करुणा | 06 Jul 2020
भूमिका:
- करुणा का आशय कमज़ोर व्यक्तियों या प्राणियों के प्रति उत्पन्न होने वाली उस भावना से है जो उनकी कमज़ोर स्थिति को समझने तथा उनके प्रति समानुभूतिक चिंता रखने से उत्पन्न होती है।
- यह भावना व्यक्ति को दु:खी व्यक्ति की सहायता करने हेतु प्रेरित करती है।
- अर्थात् करुणा समानुभूति से भी बढ़कर है, यह न केवल दु:खी व्यक्ति की तकलीफ को समझने में हमारी मदद करती है, बल्कि उसके दु:ख को दूर करने के लिये प्रोत्साहित भी करती है।
करुणा की विशेषताएँ:
- जिस व्यक्ति में करुणा का मूल्य होता है, वह दु:खी व्यक्ति के दु:ख को दूर करने का प्रयास करता है।
- ध्यातव्य है कि करुणामय व्यक्ति दु:खी व्यक्ति की सहायता स्वेच्छा से करता है न कि किसी लालच या बदले की भावना से अर्थात् वह इसे अपना कर्त्तव्य समझता है।
- करुणा में समानुभूति निहित होती है।
करुणा का महत्त्व
- यह क्रिया आधारित सहानुभूति है यथा करुणा भय एवं प्रतिकर्षण से विपरीत, समझ, धैर्य एवं दया के साथ-साथ सकारात्मक प्रतिक्रिया करने की संभावना उत्पन्न करती है। यह स्वेच्छा से दु:खी व्यक्ति की सहायता करने की तत्परता है।
- उदाहरण स्वरूप मदर टेरेसा का नाम लिया जा सकता है। मदर टेरेसा ने जीवन भर बिना किसी लालच व स्वार्थ के तत्परता के साथ दीन-दुखियों की सहायता की।
- करुणा समाज में भाइचारे एवं सद्भाव को बढ़ावा देती है। असहाय व्यक्ति सहायता पाकर हमेशा खुशी का अनुभव करता है। यह भावना व्यक्ति को दु:खमय परिस्थिति का सामना करने में मदद करती है।
- करुणा से दूसरों की मदद करने पर आत्म-संतुष्टि एवं आत्मसंतोष का भाव उत्पन्न होता है। जो मानसिक तनाव कम करने में सहायक है।
- इस प्रकार व्यक्ति सामाजिक रूप से खुश रहता है एवं स्वस्थ मानसिकता के साथ कुशलतापूर्वक समाज में योगदान देता है।
- करुणा का भाव रखने वाले समाज में जब व्यक्ति की सहायता करने का भाव होता है तो वह व्यक्ति भी समाज में सकारात्मक योगदान देने हेतु प्रेरित होता है।
- करुणा से समाज में सहअस्तित्व एवं सहपारिस्थितिकी की भावना का विकास होता है जो सामाजिक पूंजी के निर्माण में सहायक होता है।
- प्रशासकों में करुणा का मूल्य होने पर वे दु:खी व पीड़ित व्यक्तियों तथा कमज़ोर एवं वंचित वर्गों को उनका अधिकार दिलाने एवं उनकी सहायता करने हेतु प्रेरित होते हैं तथा समाज से वास्तविक रूप में जुड़ पाते हैं।
निष्कर्ष:
- करुणा हमेशा सकारात्मक परिणाम की ओर ले जाती है यह सभी के लिये अत्यधिक महत्त्व की है। दलाई लामा के शब्दों में ‘‘यदि आप दूसरों को खुशी देना चाहते हैं तो करुणा का अभ्यास करें, यदि आप स्वयं खुश रहना चाहते हैं तो करुणा को अपनाएँ।’’