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सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की रणनीतिक बिक्री

  • 15 Feb 2019
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग ने कुछ राज्य अधिकृत बीमार कंपनियों की रणनीतिक बिक्री के लिये पहले सिफारिश की थी। उस सिफारिश पर मुहर लगाते हुए कैबिनेट ने कुछ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की रणनीतिक बिक्री के लिये स्वीकृति दे दी। इसके पहले विनिवेश विभाग का नामकरण ‘निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग’ के रूप में दोबारा किया गया, जिसमें परिसंपत्ति की गुणवत्ता व सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के कौशल में सुधार करने का स्पष्ट उद्देश्य निहित है।

रणनीतिक बिक्री क्या है?

  • किसी कंपनी की रणनीतिक बिक्री के तहत किसी रणनीतिक सहभागी को शेयरों के ब्लॉक का हस्तांतरण किया जाता है तथा प्रबंधन नियंत्रण का हस्तांतरण भी किया जाता है। सामान्यतः रणनीतिक बिक्रियों से सरकार की शेयर होल्डिंग क्षमता को 51 प्रतिशत से कम कर दिया जाता है।
  • यह विशेष रूप से विनिवेश का मामला है जो कि शेयरों के हस्तांतरण के माध्यम से सरकार को न केवल बेहतर राजस्व उपलब्ध करवाता है बल्कि कौशल सुधार के द्वारा कंपनी की वृद्धि दर को प्रोत्साहित करने के लिये अनुभवी कॉरपोरेट्स को कंपनी का प्रबंधन नियंत्रण सौंपता है।

रणनीतिक बिक्री क्यों?

किसी रणनीतिक निवेशक को कंपनी की इक्विटी के शेयरों से प्राप्त होने वाली आय को आवश्यक अवसंरचनाओं के निर्माण में अधिक लाभप्रद तरीके से परिनियोजित किया जा सकता है। यह सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को प्रतिस्पर्द्धात्मक रूप से सक्षम बनाते समय सार्वजनिक ऋण में कमी करने में भी सहायता करेगा तथा ऋण-जीडीपी अनुपातको भी कम करेगा।

भारत में विनिवेश

  • भारत में विनिवेश की शुरुआत सबसे पहले वर्ष 1991 में हुई जब सरकार ने कुछ चुनी हुई सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का 20 प्रतिशत हिस्सा बेचने का निर्णय लिया था। वर्ष 1993 में रंगराजन समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में से 49 प्रतिशत के विनिवेश तथा अन्य सभी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के लिये 74 प्रतिशत के विनिवेश का प्रस्ताव दिया था। हालाँकि ये सिफारिशें लागू नहीं हो सकीं।
  • वर्ष 1996 में जी.वी.रामकृष्णा के नेतृत्व में एक गैर-सांविधिक व सलाहकारी प्रकृति का विनिवेश आयोग स्थापित किया गया तथा वित्त मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1999 में एक बड़े कदम के रूप में विनिवेश विभाग स्थापित किया गया। वर्ष 2004 में तत्कालीन सरकार ने एक ‘साझे न्यूनतम कार्यक्रम’ के साथ ही बीमार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को पुनर्जीवित करने व उन्हें वाणिज्यिक स्वायत्तता प्रदान करने की घोषणा की। इसके बाद वर्ष 2005 में राष्ट्रीय निवेश कोष स्थापित किया गया, जिसके माध्यम से विनिवेश की प्रक्रिया आयोजित की जाती थी।
  • वर्ष 2014 में नई विनिवेश नीति का सूत्रपात हुआ और विनिवेश के संबंध में सिफारिशी शक्तियाँ नीति आयोग में अधिकृत की गईं।

नई विनिवेश नीति, 2014

इस नीति की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ

  • केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSES) के सार्वजनिक स्वामित्व को प्रोत्साहन देना। अधिसूचित CPSES में अल्पांश की बिक्री को जारी रखते हुए सरकार के बहुलांश हिस्से को बरकरार रखना। चिह्नित CPSES में सरकारी हिस्सेदारी के प्रभावी हिस्से (50 प्रतिशत या अधिक) की बिक्री के साथ ही प्रबंधन नियंत्रण के हस्तांतरण के द्वारा रणनीतिक विनिवेश।
  • इस नीति का उद्देश्य CPSES में निवेश के कुशल प्रबंधन द्वारा निवेशकों, कर्मचारियों, सरकार और कंपनी के लिये CPSES की कीमत उजागर करना, निर्णय निर्माण प्रक्रिया की तर्कसम्मत व्याख्या करना तथा निवेशकों के भरोसे में सुधार करने के लिये उपयुक्त प्रबंधन रणनीतियों को अंगीकार करना।
  • इस नीति में निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि वह संबंधित प्रशासकीय मंत्रलयों से परामर्श के बाद सरकार के शेयरों की बिक्री के लिये CPSES को चिह्नित करे।
  • रणनीतिक विनिवेश के लिये CPSES को चिह्नित करने, बिक्री के तरीके के बारे में सुझाव देने, बिक्री शेयरों का प्रतिशत तय करने तथा CPSES के मूल्य निर्धारण के तरीके को निश्चित करने के लिये नीति आयोग को अधिकृत किया गया है।

आगे का रास्ता

  • बढ़ती हुई प्रतिस्पर्द्धा के इस नए माहौल में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के कर्मचारियों को अपने अधिकारों की (कल्याणकारी राज्य के अंतर्गत) हिफाजत करते हुए देखा जा सकता है। ऐसी स्थिति में कर्मचारियों को मिलने वाले संरक्षण तथा किसी भी रणनीतिक सहयोगी को कंपनी चलाने के लिये मिलने वाली संभावित छूट के बीच एक समझौते की ज़रूरत है।
  • रणनीतिक सहभागियों द्वारा परिसंपत्तियों को अलग करना (जैसे कि कंपनियों की परिसंपत्तियों का निपटान), उससे लाभ कमाना और अंततः संबंधित उद्योग का दोहन करने के पश्चात् उसे छोड़ देना सरकार के लिये चिंता का विषय है। इसलिये सरकार के पास ऐसी स्थितियों से निपटने के लिये कानून होना चाहिये।

यद्यपि सरकार ने इक्विटी में बिक्री के लिये CPSES को चिह्नित करने वाली एक व्यवस्थित मूल्यांकन प्रक्रिया को सुनिश्चित किया है। अतः इसका पूरी पारदर्शिता के साथ सभी मामलों में पालन किया जाना चाहिये।

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