्रभावी ड्रेसिंग कौशल तथा जादुई अभिव्यक्ति, सामर्थ्य के सहारे अपनी ज्ञान संबंधी कमियों को एक हद तक ढकने में कामयाब हो जाए।
- मुख्य परीक्षा देने के बाद परीक्षार्थियों को यह उम्मीद बनी रहती है कि उन्हें साक्षात्कार देने का अवसर अवश्य प्राप्त होगा। उनमें से कुछ मुख्य परीक्षा के तुरंत बाद ही साक्षात्कार की तैयारी शुरू कर देते हैं, जबकि कुछ मुख्य परीक्षा के परिणाम का इंतज़ार करते हैं और परीक्षा में सफल होने पर ही इंटरव्यू के बारे में सोचना शुरू करते हैं। वैसे तो व्यक्तित्व निर्माण के लिये कोई समय निर्धारित नहीं किया जा सकता, फिर भी यदि परीक्षा को ध्यान में रखते हुए इसकी मांग के अनुसार शुरू से ही इसका अभ्यास (छद्म साक्षात्कार) किया जाए तो साक्षात्कार के दिन स्वयं को सहज रखने में आसानी रहती है।
- सामान्यत: यह देखा जाता है कि अंतिम परिणाम में सिर्फ 1 अंक के अंतर से भी कई बार 10 या उससे अधिक रैंक का फर्क पड़ जाता है। इसलिये परीक्षा के इस चरण में भी यदि अभ्यर्थी व्यवस्थित तैयारी करता है तो अपने स्तर पर सामान्यत: मिलने वाले अंकों की तुलना में कुछ अंकों का इजाफा अवश्य कर लेता है।
साक्षात्कार की तैयारी हेतु रणनीति के विविध पक्ष
साक्षात्कार की तैयारी हेतु रणनीति को मोटेतौर पर कुल 4 भागों में बाँटकर देख सकते हैं-
- ज्ञान पक्ष:
- सबसे पहले उन विषयों की सूची बना लीजिये, जो आपके बायोडाटा में दिखाई पड़ते हैं। इन विषयों में सामान्य अध्ययन के प्रमुख खंड, आपकी अकादमिक पृष्ठभूमि के विषय, आपकी रुचियाँ, आपका गृह राज्य, गृह जनपद आदि सभी शामिल हैं।
- अपने बायोडाटा को बोर्ड सदस्य की निगाह से कई बार पढ़िये और सोचिये कि उनकी नज़र किन शब्दों पर टिक सकती है? ऐसे सभी शब्दों को रेखांकित कर लीजिये और मानकर चलिये कि आपको उन सभी पर किसी-न-किसी मात्रा में तैयारी करने की ज़रूरत है। इसके बाद एक-एक करके विभिन्न विषयों को उठाइये और पूछे जा सकने वाले संभावित प्रश्नों की सूची बनाइये।
- सामान्यत: इस सूची को तीन भागों में बाँटकर तैयार किया जा सकता है- 1. अत्यधिक संभावित प्रश्न, 2. सामान्य संभावित प्रश्न, 3. कम संभावित प्रश्न। बेहतर होगा कि आप इन प्रश्नों की सूची बनाने में स्वयं के विवेक के साथ-साथ अपने उन साथियों को भी शामिल कर लें, जो आपके साथ इंटरव्यू की तैयारी कर रहे हैं और आपके विषय या क्षेत्र उनके बायोडाटा में भी शामिल हैं।
- आपकी अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय घटनाक्रम के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की समसामयिक घटनाओं पर भी अच्छी पकड़ होनी चाहिये और उम्मीदवार को इन सिविल सेवाओं तथा संबंधित पदों के बारे में स्पष्ट जानकारी होनी चाहिये।
- दृष्टिकोण पक्ष: आयोग उम्मीदवारों से अपेक्षा रखता है कि किसी भी विषय पर उनका दृष्टिकोण एकतरफा न होकर संतुलित तथा प्रगतिशील हो। इसलिये, आपको दिन-प्रतिदिन की चर्चाओं में उठने वाले विवादास्पद मुद्दों के दोनों पक्षों को गहराई से देखने का अभ्यास करते रहना चाहिये। आपके उत्तरों से यह भाव स्पष्ट होना चाहिये कि आप किसी भी विषय पर निर्णय करने से पहले अपनी तर्क बुद्धि का सही उपयोग करते हैं, किसी के बहकावे या उकसावे में नहीं आते। इसके लिये विवादास्पद मुद्दों पर भी आपको अभ्यास करते रहने की निरंतर ज़रूरत होती है।
- अभिव्यक्ति पक्ष:
- सरल भाषा में इसका अर्थ है कि उम्मीदवार अपनी बातों को इंटरव्यू बोर्ड के सामने कितनी प्रभावशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। उसकी शब्दावली, उच्चारण, उतार-चढ़ाव, शारीरिक अभिव्यक्तियाँ आदि वे पक्ष हैं, जो समग्र रूप में उसकी अभिव्यक्ति शैली को परिभाषित करते हैं।
- अभिव्यक्ति कौशल की भूमिका साक्षात्कार में ज़्यादा होती है। बहुत अच्छी अभिव्यक्तिगत क्षमता आपको 20-25% तक का फायदा पहुँचा सकती है।
- अगर उम्मीदवार अपने क्षेत्र से संबंधित या एकदम सरल प्रश्नों के उत्तर न दे पाए तो बोर्ड के सदस्यों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना भी बनी रहती है।
- सबसे अधिक महत्त्व होता है उम्मीदवार के नज़रिये का, अर्थात् किसी मुद्दे पर वह कितने व्यापक और संतुलित तरीके से सोच पाता है, किसी नई और तात्कालिक समस्या को सुलझाने के लिये सही एवं त्वरित निर्णय कर पाता है या नहीं, मुद्दे के व्यावहारिक और सैद्धांतिक पक्षों तथा उनके अंतर्संबंधों को कितनी गहराई से समझ पाता है, इत्यादि।
- इसके अलावा बोर्ड के समक्ष अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के दौरान आत्मविश्वास के साथ-साथ आई कांटेक्ट बनाए रखना चाहिये और प्रश्नों का सीधा उत्तर देना चाहिये। जिन प्रश्नों का उत्तर आपको नहीं पता, आप शालीनता से सॉरी भी बोल सकते हैं। अत: बेहतर होगा कि तैयारी के शुरुआती चरण से ही इसका अभ्यास करते रहें और मुख्य परीक्षा के तुरंत बाद इस दिशा में गंभीर प्रयास शुरू कर दें।
- वेशभूषा आदि की तैयारी:
- एक औपचारिक बैठक के लिये व्यक्ति की जैसी वेशभूषा होनी चाहिये, वैसी ही वेशभूषा इंटरव्यू में अपेक्षित होती है। हालाँकि, आप अपनी सहजता का ध्यान रखें।
- इंटरव्यू में पुरुष उम्मीदवारों के लिये बेहतर होगा कि वे पूरी बाँहों की औपचारिक (Formal) दिखने वाली कमीज़ (Shirt) पहनें और वैसी ही औपचारिक (Formal) पैंट या ट्राउजर्स को प्राथमिकता दें।
- कोट-पैंट, ब्लेजर या सूट भी एक विकल्प है, जो सर्दी के मौसम में पहना जा सकता है। अगर आप सहज हैं तो सूट के साथ टाई लगानी चाहिये। पुटवियर का भी विशेष ध्यान रखें। भड़कीलेपन से बचें। अगर सहज हैं तो लेदर शूज़ का ही प्रयोग करें (सैंडिल भी एक विकल्प है)।
- महिला उम्मीदवार एक बार सूट के विकल्प पर विचार कर सकती हैं, हालाँकि बेहतर यही रहेगा कि वह साड़ी पहनें। सर्दी के मौसम में साड़ी के साथ ब्लेजर का भी उपयोग किया जा सकता है।
साक्षात्कार की तैयारी कैसे करें?
- वैसे तो साक्षात्कार की तैयारी परीक्षा के प्रत्येक स्तर पर स्वयं होती रहती है, बस ज़रूरत होती है तो बोर्ड के समक्ष ज्ञान और दृष्टिकोण के पक्ष के साथ-साथ अभिव्यक्ति पक्ष एवं वेश-भूषा के संतुलित होने की। अत: इन्हें भी मॉक इंटरव्यू (छद्म साक्षात्कार) द्वारा नि:संदेह बेहतर किया जा सकता है। इसके लिये उम्मीदवार स्वयं ही अपने तीन-चार मित्रों (यदि संभव हो तो साक्षात्कार देने वाले) के साथ ग्रुप डिस्कसन के माध्यम से अपनी तैयारी के सभी पक्षों का सटीक विश्लेषण कर सकते हैं।
- इसके अलावा वास्तविक साक्षात्कार के दिन आप सहज एवं आत्मविश्वास से युक्त हों, उसके लिये आप दृष्टि संस्थान द्वारा आयोजित ऑनलाइन/ऑफलाइन मॉक इंटरव्यू में भाग ले सकते हैं, जिसे वास्तविक साक्षात्कार जैसे वातावरण में आयोजित किया जाता है। साथ ही अभ्यर्थी के इंटरव्यू की रिकॉर्डिंग को देखकर उन्हें उनकी कमज़ोरियों की पहचान कराते हुए उन्हें दूर करने हेतु महत्त्वपूर्ण सलाह/सुझाव दिया जाता है।
- दृष्टि मॉक इंटरव्यू के पश्चात् प्रत्येक अभ्यर्थी से उसके इंटरव्यू के संदर्भ में व्यक्तिगत चर्चा की जाती है, जिसमें उनके मज़बूत और कमज़ोर पक्षों को बताया जाता है तथा उन कमज़ोरियों को दूर करने के उपाय भी सुझाए जाते हैं। दृष्टि मॉक टेस्ट इंटरव्यू में इस बात का विशेष अभ्यास करवाया जाता है कि विवादास्पद मुद्दों पर अभ्यर्थी का निष्कर्ष संतुलित, प्रगतिशील तथा समावेशी हो। अत: यह प्रक्रिया निश्चित तौर पर बोर्ड के समक्ष जाने से पहले आपके आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायता करेगी।
- अंत में प्रतिष्ठित परीक्षा के आखिरी चरण में नर्वस होना स्वाभाविक है, फिर भी ऐसी स्थिति में खुद पर विश्वास बनाए रखिये, स्वयं को रिफ्रेश रखने के लिये संगीत, खेल गतिविधियों में भाग लेने के साथ सामाजिक सरोकार वाली फिल्में भी देख सकते हैं। इसके अलावा एकाग्रता बनाए रखने के लिये मेडिटेशन और योग का सहारा भी ले सकते हैं।