प्रभात पटेल
Rank: 8
नाम: प्रभात पटेल
जन्म तिथि: 13 जुलाई 1990
शैक्षिक योग्यता: बी.ई. (इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलिकॉम)
परीक्षा का माध्यम: हिंदी
सामान्य अध्ययन-1: भाषा -111
सामान्य अध्ययन-2: निबंध -122
सामान्य अध्ययन-3: इतिहास - 95
सामान्य अध्ययन-4: विज्ञान – 97
सामान्य अध्ययन-5: अर्थशास्त्र-77
सामान्य अध्ययन-6: गणित-164
सामान्य अध्ययन पेपर -7: दर्शनशास्त्र एवं समाजशास्त्र -100
इंटरव्यू: 82
कुल अंक : 850
दृष्टि करेंट अफेयर्स टुडेः सिविल सेवा परीक्षा में उच्च रैंक पर चयनित होने पर आपको ‘दृष्टि करेंट अफेयर्स टुडे की ओर से हार्दिक बधाई। चयनित होकर आपको कैसा लग रहा है?
प्रभात पटेल: जी धन्यवाद! एक संतुष्टि का भाव है पर आगे और बेहतर नतीज़ों के लिये मेहनत करनी है।
दृष्टिः क्या इस परीक्षा में सफल होना ही आपके जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य था? यदि नहीं, तो आगे आपकी निगाहें किन उद्देश्यों पर लगी हैं?
प्रभातः यह सफलता तो एक पड़ाव मात्र है, आगे यू.पी.एस.सी. की तैयारी जारी रखनी है। एक अधिकारी बनकर समाज की महत्त्वाकांक्षाओं पर खरा उतरना है ताकि समाज में एक नई प्रेरणा का संचार हो।
दृष्टिः सिविल सेवाओं में ऐसा क्या है कि लाखों युवा इनकी ओर आकर्षित होते हैं? आपके लिये इन सेवाओं में जाने का क्या आकर्षण था?
प्रभातः यह एक ऐसा माध्यम है जिससे समाज के हर स्तर से जुड़ सकते हैं, एक बेहतरीन सामाजिक प्रतिष्ठा और समाज को बेहतर सेवा प्रदान करने से आंतरिक शांति का अनुभव भी होता है। मैं हमेशा से ही आमजन के लिये कार्य करना चाहता था, इसलिये इस क्षेत्र में कॅरियर बनाने हेतु अग्रसर हुआ।
दृष्टिः अक्सर कहा जाता है कि एक-डेढ़ वर्ष तक कठोर मेहनत करने के बाद भी इस परीक्षा की तैयारी संतोषजनक तरीके से पूरी नहीं हो पाती। क्या यह सच है? क्या आप अपनी तैयारी से संतुष्ट थे एवं सफलता के प्रति आशावान थे?
प्रभातः यह क्षेत्र ऐसा है जहाँ कोई भी विद्यार्थी कितनी भी तैयारी करे हमेशा कम ही लगती है। अतः पढ़ाई के दौरान एक सकारात्मक सोच रखते हुए तैयारी करने से सफलता का स्तर बढ़ जाता है। विषयों को गहराई से समझकर सिलेबस के अनुरूप तैयारी करने से सफलता प्राप्त करना निश्चित है।
दृष्टिः यूँ तो कोई भी सफलता कई कारकों पर निर्भर होती है, पर हर सफल व्यक्ति के पास कुछ विशेष सूत्र होते हैं। आपकी सफलता के मूल में कौन-से सूत्र रहे?
प्रभातः सफलता के कारक बहुआयामी होते हैं और प्रत्येक कारक का अपना अलग ही महत्त्व होता है, इसे हम नकार नहीं सकते। तैयारी के दौरान मैंने अपने आप को संयमित रखा। बाहरी आकर्षण जो मेरी तैयारी में नकारात्मक प्रभाव डाल सकते थे, मैंने उनसे दूरी बनाए रखी।
दृष्टिः आपकी सफलता में निस्संदेह आपके साथ-साथ कुछ अन्य व्यक्तियों और शिक्षण संस्थानों का भी योगदान रहा होगा। अपनी योग्यता और परिश्रम के अलावा आप अपनी सफलता का श्रेय किन्हें देना चाहेंगे?
प्रभातः मेरी सफलता में कहीं-न-कहीं मुझसे जुड़े सभी व्यक्तियों का योगदान रहा। परिवार वालों का बेहतरीन सपोर्ट, मित्रों का योगदान, गुरुजनों का मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद सभी का बराबर महत्त्व है। दिल्ली एकेडमी एवं सौरभ चतुर्वेदी सर की भूमिका अतुलनीय रही है, जिसके लिये मैं सदैव उनका आभारी रहूँगा।
दृष्टिः प्रारंभिक परीक्षा एवं मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन के विस्तृत पाठ्यक्रम को देखते हुए इसकी तैयारी के लिये आपने क्या रणनीति अपनाई? कुछ विशेष खंडों पर अधिक बल दिया या सभी पर समान बल? आपकी राय में क्या कुछ खंडों को गौण मानकर छोड़ा जा सकता है?
प्रभातः सर्वप्रथम सिलेबस को ध्यानपूर्वक देखकर मैंने अपनी रणनीति बनाई, पूर्व में संपन्न परीक्षा में किस विषय से कैसे प्रश्न रह गए हैं और कैसे पूछे जा सकते हैं, इसका पूर्वानुमान लगाकर तैयारी की। जिस खण्ड से अधिक प्रश्न पूछे जाते हैं उस पर अधिक फोकस किया और जहाँ से प्रश्न आने की संभावना कम थी उसे छोड़ भी दिया।
दृष्टिः आपने निबंध की तैयारी कैसे की? परीक्षा भवन में विषय के चयन तथा समय-प्रबंधन को लेकर आपने क्या रणनीति अपनाई? क्या भूमिका और निष्कर्ष लेखन के लिये कोई विशेष रणनीति अपनाई या सामान्य तरीके से ही लिखा?
प्रभातः निबंध के लिये मैं लगभग 6 महीने पहले से समाचार-पत्रों के सम्पादकीय पृष्ठों को एकत्रित कर उन पर गहन मंथन करता था। इसके अलावा, एक सप्ताह में दो ही निबंध लिखने की कोशिश करता था और साथ ही ऐसे विषयों पर ज़्यादा ध्यान देता था जो काफी चर्चित हों। भूमिका में महान पुरुषों के कथनों पर मैंने अधिकतर ज़ोर दिया और निष्कर्ष ऐसे लिखा जो निबंध को पूर्णता प्रदान करता हो। निरंतर अभ्यास किया जिससे मुख्य परीक्षा में मैंने समय पर निबंध को पूरा कर लिया।
परीक्षा भवन में विषय का चयन अपनी जानकारी व संबंधित विषय के प्रस्तुतीकरण में समर्थता को ध्यान में रखते हुए किया। समय को ध्यान में रखते हुए तथा विषय के विभिन्न आयामों को सोचते हुए निबंध की रूपरेखा को ‘रफ’ में तैयार किया और इसका विस्तार निबंध लिखते हुए किया। भूमिका और निष्कर्ष लेखन के समय विषय को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत सोच को आधार बनाया। निबंध के विषयों पर सौरभ सर की समझ एवं मार्गदर्शन भी अतुलनीय रहा।
दृष्टिः अधिकांश सफल उम्मीदवार बताते हैं कि मुख्य परीक्षा में सफलता का एक बड़ा आधार उत्कृष्ट उत्तर लेखन शैली में छिपा है। क्या आप इस राय से सहमत हैं? आपकी राय में उत्तर लिखने की सही शैली क्या होनी चाहिये? इसके विकास के लिये क्या तरीका अपनाया जाना चाहिये?
प्रभातः मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि एक उत्कृष्ट लेखन शैली आपको आगे तक लेकर जाती है। उत्कृष्ट लेखन शैली आपकी परिपक्वता को दर्शाती है। मुझे लगता है कि समाचार-पत्रों की शैली में उत्तर लिखना चाहिये, इसके लिये नियमित समाचार-पत्रों का अध्ययन करना तथा प्रतिदिन एक या दो टॉपिक पर अपने विचारों को शब्दों में परिणत करना ज़रूरी है ताकि लेखन शैली का विकास हो सके।
दृष्टिः बहुत से विद्यार्थी इस बात को लेकर संशय में रहते हैं कि वे पढ़ाई के साथ नोट्स बनाएँ या नहीं? अगर वे नोट्स बनाते हैं तो बहुत सारा समय चला जाता है, जबकि नहीं बनाने पर तैयारी अधूरी लगती है। इस संबंध में आपकी क्या राय है? नोट्स बनाने चाहियें या नहीं, और अगर बनाने चाहियें तो कितने और कैसे? कृपया अपने अनुभव के आधार पर बताएँ।
प्रभातः पढ़ाई के साथ-साथ नोट्स बनाना अच्छा विकल्प है। परंतु सभी विषयों के नोट्स तैयार करना संभव नहीं है क्योंकि समय इतना नहीं रहता। अतः जिन विषयों पर विद्यार्थियों की पकड़ अच्छी है उनको मानक किताबों से पढ़ें और समय-समय पर रिवीज़न करें। कुछ विषय ऐसे रहते हैं जो हमें कठिन लगते हैं, ऐसी स्थिति में उनके नोट्स बना सकते हैं। नोट्स सारगर्भित और छोटे होने चाहियें।
दृष्टिः आजकल उम्मीदवारों में प्रारंभिक तथा मुख्य परीक्षा के लिये मॉक टेस्ट सीरीज़ में भाग लेने का काफी रुझान दिखाई पड़ता है। इंटरव्यू से पहले मॉक इंटरव्यू देने का रुझान वैसे भी काफी समय से दिखता रहा है। आपकी राय में प्रारंभिक तथा मुख्य परीक्षा के लिये मॉक टेस्ट सीरीज़ में भाग लेना कितना उपयोगी है? अगर आपका स्वयं का ऐसा अनुभव रहा है तो उसके आधार पर पाठकों को उपयुक्त सलाह दें।
प्रभातः टेस्ट सीरीज़ अपने आप को आकलित करने का एक पैमाना है, यह निस्संदेह उपयोगी है। टेस्ट सीरीज़ मुख्य परीक्षा के पूर्व ही हमारे विचारों को खोलती है और हमें रणनीति बनाने का मौका देती है। मेरी राय में हर परीक्षार्थी को टेस्ट सीरीज़ और मॉक इंटरव्यू ज़रूर देने चाहियें।
दृष्टिः मुख्य परीक्षा के परिणाम के बाद आपने साक्षात्कार की तैयारी कैसे की? क्या उस अल्प अवधि में की गई तैयारी सचमुच साक्षात्कार में मदद करती है? अगर हाँ, तो कितनी और कैसे? कृपया इंटरव्यू की तैयारी के लिये कुछ सुझाव भी दें।
प्रभातः मुख्य परीक्षा का परिणाम आने के एक सप्ताह बाद ही साक्षात्कार था। इतने कम समय में मैंने इधर-उधर भटकने की बजाय यू-ट्यूब पर मॉक इंटरव्यू के वीडियो देखे और स्वयं को तैयार किया। मैंने अपने बायोडाटा की तैयारी अच्छे से की और अपने आप पर फोकस किया तथा विभिन्न प्रकार की भ्रांतियों से खुद को दूर रखा। मुझे लगता है, इंटरव्यू से पहले अगर आप मॉक इंटरव्यू देते हैं तो यह निस्संदेह फायदेमंद होगा।
दृष्टिः आपने इंटरव्यू के दौरान कौन-सी ड्रेस पहनी थी तथा उसके चयन का क्या आधार था? क्या इंटरव्यू में ड्रेस के चयन से कोई फर्क पड़ता है? क्या आपसे आपकी ड्रेस या इससे संबंधित कोई प्रश्न पूछे गए?
प्रभातः मैंने इंटरव्यू के लिये एक सामान्य फॉर्मल ड्रेस का चयन किया था, इसका आधार यह था कि पहनावे से एक भावी प्रशासनिक अधिकारी के रूप में आप दिख सकें। मुझे नहीं लगता कि ड्रेस से कोई फर्क पड़ता होगा, पर यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिये कि ड्रेस एकदम हटकर न हो बल्कि सामान्य ही हो और जो आपको सहज लगे।
दृष्टिः हमने कई टॉपर्स से सुना है कि वे इंटरव्यू से तुरंत पहले काफी नर्वस थे और तनाव का प्रबंधन करने में कठिनाई महसूस कर रहे थे। क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ या आपको बिल्कुल तनाव नहीं हुआ?
प्रभातः साक्षात्कार से पहले नर्वस होना स्वाभाविक है, इसे आप रोक नहीं सकते परंतु इसको मैनेज ज़रूर कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में अपने मनोभावों पर नियंत्रण रखें, ज़्यादा सोच-विचार न करें और सकारात्मकता के साथ इंटरव्यू हॉल में प्रवेश करें।
दृष्टिः क्या यह ज़रूरी है कि सिविल सेवा परीक्षा के उत्तर लिखते समय या इंटरव्यू में उत्तर देते समय सरकार की नीतियों व दृष्टिकोण का समर्थन ही किया जाए? क्या किसी मुद्दे पर सरकार की राय का विरोध किया जा सकता है?
प्रभातः मुझे लगता है कि उत्तर लिखते समय तटस्थ भाव रखना चाहिये। सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को दिखाते हुए एक सुधारात्मक प्रयास को इंगित करते हुए अपनी बात रखनी चाहिये।
दृष्टिः क्या सोशल नेटवर्किंग साइट्स या अन्य वेबसाइट्स का इस परीक्षा की तैयारी में महत्त्व है? अगर हाँ, तो कितना? नए उम्मीदवारों को आप किन वेबसाइट्स की मदद लेने की सलाह देंगे?
प्रभातः आज के डिजिटल युग में इंटरनेट का उपयोग निश्चित ही फायदेमंद है। वेबसाइटों से हमें अनेक प्रकार की अध्ययन सामग्री मिल जाती है जो परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी होती है। हर परीक्षार्थी को इनका सकारात्मक उपयोग करना ही चाहिये। अगर आपको दूसरों से बेहतर करना है तो प्रतिदिन महत्त्वपूर्ण वेबसाइटों पर एक से दो घण्टे का समय दें।
दृष्टिः सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू करने के लिये सबसे उपयुक्त समय क्या है- ग्रेजुएशन के साथ-साथ, उसके तुरंत बाद या कुछ और? आपने तैयारी कब शुरू कर दी थी? क्या आप इस संबंध में अपनी रणनीति को सटीक मानते हैं?
प्रभातः यदि सिविल सेवा अंतिम लक्ष्य है तो फिर इसकी तैयारी ग्रेजुएशन के समय से ही करनी चाहिये। मैंने अपने ग्रेजुएशन के समय से ही समाचार-पत्रों एवं मैगज़ीन के माध्यम से अपनी तैयारी शुरू कर दी थी। सबसे महत्त्वपूर्ण सिलेबस को समझना और विषयों का गहन अध्ययन करना होता है। यदि ग्रेजुएशन के समय से ही हम इस परीक्षा के विषयों से रू-ब-रू हो जाते हैं तो यह फायदेमंद होगा।
दृष्टिः परीक्षा के तीनों चरणों की तैयारी के लिये आपकी राय में कुल कितना समय दिया जाना चाहिये? तैयारी एक-एक चरण के लिये क्रमशः करनी चाहिये या सभी चरणों के लिये एक साथ? अपने अनुभव बताते हुए उपयुक्त सुझाव दें।
प्रभातः परीक्षा के विस्तृत सिलेबस को ध्यान में रखते हुए मुझे लगता है कि कम-से-कम 1 वर्ष की कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है। सभी विषयों को गहराई से समझना आवश्यक है ताकि मुख्य परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर सकें। जहाँ तक तैयारी का प्रश्न है तो सभी चरणों को एक साथ ध्यान में रखकर करनी चाहिये। प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी भी मुख्य परीक्षा को ध्यान में रखकर उसी के अनुरूप करनी चाहिये, इससे बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
दृष्टिः तैयारी के दौरान समय प्रबंधन एक गंभीर चुनौती है, चाहे वह दिनों या महीनों के स्तर पर हो या एक दिन में घंटों के स्तर पर। इसका हल आपने कैसे निकाला? इस संबंध में यह भी बताएँ कि आपकी राय में परीक्षार्थियों के लिये आदर्श दिनचर्या कैसी होनी चाहिये?
प्रभातः किसी भी परीक्षा की तैयारी में समय प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण कारक होता है। मुझे लगता है कि समय का प्रबंधन जितने माइक्रोलेवल में किया जाए उतना ही अच्छा है। मैं तैयारी के दौरान दिन को घण्टों के हिसाब से तीन या चार चरणों में बाँटकर एक निश्चित टॉपिक का चयन कर उसका अध्ययन करता था। परीक्षार्थियों को पढ़ाई के साथ-साथ स्वयं का अवलोकन भी करना चाहिये ताकि उनकी मेहनत का बेहतर परिणाम उन्हें मिले।
दृष्टिः प्रायः देखा जाता है कि सिविल सेवाओं की तैयारी करने वाले बहुत से उम्मीदवार किसी वैकल्पिक कॅरियर के बारे में सोचे बिना ही अपनी सारी ऊर्जा इस क्षेत्र में झोंक देते हैं। अगर वे सफल हो जाएँ तो ठीक, नहीं तो उनके लिये सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। दूसरी तरफ, जो उम्मीदवार वैकल्पिक रास्ता लेकर चलते हैं उन्हें यह शिकायत रहती है कि वे इस कठिन परीक्षा की तैयारी को पूरा समय नहीं दे पाते। इस संबंध में आपकी क्या राय है? उम्मीदवार को सिर्फ इस परीक्षा के लिये ऊर्जा लगानी चाहिये या अन्य वैकल्पिक रास्ते भी बनाकर चलना चाहिये? आपने इनमें से कौन-सा रास्ता चुना?
प्रभातः हर व्यक्ति की चुनौती स्वीकार करने की क्षमता अलग होती है। यह तो परीक्षार्थी पर ही निर्भर करता है कि वह किस रणनीति के साथ तैयारी कर रहा है। कुछ परीक्षार्थी वैकल्पिक कॅरियर को ध्यान में रखते हैं और कुछ नहीं, दोनों ही स्थितियाँ सही हैं, बशर्ते आप कितना कम्फर्ट हैं यह ज्यादा मायने रखता है। सिविल सेवा परीक्षा एक तरह से धैर्य की भी परीक्षा है, अतः बिना किसी दबाव के अपनी पूरी ऊर्जा के साथ तैयारी करें तो परिणाम बेहतर होंगे।
दृष्टिः पारिवारिक तथा शैक्षिक पृष्ठभूमि का परीक्षा की तैयारी पर कितना प्रभाव पड़ता है? जिन लोगों को बेहतर विद्यालयों या महाविद्यालयों में पढ़ने का मौका नहीं मिला, क्या उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है? अगर हाँ, तो उससे कितना और कैसे बचा जा सकता है?
प्रभातः पारिवारिक एवं शैक्षणिक पृष्ठभूमि का अहम प्रभाव होता है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि जिन्होंने ग्रामीण परिवेश या सरकारी विद्यालयों से शिक्षा ग्रहण की है वे बेहतर नहीं कर सकते हैं। जब आप यह निश्चित कर लें कि सिविल सेवा में जाना है तबसे ईमानदारीपूर्वक मेहनत करें, विषयों का गहन अध्ययन कर उन पर अपनी पकड़ को मज़बूत बनाएँ।
दृष्टिः अपना परिणाम जानने से पूर्व आप टॉपर्स के बारे में क्या सोचते थे? क्या स्वयं टॉपर बन जाने के बाद इस संबंध में आपकी राय बदली है?
प्रभातः टॉपर्स को मैं हमेशा ही प्रेरणास्रोत के रूप में देखता था, उन्हें देखकर मुझे एक नई ऊर्जा की अनुभूति होती थी। दिल्ली में अध्ययन के दौरान मुझे अनेक टॉपर्स से मिलने का अवसर मिला जो मेरे प्रेरणास्रोत बने। आज भी मैं उनसे कुछ-न-कुछ सीखने की कोशिश करता हूँ।
दृष्टिः विद्यार्थियों के बीच यह धारणा काफी प्रचलित है कि सिविल सेवाओं में सफल होने के लिये रोज 16-18 घंटे पढ़ना ज़रूरी है। क्या यह बात सही है? अपने अनुभव से बताइये कि रोजाना औसतन कितने घंटे पढ़ाई पर लगाए जाने चाहियें? क्या थोड़ा बहुत समय घूमने-फिरने और खेलने के लिये देना उचित है? अगर हाँ, तो कितना?
प्रभातः हर स्टूडेंट की पढ़ने की अपनी अलग क्षमता होती है। क्षमता के अनुरूप ही शांत मन से पढ़ाई करें, किसी प्रकार के दबाव में न रहें। 6 से 8 घंटे ही पढ़कर परीक्षा में अच्छे अंक आ सकते हैं, बशर्ते आप शांत चित्त से पढ़ाई करें। रहा सवाल घूमने-फिरने का तो मुझे लगता है कि पढ़ाई के दौरान जब भी उबासी आने लगे 10 से 15 मिनट घूमकर अपने आप को रिफ्रेश कर सकते हैं।
दृष्टिः इस परीक्षा की तैयारी के दौरान होने वाले मानसिक तनावों से कैसे उबरा जाए? आप इसके लिये क्या युक्ति अपनाते थे?
प्रभातः पढ़ाई के दौरान मानसिक तनाव होना स्वाभाविक है, अतः इससे उबरने के लिये मैंने महापुरुषों की जीवनी का सहारा लिया। जब भी पढ़ाई से थक जाता था, मोटिवेशनल बुक पढ़कर स्वयं को रिचार्ज करता था। इसके अलावा, मॉर्निंग वॉक और योगा भी बहुत फायदेमंद रहा।
दृष्टिः क्या आपने अपनी तैयारी के लिये किसी संस्था से मार्गदर्शन लिया था? यदि हाँ, तो आपकी सफलता में उसकी कितनी भूमिका रही?
प्रभातः मैंने मुख्य परीक्षा के लिये दिल्ली आई.ए.एस. एकेडमी से तैयारी की, वहाँ सौरभ सर के मार्गदर्शन में मैंने विषयों पर अपनी पकड़ बनाई।
दृष्टिः क्या आप ‘दृष्टि करेंट अफेयर्स टुडे’ पत्रिका के पाठक रहे हैं? सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों को आप इस पत्रिका के संबंध में क्या सलाह देना चाहेंगे?
प्रभातः मासिक दृष्टि मैगज़ीन को मैं हमेशा फॉलो करता था, इसके कंटेंट मुझे बेहद पंसद आते हैं। कहीं-न-कहीं मेरी सफलता में इस मैगज़ीन का अहम योगदान है। मैं उम्मीदवारों से यही कहना चाहता हूँ कि यदि आप अच्छे कंटेंट ढूंढ रहे हैं तो ‘दृष्टि करेंट अफेयर्स टुडे’ उसमें खरी उतरती है।
दृष्टिः आपके उज्ज्वल भविष्य के लिये शुभकामनाएँ।
प्रभातः जी बहुत-बहुत धन्यवाद।