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ग्रामीण विकास में श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन कितना कारगर?

  • 01 Feb 2019
  • 7 min read

भूमिका


भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, 68.84 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। ऐसे में, सशक्त भारत का निर्माण ग्रामीण भारत के विकास के द्वारा ही संभव है।

असंतुलित विकास के दुष्परिणाम

  • असंतुलित क्षेत्रीय विकास के कारण भारत के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक, आर्थिक एवं भौतिक अवसंरचनाओं का पर्याप्त विकास नहीं हो पाया है। इस असंतुलित विकास के कम-से-कम दो दुष्परिणाम चिह्नित किये जा सकते हैं:
  • ग्रामीण क्षेत्रों के लोग रोज़गार, बेहतर शिक्षा एवं स्वास्थ्य की चाह में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। फलस्वरूप शहरों में विद्यमान अवसंरचना की तुलना में जनसंख्या का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे यहाँ कई तरह की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
  • अविकसित व्यावसायिक अवसंरचना के चलते अधिकांश ग्रामीण आबादी कृषि पर निर्भर है जिस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में प्रच्छन्न एवं मौसमी बेरोज़गारी की समस्या बनी रहती है। आज अगर अपनी फसल नष्ट होने के चलते कोई कृषक आत्महत्या कर लेता है तो इसका मूल कारण यही है कि उसके पास आय का कोई वैकल्पिक साधन उपलब्ध नहीं है। गौरतलब है कि गाँवों में किसी प्रकार के बड़े उद्योगों का विकास नहीं हो पाया, साथ ही प्राथमिक क्षेत्र की विभिन्न कृषि-सहायक क्रियाओं, जैसे- मत्स्यपालन, पशुपालन, दुग्ध व्यापार या फिर लघु एवं कुटीर उद्योगों का भी पर्याप्त विस्तार नहीं हुआ है।

ग्रामीण विकास हेतु अब तक किये गए प्रयास

  • गाँवों के विकास के लिये पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ.अब्दुल कलाम ने ‘पुरा’(providing urban amenities of rural areas)का विचार प्रस्तुत किया जिसके तहत 4 प्रकार की ग्रामीण-शहरी कनेक्टिविटी की बात की गई थी- फिजिकल, इलेक्ट्रॉनिक, नॉलेज तथा इकोनॉमिक कनेक्टिविटी। हालाँकि, ‘पुरा’ के इस पायलट फेज के वांछित परिणाम निम्नलिखित कारणों से प्राप्त नहीं हो सके-

♦ क्लस्टर्स के चयन में क्षेत्रीय विकास क्षमता का पूर्व विश्लेषण न किया जाना।
♦ प्रत्येक परियोजना की आवश्यकताओं एवं क्षमताओं के अनुरूप विस्तृत योजना का अभाव।
♦ पायलट परियोजना का मुख्यतः आधारभूत संरचना पर केंद्रित होना और आर्थिक क्रियाओं के कार्यान्वयन व सुधार पर अत्यंत सीमित ध्यान देना।
♦ ग्रामीण विकास की विभिन्न परियोजनाओं से ताल-मेल का अभाव।
♦ कार्यान्वयन में समुचित संस्थागत संरचना का अभाव।


श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन का प्रस्ताव

  • ‘पुरा’ की असफलता और गाँव-शहर के बीच अंतर पाटने की आवश्यकता के मद्देनजर केंद्र सरकार द्वारा बजट 2014-2015 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन का प्रस्ताव रखा गया। सितंबर 2015 को ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक, आर्थिक और बुनियादी ढाँचे के विकास को प्राथमिकता प्रदान करते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस मिशन को मंजूरी प्रदान की।
  • इसके तहत, अगले तीन वर्षों में 300 क्लस्टर्स विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है। ये क्लस्टर्स भौगोलिक रूप से नजदीक कई ग्राम पंचायतों को मिलाकर बनाए जाएंगे।
  • इन क्लस्टर्स के चयन के लिये ग्रामीण विकास मंत्रालय एक वैज्ञानिक प्रक्रिया तैयार करेगा, जिसके तहत जिला, उप-जिला एवं गाँव के स्तर तक विभिन्न पहलुओं, जैसे- जनसंख्या, आर्थिक संभावनाओं, क्षमताओं, पर्यटन इत्यादि का विश्लेषण किया जाएगा।
  • क्लस्टर का चयन राज्य सरकार के द्वारा किया जाएगा, जो सहकारी संघवाद की भावना के अनुरूप है। इसके दो लाभ होंगे- पहला यह कि क्लस्टर्स के चयन की प्रक्रिया दो स्तरों से होकर गुजरने के कारण अधिक पारदर्शी एवं तर्कसंगत रहेगी, दूसरा निर्णय प्रक्रिया में केंद्र व राज्य दोनों की भागीदारी होने से राज्य उपेक्षित महसूस नहीं करेंगे।
  • इस मिशन के अंतर्गत कौशल विकास का प्रशिक्षण, खाद्य प्रसंस्करण, भंडारण गोदामों का निर्माण, डिजिटल शिक्षा, स्वच्छता, पाइप द्वारा घर-घर तक जलापूर्ति, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, ग्रामीण सड़क, जल निकासी, मोबाइल स्वास्थ्य यूनिट, स्कूली एवं उच्च शिक्षा में सुधार, ई-ग्राम कनेक्टिविटी, सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था, नागरिक सेवा केन्द्र तथा एल.पी.जी. गैस आपूर्ति सेवा इत्यादि शामिल की गईं हैं।

इस मिशन से संबंधित चुनौतियाँ

  • मिशन के वित्तपोषण के लिये कोई एक स्रोत सुनिश्चित नहीं है, बल्कि इसे विभिन्न योजनाओं से मिलने वाले संसाधनों पर ही निर्भर रहना है। ऐसे में, क्लस्टर के अंतर्गत विभिन्न योजनाओं का तालमेल व समन्वय अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि समन्वय के अभाव में यह मिशन वित्त की कमी का शिकार हो सकता है।
  • इसके अतिरिक्त, भूमि अधिग्रहण से आने वाली समस्या एक चुनौती है क्योंकि क्लस्टर के विकास के लिये सरकार ने तीन वर्ष की समय सीमा तय की है तथा क्लस्टर में सड़क, ड्रेनेज, स्कूल, हॉस्पिटल, उद्योग आदि के निर्माण हेतु भूमि की आवश्यकता होगी, लेकिन दुर्भाग्यवश वर्तमान सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के माध्यम से इस प्रकार की योजनाओं के हित में जो परिवर्तन लाए जाने थे, वे भूमि अधिग्रहण पर लाए गए अध्यादेश की समाप्ति के कारण अब नहीं रहे। अतः भूमि अधिग्रहण इस मिशन की सफलता में एक बड़ी बाधा बन सकता है।
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