नीतिशास्त्र
कार्ल मार्क्स
- 31 Aug 2020
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सामान्य परिचय
कार्ल मार्क्स का जन्म प्रशिया के राइन प्रांत के ट्रियर नगर में 5 मई, 1818 को हुआ था।
- मार्क्स के पिता एक वकील थे एवं उनकी प्रारंभिक शिक्षा एक स्थानीय स्कूल जिमनेजियम में पूरी हुई।
- बोन विश्वविद्यालय से उन्होंने कानून की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् बर्लिन विश्वविद्यालय से दर्शन एवं इतिहास का अध्ययन किया।
- जेना विश्वविद्यालय से उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
मार्क्स के कार्य एवं विचार
- कार्ल मार्क्स हीगेल के विचारों से प्रभावित थे।
- कार्ल मार्क्स ने ‘होली फैमिली’ नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई जिसमें उन्होंने सर्वहारा वर्ग और भौतिक दर्शन की सैद्धांतिक विचारधारा पर सर्वाधिक प्रकाश डाला।
- मार्क्स ने अपने साम्यवादी घोषणा-पत्र में पूंजीवाद को समाप्त करने का संकल्प लिया था।
- मार्क्स के अनुसार विश्व में अशांति एवं असंतोष का कारण गरीबों एवं अमीरों के मध्य का वर्ग संघर्ष ही है।
- उन्होंने कहा कि उत्तराधिकार की प्रथा का अंत किया जाना चाहिये।
- मार्क्स का मत था कि आर्थिक एवं सामाजिक समानता हेतु शांतिपूर्वक क्रांति की जानी चाहिये और यदि इससे बदलाव न हो तो सशस्त्र क्रांति की जानी चाहिये।
- वर्गविहीन समाज की स्थापना करना मार्क्स का प्रमुख उद्देश्य था।
- 1867 में मार्क्स का प्रथम विश्वविद्यालय ग्रंथ ‘दास कैपिटल’ प्रकाशित हुआ, जिसके द्वारा संपूर्ण विश्व में उन्हें प्रसिद्धि प्राप्त हुई।
- ‘द पॉवर्टी ऑफ फिलॉस्फी’ भी उनकी प्रसिद्ध पुस्तक है।
- वर्ष 1883 में मार्क्स की मृत्यु हो गई।
कार्ल मार्क्स के जीवन से मिलने वाली शिक्षाएँ
- मार्क्स महिलाओं के अधिकारों को महत्त्वपूर्ण मानते थे। उनका कहना था कि ‘कोई भी व्यक्ति जो इतिहास की थोड़ी भी जानकारी रखता है, वह यह जानता है कि महान सामाजिक बदलाव बिना महिलाओं का उत्थान किये असंभव है। महिलाओं की सामाजिक स्थिति को देखकर किसी समाज की सामाजिक प्रगति मापी जा सकती है।
- मार्क्स ने विश्व को संघर्ष करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा ‘दुनिया के सारे मज़दूरो एक हो जाओ, तुम्हारे पास खोने को कुछ भी नहीं है, सिवाय अपनी जंजीरों के।’
- उन्होंने एक ऐसे समतामूलक समाज की संकल्पना की जिसमें स्त्री-पुरुष, अमीर-गरीब, काले-गोरे जैसे विभेद रहित समानता स्थापित हो सके।
- वे समाजवादी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये लोकतंत्र को महत्त्व देते थे। मार्क्स ने कहा ‘लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है।’
- मार्क्स ने मानवता को धर्म के ऊपर रखा। मार्क्स ने धर्म की आलोचना करते हुए उसे अफीम की संज्ञा दी।
- धर्म के नाम पर होने वाले झगड़ों में धर्म के स्थान पर मानवता को महत्त्व दिया जाना आवश्यक भी है एवं सर्वोपरि भी।
निष्कर्षत: वैज्ञानिक समाजवाद के जन्मदाता, संस्थापक, मजदूरों, किसानों एवं पीड़ितों के मसीहा कहे जाने वाले मार्क्स को दुनिया हमेशा याद रखेगी। मार्क्स ने वर्ग संघर्ष, पूंजीवाद, ऐतिहासिक भौतिकतावाद, सामाजिक परिवर्तन आदि पर अपने महत्त्वपूर्ण सिद्धांत दिये जो वर्तमान समय में भी प्रासंगिक हैं।